प्रधानमंत्री कार्यालय

लोक सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ

Posted On: 10 FEB 2021 11:44PM by PIB Delhi

आदरणीय सभापति जी, 

मैं राष्ट्रपति जी के प्रेरक उदबोधन पर आभार प्रस्ताव की चर्चा में शरीक होने के लिए और राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करने के लिए कुछ बातें प्रस्तुत करुंगा। राष्ट्रपति जी का भाषण भारत के 130 करोड़ नागरिकों की संकल्प शक्ति का परिचायक है। विकट और विपरित काल में भी यह देश किस प्रकार से अपना रास्ता चुनता है, रास्ता तय करता है और रास्ते पर achieve करता हुआ आगे बढ़ता है। ये सारी बातें विस्तार से राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में कही है। उनका एक एक शब्द देशवासियों में एक नया विश्वास पैदा करने वाला है और हर किसी के दिल में देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगाने वाला है। और इसलिए हम जितना उनका आभार व्यक्त करें उतना कम है। इस सदन में भी 15 घंटे से ज्यादा चर्चा हुई है। रात को 12-12 बजे तक हमारे सभी माननीय सांसदों ने इस चेतना को जगाये रखा है। चर्चा को जीवन्त बनाया है, अधिक्षारपन किया है।   इस चर्चा में भाग लेने वाले सभी माननीय सदस्यों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। मैं विशेष रूप से हमारी महिला सांसदों का आभार व्यक्त करना चाहता हूं। क्योंकि इस चर्चा में उनकी भागीदारी भी ज्यादा थी, विचारों की धार भी थी, Research करके बाते रखने का उनका प्रयास था और अपने आपको इस प्रकार से तैयार करके उन्होंने इस सदन को समृद्ध किया है, चर्चा को समृद्ध किया है और इसलिए उनकी ये तैयारी, उनके तर्क और उनके सूझबूझ इसके लिए मैं विशेष रूप से महिला सांसदों का अभिनन्दन करता हूं उनका आभार व्यक्त करता हूं।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय, 

भारत आजादी के 75वे वर्ष में एक प्रकार से हम अभी दरवाजे पर दस्तक दे ही रहे हैं। 75 वर्ष का पड़ाव हर हिन्दुस्तानी के लिए गर्व का है और आगे बढ़ने के पर्व का भी है। और इसलिए समाज व्यवस्था में हम कहीं पर भी हो, देश के किसी भी कोने में हो, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में हमारा स्थान कहीं पर भी हो लेकिन हम सबने मिलकर के आजादी के इस पर्व से एक नई प्रेरणा प्राप्त करके, नए संकल्प लेकर के 2047, जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा। हम उस 100 साल की  भारत की आजादी की यात्रा के 25 साल हमारे सामने हैं। उन 25 साल को हमे देश को कहां ले जाना है, दुनियां में इस देश के मौजूदगी कहां करनी है ये संकल्प हर देशवासी के दिल में हो। ये वातावरण का काम इस परिसर का है, इस पवित्र धरती का है, इस पंचायत का है।

आदरणीय अध्यक्ष जी, 

देश जब आजाद हुए और आखिरी ब्रिटिश कमांडर थे वो यहां से जब गए तो आखिर में वो ये ही कहते रहते थे कि भारत कई देशों का महाद्वीप है और कोई भी इसे एक राष्ट्र कभी नहीं बना पाएगा। ये घोषणाएं हुई थी लेकिन भारतवासियों ने इस आशंका को तोड़ा। जिनके मन में ये प्रकार के शक थे उसको समाप्त कर दिया और हम हमारी अपनी जिजीविक्षा, हमारी सांस्कृतिक एकता, हमारी परंपरा आज विश्व के सामने एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं और विश्व के लिए आशा का किरण बनके के खड़े हुए हैं। ये 75 साल की हमारी यात्रा में हुआ। कुछ लोग यह कहते थे कि India was a miracle Democracy, ये भ्रम भी हमने तोड़ा है। लोकतंत्र हमारे रगो में, हमारी सांस में इस प्रकार से बुना हुआ है। हमारी हर सोच, हर पहल, हर प्रयास लोकतंत्र की भावना से भरा हुआ रहता है। इस बात को हमने अनेक चुनाव आए, अनेक सत्ता परिवर्तन आए, बड़ी आसानी से सत्ता परिवर्तन आए। और परिवर्तित सत्ता व्यवस्था को भी सबने हृदय से स्वीकार करके आगे बढ़ाया। 

