स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय वर्षांत समीक्षा पहल और उपलब्धियाँ- 2021

Posted On: 04 JAN 2022 1:27PM by PIB Delhi

1. कोविड-19 की रोकथाम और प्रबंधन के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदम:

भारत और विश्व के अन्य देशों में सामने आ रहे कोविड-19 महामारी के अलग-अलग वैरिएंट और स्वरूपों के बारे में भारत सरकार बारीकी से निगरानी कर रही है। भारत सरकार ने कोरोना वायरस, इसके विभिन्न स्वरूपों, इसके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने के अलावा, भारत के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपकरणों, निदान व्यवस्था, चिकित्सा विज्ञान और टीकाकरण की प्रगति पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करके रखा। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के तहत विभिन्न तकनीकी निकायों ने वायरस के विकसित होने की प्रकृति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रभावों पर नजर बनाकर रखी। कुल मिलाकर कहें तो, भारत ने कोविड-19 की रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में अपना सतर्क और सक्रिय दृष्टिकोण जारी रखा है।

भारत ने मार्च-मई 2021 के दौरान कोविड-19 के प्रकोप का सबसे ज्यादा सामना किया, हालांकि मई 2021 के बाद से कोविड के मामलों में निरंतर गिरावट देखी गई। 17 दिसंबर 2021 के अनुसार देशभर में कोरोना के कुल सक्रिय मामलों में से करीब 80 फीसदी मामले केवल पांच राज्यों (केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक) से आ रहे हैं। टेस्ट-ट्रैक-ट्रीट-टीकाकरण और सरकार एवं समाज के स्तर पर कोविड उपयुक्त व्यवहार जैसी ‘फाइव फोल्ड स्ट्रैटजी’ के माध्यम से भारत सरकार कोरोना के मामलों और उससे होने वाली मौतों की संख्या को सीमित कर पाने में सफल रहा है। भारत में 17 दिसंबर 2021 तक प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 25,158 लोग कोरोना संक्रमित हुए, जबकि प्रति 10 लाख लोगों पर केवल 345 लोगों की कोरोना से मौत हुई। कोरोना से प्रभावित दुनिया के अन्य देशों के तुलना में ये आंकड़ा काफी कम है।

माननीय प्रधानमंत्री ने इस महामारी से निपटने की दिशा में देश को निर्णायक और ज़रूरी नेतृत्व एवं मार्गदर्शन प्रदान किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय कोरोना की रोकथाम के लिए की जा रही तैयारियों और उपायों की समीक्षा के लिए सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों के साथ नियमित रूप से बातचीत कर रहा है,ताकि ऐसे क्षेत्रों की भी पहचान की जा सके, जहाँ सुधार एवं समन्वय की और अधिक आवश्यकता है। मंत्रिमंडल सचिव के अधीन सचिवों की समिति ने राज्य के मुख्य सचिवों सहित स्वास्थ्य, रक्षा, विदेश, नागरिक उड्डयन, गृह, कपड़ा, फार्मा, वाणिज्य व अन्य संबंधित मंत्रालयों और अधिकारियों के साथ नियमित समीक्षा की।

भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम,2005 के मौजूदा प्रावधानों के तहत 29 मार्च 2020 को कोविड-19 प्रबंधन की दिशा में त्वरित निर्णय लेने के लिए 11 अधिकार प्राप्त समूहों (एम्पावर्ड ग्रुप्स) का गठन किया। देश की ज़रूरतों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 11 सितंबर 2020 को इन समूहों को 6 बड़े अधिकार प्राप्त समूहों (ईजी) में परिवर्तित कर दिया गया। 29 मई 2021 को इन समूहों का 10 अधिकार प्राप्त समूहों के रूप में पुनर्गठन किया गया। इन 10 अधिकार प्राप्त समूहों को निम्नलिखित ज़िम्मेदारियां सौंपी गईं। (i) आपातकालीन प्रबंधन योजना और रणनीति (ii) आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमता (iii) मानव संसाधन और क्षमता निर्माण (iv) ऑक्सीजन (v) टीकाकरण (vi) परीक्षण (vii) साझेदारी (viii) सूचना, संचार और सार्वजनिक सहभागिता (ix) आर्थिक तथा कल्याणकारी उपाय और (x) महामारी प्रतिक्रिया और समन्वय।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ मिलकर काम करना जारी रखा, और राज्यों के साथ नियमित रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंस जारी रहीं। राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों, राज्यस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं और ज़िला स्तर के अधिकारियों के साथ 118 वीडियो कॉन्फ्रेंस आयोजित की गईं। स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशक (डीजीएचएस) की अध्यक्षता में संयुक्त निगरानी समूह (जेएमजी) और आईसीएमआर के अधीन कोविड-19 संबंधी राष्ट्रीय कार्य बल ने इस महामारी के खतरे का आकलन करना, तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र की समीक्षा करना और तकनीकी दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने का काम जारी रखा।

भारत सरकार ने अतीत में महामारियों का सफलतापूर्वक प्रबंधन करने के अपने अनुभव और इस बीमारी के बारे में विकसित साक्ष्य आधारित समकालीन ज्ञान तथा जानकारी के आधार परराज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को अपेक्षित रणनीति, योजनाएं और दिशा-निर्देश प्रदान किए। इसमें यात्रा, व्यवहार और मनो-सामाजिक स्वास्थ्य, निगरानी, ​​प्रयोगशाला सहायता, अस्पताल का बुनियादी ढांचा, नैदानिक प्रबंधन, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई किट) के तर्कसंगत उपयोग जैसे विषयों के संबंध में रोकथाम योजना और दिशा-निर्देश शामिल हैं।

सरकार ने वैश्विक स्तर पर कोविड-19 की स्थिति और सार्स-कोव-2 वायरस के विभिन्न म्युटेंट्स को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय आगमन से जुड़े नियमों और दिशानिर्देशों की समीक्षा की। इस संबंध में अंतिम बार ताज़ा दिशा-निर्देश 30 नवंबर 2021 को जारी किए गए।इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोविड-19 महामारी की स्थिति और/या ओमिक्रोन वेरिएंट के मामलों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों/देशों को ‘जोखिम वाले’ देश/क्षेत्रके रूप में फिर से वर्गीकृत किया गया है।ऐसे ‘जोखिम वाले’क्षेत्रों/देशों की सूची परिवर्तनीय है और समय-समय पर इसे अपडेट किया गया है।

‘जोखिम वाले’ देशों से आने वाले सभी यात्रियों को आरटी-पीसीआर के माध्यम से अनिवार्य रूप से कोविड-19 टेस्ट कराना होगा, इसके बाद 7 दिनों तक अनिवार्य रूप से घर के अंदर क्वारंटिन में रहना होगा। निगरानी के उद्देश्य से ऐसे सभी यात्रियों का भारत में आगमन के 8वें दिन राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा एक पुनः आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया जाएगा।‘बिना जोखिम’ वाले देशों/क्षेत्रों से आने वाले 2 प्रतिशत यात्रियों का कोविड-19 के लिए रेंडम परीक्षण किया जाएगा। जिन यात्रियों की रिपोर्ट पॉज़िटिव आती है, उन्हें सार्स-कोव-2 वेरिएंट (ओमाइक्रोन सहित) की उपस्थिति का पता लगाने के आईएनएसएसीओजी (INSACOG) नेटवर्क प्रयोगशालाओं में संपूर्ण जीनोमिक सिक्वेंसिंग परीक्षण से गुजरना होगा।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय, रेल मंत्रालय आदि सहित अन्य हितधारक मंत्रालयों/विभागों के साथ समन्वय और सहयोग कर रहा है।साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों/हवाई अड्डों पर बंदरगाह/हवाई अड्डे के स्वास्थ्य अधिकारियों को सख्त स्वास्थ्य जांच करने और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के परीक्षण तथा संदिग्ध/पुष्टि वाले मामलों का तुरंत रेफरल सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय औपचारिक संचार के साथ-साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी राज्यों/केन्द्शासित प्रदेशों के संपर्क में है और नियमित रूप से बातचीत कर रहा है। इस संबंध में राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों से निम्नलिखित गतिविधियां करने का आग्रह किया गया है:

  • राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में आने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्त निगरानी।
  • पॉज़िटिव रिपोर्ट वाले मरीजों की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और 14 दिनों तक निगरानी।
  • कोविड पॉज़िटिव नमूनों की आईएनएसएसीओजी प्रयोगशालाओं के माध्यम से त्वरित जिनोम सिक्वेंसिंग।
  • उन क्षेत्रों की सतत निगरानी जहां सकारात्मक मामलों के समूह सामने आते हैं।
  • राज्यों में पर्याप्त परीक्षण के माध्यम से कोविड-19 परीक्षण के बुनियादी ढांचे को और मज़बूत करना तथा मामलों की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करना।
  • स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे (आईसीयू, ऑक्सीजन बेड, वेंटिलेटर, आदि की उपलब्धता) की बेहतर तैयारियाँ सुनिश्चित करना और ग्रामीण क्षेत्रों और बाल चिकित्सा मामलों सहित ईसीआरपी-2 के अंतर्गत स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना।
  • सभी पीएसए संयंत्रों को परिचालन शुरू करना, पर्याप्त लॉजिस्टिक, दवाएं आदि सुनिश्चित करना।
  • कोविड-19 वैक्सीन कवरेज को तेज़ी से बढ़ाना।
  • कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन सुनिश्चित करना।

देशभर के प्रयोगशाला नेटवर्क को पिछले दो वर्षों से लगातार परीक्षण के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ डायग्नोस्टिक के मामले भी में मज़बूत किया जा रहा है। 01 जनवरी 2022 तक 1364 सरकारी प्रयोगशालाएं और 1753 प्राइवेट प्रयोगशालाएं कोविड-19 का परीक्षण कर रही हैं। वर्तमान में भारत एक दिन में लगभग 11 से 12 लाख नमूनों का परीक्षण कर रहा है।

कोविड-19 मामलों के उचित प्रबन्धन के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की त्रिस्तरीय व्यवस्था बनाई गई थी,[(i) हल्के या पूर्व-लक्षण वाले मामलों के लिए आइसोलेशन बेड वाला कोविड केयर सेंटर (ii) मध्यम लक्षण वाले मामलों के लिए समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र (DCHC), जिसमें ऑक्सीजन वाले आइसोलेशन बेड की पर्याप्त व्यवस्था हो, और (iii) गंभीर मामलों के लिए ICU बेड के साथ समर्पित कोविड अस्पताल (DCH)], जिसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया है। कोविड के मामले बढ़ने की स्थिति में ईएसआईसी, रक्षा, रेलवे, अर्धसैनिक बलों, इस्पात मंत्रालय आदि के अधीन आने वाले तृतीयक देखभाल अस्पतालों का भी इस्तेमाल किया गया।

17 दिसंबर 2021 तक देशभर में 18,12,017 समर्पित आइसोलेशन बेड (4,94,720 ऑक्सीजन वाले आइसोलेशन बेड सहित) और 1,39,423 आईसीयूबेड (65,397 वेंटिलेटर बेड सहित) के साथ कुल 23,680 कोविड उपचार सुविधाएं संचालित हो रही हैं।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोविड-19 से पीड़ित रोगियों के त्वरित, प्रभावी और व्यापक उपचार को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मई 2021 में विभिन्न श्रेणियों की कोविड सुविधा केन्द्रों में कोविड रोगियों के दाखिले के लिए एक राष्ट्रीय नीति जारी की। इस राष्ट्रीय नीति के अनुसार, कोविड रोगियों के प्रबन्धन के मामले में केन्द्र सरकारों,राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेश के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों (राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में) को निम्नलिखित सुनिश्चित होगाः

  • कोविड स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों में मरीज़ को भर्ती करने के लिए कोविड-19 संक्रमण की पॉज़िटिव रिपोर्ट का होना अनिवार्य नहीं है। संदिग्ध मामले में मरीज़ को सीसीसी, डीसीएचएस अथवा डीएचसी (जो भी लागू हो) के संदिग्ध वार्ड में भर्ती किया जाएगा।
  • मरीज़ को किसी भी हाल में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने से इनकार नहीं किया जाएगा। इसमें ऑक्सीजन अथवा अनिवार्य दवाइयों जैसा उपचार शामिल है। यहाँ तक कि मरीज़ के किसी अन्य राज्य से संबंध रखने पर भी उसे सुविधाएं दी जाएंगी।
  • किसी भी मरीज़ को इस आधार पर भर्ती करने से मना नहीं किया जाएगा कि जिस राज्य में अस्पताल है, उस राज्य का वैध पहचान पत्र मरीज़ के पास नहीं है।
  • अस्पतालों में मरीज़ों को ज़रूरत के आधार पर भर्ती किया जाएगा। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जिन्हें बेड की आवश्यकता नहीं है, वे बिना ज़रूरत के अस्पताल में भर्ती होकर बेड का इस्तेमाल न करें। साथ ही मरीज़ों को अस्पताल से डिस्चार्ज करते समय संशोधित डिस्चार्ज पॉलिसी को सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। यह संशोधित पॉलिसी इस लिंक पर https://www.mohfw.gov.in/pdf/ReviseddischargePolicyforCOVID19.pdf  उपलब्ध है।

लगातार सामने आ रहे वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर कोविड-19 के नैदानिक प्रबन्धन संबंधी दिशा-निर्देशों को समय-समय पर अपडेट किया जा रहा है।वयस्कों के लिए उपचार संबंधी प्रोटोकॉल को आखिरी बार 24 मई 2021 को अपडेट किया गया था और इसका व्यापक प्रसार भी किया गया। इसके अनुसार उपचार का मुख्य आधार पूरक ऑक्सीजन (सप्लिमेंटल ऑक्सीजन) और अन्य सहायक चिकित्सा है।उपचार के दौरान कोई विशेष एंटीवायरल प्रभावशाली साबित नहीं हुआ है। हालाँकि उपचार के दौरान आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, इन्हैलेशनलबुडसोनाइड, डेक्सामिथासोन, मिथाइलप्रेडनिसोलोन और लो मॉलिक्युलर वेट हैप्रिन जैसी दवाओं की सिफारिश की गई है। इसके अलावा, चिकित्सा अंतर्गत के अंतर्गत रोगियों के लिए परिभाषित विभिन्न उप-समूहों में आने वाले मरीजों के उपचार के लिए रेमडेसिविर और टोसीलिजुमाब का उपयोग करने का प्रावधान किया गया है।

बच्चों में कोविड-19 प्रबंधन के लिए भी 18 जून 2021 को दिशानिर्देशों को अपडेट किया गया था। इन दिशा-निर्देशों में कोविड-19 के त्वरित प्रबंधन के साथ-साथ बच्चों और किशोरों में पाए जाने वाले कोविड-19 से संबंधित मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) के प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देश भी शामिल हैं।

म्युकोर्माइसिस की रोकथाम और नैदानिक प्रबंधन संबंधी दिशानिर्देशों और परीक्षण सूची को भी औपचारिक रूप से तैयार कर सभी राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों को भेज दिया गया है।

एम्स,दिल्ली और राज्यों के इसी तरह के संस्थानों को कोविड प्रबंधन के बारे में नवीनतम जानकारी के व्यापक प्रसार के लिए उत्कृष्टता केन्द्रों के रूप में चिन्हित किया गया है। कोविड परिस्थितियों के दौरान टेली-परामर्श के लिए ई-संजीवनीका उपयोग करने वाली टेली-मेडिसिनसेवाएं सर्वोत्तम व्यवस्थाओं में से एक हैं।

कोविड के प्रभाव से जुड़े लक्षणों और रोगों के बारे में अध्ययन करने के लिए एम्स और केन्द्र सरकार के अन्य अस्पतालों में फॉलो-अप क्लीनिक स्थापित किए गए हैं। कोविड के पश्चात् होने वाले प्रभावों और लक्षणों के बेहतर प्रबंधन के लिए 21 अक्टूबर 2021 को व्यापक दिशा-निर्देश भी जारी किए गए थे, जिनमें श्वसन, हृदय, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिकल, नेफ्रोलॉजिकल और न्यूरोलॉजिकलसिस्टम को प्रभावित करने वाली कोविड के बाद वाली ​​जटिलताओं को शामिल किया गया था।

केन्द्र सरकार की ओर से पीपीई किट,एन-95 मास्क,दवाएं,वेंटिलेटर,ऑक्सीजन सिलेंडर,ऑक्सीजन कंसंट्रेटर सहित विभिन्न ज़रूरी सामानों और उपकरणों की आपूर्ति के मामले में राज्यों की मदद की जा रही है। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर प्लांट्स/पीएसए(प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन प्लांट्स) लगाने के लिए भी राज्यों को सहायता दी जा रही है। 17 दिसंबर 2021 तक सभी 1225 पीएसए को स्थापित कर, उनका संचालन शुरू कर दिया गया है।

राज्य और ज़िला स्वास्थ्य अधिकारियों को ज़मीनी स्तर पर सहायता देने के लिए केन्द्र सरकार की बहु-विषयक टीमों को उन राज्यों में भी तैनात किया जा रहा है, जहां से कोरोना के मामलों में वृद्धि की सूचना मिली है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अब तक करीब 173 ऐसी टीमों को 33 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में तैनात कर चुका है।

भारत ने कोविड महामारी के खिलाफ किए जा रहे अपने ज़बरदस्त प्रयासों के माध्यम से एक उल्लेखनीय कार्य किया। अक्तूबर 2021 के अंत तक भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया, जिसने 100 करोड़ लोगों को कोविड वैक्सीन लगाने के आंकड़े को पार कर दिया।

राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के मामले में भारत सरकार की ओर वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान भारत कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज के तौर पर राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को 8257.88 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है।

इसके अलावा, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 23,123 करोड़ रुपये (इसमें केन्द्रीय अंश– 15,000 करोड़ रुपये और राज्य का अंश – 8,123 करोड़ रुपये है) की धनराशि के साथ “भारत कोविड-19 आपात प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज- चरण 2” को स्वीकृति दे दी है, और इस योजना को 1 जुलाई 2021 से लागू किया जा रहा है।इसमें स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने के लिए राज्यों/केन्द्र शासित स्तर पर सहायता प्रदान करना शामिल है। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कोविड-19 मामलों (बाल चिकित्सा देखभाल सहित) के प्रबंधन के लिए ज़िला तथा उप-ज़िला स्तरों पर आबादी के निकट स्थित शहरी, ग्रामीण तथा जनजातीय समाज के बुनियादी ढांचे को सुचारू बनाना तथा दवाइयों का पर्याप्त भंडार रखने के लिए अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली के कार्यान्वयन जैसे सूचना प्रौद्योगिकी क्रियाकलापों के लिए सहायता प्रदान करना और सभी ज़िलों में टेली-परामर्श की पहुंच का विस्तार करने तथा क्षमता निर्माण हेतु सहायता प्रदान करना आदि शामिल हैं।

भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के माध्यम से कोविड-19 महामारी से अपनी जान गंवाने वाले मृतक के परिजनों को अनुग्रह सहायता राशि प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देशजारी किए।एनडीएमए ने अपने दिशा-निर्देश में प्रत्येक मृतक, जिसमें कोविड राहत कार्यों अथवा तैयारी गतिविधियों में शामिल लोग भी शामिल हैं कि कोविड-19 से मृत्यु की पुष्टि/प्रमाणित होने की स्थिति में उनके परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह सहायता राशि प्रदान करने की सिफारिश की गई है। यह अनुग्रह सहायता धनराशि राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष से प्रदान की जाएगी।

भविष्य में कोविड-19 के मामलों में तेज़ी अथवा अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति से निपटने के लिए की जाने वाली तैयारियों की दिशा में दीर्घकालिक क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से करीब 6 वर्ष के लिए 64,180 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ पीएम आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) को मंज़ूरी दी गई। पीएम-एबीएचआईएम का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और अन्य स्वास्थ्य सुधारों की दिशा में निवेश में वृद्धि करना है ताकि भविष्य में कोविड-19 के मामलों में उछाल (यदि कोई हो) होने अथवा किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति से निम्नलिखित तरीके अपनाकर बचाव किया जा सकेः

  • बीमारियों का जल्द पता लगाने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों को मज़बूत करना
  • जिला स्तर के अस्पतालों में गहन चिकित्सा देखभाल के लिए नए बिस्तरों को शामिल करना।
  • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्रों (एनसीडीसी) का क्षेत्रीय स्तर पर संचालन।
  • प्रयोगशालाओंके नेटवर्क को मज़बूतकरने के लिए शहरी क्षेत्रों में महानगरीय इकाइयां और देशभर में बीएसएल-III प्रयोगशालाओं की स्थापना।
  • मौजूदा वायरल डायग्नोस्टिक एंड रिसर्च लैब्स (VRDLs) को मज़बूत करना और आईसीएमआर के माध्यम से नए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) और एक नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर वन हेल्थ का निर्माण करना।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रवेश बिंदुओं (पीओई) पर सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों को मज़बूत बनाना।

दुनियाभर में सामने आने वाले कोविड-19 महामारी के विभिन्न स्वरूपों/वेरिएंट्स पर भारत सरकार अपनी कड़ी नजर बनाकर रखेगी और इसकी रोकथाम की दिशा में हर संभव प्रयास करेगी।

2. आयुष्मान भारतः

  • आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेससेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसीएस) के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) - आयुष्मान भारत का लक्ष्य नियमित देखभाल के दृष्टिकोण को अपनाते हुए प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य जरूरतों (रोकथाम, प्रोत्साहन और आपातकालीन सेवाओं सहित) को व्यापक रूप से पूरा करना है। किसी व्यक्ति के पूरे में आने वाली कुल स्वास्थ्य जरूरतों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा 80-90 प्रतिशत होता है। स्वास्थ्य सेवाओं के परिणामों और जनता के जीवन गुणवत्ता सुधारने के लिए रोकथाम और प्रोत्साहक स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत होती है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल टीम यह सुनिश्चित करेगी कि उनके क्षेत्र में सामुदायिक पहुंच और प्रत्येक व्यक्ति से संपर्क किया गया है और रोगों को शुररू में ही पहचान लेने और उचित इलाज के लिए भेजने के लिए संचारी व गैर-संचारी रोगों की जांच की गई है। यह टीम आगे यह सुनिश्चित करेगी कि रोगियों द्वारा उपचार को जारी रखने और उनके स्वस्थ होने के बाद की देखभाल का काम समुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में किया जाए। इन केंद्रों का उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों के नजदीक पहुंचाना और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक पहुंच के मामले में प्रथम बिंदु के तौर पर काम करना और द्वितीयक व तृतीयक उपचार के लिए रेफरल (रेफर करने वाले) की भूमिका निभाना है। इस प्रकार, मजबूत और लचीली प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को तैयार करने के एक कदम के रूप में, जो जनता की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें पूरी करे, इन केंद्रों के जरिए आवश्यक दवाओं और जांच की सुविधा के साथ आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को समुदाय के आसपास उपलब्ध कराया गया है।
  • आयुष्मान भारत दो घटकों से बना है:

ए. पहला घटक उपस्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को उन्नत बनाते हुए 1,50,000 हेल्थ एंड वेलनेससेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसी) के निर्माण से जुड़ा है, जो स्वास्थ्य देखभाल को समुदाय के नजदीक लाएगा। ये केंद्र प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) और संचारी रोग संबंधी सेवाओं को विस्तार और मजबूती देकर, गैर-संचारी रोगों से संबंधित सेवाओं (सामान्य एनसीडी जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मुंह, स्तन और गर्भाशय के तीन सामान्य कैंसर) और धीरे-धीरे मानसिक स्वास्थ्य, कान, नाक व गला, नेत्र विज्ञान, मुंह संबंधी उपचार, बुजुर्गों का इलाज और दर्द निवारक देखभाल व ट्रामा देखभाल के साथ-साथ योग जैसी स्वास्थ्य व तंदुरुस्ती बढ़ाने वाली गतिविधियों को शामिल करके व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) उपलब्ध कराएंगे। कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इन अतिरिक्त सुविधाओं को पहले ही चरणबद्ध तरीके से अपने यहां लागू करने की शुरुआत कर दी है।

बी. दूसरा घटक आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) है। आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) के तहत,सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आधार पर चिन्हित लगभग 10.74 करोड़ गरीब और वंचित परिवारों को द्वितीयक और तृतीयक स्तर के अस्पतालों में इलाज के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा का अधिकार मिला है। 01 दिसंबर 2021 तक, 33राज्य/केंद्र शासित प्रदेश इस योजना को लागू कर रहे हैं और इस योजना के तहत लगभग 28,978.32 करोड़ रुपये के खर्च से अस्पतालों में 2.5 करोड़ से ज्यादा मरीज़ों को दाखिले को अधिकृति किया गया है। इसके अलावा, 14 नवंबर 2021 तक अंतर-राज्यीय पोर्टेबिलिटी योजना के अंतर्गत 644.5 करोड़ करोड़ रुपये की लागत से 2.92 लाख से ज्यादा मरीज़ों को अस्पतालों में दाखिले के लिए अधिकृत किया गया है। इसके अलावा, इस योजना के अंतर्गत लाभार्थियों के लिए अब तक 17.21 करोड़ ई-कार्ड (राज्य सरकारों की ओर से जारी कार्ड सहित) जारी किए गए हैं।

2.1 ए. एबी-एचडब्ल्यूसी की स्थिति के बारे में जानकारी:

  • एमओ, एसएन, सीएचओएमपीडब्ल्यू और आशा कार्यकर्ताओं के लिए परिचालन दिशा-निर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किए गए हैं और सेवाओं के विस्तार के लिए इसे राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है। इन दिशा-निर्देशों और प्रशिक्षण मॉड्यूल को राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों के परामर्श से विकसित किया गया है। इसमें  उन राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों के अनुभवों को भी शामिल किया गया है, जिन्होंने इस संबंध में पहले ही विस्तृत सेवाओं को शुरू कर दिया था।
  • माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने 12 जुलाई को एबी-एचडब्ल्यूसी पोर्टल का ऐप संस्करण जारी किया था ताकि एबी-एचडब्ल्यूसी की जगहों की जियो-टैगिंग की जा सके और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रतिदिन उपलब्ध कराए गए स्वास्थ्य मानकों को दर्ज किया जा सके।
  • अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों में गैर-संचारी रोगों की जांच और शुरुआती दौर में ही इसकी पहचान करने के लिए इन केंद्रों पर फिट हेल्थवर्करअभियान शुरू किया गया था। इसके तहत 20 दिसंबर 2021 तक 537 जिलों में 13 लाख से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों की जांच करके उन्हें निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक उपायों को लेने में सक्षम बनाया गया है। इसके अलावा उन्हें कोविड-19 के जोखिम के प्रति सावधान भी किया गया, क्योंकि अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों (एफएलडब्ल्यू) के रूप में वे न केवल इन स्वास्थ्य केन्द्रों पर अनिवार्य सेवाएं सुनिश्चित करने में शामिल हैं, बल्कि इन्होंने समुदाय आधारित सतर्कता और समुदाय में महामारी के प्रकोप के प्रबंधन संबंधी गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • ये केंद्र योग, जुम्बा, ध्यान आदि जैसे तंदुरुस्ती से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों का संचालन करते हैं, जो समुदाय के न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक तंदुरुस्ती में सुधार को सक्षम बनाते हैं। यह परिकल्पना की गई है कि ये केंद्र न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने वाले केंद्र बिंदु बनेंगे, बल्कि साथ-साथ समुदाय को अपनी स्वास्थ्य जिम्मेदारियों को अपने हाथों को लेने में भी सक्षम बनाएंगे। यह 39 स्वास्थ्य कैलेंडर दिवसों के अतिरिक्त हैजिसमें स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने वाली विभिन्न गतिविधियों पर ध्यान दिया जा रहा है।
  • स्कूल शिक्षा विभाग के सहयोग से स्कूल हेल्थ एंड वेलनेस एंबेस्डर पहल शुरू की गई है। इसके तहत प्रत्येक स्कूल पर दो अध्यापकों को निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल के बारे में एंबेस्डर के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसे आगामी वर्ष में 200 से अधिक जिलों में लागू करने की योजना है।
  • इसी तरह, सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इन एबी-एचडब्ल्यूसी पर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा टीम के लिए ‘सही खाएं’(ईटराइट) और ‘सुरक्षित खाएं’ (ईटसेफ) मॉड्यूल का प्रशिक्षण शुरू किया है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान योजना को विस्तार देने में आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ वर्चुअल माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय समीक्षाएं की जा रही है।
  • सामुदायिक प्रक्रियाओं और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित चुनौतियों को समझने के लिए सीपी-सीपीएचसीनोडल अधिकारियों के लिए दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रदर्शन भी किया गया और क्रॉस-लर्निंग के लिए अन्य राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों में इन्हें प्रसारित किया गया।

2.1 बी. एबी-एचडब्ल्यूसी की उपलब्धियां और सेवाओं का वितरण:

  • अब तक, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली को छोड़कर) के लिए 1,52,130 से ज्यादा आयुष्मान भारत-हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स को अनुमति दी गई है और जैसा कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने एबी-एचडब्ल्यूसीपोर्टल पर जानकारी दी है कि 20 दिसंबर 2021 तक 81,518 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स ने काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें 55,458 एसएचसी स्तर के एबी-एचडब्लूसी,21,894 पीएचसी स्तर के एबी-एचडब्लूसी और 4166 यूपीएचसी स्तर के एबी-एचडब्ल्यूसी शामिल हैं।
  • एचडब्ल्यूसीपोर्टल में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दर्ज नए आंकड़ों के अनुसार, अब तक इन एबी-एचडब्ल्यूसी पर उच्च रक्तचाप के लिए लगभग 15 करोड़ और डायबिटीज के लिए लगभग 12.72 करोड़ जांचें हो चुकी हैं। इसी तरह,कामकाज शुरू कर चुके इन एबी-एचडब्ल्यूसी ने 8.23 करोड़ से ज्यादा मुंह के कैंसर,2.77 करोड़ से ज्यादा गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर और 4.10 करोड़ से ज्यादा महिलाओं के स्तन कैंसर संबंधी जांचें की हैं।
  • इसके अलावा,20 दिसंबर 2021 तक चालू हो चुके एचडब्ल्यूसीएस में कुल 92.18 लाख योग/वेलनेस सत्र आयोजित किए गए हैं।
  • उपस्वास्थ्य केंद्र स्तर के एबी-एचडब्ल्यूसी पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा टीम का नेतृत्व सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) करते हैं, जो बीएससी/जीएनएमनर्स या प्राथमिक चिकित्सा और जनस्वास्थ्य कौशल में प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक और छह महीने के सामुदायिक स्वास्थ्य में प्रमाणपत्र कार्यक्रम में प्रमाणपत्र धारक या एकीकृत नर्सिंग पाठ्यक्रम में स्नातक होते हैं। टीम के अन्य सदस्यों में, बहुउद्देश्यीय कार्यकर्ता (पुरुष और महिला) और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) होते हैं। इग्नू और राज्य विशेष की सार्वजनिक/स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
  • एबी-एचडब्ल्यूसी में एनसीडी, टीबी और कुष्ठ रोग सहित गंभीर बीमारियों की जांच, रोकथाम और प्रबंधन को शामिल किया गया है, इसलिए सभी चालू हो चुके एबी-एचडब्ल्यूसी में प्राथमिक स्वास्थ्य टीम का एनसीडी के बारे में प्रशिक्षण और कौशल बढ़ाने और आईटी एप्लीकेशन का उपयोग सिखाने का काम शुरू किया गया है।
  • तंदुरुस्त और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए, जीवन शैली में बदलाव के लिए सेहतमंद बनाने वाली गतिविधियों की तरफ जनता का ध्यान खींचने के लिए इन केंद्रों पर योग सत्रों के आयोजन के अलावा शारीरिक गतिविधियों (साइक्लेथॉन और मैराथन) को बढ़ाने, सुरक्षित और सही खान-पान अपनाने, तंबाकू और नशीली दवाओं को छोड़ने, ध्यान लगाने, लाफ्टरक्लब, ओपन जिम जैसे प्रयास नियमित रूप से किए जा रहे है।
  • पीएचसी से लेकर हब अस्पतालों तक विशेषज्ञ परामर्श उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को टेलीमेडिसिन दिशा-निर्देश उपलब्ध कराए गए हैं। अब तक 56,927 एबी-एचडब्ल्यूसी ने टेली-परामर्श आयोजित किए हैं।

2.2 मानव संसाधन:

एनएचएम ने राज्यों को लगभग 2.74 लाख अतिरिक्त स्वास्थ्य मानव संसाधन देकर मानव संसाधन की कमी को भरने की कोशिश है, जिसमें संविदा के आधार पर 13074 जीडीएमओ, 3,376 विशेषज्ञ, 73,847 स्टाफ नर्स, 85834 एएनएम, 48,332 पैरामेडिकल स्टाफ, 439 जनस्वास्थ्य प्रबंधक और 17086 कार्यक्रम प्रबंधन कर्मचारियों की नियुक्ति शामिल है। मानव संसाधन को नियुक्त करने के लिए वित्तीय सहायता देने के अलावा, एनएचएम ने मानव संसाधनों के बहुपक्षीय कौशल विकास और तकनीकी मार्गदर्शन व प्रशिक्षण के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधनों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया है। एनएचएमपीएचसी, सीएचसी और डीएचएस जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ में आयुष सेवाओं को स्थापित करने में सहायता दी गई है। एनएचएम की वित्तीय मदद से राज्यों में कुल 27,737 आयुष डॉक्टर और 4564 तैनात किये गए है।

2.3 आयुष को मुख्यधारा में लाना:

आयुष को मुख्य धारा में लाने के लिए 7452 पीएचसी, 2811 सीएचसी, 487 डीएचएस, एससी से ऊपर व ब्लॉक से नीचे 4022  स्वास्थ्य सुविधाओं और सीएचसीएस के अतिरिक्त ब्लॉक से ऊपर और जिलास्तर के नीचे 456 स्वास्थ्य सुविधाओं में आयुष सुविधाओं को शुरू किया गया है।

2.4 बुनियादी ढांचा:

अत्यधिक ध्यान वाले राज्यों में एनएचएम की 33 प्रतिशत राशि को बुनियादी ढांचे के विकास में लगाया जा सकता है। एनएचएम के तहत 30 जून, 2021 तक देशभर में हुए निर्माण/मरम्मत का ब्यौरा निम्न प्रकार है:

सुविधाएं

नए निर्माण

मरम्मत/सुधार

आवंटित

कार्य पूरा

आवंटित

कार्य पूरा

एससी

35805

22073

26125

19464

पीएचसी

2889

2447

16783

14582

सीएचसी

604

530

7636

14582

एसडीएच

251

174

1317

1145

डीएच

175

156

3311

2854

अन्य*

1337

802

3310

1365

कुल

41061

26182

58282

48072

 

 

 

 

 

 

* यह सुविधाएं एससी से ऊपर और ब्लॉक स्तर से नीचे हैं।

2.5 नेशनल एंबुलेंस सर्विस (एनएएस):

आज की तारीख तक 35 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में यह सुविधा हैं, जहां लोग एंबुलेंस बुलाने के लिए 108 और 102 टेलिफोन नंबर डायल कर सकते हैं। डायल 108 मुख्य रूप से एक आपातकालीन प्रतिक्रिया व्यवस्था है, जिसे मूल रूप से गंभीर देखभाल की जरूरत वाले मरीजों, ट्रॉमा और दुर्घटना पीड़ितों के लिए बनाया गया है। डायल 102 सेवा मरीजों के लिए बुनियादी परिवहन है, जिसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जरूरतों को पूरा करना है, भले ही अन्य वर्ग भी इसका लाभ ले रहे हैं और वे बाहर नहीं हैं। जेएसएसके के तहत मिलने वाले घर से अस्पताल तक निशुल्क परिवहन, रेफर किए जाने पर दो अस्पतालों के बीच परिवहन और मां-बच्चे को वापस घर पर छोड़ने की सुविधा देना डायल 102 का मुख्य काम है। कॉल सेंटर के टोल फ्री कॉल पर कॉल करके इस सेवा तक पहुंचा जा सकता है। जून 2021 तक 35 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में यह सुविधा है, जहां लोग एंबुलेंस बुलाने के लिए 108 और 102 टेलिफोन नंबर डायल कर सकते हैं।वर्तमान में, मरीजों, खास तौर पर गर्भवती महिलाओं, बीमार बच्चों को घर से जनस्वास्थ्य सुविधाओं तक लाने और वापस घर छोड़ने के लिए सूचीबद्ध 5,124 वाहनों के अतिरिक्त 11,879 डायल 108 और 10,716 (डायल 102/104) आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवा वाहनों को एनएचएम के तहत आर्थिक सहायता मिली हुई है।

2.6 राष्ट्रीय मोबाइल चिकित्सा इकाइयां (एनएमएमयू):

दृश्यता, जागरूकता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए, सभी मोबाइल चिकित्सा इकाइयों को एक समान रंग और डिजाइन के साथ “राष्ट्रीय मोबाइल चिकित्सा इकाई सेवा” के रूप में तैनात किया गया है। जून 2021 तक एनआरएचएम और एनयूएचमके तहत राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में 1634 मोबाइल चिकित्सा इकाइयाँ हैं, जिनमें मोबाइल चिकित्सा इकाईयां, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां, मोबाइल चिकित्सा/स्वास्थ्य वैन, नाव क्लिनिक, आंखों की वैन/मोबाइल ऑफ्थाल्मोलॉजिक इकाइया, दंत वैन आदि शामिल हैं।

2.7 नि:शुल्क औषधि सेवा पहल:

