सूचना और प्रसारण मंत्रालय
कहानियां ऐसी हों जो दर्शकों को प्रेरित करें, एक अच्छी कहानी तो जीवन की पहेलियों और उसके संकटों के बारे में होनी चाहिए: इफ्फी-52 मास्टरक्लास में प्रसिद्ध स्क्रीनराइटर सब जॉन एडाथट्टिल
एडाथट्टिल ने कहा कि कहानियां लीनियर यानी सीधी होती हैं, जबकि स्क्रीनप्ले नॉन-लीनियर हो सकता है; स्क्रीनप्ले परदे पर कोई ऑडियो-विज़ुअल कहानी को कहने का एक डिज़ाइन मात्र होता है
अच्छी कहानियां वे होती हैं जो हमें प्रेरित करती हैं। दिग्गज स्क्रीनराइटर सब जॉन एडाथट्टिल का कहना है कि कहानियां ऐसी हों जो दर्शकों को प्रेरित करें। उन्होंने कहा, "एक कहानी तब दिलचस्प नहीं होती अगर वो उन चीज़ों के बारे में है जिन्हें हम पाना चाहते हैं लेकिन वो हमें आसानी से मिल जाती हैं। ये दरअसल किरदारों की यात्रा के बारे में है, उनके संघर्षों के बारे में है। उदाहरण के लिए, अगर कहानी कुछ इस प्रकार हो कि "मैं गुलाब से शादी करना चाहता हूं, इसलिए मैंने गुलाब से शादी कर ली", तो क्या ये दिलचस्प है? बिल्कुल नहीं। इसलिए, कहानी को जीवन की पहेली और उसके विभिन्न संकटों के बारे में होना चाहिए।" 20 से 28 नवंबर, 2021को गोवा में हाइब्रिड रूप से आयोजित 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान कल 25 नवंबर, 2021 को एडाथट्टिल स्क्रिप्ट राइटिंग पर एक मास्टरक्लास को संबोधित कर रहे थे। इस मास्टरक्लास में गोवा में इफ्फी के आगंतुकों और वर्चुअल दर्शकों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया, जिन्होंने इसे इफ्फी महोत्सव के वर्चुअल मंच https://virtual.iffigoa.org/पर देखा।
चाणक्य और गुना जैसी फ़िल्मों में अपने काम के लिए पहचाने जाने वाले दक्षिण भारत के प्रमुख पटकथा लेखक, एडाथट्टिल ने इफ्फी में युवा और आकांक्षी फ़िल्मकारों और सिने प्रेमियों से बात की, और कहानी कहने की कला पर कई सुझाव और विचार साझा किए।
उन्होंने कहानी कहने की प्रक्रिया को लेकर और ये कैसे दर्शकों को जोड़ने में मदद कर सकती है, इसकी बारीक समझ दी। उन्होंने बताया, “जब आप किसी कहानी के पात्र लिख रहे होते हैं, तो सापेक्षता और जिज्ञासा उन पात्रों को दर्शकों के लिए ज्यादा रुचिकर और आकर्षक बनाती है। श्रोता वे लोग होते हैं जो लेखकों के प्रति सबसे अधिक उदार होते हैं और साथ ही, आप जो बनाते हैं वो उन्हें सच्चा लगने वाला होना चाहिए।"
उन्होंने बताया कि पात्रों के विकास के लिए बैकस्टोरी भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “हम सब अतीत का भार ढोते चलते हैं और वही हमारे पात्रों को ढालते हैं। कोई अच्छी कहानी कहने के लिए एक अच्छी बैकस्टोरी बनानी आवश्यक है।"
जाने-माने पटकथा लेखक एडाथट्टिल ने कहा कि ऐसा कॉन्टेंट जो दर्शकों के भीतर उतरे और जिसे वे अपने साथ ले जाएं, उसे बनाने के लिए लेखक को दिल से लिखना पड़ता है। उन्होंने कहा, "अगर दर्शक उस कहानी को फिर से याद करते हैं और उसे अपने से जुड़ा पाते हैं तो ये लेखन की ताकत का सबसे बड़ा प्रमाण है।"