75 साल का ये क्रम रहा है और इसलिए लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए और हम विविधताओं से भरे हुए देश हैं। सैंकड़ों भाषाएं, हजारों बोलियां, भांति-भांति का पहनाव, क्या कुछ नहीं है विविधताओं से भरा हुआ। उसके बावजूद भी हमने एक लक्ष्य, एक राह ये करके दिखाया है। आज जब हम भारत की बात करते हैं तो स्वाभाविक रूप से स्वामी विवेकानंद जी ने जो बात कही थी उसको मैं जरूर स्मरण करना चाहुंगा। विवेकानंद जी ने कहा था Every nation has a message to deliver a mission to fulfill a destiny to reach, यानि हर राष्ट्र के पास एक संदेश होता है। जो उसे पहुंचाना होता है। हर राष्ट्र का एक मिशन होता है जो उसे हासिल करना होता है। हर राष्ट्र की एक नियति होती है जिसको वह प्राप्त होता है। कोरोना के दरमियान भारत ने जिस प्रकार से अपने आप को संभाला और दुनिया को संभलने में मदद की, एक प्रकार से Turning Point है। जिस भावनाओं को लेकर के जिस संस्कार को लेकर के वेद से विवेकानंद तक हम पले-बढ़े हैं। वो हैं सर्वे भवन्तु सुखिन:। ये सर्वे भवन्तु सुखिन:। सर्वे संतु निरामया। 

ये कोरोना कालखंड में भारत ने इसको करके दिखाया है। और भारत ने एक आत्मनिर्भर भारत के रूप में जिस प्रकार से एक के बाद एक ठोस कदम उठाये हैं, और जन सामान्य ने उठाए हैं। लेकिन हम उन दिनों को याद करें कि जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ था। दो विश्व युद्ध ने दुनिया को झकझोर दिया था। मानवजात, मानवमूल्य संकट के घेरे में थे। निराशा छाई हुई थी और Second World war के बाद  post  world war एक दुनिया में एक नया आर्डर new world Order उसने आकार लिया। शांति के मार्ग पर चलने के शपथ लिए, सैन्य नहीं सहयोग, इस मंत्र को लेकर के दुनिया के अंदर विचार प्रबल होते गए हैं। UN का निर्माण हुआ, इंस्टीट्यूशंस बनी, भांति- भांति के मैकेनिज्म तैयार हुए, ताकि विश्व को post world war के बाद एक सुचारू ढ़ग से शांति की दिशा में ले जाया जाए। लेकिन अनुभव कुछ और निकला। अनुभव ये निकला कि दुनिया में शांति की बात हर कोई करने लगा, post world war शांति की बातो के बीच भी हर कोई जिसकी ताकत थी। अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगा। world war के पहले दुनिया के पास जो सैन्य शक्ति थी। UN के बाद वो सैन्य शक्ति अनेकों गुणा बढ़ गई। छोटे – मोटे देश भी सैन्य शक्ति की स्पर्धा में आने लग गए। शांति की चर्चा बहुत हुई लेकिन हकीकत इस बात विश्व को स्वीकार करना होगा कि सैन्य शक्ति की तरफ बड़ी बड़ी ताकतें और पुरजोर चल पड़ीं। जितने innovation हुए research हुए वो इसी कालखंड में हुए, सैन्य शक्ति के लिए। पोस्ट कोरोना भी एक नया वर्ल्ड ऑडर नजर आ रहा है। पोस्ट कोरोना के बाद दुनिया में एक नया संबंधों का वातावरण शेप लेगा। 