इस पहल के तहत, राज्यों को मुफ्त दवाओं की व्यवस्था करने और दवाओं को खरीदने के लिए व्यवस्थाएं बनाने, गुणवत्ता सुनिश्चित करने, आईटी आधारित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली, प्रशिक्षण और शिकायत निवारण इत्यादि के लिए पर्याप्त धनराशि दी जा रही है। एनएचएम-मुफ्त औषधि सेवा पहल के लिए 02 जुलाई, 2015 को विस्तृत परिचालनात्मक दिशानिर्देश बनाया और राज्यों को जारी किया गया था।

सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने स्वास्थ्य सुविधाओं में आवश्यक दवाएं नि:शुल्क देने की नीति को अधिसूचित किया है। सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में निगम/खरीद इकाइयों के माध्यम से केन्द्रीकृत खरीद की व्यवस्था है। 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी आधारित दवा वितरण प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से दवाओं की खरीद, गुणवत्ता प्रणाली और वितरण को सुव्यवस्थित किया गया है। 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं हैं। 18 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परामर्श लेखांकन की व्यवस्था है, और 17 राज्यों ने समर्पित टोल फ्री नंबर के साथ कॉल सेंटर आधारित शिकायत निवारण व्यवस्था को शुरू किया है।

2.8 निशुल्क जांच सेवा पहल:

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में बीमारियों की सुलभ और गुणवत्तापूर्ण जांच की ज़रूरत को पूरा करने के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) ने विशेषज्ञों और राज्यों के अधिकारियों के परामर्श से तैयार नि:शुल्क जांच सेवा पहल के संचालनात्मक दिशानिर्देशों को जुलाई 2015 में जारी किया और राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच प्रसारित किया था।सरकार ने परिकल्पना की थी कि स्वास्थ्य संबंधी इस कदम से उपचार की प्रत्यक्ष लागत और लोगों की जेब पर पड़ने वाले बोझ, दोनों में कमी आएगी। ये दिशानिर्देश राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी जनस्वास्थ्य सुविधाओं पर आवश्यक जांच-प्रयोगशाला सेवाएं और रेडियोलॉजी सेवाएं (टेलीरेडियोलॉजी और सीटी स्कैन सेवाएं) देने में मदद करते हैं।

मुफ्त डायग्नोस्टिकजांच पहल के दूसरे संस्करण को जारी किया गया है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत परिकल्पित प्रयोगशाला सेवाओं के विस्तारित विकल्पों के साथ व्यापक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। एफडीएसआई के बारे में संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार 14/63/97/11/134 जैसे टेस्ट को एससी/पीएचसी/सीएचसी/एसडीएच/डीएच पर प्रदान करने की अनुशंसा की गई है।दिशानिर्देशों को लागू करने के बारे में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मार्गदर्शन के लिए एनएचएसआरसी की ओर से एक प्रसार कार्यशाला भी आयोजित की गई थी।

01 दिसंबर 2021 तक, 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में बीमारियों की नि:शुल्क जांच के लिए प्रयोगशाला सेवाएं शुरू की जा चुकी हैं। (11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे लोक-निजी भागीदारी(पीपीपी) आधार पर और 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे स्वास्थ्य विभाग की अपनी योजना के तौर पर लागू किया गया है)। मुफ्त डायग्नोस्टिक्स सीटी स्कैन सेवाओं को 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लोक-निजी भागीदारी (पीपीपी मोड) में लागू किया गया है और 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इसे स्वास्थ्य विभाग की सेवा के रूप में लागू किया गया है)। 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में निःशुल्क टेलीरेडियोलॉजी सेवाओं को पीपीपी मोड में लागू किया गया है।

2.9 बायोमेडिकल उपकरण रखरखाव और प्रबंधन कार्यक्रम:

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2015 में बायो-मेडिकल उपकरण रखरखाव और प्रबंधन कार्यक्रम मैनेजमेंट (बीएमएमपी) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य डीएच में 95%, सीएचसी में 90% और पीएचसी में 80% समय तक सही तरीके से काम करने वाले उपकरणों को ही रखा जाएगा।यह कार्यक्रम राज्य सरकारों को सभी सुविधाओं के लिए चिकित्सा उपकरणों के रखरखाव को व्यापक रूप से आउटसोर्स करने के लिए सहायता प्रदान करता है ताकि उपकरणों की कार्यक्षमता में सुधार होने के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार हो। साथ ही-देखभाल की लागत कम होने के साथ देखभाल की गुणवत्ता में भी सुधार हो।

बायोमेडिकल उपकरण प्रबंधन एवं देखभाल कार्यक्रम के तकनीकी दिशानिर्देश दस्तावेज को विभाग के भीतर सहायता और लोक-निजी भागीदारी की निगरानी के लिए राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है।

01 दिसंबर 2021 तक, बीएमएमपी को 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पीपीपी मोड में और 7 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य विभाग की सेवा के रूप में) में लागू किया जा चुका है।

 

2.10 सामुदायिक भागीदारी:

ए.मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता: देश भर में एनएचएम के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों (गोवा और चंडीगढ़ को छोड़कर) में कुल 9.83 लाख आशा कार्यकर्ता हैं, जो समुदाय और जनस्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी का काम करते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आशाओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नियमित और आवर्ती प्रोत्साहनों की मात्रा में बढ़ोतरी को मंजूरी दी है, जिससे अब आशा कम से कम 2000/रुपये प्रति माह पाने में समक्ष हुई हैं, जो पहले 1000 रुपये था। कैबिनेट ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत पात्रता शर्तों को पूरा करने वाले सभी आशा और आशा सहायकों को शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसकी सारी वित्तीय जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी।

प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (पीएम-एसवाईएम) के तहत, पीएम-एसवाईएम, जिसे 15 फरवरी, 2019 को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया था, एक स्वैच्छिक योगदान पेंशन योजना है, जो हर महीने 15 हजार या इससे कम आय वाले असंगठित क्षेत्र के 18 से 40 वर्ष की आयु के श्रमिकों के लिए वृद्धावस्था सुरक्षा को सुनिश्चित करती है, एक निश्चित आयु वर्ग में सभी आशा और आशा सहायक इस योजना के पात्र हैं। इस योजना के लिए स्व-प्रमाणीकरण की जरूरत होती है, पेंशन योजना के लिए तय मासिक किस्त का 50 प्रतिशत केंद्र सरकार देगी, जबकि शेष 50 प्रतिशत राशि लाभार्थी को जमा करना होगा। यह राशि लाभार्थी की आयु के अनुसार अलग-अलग होती है और इसे लाभार्थी के बैंक खाते से नियमित रूप से काट लिया जाएगा। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने सीएससी-एसपीवी के माध्यम से थोक नामांकन सुविधा के लिए प्रावधान बनाए हैं। इस योजना के तहत लाभार्थियों को 60 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद कम से कम 3000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलेगी।

 

बी. वीएचएसएनसी: ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवा संबंधी योजना निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए देश भर में ग्रामीण स्तर पर 5.55 लाख ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण समितियों (वीएचएसएनसी) का गठन किया गया है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 1.30 करोड़ से अधिक ग्राम स्वास्थ्य और पोषण दिवसों (वीएचएनडीएस) का आयोजन हुआ है।

सी. उप-केंद्रों (एससी) के लिए एकीकृत अनुदान : ग्रामीण स्तर पर, ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण समिति (वीएचएसएनसी), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा और उप-केंद्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की निगरानी करती है। महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ इन समितियों के पंचायती राज संस्थान के दायरे में काम करने की परिकल्पना की गई है। वीएचएसएनसी ग्राम पंचायत की एक उपसमिति या वैधानिक निकाय के रूप में काम करती है। शहरी क्षेत्रों में भी इसी तरह की संस्थागत व्यवस्था बनाने के लिए कहा गया है। वीएचएसएनसीएस को सालाना 10,000 रुपये का अनटाइडफंड (खर्च करने की शर्तों से मुक्त) दिया है, जिसे पिछले वर्ष खर्च हुई राशि के आधार पर अगले साल पूरा कर दिया जाता है। जून, 2021 तक देश भर में 5.55 लाख से अधिक वीएचएसएनसी बनाए गए है। गांव की स्वास्थ्य स्थिति की देखभाल करने में वीएचएसएनसी सदस्यों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में उनकी क्षमता विकसित करने का काम कई राज्यों में किया जा रहा है।

2.11 24 X 7 सेवाएं और प्रथम रेफरल सुविधाएं:

जून 2021 तक, 10,951 पीएचसी को 24x7 पीएचसी बनाया गया है और 3001 सुविधाओं (690 डीएच, 763 एसडीएच और 1548 सीएचसी और अन्य स्तरों सहित) को एनएचएम के तहत फर्स्टरेफरल यूनिट (एफआरयू) के रूप में शुरू किया गया है।मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, पीएचसी में 24x7 सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। एनएचएम के तहत 10430 पीएचसी को 24x7 पीएचसी बनाया गया है और 3346 स्वास्थ्य सुविधाओं (698 डीएच, 712 एसडीएच और 1543 सीएचसी और अन्य स्तर सहित) का फर्स्टरेफरल यूनिट (एफआरयू) के रूप में संचालन शुरू किया गया है।

2.12 मेरा अस्पताल:

मेरा अस्पताल’, मरीजों से फीडबैक लेने की व्यवस्था है, जिसे केंद्र सरकार के अस्पतालों (सीजीएच) और जिला अस्पतालों (डीएचएस) को फीडबैक पोर्टल पर एकीकृत करने आदेश के साथ सितंबर 2016 में शुरू किया गया था। अब इसे सीएचसी, ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और निजी मेडिकल कॉलेजों तक विस्तार दिया गया है। वर्तमान में यह 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में काम कर रहा है। 07 दिसंबर 2021 तक, ‘मेरा अस्पताल’ पोर्टल से 34 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की 9446 सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं और 736 गैर-सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं जुड़ी हैं।

2.13 कायाकल्प:

2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान में योगदान के रूप में, स्वच्छता, सफाई और स्वच्छता के अभ्यास को बढ़ावा देने और शहरी एवं ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में होने वाले संक्रमण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2015 में 'कायाकल्प' पुरस्कार योजना शुरू की थी। पूर्वनिर्धारित मानदंडों के मुकाबले बेहतर और उत्कृष्ट काम करने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को ये पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इसके अंतर्गत विजेता डीएच को 50 लाख रुपये की राशि से लेकर प्रशंसा पुरस्कार के तौर पर 25,000 रुपये की राशि दी जाती है। वित्त वर्ष 2015-16 से 2020-21 तक कायाकल्प पुरस्कार विजेता स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या 100 से बढ़कर 12431 (456 डीएचएस, 2473 एसडीएच/सीएचसी, 6281 पीएचसी, 1270 यूपीएचसी, 19 यूसीएचसी, 1932 एचडब्ल्यूसी) पर पहुंच गई है।

 

2.14 स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र :

  • स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय (अब जलशक्ति मंत्रालय) की एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य साफ-सफाई में सुधार और स्वस्थ जीवनशैली के प्रति जागरुकता बढ़ाकर स्वास्थ्य के बेहतर नतीजे पाना है।
  • पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के क्रमशः दो कार्यक्रमों - स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) और कायाकल्प - की उपलब्धियों को आगे बढ़ाने और उनका लाभ उठाने के लिए यह पहल दिसंबर 2016 में शुरू की गई थी।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में इसके परिणाम और सफलता के आधार पर, वर्ष 2019 में शहरी क्षेत्रों में ''स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र'' पहल को लागू किया गया था। शहरी क्षेत्रों में इसे आवास और शहरी कार्य मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त पहल के माध्यम से लागू किया गया है।

कार्यक्रम के उद्देश्य :-

    • ग्राम पंचायत, शहरों और वार्डों, जहां कायाकल्प पुरस्कार प्राप्त पीएचसी/यूपीएचसी स्थित हैं, को ओडीएफ बनाए रखने और स्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा देने में सक्षम बनाना।
    • ओडीएफब्लॉकों/वार्डों/शहरों में सीएचसी/यूएचसीसी/यूपीएचसी को मज़बूत करना ताकि सीएचसी/यूएचसी के लिए 10 लाख रुपये और एनएचएम के तहत यूपीएचसी के लिए 50 हजार रुपये के समर्थन के माध्यम से कायाकल्प मानकों को पूरा करने के लिए उच्च स्तर की स्वच्छता हासिल की जा सके।
    • ऐसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से नामांकित व्यक्तियों को जल, स्वच्छता और स्वच्छता (वाश) में प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण।

स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र योजना की प्रगति:-

  • इस पहल के अंतर्गत वर्ष 2021-22 में कायाकल्प के न्यूनतम 70% बेंचमार्क को प्राप्त करने के लिए देशभर के 192 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए 10 लाख रुपये और 356 यूपीएचसी के लिए 50,000 रुपये तक के अनुदान के रूप में 1948 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी।
  • कायाकल्प पुरस्कार के मानदंडों को पूरा करने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या इस कार्यक्रम के साथ हर साल बढ़ रही है। कायाकल्प पुरस्कार जीतने वाले सीएचसी की संख्या वित्त वर्ष 2016-17 में 323 सीएचसी से बढ़कर 2020-21 में 2004 सीएचसी हो गई। कायाकल्प पुरस्कार जीतने वाले यूपीएचसी की संख्या 2018-19 में 556 से बढ़कर 2021-22 में 1270 हो गई।

2.15 राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन कार्यक्रम:

लोगों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए वितरित की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में गुणवत्ता बेहद महत्वपूर्ण है। इससे पहुंच और दक्षता बढ़ती है, नैदानिक प्रभावशीलता को मज़बूती मिलती है और उपयोगकर्ता की संतुष्टि स्तर में सुधार आता है। देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2013 में जिला अस्पतालों के लिए और बाद में अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) जारी किए। इन मानकों को आंतरिक रूप से आईएसक्यूयूए(इंटरनेशनल सोसाइटी फॉरक्वालिटी इन हेल्थकेयर) से मान्यता प्राप्त है।

इन मानकों को आईआरडीए और एनएचए से भी मान्यता प्राप्त है। 7 दिसंबर 2021 तक एनक्यूएएस प्रमाणित सुविधाओं की कुल संख्या 1316 है, जिसमें से 620 सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं ने चालू कैलेंडर वर्ष (जनवरी से दिसंबर 2021) में राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन हासिल किया है, इसका सारांश इस प्रकार है:

श्रेणी

कुल राष्ट्रीय प्रमामित सुविधाएं (2016 - 2021)

जनवर 2021 से दिसंबर 2021 तक राष्ट्रीय प्रमाणित सुविधाएं (कैलेंडर वर्ष के अनुसार)

डीएच

148

32

एसडीएच

41

2

सीएचसी

98

24

पीएचसी

931

510

यू-पीएचसी

98

52

कुल

1316

620

 

इसके अलावा,

हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एबी-एचडब्ल्यूसी) के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) देने के लिए, एसएचसी और पीएचसी के लिए आवश्यक दवाएं सूची (ईएमएल) को अंतिम रूप दिया गया है। निशुल्क दवा सेवा पहल (एफडीएसआई) को मजबूत करने के लिए, उप-केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी), उप जिला अस्पतालों (एसडीएच), जिला अस्पतालों के लिए भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) दिशानिर्देशों की समीक्षा की जा रही है और इसे शहरी स्वास्थ्य (यू-पीएचसी) के लिए भी तैयार किया जा रहा है। स्थायी विकास लक्ष्य को पाने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की मदद करने के लिए आवश्यक दवाएं आईपीएचएस दिशानिर्देशों का अभिन्न अंग हैं।

मुस्कान: देश ने पिछले दो दशकों में बच्चों की मौतों की संख्या को कम करने के मामले में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन नवजात मृत्यु दर में गिरावट काफी धीमी है। नवजात मौतों को व्यापक स्तर पर रोका जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण बाल चिकित्सा देखभाल सेवाएं प्रदान करना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधिदेशों में से एक है।

राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) पहले से ही राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू हैं ताकि सुविधाओं के भीतर गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित की जा सके।

एनक्यूएएस के अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों पर बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित देखभाल सुनिश्चित करने के उद्देश्य से माननीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा 17 सितंबर 2021 को "मुस्कान" नामक एक नई पहल की शुरूआत की गई थी। मुस्कान का उद्देश्य नैदानिक ​​प्रोटोकॉल और प्रबंधन प्रक्रियाओं को मजबूत करना, नवजात शिशुओं और बच्चों की बेहतर देखभाल के प्रावधान के माध्यम से बाल मृत्यु दर को कम करना और पोषण की स्थिति, विकास और छोटे बच्चों के प्रारंभिक बचपन के विकास में सुधार करना।

हाल ही में, राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को विभिन्न सरकारी पहलों के बारे में जागरूक करने और राज्य, जिला और सुविधा स्तर पर एक कार्यान्वयन योजना तैयार करने के लिए 3 दिसंबर 2021 को एक राष्ट्रीय प्रसार कार्यशाला आयोजित की गई थी।

2.16 राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) :

राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) को 1 मई, 2013 को व्यापक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), एक उप-मिशन के रूप में मंजूरी मिली थी। इसके तहत एनआरएचएम एक अन्य उप-मिशन है। एनयूएचएम के जरिए शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने और शहरी आबादी, खास तौर पर मलिन बस्तियों में रहने वालों पर विशेष ध्यान देने के साथ न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है। यह शहरी क्षेत्रों में मजबूत व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं देते हुए द्वितीय और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (जिला अस्पतालों/उप-जिला अस्पतालों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) पर दबाव को घटाना चाहता है।

एनयूएचएम में 50,000 से अधिक आबादी वाले सभी शहरों और कस्बों और 30,000 से अधिक आबादी वाले जिला मुख्यालय और राज्य मुख्यालय शामिल होते हैं। शेष शहरों/कस्बों को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के दायरे में आते हैं। आयुष्मान भारत के हिस्से के रूप में, मौजूदा यूपीएचसी को समुदायों के नजदीकी शहरों में निवारक, प्रोत्साहक और उपचारात्मक सेवाएं देने के लिए हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) के रूप में मजबूत किया जा रहा है।

एनयूएचएम के अंतर्गत वित्त वर्ष 2015-16 से, सभी राज्यों के लिए वित्त पोषण अनुपात 60-40 है, वहीं पूर्वोत्तर राज्यों और अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे-जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए वित्त पोषण 90:10 है। केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में वित्त वर्ष 2017-18 से, दिल्ली और पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वित्त पोषण को बदल कर 60:40 के अनुपात में कर दिया गया है और शेष बिना विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए सारा खर्च केंद्र सरकार उठाती है।

एनयूएचएम को राज्यों के स्वास्थ्य विभाग या शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के माध्यम से लागू है। इसे सात महानगरीय शहरों में, मुंबई, नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और अहमदाबाद में यूएलबीएस के माध्यम से लागू है। अन्य शहरों के लिए, राज्य का स्वास्थ्य विभाग तय करता है कि एनयूएचएम को उनके माध्यम से या किसी अन्य शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से लागू किया जाएगा। अब तक, 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 1162 शहरों को एनयूएचएम में शामिल किया गया है।

भौतिक प्रगतिः

यह कार्यक्रम राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में 7 वर्षों से अधिक समय से क्रियान्वित किया जा रहा है और शहरी क्षेत्रों के लिए समर्पित संवर्धित बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों की उपस्थिति के लिए जिम्मेदार है। राज्यों/केन्द्र शासित क्षेत्रों द्वारा प्रस्तुत दूसरी तिमाही प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) यानी जुलाई-सितंबर, 2021 की अवधि के लिए, एनयूएचएम के तहत अनुमोदित गतिविधियों की प्रगति के बारे में जानकारी इस प्रकार है: -

    • 4379 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 3135 चिकित्सा अधिकारी पदस्थ
    • 537 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 238 विशेषज्ञ अधिकारी पदस्थ
    • 10863 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 6537 स्टाफ नर्स कार्यरत
    • 19557 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 14113 एएनएम कार्यरत
    • 4142 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 2898 फार्मासिस्ट कार्यरत
    • 4269 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 3265 लैबटेक्निशियन कार्यरत
    • 752 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 436 सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधक कार्यरत
    • राज्य/ज़िला/शहर स्तर पर 1474 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 1180 कार्यक्रम प्रबंधन स्टाफ पदस्थ
    • अब तक 1162 शहर/खंड एनयूएचएम के अंतर्गत शामिल
    • शहरी पीएचसी को मज़बूत बनाने के लिए 5501 वर्तमान सुविधाओं को मंज़ूरी
    • 897 नए यू-पीएचसी के निर्माण को मंज़ूरी
    • 90 नए यू-सीएचसी के निर्माण को मंज़ूरी
    • 101 मोबाइल स्वास्थ्य इकाई को मंज़ूरी
    • 643 स्वास्थ्य कियोस्क को मंज़ूरी

मलिन बस्ती पुनर्वास के लिए

 

i.81349 स्वीकृत पदों के मुकाबले 68712 आशा काम करती हैं। (एक आशा के दायरे में 200 से 500 घर आते हैं।)

ii.98615 स्वीकृत महिला आरोग्य समिति (एमएएस) की तुलना में 76267 समितियों का गठन है। (एक एमएएस के पास 50-100 घरों की जिम्मेदारी)

 

कायाकल्प और स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र (एसएसएस) को सभी शहरी क्षेत्रों को शामिल करने के लिए विस्तार दिया गया है और शहरी-पीएचसी को कायाकल्प पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए कायाकल्प पुरस्कारों की घोषणा की, जिनमें से 1198 यूपीएचसी और 16 यूसीएचसीशहरी स्वास्थ्य सुविधाएं कायाकल्प पुरस्कार जीतने में सफल रहे हैं।

 

आयुष्मान भारत के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर घटक के तहत व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (सीपीएचसी) की सुविधाओं का वितरण सुनिश्चित करने के लिए, मौजूदा यूपीएचसी को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स के रूप में मजबूत किया जा रहा है। राज्यों को पीएचसी स्टाफ (स्वास्थ्य अधिकारी, स्टाफ नर्सेज, फॉर्मासिस्ट, और लैब टैक्नीशियन) के प्रशिक्षण में मदद, सेवाओं की विस्तारित श्रेणी के लिए प्रयोगशालाओं और जांच शालाओं को उन्नत बनाने के लिए आवश्यक आईटी ढांचा और संसाधन उपलब्ध कराया जा रहा है। 29 नवंबर 2021 तक शहरी क्षेत्रों में 4203 एचडब्ल्यूसी का संचालन शुरू किया जा चुका है। एनएचएसआरसी के सहयोग से शहरी क्षेत्रों में सीपीएचसी-एचडब्ल्यूसी को लागू करने के लिए प्रशिक्षण और समीक्षा कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था।

वित्तीय प्रगतिः

वित्त वर्ष 2013-14 में एनयूएचएम की शुरुआत से लेकर 07 दिसंबर 2021 तक, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में कार्यक्रम गतिविधियों को लागू करने के लिए लगभग 8788.48 करोड़ रुपये और 7040.11 करोड़ रुपये की धनराशि क्रमशः आवंटित और जारी की गई है।

 

2.17 एनएचएम सर्वोत्तम अभ्यास और नवाचार, 2020: अच्छी प्रतिकृति और अभिनव प्रथाएं

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की अच्छी और अनुकरणीय प्रथाओं तथा नवाचारों संबंधी राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन,नवाचारों को साझा करने के लिए एक संस्थागत तंत्र है। कोविड 19 स्थितियों के कारण 7वां राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन वेबिनार मोड में ऑनलाइन आयोजित किया गया था। शिखर सम्मेलन में मिशन निदेशकों और कार्यक्रम अधिकारियों के साथ सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिव/स्वास्थ्य सचिवों ने भाग लिया। 13 दिसंबर, 2021 को, माननीय केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने 7वें राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत की गई। सभी सर्वोत्तम व्यवस्थाओं के दस्तावेजों को ई-बुक प्रारूप में कॉफी टेबल बुक के रूप में जारी किया। यह 47 सर्वोत्तम प्रथाओं और नवाचारों को कैप्चर करती है, जिनमें से 23 मौखिक हैं और 24 पोस्टर प्रस्तुतिकरण हैं। वे स्वास्थ्य प्रणालियों, मातृ और नवजात स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, पुरानी और अन्य संचारी बीमारियों, गैर-संचारी रोगों, मानसिक स्वास्थ्य और ई-स्वास्थ्य से लेकर प्रोग्रामेटिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं।

2.18 प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम)

माननीय प्रधानमंत्री ने 25 अक्तूबर 2021 को प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (अब प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन) को शुरू किया। वित्त वर्ष 2025-26 तक करीब 64,180 करोड़ रुपये रुपये के परिव्यय के साथ इस योजना को देशभर में शुरू किया गया। यह योजना आज देशभर में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में सबसे बड़ी अखिल भारतीय योजना है।

प्रधान मंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन का लक्ष्य महानगरीय क्षेत्रों में ब्लॉक, जिला, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क विकसित करके एक आईटी आधारित रोग निगरानी प्रणाली का निर्माण करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों और रोग के प्रकोपों ​​का प्रभावी ढंग से पता लगाने, जांच करने, रोकथाम और बीमारी का मुकाबला करने के लिए प्रवेश बिंदुओं पर स्वास्थ्य इकाइयों को मजबूत करना है।

इस योजना के अंतर्गत, कोविड-19 और अन्य संक्रामक रोगों पर अनुसंधान की दिशा में निवेश को बढ़ाने पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इनमें बायोमेडिकल अनुसंधान शामिल हैं, जो कोविड-19 जैसी महामारियों के लिए अल्पकालिक और मध्यम अवधि की प्रतिक्रिया के बारे में सूचित करते हैं, और जानवरों तथा मनुष्यों में संक्रामक रोग के प्रकोप को रोकने, पता लगाने की दिशा में वन हैल्थ दृष्टिकोण की क्षमता विकसित करते हैं।

वित्त वर्ष 2025-26 तक 'प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन' योजना के तहत प्राप्त किए जाने वाले मुख्य तत्व हैं:

केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित घटकः

  1. विशेष ध्यान वाले 10 राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और आरोग्य केन्द्रों के लिए सहायता। 15वें वित्त आयोग स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान और एनएचएम के तहत अन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को सहायता।
  2. देश के सभी राज्यों में कुल 11,024 शहरी स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों की स्थापना।
  3. विशेष ध्यान वाले 11 राज्यों में 3382 ब्लॉक सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयां। 15वें वित्त आयोग स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान और एनएचएम के तहत अन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए सहायता।
  4. सभी जिलों में एकीकृत जन स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना।
  5. 5 लाख से अधिक आबादी वाले सभी जिलों में गहन सुरक्षा (क्रिटिकल केयर) हॉस्पिटल ब्लॉक की स्थापना।

केन्द्रीय क्षेत्र के घटकः

  1. ऐसे 12 केन्द्रीय संस्थानों को प्रशिक्षण और परामर्श स्थल बनाया गया, जहाँ 150 बिस्तरों की सुविधा वाले गहन सुरक्षा अस्पताल ब्लॉक स्थित है।
  2. राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), 5 नए क्षेत्रीय एनसीडीसी और 20 महानगरीय स्वास्थ्य निगरानी इकाइयों का सुदृढ़ीकरण।
  3. देशभर की सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को आपस में जोड़ने के लिए सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों तक एकीकृत स्वास्थ्य सूचना पोर्टल का विस्तार।
  4. 32 हवाई अड्डों, 11 बंदरगाहों और 7 लैंडक्रॉसिंग पर स्थित विभिन्न प्रवेश बिन्दुओं पर 17 नई सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों का संचालन और 33 मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों को मजबूत करना।
  5. 15 स्वास्थ्य आपातकालीन ऑपरेशन केंद्रों और 2 कंटेनर आधारित मोबाइल अस्पतालों की स्थापना, तथा

वन हेल्थ के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना,4 नए राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान, डब्ल्यूएचओके दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय अनुसंधान प्लेटफॉर्मऔर जैव सुरक्षा स्तर III की 9 प्रयोगशालाओं की स्थापना।

 

3.प्रजनन, मातृत्व, नवजात, बच्चे, किशोर स्वास्थ्य के साथ पोषण (आरएमएससीएएच+एन)

3.1 इम्यूनाइजेशन (टीकाकरण)

  1. न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का राष्ट्रव्यापी विस्तार:पीसीवी को मई 2017 में चरणबद्ध तरीके से लॉन्च किया गया था और वित्त वर्ष 2019-20 तक यह देश के पांच राज्यों में उपलब्ध था। वित्त वर्ष 2020-21 में, बजट घोषणा 2021-22 के अनुरूप,पीसीवी का देशभर में विस्तार किया गया है और अब यह देश के सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में उपलब्ध है।
  2. एनएफएचएस-5 के अनुसार भारत के एफआईसी में वृद्धि:एनएफएचएस 5 की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि एनएफएचएस-4 की तुलना में पूर्ण टीकाकरण कवरेज के मामले में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  3. राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण अभियान

भारत ने 16 जनवरी 2021 को अपने राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत की।इस कार्यक्रम की शुरुआत में देश के सभी स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को कोविड का टीका लगाया गया। नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 (एनईजीवीएसी) द्वारा वैज्ञानिक और वैश्विक परीक्षण अभ्यासों की नियमित समीक्षा के आधार पर भारत के टीकाकरण कार्यक्रम को सुनियोजित और प्रभावशाली तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।

कोविड टीकाकरण अभियान के शुरुआती चरण से ही सरकार का पूरा ध्यान वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर टीकाकरण के कार्य को आगे बढ़ाने पर रहा और इसी के अनुसार सरकार ने निर्णय भी लिए। इसी क्रम में चरणबद्ध तरीके से हमारे स्वास्थ्यकर्मियों, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं और अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित आबादी का प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण करना हमारे टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता रही। अब, देश के सभी वयस्क कोविड टीकाकरण के लिए पात्र हैं और जल्द ही हम बच्चों का भी टीकाकरण करेंगे।

टीकाकरण कार्यक्रम के तहत,सभी नागरिक (किसी भी आय वर्ग से संबंद्ध) मुफ्त टीकाकरण के पात्र हैं,वहीं दूसरी भुगतान करने की क्षमता रखने वाले नागरिकों को निजी अस्पताल के टीकाकरण केन्द्रों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

कोविड टीकाकरण अभियान में तीन टीकों का उपयोग किया जा रहा है,इनमें भारत में निर्मित दो टीके भी शामिल हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड और भारत बायोटेक का कोवैक्सिन भारत में बना है, जबकि रूसी स्पुतनिक V (केवल निजी अस्पतालों में उपयोग किया जा रहा है) का विदेश से आयात किया जा रहा है।

कोविड टीकाकरण अभियान की शुरुआत के बाद, केवल 9 महीनों में ही भारत ने अपनी आबादी को 100 करोड़ से अधिक खुराक देने का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल कर लिया। भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाले कुछ दुनिया के चुनिंदा देशों में एक बन गया है।

7 दिसंबर 2021 तक टीकाकरण के लिए कुल पात्र वयस्क आबादी में से 85% से अधिक नागरिकों को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है, जबकि 50% से अधिक योग्य नागरिकों को वैक्सीन की दूसरी खुराक मिली है।

हर घर दस्तक

3 नवंबर से 31 दिसंबर 2021 तक देशभर में एक राष्ट्रव्यापी कोविड-19 टीकाकरण अभियान हर घर दस्तकचलाया गया, जिसके अंतर्गत जागरूकता फैलाने, लोगों को प्रोत्साहित करने के अलावा जो पात्र लाभार्थी टीकाकरण से छूट गए हैं उनके घर-घर जाकर सभी को टीकाकरण अभियान में शामिल करना मुख्य उद्देश्य था।

इस अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी पात्र लाभार्थियों को टीके के पहली खुराक लगाई जाए और जिन लाभार्थियों को पहली खुराक मिल गई है, ऐसे सभी लाभार्थियों को कोविड-19 टीके की दूसरी खुराक दी जाए। इस संबंध में मंत्रालय ने परिचालन संबंधी दिशानिर्देश बनाए थे, और इन्हें राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया था।

खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों पर विशेष ध्यान देने केन्द्रित करते हुए नोडल अधिकारियों (संयुक्त सचिवों) का चयन किया गया, और ऐसे राज्यों में नियमित रूप से समीक्षा दौरे करने के लिए इनकी ज़िम्मेदारी लगाई गई।

इसके अलावा,माननीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने हर घर दस्तक अभियान पर देशभर के गैर सरकारी संगठनों और सीएसओ के साथ एक ओरिएंटेशन सत्र भी आयोजित किया। इस दौरान उन्होंने इस बात विशेष रूप से बल दिया कि इस अभियान को मज़बूत करने की दिशा में सरकार और इन संगठनों के बीच साझेदारी को कैसे बढ़ाया जाए।

हर घर दस्तक अभियान की उपलब्धि/प्रगतिः

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के इन निरंतर प्रयासों के कारण,हर घर दस्तक अभियान (30 नवंबर, 2021 तक के आंकड़े) के दौरान पहली खुराक कवरेज में 5.3% की वृद्धि दर्ज हुई।

इसी प्रकार, अभियान (30 नवंबर, 2021 तक के आंकड़े) के दौरान दूसरी खुराक कवरेज में 11.7% की वृद्धि दर्ज हुई।

 

हर घर दस्तक कार्यक्रम की महत्वपूर्ण बातेः

बिहारःएक अधूरा, दो से पूरा अभियान-दूसरी खुराक अभियान मिशन, टीका एक्सप्रेस, टीका वाली नाव और मोटर बाइक वैक्सीनेशन दल।

हिमाचल प्रदेशःसुरक्षा के रंग न होंगे फीके, जब समय पर लगेंगे दोनो टीके कार्यक्रम, बुलावा टोली।

महाराष्ट्रःटीकाकरण के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सरपंच, तलथी, ग्राम सेवक, आशा, एडब्ल्यूडब्ल्यू, शिक्षकों आदि की समिति।

मणिपुरःधार्मिक लोगों ने संदेश रिकॉर्ड करके लोगों से टीकाकरण करवाने की अपील की। इन संदेशों को व्हाट्सएप के माध्यम से लोगों के बीच साझा किया गया।

आंध्र प्रदेशःडंडोरा स्थित काला जथारा के जिला सिविल सर्जन द्वारा बेहर प्रदर्शन करने वाली टीमों को पुरस्कृत किया गया।

झारखंडःनुक्कड़ नाटक, सड़कों और दीवारों पर प्रोत्साहित करने वाले लेखन किए गए।

 

  1. कोविड-19 महामारी के दौरान सतत रूप से टीकाकरण जारी रहा:कोविड महामारी के दौरान सतत नियमित टीकाकरण को बनाए रखने के लिए स्पष्ट रणनीति और दिशानिर्देश तैयार किए गए। पोलियो के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस और उप-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस आयोजित करने, टीकाकरण न होने की वजह से पैदा हुए गैप को कम करने के लिए मिशन इंद्रधनुष जैसे तीव्र टीकाकरण अभियान चलाने, और कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज (वीपीडी) का पता लगाने लिए नियमित तौर पर विशेष प्रयास किए गए।

3. प्रजनन, मातृत्व, नवजात, बच्चे, किशोर स्वास्थ्य के साथ पोषण (आरएमएससीएएच+एन)

3.1 इम्यूनाइजेशन (टीकाकरण)

  1. न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का राष्ट्रव्यापी विस्तार:पीसीवी को मई 2017 में चरणबद्ध तरीके से लॉन्च किया गया था और वित्त वर्ष 2019-20 तक यह देश के पांच राज्यों में उपलब्ध था। वित्त वर्ष 2020-21 में, बजट घोषणा 2021-22 के अनुरूप,पीसीवी का देशभर में विस्तार किया गया है और अब यह देश के सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में उपलब्ध है।
  2. एनएफएचएस-5 (2019-21) के अनुसार भारत के पूर्ण टीकाककरण कवरेज (एफआईसी) में वृद्धि:एनएफएचएस 5 की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि एनएफएचएस-4 की तुलना में पूर्ण टीकाकरण कवरेज के मामले में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  3. कोविड-19 महामारी के दौरान सतत रूप से टीकाकरण जारी रहा : कोविड महामारी के दौरान सतत नियमित टीकाकरण को बनाए रखने के लिए स्पष्ट रणनीति और दिशानिर्देश तैयार किए गए। पोलियो के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस और उप-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस आयोजित करने, टीकाकरण न होने की वजह से पैदा हुए गैप को कम करने के लिए मिशन इंद्रधनुष जैसे तीव्र टीकाकरण अभियान चलाने, और कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन प्रिवेंटेबल डिजीज(वीपीडी) का पता लगाने लिए नियमित तौर पर विशेष प्रयास किए गए।

3.2 मातृत्व स्वास्थ्य

a) एनएफएचएस-5 (2019-21) के प्रमुख बिन्दुः

पहली तिमाही में एएनसी पंजीकरण 58.6% (एनएफएचएस-4) से बढ़कर एनएफएचएस-5 में 70% हो गया।

एनएफएचएस-5 में संस्थागत प्रसव 78.9% (एनएफएचएस-4) से बढ़कर 88.6% हो गया। 

एनएफएचएस-5 में कुशल जन्म परिचारकों (एसबीए) की उपस्थित में प्रसव 81.4% (एनएफएचएस-4) से बढ़कर 89.4% हो गया है।

b) सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) : इस कार्यक्रम का उद्देश्य टाली जा सकने वाली मातृ और नवजात मृत्यु तथा बीमारियों को खत्म करने और प्रजनन का सकारात्मक अनुभव दिलाने के क्रम में जनस्वास्थ्य सुविधाओं में आने वाली सभी महिलाओं और नवजातों के लिए, बिना खर्च और सेवाएं देने से इनकार करने के प्रति जीरो टॉलरेंस के साथ सुनिश्चित, गरिमापूर्ण, सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है। सुमन के अंतर्गत 14 दिसंबर 2021 तक 10,010 सुविधा केन्द्रों को अधिसूचित किया गया है।

