वित्‍त मंत्रालय

सामाजिक क्षेत्र में सरकारी व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि


सामाजिक क्षेत्र व्यय वित्त वर्ष 2016 में 9.1 लाख करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023(बीई) में 21.03 लाख करोड़

2005-06 और 2019-20 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए

Posted On: 31 JAN 2023 1:39PM by PIB Delhi

केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज 31 जनवरी, 2023 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2022-23 पेश करते हुए बताया कि जब विश्व वैश्विक महामारी के प्रभावों और वर्तमान में जारी एक युद्ध से उबर रहा है, भारत अपने अमृत काल में प्रवेश करने की तैयारी कर रहा है। यह युग एक ऐसे युग का वादा करता है जहां आर्थिक विकास को सामाजिक कल्याण से सहायता प्राप्त हो, जहां भारत आज प्रतिबद्ध है कि कोई भी वंचित न रह जाए और सुनिश्चित करता है कि इसके विकास और प्रगति के प्रभाव और लाभ अनगिनत संस्कृतियों, भाषाओं, भू-भागों से आगे बढ़कर, अपने सभी विविध तथा व्यापक जनसंख्या जो देश की वास्तविक संपदा का निर्माण करते हैं, तक पहुंच जाएं।

आर्थिक समीक्षा में आगे कहा गया है कि सामाजिक कल्याण पर फोकस समसामयिक परिदृश्य में और भी अधिक विवेकपूर्ण बन गया है जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र एसडीजी 2030 को अपनाया है जो व्यापक, दूरगामी और लोक-केन्द्रित सार्वभौमिक और रूपांतरकारी लक्ष्यों एवं टार्गेटों का एक समूह है। इसमें से 17 लक्ष्य व्यक्तियों के सामाजिक कल्याण से संबंधित हैं और जिनमें संकल्प किया गया हैः हम वर्तमान और 2030 के बीच सभी जगहों से निर्धनता और भूखमरी को खत्म करने; देशों के भीतर और देशों के बीच विषमताओं का मुकाबला करने; शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और समावेशी समाजों का निर्माण करने; मानवाधिकारों की रक्षा करने तथा जेंडर समानता एवं महिलाओं तथा लड़कियों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने; और ग्रह तथा इसके प्राकृतिक संसाधनों की स्थायी सुरक्षा सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हैं। हम राष्ट्रीय विकास तथा क्षमताओं के विभिन्न स्तरों पर ध्यान देते हुए टिकाऊ, समावेशी तथा सतत आर्थिक विकास, सभी के लिए साझा समृद्धि तथा उत्कृष्ट कार्य के लिए भी संकल्प लेते हैं।

सामाजिक क्षेत्र व्यय

वित्त वर्ष 2016 से देश के नागरिकों के सामाजिक हित के कई पहलुओं पर ध्यान देते हुए सामाजिक सेवाओं पर सरकार के व्यय में वृद्धि दर्शायी गई है। सरकार के कुल व्यय में सामाजिक सेवाओं में व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2020 तक लगभग 25 प्रतिशत रहा है। वित्त वर्ष 2023(बीई) में यह बढ़कर 26.6 प्रतिशत हो गया है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार सामाजिक सेवाओं के व्यय में वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2021 में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वित्त वर्ष 2021 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में 31.4 प्रतिशत की और वृद्धि हुई, महामारी के वर्षों में विशेष रूप से स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र के परिव्यय में वृद्धि की आवश्यकता थी। जहां केन्द्र और राज्य सरकारों का सामाजिक क्षेत्र व्यय परिव्यय 2015-16 में 9.15 लाख करोड़ था यह धीरे-धीरे बढ़कर वित्त वर्ष 2023(बीई) में 21.3 लाख करोड़ हो गया।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार सामाजिक सेवाओं के कुल व्यय में स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा वित्त वर्ष 2019 के 21 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023(बीई) में 26 प्रतिशत हो गया है। 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि संघ और राज्यों का एक साथ मिलाकर प्रगतिशील तरीके से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय 2025 तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए (एफएफसी रिपोर्ट पैरा 9.41, III)। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र पर केन्द्र और राज्य सरकारों का बजटीय व्यय वित्त वर्ष 2023(बीई) में जीडीपी के 2.1 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2022(आरई) में 2.2 प्रतिशत तक पहुंच गया जबकि वित्त वर्ष 2021 में यह 1.6 प्रतिशत था।