हमें तय करना है कि हम world war के बाद एक मूकदर्शक के रूप में बदलती हुई दुनिया को देखते रहे और अपने आपको कहीं एडजस्ट हो सकता है तो करने की कोशिश करें। हमारे लिए वो कालखंड भी वैसा ही था। लेकिन आज पोस्ट कोरोना जो नया वर्ल्ड आर्डर तैयार होगा, और होना ही है। किस रूप का होगा, कैसा होगा कोन उसको Initiate करेगा, वो तो वक्त बताएगा। लेकिन दुनिया ने जिस प्रकार से संकट को झेला है। दुनिया इस पर सोचने के लिए मजबूर हुई है और होना है। ऐसी स्थिति में भारत विश्व से कटकर के नहीं रह सकता। भारत एक कोने में गुजारा नहीं कर सकता है। हमें भी एक मजबूत प्लेयर के रूप में उभरना होगा। लेकिन सिर्फ जनसंख्या के आधार पर हम दुनिया में अपनी मजबूती का दावा नहीं कर पाएंगे। वो एक ताकत है लेकिन इतनी ताकत मात्र से नहीं चलता है। नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत को अपनी जगह बनाने के लिए भारत को सशक्त होना पड़ेगा, समर्थ होना पड़ेगा और उसका रास्ता है आत्मनिर्भर भारत। आज फार्मेसी में हम आत्मनिर्भर हैं। हम दुनिया के कल्याण के काम आते हैं। भारत जितना आत्मनिर्भर बनेगा और जिसकी रगो में सर्वे भवन्तु सुखिनः का मंत्र जड़ा हुआ है। वो जितना सामर्थ्यवान होगा मानवजात के कल्याण के लिए विश्व के कल्याण के लिए एक बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकेगा और इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम आत्मनिर्भर भारत इस विचार को बल दें और ये हम मान के चलें, ये किसी शासन व्यवस्था का विचार नहीं है, ये किसी राजनेता का विचार नहीं है। आज हिन्दुस्तान के हर कोने में वोकल फॉर लोकल, वोकल फॉर लोकल, सुनाई दे रहा है और लोग हाथ लगाते देखते हैं लोकल। ये आत्म गौरव का भाव आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत काम आ रहा है और मुझे विश्वास है कि हम सबकी सोच हमारी नीतियां, हमारे निर्णय भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो भी आवश्यक बदलाव हो उस बदलाव की ओर होनी चाहिए ये मेरा मत है। 

इस चर्चा के अंदर करीब करीब सभी माननीय सदस्यों ने कोरोना की चर्चा की है। हमारे लिए संतोष का विषय है, गर्व का विषय है कि कोरोना के कारण कितनी बड़ी मुसीबत आएगी ये जो दुनिया में अनुमान लगाए गए थे, बहुत बड़े बड़े एक्सपर्ट ने अनुमान लगाए थे। भारत में भी एक भय का वातावरण पैदा करने के लिए भरसक प्रयास भी हुए थे। और एक unknown enemy था तो विश्वास से कोई कुछ नहीं कह सकता था। विश्वास से कोई कुछ कर भी नहीं सकता था। एक ऐसे unknown enemy के खिलाफ लड़ना था। और इतना बड़ा देश, इतना thickly populated  देश, इतनी कम व्यव्स्थाओं वाला देश, दुनिया को शक होना बड़ा स्वाभाविक भी था। क्योंकि विश्व के बड़े बड़े देश कोरोना के सामने घुटने टेक चुके थे तब भारत कैसे टिक पाएगा अब भारत एक बार हालत खराब हो गई तो विश्व को कोई नहीं बचा पाएगा। ये समीकरण भी लोग लगा रहे थे। ऐसे में ये 130 करोड़ देशवासियों की इस Discipline, उनका समर्पण, इसने आज हमें बचाके रखा है। Credit goes to 130 करोड़ हिन्दुस्तानी और इसका गौरवगान हमें करना चाहिए। भारत की पहचान बनाने के लिए ये भी एक अवसर है। हम अपने आपको कोसते रहकर के कहे दुनिया हमें स्वीकार करे ये कभी संभव नहीं होता है। हम घर में बैठकर के अपनी कमियों के साथ जुझेंगे, कमियों को  ठीक करने का प्रयाास करेंगे। लेकिन विश्वास के साथ विश्व के सामने जाने का तजुरबा भी रखेंगे। तब जाकर के दुनिया हमें स्वीकार करेगी। अगर आप अपने बच्चों को घर में नहीं स्वीकार करते हो और चाहोगे मोहल्ले में बच्चा स्वीकार करे, कोई स्वीकार नहीं करता। दुनिया का नियम है और इसलिए हमें इस बात को करना चाहिए। 