 

c)मातृ प्रसवकालीन बाल मृत्यु निगरानी प्रतिक्रिया (एमपीसीडीएसआर) सॉफ्टवेयर को सितंबर 2021 में माननीय केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था। इसके बाद अक्टूबर 2021 में सॉफ्टवेयर का राष्ट्रीय स्तर पर टीओटी किया गया।

d)मिडवाइफरी एजुकेटर ट्रेनिंग: भारत सरकार ने गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की गुणवत्तापूर्ण और सम्मानजनक देखभाल सुनिश्चित करने के लिए देश में मिडवाइफरी सेवाओं को शुरू करने का नीतिगत फैसला लिया है। दिसंबर 2018 में नई दिल्ली में आयोजित पार्टनर्स फोरम के दौरान गाइडलाइंस ऑन मिडवाइफरी सर्विसेज इन इंडिया-2018को जारी किया गया था।

मिडवाइफरी प्रशिक्षण की बहाली: महामारी के कारण मिडवाइफरी शिक्षकों (एमई) का प्रशिक्षण रोक दिया गया था, जिसे सितंबर 2021 में तेलंगाना के एनएमटीआई में फिर से शुरू किया गया।

स्कॉप ऑफ प्रैक्टिस का विमोचन: भारतीय नर्सिंग परिषद (आईएनसी) के सहयोग से मिडवाइफरी एजुकेटर्स (एमई) और नर्स प्रैक्टिशनर मिडवाइफ (एनपीएम) के लिए कार्य का दायरादस्तावेज़ जारी किया गया है। यह उनकी शिक्षा, विनियमन और व्यावसायिक विकास की दिशा में एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।

e)प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए):इस अभियान के तहत 4 दिसंबर 2021 तक सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में करीब 3.02 करोड़ से ज्यादा प्रसव पूर्व देखभाल (एनएससी) संबंधी जांच की गई, जिसमें 25.46 लाख से ज्यादा उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान की गई।

 

f) लक्ष्य (एलएक्यूएसएचवाईए):इसका उद्देश्य लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और तत्काल प्रसव के दौरान सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण देखभाल मिले। 30 नवंबर 2021 तक 421 लेबर रूम और 350 मैटरनिटी ओटी को लक्ष्य योजना के तहत राष्ट्रीय प्रमाणपत्र मिल चुका है।वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान, 99 लेबर रूम और 79 मैटरनिटी ओटी को लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित किया गया है।

 

g) जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई): अप्रैल-सितंबर 2021 (अनंतिम आंकड़ा, 2021-22) के दौरान 36.38 लाख लाभार्थियों को जेएसवाई का लाभ मिला।

 

h)कोविड-19 महामारी के दौरान मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करना:विषय विशेषज्ञों और कुछ राज्यों के मातृत्व स्वास्थ्य नोडल अधिकारियों के सहयोग से 19 मई 2021 को कोविड-19 महामारी में मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करनाविषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य आवश्यक मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों और मार्गदर्शन पर फिर से जोर देने के अलावा, कोविड-19 महामारी एवं गर्भावस्था के विभिन्न चरणों के दौरान कोविड-19 के प्रबंधन संबंधी मानकीकृत और अद्यतन ज्ञान प्रदान करना और राज्यों तथा मेडिकल कॉलेजों से आने वाले अच्छे उदाहरणों का प्रसार करना था।

 

i) दिशा-निर्देश जारीः

भारत में गर्भवती महिलाओं में टीबी के मामलों का शीघ्र पता लगाने और समय पर इलाज सुनिश्चित करने की दिशा में राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों, मिशन निदेशकों और कार्यक्रम अधिकारियों की मदद करने के लिए गर्भवती महिलाओं में तपेदिक के प्रबंधन संबंधी सहयोगात्मक रूपरेखाजारी की गई थी। वित्त वर्ष 2021-22 के लिए एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना भी बनाई गई है।

वीएचएसएनडी साइटों पर एचआईवी और सिफलिस स्क्रीनिंग के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को जारी किया गया था ताकि वीएचएसएनडीसाइटों पर एचआईवी और सिफलिस स्क्रीनिंग के कार्यान्वयन के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं को परिभाषित किया जा सके।

कोविड-19 महामारी के दौरान मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के परिचालन संबंधी दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया गया और सितंबर 2021 में इन्हें जारी किया गया।

j) व्यापक गर्भपात देखभाल (सीएसी): दिसंबर 2021 तक सीएसी प्रशिक्षण में 16,000 से अधिक चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है। 17 राज्यों में सीएसी विषय पर वर्चुअल माध्यम से प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण (टीओटी) का आयोजन किया गया। दिसंबर 2021 तक 328 मास्टर प्रशिक्षणों को प्रशिक्षित किया गया है।

k) मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम और शर्तें 2021:एमटीपी अधिनियम ने ऐसी महिलाओं को सुरक्षित, सस्ती, सुलभ और कानूनी तौर पर गर्भपात सेवाएं प्रदान करने के महत्व को मान्यता दी, जिन्हें किसी चिकित्सीय, यूजेनिक, मानवीय अथवा सामाजिक कारणों की वजह से गर्भावस्था को समाप्त करने की आवश्यकता होती है। सुरक्षित गर्भपात सेवाएं प्रदान करने की दिशा में लाभार्थियों के दायरे का विस्तार करने के लिए इस अधिनियम में संशोधन किया गया था।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के संबंध में 24 सितंबर, 2021 को इसकी शुरुआत के संबंध में अधिसूचना जारी करने के बाद 25 मार्च 2021 को इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित दिया गया था। 12 अक्टूबर 2021 को एक अन्य अधिसूचना जारी कर बनाए गए नियमों को लागू किया गया।

संशोधित एमटीपी अधिनियम महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सुरक्षा और देखभाल की गुणवत्ता से समझौता किए बिना, महिलाओं के सुरक्षित और कानूनी गर्भपात के दायरे में विस्तार करेगा।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम, 2021 ने एमटीपी अधिनियम 1971 में निम्नलिखित बदलाव किए हैं:

गर्भधारण से लेकर बीस सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने के लिए किसी एक पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता

गर्भधारण से लेकर चौबीस सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने के लिए दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय की आवश्यकता

महिलाओं की ऐसी श्रेणी के लिए ऊपरी गर्भ की सीमा को बीस सप्ताह से बढ़ाकर चौबीस सप्ताह तक किया जा सकता है, जिनके संबंध में नियम निर्धारित किए गए हैं।

उन मामलों में गर्भावस्था की अवधि से संबंधित प्रावधानों का लागू न होना, जहां मेडिकल बोर्ड द्वारा भ्रूण संबंधी असामान्यताओं के निदान/उपचार के दौरान गर्भावस्था की समाप्ति की आवश्यकता की बात कही गई हो।

जिस महिला का गर्भपात किया गया है, उसकी गोपनीयता बनाए रखने की दिशा में मज़बूती से काम करना।

गर्भनिरोधक खण्डों की विफलता महिलाओं और उनके साथी दोनों पर लागू होती है।

3.3 शिशु स्वास्थ्य

a) भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा अक्टूबर2021 में जारी की गई सैंपलरजिस्ट्रेशनसिस्टम(एसआरएस) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत का शिशु मृत्यु अनुपात (आईएमआर) वर्ष 2018 के प्रति 1000 जीवित जन्म पर 32 मृत्यु से घटकर वर्ष 2019 में 1000 जन्म पर 30 मृत्यु के आंकड़े पर पहुंच गया है।

मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, केरल, अंडमानऔर निकोबार द्वीप, गोवा, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, मणिपुर, दिल्ली, दमन एंड नगर हवेली, चंडीगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, दमन और दीव, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू लद्दाख, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, त्रिपुरा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, कश्मीर सहित 27 राज्य/ केन्द्र शासित प्रदेशों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लक्ष्य (2019 तक प्रति 1000 जीवित जन्म पर 28) को हासिल कर लिया है।

b) सुविधा आधारित नवजात शिशु देखभाल (एफबीएनसी)कार्यक्रम: बीमार और नवजात छोटे शिशुओं को सेवाएं देने के लिए जिला/मेडिकलकॉलेजों के स्तर पर नवजात शिशुओं की देखभाल की 914 विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाइयां (एसएनसीयू) और एफआरयू/सीएचसी के स्तर पर 2579 न्यूबॉर्नस्टैबलाइजेशनयूनिट्स (एनबीएसयू) काम कर रही हैं। जिला अस्पतालों और मेडिकलकॉलेजों में स्थापित विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाइयों (एसएनसीयू) में (अप्रैल-नवंबर, 2021 के बीच) कुल 7.53 लाख नवजात बीमार शिशुओं को इलाज मिला।

 

c) नवजात स्वास्थ्य के महत्व को एक प्रमुख प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में सुदृढ़ करने और उच्चतम स्तर पर अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय नवजात सप्ताह हर साल 15 से 21 नवंबर तक मनाया जाता है। वर्ष 2021 में भी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 15 नवंबर 2021 को राष्ट्रीय नवजात सप्ताह मनाने के लिए वर्चुअल कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस वर्ष राष्ट्रीय नवजात सप्ताह का विषय "सुरक्षा, गुणवत्ता और पोषण देखभाल - प्रत्येक नवजात शिशु का जन्मसिद्ध अधिकार" है।सूचना के प्रसार और नवजात स्वास्थ्य को लेकर व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए 15 नवंबर को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रासय ने राष्ट्रीय नवजात शिशु सप्ताह और एसएएएनएस अभियान आईईसी पोस्टर भी जारी किया था।

 

d) मुस्कान- बाल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार संबंधी पहल: माननीय केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने विश्व रोगी सुरक्षा दिवस के अवसर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में बच्चों के अनुकूल सेवाएं सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 17 सितंबर 2021 को "मुस्कान" कार्यक्रम की शुरुआत की। यह पहल सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी ढांचे, उपकरण, आपूर्ति, कुशल मानव संसाधन, नैदानिक प्रोटोकॉल, साक्ष्य आधारित व्यवस्थाओं आदि की सुरक्षा और उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में गुणवत्ता मानकों में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करेगी।"मुस्कान - बाल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार संबंधी पहल" का 3 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार किया गया।

 

e)घर पर नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम: आशा कार्यकर्ताओं ने कुल 98.63 लाख नवजात शिशुओं के घर पर जाकर उनकी देखभाल सुनिश्चित की, जिसमें जनवरी-सितंबर 2021 के बीच आशा कार्यकर्ताओं ने 3.6 लाख बीमार नवजात शिशुओं की पहचान की और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भेजा।

 

f) छोटे बच्चों की घर पर देखभाल (एचबीवाईसी) कार्यक्रम: छोटे बच्चों की घर पर देखभाल (एचबीवाई) कार्यक्रम को वित्त वर्ष 2021-22 में, गोवा को छोड़कर सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एचबीवाईसी लागू करने के लिए सभी आकांक्षी जिलों सहित 604 जिलों को मंजूरी दी गई है।जनवरी-सितंबर 2021 के बीच आशा कार्यकर्ताओं ने 1.2 करोड़ घरों में जाकर छोटे बच्चों (3 माह से 15 माह) की देखभाल की। इसके अलावा, आशा कार्यकर्ताओं और एचबीएनसीतथा एचबीवाईसी कार्यक्रमों पर एएनएम/एमपीडब्ल्यू के लिए तैयार की गई एक सहायक पर्यवेक्षण पुस्तिका को सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है, जिसका उद्देश्य आशा कार्यकर्ताओं के घरेलू दौरे को गुणवत्ता पूर्ण बनाना है।

 

g) सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा (आईडीसीएफ) के तहत, 2021में, पांच वर्ष तक के 13.37 करोड़ बच्चों को ओआरएस और जिंक देने के लक्ष्य के मुकाबले 8 करोड़ बच्चों को ओरआरएस और जिंक उपलब्ध कराया गया। आईडीसीएफ/डायरिया की रोकथाम गतिविधियों के तहत 2021 में चलाए गए अभियान का आंकड़ा अभी जुटाया जा रहा है।

 

h) राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (एनडीडी): फरवरी 2021 में आयोजित हुए एनडीडी के 12वें राउंड में, 1-19 वर्ष की आयु वर्ग के 20.94 करोड़ बच्चों के लक्ष्य के मुकाबले लगभग 17.75 करोड़ बच्चों को एल्बेंडाजॉल की गोलियां दी गईं। अगस्त-नवंबर, 2021 के दौरान 34 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में एनडीडी का 13वां राउंड चलाया गया है।

 

i)पोषण पुनर्वास केंद्र:वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 1073 पोषण पुनर्वास केंद्रों पर चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के साथ गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) लगभग 1.04 लाख बच्चों को उपचार मिला। 2021-22 (अप्रैल-सितंबर,2021) के दौरान, 1080 पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के साथ गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) 59424 बच्चों को इलाज मिला।

j) लैक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर्स (एलएमसी): वित्त वर्ष 2020-21 के अनुसार, 7 राज्यों (महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु और उत्तर प्रदेश) में 15 सीएलएमसी और 3 एलएमयू की स्थापना की गई है।

k) एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम (अप्रैल-सितंबर, 2021)

    • हर महीने 6-59 माह आयु वर्ग के 2 करोड़ बच्चों को आयरन फोलिकएसिड (आईएफए) सिरप की 8-10 खुराक दी गई
    • हर महीने 5-9 वर्ष आयु वर्ग के 1.9 करोड़ बच्चों को 4-5 आईएफए पिंक टैबलेट दी गई
    • हर महीने 10-19 वर्ष (स्कूल में) आयु वर्ग के 3 करोड़ बच्चों को 4-5 आईएफएब्लू टैबलेट दी गई
    • 1.3 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 0.6 करोड़ स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 180 आईएफए लाल टैबलेट दी गई

l) राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यकम (आरबीएसके): वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान, कोविड महामारी के कारण आरबीएसके कार्यक्रम की मोबाइल हेल्थ टीमों की फील्ड गतिविधियों पर असर पड़ा। राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा एचएमआईएस में दर्ज की गई जानकारी के अनुसार अप्रैल-नवंबर, 2021 के दौरान मोबाइल स्वास्थ्य टीमों ने 4.2 करोड़ बच्चों की स्क्रीनिंग की। अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान आरबीएसके कार्यक्रम के तहत 1.11 करोड़ नवजात शिशुओं की प्रजनन केंद्रों पर ही जांच की गई।

m) निमोनिया को सफलतापूर्वक निष्प्रभावी करने के लिए सामाजिक जागरूकता एवं गतिविधियां (एसएएएनएस):  राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में एसएएएनएस अभियान को 12 नवंबर, 2021 से 28 फरवरी, 2022 तक लागू किया गया है। इसका उद्देश्य बचपन में होने वाली निमोनिया के खिलाफ सुरक्षा, रोकथाम और उपचार के पहलुओं के बारे में जागरूकता पैदा करते हुए गतिविधियों में तेजी लाना और माता-पिता व देखभाल करने वालों के बीच रोग को जल्द पहचानने और देखभाल की मांग करने संबंधी व्यवहार में सुधार करना है।इसके अतिरिक्त, वर्ष 2021 के एसएएएनएसअभियान के तहत न्यूमोकोकल वैक्सीन (पीसीवी) के बारे में जागरूकता पैदा करने, प्रचार करने और वैक्सीन लगाने को भी इसमें शामिल किया गया है।

n) भारत कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज (चरण 2):भारत कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज (चरण 2)के अंतर्गत मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और उप-जिला स्तर की सुविधाओं में बाल चिकित्सा देखभाल सुविधाओं को मजबूत करने पर बल दिया गया है। ईसीआरपी-II के तहत, जिला स्तर पर समर्पित कोविड केयर यूनिट के तहत बाल चिकित्सा आईसीयूबेड, बाल चिकित्सा एचडीयूबेड और बाल चिकित्सा ऑक्सीजन समर्थित बेड के लिए सहायता प्रदान की गई है।साथ ही, सुविधाओं के विभिन्न स्तरों पर बाल चिकित्सा आईसीयू बिस्तरों की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया गया है।

o) "बच्चों और किशोरों के लिए कोविड-19 देखभाल सेवाओं के परिचालन संबंधी दिशानिर्देशों" को 14 जून 2021 को और "बच्चों (18 वर्ष से कम) में कोविड-19 के प्रबंधन संबंधी दिशानिर्देशों" को 18 जून 2021 कोजारी किया गया था। ये दिशानिर्देश बाल चिकित्सा देखभाल के सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसमें बाल चिकित्सा मामलों की संख्या बढ़ने के अनुमानों पर विचार करते हुए विभिन्न स्तर की सुविधाओं में बाल चिकित्सा देखभाल के लिए अतिरिक्त बिस्तर क्षमता का विस्तार करना, सुविधाओं का विस्तार - दवाओं, उपकरणों, उपभोग सामग्रियों, मानव संसाधन, क्षमता निर्माण आदि की आवश्यकता,सुविधाओं में बच्चों की देखभाल और उनके माता-पिता/ परिवार के सदस्यों के लिए विशिष्ट क्षेत्रों को नामित करना, सामुदायिक स्तर की योजना बनाना, परिवहन संपर्क, सामुदायिक व्यवस्था में कोविड का प्रबंधन; आईईसी योजना, शासन तंत्र आदि शामिल हैं।

3.4 परिवार नियोजन

a) एनएफएचएस-5 के प्रमुख बिन्दु (2019-21):

भारत ने टोटल फर्टिलिटी रेट(टीएफआर) का रिप्लेसमेंट स्तर हासिल कर लिया है। 31 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने टीएफआर के प्रतिस्थापन स्तर को हासिल कर लिया है।

लोगों की अधूरी ज़रूरतें 12.9% (एनएफएचएस-4) से कम होकर 9.4% (एनएफएचएस--5) हो गई है

आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग काफी बढ़ गया है।

एनएफएचएस-1 के बाद पहली बार आईयूसीडी के उपयोग में वृद्धि हुई है। इसमें 0.6% अंक की वृद्धि हुई है, जोएनएफएचएस-4 में 1.5% से बढ़कर एनएफएचएस-5 में 2.1% हो गया है।

● 29 राज्यों में 70% से अधिक ऐसे दंपत्ति हैं जिन्हें गर्भनिरोधक की आवश्यकता है (एनएफएचएस-4 के 12 राज्यों के मुकाबले)। यह दर्शाता है कि परिवार नियोजन मांग-सृजन गतिविधियों के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

b) वित्त वर्ष 2021-22 (21 नवंबर तक) में परिवार नियोजन सेवाओं का प्रदर्शन इस प्रकार है:

कुल नसबंदी: 12.51 लाख

प्रसव के तुरंत बाद (पोस्ट-पार्टुम) आईयूसीडी (पीपीआईयूसीडी): 19.08 लाख

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में पीपीआईयूसीडी की स्वीकार्यता दर: 23.1 %.

कंट्रासेप्टिव इंजेक्टेबल एमपीए (अंतरा कार्यक्रम): कुल 14.90 लाख खुराक दी गई

नॉन-हार्मोनल पिल सेंटक्रोमैन (छाया) - कुल 49.44 लाख पत्ते वितरित किए गए।

c) मिशन परिवार विकास (एमपीवी) – तीन या तीन से अधिक टोटल फर्टिलिटीरेट (कुल प्रजनन दर) (टीएफआर) के साथ सात सबसे अधिक निगरानी वाले राज्यों के 146 उच्च प्रजनन जिलों में गर्भ निरोधक और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए नवंबर 2016 में एमपीवी की शुरुआत की गई थी। ये सभी जिले उत्तर प्रदेश (57), बिहार (37), राजस्थान (14), मध्य प्रदेश (25), छत्तीसगढ़ (2), झारखंड (9) और असम (2) राज्यों में हैं।

 

अक्टूबर, 2021 में एमपीवी का सात उच्च फोकस वाले राज्यों और छह पूर्वोत्तर राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड और मिजोरम) के शेष जिलों में विस्तार किया गया है।

एमपीवी जिलों में गर्भ निरोधकों तक पहुंच के मामले में काफी सुधार और वृद्धि देखी गई है।

 

वित्तीय वर्ष 2021-22 (21 नवंबर तक) में एमपीवी जिलों (146) में परिवार नियोजन सेवाओं का प्रदर्शन इस प्रकार है:

 

नसबंदी की कुल संख्या:2.35 लाख नसबंदी

प्रसव के तुरंत बाद (पोस्ट-पार्टुम) आईयूसीडी (पीपीआईयूसीडी):5.94 लाख

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में पीपीआईयूसीडी की स्वीकार्यता दर:20.5 %.

कंट्रासेप्टिव इंजेक्टेबल एमपीए (अंतरा कार्यक्रम): कुल 6.39 लाख खुराक दी गई

नॉन-हार्मोनल पिल सेंटक्रोमैन (छाया) - कुल 18.2 लाख पत्ते वितरित किए गए।

 

3.5 राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके)

a) किशोरों के अनुकूल स्वास्थ्य क्लीनिक (एएफएचसी):एएफएचसी में 41.38 लाख किशोरों ने परामर्श और उपचारात्मक सेवाएं प्राप्त कीं।

b)वीकली आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट (डब्ल्यूआईएफएस): 3 करोड़ किशोरों को नवंबर 2021 तक पोषण स्वास्थ्य शिक्षा के अलावा हर महीने वीकली आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट (डब्ल्यूआईएफएस) दिया गया।

c)पीयर एजुकेटर प्रोग्राम: वित्त वर्ष 2021-22 में (सितंबर 2021 तक) 1.69 लाख पीयर एजुकेटर्स (साथी शिक्षकों) के चयन के साथ पीयर एजुकेटर प्रोग्राम को लागू करने में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है। इसमें पहले छूट गए अथवा नए ज़िलों को भी शामिल किया गया है।

d)किशोर स्वास्थ्य दिवस (एएचडी): किशोरों की सेहत के मुद्दों और उपलब्ध सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए सितंबर 2021 तक 64,577 किशोर स्वास्थ्य दिवसों (एएचडी), त्रिमासिक सामुदायिक और विद्यालय स्तरीय गतिविधियों का आयोजन किया गया।

e) आयुष्मान भारत के तहत स्कूल स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम:

स्कूल स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम (फरवरी 2020 में शुरू किया गया) कार्यान्वयन के पहले चरण में देश के जिलों (अधिकांश आकांक्षी जिलों सहित) के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में इसे लागू किया जा रहा है।

प्रत्येक स्कूल से दो शिक्षकों (प्राथमिकता के आधार पर एक पुरुष और एक महिला), को "हेल्थ एंड वेलनेस एंबेसडर" (एचडब्ल्यूए) के रूप में नामित किया गया है, जिन्हें स्वास्थ्य प्रसार और बीमारियों की रोकथाम से संबंधित 11 विषयों के बारे में प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि वे अपने विद्यार्थियों को प्रत्येक सप्ताह एक घंटे की गतिविधि के माध्यम से दिलचस्प अंदाज में जागरूक कर सकेँ।

राज्यों ने हेल्थ एंड वेलनेसएंबेसडर प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ना शुरू कर दिया है।

● 30 नवंबर 2021 तक 1.29 लाख एचडब्ल्यूए को प्रशिक्षित किया गया है और लगभग 67,391 प्रधानाध्यापकों का ओरिएंटेशन किया गया है। कोविड के बाद दोबारा स्कूल खुलने की स्थिति में राज्यों में एचडब्ल्यूए सत्र भी धीरे-धीरे शुरू हो रहे हैं।

 

f) एनएफएचएस-5 (2019-21) की प्रमुख बातेः

एनएफएचएस-4 की तुलना में 32 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में उम्र में विवाह होने के रुझान में कमी देखी गई है, वहीं 25 राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां किशोर गर्भधारण के प्रसार में कमी आई है।

एनएफएचएस-5 (2019-21) बताता है कि 15-24 वर्ष की आयु की महिलाएं जो अपने मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग करती हैं, उनकी संख्या 57.6% (एनएफएचएस-4) से बढ़कर 77.3% हो गई है। 36 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में से 35 ने मासिक धर्म के दौरान स्वच्छ तरीकों के उपयोग में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया है।

 

3.6 गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व जांच तकनीक (पीसी एंड पीएनडीटी):

राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से पेश जून 2021 की तिमाही की प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) के अनुसार, पीसी एंड पीएनडीटीएक्ट के तहत कुल 72965 जांच सुविधाएं पंजीकृत की गई हैं। अब तक, कानून के उल्लंघन के मामले में कुल 2589 मशीनों को सील और जब्त किया गया है। जिले के उपयुक्त अधिकारियों द्वारा कानून के तहत अदालत में कुल 3201 मामले दायर किए गए और अब तक 617 दोषियों को सजा दिलाई गई है, जिसके आधार पर 145 डॉक्टरों के मेडिकल लाइसेंस निलंबित/रद्द किए गए हैं।

एनएफएचएस-5 (2019-21) ने भी राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय लिंगानुपात में 10 अंकों का सुधार दर्ज किया है, जो एनएफएचएस-4 के 919 से बढ़कर 929 हो गया है। जन्म के समय लिंगानुपात के मामले में 23 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में सुधार दर्ज हुआ है जबकि 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है।

सभी 36 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में पीसी एंड पीएनडीटीएक्ट के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए समीक्षा बैठकें की गईं।

बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में जिला उपयुक्त प्राधिकरणों और पीएनडीटी नोडल अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए गए।

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में पब्लिक प्रॉसिक्युटर्स के प्रशिक्षण के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए।

 

4.राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी):

इस वर्ष कोविड-19 महामारी की गंभीर दूसरी लहर के बावजूद, एनटीईपी ने एकीकृत टीबी-कोविड द्वि-दिशात्मक स्क्रीनिंग, नैदानिक और उपचार क्षमता उन्नयन और टीबी के लिए सहायक परीक्षण ( कोविड-19 के मरीजों के साथ-साथ आईएलआई/एसएआरआई के लिए) और राज्यों को समय-समय पर जारी किए जा रहे सलाह, निर्देश और मार्गदर्शन दस्तावेजों के अलावा कोविड-19 (अधिसूचित टीबी रोगियों के लिए) का परीक्षण जारी रखा।

बड़े पैमाने पर सक्रिय टीबी मामले पहचान अभियान समुदायों में बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग और जांच के साथ शुरू किए गए, स्वास्थ्य संपर्क कार्यकर्ता और सामुदायिक स्वयंसेवकों को घरों के भीतर लक्षणों की निगरानी, नमूनों के संग्रह और मासिक दवा स्टॉक की डिलीवरी की सुविधा मुहैया कराने के लिए लगाया गया ताकि रोगियों को उपचार के नियमों का पालन करने और रोगियों को टेलीकंसल्टेशन प्रदान करने में मदद मिल सके। निजी क्षेत्र की टीबी देखभाल केंद्रों को फिर से खोल दिया गया, कॉल सेंटरों को पूरी तरह से सक्रिय कर दिया गया, सीधे नकद हस्तांतरण जैसी सहायक सुविधा के साथ डिजिटल उपकरण शुरू किए गए और लोगों के घरों में पूरक खाद्य सामग्री वितरित की गई। कोविड-19 कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग से जुड़े टीबी के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग प्रणाली और जांच प्रणाली को भी पूरे देश में जल्दी से स्थापित किया गया।

वर्ष 2021 के दौरान, कुल 15,79,410 (जनवरी-सितंबर) रोगियों की सूचना मिली थी, जिसमें 95% रोगियों का इलाज चल रहा था। महामारी के बावजूद सूचित टीबी रोगियों की उपचार सफलता दर 81% रही।

आणविक निदान क्षमताओं का तेजी से विस्तार किया गया और टीबी तथा ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (डीआर-टीबी) के लिए तेजी से आणविक जांच के लिए अतिरिक्त मशीनें तैनात की गईं। एनटीईपी के तहत अब कुल 3,164 सीबीएनएएटी/ट्रूनेट मशीनें उपलब्ध हैं, जिनमें से प्रत्येक जिले में कम से कम एक तीव्र आणविक निदान सुविधा उपलब्ध है।

जनवरी-जून 2021 के बीच लगभग 17.00 लाख आणविक जांच की गईं, जिसमें अतिरिक्त 19,3130 फर्स्ट लाइन एलपीए, 32,600 सेकेंड लाइन एलपीए और 1,70,203 लिक्विड कल्चर टेस्ट किए गए।

आणविक निदान की सहज उपलब्धता के कारण इस वर्ष 88,446 बच्चों में टीबी रोग का निदान किया गया। ज्ञात एचआईवी स्थिति वाले टीबी रोगियों के अनुपात में वृद्धि हुई है और एनएएटी का उपयोग करके 1.05 लाख पीएलएचआईवी की जांच की गई है, जिसमें 94% सूचित टीबी रोगियों की एचआईवी जांच की गई।

एनटीईपी द्वारा प्रमाणित 87 कल्चर और डीएसटी प्रयोगशालाओं के अलावा, 18 नई प्रयोगशालाओं का विकास किया जा रहा है, जिसमें 28 प्रयोगशालाओं को एलपीए सुविधाओं के साथ अपग्रेड किया जा रहा है। लिक्विड कल्चर-आधारित डीएसटी को पूरे भारत में लाइनजोलिड और पायराजिनामाइड तक विस्तारित किया गया है और एनआरएल में बेडाक्विलीन, डेलामैनिड और क्लोफाजिमाइन के लिए डीएसटी क्षमताएँ विकसित की जा रही हैं।

दवा प्रतिरोधी टीबी की निगरानी के लिए शुरू में उपयोग किए जाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर की टीबी प्रयोगशालाओं में पांच संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण प्लेटफॉर्म और एक पायरोसीक्वेंसर को तैनात किया गया है। मशीन लर्निंग (एमएल) के माध्यम से एलपीए परिणाम व्याख्या के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए स्वचालित समाधान भी विकसित किए जा रहे हैं।

विकेन्द्रीकृत दवा प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) उपचार सेवाएं प्रदान करने के लिए 793 डीआर-टीबी केंद्रों को सक्रिय किया गया, जिसमें 173 नोडल डीआर-टीबी केंद्र शामिल हैं। भारत के सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में नई दवाओं के साथ इंजेक्शन मुक्त लंबे समय तक मौखिक एमडीआर-टीबी आहार की पहुंच का विस्तार किया गया। वर्ष के दौरान, (जनवरी-सितंबर) 37,005 एमडीआर/आरआर-टीबी रोगियों का निदान किया गया और 33,224 (90%) का उचित उपचार किया गया। इसमें 10,105 एम/एक्सडीआर-टीबी रोगी शामिल थे, जिन्हें जनवरी और सितंबर 2021 के बीच लंबे समय तक मौखिक एमडीआर-टीबी आहार दिया गया था।

टीबी-मधुमेह सहयोगी सेवाओं के तहत, 86 प्रतिशत टीडीसी अब मधुमेह जांच सुविधाओं के साथ सह-स्थित हैं। सभी सूचित टीबी रोगियों में से 82 प्रतिशत की 2021 (जनवरी-सितंबर) में मधुमेह के लिए जांच की गई है।

एनटीईपी ने 2015 के स्तर की तुलना में टीबी के मामलों में गिरावट के चरणबद्ध उपलब्धियों के साथ मापे गए कांस्य, रजत और स्वर्ण श्रेणियों के तहत "टीबी मुक्त स्थिति की दिशा में प्रगति" प्राप्त करने के लिए जिलों/राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का उप-राष्ट्रीय प्रमाणन भी शुरू किया है। राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान, डब्ल्यूएचओ इंडिया और इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन से बनी एक राष्ट्रीय टीम द्वारा स्वतंत्र सत्यापन पर जिलों/राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को श्रेणियों के तहत प्रमाणित किया जाता है। देश भर में कुल 3 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य 67 जिलों ने विभिन्न श्रेणियों के तहत दावे किए। केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले को देश का पहला टीबी मुक्त केंद्र शासित प्रदेश और जिला घोषित किया गया है।

निक्षय पोषण योजना (एनपीवाई) के तहत एनटीईपी ने पोषण संबंधी जरूरतों के लिए वित्तीय सहायता के रूप में 52.53 लाख से अधिक टीबी रोगियों को कुल 1,373 करोड़ रुपये का वितरण किया है।  

जुलाई 2021 तक, लगभग 616 जिले पीएफएमएस में डीएससी आधारित अनुमोदन में चले गए हैं। निक्षय को सोच (एचआईवी लाभार्थियों के लिए समग्र देखभाल को मजबूत करना) और आयुष्मान भारत एचडब्ल्यूसी-सीपीएचसी पोर्टल्स के साथ एकीकृत करने पर काम चल रहा है।

इस वर्ष, टीबी निवारक उपचार (टीपीटी) का विस्तार किया गया, जिसमें पांच वर्ष से ऊपर के बच्चों, किशोरों और टीबी रोगियों के वयस्क घरेलू संपर्कों को शामिल किया गया है, जिसमें जनवरी और सितंबर 2021 के बीच टीबी रोगियों के 47,695 बाल संपर्कों को निवारक केमोप्रोफिलैक्सिस दिए गए थे। 2022 तक सभी राज्यों को कवर करने के लिए इसे व्यवस्थित रूप से विस्तारित किया जाएगा।

टीबी की रोकथाम और प्रबंधन के लिए समुदाय आधारित सेवाओं का विस्तार करने और सेवाओं को समुदाय के करीब लाने के लिए, टीबी को अब आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के साथ एकीकृत किया गया है। एनटीईपी ने एचडब्ल्यूसी के माध्यम से टीबी सेवाएं प्रदान करने के लिए लगभग 3,326 सीएचओ का प्रशिक्षण पूरा किया। 829 सीएचओ को एक्टिव केस फाइंडिंग को लेकर प्रशिक्षित किया गया। 24 राज्यों में कुल 447 जिलों के लिए घरेलू बजटीय संसाधनों के माध्यम से रोगी प्रदाता सहायता एजेंसियों (पीपीएसए) को मंजूरी दी गई है। उपलब्ध साधनों के माध्यम से, देश भर में 484 गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और निजी सेवा प्रदाताओं को इस काम में शामिल किया गया। 

चिकित्सा हस्तक्षेप से परे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए, एनटीईपी ने अन्य मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, कॉरपोरेट्स, उद्योगों, पेशेवर संघों, मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों, निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, विकास भागीदारों और विभिन्न समुदाय के साथ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सफलतापूर्वक काम किया है। उपचार, निदान, रसद और आपूर्ति श्रृंखला, निगरानी और निगरानी, ​​प्रौद्योगिकी संचालित हस्तक्षेप, परिचालन अनुसंधान आदि जैसे टीबी देखभाल सेवाएं के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समुदायों के साथ मिलकर काम किए गए। एनटीईपी 400 से अधिक संगठनों तक पहुंचने में कामयाब रहा है, जिनमें से 130 ने कॉर्पोरेट टीबी संकल्प (सीटीपी) पर हस्ताक्षर किए हैं।

इस वर्ष, भयंकर महामारी के बावजूद, एनटीईपी ने टीबी मुक्त भारत अभियान (टीएमबीए) को जन आंदोलन के रूप में शुरू किया, ताकि टीबी के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके, समाज में बीमारी को लेकर गहरी बैठी धारणा को दूर किया जा सके, कार्यक्रम के तहत उपलब्ध टीबी देखभाल सेवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके, और समुदाय में लोग टीबी देखभाल सेवाओं का लाभ ले सकें। टीएमबीए अभियान का उद्देश्य देश के सभी क्षेत्रों के सभी 134 करोड़ लोगों को शामिल करना है, जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधि और राज्य सरकार नेतृत्व शामिल हैं, ताकि इसे एक जन आंदोलन बनाया जा सके और सरकार के प्रयासों को सामुदायिक भागीदारी से आगे बढ़ाया जा सके।

5. तंबाकू नियंत्रण और नशीली दवाओं की लत के उपचार के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम [एनपीटीसीडीएटी]

  • तंबाकू सेवन के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। इस संबंध में देश के छोटे बच्चों और नागरिकों के लिए मायगॉव प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऑनलाइन प्रतियोगिताओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के तहत, डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित किया जा रहा है और जिला स्तर से नीचे की गतिविधियों की ऑनलाइन रिपोर्टिंग प्रदान करने के लिए राज्यों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल/सूचना विज्ञान प्रणाली का प्रबंधन विकसित किया गया है। राज्य भी ऑनलाइन रिपोर्टिंग/रियल टाइम डेटा के महत्व की सराहना कर रहे हैं और इसमें पूर्ण रूप से भाग ले रहे हैं।
  • 13-15 साल (8वीं, 9वीं और 10वीं कक्षा के बीच) के युवाओं में तंबाकू के इस्तेमाल की व्यापकता को मापने और प्रमुख तंबाकू नियंत्रण संकेतकों पर नजर रखने के लिए मंत्रालय ने वैश्विक युवा तंबाकू सर्वेक्षण, 2019 (जीवाईटीएस-4) किया। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा वैश्विक युवा तंबाकू सर्वेक्षण (जीवाईटीएस-4), 2019 की राष्ट्रीय तथ्य-पत्र जारी की गई। परिणामों के अनुसार, वर्तमान उपयोग में 42% (2009 से 2019 तक) की गिरावट आई है। यह पहला जीवाईटीएस है जो हमें राष्ट्रीय स्तर के अनुमानों के अलावा राज्य स्तर के अनुमान भी प्रदान करता है।
  • भारत तंबाकू नियंत्रण के लिए प्रतिबद्ध है। एजेंडा को आगे बढ़ाते हुए और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाते हुए, भारत ने जिनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन-फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर टोबैको कंट्रोल (डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी) के पक्षकार सम्मेलन (सीओपी-9) के नौवें सत्र के लिए आयोजित परिचर्चा में भाग लिया। भारत ने तंबाकू उत्पादों में अवैध व्यापार को खत्म करने के लिए प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए पार्टियों (देशों) का समर्थन करने के लिए पार्टी ब्यूरो की बैठक की अध्यक्षता भी ग्रहण की।
  • पदार्थ उपयोग विकार (एसयूडी) में मानसिक स्थिति बिगाड़ने वाले पदार्थों के लगातार दुरुपयोग के कारण होने वाली समस्याओं का पूरा एक विवरण शामिल है, और यह हानिकारक उपयोग से लेकर निर्भरता तक हो सकता है। इस महत्व को ध्यान में रखते हुए कि चिकित्सक पदार्थ उपयोग विकार की समस्याओं की प्रभावी ढंग से पहचान, निदान और प्रबंधन करने में सक्षम हैं, "पदार्थ उपयोग विकार और व्यवहारगत व्यसनों के प्रबंधन के लिए मानक उपचार दिशानिर्देश" जारी किया गया। इन दिशानिर्देशों को प्राथमिक देखभाल व्यवस्था में सामान्य चिकित्सकों के लिए इन विकारों के मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए एक संसाधन सामग्री के रूप में विकसित किया गया है।

