कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय

कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (डीएसीएंडएफडब्ल्यू) पारंपरिक जैविक क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें प्रमाणित जैविक उत्पादन केन्द्र में बदलने का काम कर रहा है


पहले चरण में केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार के 14,491 हेक्टेयर एरिया को ‘लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन’ स्कीम के तहत जैविक प्रमाणीकरण से नवाजा गया

‘लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन’एक तत्काल प्रमाणित करने की प्रक्रिया है जो किफायती भी है और किसानों को जैविक अर्हता प्राप्त करने के लिए 2-3 साल की अवधि का इंतजार नहीं करना पड़ता है

जैविक प्रमाणपत्र मिलने से उस क्षेत्र की सीधी पहुंच देश के उभरते जैविक खाद्य बाजार तक होगी

Posted On: 27 APR 2021 11:09AM by PIB Delhi

कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (डीएसीएंडएफडब्ल्यू) पारंपरिक जैविक क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें प्रमाणित जैविक उत्पादन केन्द्र में बदलने पर काम कर रहा है। भारत सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार के कार निकोबार और द्वीपों के समूह नैनकोवरी के 14,491 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक प्रमाणपत्र दिया है। यह क्षेत्र पीजीएस-इंडिया (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम) प्रमाणन कार्यक्रम के लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन (एलएसी) योजना के तहत जैविक प्रमाणीकरण से प्रमाणित किए जाने वाला पहला बड़ा क्षेत्र बन गया है।

कार निकोबार और द्वीपों के समूह नैनकोवरी पारंपरिक रूप से जैविक क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैं। प्रशासन ने इन द्वीपों में जीएमओ बीज के किसी भी रासायनिक बिक्री, खरीद और उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने स्थानीय समुदायों के सहयोग से भूमि स्वामित्व, काम करने के तरीके और बीते समय में अपनाई गई पद्धति को लेकर द्वीप के आधार पर और किसान के आधार पर डेटाबेस तैयार किया है। एक विशेषज्ञ समिति ने जैविक स्थिति का सत्यापन किया है और पीजीएस-इंडिया सर्टिफिकेट स्कीम के तहत क्षेत्र को जैविक प्रमाण देने की सिफारिश की है। इन रिपोर्टों के आधार पर, भारत सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कार निकोबार और द्वीपों के समूह नैनकोवरी के 14,491 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक प्रमाण पत्र दिया है।

इन द्वीपों के अलावा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर पूर्वी राज्यों और झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बेल्ट, राजस्थान के रेगिस्तानी जिले जैसे कृषि क्षेत्र हैं जो रासायनिक वस्तुओं के उपयोग से मुक्त हैं। ये क्षेत्र जैविक खेती के लिए प्रमाणित हो सकते हैं। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (डीएसीएंडएफडब्ल्यू) राज्यों के साथ मिलकर ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने और उन्हें जैविक खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र के रूप में प्रमाणित करने का काम करा है। इसके साथ ही ब्रांडिंग और लेबलिंग के माध्यम से उस क्षेत्र की विशिष्ट उत्पाद को पहचान कर मार्केटिंग के जरिये बाजार दिलाने की कोशिश भी कर रहा है।

इसके अलावा, अलग-अलग किसानों को प्रमाणित जैविक श्रेणी में लाने के लिए, डीएसीएंडएफडब्ल्यू ने पीकेवीवाई (परम्परागत कृषि विकास योजना) के तहत एक जैविक प्रमाणीकरण सहायता योजना शुरू की है। इस योजना के तहत, व्यक्तिगत किसान एनपीओपी या पीजीएस-इंडिया के किसी भी प्रचलित प्रमाणन प्रणाली के तहत प्रमाणीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। राज्यों के माध्यम से प्रमाणन एजेंसियों को सीधे प्रमाणन लागत के भुगतान के रूप में सहायता उपलब्ध होगी।

एएंडएन द्वीप समूह के बाद, लक्षद्वीप और लद्दाख अपने पारंपरिक जैविक क्षेत्रों को प्रमाणित जैविक क्षेत्र में बदलने के लिए लगातार कदम उठा रहे हैं। ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्राप्त कर चुके इन पर्वतीय क्षेत्रों में देश के उभरते जैविक खाद्य बाजार की सीधी पहुंच होगी।

लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन के माध्यम से जैविक खती के लिए पारंपरिक कृषि क्षेत्र की पहचान:

आधुनिक कृषि पद्धतियों का विस्तार बड़े क्षेत्रों में होने के बावजूद, भारत में अभी भी पहाड़ियों, जनजातीय जिलों, रेगिस्तान और वर्षा वाले क्षेत्रों में बड़े क्षेत्र हैं जो रासायनिक खाद्य के उपयोग से मुक्त हैं। इनमें थोड़े प्रयासों से ऐसे पारंपरिक/कार्बनिक क्षेत्रों को बिना किसी मेहनत के तुरंत ही जैविक प्रमाणीकरण के तहत लाया जा सकता है। कृषि और किसान कल्याण विभाग ने अपनी प्रमुख योजना परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत इन संभावित क्षेत्रों का इस्तेमाल करने के लिए एक अनूठा त्वरित प्रमाणन कार्यक्रम “लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन” (एलएसी) शुरू किया है।

जैविक उत्पादन के मानक नियम के तहत, रासायनिक इस्तेमाल वाले क्षेत्रों को जैविक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 2-3 वर्षों के समय लगता है। इस अवधि के दौरान, किसानों को मानक जैविक कृषि मानकों को अपनाने और प्रमाणन प्रक्रिया के तहत अपने खेतों को रख-रखाव करना होता है। सफलता पूर्वक समापन होने पर, ऐसे खेतों को 2-3 वर्षों के बाद जैविक के रूप में प्रमाणित किया जा सकता है। प्रमाणन प्रक्रिया को प्रमाणीकरण अधिकारियों द्वारा विस्तृत डोक्यूमेंटेशन और समय-समय पर सत्यापन की भी आवश्यकता होती है जबकि एलएसी के तहत आवश्यकताएं सरल हैं और क्षेत्र को लगभग तुरंत प्रमाणित किया जा सकता है। एलएसी एक त्वरित प्रमाणन प्रक्रिया है जो कम लागत वाली है और किसानों को पीजीएस जैविक प्रमाणित उत्पादों के विपणन के लिए 2-3 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ता है।

एलएसी के तहत, क्षेत्र के प्रत्येक गांव को एक क्लस्टर/ग्रुप के रूप में माना जाता है। गांव के अधार पर दस्तावेज सरल बनाए गए हैं। अपने खेत और पशुधन वाले सभी किसानों को मानक आवश्यकताओं का पालन करना होता है और प्रमाणित होने के बाद उन्हें संक्रमण अवधि तक इंतजार नहीं करना होता है। पीजीएस-इंडिया के अनुसार मूल्यांकन की एक प्रक्रिया द्वारा वार्षिक सत्यापन के माध्यम से वार्षिक आधार पर प्रमाणन का नवीनीकरण किया जाता है।

पृष्ठभूमि

जैविक खेती की पहचान एक बड़ी जीवन शक्ति विकल्प के रूप में की गई है जो सुरक्षित और रासायनिक अवशेष मुक्त भोजन और खाद्य उत्पादन प्रणालियों को लंबे समय तक स्थिरता प्रदान करती है। कोविड -19 महामारी ने जैविक उत्पाद की आवश्यकता और मांग को और बढ़ा दिया है। विश्व में जैविक खाद्य की मांग बढ़ रही है और भारत इसका अपवाद नहीं है। 2014 के बाद से रासायन मुक्त खेती के पर्यावरण और मानव लाभ के महत्व को समझते हुए, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना, उत्तर पूर्व में जैविक मिशन आदि की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जैविक / प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। भारत में अब 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र जैविक प्रमाणीकरण के तहत पंजीकृत हैं और धीरे-धीरे अधिक से अधिक किसान इस मुहिम में शामिल हो रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट (2021) के अनुसार, भारत क्षेत्रफल के मामले में 5वें स्थान पर है और कुल उत्पादकों की संख्या (आधार वर्ष 2019) के मामले में शीर्ष पर है।

******

एमजी/एएम/एके/डीसी


(Release ID: 1714339) Visitor Counter : 626