संस्‍कृति मंत्रालय

प्रधानमंत्री ने श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के अवसर पर एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया


श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी एक महान भारत भक्त भी थे: प्रधानमंत्री

यह हमारा संकल्प है कि योग और आयुर्वेद के हमारे ज्ञान का लाभ पूरी दुनिया को मिले: प्रधानमंत्री

यह कल्पना करना मुश्किल है कि अगर भक्तिकाल की सामाजिक क्रांति न होती तो भारत न जाने कहां होता, किस स्वरूप में होता: प्रधानमंत्री

श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी ने भक्ति वेदांत को दुनिया की चेतना से जोड़ने का काम किया: प्रधानमंत्री

Posted On: 01 SEP 2021 6:52PM by PIB Delhi

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के अवसर पर एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया। केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) मंत्री श्री जी किशन रेड्डी एवं अन्य गणमान्‍यजन इस अवसर पर उपस्थित थे।

 

इस अवसर पर गणमान्‍यजनों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने परसों जन्माष्टमी और आज श्रील प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के सुखद संयोग का उल्‍लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ये ऐसा है जैसे साधना का सुख और संतोष एक साथ मिल जाए।उन्होंने यह भी कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाए जाने के बीच यह अवसर आया है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इसी भाव को आज पूरी दुनिया में श्रील प्रभुपाद स्वामी के लाखों करोड़ों अनुयाई और लाखों करोड़ों कृष्ण भक्त अनुभव कर रहे हैं।  

 

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि प्रभुपाद स्वामी एक अलौकिक कृष्णभक्त तो थे ही, साथ ही वे एक महान भारत भक्त भी थे। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में संघर्ष किया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कॉटिश कॉलेज से अपना डिप्लोमा तक लेने से मना कर दिया था। 

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि योग के हमारे ज्ञान का पूरे विश्व में प्रसार हुआ है और भारत की सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, आयुर्वेद जैसा विज्ञान दुनिया भर में फैल गया है। श्री मोदी ने कहा, यह हमारा संकल्प है कि इसका लाभ पूरे विश्व को मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भी हम किसी अन्य देश में जाते हैं और जब वहां मिलने वाले लोग हरे कृष्णा कहते हैं, तो हमें काफी अपनापन और गर्व महसूस होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह अहसास तब भी होगा, जब मेक इन इंडिया उत्पादों के लिए भी यही अपनापन मिलेगा। उन्होंने कहा, हम इस संबंध में इस्कॉन से काफी कुछ सीख सकते हैं।

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के समय में भक्ति ने ही भारत की भावना को जीवित रखा था। उन्होंने कहा, विद्वान यह आकलन करते हैं कि यदि भक्ति काल में कोई सामाजिक क्रांति नहीं हुई होती तो भारत कहां होता और किस स्वरूप में होता, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। भक्ति ने आस्था, सामाजिक क्रम और अधिकारों के भेदभाव को खत्म करके जीव को ईश्वर के साथ जोड़ दिया। उस मुश्किल दौर में भी, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने हमारे समाज को भक्ति भावना के साथ बांधा और आत्मविश्वास पर विश्वास का मंत्र दिया।

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय अगर स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आगे आए जिन्होंने वेद-वेदान्त को पश्चिम तक पहुंचाया, तो वहीं विश्व को जब भक्तियोग को देने की ज़िम्मेदारी आई तो श्रील प्रभुपाद जी और इस्कॉन ने इस महान कार्य का बीड़ा उठाया। प्रधानमंत्री ने कहा, उन्होंने भक्ति वेदान्त को दुनिया की चेतना से जोड़ने का काम किया।

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया के विभिन्न देशों में सैकड़ों इस्कॉन मंदिर हैं और कई गुरुकुल भारतीय संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं। इस्कॉन ने दुनिया को बताया कि भारत के लिए आस्था का मतलब- उमंग, उत्साह, उल्लास और मानवता पर विश्वास है। श्री मोदी ने कच्छ के भूकंप, उत्तराखंड हादसे, ओडिशा और बंगाल में आए चक्रवात के दौरान इस्कॉन द्वारा किए गए सेवा कार्य पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने महामारी के दौरान इस्कॉन द्वारा किए गए प्रयासों की भी सराहना की।