6. प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई)

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) में देश के वंचित क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और नैदानिक देखभाल में तृतीयक स्वास्थ्य क्षमता के निर्माण की परिकल्पना की गई है। इसका उद्देश्य सस्ती/विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना और देश में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा के लिए सुविधाओं में वृद्धि करना है। इस योजना के दो प्रमुख घटक हैं:

  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना;
  • मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों (जीएमसीआई) का उन्नयन।

इस योजना के तहत अब तक 22 नए एम्स की स्थापना और मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों (जीएमसीआई) की 75 उन्नयन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

6.1 चरण- I के तहत छह एम्स:

चरण- I के तहत स्वीकृत छह एम्स (एम्स-भोपाल, एम्स-भुवनेश्वर, एम्स-जोधपुर, एम्स-पटना, एम्स-रायपुर और एम्स-ऋषिकेश) पहले से ही पूरी तरह कार्यरत हैं। इमरजेंसी, ट्रॉमा सेंटर, ब्लड बैंक, आईसीयू, डायग्नोस्टिक और पैथोलॉजी जैसी सभी प्रमुख अस्पताल सुविधाएं और सेवाएं काम कर रही हैं।

इस वर्ष के दौरान इन अस्पतालों में 450 से अधिक बिस्तरों की वृद्धि हुई।

इस साल के दौरान पीजी की 100 और एमबीबीएस की 150 सीटों की बढ़ोतरी की गई है।

इस वर्ष के दौरान इन एम्स में कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए समर्पित अस्पताल ब्लॉक और कोविड जांच प्रयोगशाला को कार्यात्मक बनाया गया। लगभग 13 एम्स लगभग 2006 बिस्तरों के साथ कोविड उपचार और जांच सुविधा प्रदान कर रहे हैं, जिसमें आईसीयू में 918 वेंटिलेटर बेड शामिल हैं, जो जून 2021 में कोविड महामारी के चरम के दौरान चालू थे।

6.2 चरण- II, III, IV, V, VI और VII के तहत अन्य नए एम्स:

बाद के चरणों में 16 एम्स को कैबिनेट द्वारा स्वीकृत/मंजूर किया गया है। इन संस्थानों में निम्नलिखित सुविधाओं और सेवाओं को कार्यात्मक बनाया गया है:

7 एम्स- नागपुर, रायबरेली, मंगलगिरी, गोरखपुर, बठिंडा, बीबीनगर और कल्याणी में सीमित ओपीडी सेवाएं पहले से ही काम कर रही हैं। देवघर और बिलासपुर में सीमित ओपीडी सुविधाएं वर्ष के दौरान शुरू हो गई हैं। इस वर्ष के दौरान एम्स मंगलगिरी, एम्स नागपुर और एम्स बठिंडा में कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए सीमित आईपीडी सुविधाएं शुरू की गईं। एम्स मंगलगिरी, एम्स नागपुर और एम्स बठिंडा में भी कोविड जांच प्रयोगशाला काम कर रही है। एम्स गोरखपुर में 7-12-2021 से 300 बिस्तरों वाला आईपीडी शुरू हो गया है।

आठ नए एम्स- मंगलगिरी, नागपुर, रायबरेली, कल्याणी, गोरखपुर, बठिंडा, देवघर, बीबीनगर में प्रति एम्स प्रति वर्ष 100 सीटों के साथ और एम्स गुवाहाटी, जम्मू, राजकोट और बिलासपुर में 50-50 सीटों के साथ स्नातक एमबीबीएस पाठ्यक्रम  पहले से ही चालू है।

8 एम्स- रायबरेली, नागपुर, मंगलगिरी, कल्याणी, गोरखपुर, बठिंडा, बिलासपुर और देवघर में निर्माण कार्य अगले चरणों में है। इसके अलावा, गुवाहाटी (असम), अवंतीपुरा (कश्मीर), सांबा (जम्मू) और राजकोट (गुजरात) में एम्स के लिए निर्माण कार्य प्रगति पर है।

6.3. मौजूदा जीएमसीआई का उन्नयन:

उन्नयन कार्यक्रम में व्यापक रूप से सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक/ट्रॉमा केयर सेंटर आदि के निर्माण और/या मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों के लिए चिकित्सा उपकरणों की खरीद के माध्यम से तृतीयक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार की परिकल्पना की गई है।

योजना की शुरुआत के बाद से, मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों की 53 उन्नयन परियोजनाओं को पूरा किया गया है, जिसमें 2000 आईसीयू बेड सहित 12000 से अधिक सुपर-स्पेशियलिटी बेड शामिल हैं। इन उन्नयन परियोजनाओं में निर्मित सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉकों/ट्रॉमा सेंटरों को भी कोविड अस्पताल ब्लॉक के रूप में उपयोग किया जा रहा है। 2021-22 (नवंबर, 2021 तक) के दौरान निम्नलिखित 4 परियोजनाएं पूरी की गई हैं:

क्रमांक

जीएमसी/संस्थान का नाम

राज्य का नाम

चरण

सुविधा का प्रकार

कुल बिस्तर

आईसीयू बेड

सुपर स्पेशियलिटीज की संख्या

1

गोवा मेडिकल कॉलेज, पणजी

गोवा

III

एसएसएच

527

87

11

2

राजीव गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, आदिलाबाद

तेलंगाना

III

एसएसएच

210

42

8

3

अगरतला गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, त्रिपुरा

त्रिपुरा

III

एसएसएच

169

29

7

4

क्षेत्रीय नेत्र विज्ञान संस्थान (आरआईओ), आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी

उत्तर प्रदेश

V  (बी)

ओसी

-

-

1

 

 

 

7. चिकित्सा शिक्षा

  1. ऐतिहासिक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम अगस्त, 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया। अब, 25 सितंबर, 2020 से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन किया गया और वर्षों पुराने एमसीआई को भंग कर दिया गया और भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 निरस्त कर दिया गया। नियामक तंत्र में मुख्य परिवर्तन यह है कि नियामक मुख्य रूप से 'निर्वाचित' होने के बजाय 'चयनित' होगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चिकित्सा शिक्षा में सुधारों को आगे बढ़ाएगा। इसमें यूजी और पीजी सीटों में वृद्धि के साथ-साथ गुणवत्ता और सस्ती चिकित्सा शिक्षा तक बेहतर पहुंच और चिकित्सा पेशे में उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखना शामिल होगा। एनएमसी जिन प्रमुख क्षेत्रों में काम करेगा उनमें शामिल हैं - चिकित्सा स्नातकों के लिए नेशनल एग्जिट टेस्ट (नेक्स्ट) को लागू करना, निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में 50% सीटों के लिए शुल्क के निर्धारण के लिए दिशानिर्देश, सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए नियम निर्धारित करना और मेडिकल कॉलेज की रेटिंग करना।
  2. पिछले छह वर्षों के दौरान, एमबीबीएस सीटों में 72% की वृद्धि हुई, 2014 में 51,348 सीटें थीं जो बढ़कर 2021 में 88,120 सीटें हो गईं और पीजी सीटों की संख्या 78% बढ़ी हैं, जो 2014 की 30,185 सीटों से बढ़कर 2021 में 55,595 सीटें हो गई।
  3. इसके अलावा, इसी अवधि के दौरान, 209 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए हैं और अब देश में 596 (सरकारी: 313, निजी: 283) मेडिकल कॉलेज हैं।
  4. नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए केंद्रीय प्रायोजित योजना के तहत तीन चरणों में 157 मेडिकल कॉलेजों की स्थापना को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 70 चालू हो गए हैं और शेष कुछ ही वर्षों में चालू हो जाएंगे। इन 157 कॉलेजों में से 39 देश के आकांक्षी जिलों में आते हैं, जिससे चिकित्सा शिक्षा में असमानता के मुद्दों का समाधान हो रहा है।
  5. न्यूनतम मानक आवश्यकताओं (एमएसआर) का युक्तिकरण: मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए एमएसआर को सुव्यवस्थित किया गया है। इससे नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की लागत कम होगी और प्रवेश क्षमता में वृद्धि होगी।
  6. राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड द्वारा एमबीबीएस के बाद दो वर्षीय डिप्लोमा: स्नातकोत्तर छात्रों की कमी को पूरा करने और देश के दूरदराज के हिस्सों में स्वास्थ्य सेवा बढ़ाने के लिए डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) ने आठ विषयों में डिप्लोमा शुरू किया है जो हैं- एनेस्थीसिया, स्त्री रोग और प्रसूति, बाल रोग, ईएनटी, नेत्र विज्ञान, पारिवारिक चिकित्सा, तपेदिक और छाती के रोग और मेडिकल रेडियोडायग्नोसिस।
  7. स्नातकोत्तर के लिए जिला रेजिडेंसी योजना: एमसीआई ने स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के एक अनिवार्य घटक जिला अस्पतालों में पीजी मेडिकल छात्रों के अनिवार्य तीन महीने के प्रशिक्षण के लिए जिला रेजीडेंसी योजना के रूप में जानी जाने वाली एक योजना भी अधिसूचित की है। योजना के तहत मेडिकल कॉलेजों के पीजी द्वितीय/तृतीय वर्ष के छात्रों को जिला अस्पतालों में तीन महीने की अवधि के लिए तैनात किया जाएगा।
  8. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन ने चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधार की शुरुआत की है। इसी तरह, सरकार मौजूदा भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम, 1947 और दंत चिकित्सक अधिनियम, 1948 को बदलने के लिए सुधारात्मक कानून लाकर नर्सिंग और दंत चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्रों में संस्थागत सुधार लाने का प्रयास कर रही है। संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में शामिल विभिन्न व्यवसायों के लिए एक नियामक निकाय की लंबे समय से चली आ रही कमी को दूर करने के लिए, राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय अधिनियम 2021 पहले ही अधिनियमित किया जा चुका है। इन सभी व्यावसायिक शिक्षा क्षेत्रों में जो मूल आधार और सैद्धांतिक परिवर्तन हो रहा है, वह यह है कि नियामक अब 'निर्वाचित' नियामक के विपरीत 'योग्यता के आधार पर' चुना जा रहा है।

8. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), नई दिल्ली, जैव चिकित्सा अनुसंधान के नियमन, समन्वयन और संवर्धन के लिए भारत का शीर्ष निकाय है और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) के तहत अब दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है। .

परिषद की अनुसंधान प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के साथ मेल खाती हैं जैसे संचारी रोगों का नियंत्रण और प्रबंधन, प्रजनन नियंत्रण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण संबंधी विकारों का नियंत्रण, स्वास्थ्य देखभाल वितरण के लिए वैकल्पिक रणनीति विकसित करना, पर्यावरण और पेशेगत स्वास्थ्य समस्याओं की सुरक्षा सीमाओं के भीतर नियंत्रण ; कैंसर, हृदय रोग, अंधापन, मधुमेह और अन्य चयापचय और रुधिर संबंधी विकारों जैसे प्रमुख गैर-संचारी रोगों पर अनुसंधान; मानसिक स्वास्थ्य और औषधि अनुसंधान (पारंपरिक उपचार सहित) ये सभी प्रयास बीमारी के कुल बोझ को कम करने और लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किए गए हैं।

आईसीएमआर ने अपने पेशेवर विकास प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से चिकित्सा अनुसंधान के भविष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है। इसमें चिकित्सा और चिकित्सा अनुसंधान में करियर की तैयारी करने वालों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं और अल्पकालिक शोध छात्रवृत्ति शामिल हैं। इसमें अनुसंधान फेलोशिप और आगामी शोधकर्ताओं के लिए अपने करियर की शुरुआत में अपने कौशल और ज्ञान का विस्तार करने के लिए अल्पकालिक विजिटिंग फेलोशिप भी शामिल है। आईसीएमआर सेवानिवृत्त चिकित्सा वैज्ञानिकों और शिक्षकों को विशिष्ट विषयों पर शोध जारी रखने में सक्षम बनाने के लिए एमेरिटस वैज्ञानिक पदों की भी पेशकश करता है।

हर महाद्वीप में फैले अनुसंधान सहयोग के साथ आईसीएमआर का प्रभाव दुनिया भर में फैला है। आईसीएमआर के समझौता ज्ञापन (एमओयू) के माध्यम से, आईसीएमआर ने कैंसर, मधुमेह, संक्रामक रोगों और टीका विकास जैसे प्रमुख स्वास्थ्य मुद्दों पर ठोस प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दुनिया भर के प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ भागीदारी की है। ये भागीदारियां वैज्ञानिक सूचनाओं के आदान-प्रदान, प्रशिक्षण, संयुक्त परियोजनाओं और बैठकों, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और परिचर्चाओं की प्रस्तुतियों के सह-लेखन की सुविधा प्रदान करती हैं।

आंतरिक अनुसंधान

आतंरिक अनुसंधान कई फील्ड स्टेशनों वाले 27 संस्थानों/केंद्रों के एक देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से किया जाता है, जिनमें से 14 संचारी रोगों के क्षेत्र में काम करते हैं; 6 गैर-संचारी रोगों के क्षेत्र में, 1 प्रजनन और बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) से संबंधित रोगों के क्षेत्र में; 1 पोषण और पोषण संबंधी कमी के क्षेत्र में, 3 हेमोग्लोबिनोपैथी और पारंपरिक चिकित्सा सहित मौलिक चिकित्सा विज्ञान से संबंधित रोग के क्षेत्र में, 1 पशु प्रजनन और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करता है और एक रोगी देखभाल और अनुसंधान केंद्र है।

बाह्य अनुसंधान

मेडिकल कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अन्य गैर-आईसीएमआर अनुसंधान संस्थानों के चयनित विभागों में मौजूदा विशेषज्ञता और अवसंरचना वाले विभिन्न अनुसंधान क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान केंद्रों की स्थापना के माध्यम से आईसीएमआर बाह्य अनुसंधान को बढ़ावा देता है। कार्यबल के अध्ययन भी किए जाते हैं जो स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्यों, विशिष्ट समय सीमा, मानकीकृत और समान पद्धति और प्राय: एक बहु-केंद्रित संरचना के साथ समयबद्ध, लक्ष्य-उन्मुख दृष्टिकोण पर जोर देते हैं।

देश के विभिन्न भागों में स्थित गैर-आईसीएमआर अनुसंधान संस्थानों, मेडिकल कॉलेजों, विश्वविद्यालयों आदि में वैज्ञानिकों से प्राप्त सहायता अनुदान के लिए प्राप्त आवेदनों के आधार पर ओपन एंडेड अनुसंधान।

वर्ष भर की उपलब्धियां:

  • कोविड-19 महामारी: आईसीएमआर कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रहा है। इस क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियां नीचे सूचीबद्ध हैं:
  • कोविड-19 जांच: कोविड-19 एक वैश्विक महामारी के रूप में उभरा है और इसने पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित किया है और इसके कारण काफी संख्या में मृत्यु हुई है। देश में जांच क्षमता का काफी विस्तार किया गया है। आरटी-पीसीआर आधारित जांच क्षमता में काफी अधिक वृद्धि हुई है, जिसका विस्तार देश के लगभग सभी हिस्सों में किया गया है। जनवरी 2020 में 1 लैब थी जो अक्टूबर 2021 तक बढ़कर कुल 3011 लैब (1336 सरकारी और 1677 निजी लैब) तक पहुंच गया। उच्च गुणवत्ता वाली जांच सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त जांच और संतुलन सुनिश्चित करने के बाद सभी प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है। सभी निजी प्रयोगशालाओं के लिए निर्दिष्ट दायरे के साथ एनएबीएल प्रत्यायन सुनिश्चित किया गया है। 23 मार्च, 2020 को केवल 20,000 जांच की तुलना में लैब नेटवर्क ने 26 मई, 2021 को 22 लाख से अधिक जांच किए। अब तक कुल 60 करोड़ जांच की गई हैं।
  • कोविड-19 टीका:

कोवैक्सीन: कोवैक्सीन एक स्वदेशी निष्क्रिय पूर्ण-विषाणु सार्स-सीओवी-2 वैक्सीन बीबीवी152 है। आईसीएमआर ने राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे में पृथक किए गए वायरस स्ट्रेन का उपयोग करके कोविड-19 के लिए पूरी तरह से स्वदेशी टीका विकसित करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) के साथ भागीदारी की है। तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण के परिणामों में इस टीका को 78% प्रभावी पाया गया है। बीबीवी152/कोवैक्सीन के साथ टीकाकरण द्वारा प्राप्त न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी अल्फा, काप्पा, गामा और बीटा वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी पाए गए। इसे आपातकालीन उपयोग अनुमति (ईयूए) दी गई और इसका उपयोग टीकाकरण के लिए शुरू किया गया।

कोविशील्ड: पूरी तरह से स्वदेशी टीका विकास पहल के अलावा, आईसीएमआर ने ऑक्सफोर्ड ग्रुप द्वारा विकसित कोविड-19 के लिए लाइव एटेन्यूएटेड रीकॉम्बिनेंट वैक्सीन के चरण I/II क्लिनिकल परीक्षण को फास्ट-ट्रैक करने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ सहयोग किया। इस टीके को आपातकालीन उपयोग अनुमति (ईयूए) दी गई है और इसे सामूहिक टीकाकरण के लिए रोल आउट किया गया है।

 

  • कोविड-19 टीका प्रभावशीलता: आईसीएमआर ने चिंताजनक वेरिएंट (अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा) के साथ-साथ वास्तविक दुनिया की व्यवस्था में कोविड-19 टीकों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने के लिए कई अध्ययन किए हैं। आईसीएमआर ने यह भी प्रदर्शित किया है कि कोविड-19 टीका मृत्यु को रोकने में प्रभावी है (खुराक 1: 96.6% और खुराक 2: 97.5%)
  • कोविड-19 टीके की ड्रोन आधारित डिलीवरी: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री मनसुख मांडविया ने पूर्वोत्तर (आई-ड्रोन) में आईसीएमआर के ड्रोन रिस्पांस और आउटरीच का शुभारंभ किया। आई-ड्रोन भारत के स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के लिए आईसीएमआर द्वारा शुरू की गई एक और अग्रणी पहल है। बिष्णुपुर जिला अस्पताल से पीएचसी करंग तक टीकों के साथ पहली उड़ान भरी गई। बिष्णुपुर मैदानी इलाकों में स्थित है और पीएचसी करंग बिष्णुपुर जिले के लोकतक झील के द्वीप पर स्थित है। जिला अस्पताल बिष्णुपुर से पीएचसी करंग पहुंचने में लगभग 2.5 घंटे (सड़क मार्ग से 25 किमी, नाव से 3 किमी और ट्रेक से 2 किमी) लगते हैं। जबकि ड्रोन को बिष्णुपुर जिला अस्पताल से पीएचसी करंग पहुंचने में महज 15 मिनट का समय लगा। दक्षिण-पूर्व एशिया में मैदान से द्वीप तक ड्रोन के माध्यम से टीका पहुंचाने की यह पहली पहल है।
  • कोविड-19 तीसरा और चौथा राष्ट्रीय सीरो-सर्वे: कोविड-19  के लिए राष्ट्रीय सीरो-सर्वे के तीसरे और चौथे दौर ने पूरी आबादी में क्रमशः 24.1% और 67.6% की समग्र सीरो-प्रसार का प्रदर्शन किया। चौथे सीरोसर्वे ने प्रदर्शित किया कि एक तिहाई आबादी में एंटीबॉडी नहीं थी (अभी भी ~ 40 करोड़ लोगों की स्थिति कमजोर है) इस प्रकार, एंटीबॉडी के बिना राज्यों/जिलों/क्षेत्रों में संक्रमण की लहरों का खतरा होता है। राष्ट्रीय सीरो-सर्वेक्षण के चौथे दौर के निहितार्थ बताते हैं कि आशा की एक किरण है लेकिन आत्मसंतुष्टता के लिए कोई जगह नहीं है। गैर-आवश्यक यात्रा को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और पूरी तरह से टीकाकरण होने पर ही लोगों को यात्रा करना चाहिए।
  • अन्य संचारी रोग:
  • 2025 तक टीबी खत्म करें: टीबी उन्मूलन के प्रयासों में, टीबी के वास्तविक बोझ का आकलन करने के लिए लगभग 5 लाख आबादी को कवर करते हुए सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में 625 समूहों में राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण आयोजित किया गया था। इसने देश में उन हॉटस्पॉट्स की पहचान करने में मदद की है जहां त्वरित प्रयासों की आवश्यकता है।
  • मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन (मेरा) इंडिया: आईसीएमआर ने मेरा इंडिया पहल के तहत 32 परियोजनाओं को वित्त पोषित किया, जिसमें आठ व्यक्तिगत अध्ययन, और 24 बहु-केंद्रित परियोजनाएं टास्क फोर्स मोड के तहत चार विषयों पर आधारित थीं, जैसे कम घनत्व वाले संक्रमण का पता लगाना (एलडीआई); वेक्टर बायोनॉमिक्स, भौगोलिक सूचना प्रणाली और सामुदायिक व्यवहार। मेरा-इंडिया बहु-केंद्रित परियोजनाओं की मुख्य विशेषताओं में विशेषज्ञों द्वारा सलाह देना; अनुसंधान गुणवत्ता और आँकड़े की एकरूपता बनाए रखने के लिए मानक समान उद्देश्य और पद्धति; और व्यापक समीक्षा शामिल हैं। क्षमता निर्माण की दिशा में एक कदम के रूप में और युवा जांचकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, मेरा-इंडिया पहल ने बहु-केंद्रित परियोजना विषयों पर आईसीएमआर-एनआईएमआर में कार्यशालाओं का आयोजन किया। विश्व मलेरिया दिवस के अवसर पर, मेरा-इंडिया ने अप्रैल 2021 में एक डिजिटल अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। मेरा-इंडिया की शोध आउटरीच गतिविधियों के हिस्से के रूप में, मेरा-इंडिया दो ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला- "संक्रामक रोगों पर व्याख्यान श्रृंखला" और " विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला" का आयोजन कर रहा है, जिसमें हर महीने विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इन व्याख्यानों में दुनिया भर से बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया है।
  • "भारत में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत एंटीरेट्रोवायरल उपचार के प्रभाव मूल्यांकन" पर पहली ऐतिहासिक रिपोर्ट का विमोचन किया गया। एंटीरेट्रोवायरल उपचार (एआरटी), एचआईवी संक्रमण के लिए बहुऔषध उपचार, नाको द्वारा पूरे भारत में एचआईवी वाले वयस्कों और बच्चों को मुफ्त प्रदान किया जाता है। अध्ययन ने एंटीरेट्रोवायरल उपचार के उच्च प्रभाव को प्रदर्शित किया और दिखाया कि 5 साल के इलाज के बाद एआरटी कराने वाले लोगों की मृत्यु की आशंका आधी हो गई। एआरटी नहीं कराने वालों की तुलना में एआरटी कराने वाले व्यक्तियों में क्षय रोग की संभावना कम थी। 2012 और 2016 में एआरटी शुरू करने वाले और उपचार जारी रखने वाले लोगों के समूह ने वायरल लोड जांच करवाया और 90% से अधिक लोगों की जांच में उनके रक्त में वायरस पर्याप्त रूप से दबा हुआ पाया गया। एआरटी के 70% से अधिक लाभार्थियों ने समग्र रूप से जीवन की 'अच्छी' या 'बहुत अच्छी' गुणवत्ता की सूचना दी और 82% उत्पादक रूप से कार्यरत थे। एनएसीपी के तहत एआरटी कार्यक्रम को बहुत ही किफायती पाया गया।
  • गैर-संचारी रोग और पोषण
  • "क्लिनिको-पैथोलॉजिकल प्रोफाइल ऑफ कैंसर्स इन इंडिया: रिपोर्ट ऑफ हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्रीज, 2021" जारी: यह एनसीआरपी के तहत 96 एचबीसीआर से कैंसर के मामलों के आठ साल के आंकड़ों पर आधारित है। डेटा देश भर में इन केंद्रों को रिपोर्ट किए गए सभी कैंसर रोग के निदान और इलाज किए गए रोगियों से संबंधित है।  रिपोर्ट सभी साइटों के सापेक्ष कैंसर साइटों के अनुपात का एक सामान्य अवलोकन प्रस्तुत करती है, तंबाकू के उपयोग से जुड़ी साइटों में कैंसर, शुरुआती चरण वाले कैंसर और विभिन्न अंगों में कैंसर, जिसमें सिर और गर्दन, जठरांत्र संबंधी मार्ग, फेफड़े, प्रोस्टेट, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, थायराइड, गुर्दे, मूत्राशय, चाइल्डहुड और स्तन सहित स्त्री रोग संबंधी कैंसर शामिल हैं। 2012-19 के दौरान एनसीआरपी के तहत 96 अस्पतालों से कुल 1332207 कैंसर के मामले दर्ज किए गए। 610084 कैंसर में से 319098 (52.4%) पुरुषों में और 290986 (47.6%) महिलाओं में कैंसर के मामले दर्ज किए गए। बच्चों के कैंसर (0-14 वर्ष) के मामले सभी कैंसर के 4.0%  थे। तंबाकू के उपयोग से जुड़ी साइटों में कैंसर में पुरुषों में 48.7% कैंसर और महिलाओं में 16.5% कैंसर के मामले शामिल थे।
  • "भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में कैंसर और संबंधित स्वास्थ्य संकेतकों की रूपरेखा" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) में कैंसर के नए मामलों की संख्या 2020 में अनुमानित 50,317 की तुलना में 2025 तक बढ़कर 57,131 हो जाने की आशंका है। ये अनुमान सभी आठ राज्यों में ग्यारह जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (पीबीसीआर) द्वारा संकलित कैंसर के आंकड़ों पर आधारित हैं। रिपोर्ट में 2012 से 2016 तक असम, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में सात अस्पताल आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (एचबीसीआर) के आंकड़े भी शामिल हैं।
  • भारत में सात प्रमुख केंद्रों निमहंस (बेंगलुरु), एम्स (नई दिल्ली), एससीटीआईएमएसटी (त्रिवेंद्रम), निम्स (हैदराबाद), अपोलो अस्पताल (कोलकाता), मणिपाल अस्पताल (बेंगलुरु) और जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के सामूहिक प्रयास से मुद्रा टूलबॉक्स जारी किया गया। मुद्रा टूलबॉक्स भारत के मनोभ्रंश और हल्के संज्ञानात्मक क्षीणता शोध और नैदानिक प्रक्रियाओं को बदलने के लिए आईसीएमआर न्यूरो कॉग्निटिव टूल बॉक्स (आईसीएमआर-एनसीटीबी) कंसोर्टियम द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है।
  • 1990 से 2019 तक भारत के हर राज्य में तंत्रिका संबंधी विकारों और उनकी प्रवृत्ति से जुड़ी बीमारी के मामलों का पहला व्यापक अनुमान जारी किया गया
  • भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल: इस परियोजना का विस्तार 19 राज्यों के 100 जिलों में किया गया है, जिसमें 7800 से अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं शामिल हैं। 17 लाख से अधिक उच्च रक्तचाप के रोगी और 4 लाख से अधिक मधुमेह रोगी पंजीकृत किए गए हैं। राज्यों में 2021 की पहली तिमाही के दौरान रोगियों में रक्तचाप नियंत्रण दर 33% से 61% के बीच दर्ज की गई थी।
  • मोबाइल स्ट्रोक यूनिट का उपयोग करने वाले स्ट्रोक केयर पाथवे: एएमसी, डिब्रूगढ़, टीएमसी और बीसीएच, तेजपुर में स्ट्रोक इकाइयां स्थापित की गई हैं। तेजपुर और डिब्रूगढ़ में मोबाइल स्ट्रोक इकाइयां हैं। टीएमसी, तेजपुर में कोई न्यूरोलॉजिस्ट नहीं है और चिकित्सकों को स्ट्रोक के मामलों को संभालने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। टीएमसी, तेजपुर स्ट्रोक यूनिट ने 4 मरीजों में थ्रोम्बोलिसिस किया है जबकि बीसीएच ने अब तक 6 मरीजों में थ्रोम्बोलिसिस किया है। तेजपुर में एमएसयू ने अपना ड्राई रन पूरा किया। तेजपुर में दो मरीजों को एमएसयू के लिए बुलाया। एक रक्तस्रावी स्ट्रोक का मामला था, जबकि दूसरा स्ट्रोक मिमिक का था। एएमसी, डिब्रूगढ़ में एमएसयू में सीटी स्कैनर का उपयोग इस्केमिक स्ट्रोक के रोगियों की पहचान करने के लिए एक रोगी में किया गया था और लक्षण शुरू होने के 3 घंटे के भीतर एक थ्रोम्बोलाइटिक दवा दी गई थी।
  • मिशन दिल्ली: यह परियोजना एसटीईएमआई रोगियों को प्री-हॉस्पिटल थ्रोम्बोलिसिस प्रदान करने के लिए मोटरसाइकिल एम्बुलेंस का उपयोग करती है। एम्स के कॉल सेंटर को 263 आपातकालीन कॉल मिलीं, जिसके लिए एक मोटरसाइकिल एम्बुलेंस भेजी गई और 586 ईसीजी किए गए और एम्स को भेजा गया। इनमें से 114 ईसीजी परिवर्तनों के साथ हृदय संबंधी आपात स्थिति थी, 36 तीव्र कोरोनरी सिंड्रोम के मामले थे, जिनमें से 18 एसटीईएमआई के मामले थे। टीम ने इन एसटीईएमआई रोगियों में से 11 को उनके घर पर ही थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी दी और सात मरीज जो थ्रोम्बोलिसिस के लिए पात्र नहीं थे उन्हें अस्पताल लाया गया और 3 मामलों में प्राथमिक पीसीआई और 2 मामलों में बचाव पीसीआई किया गया।
  • एसटीईएमआई एक्ट: इस परियोजना का उद्देश्य एक जिले में हब और स्पोक मॉडल का उपयोग करके थ्रोम्बोलिसिस दरों में सुधार करना है। जहां हब एक मेडिकल कॉलेज है और स्पोक सीएचसी, सिविल अस्पताल और जिला अस्पताल हैं। यह परियोजना 6 राज्यों के 7 जिलों में शुरू की गई है। शिमला, हिमाचल प्रदेश के केंद्र ने शिमला जिले में इस परियोजना को सफलतापूर्वक लागू किया है, जहां स्पोक ने 52 एसटीईएमआई रोगियों और हब ने 60 रोगियों को थ्रोम्बोलिसिस किया। अप्रैल 2021 में एसीएस के 47 मामले थे जिनमें से 27 एसटीईएमआई मामले थे। इन 27 मरीजों में से 16 को स्पोक द्वारा हब अस्पताल रेफर कर दिया गया। 16 में से 10 रोगियों का स्पोक केंद्रों (सिविल अस्पताल, रोहड़ू; एमजीएमएस, खनेरी, सिविल अस्पताल, नेरवा; सीएचसी, कोटखाई) में थ्रोम्बोलिसिस किया गया था; हब अस्पताल में 11 में से 5 रोगियों का थ्रोम्बोलिसिस किया गया। 12 मरीज विंडो पीरियड से बाहर थे।
  • बायोमेडिकल इंफॉर्मेटिक्स (बीएमआई)
  • राष्ट्रीय कोविड-19 जांच आंकड़ा प्रबंधन प्रणाली

यह प्रणाली जांच के सभी प्रकारों (आरटीपीसीआर, सीबीएनएएटी, ट्रूनेट और आरएटी) के लिए नमूना प्रकार, जीन और सीटी मान सहित जांच संबंधी जानकारी के साथ-साथ व्यक्तिगत जनसांख्यिकी, यात्रा इतिहास और श्रेणी संबंधी जानकारियां एकत्र करती है। इस प्रणाली को (i) सीधे सिस्टम में डेटा सबमिट करने वाली प्रयोगशालाएं (ii) आरटीपीसीआर ऐप के साथ लिंकेज के माध्यम से नमूना संग्रह डेटा (iii) राज्य (यूपी, बिहार, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना) एप्लिकेशन से एपीआई द्वारा पुश किए गए डेटा से इनपुट मिलता है। इस प्रणाली ने भारत के सभी राज्यों में कई प्रयोगशालाओं से लगभग साठ करोड़ अंठावन लाख पच्चासी हजार सात सौ उनहत्तर (28 अक्टूबर, 2021 तक) व्यक्तिगत जांच रिकॉर्ड एकत्र किया है। विभिन्न हितधारकों (कैबिनेट सचिवालय, पीएमओ, एमओएचएफडब्ल्यू, आईसीएमआर, राज्य स्वास्थ्य सचिवों, राज्य निगरानी अधिकारियों, जिला मजिस्ट्रेटों/कलेक्टरों और जिला निगरानी अधिकारियों) को भूमिका आधारित डैशबोर्ड प्रदान किए गए हैं जो की गईं जांचों, जांच संक्रमण दर, राज्य और लैब टीएटी के लिए वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करते हैं। डैशबोर्ड के अलावा, हितधारकों (एनडीएमए, एमओएचएफडब्ल्यू, एनआईसी, एनएचए और राज्यों) को भी उनके अनुप्रयोगों में डेटा फीड करने के लिए विशिष्ट एपीआई प्रदान किए गए हैं।

  • राष्ट्रीय कोविड किट सत्यापन प्रणाली

 प्रणाली को किट सत्यापन प्रक्रिया में दक्षता में सुधार के लिए विकसित किया गया है। प्रणाली में तीन मॉड्यूल होते हैं: (i) वेंडर मॉड्यूल जहां एक विक्रेता सत्यापन के लिए किट को पंजीकृत करता है, किट सत्यापन प्रक्रिया की प्रगति को देखता है और सत्यापन परिणामों को देखता/डाउनलोड करता है (ii)आईसीएमआर मॉड्यूल जहां आईसीएमआर प्रस्तुत किट संबंधी सूचना को देख/स्वीकार/अस्वीकार कर सकता है, सत्यापन केंद्र को किट सौंप सकता है और प्रसार के लिए परिणामों को अनुमोदित कर सकता है। (iii) सत्यापन केंद्र मॉड्यूल जहां चयनित केंद्र किट का परीक्षण करने के बाद सत्यापन परिणाम अपलोड करता है। विभिन्न हितधारकों के लिए रीयल-टाइम डेटा एनालिटिक्स विकसित किए गए हैं और नियमित रिपोर्ट हितधारकों के साथ साझा की जा रही हैं।

  • लैब क्षमता और क्यूसी/क्यूए प्रबंधन प्रणाली

कोविड क्यूए-क्यूसी पोर्टल को प्रयोगशालाओं के लिए गुणवत्ता नियंत्रण डेटा के रखरखाव के लिए डिजाइन और विकसित किया गया है। आईसीएमआर पोर्टल में कोविड जांच के लिए पंजीकृत सभी लैब एक त्रैमासिक गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकॉल से गुजरते हैं, जहां कुछ पॉजिटिव और निगेटिव नमूने जांच के लिए क्यूसी लैब में भेजे जाते हैं। क्यूसी प्रक्रिया एक त्रिस्तरीय प्रक्रिया है। शीर्ष स्तर पर एनआईवी, पुणे है जो राष्ट्रीय क्यूसी प्रयोगशाला है। सभी क्यूसी प्रयोगशालाएं एनआईवी पुणे के साथ गुणवत्ता नियंत्रण गतिविधि करती हैं। जांच प्रयोगशाला उनकी नामित क्यूसी प्रयोगशालाओं के साथ समान प्रक्रिया से गुजरती है। वर्तमान में, देश में सभी आरटीपीसीआर लैब के लिए पोर्टल लॉन्च किया गया है। जांच प्रयोगशाला पोर्टल में नमूना विवरण भरती है। इसी तरह के नमूना विवरण क्यूसी प्रयोगशालाओं द्वारा दर्ज किए जाते हैं। दोनों जांचों के परिणाम आईसीएमआर को दिखाई देते हैं, जिन्हें बाद में संगत या असंगत के रूप में चिह्नित किया जाता है। रिपोर्ट तब क्यूसी और जांच प्रयोगशालाओं दोनों के लिए ऑनलाइन दिखाई देती है, इस प्रकार पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता दिखती है।

  • जल जीवन मिशन पोर्टल

विभाग ने पानी की गुणवत्ता पर डेटा एकत्र करने के लिए भारत के जल जीवन मिशन के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है जो उपयोगकर्ताओं के लिए देश भर में लगभग 2,000 प्रयोगशालाओं के नेटवर्क के साथ-साथ फील्ड टेस्ट किट (एफटीके) का इस्तेमाल कर व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के माध्यम से पीने के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करना संभव बना देगा।