श्रीमान मनीष तिवारी जी ने एक बात कही, उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा है कोरोना में हम बच गए। मैं इस बात से जरूर कुछ कहना चाहूंगा। ये भगवान की ही कृपा है। जिसके कारण दुनिया इतनी बड़ी हिल गई हम बच गए, भगवान की कृपा है। क्योंकि वो डॉक्टर्स, वो नर्स भगवान का रूप बनके आए थे। क्योंकि वो डॉक्टर्स, वो नर्स अपने छोटे-छोटे बच्चों को शाम को घर लौटूंगा, कहकर के जाते थे। पन्द्रह – पन्द्रह दिन लौट नही सकते थे। वो भगवान का रूप लेकर कहते थे। हम कोरोना से जीत पाए क्योंकि ये हमारे सफाई कर्मचारी मौत और जिंदगी का खैल उनके लिए भी था। लेकिन जिस मरीज के पास कोई नहीं जा सकता था। मेरा सफाई कामगार वहां जाकर के उसको साफ सुथरा रखने का प्रयास करता था, भगवान का रूप से सफाई कामदार के रूप में आया था। कोई Ambulance चलाने वाला ड्राईवर पढ़ा लिखा नही था। उसको पता था मैं जिसको लेकर के जा रहा हूं, वो कोरोना पॉजिटिव है, वो Ambulance का ड्राईवर भगवान के रूप में आया था और इसलिए भगवान का रूप ही था। जिसने हमे बचाया है। लेकिन भगवान अलग-अलग रूप में आया था। और जितनी हम उनकी प्रशंसा करें, जितना हम गौरवगाण करेंगे, देश की सफलता का गौरवगाण करेंगे, हमारे भीतर भी एक नई ताकत पैदा होगी। कई कारणों से जिन लोगो के भीतर निराशा फैल चुकी है। उनको भी मैं कहता हूं कि कुछ पल के लिए 130 करोड़ देशवासियों के इस पराक्रम को याद कीजिए।  आपके अंदर भी उर्जा आ जाएगी।

माननीय अध्यक्ष जी, 

इस कोरोना काल ऐसा कसौटी का कारण था जिसमें सच्ची कसौटी तब होती थी जब संकट होता है। सामान्य स्थिति में बहुत जल्दी ध्यान में नही आता है। दुनिया बड़े- बड़े देश कोरोना में जो हुआ वो तो है। लेकिन उन्होंने हरेक ने तय किया कि वे अपने नागरिकों को सीधे पैसे पहुचाएंगे ताकि इस संकट की घड़ी में उनके नागरिकों को मदद मिले। आपको जानकर के ताज्जुब होगा दुनिया के बहुत सारे देश उस कोरोना, लॉकडाउन, कर्फ्यू, आशंका इस वातावरण के कारण चाहते हुए भी खजाने में पौंड और डॉलर के ढ़ेर होने के बावजूद भी अपने नागरिकों तक नहीं पहुंचा पाए। बैंक बंद, पोस्ट बंद, व्यवस्थाएं बंद,  कुछ नहीं कर पाए। इरादा था घोषणाए भी हुई, ये हिन्दुस्तान है कि जो इस कोरोना कालखंड में भी करीब – करबी 75 करोड़ से अधिक भारतीयों को राशन पहुंचा सकता है। आठ महीने तक राशन पहुंचा सकता है। यही भारत है जिसने जनधन, आधार और मोबाईल के द्वारा दो लाख करोड़ रुपया इस कालखंड में लोगों तक पहुंचा दिया और दुर्भाग्य देखिए जो आधार, जो मोबाईल, ये जनधन एकाउंट इतना गरीब से काम आया लेकिन कभी कभी सोचते हैं कि आधार को रोकने के लिए कोन लोग कोर्ट में गए थे। कोन लोग सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटा रहे थे। मैं कभी कभी हैरान हूं और आज मैं इस बात को बार बार बोलूंगा, अध्यक्ष जी मुझो क्षमा करना। मुझे एक मिनट का विराम देने के लिए मै आपका बहुत आभारी हूं। इस सदन में कभी कभी अज्ञान भी बड़ी मुसीबत पैदा करता है।