गरीबी

गरीबी की माप मुख्य रूप से एक अच्छे जीवन यापन के लिए मौद्रिक साधनों की कमी के रूप में की जाती है। हालांकि, परिभाषा के अनुसार गरीबी के व्यापक निहितार्थ हैं और एक ही समय में कई नुकसान होते हैं- जैसे कि खराब स्वास्थ्य एवं कुपोषण, स्वच्छता, स्वच्छ पेयजल या बिजली, शिक्षा की खराब गुणवत्ता आदि की कमी। इसलिए अधिक व्यापक तस्वीर बनाने के लिए बहुआयामी गरीबी मापों का उपयोग किया जाता है।

एमपीआई पर यूएनडीपी की 2022 की रिपोर्ट अक्तूबर, 2022 में जारी की गई थी और इसमें 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया था। जहां तक भारत का संबंध है, 2019-21 के सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इन अनुमानों के आधार पर, भारत में 16.4 प्रतिशत आबादी (2020 में 228.9 मिलियन लोग) बहुआयामी रूप से गरीब हैं जबकि अतिरिक्त 18.7 प्रतिशत को बहुआयामी गरीबी (2020 में 260.9 मिलियन लोग) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में 2005-06 और 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राष्ट्रीय परिभाषाओं के अनुसार 2030 तक गरीबी में रहने वाले सभी उम्र के पुरूषों, महिलाओं एवं बच्चों के अनुपात को कम से कम आधा करने का एसडीजी के लक्ष्य 1.2 को उसके सभी आयामों में अर्जित करना संभव है।  

सामाजिक सेवाओं की प्रदायगी के लिए आधारः

आधार राज्य द्वारा सामाजिक प्रदायगी के लिए एक अनिवार्य माध्यम है। 318 केन्द्रीय क्षेत्र की योजनाएं तथा 720 से अधिक राज्य डीवीटी योजनाएं आधार अधिनियम 2016 की धारा 7 के तहत अधिसूचित हैं और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, आधार सक्षम भुगतान प्रणालियां, जेएएम (जनधन, आधार और मोबाइल) ट्रिनिटी एक देश एक राशन कार्ड, कोविन जैसी विभिन्न पहलें वित्तीय सेवाओं, सब्सिडी और लाभों की लक्षित प्रदायगी के लिए आधार का उपयोग करती हैं।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार 135.2 करोड़ आधार नामांकन जेनरेट किए गए हैं 75.3 करोड़ निवासियों ने राशन का लाभ उठाने के लिए राशनकार्डों के साथ अपने आधार को लिंक किया है। इसमे यह भी कहा गया है कि 27.9 करोड़ निवासियों ने एलपीजी सब्सिडी के लिए रसोई गैस कनेक्शन के साथ आधार लिंक किया है तथा 75.4 करोड़ बैंक खातों को आधार के साथ लिंक किया गया है और आधार सक्षम भुगतान प्रणालियों (एईपीएस) के माध्यम से 1500 करोड़ से अधिक लेनदेन किए गए हैं।

अर्थव्यवस्था के समग्र विकास के साथ आय (जो भोजन तथा आश्रय जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की उपलब्धता को निर्धारित करती है) तथा शिक्षा स्तरों के पारंपरिक मैट्रिक्स की तुलना में और अधिक तत्वों को शामिल करने के लिए जीवन की गुणवत्ता की संकल्पना को बढ़ा दिया गया है। अब इसमें स्वच्छ पेयजल की सुविधा, स्वच्छता, रोजगार संभावनाओं, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा, संपर्क आदि शामिल हैं। ये सभी एक साथ मिलकर जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करते हैं। इसलिए सामाजिक जीवन पर फोकस का लक्ष्य सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के विजन को अर्जित करना है।

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