  • नई अवसंरचना
    • उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र की क्षेत्रीय स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, गोरखपुर की स्थापना की गई। इसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया था।
    • माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, डॉ मनसुख मांडविया ने राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान, चेन्नई में आईसीएमआर स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के नए भवन की आधारशिला रखी।
    • उच्च जोखिम वाले रोगजनक़ों पर अनुसंधान करने के लिए आईसीएमआर-राष्ट्रीय जलमा कुष्ठ रोग और अन्य माइकोबैक्टीरियल रोग संस्थान, आगरा में अत्याधुनिक बीएसएल -3 सुविधा का उद्घाटन किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने किया था।
    • आईसीएमआर-राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान, भोपाल के नए पर्यावरण के अनुकूल भवन का उद्घाटन किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने किया था।
  • अन्य उपलब्धियाँ
    • चिकित्सा उपकरण तथा निदान क्षेत्र में रणनीतिक मेक-इन-इंडिया उत्पाद विकास और उनके व्यावसायीकरण के लिए उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) की स्थापना करके "आईआईटी में आईसीएमआर केंद्र" की स्थापना की गई।
    • 'सर्वेक्षणों में डेटा गुणवत्ता के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश' जारी किए गए। सर्वेक्षणों में डेटा गुणवत्ता के लिए दिशानिर्देशों का उद्देश्य सर्वेक्षण डिजाइन, डेटा संग्रह और विश्लेषण के दौरान होने वाली त्रुटियों और पूर्वाग्रहों को कम करने के लिए व्यापक मार्गदर्शक सिद्धांत और सर्वोत्तम पद्धति प्रदान करना है, जिससे सर्वेक्षणों में डेटा गुणवत्ता सुनिश्चित करना, विशेष रूप से जनसांख्यिकीय, स्वास्थ्य और पोषण सर्वेक्षण के लिए।
  • यूएनईपी और आईसीएमआर ने एक नई सहयोगात्मक परियोजना- "भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) के पर्यावरणीय आयाम के लिए प्राथमिकताएं" शुरू की, एएमआर के पर्यावरणीय आयाम को पहचानने और संबोधित करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • आईसीएमआर-मानव संसाधन विकास (एचआरडी) संभाग में चल रहे विभिन्न फेलोशिप कार्यक्रमों और वित्तीय सहायता योजनाओं के तहत, आईसीएमआर ने राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा के माध्यम से जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ)-2020 के लिए कुल 138 उम्मीदवारों (जीवन विज्ञान के लिए 126 और सामाजिक विज्ञान के लिए 12 उम्मीदवारों) का चयन किया। 2021 का परिणाम घोषित होना बाकी है। आईसीएमआर-अल्पकालिक छात्रवृत्ति (एसटीएस)-2020 कार्यक्रम के लिए कुल 1252 मेडिकल/डेंटल अंडरग्रेजुएट्स का चयन किया गया। आईसीएमआर-पोषण नैदानिक वैज्ञानिक (एनसीएस) योजना के परिणाम की समीक्षा की जा रही है और अभी भी घोषित किया जाना बाकी है। वर्ष 2021 में आईसीएमआर-पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप (पीडीएफ) के पुरस्कार के लिए ग्यारह (11) उम्मीदवारों का चयन किया गया था। एमडी/पीएचडी कार्यक्रम तीन विश्वविद्यालयों में चल रहा है और वर्ष 2021 में केवल छह (06) छात्र शामिल हुए हैं। कुल 102 अध्येताओं को एमडी/एमएस/एमसीएच/डीएनबी/डीआरएनबी/एमडीएस थीसिस को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई थी। वर्ष 2021 में कुल चार सहायक वैज्ञानिक शामिल हुए हैं। आईसीएमआर-डॉ. सी.जी. पंडित नेशनल चेयर के लिए दो चेयर चल रहे हैं और आईसीएमआर-डॉ. ए.एस. पेंटल डिस्टिंग्विस्ड साइंटिस्ट चेयर में तीन चल रहे हैं और दो अध्यक्ष पद रिक्त हैं जिसके लिए आवेदनों की समीक्षा की जा रही है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों/एजेंसियों के साथ स्वास्थ्य अनुसंधान में मौजूदा भागीदारी एनएचआरसी, नेपाल; फाइंड, स्विट्जरलैंड जीएआरडीपी फाउंडेशन, स्विट्जरलैंड के साथ तीन नए समझौता ज्ञापनों के साथ जारी रही और वर्ष के दौरान कोलंबिया के स्वास्थ्य तथा सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय और विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार मंत्रालय के साथ एक एलओआई (आशय पत्र) पर हस्ताक्षर किए गए।
  • भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करने के लिए फोर्ट, स्वीडन के साथ एक कार्य स्तर की वर्चुअल बैठक और एनएचआरसी, नेपाल के साथ एक संवादात्मक बैठक आयोजित की गई। स्वास्थ्य मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी (एचएमएससी) की पांच बैठकों में कुल 157 अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं (जनवरी 2021 से अक्टूबर 2021 के बीच) को मंजूरी दी गई। म्यांमार, ब्राजील, जर्मनी और कोलंबिया के प्रतिनिधिमंडलों के लिए आईसीएमआर मुख्यालय के दौरे का भी आयोजन किया गया।
  • आईसीएमआर ने विभिन्न मेडिकल कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों में स्वास्थ्य अनुसंधान में मदद करने के लिए 165 फेलोशिप (लगभग) और 30 तदर्थ परियोजनाओं (लगभग) को संसाधित किया है।

 

माननीय प्रधानमंत्री ने 7 दिसंबर, 2021 को आईसीएमआर-आरएमआरसी, गोरखपुर के नए भवन का उद्घाटन किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल सुश्री आनंदीबेन पटेल और आईसीएमआर के डीजी के साथ प्रधानमंत्री नए भवन के मॉडल को देखते हुए

माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने 4 अक्टूबर, 2021 को दूरदराज के दुर्गम क्षेत्रों में टीका पहुंचाने के लिए आईसीएमआर की आई-ड्रोन पहल की शुरुआत की।

 

केंद्र सरकार के अस्पताल

8.1 अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान और डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल (एबीवीआईएमएस और डॉ आरएमएल अस्पताल)

  1. एमबीबीएस कोर्स की शुरुआत: स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय / मंत्रालय ने पीजीआईएमईआर और डॉ आरएमएल अस्पताल को शैक्षणिक सत्र 2019-20 से 100 छात्रों के साथ एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने का आदेश दिया। संस्थान का नाम भी बदलकर "अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान और डॉ आरएमएल अस्पताल" कर दिया गया है। अब संस्थान में अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं, विश्लेषण हॉल, परीक्षा हॉल, व्याख्यान थिएटर, संग्रहालय आदि हैं।
  2. सुपर स्पेशियलिटी खंड: अस्पताल ने अस्पताल के जी-प्वाइंट पर उपलब्ध एक खाली प्लॉट पर 3 बेसमेंट + भूतल + 11 ऊपरी मंजिलों से युक्त एक नया 600+ बिस्तरों वाला सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक (एसएसबी) बनाने की योजना बनाई है। ईएफसी ने 18.02.2019 को हुई अपनी बैठक में 572.61 करोड़ रुपये की कुल लागत वाली परियोजना को मंजूरी दी। सीपीडब्ल्यूडी को परियोजना प्रबंधन सलाहकार के रूप में नामित किया गया है। सीपीडब्ल्यूडी द्वारा निविदाएं प्रदान की गई हैं और परियोजना के पूरा होने की अपेक्षित अवधि 24 महीने है।
  3. नया छात्रावास खंड : संस्थान ने परिसर में उपलब्ध खाली भूमि पर 824 कमरों का नया छात्रावास खंड बनाने की योजना बनाई है। परियोजना की कुल लागत 178 करोड़ है। एचएससीसी परियोजना प्रबंधन सलाहकार है। सातवीं मंजिल तक का काम पूरा हो चुका है।
  4. डॉ. आरएमएल अस्पताल को पहले ही पीडियाट्रिक कैथ लैब मिल चुकी है और जल्द ही पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी विभाग शुरू किया जाएगा और यह देश में किसी सरकारी अस्पताल में अपनी तरह की पहली सुविधा होगी।
  5. डॉ. आरएमएल अस्पताल रोबोटिक प्रणाली की खरीद की प्रक्रिया में है। इसका उपयोग विभिन्न सर्जिकल विशिष्टताओं द्वारा जटिल ऑपरेशन करने के लिए किया जाएगा। इससे उन रोगियों को भारी लाभ मिलता है, जिन्हें कठिन और जटिल सर्जरी से गुजरना पड़ता है।
  6. डॉ. आरएमएलएच के डॉक्टरों को लीवर प्रत्यारोपण के लिए पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है और निकट भविष्य में सभी आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद इसे शुरू किया जाएगा।
  7. डॉ.आरएमएलएच में -ऑफिस शुरू किया गया है
  8. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने डॉ. आरएमएल अस्पताल को देश का पहला कोरोना नोडल केंद्र बनाया। ओपीडी में कोरोना रोगी का प्रबंधन किया गया है और समर्पित प्रवेश इकाइयां और आईसीयू इकाइयां भी बनाई गई हैं। सभी संदिग्ध रोगियों के लिए आरटीपीसीआर जांच नियमित रूप से की गई। उपरोक्त के अलावा, विश्व युवा केंद्र, चाणक्यपुरी में 150 बिस्तरों वाले कोविड देखभाल केंद्र का प्रबंधन डॉ.आरएमएलएच द्वारा किया जाता है।

8.2 लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और एसोसिएटेड अस्पताल.

1. एसोसिएटेड अस्पताल के साथ एलएचएमसी ने 2020 में शुरू हुई कोविड-19 महामारी में उपचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया।

निम्नलिखित सुविधाओं का निर्माण किया गया: -

रेड जोन

I. वार्ड– 24 + 22 = 46

II. कोविड आईसीयू बेड = 30

III. ऑरेंज जोन बेड = 103 (संदिग्ध मामलों के लिए)

  1. कोविड-मरीजों के उपचार के लिए विभिन्न बुनियादी ढांचे को जोड़ा गया।  

 I. वेंटिलेटरी बेड की क्षमता 30 बेड बढ़ाई गई।

II. बीआईपीएपी मशीनों की संख्या – 32.

III. एचएफएनओ-सुविधाओं को जोड़ा गया।

IV. पर्याप्त मात्रा में पल्स ऑक्सीमीटर उपलब्ध, पीपीई किट, एन-95 मास्क और अन्य उपभोग्य वस्तुएं उपलब्ध।

V. O2 आपूर्ति >50 बिस्तरों के साथ बिस्तरों की संख्या में वृद्धि हुई।

VI. कोविड रोगियों की जांच के लिए फ्लू-क्लिनिक।

  1. कोविड-19 जांच सुविधा:

I. एलएचएमसी निम्नलिखित विधियों द्वारा परीक्षण के लिए कम से कम संभव समय में कोविड-19 जांच सुविधा शुरू करने वाले पहले संस्थानों में से एक है:

ए. आरटीपीसीआर

बी. सीबी एनएएटी

सी. ट्रूनेट

शुरुआत में उन सभी प्रमुख अस्पतालों को सेवाएं प्रदान की गईं जहां जांच सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। 40,000 से अधिक मामलों की जांच की गई है।

II. नमूने लेने के लिए बनाए गए अत्याधुनिक नमूने केंद्र

डी. एलएचएमसी के डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम ने वाईएमसीए कोविड-देखभाल केन्द्र चलाया।

ई. एलएचएमसी डॉक्टर विभिन्न राज्यों में सुविधाओं और प्रशिक्षण के निरीक्षण के लिए केंद्रीय टीम का हिस्सा थे।

एफ. एलएचएमसी ने लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद भी मातृत्व और शिशु देखभाल सहित सभी विभागों में कोविड और गैर-कोविड दोनों रोगियों के लिए सुविधाएं प्रदान कीं।

   जी. रचनात्मक समस्या समाधान पहल:

I. टेलीमेडिसिन सुविधाएं

II.ब्लेंडेड शिक्षण

III. परामर्श सुविधाएं प्रदान करके स्वयं सहायता समूहों सहित छात्र केन्द्रित युवा कल्याण पहलों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

2. एलएचएमसी की व्यापक पुनर्विकास योजना (सीआरपी):-

() ऑन्कोलॉजी ब्लॉक और अकादमिक ब्लॉक कामकाज के लिए तैयार हैं और 31 दिसंबर 2020 से पहले एचएससीसी द्वारा एलएचएमसी को सौंपा जाना था।

(बी) दुर्घटना आपातकाल और ओपीडी ब्लॉक 31 मार्च 2021 तक तैयार होनी थी।

3. स्नातकोत्तर सीटें: एलएचएमसी में ईडब्ल्यूएस कोटे के मुकाबले 24 स्नातकोत्तर सीटों की वृद्धि की गई है।

4. स्नातक, स्नातकोत्तर, पोस्ट-डॉक्टरल पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षण गतिविधियाँ:

() कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए, कोविड-स्थिति में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ-साथ ऑनलाइन शिक्षण का संयोजन किया जा रहा है।

(बी) माइक्रोसॉफ्ट टीम पर नियमित नैदानिक बैठकें ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं।

(सी) वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से स्नातकोत्तर परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसमें व्यावहारिक कौशल और सैद्धांतिक ज्ञान की जांच की गई।

5. वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 12-12-2020 को वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया था, जिसमें माननीय स्वास्थ्य मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

6. अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के एक भाग के रूप में प्रयोगशाला सूचना प्रणाली (एलआईएस) को एलएचएमसी में कंप्यूटर जनित प्रयोगशाला रिपोर्ट प्रदान करने के लिए शुरू किया गया और जिससे इलाज करने वाले डॉक्टर रोगियों के उपचार पर त्वरित निर्णय लेने के लिए इसे देख सकते हैं।

7. एलएचएमसी और एसोसिएटेड अस्पताल पीएमजय के लिए सुपर-स्पेशियलिटी अस्पतालों की श्रेणी में हैं।

8.3 सफदरजंग अस्पताल

1. कोविड– 19 महामारी प्रबंधन: -

सफदरजंग अस्पताल आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के निर्देशों के अनुसार कोविड-19 रोगियों के प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल रहा है, जिनमें कोविड-19 पॉजिटिव मरीज में हीमोग्राम, कोगुलेशन प्रोफाइल और बायोमार्कर आदि का ध्यान रखा गया।

). पूरे सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक (एसएसबी) को कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए एक समर्पित अलग खंड में बदल दिया गया है।

बी) 28 आईसीयू बिस्तरों सहित 44 बिस्तरों वाले अस्थायी अस्पतालों की स्थापना।

सी) पीएसए ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करके ऑक्सीजन क्षमता में वृद्धि (0 एमक्यू की क्षमता और एलएमओ क्षमता (60एमटी)

डी) कोविड पीड़ित बाल रोगियों के इलाज के लिए 27 आईसीयू और 20 नॉन आईसीयू बेड स्थापित

) सफदरजंग अस्पताल में चौबीसों घंटे काम करने वाला एक समर्पित नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है।

एफ) सफदरजंग अस्पताल में आरटीपीसीआर करने के लिए और एनईबी और अन्य विभागों में ट्रूनेट के लिए सुविधाएं, कोविड 19 रैपिड एंटीजन टेस्ट, कोविड 19 एलिसा जांच के लिए एक अलग हाई-टेक कोविड-19 लैब शुरू हुआ।

जी) न्यू इमरजेंसी ब्लॉक, सफदरजंग अस्पताल में उप-तीव्र श्वसन रोग के मामलों के अलग प्रबंधन के लिए जिला मजिस्ट्रेट की सहमति से एसएआरआई वार्ड को शुरू किया गया।

एच) कोविड-19 प्रबंधन के लिए एक समर्पित कोर टीम का गठन किया गया जिसमें एनेस्थीसिया, मेडिसिन, रेस्पिरेटरी विभाग आदि के डॉक्टर शामिल हैं। एसएसबी में स्त्री एवं प्रसूति रोग  विभाग और बाल रोग विभाग के रोगियों के लिए अलग सेक्शन बनाया गया।

आई) कोविड-19 प्रबंधन से निपटने के लिए साप्ताहिक आधार पर जेआर/एसआर/नर्सिंग स्टाफ और इंटर्न के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

जे) एसजेएच/वीएमएमसी के विभिन्न स्थानों में कार्यरत अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके रिश्तेदारों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया, जैसे हाथ धोने की पहल, सामाजिक दूरी, मास्क के महत्व को बताया गया और अस्पताल में कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के लिए स्वच्छता अभियान चलाया गया। .

के) ओल्ड कैजुअल्टी ब्लॉक, एसजेएच में कोविड-19 रोगियों के लिए अलग बुखार क्लिनिक और नमूना संग्रह केंद्र (आरटीपीसीआर) शुरू किया गया।

एल) सफदरजंग अस्पताल के अधिकांश विभागों में निर्बाध रोगी देखभाल सेवाएं जारी रखी गईं और गैर-कोविड -19 रोगियों के लिए नियमित डायलिसिस भी नियमित रूप से किया जा रहा है।

एम) कोविड-19 रोगियों और शवों के परिवहन के लिए अलग-अलग एम्बुलेंस तैनात किए गए हैं।

एन) कोविड-19 टीकाकरण अभियान के लिए टीके लगाने वालों के लिए टीमों का गठन किया गया है।

) सफदरजंग अस्पताल में अग्नि प्रबंधन के लिए अग्नि सुरक्षा अभ्यास, प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम लगातार आयोजित किए गए।

2. पिछले तीन महीनों में 40 एलडीसी और 8 पीडब्ल्यूडी उम्मीदवार शामिल हुए थे।

3. रोगियों और उनके परिचारकों को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए "आओ साथ चले" नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया है।

4. मरीज भर्ती/ऑपरेशन की स्थिति:-

इस अस्पताल में भर्ती किए गए और ऑपरेशन किए गए मरीजों की कुल संख्या: -

 

भर्ती मरीज

जनवरी - नवंबर

2021

 

बड़े ऑपरेशन

जनवरी - नवंबर

2021

छोटे ऑपरेशन

जनवरी - नवंबर

2021

कुल ऑपरेशन

जनवरी - नवंबर

2021

119971

27642

9385

37027

 

5. सांख्यिकी (एक्स-रे जांच)

 

वर्ष

एक्स-रे जांच की संख्या

जनवरी से नवंबर

3,90,482

 

6. प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में प्रसव की संख्या:-

वर्ष

प्रसवों की संख्या

जनवरी से नवंबर 2021

15,697

 

7. ओपीडी उपस्थिति:-

वर्ष

ओपीडी मरीजों की संख्या

जनवरी से नवंबर 2021

18,25,878

 

8. स्पोर्ट्स चोट केंद्र: - मरीजों की उपस्थिति/सर्जरी

क्रमांक.

वर्ष

ओपीडी

फिजियोथेरेपी ओपीडी

आईपीडी        ओटी

O.T

1

जनवरी से अक्टूबर 2021

57,395

37,497

1900                  1622

1622

 

 

8.4 पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य एवं आयुर्विज्ञान संस्थान (एनईआईजीआरआईएचएमएस), शिलांग

1 जनवरी, 2021 से वित्त वर्ष 2021-22 में अब तक एनईआईजीआरआईएचएमएस, शिलांग की प्रमुख उपलब्धियां:

: भूमि

पूर्वी खासी हिल्स राजस्व के जिला कलेक्टर ने 23 नवंबर 2020 को ग्रुप , बी और सी श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए एनईआईजीआरआईएचएमएस को औपचारिक रूप से 20 एकड़ अतिरिक्त भूमि सौंपी है।

बी: अवसंरचना विकास

संस्थान ने 10 बिस्तरों का कोविड-19 आईसीयू, 40 बिस्तरों के लिए आइसोलेशन वार्ड और पूरे क्षेत्र में कोविड रोगियों के लिए स्क्रीनिंग क्षेत्र की स्थापना की।

संस्थान ने सीएमएएवाई योजना (स्वास्थ्य बीमा योजना) के तहत एनईआईजीआरआईएचएमएस में अरुणाचल के लोगों के लिए कैशलेस उपचार के लिए अरुणाचल सरकार के साथ एक समझौता किया।

संस्थान ने राज्य सरकार के डॉक्टरों को आईसीयू कोविड केयर के संबंध में आईसीयू प्रशिक्षण दिया।

संस्थान ने मरीजों की सुविधा के लिए सभी ओपीडी में कोविड टेलीकांफ्रेंसिंग की व्यवस्था की है।

संस्थान ने राजस्व उत्पन्न करने के लिए रियायती दरों पर अस्पताल उपयोगकर्ता शुल्क के लिए विभागों में वृद्धि की है।

संस्थान ने नई परियोजनाओं के निम्नलिखित भवनों को कोविड क्वारंटाइन केंद्रों में परिवर्तित करने के लिए अपने कब्जे में ले लिया है।

48 कमरों का गेस्ट हाउस।

88 बिस्तर की क्षमता वाला नर्सिंग छात्रावास - 1

110 बिस्तर की क्षमता वाला नर्सिंग छात्रावास - 2

संस्थान ने एमबीबीएस छात्रों के नए बैच को समायोजित करने के लिए स्नातक छात्रावास I और II को भी अपने कब्जे में ले लिया है।

छात्रावास के साथ नया नर्सिंग कॉलेज भवन 31 दिसंबर 2020 तक सौंपना था।

16.12.21 को निर्माण कार्य की स्थिति इस प्रकार है:-


 

भवन नाम

कार्य प्रगति (% पूर्ण)

वित्तीय प्रगति (करोड़ में)

 

कार्य प्रारंभ करने की वास्तविक तिथि

पूरा होने की संभावित तिथि

यूजी मेडिकल कॉलेज

79%

115

24.03.2017

जनवरी-22

क्षेत्रीय कैंसर केंद्र और अतिथि गृह

73%

 

 

61

24.03.2017

मार्च-22

नर्सिंग कॉलेज और छात्रावास

100%

 

63

24.03.2017

कार्य पूरा हुआ

 

अधीनस्थ भवन

55%

18

24.03.2017

मार्च-22

 

केंद्र

कार्य पूर्णता की वर्तमान स्थिति

कार्य पूरा होने की निर्धारित तिथि

 

पूरा होने की अपेक्षित तिथि

 

नर्सिंग कॉलेज

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, अधिग्रहण प्रमाणपत्र (ओसी) प्राप्त हुआ

नर्सिंग छात्रावास-1

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

नर्सिंग छात्रावास -2

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

नर्सिंग डाइनिंग

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

गेस्ट हाउस

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

यूजी छात्रावास-1

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

यूजी छात्रावास-2

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

प्रशिक्षु छात्रावास

100%

23.03.19

कार्य पूरा हुआ, ओसी प्राप्त हुआ

यू.जी. मेडिकल

कॉलेज

77%

 

23.09.19

31.01.22

क्षेत्रीय कैंसर केंद्र

67%

 

23.09.19

31.03.22

यूजी छात्रावास-3

80%

23.09.19

31.01.22

यूजी छात्रावास-4

80%

23.09.19

31.01.22

पूर्व विकास कार्य

62%

23.09.19

31.01.22

एसटीपी, डब्ल्यूटीपी, ईटीपी

75%

23.09.19

31.01.22

 

 

 

8.5 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान, इम्फाल

क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान 1972 में स्थापित किया गया था और 1 अप्रैल, 2007 से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत कार्य कर रहा है। रिम्स चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में पूर्वोत्तर क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने वाला क्षेत्रीय महत्व का संस्थान है, जिसमें स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाती है। रिम्स 1,200 बिस्तरों वाला एक शिक्षण अस्पताल है जो अत्याधुनिक उपकरणों और शिक्षण सुविधाओं से सुसज्जित है। अस्पताल बड़ी संख्या में रोगियों को आउट-डोर के साथ-साथ इनडोर रोगियों को सेवाएं प्रदान करता है और एक वर्ष में चालीस हजार से अधिक रोगियों को भर्ती करता है। संस्थान ने अब तक 3560 चिकित्सा स्नातक और 1988 विशेषज्ञ तैयार किए हैं।

 

क्रमांक

पाठ्यक्रम का नाम

सीटों की संख्या

कोटा

1

एमबीबीएस

125 सीटें प्रति वर्ष

15% अखिल भारतीय कोटा

2

एमडी/एमएस/डीसीपी

148 सीटें प्रति वर्ष

50% अखिल भारतीय कोटा

3

एम. सीएच/डीएम

05 सीटें प्रति वर्ष

100% अखिल भारतीय कोटा

4

एम. फिल.

06 सीटें प्रति वर्ष

रिम्स के खुले लाभार्थी राज्य

5

बी एससी नर्सिंग

50 सीटें प्रति वर्ष

रिम्स के सभी लाभार्थी राज्य

6

बीडीएस

50 सीटें प्रति वर्ष

15% अखिल भारतीय कोटा

7

बीएएसएलपी

10 सीटें प्रति वर्ष

रिम्स के सभी लाभार्थी राज्य

8

एमएससी (नर्सिंग)

8 सीटें प्रति वर्ष

रिम्स के सभी लाभार्थी राज्य एवं रिम्स कर्मचारी के बच्चों के लिए 1 सीट निर्धारित

  1. संस्थान में दाखिला क्षमता के साथ चलाए जा रहे पाठ्यक्रम इस प्रकार हैं:

2.1 स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए सीटों का आवंटन:

एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में वार्षिक प्रवेश की संख्या 125 छात्रों की है। इन सीटों का विवरण इस प्रकार है:-

क्रमांक

राज्य के नाम

एमबीबीएस

बीडीएस

बीएससी नर्सिंग

1

अखिल भारतीय कोटा

19

7

-

2

अरुणाचल प्रदेश

7

4

5

3

मेघालय

13

7

5

4

मिजोरम

7

4

5

5

मणिपुर

30

13

20*

6

सिक्किम

5

3

5

7

त्रिपुरा

13

7

5

8

नगालैंड

10

5

5

9.

एनई ओपन- रिम्स के सभी लाभार्थी राज्य (असम को छोड़कर)

10

-

-

10.

ईडब्ल्यूएस

11

-

-

कुल योग

125

50

50

 

* रिम्स कर्मचारियों के बच्चों के लिए निर्धारित 4 सीटें सहित

2.2 पीजी सीटों का वितरण

इम्फाल के लाभार्थी राज्यों का 50% (73-74) सीट वितरण

पाठ्यक्रम

राज्य

सीटों की संख्या

कुल सीट

प्रायोजित

खुला

स्नातकोत्तर (एमडी/एमएस/डीसीपी)

अरुणाचल प्रदेश

8

2

10

मणिपुर

8

2

10

मेघालय

8

2

10

मिजोरम

7

2

9

नगालैंड

7

2

9

सिक्किम

7

2

9

त्रिपुरा

8

2

10

रिम्स एआईक्यू स्नातक

 

2

2

लाभार्थी राज्यों के गैर रिम्स स्नातक (असम को छोड़कर)

 

5

5

 

 

 

 

74

 

2.3 शैक्षणिक उपलब्धि

इस प्रमुख संस्थान का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रदान करना है और इसने कई डॉक्टरों / विशेषज्ञों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को तैयार किया है। संस्थान द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड के आधार पर 31.10.2021 तक अब तक उत्तीर्ण छात्रों की संख्या निम्नानुसार है:

 

) एमबीबीएस उत्तीर्ण हुए डॉक्टरों की कुल संख्या - 3560

बी) एमडी/एमएस/डीसीपी उत्तीर्ण की कुल संख्या - 1968

सी) एम.सीएच उत्तीर्ण छात्रों की कुल संख्या - 20

) एम.फिल. (नैदानिक ​​मनोविज्ञान) उत्तीर्ण की कुल संख्या - 67

) बी.एससी. (नर्सिंग) उत्तीर्ण की कुल संख्या - 282

) बीडीएस उत्तीर्ण की कुल संख्या - 143

 

3. संस्थान का प्रबंधन

संस्थान और इसका शिक्षण अस्पताल निदेशक, रिम्स, इंफाल के प्रशासनिक नियंत्रण में है। संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इसके अध्यक्ष के रूप में करते हैं।

कार्यकारी परिषद की अध्यक्षता सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की जाती है। अन्य समितियों का भी गठन किया गया है जैसे स्थायी वित्त समिति, शैक्षणिक उप-समिति आदि।

चिकित्सा अधीक्षक अस्पताल का समग्र प्रभारी होता है, जो अस्पताल के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को देखता है। विभिन्न विभागों का कामकाज सीधे संबंधित विभाग के प्रमुखों के अधीन होता है। हताहत, सीएसएसडी, स्टोर, अस्पताल अपशिष्ट प्रबंधन आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों की देखभाल चिकित्सा अधीक्षक की देखरेख में नामित अधिकारियों (चिकित्सा डॉक्टरों) द्वारा की जाती है।

4. रिम्स में कर्मचारियों की संख्या

स्वीकृत पद

भरा हुआ

1936

1437

 

5. नए खरीदे गए उपकरण/यंत्र

वर्ष 2020-2021 (30 नवंबर, 2021 तक) के लिए रिम्स इम्फाल के लिए नए खरीदे गए प्रमुख उपकरणों की सूची इस प्रकार है: -

  1. 64 स्लाइस सीटी स्कैन मशीन।
  2. 32 स्लाइस सीटी स्कैन मशीन।
  3. पीएसए प्लांट 200 डी-टाइप सिलेंडर।
  4. 3 डायलिसिस मशीन।
  5. 60 ऑक्सीजन सांद्रक।
  6. 4 मॉड्यूलर .टी.
  7. 10000 केएल क्षमता वाला 2 एलएमओ टैंक
  8. 850 डी-टाइप सिलेंडर का
  9. 500 केवीए डीजी सेट
  10. -80 डीप फ्रीजर
  11. पारंपरिक रेडियोथेरेपी सिम्युलेटर का 1 सेट
  12. 8 चैनल ईएमजी/एनसीएस/ईपी सिस्टम का 1 सेट
  13. 64 चैनल वीडियो ईईजी मशीनों के 2 सेट।

 

6. अन्य उपलब्धियां

  1. रिम्स, इंफाल में एमबीबीएस सीटों की संख्या 100 से बढ़कर 125 प्रति वर्ष हो गई। बढ़ी हुई 25 सीटों में से 11, 10 और 4 सीटें क्रमशः आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), एनई ओपन और ऑल इंडिया कोटा (एआईक्यू) के लिए आरक्षित हैं।
  2. स्पोर्ट मेडिसिन में एमडी पाठ्यक्रम शैक्षणिक सत्र 2020-2021 से सालाना 1 सीट के साथ शुरू किया गया है।
  3. रेडियोथैरेपी वार्ड में 51 बेड बढ़ाए गए हैं।
  4. समीक्षाधीन वर्ष के दौरान रिम्स, इंफाल में लेवल 1 ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन किया गया।
  5. प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के लिए 2 अलग ओटी चालू किया गया और समीक्षाधीन वर्ष के दौरान कार्यरत हो गया।
  6. 10 नई हेमोडायलिसिस मशीनों के साथ नए डायलिसिस केंद्र का उद्घाटन किया गया और यह कार्य करना शुरू कर दिया है।
  7. समीक्षाधीन वर्ष के दौरान संस्थान के अस्पताल में काफी सक्रियता देखी गई है। ओपीडी में उपस्थिति बढ़कर 7.80 लाख हो गई। आपातकालीन वार्ड में 1.44 लाख मरीजों का इलाज किया गया। भर्ती मरीजों की संख्या 0.99 लाख थी। अस्पताल में आने वालों की संख्या में वृद्धि कई नैदानिक ​​परीक्षणों के नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाने, सीएमएचटी, पीएमजय के कार्यान्वयन, स्वास्थ्य जागरूकता में वृद्धि और लोगों की जागरूकता के कारण हो सकती है। जांच की संख्या भी काफी बढ़ गई है। जैव रसायन विभाग में 8.65 लाख जांच हुई। रेडियोडायग्नोसिस विभाग में लगभग 14,000 सीटी स्कैन और 1 लाख से अधिक एक्स-रे किए गए। इसी तरह माइक्रोबायोलॉजी एवं पैथोलॉजी विभाग में जांच में काफी वृद्धि हुई है।
  8. 3-टेस्ला एमआरआई मशीन के साथ नए एमआरआई ब्लॉक का उद्घाटन, नई पीजी महिला छात्रावास- 100 क्षमता (जी + 3), नए न्यूरो आईसीयू ब्लॉक और नर्सिंग कॉलेज के नए ब्लॉक का उद्घाटन माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा किया गया।

7. पुरस्कार :

  1. क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स), इम्फाल पूरे पूर्वोत्तर से वर्ष 2020 के लिए भारत के शीर्ष 40 चिकित्सा संस्थानों में शामिल होने वाला एकमात्र मेडिकल कॉलेज है।

शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी एनआईआरएफ रैंकिंग 2019 में रिम्स 28वें स्थान पर है।

  1. रिम्स, इम्फाल को राज्य (2019-20) में पीएमजय सेवा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अस्पताल के रूप में सम्मानित किया गया, जिसके लिए राज्य स्वास्थ्य एजेंसी, मणिपुर द्वारा प्रशंसा प्रमाण पत्र भी जारी किया गया था।
  2. रिम्स भारत में शीर्ष 50 सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा संस्थान में आता है।

-रिम्स, इम्फाल पिछले 3 लगातार एनआईआरएफ रैंकिंग में भारत के शीर्ष 50 चिकित्सा संस्थानों में शामिल होने वाले पूरे पूर्वोत्तर से एकमात्र चिकित्सा संस्थान है।

 

  1. बजट (करोड़ रुपये में)

क्रमांक

वित्त वर्ष

आवंटन बीई

जारी

2020-2021

1

2020-21

437.32

421.60

 

8.6 क्षेत्रीय पराचिकित्सा एवं नर्सिंग विज्ञान संस्थान (रिपंस), आइजोल, मिजोरम

क्षेत्रीय पराचिकित्सा एवं नर्सिंग विज्ञान संस्थान (रिपंस), आइजोल की स्थापना 1995-96 में गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सिक्किम सहित पूर्वोत्तर के लोगों को नर्सिंग, फार्मेसी और पैरामेडिकल शिक्षा प्रदान करने और अन्य चिकित्सा तथा तकनीकी सेवाओं के साथ नर्सिंग शिक्षा और नर्सिंग सेवाओं की गति बनाए रखने के लिए की गई थी। संस्थान को 01.04.2007 से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्थानांतरित कर दिया गया।

संस्थान निम्नलिखित पांच डिग्री पाठ्यक्रम और एक स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चला रहा है:

क्रम संख्या

पाठ्यक्रमों का नाम

अवधि

सेवन क्षमता

1.

बीएससी नर्सिंग

चार वर्ष

33 सीटें

2.

बीएससी एमएलटी (चिकित्सा प्रयोगशाला प्रौद्योगिकी)

चार वर्ष

33 सीटें

3.

बी फार्मा

चार वर्ष

33 सीटें

4.

बीएससी आरआईटी (रेडियो इमेजिंग टेक्नोलॉजी)

चार वर्ष

33 सीटें

5.

बी ऑप्टोम

चार वर्ष

33 सीटें

6.

एम. फार्मा

दो वर्ष

12 सीटें

7.