माननीय अध्यक्ष जी, 

ठेले वाले, रेहडी पटरी वाले लोग इस कोरोना कालखंड में उनको धन मिले, उनको पैसे मिले ये उनके लिए किया गया और हम कर पाए।  आदरणीय अध्यक्ष जी हमारी अर्थव्यवस्था इस कालखंड में भी हमने रिफॉर्म का सिलसिला जारी रखा। और हम इस इरादे से चले कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था को उभारने के लिए बाहर लाने के लिए हमने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने पड़ेंगे और आपने देखा होगा day one से अनेक विधि से रिफार्म  के कदम हमने उठाए और इसका परिणाम है आज ट्रैक्टर हो, गाड़ियां हो, उसका रिकार्ड सैल हो रहा है। आज जीएसटी का क्लेकशन एवर हाईएस्ट हुआ है। ये सारे आंकड़े हमारी अर्थव्यवस्था में जोश भर रही है। ये दिखा रहा है कि नए जोश के साथ भारत की अर्थव्यवस्था उभर रही है। और दुनिया के जो लोग हैं। उन्होंने ये अनुमान भी लगाया है। कि करीब – करीब दो डिजिट वाला ग्रोथ अवश्य होगा। दो डिजिट ग्रोथ की संभावनाएं सभी पंडितों ने कही है और मुझे विश्वास है कि इसके कारण इस संकट के काल से भी मुसीबतों के बीच से भी देशवासियों को अपेक्षा के अनुसार देश प्रगति करेगा। 

आदरणीय अध्यक्ष महोदय, 

इस कोरोना काल मे तीन कृषि कानून भी लाए गए। ये कृषि सुधार का सिलसिला बहुत ही आवश्यक है, बहुत ही महत्वपूर्ण है और वर्षो से जो हमारा कृषि क्षेत्र चुनौतियां महसूस कर रहा है। उसको बाहर लाने के लिए हमने निरंतर प्रयास करना ही होगा और करने की दिशा में हमने एक ईमानदारी से प्रयास किया है। जो भावी चुनौतियां जिसको कई विद्वानों ने कहा हुआ है काई मेरे शब्द नहीं हैं कृषि क्षेत्र की इन भावी चुनौतियों को हमने अभी से डील करना पड़ेगा। और उसको करने के लिए हमने प्रयास किया है। मैं देख रहा था कि यहां पर जो चर्चा हुई और विशेषकर के जो हमारे कांग्रेस के साथियों ने चर्चा की। मैं ये तो देख रहा था कि वो इस कानूने के कलर पर तो बहुत बहस कर रहे थे। ब्लैक है कि व्हाइट हे, ब्लैक है कि व्हाइट हे, अच्छा होता उसके कनटेंट पर चर्चा करते, अच्छा होता उसके इनटेंट पर चर्चा करते,  ताकि देश के किसानों को भी सही चीज पहुंच सकती थी और मुझे विश्वास है दादा ने भी भाषण किया और मुझे लगता है कि दादा तो बहुत अभ्यास करके आए होंगे बहुत अच्छी बात बतांएगे लेकिन वो ज्यादातर प्रधानमंत्री और उनके साथी बंगाल में यात्रा क्यों कर रहे हैं कैसे कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं उसी में लगे रहे। तो दादा के ज्ञान का हम ज्ञान से हम इस बार वंचित रह गए। खैर चुनाव के बाद अगर आपके पास मौका होगा तो ये कितना महत्वपूर्ण प्रदेश है, इसलिए तो हम कर रहे हैं। हां आप लोगों ने इसको इतना पीछे छोड़ दिया हम तो इसको प्रमुखता देना चाहते हैं। हम एक बात समझें जहां तक आंदोलन का सवाल है। दिल्ली के बाहर हमारे जो किसान भाई-बहन बैठे हैं। जो भी गलत धारणाएं बनाई गई, जो अफवाएं फैलाई गई उसके शिकार हुए हैं। मेरा भाषण बोलने के बाद सब कीजिए आप, आपको मौका मिला था। आप तो एैसे शब्द उनके लिए बोल सकते हैं, हम नहीं बोल सकते। हमारे श्रीमान कैलाश चौधरी जी ने और देखिए मैं कितनी सेवा करता हूं आपकी, आपको जहां रजिस्टर करवाना था हो गया।