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यह कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय और इस्कॉन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। इस अवसर पर जी. के रेड्डी ने कहा, ‘‘वे भारत के सांस्कृतिक राजदूतों में से एक थे, जिन्‍होंने कृणवन्तो विश्वमार्यम् (संसार के सारे मनुष्यों को श्रेष्ठ बनाना) के उद्देश्य से मानव जाति के सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया।’’

केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी किशन रेड्डी जी ने इस कार्यक्रम में वर्चुअल ढंग से स्वागत भाषण दिया और कहा, ‘भारत महापुरुषों की भूमि भी रहा है जिन्होंने दूसरों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया और अनगिनत लोगों को जीवन का सही मार्ग सिखाया। श्रील प्रभुपाद जी का जीवन अपने आप में समर्पण-भाव एवं अदम्‍य साहस की गाथा है और आज स्वामी जी द्वारा स्थापित आंदोलनइस्कॉनको भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों के प्रति समर्पण-भाव एवं इनके प्रचार-प्रसार और भारतीय संस्कृति, ज्ञान व परंपरा के लिए विश्व स्तर पर जाना जाता है।

श्री कृष्ण रेड्डी ने कहा, ‘श्रील प्रभुपाद जी और उनके अनुयायियों के अथक प्रयासों से ही आज रूस, अर्जेंटीना, घाना जैसे देशों के हजारों मूल निवासियों को साड़ी एवं धोती में घूमते हुए, संस्कृत मंत्रों का जाप करते हुए, श्रीमद भगवद गीता और अन्य पुराणों का अध्‍ययन करते हुए, मृदंगा एवं खोल जैसे वाद्ययंत्रों को बजाते हुए देखा जा सकता है, यह वास्तव में हमारी विरासत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में श्रील प्रभुपाद जी द्वारा सूत्रपात की गई एक सांस्कृतिक क्रांति है। श्री कृष्ण रेड्डी ने यह भी कहा,  ‘भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का पुनरुत्‍थान करने के प्रयोजन से श्रील प्रभुपाद जी ने अपने जीवनकाल में भारत में 8 केंद्र स्थापित किए जिनकी संख्‍या आज बढ़कर 330 हो गई है।’  

समाज के लिए सामाजिक योगदान की सराहना करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘आज इस्कॉन का भोजन वितरण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। कोविड महामारी के दौरान मुझे दिल्ली के द्वारका स्थित मेगा किचन में जाने का अवसर मिला, जहां मैंने देखा कि किस तरह से हर दिन 4 लाख लोगों के लिए भोजन पकाया जा रहा है और व्यवस्थित रूप से वितरित किया जा रहा है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस्कॉन और इससे जुड़ी इकाइयों ने महामारी के दौरान सरकार के साथ मिलकर पूरे भारत में अपने 72 रसोईघरों के माध्यम से 25 करोड़ से भी अधिक प्लेट भोजन परोसा है। मुझे यह जानकर भी खुशी हो रही है कि इस्कॉन का जीवन के लिए भोजन कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा शाकाहारी भोजन राहत कार्यक्रम है।’ 

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि श्रील प्रभुपाद जी के अथक प्रयासों से योग, भारतीय जीवन शैली, संगीत और संस्कृति के बारे में जानने के लिए कई देशों में अत्‍यधिक रुचि है। यही कारण है कि हर साल हजारों अंतरराष्ट्रीय पर्यटक और भक्त वृंदावन, पुरी, मायापुर जैसे पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं और इस तरह से इस क्षेत्र के विकास में बहुमूल्‍य योगदान करते हैं। लेकिन मेरे विचार में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि वे भारत की प्राचीन सभ्यता के एक अनुकरणीय राजदूत थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने उन्हीं पारंपरिक मूल्यों को अथक रूप से काफी आगे बढ़ाया जिनका व्‍यापक प्रचार-प्रसार आप और उनके अनुयायी अब भारत के साथ-साथ विदेश में भी शिक्षा, संस्कृति और कल्याण कार्यक्रमों के जरिए कर रहे हैं।

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