एमएससी एमएलटी

दो वर्ष

12 सीटें

 

  1. विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए नव प्रवेशित छात्रों की संख्या - 194
  2. विभिन्न पाठ्यक्रमों में छात्रों की कुल संख्या - 683
  3. उत्तीर्ण छात्रों की कुल संख्या - 172
  4. उत्तीर्ण छात्रों में से लगभग 93% छात्रों को विभिन्न केंद्रीय / राज्य सरकार के संस्थानों / विभागों और अन्य प्रतिष्ठानों जैसे सीएसआईआर प्रयोगशालाओं, एम्स, सफदरजंग अस्पताल, एनईआईजीआरआईएचएमएस, रिम्स, एनआईपीईआर, जीएनआरसी, एएमआरआई अस्पताल, अपोलो अस्पताल, बिड़ला हार्ट इंस्टीट्यूट फोर्टिस अस्पताल, टाटा अस्पताल, एनआईटी, मिजोरम विश्वविद्यालय, असम डाउनटाउन विश्वविद्यालय, असम तकनीकी विश्वविद्यालय, नैटको फार्मा लिमिटेड, टोरेंट फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड, सिप्ला, आदि और विदेशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, इंग्लैंड, नॉर्वे, सिंगापुर आदि के संस्थानों में प्लेसमेंट मिल रहा है। इसके अलावा, कई छात्रों ने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय जीपीएटी परीक्षा को उत्तीर्ण किया।
  5. कोविड-19 महामारी की शुरुआत में जब केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण लॉकडाउन लगाए गए, रिपंस ने स्थानीय बाजार में हैंड सैनिटाइज़र की कमी के कारण अपनी प्रयोगशाला में हैंड सैनिटाइज़र तैयार करके कोविड-19 के खिलाफ राष्ट्र की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया; और राज्य में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों आदि को इसे वितरित किया गया।
  6. मिजोरम में कोविड-19 महामारी की शुरुआत में कोई कोविड-19 जांच प्रयोगशाला नहीं थी। जांच प्रयोगशाला की स्थापना के लिए, मिजोरम सरकार द्वारा गठित विभिन्न समितियों में जनशक्ति विशेषज्ञता प्रदान करने के अलावा, कुछ उपकरण जैसे मल्टी चैनल पिपेट आदि का योगदान रिपन्स द्वारा किया गया था।
  7. संस्थान के नर्सिंग, चिकित्सा प्रयोगशाला प्रौद्योगिकी और फार्मेसी के 48 छात्र मिजोरम राज्य में कोविड-19 की रोकथाम और नियंत्रण में मिजोरम सरकार की सहायता के लिए स्वयंसेवकों के रूप में काम कर रहे थे। ये छात्र नमूना संग्रह में सहायता करते हैं और राज्य में अधिक टीकाकरण केंद्र खोलने में सरकार को सक्षम बनाया है।
  8. ऑनलाइन कक्षा शिक्षण और ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने के लिए कक्षाओं को उन्नत किया गया है और नवीनतम तकनीक से लैस किया गया है। यह निजी एजेंसियों को शामिल किए बिना मौजूदा संसाधनों और जनशक्ति का उपयोग करके हासिल किया गया है।
  9. रिपंस में अतिरिक्त सुविधाओं के निर्माण की परियोजना अर्थात् शैक्षणिक ब्लॉक- III, पुस्तकालय सह परीक्षा हॉल, लड़कों और लड़कियों के छात्रावास का निर्माण पूरा हो गया है और भवनों को 5.7.2019 को रिपन्स को सौंप दिया गया।
  10. मंत्रालय से दिनांक 22.01.2020 को 27 नए पदों (प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, ट्यूटर, अनुभाग अधिकारी, लेखा अधिकारी आदि के पदों सहित) के भर्ती नियमों की स्वीकृति प्राप्त हुई थी।
  11. रिपन्स के विकास परियोजना के सिविल कार्यों के लिए -निविदा 01.09.2019 (229.46 करोड़ रुपये) को प्रकाशित किया गया था। तकनीकी बोली और एक वित्तीय बोली खोली गई और 217.97 करोड़ रुपये की सबसे कम बोली लगाने वाले को यह काम देने की सिफारिश की गई। 5.2.2020 को मंत्रालय को 217.97 करोड़ रुपये जमा किए गए। परियोजना की अनुमानित लागत. 480.12 करोड़ रुपये रही।
  12. रिपन्स के विकास की परियोजना: मंत्रालय द्वारा 04.01.2021 को न्यूनतम बोली लगाने वाले को कार्य देने की स्वीकृति से अवगत कराया गया था। कार्य दिनांक 1.3.2021 को शुरू किया गया था।
  13. वित्तीय उपलब्धियां:
  14. स्वीकृत संशोधित अनुमान - 40.68 करोड़ रुपये
  15. 31.3.2020 को जारी की गई राशि - 40.48 करोड़ रुपये
  16. 31.3.2020 तक किया गया व्यय - 49.68 करोड़ रुपये
  17. पूंजीगत व्यय - 25.93 करोड़ रुपये
  18. राजस्व व्यय
  1. वेतन - 10.39 करोड़ रुपये
  2. सामान्य - 13.37 करोड़ रुपये

(1.4.2019 को 13.71 करोड़ रुपये की अव्ययित शेष राशि को वर्ष 2019-20 के लिए जीआईए के खिलाफ समायोजित किया गया था)

9. राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी)

राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की छत्रछाया में एक केंद्र प्रायोजित योजना है। भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कुष्ठ रोग का उन्मूलन हासिल कर लिया है, जिसे प्रति 10,000 आबादी पर 1 से कम मामले के रूप में परिभाषित किया गया है।

एनएलईपी का लक्ष्य 2030 तक प्रत्येक जिले में कुष्ठ रोग को खत्म करना है। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत मामले का जल्द पता लगाने; पाए गए मामलों का पूर्ण उपचार, और सूचित मामलों (कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों) के निकट संपर्क में आने वाले लोगों में रोग को शुरु होने से रोकने के लिए के लिए कार्रवाई की जाती है।

अब तक उठाए गए प्रमुख कदम:

  • नए मामलों में ग्रेड II विकलांगता (जी2डी) / दृश्य विकृति का प्रतिशत 2020-21 में 2.41% से घटकर 30 सितंबर, 2021 को 2.38% हो गया है।
  • बाल मामलों का प्रतिशत 31 मार्च, 2021 के 5.76% से घटकर 30 सितंबर, 2021 तक 5.31% हो गया है।
  • कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, ठीक हो चुके कुष्ठ रोगियों के प्रत्यक्ष बयान वाली तीन लघु फिल्में बनाई गई हैं, जिनका प्रसारण 18 राज्यों में दूरदर्शन चैनलों के माध्यम से मीडिया योजना के अनुसार किया जा रहा है।
  • कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को कम करने के लिए 30 जनवरी, 2017 यानी कुष्ठ रोग विरोधी दिवस पर स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान (एसएलएसी) शुरू किया गया था। 2020 और 2021 के दौरान क्रमशः लगभग 72%, 78% गांवों ने स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान (एसएलएसी) के दौरान ग्राम सभाओं में ग्राम स्तर की बैठकें कीं।
  • उपरोक्त गतिविधियों के अलावा, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कोविड-19 महामारी के दौरान एनएलईपी के तहत विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देने के लिए विभिन्न रणनीति दिशानिर्देश जारी किए गए ताकि निम्नलिखित गतिविधियां सुनिश्चित की जा सकें:-
  • कोविड-19 के कारण लॉक डाउन के दौरान कुष्ठ रोगियों को एमडीटी की निर्बाध आपूर्ति।
  • विकलांगता से पीड़ित कुष्ठ रोगियों के लिए निर्बाध डीपीएमआर सेवाएं। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान लौटने वाले प्रवासियों के बीच इलाजरत कुष्ठ रोगियों का पता लगाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जिन स्थानों पर गए हैं, वहां उनका उपचार निर्बाध तरीके से जारी रहे, जिसके लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने ऐसे कई रोगियों का सफलतापूर्वक पता लगाया और उनका इलाज किया।

10. राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी)

10.1 मलेरिया 

  • लगातार 3 वर्षों से विश्व मलेरिया रिपोर्ट में 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करने में भारत की प्रगति की सराहना की गई है।
  • 2020 में दर्ज किए गए मलेरिया के मामले 2019 में 338494 मामलों की तुलना में 186532 थे, जो वर्ष 2019 की तुलना में 44.9% की गिरावट को दर्शाता है। इसी तरह, 31 अक्टूबर 2021 की स्थिति के अनुसार, संबंधित अवधि में मलेरिया के मामलों में 17.01% और पीएफ मामलों में 18.93% की गिरावट आई है।
  • 2020 में केवल 32 जिलों में वार्षिक पैरासाइट घटना (एपीआई) एक या उससे अधिक है।
  • 2020 में देश के 116 जिलों में 'शून्य मलेरिया मामले' सामने आए हैं।
  • मलेरिया को 31 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, चंडीगढ़, दिल्ली, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली और लक्षद्वीप)) में एक सूचनीय बीमारी बना दिया गया है।
  • 2021 तक, 28 राज्यों ने मलेरिया उन्मूलन के लिए राज्य कार्य बल और जिला कार्य बल का गठन किया है। शेष राज्य/संघ राज्य क्षेत्र राज्य कार्य बल और जिला कार्य बल के गठन की प्रक्रिया में हैं।
  • पिछले 6 वर्षों के दौरान, विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च मलेरिया स्थानिक क्षेत्रों में 9.7 करोड़ एलएलआईएन वितरित किए गए हैं। एलएलआईएन के उपयोग को बड़े पैमाने पर समुदाय द्वारा अत्यधिक स्वीकार किया गया है और यह देश में मलेरिया में भारी गिरावट में मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक रहा है।
  • 15 और 18 मार्च, 2021 को ओडिशा के सभी जिलों के अतिरिक्त जन स्वास्थ्य अधिकारियों (डीएमओ) और वेक्टर जनित रोग (वीबीडी) सलाहकारों के लिए मलेरिया पर ऑनलाइन प्रशिक्षण आयोजित किया गया।
  • एनसीवीबीडीसी ने डब्ल्यूएचओ और राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के सहयोग से एनआईएमआर, दिल्ली में मलेरिया माइक्रोस्कोपी पर 24-28 अगस्त, 2021 (पहला बैच) और 31 अगस्त-4 सितंबर, 2021 (दूसरा बैच) से विभिन्न राज्यों से एलटी के प्रमाणीकरण के लिए मलेरिया माइक्रोस्कोपी प्रशिक्षण का आयोजन किया।''
  • मलेरिया उन्मूलन के लिए स्वर्ण मानक, मलेरिया माइक्रोस्कोपी विभिन्न राज्यों के प्रयोगशाला तकनीशियनों के एक कोर समूह के राष्ट्रीय पुनश्चर्या प्रशिक्षण और प्रमाणन द्वारा भी मजबूत किया गया है। सूक्ष्म गतिविधि और प्रयोगशाला क्षमता निर्माण को मजबूत करने के लिए 10 एल-1 और 17 एल-2 डब्ल्यूएचओ प्रमाणित प्रयोगशाला तकनीशियन हैं।
  • 2020-21 में, डब्ल्यूएचओ प्रमाणित स्तर -1 और स्तर -2 प्रयोगशाला तकनीशियनों ने अपने संबंधित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय (चंडीगढ़, हरियाणा, भुवनेश्वर, पुडुचेरी, कर्नाटक, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, त्रिपुरा, शिलांग, राजस्थान और आंध्र प्रदेश) में विभिन्न बैचों में कुल 35 मलेरिया माइक्रोस्कोपी प्रशिक्षण आयोजित किए और 1005 प्रतिभागियों को कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किया गया।
  • एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी)- मलेरिया पर पूरे देश के लिए स्वास्थ्य वेब आधारित रिपोर्टिंग प्रणाली की स्थापना और जीआईएस मानचित्रों और हॉटस्पॉट का उपयोग करके उच्च मलेरिया-संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण

10.2 कालाजार

  • 2021 के दौरान अक्टूबर तक 1152 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2020 की इसी अवधि के दौरान 1782 मामले दर्ज किए गए थे। जिनमें 35.35% मामलों की कमी दर्ज की गई है। अक्टूबर, 2021 तक 21 मौतों की सूचना मिली थी।
  • अक्टूबर 2021 तक, 99% कालाजार स्थानिक प्रखंडों ने प्रखंड स्तर पर प्रति 10,000 जनसंख्या पर एक से कम मामले का उन्मूलन लक्ष्य हासिल कर लिया है। झारखंड के 6 प्रखंडों को अभी लक्ष्य हासिल करना बाकी है.
  • कालाजार स्वतंत्र मूल्यांकन निष्कर्षों के आधार पर, कालाजार गतिविधियों के कार्यान्वयन को मजबूत किया गया है। गहन कार्य योजना के लिए उच्च प्राथमिकता वाले गांवों की पहचान की गई है। सक्रिय मामले का पता लगाने, प्रकोप प्रबंधन, कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम में परिचालन निर्धारण और राष्ट्रीय कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के तहत कालाजार उन्मूलन स्थिति प्राप्त करने के लिए प्रमाणन और पुरस्कार के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं और आवश्यक कार्रवाई के लिए राज्यों को विधिवत प्रसारित किए गए हैं। .

10.3 डेंगू और चिकनगुनिया

  • चिन्हित प्रहरी निगरानी अस्पतालों (एसएसएच) की संख्या 2020 के 695 से बढ़कर 2021 (30 नवंबर तक) में 713 हो गई है।
  • डेंगू के मामले में मृत्यु दर (सीएफआर) (प्रति 100 मामलों में मृत्यु) 2021 में (30 नवंबर तक) <1% पर बनी रही।

10.4 जापानी इंसेफेलाइटिस

  • 60 पीआईसीयू में से 44 पीआईसीयू (असम-6, बिहार-7, तमिलनाडु-5, उत्तर प्रदेश-16 और पश्चिम बंगाल-10) में काम कर रहे हैं।
  • सभी 10 भौतिक चिकित्सा और पुनर्वास (पीएमआर) विभागों के लिए धन उपलब्ध कराया गया है। 8 पीएमआर (असम-2, तमिलनाडु-1, उत्तर प्रदेश-3 और पश्चिम बंगाल-2) काम कर रहे हैं।
  • 297 स्थानिक जिलों में बच्चों (1-15 वर्ष) में अभियान मोड में जेई टीकाकरण पूरा कर लिया गया है। बच्चों में जेई टीकाकरण अभियान के तहत कवर करने के लिए 39 और जिलों की पहचान की गई है।
  • 31 जिलों (असम (9)), उत्तर प्रदेश (7) और पश्चिम बंगाल (15) को वयस्क जेई टीकाकरण के तहत कवर किया गया है।
  • जेई के निदान के लिए 144 प्रहरी स्थलों और 15 शीर्ष रेफरल प्रयोगशालाओं की पहचान की गई है। 2021 में (16.11.2021 तक) 487 जेई आईजीएम किट की आपूर्ति की गई है।

10.5 लसीका फाइलेरिया

  • 328 स्थानिक जिलों (272 + 56 जिलों के विभाजन के कारण जोड़े गए) में से 134 जिलों ने संचारण आकलन सर्वेक्षण (टीएएस)-1 को मंजूरी दे दी है और इसके परिणामस्वरूप मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) को रोक दिया है। 134 में से, टीएएस-2 को 121 जिलों द्वारा और टीएएस-3 को 60 जिलों द्वारा नवंबर, 2021 तक मंजूरी दी गई है। 2021 के दौरान अब तक (30 नवंबर, 2021) टीएएस-1, टीएएस-2 और टीएएस-3 ने क्रमशः 2, 2 और 7 जिलों को मंजूरी दी।
  • 2021 के दौरान एमडीए के लिए 153 जिलों को लक्षित किया गया, जिनमें से 112 ने अब तक (30 नवंबर, 2021) एमडीए का संचालन किया [(94 डीए 18 ट्रिपल ड्रग थेरेपी आईडीए (इवरमेक्टिन + डीईसी + अल्बेंडाजोल)]
  • क्षेत्रीय कार्यक्रम समीक्षा समूह (आरपीआरजी) डब्ल्यूएचओ की बैठक (वर्चुअल) 14 -17 जून, 2021 को आयोजित की गई थी।
  • 2021 के दौरान (30 नवंबर, 2021 तक) सोशल मीडिया टूल किट तैयार की गई थी और कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और बिहार में एमडीए दौर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सफलतापूर्वक उपयोग की गई थी।

11. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण

  1. खाद्य सुरक्षा और मानक (एफएसएस) अधिनियम, 2006 को खाद्य से संबंधित कानूनों को मजबूत करने और खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानकों को निर्धारित करने के साथ-साथ उनके उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था, ताकि मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा सके। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) की स्थापना सितंबर, 2008 में एफएसएस अधिनियम के प्रावधानों के तहत खाद्य सुरक्षा के सभी मामलों पर सर्वोच्च प्राधिकरण के रूप में और उपभोक्ताओं को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने के लिए की गई थी।
  1. एफएसएसआई ने एफएसएस अधिनियम की धारा 13 के तहत 21 विषय विशिष्ट वैज्ञानिक पैनल का गठन किया है, जिसमें स्वतंत्र वैज्ञानिक विशेषज्ञ शामिल हैं, जो जोखिम मूल्यांकन निकायों के रूप में कार्य करते हैं और अपनी वैज्ञानिक राय प्रदान करते हैं। खाद्य प्राधिकरण को वैज्ञानिक राय प्रदान करने के लिए एफएसएस अधिनियम की धारा 14 के तहत एक वैज्ञानिक समिति भी है । इसका कार्य वैज्ञानिक राय की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सामान्य समन्वय करना और विशेष रूप से कार्य प्रक्रियाओं और वैज्ञानिक पैनल की कार्यप्रणाली के सामंजस्य को अपनाने के संबंध में, एक से अधिक वैज्ञानिक पैनल की क्षमता के भीतर आने वाले बहु-क्षेत्रीय मुद्दों पर राय प्रदान करना और उन मुद्दों पर कार्य समूह स्थापित करना जो किसी भी वैज्ञानिक पैनल की क्षमता के अंतर्गत नहीं आते हैं। वैज्ञानिक समिति और वैज्ञानिक पैनल वैज्ञानिक राय देने और खाद्य मानकों के विकास पर सिफारिश करने के लिए जितनी बार आवश्यक हो उतनी बार बैठक करते हैं

 

  1. 2021 के दौरान, एफएसएसएआई ने खाद्य उत्पादों के विज्ञान आधारित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेंचमार्क मानकों के विकास/संशोधन की दिशा में काम करना जारी रखा। इस अवधि के दौरान, एफएसएसएआई ने 16 अंतिम अधिसूचनाएं और 14 मसौदा अधिसूचनाएं अधिसूचित कीं। अंतिम अधिसूचनाओं में विभिन्न खाद्य पदार्थों के लिए मानक/संशोधित मानक शामिल हैं; चना/दालों की श्रेणी में खेसारी दाल की आकस्मिक घटना की सीमा; सरसों के तेल में किसी भी खाद्य वनस्पति तेल के सम्मिश्रण का निषेध; पाश्चराइज्ड दूध पाउडर के मानक और सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए ग्रहणशीलता की सीमा; विदेशी खाद्य सुविधाओं आदि के पंजीकरण और निरीक्षण की आवश्यकता। मसौदा अधिसूचनाओं में जीएम खाद्य नियम, विभिन्न प्रमुख नियमों में संशोधन और आयुर्वेद आहार और शाकाहारी खाद्य पदार्थों पर दो नए प्रमुख नियम शामिल हैं।
  1. खाद्य व्यवसाय संचालकों की चिंताओं को दूर करने के लिए, व्यापार करने में आसानी की सुविधा, उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करने और साथ ही साथ गलत काम करने वालों के लिए एहतियाती कदम के रूप में के लिए सजा बढ़ाने के लिए, एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 में कई संशोधनों का प्रस्ताव दिया है। वर्तमान अधिनियम में प्रस्तावित महत्वपूर्ण परिवर्तनों में 'निर्यात' और 'पशु आहार' को एफएसएसएआई के दायरे में लाना शामिल है; कोडेक्स और अन्य अधिनियमों आदि के साथ परिभाषाओं का सामंजस्य; अध्यक्ष की भूमिका और कर्तव्यों को परिभाषित करना; विनियमों को शीघ्रता से अंतिम रूप देना सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं की समीक्षा करना; कुछ मौजूदा प्रावधानों में अधिक स्पष्टता लाना; संदर्भ प्रयोगशालाओं के लिए प्रावधान; बिना छेड़छाड़ वाले डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के मामले में खुदरा विक्रेता और वितरकों को देनदारी से बचाना; दंडात्मक प्रावधानों का युक्तिकरण; कुछ मामलों में सुदृढ़ीकरण सहित; कोष आदि के सृजन के लिए प्रावधान। मंत्रालय ने उस पर एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया और प्राप्त प्रतिक्रिया की एफएसएसएआई में जांच की गई और मंत्रालय को टिप्पणियां भेजी गईं। संशोधन प्रस्ताव मंत्रालय में प्रक्रियाधीन है।
  1. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने खाद्य सुरक्षा और पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया था। इस नेटवर्क को "खाद्य सुरक्षा और अनुप्रयुक्त पोषण के लिए वैज्ञानिक सहयोग का नेटवर्क(नेट्सकोफैन)" कहा जाता है और इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 16(3)(e) के तहत स्थापित किया गया है, जो प्राधिकरण को वैज्ञानिक सहयोग, सूचना के आदान-प्रदान, संयुक्त परियोजनाओं के विकास और कार्यान्वयन, विशेषज्ञता के आदान-प्रदान और खाद्य प्राधिकरण की जिम्मेदारी के क्षेत्र में सर्वोत्तम पहलों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध करता है। नेट्सकोफैन की वेबसाइट को माननीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री द्वारा 20 सितंबर, 2021 को लॉन्च किया गया था , जो सभी सहयोगी घटकों के लिए एक संवादात्मक मंच है, जिसमें समूह आसानी से अपनी गतिविधियों की स्थिति को अपडेट कर सकते हैं और नेट्सकोफैन सचिवालय एक स्थान पर समूह की गतिविधियाँ की समीक्षा भी कर सकता है। वेबसाइट में विभिन्न अनुभाग शामिल हैं जैसे कि नेट्सकोफैन  समूह, संसाधन, लॉगिन (ग्रुप और एडमिन के लिए)
  1. देश में सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) को किसी भी खाद्य व्यवसाय को शुरू करने या चलाने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 31 के तहत पंजीकृत या लाइसेंस प्राप्त होना आवश्यक है। खाद्य सुरक्षा और मानक (लाइसेंस और पंजीकरण) विनियम, 2011 एफबीओ को लाइसेंस देने और पंजीकरण की प्रक्रिया को विनियमित करते हैं। खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) को लाइसेंस जारी करने की एक ऑनलाइन प्रक्रिया है। 31.10.2021 तक, 1,03,684 केंद्रीय लाइसेंस, 19,74,014 राज्य लाइसेंस और 83,76,312 पंजीकरण जारी किए गए हैं, जिनमें से 51,236 केंद्रीय लाइसेंस, 8,75,557 राज्य लाइसेंस और 38,98,726 पंजीकरण सक्रिय हैं।
  1. एफएसएस अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों के प्रावधानों का प्रवर्तन मुख्य रूप से राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के साथ है। नामित अधिकारियों और एफएसओ सहित अधिकारियों की अपनी टीम के साथ प्रत्येक राज्य / केंद्रशासित प्रदेश के खाद्य सुरक्षा आयुक्त खाद्य उत्पादों की नियमित निगरानी, जांच, ​​निरीक्षण और नमूने के लिए जिम्मेदार हैं और गैर-अनुपालन के मामलों में एफएसएस अधिनियम के दंड प्रावधानों के तहत कार्रवाई शुरू करते हैं। एफएसएसएआई केंद्रीय सलाहकार समिति के माध्यम से राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों के साथ समन्वय करता है, जो हर तिमाही में बैठक करती है, अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, आदि करती है।
  2. एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा के विभिन्न मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिए राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक विकसित किया है। सूचकांक पांच महत्वपूर्ण मानकों अर्थात् मानव संसाधन और संस्थागत डेटा (भारिता -20%), अनुपालन (30%), खाद्य परीक्षण अवसंरचना और निगरानी (20%), प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण (10%) और उपभोक्ता सशक्तिकरण (20%) पर राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन पर आधारित है। वर्ष 2020-21 के लिए तीसरा राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक 20.09.2021 को जारी किया गया। बड़े राज्यों में, गुजरात शीर्ष रैंकिंग वाला राज्य है, उसके बाद केरल और तमिलनाडु और महाराष्ट्र हैं। छोटे राज्यों में गोवा पहले और उसके बाद मेघालय और मणिपुर का स्थान आता है। केंद्र शासित प्रदेशों में, जम्मू-कश्मीर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और दिल्ली ने शीर्ष स्थान हासिल किया है।
  1. एफएसएसएआई ने 01.10.2021 को उपभोक्ताओं और खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) के लिए 'खाद्य सुरक्षा कनेक्ट' मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया। उपयोगकर्ता अब एफएसएसएआई समाचारों, महत्वपूर्ण सूचनाओं या आदेशों/परामर्श, कार्यक्रमों, पहलों और संसाधन सामग्री से अपडेट रहने के लिए गूगल प्ले स्टोर से इस मोबाइल ऐप को डाउनलोड कर सकते हैं। उपभोक्ता इसके जरिये सिटीजन नॉलेज हब जैसे किताबें, वीडियो, मिथबस्टर्स तक पहुंच सकते हैं। ऐप का उपयोग एफबीओ द्वारा एफएसएसएआई पंजीकरण के लिए आवेदन दाखिल करने और खाद्य उत्पाद परीक्षण, निरीक्षण चेकलिस्ट, थर्ड पार्टी ऑडिट, उत्पाद मानक, खाद्य सुरक्षा डिस्प्ले बोर्ड, खाद्य सुरक्षा मित्र, एफओएसटीएसी प्रशिक्षण, मार्गदर्शन दस्तावेज आदि के लिए अधिसूचित प्रयोगशालाओं से संबंधित जानकारी तक पहुंचने के लिए भी किया जा सकता है।
  1. फोसकोरिस सिस्टम खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के लिए नियामक आवश्यकताओं के अनुसार खाद्य व्यवसायों द्वारा खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता मानकों के अनुपालन को सत्यापित करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को फोसकोरिस के माध्यम से निरीक्षण करने के लिए कहा गया है। एफएसएसएआई ने फोसकोरिस का ऑफलाइन संस्करण भी जारी किया है, जो सीमित मोबाइल नेटवर्क के क्षेत्र में भी काम करता है। 'फोस्कोरिस' नाम का मोबाइल एप गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। इसके अलावा, फोसकोरिस को खाद्य सुरक्षा अनुपालन प्रणाली (फोसकोस) से जोड़ा गया है ताकि संबंधित अधिकारियों और संबंधित खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों द्वारा निरीक्षणों के आवंटन और निरीक्षण रिपोर्ट देखने के वास्तविक समय का पता चल सके। 16.12.2021 तक, फोसकोरिस के माध्यम से खाद्य परिसरों के 1,98,026 निरीक्षण किए गए थे।
  1. एफएसएसएआई समझौता ज्ञापन के माध्यम से देश में खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय दोनों सहायता प्रदान कर रहा है राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर, 2020-21 के दौरान 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समझौता ज्ञापनों को क्रियान्वित किया गया और 64.66 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई। वर्ष 2021-22 के लिए, 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से कार्य प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं और 25 राज्यों के लिए उन्हें अंतिम रूप दिया गया है और 21 राज्यों को 37.87 करोड़ रुपये की धनराशि पहली किश्त के रूप में जारी की गई है।
  1. सरसों युक्त मिश्रित तेलों का उत्पादन 08.06.2021 से प्रतिबंधित कर दिया गया है। नतीजतन, एफएसएसएआई ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को निगरानी और लक्षित प्रवर्तन करने का निर्देश दिया और राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि सम्मिश्रण खाद्य वनस्पति तेलों की सभी विनिर्माण इकाइयों का निरीक्षण किया गया और ऐसी इकाइयों ने निर्णय का अनुपालन किया। इसी प्रकार सभी शहद प्रसंस्करण इकाइयों का चीनी सिरपों की जांच के लिए निरीक्षण किया गया
  1. उपभोक्ताओं को एक सूचित विकल्प रखने के लिए सशक्त बनाने के लिए, एफएसएसएआई ने 01 जनवरी, 2022 से दस या अधिक स्थानों पर केंद्रीय लाइसेंस या आउटलेट वाले खाद्य सेवा प्रतिष्ठानों के लिए सूचना प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया है जानकारी में कैलोरी मान (प्रति किलो कैलोरी और परोसने का आकार) और मेनू कार्ड या बोर्ड या पुस्तिकाओं पर प्रदर्शित खाद्य पदार्थों के खिलाफ खाद्य एलर्जी का उल्लेख शामिल होगा। इसके अलावा, अनुरोध पर उपभोक्ता को पोषण संबंधी जानकारी भी प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
  1. इससे पहले, भारतीय मिठाई और स्नैक्स और नमकीन के छोटे और मध्यम निर्माताओं/पैकरों को अपने खाद्य उत्पादों के तहत केंद्रीय लाइसेंस लेने की आवश्यकता होती थी, जो केवल महंगा था, बल्कि उक्त श्रेणी के लिए भारी अनुपालन भी करता था। ऐसे छोटे और मध्यम खाद्य व्यवसायों के लिए लाइसेंसिंग/पंजीकरण को आसान बनाने के लिए, 'सामान्य विनिर्माण प्रकार के व्यवसाय' के तहत फोसकोस में खाद्य उत्पाद श्रेणी 18 को असाइन करने का निर्णय लिया गया और एफबीओ अपनी उत्पादन क्षमता और कारोबार के आधार पर केंद्रीय/राज्य लाइसेंस या पंजीकरण प्राप्त कर सकते हैं।
  1. विभिन्न प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रदर्शित होने वाले सभी खाद्य और पेय पदार्थों से संबंधित विज्ञापनों की जांच एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, एफएसएसएआई के पास सीमित जनशक्ति के साथ ऐसे सभी मामलों पर संज्ञान लेना मुश्किल है, जिनमें विज्ञापन भ्रामक पाए जाते हैं और उन पर नियमित रूप से नजर रखना भी मुश्किल है। इसलिए, एफएसएसएआई ने एक स्व-नियामक स्वैच्छिक संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो विभिन्न मीडिया में प्रदर्शित होने वाले सभी खाद्य और पेय पदार्थों के विज्ञापनों के गहन ट्रैकिंग, अनुरेखण और मूल्यांकन के लिए है, जो संभावित रूप से एफएसएस अधिनियम, उसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों के प्रावधानों के बाहर जा सकता है और आगे की जांच के लिए एफएसएसएआई को इसकी सिफारिश कर सकता है।
  2. वर्तमान में, एफएसएसएआई नंबर को पैकेज्ड फूड लेबल पर अनिवार्य रूप से प्रदर्शित किया जाना है। उपभोक्ताओं को सेवा/उत्पाद प्रदाता की एफएसएसएआई संख्या जानने में सक्षम बनाने के लिए, एफएसएसएआई ने 01.01.2022 से खाद्य उत्पादों की बिक्री पर खाद्य व्यवसायों द्वारा प्राप्तियों/चालानों/कैश मेमो/बिल आदि पर लाइसेंस/पंजीकरण संख्या का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया है।
  1. 2021 के दौरान, एफएसएसएआई द्वारा खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 43(1) के तहत 43 और खाद्य प्रयोगशालाओं को मान्यता दी गई/अधिसूचित की गई और 09 खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को गैर-अधिसूचित किया गया। इससे अब तक अधिसूचित खाद्य प्रयोगशालाओं की कुल संख्या 188 से बढ़कर 222 हो गई है। सभी एफएसएसएआई अधिसूचित प्रयोगशालाएं एनएबीएल मान्यता प्राप्त हैं। इसके अलावा, 04 राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं (एसएफटीएल) भी एफएसएस अधिनियम की धारा 98 के अस्थायी प्रावधानों के तहत काम कर रही हैं, जिन्हें एफएसएसएआई द्वारा एनएबीएल से मान्यता प्राप्त करने पर अधिसूचित किया जाएगा, जो जल्द ही अपेक्षित है।
  1. वर्ष के दौरान, एफएसएसएआई ने पीपीपी मोड के तहत जेएनपीटी, मुंबई में राष्ट्रीय खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला (एनएफएल) का उद्घाटन किया, जबकि पीपीपी मोड के तहत चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट में एक और एनएफएल जनवरी, 2022 तक तैयार होने की संभावना है। ये एफएसएसएआई की गाजियाबाद और कोलकाता में मौजूदा राष्ट्रीय खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त हैं। पीपीपी मोड के तहत गाजियाबाद लैब की स्थापना की गई है।

19. राज्यों में खाद्य परीक्षण बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना के तहत, 2 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को बुनियादी/उच्च-स्तरीय उपकरणों की खरीद और 2 राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं (एसएफटीएल) के उन्नयन के लिए माइक्रोबायोलॉजी परीक्षण सुविधाओं (सीएएमसी और जनशक्ति के साथ) की स्थापना के लिए वर्ष के दौरान एक करोड़ रुपये का अनुदान जारी किया गया। इसके साथ, 25 एसएफटीएल में माइक्रोबायोलॉजिकल प्रयोगशालाओं की स्थापना सहित 39 राज्य खाद्य प्रयोगशालाओं के उन्नयन के लिए 29 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 313.98 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता मंजूर/जारी की गई है।

20. वर्ष के दौरान, चार रेफरल प्रयोगशालाओं- पंजाब बायोटेक्नोलॉजी इनक्यूबेटर (पीबीटीआई), मोहाली; केंद्रीय/रेफरल खाद्य प्रयोगशाला, पुणे; आईसीएआर- सीआईएफटी, कोच्चि और सीएफआरए-निफ्टेम, सोनीपत को महंगे उपकरणों की खरीद के लिए 7.60 करोड़ रुपये (लगभग) का अनुदान जारी किया गया।

21. 2021 के दौरान 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 70 और फ़ूड सेफ्टी ऑन व्हील्स (एफएसडब्ल्यू) (प्रत्येक की कीमत 37 लाख रुपये) की मंजूरी दी गई है, जिसमें दो साल के लिए 10 लाख रुपये/प्रति वर्ष सीमा तक ईंधन और उपभोग्य सामग्रियों के लिए अनुदान भी हैं। इसने 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करते हुए देश भर में स्वीकृत एफएसडब्ल्यू की कुल संख्या को 90 से बढ़ाकर 160 कर दिया है। प्रत्येक एफएसडब्ल्यू 64 जांच कर सकता है। इन सचल खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं का उपयोग राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा विशेष रूप से दूरस्थ क्षेत्रों में खाद्य परीक्षण, प्रशिक्षण और जागरूकता पैदा करने के लिए किया जा रहा है।

22. एफएसएसएआई देश भर में एक नमूना प्रबंधन प्रणाली (एसएमएस) लागू कर रहा है जिसके तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के खाद्य सुरक्षा विभागों को खाद्य नमूनों के भंडारण और परिवहन के लिए कोल्ड चेन सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। एफएसएसएआई ने अब तक 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 796 कॉम्पैक्ट कैबिनेट, 797 व्हीकल माउंटेड मोबाइल फ्रीजर बॉक्स, 2545 पोर्टेबल चिल बॉक्स और 2545 बैकपैक स्टाइल बैग प्रदान किए हैं। राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की तैयारी के अनुसार शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एसएमएस उपलब्ध कराए जाएंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा लिए गए खाद्य नमूने नमूनों की प्रामाणिकता को बनाए रखते हुए कोल्ड चेन के तहत खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं तक पहुंचें।

23. एफएसएसएआई परीक्षण उपकरण, जनबल, परीक्षण क्षेत्र आदि के संदर्भ में राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं का अंतराल विश्लेषण करने की प्रक्रिया में है। इससे एफएसएसएआई को भारत में खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को मजबूत करने में मदद मिलेगी। यह कार्य एक विधिवत चयनित फर्म को प्रदान की गई है और अंतिम रिपोर्ट मार्च, 2022 तक उपलब्ध होने की संभावना है।

24 . एफएसएसएआई ने अगस्त, 2020 में 15 विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों पर एक अखिल भारतीय खाद्य तेल सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों को संबंधित राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/खाद्य सुरक्षा आयुक्तों के साथ उचित कार्रवाई के लिए साझा किया गया है। इसके अलावा, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के सचिव को खाद्य तेलों में एफ्लाटॉक्सिन, कीटनाशक अवशेषों और भारी धातुओं की मौजूदगी के संबंध में सर्वेक्षण में गैर-अनुपालन के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए सूचित किया गया था।

25. दूध उत्पादों की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए देश में त्योहार की अवधि (दिवाली) के दौरान नवंबर 2020 में दुग्ध उत्पादों (खोया / पनीर / खोया आधारित और पनीर आधारित मिठाई) पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण की रिपोर्ट भविष्य की कार्रवाई के लिए अंतिम रूप दिए जाने की प्रक्रिया में है।

26.औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-फैट और एक्रिलामाइड सामग्री पर अखिल भारतीय आधारभूत सर्वेक्षण 29 जून से 2 जुलाई,2021 को 6 चयनित खाद्य श्रेणियों में आयोजित किया गया था। ट्रांस-फैट का विश्लेषण 6 पूर्व-निर्धारित खाद्य  श्रेणियों (मिठाई, टॉपिंग और चॉकलेट; तले हुए खाद्य पदार्थ; बेकरी और कन्फेक्शनरी उत्पाद; फ्रोजन खाद्य पदार्थ; मिश्रित खाद्य पदार्थ और तेल, वनस्पति , शॉर्टनिंग और मार्जरीन) में किया गया था और एक्रिलामाइड का विश्लेषण चयनित 6 श्रेणियों में से तीन श्रेणियों में किया गया था (तले हुए खाद्य पदार्थ; बेकरी और कन्फेक्शनरी और मिश्रित खाद्य पदार्थ) माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने 20 सितंबर,2021 को पैन-इंडिया सर्वे की रिपोर्ट जारी की थी। परिणामों से पता चला कि केवल 3.14% (196 नमूनों) में 2% से अधिक ट्रांस-फैट था। सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चला है कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग 2022 तक खाद्य पदार्थों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस- फैट को समाप्त करने के लिए एफएसएसएआई के विनियमन के बारे में सकारात्मक है।

27. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 25 के अनुसार, खाद्य पदार्थों के सभी आयात अधिनियम के प्रावधानों के अधीन हैं। यह निर्धारित करता है कि कोई भी व्यक्ति अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों के उल्लंघन में भारत में किसी भी खाद्य पदार्थ का आयात नहीं करेगा अधिनियम की शक्ति का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार ने खाद्य प्राधिकरण की सिफारिशों पर 9 मार्च, 2017 को एफएसएस (आयात) विनियम,2017 को अधिसूचित किया।

28. देश में खाद्य आयात को प्रवेश के 150 युक्तियुक्त बिंदुओं पर विनियमित किया जा रहा है एफएसएसएआई की पहले ही 6 स्थानों अर्थात् चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, कोच्चि और तूतीकोरिन में 22 प्रवेश बिंदुओं पर उपस्थिति हो चुकी थी। हालांकि, इस अवधि के दौरान, एफएसएसएआई ने कृष्णापट्टनम , मुंद्रा , कांडला , हैदराबाद, विशाखापत्तनम, अहमदाबाद और बेंगलुरु में नए खाद्य आयात प्रवेश बिंदुओं और परिचालन कार्यालयों को सीधे नियंत्रण में लाया है। इसके साथ ही, खाद्य आयात के कुल 53 प्रवेश बिंदु एफएसएसआई के अधिकारियों के सीधे नियंत्रण में हैं। अन्य 97 प्रवेश बिंदुओं पर एफएसएसएआई द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार खाद्य पदार्थ के माल की निकासी को विनियमित करने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों को अधिकृत अधिकारियों के रूप में अधिसूचित किया गया है, जिसके लिए उन्हें अपेक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। सीमा शुल्क अधिकारियों के लिए एक ऑनलाइन प्रशिक्षण पोर्टल विकसित किया गया है जिसे 24x7 एक्सेस किया जा सकता है।

