सूचना और प्रसारण मंत्रालय
azadi ka amrit mahotsav
iffi banner

निर्देशक सलिल कुलकर्णी की फिल्म ‘एकदा काय झाला’ कहानियों के माध्यम से बच्चों के साथ संवाद करने के एक अनूठे तरीके को दर्शाती है


मुख्य अभिनेता सुमित राघवन ने कहा, “अच्छी फिल्मों में अभिनय का मौका मिलने से सही पटकथा का इंतजार करने का मेरा विश्वास मजबूत होता है”

मराठी भाषा में बच्चों को सोने के समय सुनाई जाने वाली कहानियां अक्सर एकदा काय झाला वाक्यांश से शुरू होती हैं। इस वाक्यांश का अर्थ एक समय की बात है होता है। इसी वाक्यांश वाली शीर्षक से बनी संगीतकार, लेखक और निर्देशक डॉ. सलिल कुलकर्णी की फिल्म भी एक सुंदर कहानी कहती है। लेकिन यह कहानी निश्चित रूप से सिर्फ बच्चों के लिए नहीं है।

53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाई गई फिल्म ‘एकदा काय झाला’ एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जो एक अनोखा स्कूल चलाता है। उसका मानना है कि एक कहानी इस दुनिया के किसी भी विचार को व्यक्त कर सकती है, चाहे वह कितना ही बड़ा या छोटा क्यों न हो। वह अपने स्कूल, जहां उसका बेटा भी पढ़ता है, में सभी विषयों को पढ़ाने के क्रम में कहानियों का प्रयोग करता है। जब उसे अपने जीवन में एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ता है और इसके बारे में अपने बेटे को बताना होता है, तो वह कहानियों का उपयोग करने के दर्शन का सहारा लेता है।

53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के मौके पर पीआईबी द्वारा आयोजित 'टेबल टॉक' सत्र में मीडिया और इस महोत्सव में शामिल प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए, निर्देशक डॉ. सलिल कुलकर्णी ने कहा, “वयस्क लोग अक्सर बच्चों को बताई जा रही बातों पर उनकी प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित रहते हैं। अगर खुद वयस्कों को ही किसी स्थिति से निपटने में कठिनाई हो रही हो, तो उसके बारे में बच्चों को अवगत कराना विशेष रूप से कठिन हो जाता है। इस फिल्म के माध्यम से मैंने यह पता लगाने की कोशिश की है कि कैसे अच्छी और बुरी दोनों तरह की खबरों को बच्चों के साथ कोमल तरीके से साझा किया जा सकता है। वह भी बिना किसी पूर्व- निर्धारित धारणा के कि वे इस पर कैसी प्रतिक्रिया करेंगे।

आईएफएफआई 53 में फिल्म के चयन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि फिल्म के अंत में दर्शकों की आंखों में आंसू देखकर वे बहुत भावुक हो गए थे। उन्होंने स्क्रीनिंग के अनुभव की तुलना लता मंगेशकर के गायन की रिकॉर्डिंग के अनुभव से करते हुए कहा कि दोनों अवसरों पर वे समान रूप से अभिभूत थे।

एक संगीतकार होने के नाते डॉ. कुलकर्णी से अपनी फिल्म के लिए गाने बनाने से जुड़े उनके अनुभव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही अलग अनुभव रहा, क्योंकि उन्हें पता था कि गानों को कैसे शूट किया जाना है। उन्होंने कहा, "अन्य लोगों द्वारा उन्हें शूट किये जाने के कारण, आश्चर्य का एक तत्व हमेशा मौजूद होता है - सुखद या अन्यथा।“

फिल्म बनाने के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए निर्देशक ने कहा कि उन्होंने तय किया था कि उनकी फिल्म में कभी कोई खलनायक नहीं होगा। उन्होंने कहा, “हमें पर्याप्त समस्याएँ हैं; हमें बुरे लोगों की जरूरत नहीं है। परिस्थितियाँ ही खलनायक की भूमिका निभाती हैं।“

निर्देशक द्वारा अपने कलाकारों को चुनने के प्रयासों पर, डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि उन्होंने फिल्म में बच्चे, चिंतन की भूमिका निभाने वाले अर्जुन पूर्णापात्रे को चुनने से पहले 1700 से अधिक बच्चों का ऑडिशन लिया था। सुमित राघवन ने पिता की और उर्मिला कानेतकर कोठारे ने मां की भूमिका निभाई है।

बातचीत के दौरान वहां पर उपस्थित अभिनेता सुमित राघवन ने इस फिल्म में अपनी भूमिका के संबंध में जानकारी दी। सुमित ने बताया कि उन्होंने इस तरह का चरित्र करने के लिए पहले से ही तय कर रखा था। उन्होंने कहा कि जब सलिल कुलकर्णी ने इस फिल्म की कहानी सुनाई तो उन्हें यह भूमिका निभाने के लिए सहमत होना पड़ा, क्योंकि अभिनेताओं को शायद ही कभी ऐसी अच्छी स्क्रिप्ट दी जाती है।

राघवन ने फिल्मों के चुनाव में अपनी पसंद के बारे में बताते हुए  कहा कि एक अभिनेता के रूप में अच्छी भूमिकाओं के लिए उन्हें काफी प्रतीक्षा भी करनी पड़ी है, यह अलग बात है कि आज फिल्मों की भीड़ में खो जाना कहीं आसान है। सुमित ने कहा, "मैंने हमेशा यही महसूस किया है कि एक अभिनेता की व्यक्तिगत जिंदगी सीमित होती है और मैं अपने काम को लेकर धैर्य रखने में ही विश्वास रखता हूं। उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्मों में किसी भूमिका को निभाना उसी विश्वास को मजबूत करता है।

सुमित राघवन ने डॉ. सलिल कुलकर्णी द्वारा वर्षों से बच्चों के लिए किए गए काम की सराहना की। उन्होंने कहा कि सलिल बच्चों के साथ काम करना बहुत अच्छे से जानते हैं, क्योंकि सलिल ने बड़े लंबे समय तक बच्चों के साथ काम किया है। राघवन ने अपनी फिल्म को दर्शकों से मिली प्रतिक्रिया पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि फिल्म का कथानक सार्वभौमिक है तथा हर कोई इससे स्वयं को जोड़ सकता है। राघवन ने बताया कि सहायक कलाकारों ने पूरा सहयोग किया और सब कुछ ठीक से संपन्न हो गया। फिल्म ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपनी फिल्म के चयन पर सुमित ने कहा कि यह बिल्कुल सोने पर सुहागे जैसा है।

एकदा काय झाला 26 नवंबर, 2022 को गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म श्रेणी में प्रदर्शित की गई।

*******

एमजी/एएम/आर/जेके/एन/डीवी

iffi reel

(Release ID: 1879108)