जनजातीय कार्य मंत्रालय
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर ट्राइफेड ने आयुष मंत्रालय को 34,000 योगा मैट भेजे


देश के विभिन्न क्षेत्रों से विशेषतया जनजातीय कारीगरों से खरीदे गए ये 34,000 योगा मैट उनके संबंधित समुदायों के विशिष्ट डिजाइन और कलाकृतियों से सुसज्जित हैं

Posted On: 20 JUN 2023 3:58PM by PIB Delhi

जनजातीय कारीगरों और उनकी उल्लेखनीय शिल्पकला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ट्राइफेड) ने 34,000 योगा मैट की आपूर्ति के लिए आयुष मंत्रालय के साथ तालमेल किया है।

आने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को ध्यान में रखते हुए किया गया यह तालमेल जनजातीय समुदाय के उत्थान और भारत के समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का जश्न मनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है। यह प्रयास न केवल जनजातीय समुदाय को आर्थिक रुप से मजबूत करेगा बल्कि उनकी अद्वितीय कलात्मक परंपराओं के संरक्षण और उसके प्रसार को भी सुनिश्चित करेगा।

देश के विभिन्न क्षेत्रों के जनजातीय कारीगरों से विशेष रूप से खरीदे गए इन 34,000 योगा मैट पर जनजातीय समुदायों की विशिष्ट पहचान और कला का अंकन हैं। प्रत्येक मैट भारत की जनजातियों के विविध सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रमाण है जो उनकी कहानियों, लोककथाओं और कलात्मक विरासत को दर्शाता है।

जनजातीय कारीगरों से ट्राइफेड द्वारा खरीदे गए योगा मैट का उपयोग, आयुष मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यशालाओं, कार्यक्रमों और प्रशिक्षण शिविरों के लिए किया जाएगा। यह योगा मैट योग के प्रति उत्साही लोगों और जनजातीय कारीगरों के बीच समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के गहरे संबंध बनाने में मुख्य भूमिका निभाएगा। इसके माध्यम से प्रतिभागी उस कलात्मक प्रतिभा और सांस्कृतिक गहराई के लिए सराहना प्राप्त करेंगे जो जनजातीय समुदाय देश के विविधता भरे पटल पर लाते हैं।

जैसे-जैसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस नजदीक आ रहा है ट्रायफेड और आयुष मंत्रालय के संयुक्त प्रयास जनजातीय समुदाय की कलात्मक विरासत का जश्न मनाने और उनके सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा के रूप में काम करेंगे। साथ में वे सहयोग की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रदर्शन भी करते हैं, सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देते हैं और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में जनजातीय कारीगरों के अमूल्य योगदान का पोषण करते हैं।

इस संयुक्त प्रयास के तहत ट्रायफेड निम्नलिखित उत्पादों/समुदायों को बढ़ावा देगा-

संथाल समुदाय की कला-कौशल की खोज: मेदिनीपुर के मधुरकाठी मैट का अनावरण

संथाल समुदाय के प्रमाणिक शिल्प कौशल को अपनाते हुए ट्रायफेड मेदिनीपुर की समृद्ध बुनाई विरासत के एक अभिन्न अंग मधुरकाठी को प्रस्तुत करेगा। कुशल जनजातीयों द्वारा सावधानी से तैयार की गई ये मैट पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक विरासत को अपने में समेटे हुए हैं।

फ्लाई शटल हथकरघे द्वारा साड़ी की बुनाई में शामिल जटिल शिल्प कौशल के समान ही ये मैट भी सूती धागे को ताना (ऊर्ध्वाधर धागे) और मधुरकाठी को बाना (क्षैतिज धागे) के रूप में आपस में जोड़ती हैं।

ये कलाकृतियाँ केवल मैट ही नहीं है, बल्कि यह कई प्रकार के लाभ भी देती हैं- इनकी नॉन- कंडक्टिव प्रकृति और पसीने को अवशोषित करने का असाधारण गुण इन्हें पश्चिम बंगाल की गर्म और आर्द्र जलवायु में अलग बनाते हैं। इसके अतिरिक्त धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों में इनका बहुत महत्त्व है।

सुश्री सोनाली सिंकू, सुश्री रात्रि टुडू, सुश्री नीलिमा मुर्मू और सुश्री प्रणती टुडु जैसे कुछ जनजातीय समुदाय के बुनकर हैं जो इन मैट का उत्पादन करने में शामिल हैं। ये प्रतिभाशाली जनजातीय समुदाय बुनकर मेदिनीपुर और पुरुलिया जिले के बेलतला, गोचरा, सांचारा, कांगल बेरियाँ, देवड़ा और लोलारा सहित विभिन्न जिलों के मैट के उत्पादन में अपने कौशल और शिल्प कला का योगदान देते हैं।

  

सुश्री गंगा मुर्मु        सुश्री अर्चिता सोरेन       सुश्री अष्टमी टुडु

 

सुश्री बांसती हेमरान         सुश्री जबरानी टुडु

  सुश्री मौसमी टुडु           सुश्री प्रनाति मुर्मु            सुश्री पुर्णिमा टुडु

 

सुश्री रात्रि टुडु             सुश्री संध्या मुर्मु

 

मयूरभंज ओडिशा से उत्तम सबई घास योगा मैट के साथ प्रकृति की शांति का अनावरण

‘सिमली पाल रिज़र्व’ के शांत सुंदर वातावरण के बीच पाया जाने वाला सबई घास का योगा मैट है। प्राकृतिक सामग्रियों से तैयार किए गए यह मैट मयूरभंज ओडिशा के जनजातीयों और उनके आसपास के सुरम्य वातावरण के बीच संबंध की एक विरासत है।