29. एफएसएसएआई की अपनी खाद्य आयात मंजूरी प्रणाली (एफआईसीएस) है जो एक ऑनलाइन प्रणाली है, जो स्विफ्ट (व्यापार को सुगम बनाने के लिए एकल खिड़की इंटरफेस) के तहत सीमा शुल्क के आईसीई-गेट (इंडियन कस्टम्स इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स/इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज (ईसी/ईडीआई) गेटवे) के साथ एकीकृत है। सीमा शुल्क विभाग एफएसएसएआई के परामर्श से स्विफ्ट के तहत जोखिम प्रबंधन प्रणाली (आरएमएस), यानी चुनिंदा नमूनाचयन और खाद्य पदार्थों का परीक्षण लागू करता है। एफएसएसएआई ने आयातित खाद्य पदार्थों पर लागू होने वाले आरएमएस के मानदंड निर्धारित किए हैं। एफआईसीएस में खेप/प्रवेश बिल (बीओई) भेजने से पहले आईसीई-गेट में आरएमएस लागू किया जा रहा है। एफएसएसएआई सीमा शुल्क विभाग को अनापत्ति प्रमाण पत्र या गैर-अनुकूल रिपोर्ट जारी करने से पहले प्रयोगशालाओं में 3 स्तरीय जांच - दस्तावेज, दृश्य निरीक्षण और खाद्य नमूना परीक्षण करता है।

30. इस अवधि के दौरान, एफएसएसएआई ने 3.11.2021 को एफएसएस (आयात) संशोधन विनियमों को अधिसूचित किया है, जिसमें भारत को खाद्य निर्यात करने वाली विदेशी खाद्य सुविधाओं के लाइसेंस/पंजीकरण और उसके निरीक्षण के प्रावधान हैं। इसके अलावा, समय पर प्रसंस्करण और मंजूरी सुनिश्चित करने के लिए दालों और खाद्य तेलों के आयात की सुविधा के लिए, यह स्पष्ट किया गया था कि दालों और खाद्य तेल के आयातक एफएसएसएआई के एफआईसीएस में प्रवेश बिलों की अग्रिम फाइलिंग कर सकते हैं। प्राधिकृत अधिकारियों को बिना किसी देरी के प्राथमिकता के आधार पर खाद्य आयात निकासी प्रक्रिया को सुगम बनाने और पूरा करने के लिए कहा गया था और यदि आवश्यक हो, तो प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सप्ताहांत पर भी जांच / दृश्य निरीक्षण / नमूनाकरण किया जा सकता है। औसत मंजूरी समय पिछले वर्ष के 125 घंटे से घटकर 110 घंटे रह गया है।

31.एफएसएसएआई ने एफएसएसएआई के खाद्य आयात मंजूरी प्रणाली (एफआईसीएस) के साथ एसईजेड में संचालित एनएसडीएल की एसईजेड ऑनलाइन प्रणाली का एकीकरण किया है। इसे 01.09.2021 से लागू किया गया है। अधिसूचित एसईजेड पीओई में दाखिल किए गए खाद्य आयात के लिए बिल ऑफ एंट्री अब खाद्य आयात मंजूरी उद्देश्यों के लिए एफएसएसएआई को निर्बाध रूप से ऑनलाइन प्रेषित किए जाते हैं।

32.एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 की अनुसूची IV के आधार पर अच्छी स्वच्छता और विनिर्माण प्रणाली पर ध्यान देने के साथ विभिन्न प्रकार के खाद्य व्यवसायों के लिए 4-12 घंटे के 19 लघु अवधि के कार्यक्रमों के साथ मई 2017 में खाद्य सुरक्षा प्रशिक्षण और प्रमाणन (फोसटैक) कार्यक्रम शुरू किया था।  इस पहल के तहत, 2021 के दौरान 3.17 लाख से अधिक खाद्य संचालकों को 261 प्रशिक्षण भागीदारों और 2100 से अधिक प्रशिक्षकों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है। इसके अलावा, 793 प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से, एफएसएसएआई ने 27,000 से अधिक स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान किया है। इसके अलावा, एफएसएसएआई ने विशेष रूप से कोविड-19 निवारक दिशानिर्देशों पर खाद्य व्यवसाय संचालकों के लिए 2 घंटे का ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया था। वर्ष के दौरान, 81 कोविड-19 प्रशिक्षण आयोजित किए और 1500 से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षित एवं प्रमाणित प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण ऑनलाइन/ऑफलाइन दिया जा रहा है इसके अलावा, इस अवधि के दौरान, 200 से अधिक नियामक कर्मियों के लिए प्रेरण/पुनश्चर्या पाठ्यक्रम भी संचालित किए गए हैं।

33. एफएसएसएआई ने सूक्ष्म स्तर के खाद्य उद्यमियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को उनके खाद्य व्यवसायों की खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता मानकों में सुधार के लिए सहयोग करने के लिए 1.10.2021 को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इन सूक्ष्म स्तरीय खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के खाद्य संचालकों को अच्छी स्वच्छता, खाद्य परीक्षण प्रक्रिया और अन्य नियामक आवश्यकताओं की समझ पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। एफएसएसएआई लाइसेंस और पंजीकरण प्राप्त करने में भी सहायता प्रदान की जाएगी।

34.एफएसएसएआई ने ‘ईट राइट इंडियाआंदोलन शुरू किया है। यह एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसमें सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन के माध्यम से निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान दिया जाता है। यह तीन प्रमुख विषयों पर आधारित है- ईट सेफ, ईट हेल्दी और ईट सस्टेनेबल। यह खाद्य व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए विभिन्न हस्तक्षेपों के लिए नियामक, सक्षम और क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के मिश्रण का उपयोग करके खाद्य सुरक्षा, जन स्वास्थ्य पोषण और पर्यावरणीय स्थिरता को एकीकृत करता है। इस पहल के तहत नियमित आधार पर कई तरह की पहल की जा रही है। इसकी देखरेख एक अंतर-मंत्रालयी संचालन समिति करती है।

35. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में विभिन्न ईट राइट पहलों को बढ़ाने के लिए, विभिन्न पहलों को अपनाने और बढ़ाने में उनके प्रयासों को पहचानने के लिए जिलों और शहरों के लिए ' ईट राइट चैलेंज' नामक एक प्रतियोगिता शुरू की गई। देश भर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 188 शहरों और जिलों ने इस चुनौती में भाग लिया, जिसका समापन दिसंबर, 2021 में हुआ है।

36. एफएसएसएआई ने भारत के स्मार्ट शहरों में सही भोजन पद्धतियों और आदतों का वातावरण बनाने के उद्देश्य से, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत स्मार्ट सिटी मिशन के साथ साझेदारी में, ईट स्मार्ट सिटीज चैलेंज भी शुरू किया। इस चैलेंज में 109 स्मार्ट सिटीज ने हिस्सा लिया।

37. एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा और पोषण के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और मान्यता देने के लिए विभिन्न शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों के साथ व्यापक सहयोग करने के लिए ईट राइट रिसर्च अवार्ड्स एंड ग्रांट लॉन्च किया है ताकि खाद्य फॉर्मूलेशन और/या प्रौद्योगिकियों (परिभाषित मानकों के अनुसार) को अद्यतन या उन्नत किया जा सके और सुरक्षित तथा स्वस्थ भोजन के अधिक प्रकारों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके और उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। आवेदन 15 दिसंबर, 2021 तक आमंत्रित किए गए थे।

38. एफएसएसएआई अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से स्वस्थ भोजन विकल्पों के बारे में जागरूकता फैला रहा है। एफएसएसएआई बेहतर पोषण के लिए गेहूं/चावल से लेकर बाजरा और अन्य स्वदेशी अनाज तक के विभिन्न प्रकार के साबुत अनाज को बढ़ावा देता है। मौसमी सब्जियों और स्वदेशी खाद्यान्न को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया पर "रेसिपी रविवर " सहित कई प्रयास किए जा रहे हैं ईट राइट इंडिया पर विभिन्न स्क्रॉल संदेश और एफबीओ के लिए लाइसेंसिंग और पंजीकरण प्रक्रिया से संबंधित आवश्यक आवश्यकताओं से जुड़ी जानकारियों को को डीडी न्यूज, डीडी किसान और डीडी क्षेत्रीय केंद्रों पर प्रसारित किया गया।

 

39. वर्ष के दौरान विभिन्न संसाधन सामग्री और सरल व्यंजनों वाली कई रेसिपी पुस्तकें जारी की गई हैं। ये पुस्तकें हैं:

  • घर की रसोई टेस्टी भी , हेल्दी भी ': इसमें एफएसएसएआई के कर्मचारियों द्वारा घर में ही तैयार की गई रेसिपी शामिल हैं।
  • 'इंडी-जीनियस रेसिपी बुक': हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित करने के लिए भारत द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव को अपनाया। इस पृष्ठभूमि के साथ, भारत की आजादी के 75 साल पूरा होने के अवसर पर "इंडी-जीनियस फूड चैलेंज " नामक एक स्वस्थ नुस्खा प्रतियोगिता शुरू की गई थी। चुनौती ने केवल लोगों को स्वदेशी बाजरा और अन्य अनाजों के लाभों के बारे में जानने के लिए जागरुक बनाया बल्कि उन्हें अभिनव रूप से इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पुस्तक में 75 महत्त्वपूर्ण व्यंजनों का उल्लेख किया गया है।
  • 'प्लांट प्रोटीन ब्रेकफास्ट रेसिपी बुक': इसमें प्रोटीन के पौधों पर आधारित स्रोतों पर जोर देने के साथ व्यंजनों का संकलन किया गया है।
  • 'हिस्ट्री एंड फूड (इतिहास और भोजन)': भारतीय खाना पकाने की विधि की उत्पत्ति 5000 साल पहले हुई है। विभिन्न खाद्य पदार्थ हैं जो ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हैं। यह पुस्तक विभिन्न व्यंजनों के विकास के पीछे की कहानी को बताती है और प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत तरीके से प्रस्तुत की गई है।
  • 'नेशनल लो सॉल्ट कुकिंग चैलेंज': प्रतियोगिता के दौरान कम नमक का उपयोग करके और भोजन के स्वाद से समझौता किए बिना आम खाद्य पदार्थों को पकाने के तरीकों से बना गए व्यंजनों को संकलित किया गया है।

* ये -किताबें लोगों के लिए वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध हैं।

40. इसके अलावा, 'भारत की आजादी के 75 साल पूरा होने के उपलक्ष्य में आयोजित किए जा रहे 'आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए एफएसएसएआई भारत भर के 75 शहरों में "ईट राइट वॉकथॉन और ईट राइट मेला" का आयोजन कर रहा है। आयोजनों का उद्देश्य सुरक्षित, स्वस्थ और सतत आहार के संदेश का प्रचार करना है। मेले के दौरान बाजरा और आहार को पौष्टिक बनाने पर ध्यान दिया जाता है।

41. ईट राइट टूल किट- यह फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली एक किट है जिसका उपयोग वे जिस समुदाय के साथ काम कर रहे हैं, उसे संवेदनशील बनाने के लिए करते हैं। 'ईट राइट टूलकिट' कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय और राज्य प्रशिक्षकों के लिए टीओटी को एफएसएसएआई, एनएचएसआरसी और वीएचएआई द्वारा सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए संयुक्त रूप से पूरा किया गया है।

42. जनसंख्या के सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति में सुधार करने के लिए, पिछले एक वर्ष में एफएसएसएआई ने देश में फूड फोर्टिफिकेशन को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग, महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, नीति आयोग और अन्य विकास भागीदारों के साथ समन्वय और भागीदारी की है। उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड के माध्यम से विभिन्न हितधारकों का नियमित प्रशिक्षण दिया गया।

दिल्ली के लिए आंगनबाडी केंद्रों में मुख्य खाद्य सुदृढ़ीकरण के क्रियान्वयन पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए गए। केन्द्रीय भंडार, नेफेड जैसी उपभोक्ता सहकारी समितियों के साथ संवेदीकरण कार्यशालाएं उनके बिक्री कर्मचारियों के साथ आयोजित किए गए ताकि वे स्टोर में फोर्टिफाइड स्टेपल को बढ़ावा दे सकें और उपभोक्ताओं को + एफ उत्पादों के स्वास्थ्य लाभों के बारे में सूचित कर सकें। फूड फोर्टिफिकेशन को बढ़ाने के लिए कई राष्ट्रीय राज्य स्तरीय वेबिनार किए गए। विश्व दुग्ध दिवस 2021 पर एफएफआरसी, एफएसएसएआई और जीएआईएन द्वारा संयुक्त रूप से एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया था, जिसमें इस बात पर विचार-विमर्श किया गया था कि कैसे जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए फोर्टिफिकेशन के माध्यम से इस पौष्टिक भोजन को और बेहतर बनाया जा सकता है। प्रमुख पत्रिकाओं/ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्मों पर फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों और उनके स्वास्थ्य लाभों पर लेखों के माध्यम से आम लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए व्यापक प्रयास किए गए हैं।

43.सभी क्षेत्रीय भाषाओं में राइस फोर्टिफिकेशन पर लघु फिल्में बनाई गईं और उपभोक्ता जागरूकता के लिए राज्य के अधिकारियों और डीओएफपीडी को भेजी गईं। मध्य प्रदेश के तीन जिलों में आईसीडीएस योजना के तहत फोर्टिफाइड चावल की खपत पर सामुदायिक प्रतिक्रिया एकत्र करने पर आईईसी गतिविधियाँ की गईं। हाल ही में स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के अवसर पर, माननीय प्रधानमंत्री ने 2024 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की घोषणा की। चावल के पौष्टिकरण को बढ़ाने के लिए एफएसएसएआई उपभोक्ताओं, नागरिक समाज, दाताओं, आदि की भागीदारी के साथ मजबूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से कार्यक्रम को सफल बनाने और स्थिरता प्रदान करने में सभी हितधारकों के प्रयासों को एकजुट करने और तालमेल बिठाने की दिशा में काम कर रहा है।

44. भारत के 40 शहरों में 19 जुलाई से 20 अगस्त 2021 तक फोर्टिफाइड दूध के प्रति जनता को जागरूक करने और + एफ लोगो को लोकप्रिय बनाने के लिए एक रेडियो अभियान चलाया गया। बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए अभियान को बढ़ावा देने के लिए डेयरियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया है। ज़ी जेस्ट चैनल पर पर एक शो शेफ हरपाल सिंह सोखी के साथ ग्रैंड ट्रंक रसोई के माध्यम से फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया गया, जिन्होंने फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का उपयोग करके व्यंजन तैयार किए। उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए ऑनलाइन किराना स्टोर के माध्यम से पैम्फलेट और स्टिकर वितरण किए गए।

45.एफएसएसएआई ने भारत के नेशनल कोडेक्स कॉन्टैक्ट प्वॉइंट (एनसीसीपी) के रूप में कार्य करना जारी रखा, और अंतरराष्ट्रीय मानकों के विकास के लिए कोडेक्स कार्य में सक्रिय रूप से भाग लिया जो खाद्य उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सुरक्षा और निष्पक्ष प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए आधारभूत चीज है। कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन के सहायक निकाय की ऑनलाइन बैठकें आयोजित की गईं। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने वर्ष के दौरान विभिन्न ऑनलाइन बैठकों में भाग लिया। भारत ने विशिष्ट प्रस्ताव दिए और/या यह सुनिश्चित किया कि भारत की चिंताओं का समाधान किया जाए।

46. एफएसएसएआई विभिन्न देशों के साथ बातचीत और सहयोग विकसित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए नियमित रूप से काम कर रहा है जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार भोजन, स्वच्छता, सुरक्षा आदि के तकनीकी मानकों को तैयार करने में मदद करेगा। एफएसएसएआई ने वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग के लिए विभिन्न देशों की नौ समकक्ष एजेंसियों के साथ समझौता किया है जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मानकों में निरंतरता को बढ़ावा देता है। यह नियमित रूप से विभिन्न देशों के साथ विभिन्न स्तरों पर बैठकों का आयोजन करता है/भाग लेता है, सहयोग के संभावित क्षेत्रों पर चर्चा करता है और सर्वोत्तम प्रद्धतिओं को समझता है और उसे कार्यान्वित करता है।इसके अलावा, द्विपक्षीय बैठकें/इंटरफेस देशों को एफएसएसएआई के कार्य को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहे हैं।

47. वर्ष 2018 में एफएसएसएआई की स्वीकृत संख्या 356 से बढ़ाकर 824 कर दी गई थी। 2019 में विभिन्न स्तरों पर 288 पदों के लिए पहले चरण की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी जो पहले ही पूरी हो चुकी है। 250 से अधिक चयनित उम्मीदवार पहले ही विभिन्न पदों के लिए कार्यभार ग्रहण कर चुके हैं। वर्तमान में प्राधिकरण में सीधी भर्ती/प्रतिनियुक्ति/अनुबंध के आधार 563 व्यक्ति कार्यरत हैं। 37 उप निदेशक और संयुक्त निदेशक स्तर के पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया एक उन्नत चरण में है और उम्मीद है कि ये पद शीघ्र ही भरे जाएंगे। इसके अलावा, एफएसएसएआई ने कुछ और श्रेणियों में रिक्त पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया भी शुरू की है। इन पदों के लिए विज्ञापन 2.10.2021 को प्रकाशित किया गया था।

 

12. वर्ष 2021 के लिए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की स्थिति और प्रमुख उपलब्धियां:

  • भारत सरकार वर्तमान में देश में एचआईवी/एड्स महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह से वित्त पोषित केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी)-चरण IV (विस्तार) को लागू कर रही है। कार्यक्रम के तहत, एचआईवी रोकथाम-जांच-उपचार-प्रतिधारण में व्यापक सेवाएं 1,471 गैर-सरकारी संगठनों/समुदाय-आधारित संगठनों के माध्यम से लक्षित हस्तक्षेपों, लगभग 34,500 एचआईवी परामर्श और जांच/स्क्रीनिंग केंद्रों और 645 एआरटी केंद्रों के माध्यम से पेश की जा रही हैं।
  • जनवरी 2021 से नवंबर 2021 के दौरान, कार्यक्रम के तहत उच्च जोखिम वाले समूह और ब्रिज आबादी के लगभग 80 लाख लोगों को शामिल किया गया था। इसी अवधि में, एचआईवी के लिए लगभग 3.74 करोड़ स्क्रीनिंग और जांच की गई, जिसमें 0.51% (सामान्य व्यक्ति) और 0.05% (गर्भवती महिलाएं) की पॉजिटिविटी वाली लगभग 1.64 करोड़ गर्भवती महिलाएं शामिल थीं। नवंबर 2021 तक, निजी क्षेत्र में लगभग 1.06 लाख सहित लगभग 15.21 लाख एचआईवी संक्रमित लोग एआरटी पर थे।
  • राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) चरण IV (विस्तारित) 31 मार्च 2021 (वित्त वर्ष 2017-21) को समाप्त हो गया है। 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2026 तक 5 वर्षों की अवधि के लिए एनएसीपी को जारी रखने के लिए, दिनांक 21 सितंबर 2021 को वित्त सचिव और सचिव (व्यय) की अध्यक्षता में हुई बैठक में 15,471,94 रुपये के परिव्यय के साथ व्यय वित्त समिति (ईएफसी) मेमो का मूल्यांकन किया गया है। चालू वित्त वर्ष (2021-22) के दौरान, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के लिए बजट अनुमान 2900.00 करोड़ रुपये है, जिसमें से 1445.75 करोड़ रुपये का व्यय 29 दिसंबर 2021 तक किया गया है।
  • भारत में एचआईवी/एड्स महामारी निम्न स्तर पर बनी हुई है, जिसमें वयस्क (15-49 वर्ष) 2020 में एचआईवी प्रसार 0.22% है (एचआईवी अनुमान 2020) अनुमान है कि देश में लगभग 23.19 लाख लोग एचआईवी/एड्स के साथ जी रहे हैं। कुल मिलाकर, कार्यक्रम का प्रभाव 2010 से नए एचआईवी संक्रमण में लगभग 48% की गिरावट के साथ महत्वपूर्ण रहा है। इसी तरह, अनुमानित एड्स से संबंधित मृत्यु में 2010 से 88% की गिरावट आई है। यूएनएड्स 2020 के आंकड़ों के अनुसार, नए संक्रमणों में गिरावट के लिए वैश्विक औसत और एड्स से संबंधित मौतें 2010 के बाद से क्रमशः 31% और 47% रही हैं।
  • पहले 90 के संदर्भ में, अनुमानित पीएलएचआईवी के लगभग 76% (17.75 लाख) को 2019-20 में अपनी एचआईवी स्थिति के बारे में पता चला था जो 2020-21 में बढ़कर 78% (18.10 लाख) हो गया है। पीएलएचआईवी में से जो अपनी एचआईवी स्थिति जानते हैं, 2019-20 में लगभग 84% (14.86 लाख) और 2020-21 में 83% (14.94 लाख) एआरटी (दूसरा 90) पर थे। 2019-20 में, एआरटी पर पीएलएचआईवी में, जिनका वायरल लोड के लिए परीक्षण किया गया था, 84% वायरल रूप से दबा दिए गए थे जो 2020-21 (तीसरा 90) में बढ़कर 85% हो गए। जैसा कि स्पष्ट है, 2019-20 की तुलना में 2020-21 में पहले और तीसरे 90 पर प्रगति महत्वपूर्ण रही है।
  • एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक (यूएनजीए एचएलएम) न्यूयॉर्क में 8 से 10 जून 2021 तक आयोजित की गई थी। बैठक हाइब्रिड मोड में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से आयोजित की गई थी। माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। एक राजनीतिक घोषणा जिसमें 95-95-95 लक्ष्यों और 2030 लक्ष्य की प्रगति की दृष्टि और दृष्टिकोण शामिल है, को उच्च स्तरीय बैठक के दौरान अपनाया गया था।
  • द ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस एंड एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल) एक्ट' किसी भी सामाजिक, चिकित्सीय, शैक्षिक, रोजगार और वित्तीय भेदभाव से एचआईवी/एड्स से संक्रमित और प्रभावित सभी लोगों को कानूनी रूप से बचाने के लिए अधिनियमित और कार्यान्वित किया गया है।
  • अब तक, नाको ने अपने अधिदेश के तहत एचआईवी/एड्स प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए प्रमुख मंत्रालयों/विभागों के साथ 18 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • डोलटेग्रेविर आधारित रेजिमेन का रोल आउट: कम साइड इफेक्ट, बेहतर वायरल दमन, और प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए उच्च सीमा को देखते हुए एनएसीपी के तहत डोलटेग्रेविर आधारित एंटी-रेट्रोवायरल रेजिमेन शुरू किया गया है। वर्तमान में 9.78 लाख से अधिक रोगियों को डोलटेग्रेविर रेजिमेन में परिवर्तित किया गया है जो कार्यक्रम के तहत एआरटी पर कुल पीएलएचआईवी का लगभग 70% है।
  • 'परीक्षण और उपचार' नीति को अपनाने के साथ, एचआईवी (पीएलएचआईवी) के साथ रहने वाले सभी लोग एआरटी पहल के लिए पात्र हैं, चाहे उनकी सीडी4 गणना या डब्ल्यूएचओ स्टेजिंग कुछ भी हो। वर्तमान प्रणाली के तहत, पीएलएचआईवी को एआरटी शुरू करने से पहले विशेष रूप से प्रयोगशाला जांच के लिए एआरटी केंद्रों के कई दौरे करने की आवश्यकता होती है। इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, पीएलएचआईवी के बीच एआरटी की शुरुआत के लिए सभी एआरटी केंद्रों के लिए एक विशेष एल्गोरिदम जारी किया गया था। एल्गोरिथम में कहा गया है कि उसी दिन/एआरटी की तीव्र शुरुआत, जहां भी संभव हो, सुविधा प्रदान की जाती है। यह पहल एआरटी की शुरुआत में अनावश्यक देरी से बचने और पीएलएचआईवी को होने वाली असुविधा से बचने में मदद करेगी, जिसके कारण कुछ मरीज एआरटी शुरू होने से पहले ही एलएफयू बन जाते हैं।
  • आजादी का अमृत महोत्सव के बैनर तले नाको ने एचआईवी/एड्स, क्षय रोग और स्वैच्छिक रक्तदान पर तीन प्रमुख जागरूकता अभियान चलाए हैं। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में, एचआईवी, टीबी और स्वैच्छिक रक्तदान दिवस के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए पूरे वर्ष में 75 स्कूलों और 75 रेड रिबन क्लबों (आरआरसी) को चरणबद्ध तरीके से जोड़ने की परिकल्पना की गई है।
  • नाको ने अगस्त, 2021 से आजादी का अमृत महोत्सव यानी के तहत न्यू इंडिया@75 के पहले चरण के शुभारंभ के दौरान अपना इंस्टाग्राम अकाउंट शुरू किया है। इसके साथ नाको अब चार प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यानी फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर @नाकोइंडिया के रूप में मौजूद है। नाको ने पूरे वर्ष अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई प्रचार अभियान चलाए हैं जैसे कि इंडिया@75 का पूरा चरण I, इंडिया@75 के चरण II, विश्व एड्स दिवस और कई अन्य कार्यक्रम चलाए गए।
  • राष्ट्रीय युवा दिवस पर 12 जनवरी 2021 को राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) द्वारा 'रेड रिबन क्विज प्रतियोगिता का ग्रैंड फिनाले' आयोजित किया गया था। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का उद्देश्य एचआईवी/एड्स और संबंधित मुद्दों पर युवाओं में जागरूकता पैदा करना था। राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए टीमों का चयन करने के लिए, 518 जिलों को शामिल करते हुए, जिला स्तर पर शुरू होने वाले देश भर में 'रेड रिबन क्विज प्रतियोगिता' की योजना बनाई गई थी। इन राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं के विजेताओं ने तब क्षेत्रीय स्तरों पर भाग लिया। इसके बाद देश के चार क्षेत्रों की विजेता टीम ने 'रेड रिबन क्विज प्रतियोगिता के ग्रैंड फिनाले' में भाग लिया।
  • एआरटी सेवाओं 2021 के लिए राष्ट्रीय परिचालन दिशानिर्देश और एंटी-रेट्रोवायरल उपचार 2021 पर राष्ट्रीय तकनीकी दिशानिर्देश 1 दिसंबर 2021 को जारी किए गए थे।
  • नाको ने संपूर्ण सुरक्षा रणनीति (एसएसएस) शुरू की है, जो एक नया इमर्शन लर्निंग मॉडल है जो एचआरजी और अन्य "जोखिम वाली" आबादी के लिए एक कलंक-मुक्त वातावरण में एक व्यापक एचआईवी/एसटीआई सेवा पैकेज प्रदान करता है।
  • नाको के निरंतर प्रयासों और मार्गदर्शन से, सभी 64 सार्वजनिक क्षेत्र की वायरल लोड प्रयोगशालाएं कार्यारत हो गई हैं और नियमित वायरल लोड जांच कर रही हैं।
  • नाको ने इन केंद्रों पर की जा रही जांच की गुणवत्ता बनाए रखने के उपाय के रूप में स्टैंड अलोन इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर्स (एसए-आईसीटीसी) के लिए गुणवत्ता आश्वासन योजना (क्यूएएस) शुरू की है। नाको के निरंतर समर्थन और प्रयासों से, कुछ एसए-आईसीटीसी को उच्चतम स्तर की गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए प्रमाणित किया गया है।

13. -स्वास्थ्य

राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा

राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा "-संजीवनी" मंत्रालय की एक डिजिटल स्वास्थ्य पहल है जिसमें दो प्रकार की टेली-परामर्श सेवाओं-डॉक्टर-टू-डॉक्टर (-संजीवनी) और रोगी-टू-डॉक्टर (-संजीवनी ओपीडी) टेली-परामर्श की व्यवस्था है। -संजीवनी को नवंबर 2019 में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एबी-एचडब्ल्यूसी) कार्यक्रम के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य दिसंबर 2022 तक सभी 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में 'हब और स्पोक' मॉडल में टेली-परामर्श सेवा को लागू करना है। राज्यों में एनएचएम ने एसएचसी और पीएचसी में स्थापित 'स्पोक' के लिए टेली-परामर्श सेवा को सक्षम बनाने के लिए मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में समर्पित 'हब' की पहचान और स्थापना की है।

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर, 13 अप्रैल 2020 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए बिना किसी शुल्क के रोगियों को सीधे उनके घर में ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा प्रदान करने के लिए अपनी तरह का पहला 'ई-संजीवनी ओपीडी' शुरू किया।

-संजीवनी ने लगभग 2 करोड़ परामर्श पूरे कर लिए हैं। 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में प्रतिदिन 1,00,000 से अधिक रोगी इन स्वास्थ्य सेवाओं की मांग कर रहे हैं। -संजीवनी और -संजीवनी ओपीडी प्लेटफार्मों के माध्यम से सबसे अधिक परामर्श पंजीकृत करने वाले शीर्ष दस राज्य आंध्र प्रदेश (7665939), कर्नाटक (3281070), तमिलनाडु (1744038), उत्तर प्रदेश (1537339), पश्चिम बंगाल (1262330), बिहार (632474), गुजरात (590564), मध्य प्रदेश (577513), महाराष्ट्र (574457), उत्तराखंड (345342) हैं।

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम): वर्ष 2019 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने डिजिटल स्वास्थ्य पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक तंत्र के रूप में नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट (एनडीएचबी) जारी किया।

एनडीएचबी में प्रस्तावित एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य परितंत्र बनाने की दृष्टि से, 15 अगस्त 2020 को, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने छह केंद्र शासित प्रदेशों (अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव, लक्षद्वीप, लद्दाख और पुडुचेरी) में पायलट आधार पर राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (अब आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के रूप में जाना जाता है) के शुभारंभ की घोषणा की। एनडीएचबी की तीन प्रमुख रजिस्ट्रियां- हेल्थ आईडी, हेल्थ प्रोफेशनल रजिस्ट्री (एचपीआर), हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री (एचएफआर) और डेटा एक्सचेंज के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर इन केंद्र शासित प्रदेशों में विकसित और कार्यान्वित किए गए हैं।

27 सितंबर, 2021 को, माननीय प्रधानमंत्री ने देश के एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की सहायता करने के लिए आवश्यक आधार विकसित करने के उद्देश्य से आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) (जिसे पहले राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के रूप में जाना जाता था) के राष्ट्रव्यापी शुभारंभा की घोषणा की।

14. राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी)

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) का मुख्यालय दिल्ली में है और इसकी आठ शाखाएँ अलवर (राजस्थान), बेंगलुरु (कर्नाटक), कोझीकोड (केरल), कुन्नूर (तमिलनाडु), जगदलपुर (छत्तीसगढ़), पटना (बिहार), राजमुंदरी (आंध्र प्रदेश) और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

संस्थान के मुख्यालय में तकनीकी केंद्र/प्रभाग इस प्रकार हैं:

1. एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी)

2. महामारी विज्ञान प्रभाग

3. सूक्ष्म जीव विज्ञान प्रभाग

4. जैव प्रौद्योगिकी और वायरल हेपेटाइटिस प्रभाग

5. वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम

6. परजीवी रोग प्रभाग

7. अर्बोवायरल और पशुजनित रोग केंद्र

8. पशुजनित रोग कार्यक्रम प्रभाग

9. पर्यावरण और पेशेगत स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य केंद्र

10. गैर-संचारी रोग केंद्र

 

1. एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी)

आईडीएसपी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी प्रवण रोगों के लिए विकेन्द्रीकृत प्रयोगशाला-आधारित आईटी सक्षम रोग निगरानी प्रणाली को मजबूत / बनाए रखने और प्रशिक्षित त्वरित प्रतिक्रिया टीम (आरआरटी) के माध्यम से प्रारंभिक चरण में प्रकोप का पता लगाने और प्रतिक्रिया करने के लिए रोग प्रवृत्तियों की निगरानी करने के उद्देश्य से कवर करता है। आईडीएसपी भारत में कोविड-19 महामारी के संबंध में समग्र निगरानी गतिविधियों का समन्वय भी कर रहा है। आईडीएसपी (19 सितंबर, 2021 तक) द्वारा क्यासानूर वन रोग, क्रीमियन-कांगो रक्तस्रावी बुखार, मौसमी इन्फ्लुएंजा (एच1एन1), एंथ्रेक्स, लेप्टोस्पायरोसिस, स्क्रब टाइफस आदि जैसी महामारी प्रवण बीमारियों के कुल 470 प्रकोपों ​​​​का पता लगाया गया है। सीएसयू, आईडीएसपी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी महामारी विज्ञान जांच और रोकथाम में सहायता करता रहा है। 26 नवंबर 2018 को सात राज्यों - आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और केरल नाम में एक वास्तविक समय में, वेब सक्षम इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य सूचना प्रणाली, जिसे एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) कहा जाता है, पायलट आधार पर शुरू किया गया है। अब तक, 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने पूरी तरह से आईडीएसपी-आईएचआईपी प्लेटफॉर्म को अपना लिया है। शेष राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की प्रक्रिया 31 मार्च 2022 तक पूरी होने की उम्मीद है।

2. महामारी विज्ञान प्रभाग

प्रभाग द्वारा समन्वित विभिन्न गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं:

जन स्वास्थ्य क्षमता निर्माण: जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश में जारी रहते हुए उत्तराखंड में अग्रिम पंक्ति के जन स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 3X3 बुनियादी महामारी विज्ञान प्रशिक्षण शुरू किया गया और पूरा किया गया।

प्रकोप जांच और आपदा प्रबंधन: सक्रिय रूप से कोविड-19 महामारी प्रतिक्रिया में शामिल और विकसित तकनीकी दस्तावेज, समूहों की महामारी विज्ञान जांच का समर्थन, जोखिम संचार और सामुदायिक जुड़ाव, केंद्रीय आरआरटी- महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पटना, मिजोरम, कोविड -19 और कोविड -19 से संबंधित म्यूकोर्मिकोसिस पर एनसीडीसी न्यूजलेटर और सीडी अलर्ट का एक विशेष कोविड-19 अंक प्रकाशित कर रहा है। प्रभाग ने प्रकोप का पता लगाने और प्रबंधन करने के लिए हरिद्वार कुंभ मेले में सामूहिक समारोहों के दौरान विशेष निगरानी गतिविधियों में भी भूमिका निभाई।

भारत महामारी आसूचना सेवा (ईआईएस) कार्यक्रम: एनसीडीसी ईआईएस कार्यक्रम ने 41 अधिकारियों के 4 समूहों को स्नातक किया, और 8 अधिकारियों के साथ 7वां दल चल रहा है और 12 अधिकारियों का एक नया दल शुरू किया है। जारी कोविड-19 महामारी में, ईआईएस अधिकारी पंजाब, उत्तर प्रदेश, केरल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश में कोविड-19 प्रतिक्रिया और कुंभ सामूहिक समारोहों के दौरान संचारी रोगों की निगरानी में शामिल थे।

एएमआर: महामारी विज्ञान प्रभाग रोगाणुरोधी प्रतिरोध और क्षय की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को तकनीकी सहायता प्रदान करता है। एनसीडीसी, दिल्ली द्वारा 29-30 सितंबर 2021 को दो दिवसीय प्रशिक्षण और समीक्षा कार्यशाला का आयोजन किया गया था और यह प्रभाग डब्ल्यूएचओ के सहयोग से 25 एनएसी-नेट साइटों पर रोगाणुरोधी क्षय के बिंदु प्रसार सर्वेक्षण का समन्वय भी कर रहा है।

अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम

एनसीडीसी को भारत के लिए राष्ट्रीय केंद्र बिंदु घोषित किया गया है। भारत ने जुलाई 2016 में खुद को आईएचआर के अनुरूप घोषित किया है। एनएफपी के कार्यों में शामिल हैं: देश में आईएचआर (2005) के लिए क्षमता निर्माण, डब्ल्यूएचओ आईएचआर निगरानी उपकरण का उपयोग करके आईएचआर कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करना और डब्ल्यूएचओ के साथ इसे सालाना साझा करना, घटना सत्यापन, अधिसूचना, संपर्क ट्रेसिंग (टीबी), आदि के लिए डब्ल्यूएचओ, अन्य देशों के एनएफपी और स्थानीय हितधारकों के साथ समन्वय और संचार करना।

इंसाकॉग:

भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (इंसाकॉग) 30 दिसंबर 2020 को भारत सरकार द्वारा स्थापित जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशालाओं (आरजीएसएल) प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय बहु-एजेंसी कंसोर्टियम है। प्रारंभ में, इस कंसोर्टियम में 10 प्रयोगशालाएँ थीं। इसके बाद, इंसाकॉग के तहत प्रयोगशालाओं के दायरे का विस्तार किया गया और वर्तमान में इस कंसोर्टियम के तहत पूरे भारत में 38 प्रयोगशालाएँ हैं जो सार्स-कोव -2 में जीनोमिक परिवर्तनों की निगरानी करता है।

यह नेटवर्क देश भर में सार्स-कोव-2 वायरस की संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण करता है, यह समझने में सहायता करता है कि वायरस कैसे फैलता है और विकसित होता है, और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया में सहायता के लिए जानकारी प्रदान करता है।