एडाथट्टिल ने कहा कि हम कहानी तभी लिख सकते हैं जब हम भावनात्मक रूप से उत्तेजित हों। उन्होंने बताया, “जब हम कहानी लिखना शुरू करते हैं तो हमारा दिमाग एक खाली पन्ना होता है। समस्या ये है कि हमें क्या लिखना है उस निष्कर्ष तक पहुंचना है। जब हम कुछ भावनाओं से प्रेरित होते हैं, तभी हम एक कहानी लिख सकते हैं और अंत में, वे भावनाएं दर्शकों को आकर्षित करती हैं। कहानियों का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि ये दर्शकों को कैसे प्रभावित करती हैं। ये मूल्य पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों हो सकते हैं।"
उन्होंने कहा कि इसके कोई नियम नहीं हैं, सिर्फ सिद्धांत हैं लेकिन दिशा महत्वपूर्ण है, “कहानी लिखते समय एक दिशा होनी चाहिए। बिना दिशा के ये अक्सर एक निरर्थक प्रयास होता है।"
उन्होंने सिने प्रेमियों को याद दिलाया कि कहानी लिखना सिर्फ अच्छी भाषा का खेल नहीं है। उन्होंने बताया, “ज्यादातर लेखक सोचते हैं कि अगर भाषा पर उनकी पकड़ अच्छी है तो वे आसानी से कहानी लिख सकते हैं। लेकिन असल में हमें कहानी का ज्ञान होना चाहिए। एक कहानी के कई तत्व होते हैं जैसे खुद कहानी, उसके पसंद आने वाले किरदार और एक असरदार संरचना।”
हम कहानियों से कैसे जुड़ते हैं? इस पर एडाथट्टिल ने बताया "हम कहानियों से प्यार क्यों करते हैं? अगर आप जीवन से भागने की कोशिश कर रहे हैं तो फिर आप कहानी से कैसे जुड़ सकते हैं? हम कहानियों को जीवन से जोड़ते हैं। जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, हम इसके प्रति एक दृष्टिकोण विकसित करते हैं। हो सकता है कि हम एक-दूसरे की कहानियों को नहीं जानते हों, लेकिन जब कोई कहानी सुनाता है, तो हमें उनके जीवन के बारे में एक अंतर्दृष्टि मिलती है। इसी तरह हम कहानियों से जुड़ाव बनाते हैं।"
एडाथट्टिल ने बताया कि कहानियां और स्क्रीनप्ले बुनियादी रूप से कैसे भिन्न होते हैं। उन्होंने कहा, "हम मानते हैं कि जब हम कुछ बताते या लिखते हैं, तो वो एक कहानी होती है, लेकिन स्क्रीनप्ले कहानी नहीं होते हैं। स्क्रीनप्ले सिर्फ परदे पर ऑडियो-विजुअल तरीके से कहानी कहने की एक डिज़ाइन होती है। कहानी और स्क्रीनप्ले में यही मूलभूत अंतर है।"
उन्होंने कहा कि कहानियां लीनियर यानी सीधी रेखा जैसी होती हैं, लेकिन पटकथा अलग हो सकती है। उन्होंने कहा, "सारी कहानियां प्राकृतिक रूप से लीनियर यानी सीधी होती हैं क्योंकि जीवन ही सीधा होता है। हम अपने जीवन की शुरुआत शादी या मौत से नहीं कर सकते। तो हमारे द्वारा बोली या लिखी जाने वाली कहानियों में एक शुरुआत, मध्य और अंत होता है। लेकिन, पटकथा लिखते समय, कोई उसे एक नॉन लीनियर संरचना के अनुकूल ढाल सकता है। कई लोग कहते हैं कि क्लासिकल स्क्रीनप्ले अब घिसे पिटे हो चुके हैं। लेकिन ये पटकथा को लिखने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला और सबसे कामयाब प्रारूप भी है।"
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