सबई घास के मैट को बुनने की प्रक्रिया में घास की कटाई और छंटाई शामिल हैं, इसके बाद इसे सुखाने और इसे लचीला बनाने के लिए इसे उपचारित किया जाता है। इसके उर्ध्वाधर ताने के धागों के साथ एक करघे का उपयोग करते हुए बुनकर सबई घास के धागों को स्थायित्व के लिये ट्विनिंग तकनीकों को नियोजित करता है। रंगे हुए घास के साथ अतिरिक्त रंग और पैटर्न बनाए जा सकते हैं। लगातार तनाव बनाए रखते हुए बुनकर बुनाई पूरी करता है। अतिरिक्त घास को काटता है और ढीले सिरों को बांधता चलता है। तैयार मैट को गुणवत्ता निरीक्षण, टिकाऊपन और सुंदरता के लिए वैकल्पिक उपचार से भी गुजरा जाता है। यह कुशल प्रक्रिया खूबसूरती से तैयार की गई टिकाऊ मैट उत्पादित करती है जो, सुंदरता को टिकाऊपन से जोड़ती है।   

अपने हल्के वजन और लचीलेपन के लिए जाने वाला यह घास मैट, टोकरी, खाट, फर्निचर, बॉल-हैंगिंग, सजावटी बक्से और पोस्टर जैसे उत्कृष्ट उत्पादों में कुशलता से परिवर्तित हो जाता है।  इस मैट की अनूठी रचना मुख्य रूप से कपास और सबई घास से बनी होती है, जो असाधारण अवशोषण और आराम प्रदान करती है। जिससे योग के प्रति उत्साहित और अभ्यास करने वालों के लिए ये चटाइयाँ एक स्थायी और आवश्यक साथी बन जाते हैं।

संथाल समुदाय की प्राकृतिक सामग्रियों और कलात्मक परंपराओं को समेटे ये मैट, लोगों को एक शांत और पर्यावरण के अनुकूल योग अनुभव प्रदान करते हैं।

उड़ीसा के मयूरभंज, में गोहल डीही गांव की बथुड़ी जनजाति की सदस्य श्रीमती उषा रानी नाइक, योग मैट बनाने में अपने कौशल का योगदान देती है। ओडिशा के मयूरभंज के बेटनोटी गांव की बथुड़ी जनजाति की एक सदस्य श्रीमती गुरुचरण नायक योगा मैट के उत्पादन में योगदान देने वाली कुशल कारीगर हैं। ओडिशा में विभिन्न जनजातियों के ये कारीगर उच्च गुणवत्ता वाले योगा मैट के निर्माण में अपनी विशेषज्ञता और सांस्कृतिक विरासत को शामिल करते हैं।

 

परंपरा का पुनर्जीवन और समुदाय का सशक्तिकरण: गोंधा घास एक उल्लेखनीय समुदाय-आधारित उद्यम

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में पोटका ब्लॉक के केंद्र में स्थित एक सामुदायिक संचालित उद्यम है जो गोंधा घास की सुंदरता और शक्ति का जश्न मनाता है। जनजातीय महिलाओं द्वारा बंजर भूमि और नदी के किनारे से काटा गया गोंधा घास स्थानीय समुदायों की समृद्ध विरासत और टिकाऊ प्रथाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

गोंधा घास बंजर भूमि और नदी के किनारों से एकत्र की जाती है, इसे सुखाकर आकार दिया जाता है और रेशों में बांटा जाता है। बुनाई की प्रक्रिया में रोपण, कटाई, विभाजन और घास को आकार देना शामिल है। सूती धागे और गोंधा घास का उपयोग विभिन्न शिल्प वस्तुओं जैसे चटाई, बैग, खोल और घरेलू सामान बनाने के लिए किया जाता है। सूत को बॉबिन पर लपेटा जाता है हील और नरकट के माध्यम से पिरोया जाता है और बारपिंग  बीम पर लपेटा जाता है। बुनाई की प्रक्रिया जटिल पैटर्न बनाने के लिए ताने और बाने के आपस धागों को जोड़ती है।

घास की चटाइयाँ उनके स्थायित्व, विविधता और पर्यावरण के अनुकूल प्रकृति के लिए जानी जाती है। पारंपरिक बुनाई तकनीकों को संरक्षित करके और प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके उद्यम न केवल अद्वितीय और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की पेशकश करता है बल्कि स्थानीय समुदायों को फलने-फूलने का अवसर भी देता है।

गोंधा घास उद्यम, समुदाय परंपरा और स्थायी उद्यमशीलता की शक्ति के लिए एक विरासत के रूप में जाना जाता है।

पारंपरिक शिल्प कौशल को संरक्षित करके और स्थानीय कारीगरों को सशक्त बनाकर यह एक उज्ज्वल और अधिक समावेशी भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।

सरोज हंसदा                    कर्मी मुर्मु

सरजामदा लुपुंग टोला             सरजामदा मोटका टोला

परसुडीह

 

सरला सरदार

जनुमदिह पोटका ब्लॉक

 

कमला सरदार                   आश्रिता सरदार

जानुमदिह पोटका ब्लॉक           जानुमदिह पोटका ब्लॉक

 

आश्रिता सरदार

जानुमदिह पोटका ब्लॉक

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