वर्तमान में, विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुकूलित प्रहरी निगरानी रणनीति के तहत, भारत के 700 से अधिक जिलों में फैले भौगोलिक रूप से पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व करने के लिए लगभग 300 प्रहरी स्थलों की पहचान की गई है। आरटीपीसीआर पॉजिटिव नमूने प्रत्येक प्रहरी साइट से संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण के लिए भेजे जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, कोविड-19 समूहों वाले जिलों या मामलों में वृद्धि की रिपोर्ट करने वालों के लिए वृद्धि निगरानी सक्रिय है।

विदेशों से नए रूपों के प्रवेश के खतरे को देखते हुए दिसंबर 2020 से एक प्वाइंट ऑफ एंट्री (पीओई) स्क्रीनिंग आयोजित की जा रही है। ओमिक्रोन खतरे को देखते हुए एमओएचएफडब्ल्यू द्वारा जोखिम वाले देशों की पहचान करके पीओई स्क्रीनिंग को बढ़ाया गया है।

साथ ही, सीवेज के नमूनों और नैदानिक ​​नमूनों के अनुक्रमण के प्रस्तावों की भी समीक्षा की जा रही है।

29 दिसंबर 2021 को वेरिएंट और अनुक्रमण की स्थिति:

अनुक्रमित कुल नमूने: 1,11,587

पैंगो लिनिएज के साथ इंसाकॉग के नमूने सौंपे गए: 94,169

कुल वीओसी: 66832

कुल ओमिक्रोन मामले: 579

3. सूक्ष्म जीव विज्ञान प्रभाग

रेस्पिरेटरी वायरस लैब:

एच1एन1 और अन्य इन्फ्लूएंजा उपप्रकारों, सार्स-कोव-2 और टेराटोजेनिक वायरस (रूबेला, सीएमवी, एचएसवी-1 और 2) के समर्थित प्रयोगशाला निदान।

एच1एन1 के लिए निगरानी: एनसीडीसी के पास नियमित इन्फ्लूएंजा निगरानी के लिए लगभग 12 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है। विभिन्न राज्यों से अब तक कोविड-19 के 1.10 लाख से अधिक नमूनों के लिए आरटी-पीसीआर।

सार्स-कोव-2 और इन्फ्लुएंजा के लिए डब्ल्यूएचओ ईक्यूएएस में भाग लिया और 100% स्कोर हासिल किया। कोविड-19 जांच को लेकर प्रयोगशाला प्रक्रियाओं में विभिन्न संस्थानों के प्रयोगशाला कर्मियों का प्रशिक्षण।

एएमआर नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम:

"रोगाणुरोधी प्रतिरोध नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम" का समन्वय करना जिसके तहत देश भर में राज्य मेडिकल कॉलेज प्रयोगशालाओं (एनएआरएस-नेट) का एक नेटवर्क एएमआर रोकथाम गतिविधियों के लिए चरणबद्ध तरीके से मजबूत किया जा रहा है। यह कार्यक्रम एनसीडीसी की सेंट्रल सेक्टर अम्ब्रेला स्कीम के तहत उप-योजनाओं में से एक है और वर्तमान में 26 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में 35 राज्य मेडिकल कॉलेज प्रयोगशालाएं और अस्पताल इसमें शामिल हैं।

सभी साइटों के लिए एएमआर निगरानी आँकड़े और एंटीबायोग्राम तैयारी के प्रवेश और विश्लेषण के लिए डब्ल्यूएचओनेट सॉफ्टवेयर के उपयोग पर प्रेरण और पुनश्चर्या ऑनलाइन प्रशिक्षण आयोजित किया गया है।

सीबीडीडीआर में एएमआर राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशाला (एनआरएल) ने वर्ष 2021 की तिमाही 1 और तिमाही 2 के लिए 29 नेटवर्क साइटों के लिए ईक्यूएएस और एएमआर अलर्ट पहचान का आयोजन किया। एएमआर अलर्ट की पुष्टि के लिए एएमआर एनआरएल में आणविक परीक्षण के तरीके शुरू किए गए हैं और संपूर्ण एएमआर का पता लगाने और निगरानी के लिए जीनोम अनुक्रमण सुविधा जुलाई 2021 में स्थापित की गई है। वर्ष 2020 के लिए एएमआर निगरानी आँकड़े का विश्लेषण किया गया है और वैश्विक एएमआर निगरानी प्रणाली (ग्लास) को प्रस्तुत किया गया है।

एंटरोवायरस प्रभाग:

पोलियोवायरस के लिए एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस (एएफपी) निगरानी और पर्यावरण निगरानी (ईपीएस)

       एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस (एएफपी) के मामलों से मल के नमूने दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों से और कभी-कभी मध्य प्रदेश और राजस्थान से प्राप्त होते हैं। वाइल्ड पोलियो वायरस, वैक्सीन डेराइव्ड पोलियो वायरस और अन्य एंटरोवायरस की पहचान के लिए वायरस आइसोलेशन और रीयल टाइम पीसीआर सभी एएफपी और सीवेज नमूनों पर किया जाता है।

        प्रयोगशाला को खसरा और रूबेला नमूनों (एलिसा द्वारा आईजीएम एंटीबॉडी का पता लगाने) के परीक्षण के लिए डब्ल्यूएचओ से मान्यता प्राप्त है।

पारवो वायरस बी-19, वैरीसेला ज़ोस्टर वायरस, मम्प्स वायरस, एडेनो वायरस, एंटरोवायरस और एपस्टीन बार वायरस जैसे अन्य वायरस की जांच के लिए नैदानिक ​​सहायता।

एड्स और संबंधित रोग केंद्र (कार्ड)

एचआईवी सीरोलॉजी, एचआईवी डीबीएस परीक्षण और सीडी4/सीडी4% टी-लिम्फोसाइट गणना के लिए बाहरी गुणवत्ता आकलन योजनाओं (ईक्यूएएस) ने 100% अनुकूल परिणाम प्राप्त किए।

राज्य संदर्भ प्रयोगशालाओं (एसआरएल) से अनिश्चित और असंगत सीरम नमूनों के वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट के माध्यम से एचआईवी सीरो-स्थिति की पुष्टि।

एचआईवी और सिफलिस के लिए वॉक-इन क्लाइंट के लिए आईसीटीसी में परामर्श और परीक्षण और एसआरएल को प्रशिक्षण और 13 एसआरएल और 424 आईसीटीसीएस को वितरण के लिए एचआईवी सीरोलॉजी के लिए ईक्यूएएस पैनल तैयार करना।

एनआरएल (राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशालाओं) के संघ के हिस्से के रूप में नाको कार्यक्रम के तहत उपयोग किए जाने वाले एचआईवी, एचबीवी और एचसीवी किट की गुणवत्ता परीक्षण।

4. जैव प्रौद्योगिकी और वायरल हेपेटाइटिस प्रभाग

यह प्रभाग सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व के विभिन्न प्रमुख महामारी संभावित रोगों पर आणविक निदान सेवाएं, आणविक महामारी विज्ञान, विशेष प्रशिक्षण और अनुप्रयुक्त अनुसंधान प्रदान करता है।

इस अवधि के दौरान जैव प्रौद्योगिकी प्रभाग की कोविड-19 जांच सुविधा ने रोश कोबास 6800 स्वचालित प्रणाली का उपयोग करके 2,10,904 नमूनों की जांच की।

प्रभाग ने जीनोम अनुक्रमण सुविधा भी स्थापित की है और 30 सितंबर 2021 तक, इलुमिना नेक्स्टसेक 550 प्लेटफॉर्म पर 19,200 सार्स-कोव-2 नमूनों को अनुक्रमित किया है। सभी अनुक्रम लगातार जीआईएसएआईडी डेटाबेस पर अपलोड किए जा रहे हैं।

• 270 (कोविड पॉजिटिव और कोविड नेगेटिव) नमूनों को सह-संक्रमण या अन्य श्वसन विषाणु की उपस्थिति की पहचान करने के लिए इलुमिना नेक्स्टसेक 550 प्लेटफॉर्म पर आरवीओपी किट का उपयोग करके अनुक्रमित किया गया।

सेंगर प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए प्रभाग ने अन्य श्वसन विषाणुओं के लिए लक्ष्य विशिष्ट अनुक्रमण के लिए >200 नमूनों को अनुक्रमित किया है और बलस्टएन’ का उपयोग करके उनकी पहचान भी की गई है।

एनसीबीआई जेनबैंक डेटाबेस पर डेंगू के लक्ष्य के 45 अनुक्रम, प्रभाग में अनुक्रमित नमूने भी अपलोड किए गए।

जैव प्रौद्योगिकी के छात्रों को भी प्रभाग में विभिन्न आणविक तकनीकों पर प्रशिक्षित किया गया, जिसमें चार छात्रों ने अपने परास्नातक शोध निबंध को पूरा किया था।

5. वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम

एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी: देश भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सूक्ष्म जीवविज्ञानी, चिकित्सकों, कार्यक्रम प्रबंधकों से बने तकनीकी संसाधन समूह द्वारा विकसित परिचालन दिशानिर्देशों और रणनीतियों के आधार पर 2021 में शुरू की गई एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी के लिए गतिविधि चलाई गई। कार्यक्रम के तहत सुदृढ़ किए गए सभी 15 स्थलों पर बढ़े हुए मामलों की रिपोर्टिंग की जा रही है।

प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किया गया और गतिविधि में शामिल मानव संसाधन की क्षमता का निर्माण किया गया।

         क्रोनिक वायरल हेपेटाइटिस की निगरानी का जनसंख्या स्तर के सर्वेक्षणों/कार्यक्रमों के साथ एकीकरण

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4: हेपेटाइटिस बी और सी के लिए चिह्नकों को शामिल करने के लिए आईसीएमआर, आईआईपीएस मुंबई और आईसीएमआर नारी पुणे के साथ एकीकृत हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी दोनों के सीरोप्रवलेंस के लिए पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधिक आँकड़ा प्राप्त किया गया।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के एचआईवी प्रहरी निगरानी (एचएसएस) के साथ एकीकरण: एचएसएस में न्यूनतम वित्तीय प्रभाव के साथ एचएसएस की मौजूदा मशीनरी का उपयोग करते हुए एचएसएस में हेपेटाइटिस बी और सी के बायोमार्कर को शामिल करने की एनएसीपी की पहल। एचएसएस प्लस का मौजूदा दौर जारी है।

राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीएचसीपी) के साथ एकीकरण: परामर्श, पुष्टिकरण परीक्षण और उच्च जोखिम वाले समूहों, जेल के कैदियों और गर्भवती महिलाओं और उनके नवजात शिशुओं की देखभाल और सहायता सेवाओं के लिए जांच के लिए हेपेटाइटिस बी/सी के लिए स्क्रीनिंग में संक्रमित पाए गए व्यक्तियों के फॉलो-अप के लिए लिंकेज और तंत्र स्थापित करना।

6. परजीवी रोग प्रभाग (डीपीडी)

यह प्रभाग उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों से संबंधित गतिविधियों से संबंधित है, जैसे कि मृदा संचरित हेल्मिंथियासिस (एसटीएच), गिनी कृमि रोग और लसीका फाइलेरिया। एनसीडीसी राष्ट्रीय गिनी कृमि उन्मूलन कार्यक्रम के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह प्रभाग देश में एसटीएच की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है और आवधिक प्रसार मूल्यांकन सर्वेक्षणों के माध्यम से देश में एसटीएच बोझ की लगातार निगरानी करता रहता है।

प्रभाग ने 6 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों- कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र जम्मू, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश के 36 जिलों के लिए एसटीएच प्रसार पर आँकड़ा संकलित और प्रस्तुत किया।

प्रभाग फाइलेरियोलॉजी में चिकित्सा और पैरामेडिकल स्वास्थ्य कर्मियों की क्षमता निर्माण के माध्यम से फाइलेरिया उन्मूलन गतिविधियों में सहयोग कर रहा है।

 

  1. अर्बोवायरल और पशुजनित रोगों के लिए केंद्र

 

यह प्रभाग प्रमुख रूप से प्लेग, रेबीज, कालाजार, अर्बोवायरल संक्रमण (डेंगू, जेई, चिकनगुनिया, जीका वायरस और सीसीएचएफ) टोक्सोप्लाज़मोसिज़, ब्रुसेलोसिस, लेप्टोस्पायरोसिस, रिकेट्सियोसिस, हाइडैटिडोसिस, न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस, सार्स-कोव-2 और एंथ्रेक्स सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व के जूनोटिक रोगों से संबंधित मामलों को देखता है। इस प्रभाग की भूमिका मुख्य रूप से विशेष और संदर्भ स्तर के परीक्षण आयोजित करके प्रयोगशाला साक्ष्य प्रदान करना है जो भारत के अधिकांश संस्थानों या मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध नहीं हैं।

  1. पशुजनित रोग कार्यक्रम का प्रभाग

यह प्रभाग रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस और पशुजनित रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए अंतरक्षेत्रीय समन्वय कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम की तीन केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी है।

राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम ने रेबीज निदान प्रयोगशालाओं के रूप में 5 संस्थानों को मजबूत किया है। अब तक, 9 क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ किया गया है, और देश में प्रयोगशालाओं की मैपिंग की गई है, जिनमें वर्तमान में रेबीज के लिए नैदानिक सुविधा है। राज्यों में निगरानी और चौकसी में सुधार किया गया है।

  1. पर्यावरण, पेशागत स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य केंद्र

यह केंद्र जलवायु और पर्यावरणीय कारकों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को संबोधित करता है। जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद (पीएमसीसी) के तहत वर्ष 2015 में "स्वास्थ्य पर मिशन" की शुरुआत के बाद, भारत की जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसीएचएच) तैयार की गई थी और इसे लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) को फरवरी 2019 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मंजूरी दी गई थी। यह केंद्र देश में एनपीसीसीएचएच के संचालन को देखता है। इसका मुख्य उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, स्वास्थ्य पेशेवरों की क्षमता निर्माण, प्रतिक्रिया के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, स्वास्थ्य अनुकूलन योजनाएं, संवेदनशीलता मूल्यांकन, निगरानी, ​​ईडब्ल्यूएआरएस, आदि, जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के संदर्भ में सहयोग और अनुसंधान और नवाचारों का निर्माण करना है।

  1. गैर-संचारी रोगों के लिए केंद्र

गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए, गैर-संचारी रोगों के लिए केंद्र (एनसीडी) की स्थापना फरवरी 2015 में एनसीडीसी में एनपीसीडीसीएस, क्षमता निर्माण, आईईसी और नीति निर्माताओं, एनपीसीडीसीएस कार्यक्रम प्रबंधक, निगरानी एवं मूल्यांकन और अनुसंधान के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। प्रभाग के अधिकारी परियोजना "प्रताप" (प्रोग्राम फॉर रिस्क बिहेवियर एंड एटिट्यूड इन ट्रॉमा प्रिवेंशन) के लिए बनाई गई समिति के सदस्य हैं।

15. राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीएचसीपी)

एसडीजी 3.3 के अनुरूप राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम का लक्ष्य 5 करोड़ लोगों के प्रबंधन को लक्षित करना है जिनसे संक्रमण बढ़ने की आशंका है। कार्यक्रम के तहत, केवल हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए, बल्कि हेपेटाइटिस बी के आजीवन प्रबंधन के लिए भी सभी जरूरतमंदों को मुफ्त निदान और दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। कार्यक्रम के तहत अपनाई गई प्रमुख रणनीतियों में जागरूकता पैदा करने, पहुंच बढ़ाने, निदान को बढ़ावा देने और वायरल हेपेटाइटिस के लिए उपचार प्रदान करने पर ध्यान देने के साथ निवारक, प्रोत्साहन और उपचारात्मक हस्तक्षेप शामिल हैं।  2018-21 (सितंबर 2021 तक) के दौरान, इसने लगभग 1.5 करोड़ व्यक्तियों को लाभान्वित किया और वायरल हेपेटाइटिस के 94,000 से अधिक रोगियों का इलाज किया

वर्तमान में, वायरल हेपेटाइटिस के निदान और उपचार के लिए सेवाएं सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उपलब्ध हैं। कार्यक्रम ने वायरल हेपेटाइटिस (एनपीवीएसएच), राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम और टीकाकरण प्रभाग की निगरानी के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ सहयोग किया है। कार्यक्रम के तहत वायरल हेपेटाइटिस और सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए टीबी हेल्पलाइन के साथ एनवीएचसीपी की एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन (1800-11-6666) है। कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कार्यक्रम अन्य मौजूदा कार्यक्रमों जैसे आरएमएनसीएचए+एन आदि के साथ भी सहयोग करने की प्रक्रिया में है। कार्यक्रम में मजबूत निगरानी और मूल्यांकन के लिए एनवीएचसीपी प्रबंधन सूचना प्रणाली पर पेपरलेस डेटा रिकॉर्डिंग और रिपोर्टिंग की जाती है।

कोविड-19 के दौरान, कार्यक्रम ने बहु-मास दवा वितरण शुरू किया और एनवीएचसीपी के तहत स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक बेहतर अनुपालन और पहुंच के लिए लाभार्थियों को आवाजाही पास जारी करने की सुविधा प्रदान की।

उपलब्धियां (जुलाई, 2018 - सितंबर, 2021):

• 701 जिलों में वायरल हेपेटाइटिस के प्रबंधन के लिए 866 उपचार केंद्र स्थापित किए गए।

वायरल हेपेटाइटिस सी के निदान के लिए किए गए सीरोलॉजिकल जांच: 46,22,492

हेपेटाइटिस सी का इलाज शुरू करने वाले रोगियों की संख्या: 84,349

ऐसे मरीज जिन्होंने एचसीवी का इलाज पूरा कर लिया है (उपचार की समाप्ति): 35,040

वायरल हेपेटाइटिस बी के निदान के लिए की गई सीरोलॉजिकल जांच: 1,12,27,134

हेपेटाइटिस बी का इलाज शुरू कराने वाले रोगियों की संख्या: 10,167

 

16. केंद्र सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं (सीजीएचएस)

सीजीएचएस भारत भर के 74 शहरों में स्थित 333 एलोपैथिक वेलनेस सेंटर और 95 आयुष केंद्रों / इकाइयों के नेटवर्क के माध्यम से 13.76 लाख प्राथमिक कार्ड धारकों (और 39.79 लाख-कुल लाभार्थियों) को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कर रहा है।

16.1 नए एलोपैथिक वेलनेस सेंटर /आयुष इकाइयों का उद्घाटन

 वर्ष के दौरान नए एलोपैथिक वेलनेस सेंटर का उद्घाटन

वाडी, नागपुर में एक्सटेंशन काउंटर का उन्नयन

ईशापुर, कोलकाता में एक्सटेंशन काउंटर का उन्नयन

10 और नए एलोपैथी वेलनेस सेंटर खोलने के लिए व्यय विभाग की स्वीकृति प्राप्त हो गई है।

नई आयुष इकाइयों का उद्घाटन

        रायपुर, जबलपुर, भोपाल और गांधी नगर में आयुर्वेदिक इकाइयाँ

        भुवनेश्वर और गुड़गांव में होम्योपैथी इकाइयाँ।

16.2 अन्य उपलब्धियां:

1. सीजीएचएस चिकित्सा अधिकारी और कर्मचारी कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने हवाईअड्डों और पृथकवास केंद्रों पर अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह से निर्वहन किया।

2. कोविड-19 संक्रमण को देखते हुए सीजीएचएस लाभार्थियों के लिए विशेष प्रावधान:

* 31 अक्टूबर 2021 तक पुरानी बीमारियों के लिए ओपीडी दवाएं खरीदने और भरपाई का दावा करने का विकल्प

* बुखार एवं अन्य सूचक लक्षणों के लाभार्थियों की जांच के लिए आरोग्य केन्द्रों पर अलग 'फीवर क्लीनिक' खोलने तथा नोडल केन्द्रों को रेफर करने के निर्देश

* सीजीएचएस वेलनेस सेंटरों को होम क्वारंटाइन के तहत कोविड-19 पॉजिटिव सीजीएचएस लाभार्थियों को सहायता प्रदान करने के लिए निर्देश और ऐसे सीजीएचएस लाभार्थियों को प्रति परिवार एक पल्स ऑक्सीमीटर (1200 रुपये/-) खरीदने की अनुमति

* -संजीवनी के माध्यम से सरकारी डॉक्टर के साथ टेली-परामर्श सुविधा।

* 'भारतकोष' के माध्यम से सदस्यता का ऑनलाइन भुगतान

* सीजीएचएस लाभार्थियों को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य विषयों पर पाक्षिक वेबिनार

* सीजीएचएस ने स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकारियों के निर्देशों के अनुसार चिन्हित सीजीएचएस वेलनेस सेंटरों पर कोविड टीकाकरण केंद्रों (सीवीसी) के रूप में कार्य किया।

* सीजीएचएस डॉक्टरों को स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकारियों के अनुरोध पर अस्थायी रूप से अस्पतालों में प्रतिनियुक्त किया गया था।

16.3 अस्पताल के बिलों का निपटान:

सीजीएचएस के तहत सूचीबद्ध निजी अस्पतालों के साथ लिक्विडिटी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अस्पताल के बिलों के निपटान पर विशेष ध्यान ताकि वे सीजीएचएस लाभार्थियों, विशेष रूप से पेंशनभोगियों को सुविधाएं प्रदान कर सकें।

चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक अस्पतालों के लगभग 1100 करोड़ रुपये के बिल का भुगतान किया गया है।

सीजीएचएस के तहत अस्पताल के बिलों के निपटान को पेपरलेस मोड में बिलों के निपटान के लिए एनएचए आईटी प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित कर दिया गया है।

 

  1. औषधि विनियमन

 

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र (एनसीसीएस), पुणे और राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएबी), हैदराबाद को एस.ओ. 2609(), दिनांक 28.06.2021 और एस.ओ. 3364 (), दिनांक 17.08.2021 को क्रमशः सीडीएल, कसौली के कार्यभार को कम करने के लिए जांच और कोविड​​-19 टीके के लॉट रिलीज के लिए एक वर्ष की अवधि के लिए केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला (सीडीएल) के रूप में अधिसूचित किया गया है। राष्ट्रीय जैविक संस्थान (एनआईबी), नोएडा को फिर से एस.. 5139(), दिनांक 10.12.2021 को सीडीएल के रूप में 30.11.2022 तक की अवधि के लिए अधिसूचित किया गया है।
  • स्टैंडअलोन बायो-एनालिटिकल लेबोरेटरी को अधिसूचना संख्या जी.एस.आर. 605 (ई), दिनांक 31.08.2021 के माध्यम से नव औषधि और नैदानिक परीक्षण नियम, 2019 के नियमन के तहत लाया गया है।
  • "अनुपालन बोझ को कम करने" की केंद्र सरकार की पहल के तहत फॉर्म 29 में जांच लाइसेंस जारी करने के लिए 7 कार्य दिवसों की समय सीमा निर्धारित करने के लिए औषधि नियम, 1945 के नियम 90 को अधिसूचना संख्या जी.एस.आर. 766 (), दिनांक 27.10.2021 के द्वारा संशोधित किया गया है।
  • विनियम में अतिरेक को कम करने के लिए औषधि नियम, 1945 के नियम 24 और नियम 24 को अधिसूचना संख्या जी.एस.आर. 839 (), दिनांक 29.11.2021 द्वारा संशोधित किया गया है। यह अनुपालन बोझ को कम करने की दिशा में एक अहम कदम है।
  • केंद्रीय रूप से काम करने वाली ओपिओइड एनाल्जेसिक दवा, टेपेंटाडोल को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष की सिफारिशों के अनुसार इसे बच्चों और किशोरों की पहुंच से दूर रखने के लिए अधिसूचना संख्या जी.एस.आर. 258(), दिनांक 07.04.2021 के जरिये औषधि नियम, 1945 की अनुसूची एच1 की सूची में लाया गया है।
  1. दंत चिकित्सा कॉलेज

वर्तमान में, देश में 316 दंत चिकित्सा कॉलेज हैं, जिनमें से 50 सरकारी क्षेत्र के और 266 निजी क्षेत्र के हैं, जिनकी वार्षिक प्रवेश क्षमता लगभग 27498 स्नातक सीटों और 6696 स्नातकोत्तर सीटों की है। 103वें संविधान संशोधन, 2019 के तहत लागू ईडब्ल्यूएस योजना के तहत, डीसीआई ने शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए 30 सरकारी दंत चिकित्सा कॉलेजों में यूजी स्तर पर 498 अतिरिक्त सीटों और 15 सरकारी दंत चिकित्सा कॉलेजों में 43 पीजी सीटों की सिफारिश की है।

दंत चिकित्सा शिक्षा में सुधार:

 

मसौदा राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक

 

सरकार ने पिछले छह वर्षों में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधारों की शुरुआत की है। इन सुधारों के तहत और देश में दंत चिकित्सा शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाने के लिए, मौजूदा दंत चिकित्सक अधिनियम, 1948 को बदलने के लिए राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक (बिल) का मसौदा तैयार किया गया है और राज्य सरकारों, आम जनता और अन्य हितधारकों की टिप्पणियों को आमंत्रित करने के लिए 28.01.2020 को सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था। विभिन्न हितधारकों से प्राप्त 2372 सुझावों/टिप्पणियों की जांच दंत चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान केंद्र, एम्स, नई दिल्ली के प्रमुख की अध्यक्षता में दंत चिकित्सा विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा की गई है। समिति के सुझावों पर विधिवत विचार किया गया है और उन्हें विधेयक में उचित रूप से शामिल किया गया है।

विधेयक में एक राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग, चार स्वायत्त बोर्ड, एक दंत चिकित्सा सलाहकार परिषद और राज्य दंत चिकित्सा परिषदों के गठन का प्रावधान है। आयोग एक निगमित निकाय होगा। यह विधेयक दंत चिकित्सा पेशेवरों और दंत चिकित्सा सहायकों, दंत चिकित्सकों, दंत तकनीशियनों और दंत परिचालन कक्ष सहायकों की शिक्षा, परीक्षा, प्रशिक्षण और सेवाओं को विनियमित करने के लिए आगे चार स्वायत्त बोर्डों यानी स्नातक दंत चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (यूजीडीईबी), स्नातकोत्तर दंत चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (पीजीडीईबी), दंत चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड (डीएआरबी) और नीति एवं दंत चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड (ईडीआरबी) के गठन का प्रावधान करता है। राष्ट्रीय स्तर पर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधेयक में राष्ट्रीय दंत सलाहकार परिषद का प्रावधान भी रखा गया है। विधेयक सभी लाइसेंस प्राप्त दंत चिकित्सा पेशेवरों और दंत सहायक के डिजिटल और लाइव राष्ट्रीय और राज्य रजिस्टरों के निर्माण और रखरखाव का भी प्रावधान करता है।

विधेयक के अनुसार, आयोग दंत चिकित्सा शिक्षा में उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए नीतियां निर्धारित करेगा, और स्वायत्त बोर्डों के निर्णयों के संबंध में अपीलीय क्षेत्राधिकार का भी प्रयोग करेगा। आयोग दिशानिर्देश तैयार करेगा और स्नातक स्तर पर एक समान प्रवेश परीक्षा आयोजित करेगा अर्थात राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा, एक समान निकास परीक्षा यानी राष्ट्रीय निकास परीक्षा (दंत), स्नातक और स्नातकोत्तर दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सामान्य काउंसलिंग कार्यक्रम आदि।

यह विधेयक केंद्र सरकार को नीति के सवालों पर आयोग और स्वायत्त बोर्डों को और इस अधिनियम के सभी या किन्हीं प्रावधानों को पूरा करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश देने का अधिकार देता है।

मसौदा विधेयक अभी विचाराधीन है।

19. बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीएचसीई)

भारत सरकार ने बुजुर्ग लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने और आउटरीच सेवाओं सहित सरकारी स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर वरिष्ठ नागरिकों को अलग, विशिष्ट और व्यापक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए 2010-11 के दौरान "बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम" (एनपीएचसीई) शुरू किया था। निवारक और प्रोत्साहक देखभाल, बीमारी का प्रबंधन, वृद्धावस्था सेवाओं के लिए स्वास्थ्य जनबल विकास, चिकित्सा पुनर्वास और चिकित्सीय हस्तक्षेप और आईईसी एनपीएचसीई में परिकल्पित कुछ रणनीतियाँ हैं। 2020-21 के दौरान, कार्यक्रम के तहत 35 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 725 जिलों और 19 क्षेत्रीय जराचिकित्सा केंद्रों (आरजीसी) और 02 नेशनल सेंटर फॉर एजिंग (एनसीए) को मंजूरी दी गई है। स्वीकृत 725 जिलों में से, 595 जिला अस्पतालों और 18 आरजीसी ने एनपीएचसीई सेवाओं को शुरू किया है।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तृतीयक देखभाल कार्यक्रम गतिविधियों के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के एनसीडी फ्लेक्सिबल पूल और सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों में निधियों के माध्यम से राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश के स्तर पर कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जाता है।

कार्यक्रम गतिविधियों 2021के संचालन में प्रगति:-

(प्रगति रिपोर्ट- अप्रैल से सितंबर, 2021 के अनुसार)

क्रम संख्या

संस्थान

स्वीकृत

कार्यरत

ओपीडी

इंडोर वार्ड

फिजियोथेरेपी सेवाएं     प्रयोगशाला सेवाएं

Laboratory services

1

आरजीसी

19

18

16

14                                   13

13

2

जिला अस्पताल

725

595

510

459                                  540

540

3

सीएचसी

4875

3111

-

1131                               2439

2439

4

पीएचसी

18444

10231

-

-                                        -

-

5

गृह आधारित देखभाल और सहायक उपकरण प्रदान करने वाले केंद्र

90932

14320

 

आरजीसी में विशेष ओपीडी के साथ-साथ 595 डीएच, 3111 सीएचसी और 10231 पीएचसी में दैनिक जराचिकित्सा ओपीडी सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। 16 आरजीसी के साथ 510 डीएच में इनपेशेंट सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। 14 आरजीसी के साथ 459 डीएच, 1131 सीएचसी में फिजियोथेरेपी सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। 13 आरजीसी के साथ 540 डीएच, 2439 सीएचसी में प्रयोगशाला सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।

प्रशिक्षण मॉड्यूल: चिकित्सा अधिकारियों, नर्सों और समुदाय आधारित कर्मचारियों के लिए व्यापक जराचिकित्सा मूल्यांकन और देखभाल देने के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल के तीन सेट विकसित किए गए हैं और सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा किए गए हैं। व्यापक जराचिकित्सा मूल्यांकन और देखभाल के लिए चिकित्सा अधिकारियों और नर्सों के प्रशिक्षकों का राज्य स्तरीय प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है।

आईईसी:- बुजुर्गों की देखभाल, प्रिंट सामग्री-फोल्डर, पोस्टर आदि के विभिन्न विषयों पर ऑडियो/वीडियो स्पॉट विकसित किए गए हैं। आईईसी सामग्री का क्षेत्रीय भाषा संस्करण विकसित किया जा रहा है। https://nphce.nhp.gov.in/video-spot/

 

लॉन्गिट्युडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (एलएएसआई) वेव-I रिपोर्ट का विमोचन: - एलएएसआई भारत में वृद्ध व्यक्तियों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि सर्वेक्षण आईआईपीएस, मुंबई के माध्यम से किया जा रहा है। एलएएसआई वेव -1 सर्वेक्षण (2017-18) भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करता है, जिसमें 45 वर्ष की आयु के 72,250 व्यक्तियों के पैनल के नमूने का आकार शामिल है, जिसमें 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 31464 लोग और उनके पति या पत्नी शामिल हैं, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो। एलएएसआई चार प्रमुख विषय डोमेन पर डेटा एकत्र करता है:

1. स्वास्थ्य: रोग भार और जोखिम कारक (रिपोर्ट की गई और मापी गई)

2. स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण

3. सामाजिक: बुजुर्गों के लिए परिवार, सामाजिक नेटवर्क और समाज कल्याण कार्यक्रम

4. आर्थिक: आय, धन, व्यय, रोजगार, सेवानिवृत्ति और पेंशन

एलएएसआई की पहली लहर पूरी हो चुकी है और 6 जनवरी 2021 को माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा एलएएसआई वेव- I की अंतिम रिपोर्ट जारी की गई है। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के फैक्ट शीट के साथ लॉन्गिट्युडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (एलएएसआई) वेव-1 रिपोर्ट निम्न लिंक पर उपलब्ध है-https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/linkforLongitudinalAgeingStudyinIndiaLASIWave1ReportalongwithIndia%26StatesUTFactSheets_0.pdf

विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों (वर्चुअल) के माध्यम से व्यापक वृद्धावस्था देखभाल मूल्यांकन और वितरण को संबोधित करने के लिए कार्यशाला: -

एलएएसआई वेव-1 रिपोर्ट के विमोचन के दौरान, विशेषज्ञ समूहों और राष्ट्रीय कार्यक्रमों-अंधापन और दृटीहीनता के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीबीवीआई), बहरेपन की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीसीडी), कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और आघात (एनपीसीडीसीएस) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय मुख स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनओएचपी), राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) और उपशामक देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीसी) के साथ सेवा वितरण के विभिन्न स्तरों पर व्यापक जराचिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को समझने के लिए एक अन्वेषणात्मक कार्यशाला का आयोजन किया गया। ये राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम अपने कार्यक्रमों के तहत जराचिकित्सा देखभाल के लिए कुछ सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं। इसके बाद छह अलग-अलग कार्यशालाओं (कार्यक्रमवार) के भी बुजुर्ग देखभाल सेवाओं के लिए सहयोगी कार्यान्वयन ढांचे के विकास के लिए आयोजित करने की योजना बनाई गई। एनपीएचसीई और एनपीसीबीवीआई के बीच एक सहयोगात्मक कार्यशाला 3 जून 2021 को आयोजित की गई थी।

तृतीयक देखभाल सेवाओं की प्रदर्शन समीक्षा:- बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीएचसीई) की तृतीयक देखभाल गतिविधियों की समीक्षा बैठक डॉ. अनिल कुमार, डीडीजी (आईएच) की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी ताकि क्षेत्रीय जराचिकित्सा केंद्र (आरजीसी) और दो राष्ट्रीय वृद्धावस्था केंद्र (एनसीए) की भौतिक और वित्तीय प्रगति की समीक्षा की जा सके। 

समीक्षा बैठकों में डॉ. रूपाली रॉय, एडीजी (आईएच) डीटीई जीएचएस, डॉ अविनाश सुन्थलिया, एमओ (आईएच) डीटीई जीएचएस और सुश्री अनीता आहूजा, सलाहकार (प्रशिक्षण और आईईसी) एनपीएचसीई ने भाग लिया।  ये बैठकें 5 समूहों में आयोजित की गईं और संबंधित आरजीसी के नोडल अधिकारियों ने 16 जुलाई से 2 सितंबर 2021 तक कार्यक्रम के अनुसार भाग लिया। समीक्षा बैठक का उद्देश्य था;

क्षेत्रीय जराचिकित्सा केंद्रों (आरजीसी) के कामकाज की समीक्षा करना

सेवाओं के वितरण के मामले में आरजीसी की वास्तविक प्रगति का आकलन करें

एमडी जराचिकित्सा शुरू करने से संबंधित समग्र मुद्दों और मामलों पर चर्चा करना

एनपीएचसीई की गतिविधियों के विस्तार के लिए योजनाएं बनाना

एक अक्टूबर-वृद्ध व्यक्तियों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस: हर साल एक अक्टूबर को वृद्ध व्यक्तियों के अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो कि उम्र बढ़ने के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ वृद्ध लोगों द्वारा हमारी दुनिया में किए गए महत्त्वपूर्ण योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। वृद्ध व्यक्तियों के अंतरराष्ट्रीय दिवस 2021 का विषय था: "डिजिटल इक्विटी फॉर ऑल एजेज" यह एक दिवसीय कार्यक्रम था।

बुजुर्गों की देखभाल और सभी उम्र के लिए डिजिटल इक्विटी पर बहु-हितधारक संवाद: 1 अक्टूबर 2021 को होटल पार्क, नई दिल्ली में डब्ल्यूएचओ इंडिया के सहयोग से बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीएचसीई) के केंद्रीय कार्यक्रम प्रभाग द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें वृद्धावस्था आबादी से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के 100 प्रतिभागी शामिल हुए थे।

 

 

 

वृद्ध व्यक्तियों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश द्वारा आयोजित गतिविधियां:-

  1. कोविड प्रोटोकॉल के साथ बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन और समाज कल्याण विभाग के माध्यम से प्राप्त सहायता का वितरण।
  2. उम्र बढ़ने पर जागरूकता कार्यक्रम, एनसीडी स्क्रीनिंग, शारीरिक व्यायाम / योग का प्रदर्शन, बुजुर्ग डायरी का वितरण, परामर्श सत्र आदि।

iii. गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों सहित विभिन्न राज्यों में बुजुर्ग व्यक्ति का अभिनंदन।

iv. प्रमुख स्थानों पर होर्डिंग्स, दीवार पेंटिंग, पोस्टर, पैम्फलेट, रेडियो कार्यक्रम, घोषणाएं, समाचार पत्र विज्ञापन, आईईसी वैन के माध्यम से सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता पैदा करना।

v. जिला और सीएचसी स्तर पर एनपीएचसीई कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए सभी कार्यरत कर्मचारियों के लिए संवेदीकरण/कार्यशाला का आयोजन।

vi. एनपीएचसीई की उपलब्ध सेवाओं, वृद्धाश्रमों और पीएचसी स्तर पर जागरूकता गतिविधियों के संबंध में जागरूकता संदेश प्रसारित करने के लिए महीने भर का अभियान चलाना।

 

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एमजी/एएम/पीजी/केसीवी



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