माननीय अध्यक्ष जी,  

आंदोलन कर रहे सभी किसान साथियों की भावनाओं का ये सदन भी और ये सरकार भी आदर करती है, आदर करती रहेगी। और इसलिए सरकार के वरिष्ठ मंत्री, जब ये आंदोलन पंजाब में था तब भी और बाद में भी, लगातार उनसे वार्ता कर रहे हैं। किसानों के प्रति सम्मान भाव के साथ कर रहे हैं। आदर भाव के साथ कर रहे हैं।  

माननीय अध्यक्ष जी, लगातार बातचीत होती रही हैं। और जब पंजाब में आंदोलन चल रहा था उस समय भी हुई है। दिल्ली आने के बाद हुई एैसा नहीं है। बातचीत में किसानों की शंकाए क्या हैं वो ढूंढने का भी भरपूर प्रयास किया गया। उनसे लगातार कहा गया कि अपन एक-एक मुद्दे पर चर्चा करेंगे। नरेंद्र सिहं तोमर जी ने इस विषय में विस्तार से बताया भी है राज्यसभा में तो। क्लोज बाई क्लोज चर्चा करने के लिए भी कहा है और हम मानते हैं कि अगर इसमें कोई कमी हो और सचमुच में किसान का नुकसान हो तो बदल देने में क्या जाता है जी। ये देश देशवासियों के लिए है अगर कोई निर्णय करते हैं तो किसानों के लिए है लेकिन हम इंतजार करते हैं अभी भी इंतजार करते हैं कि वो अगर को चीज स्पेसीफिक बताते हैं और अगर वो कन्विंसिंग है तो हमें कोई संकोच नहीं है और इसलिए हम जब शुरू में वो जब पंजाब में थे। ये ordinance के द्वारा ही तीनों कानून लागू किए गए थे। बाद में पार्लियामेंट में पारित हुए। कानून लागू होने के बाद न देश में कोई मंडी बंद हुई है, कानून लागू होने के बाद न कहीं एमएसपी बंद हुआ है। ये सच्चाई है जिसको हम छुपा करके बातें करते हैं, जिसका कोई मतलब न हीं है। इतना ही नहीं, एमएसपी की खरीदी भी बढ़ी है और ये कानून नए बनने के बाद बढ़ी है। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

ये हो-हल्ला, ये आवाज, ये रुकावटें डालने का प्रयास एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है और सोची-समझी रणनीति ये है कि जो झूठ फैलाया है, जो अफवाहें फैलाई हैं उसका पर्दाफाश हो जाएगा, सत्य वहां पहुंच जाएगा तो उनका टिकना भारी हो जाएगा और इसलिए हो-हल्ला करते रहो, जैसा बाहर करते थे ऐसा अंदर भी करते रहो, यही खेल चलता रहा है। लेकिन इससे आप कभी भी आप लोगों का विश्वास नहीं जीत पाओगे ये मानकर चलो। माननीय अध्यक्ष जी, ऑर्डिनेंस के बाद और पार्लियामेंट में कानून बनने के बाद किसी भी किसान से मैं पूछना चाहता हूं कि पहले जो हक उनके पास थे, जो व्यवस्थाएं उनके पास थीं, उसमें से कुछ भी इस नए कानून ने छीन लिया है क्या? इसकी चर्चा, उसका जवाब कोई देता नहीं है। सब कुछ वैसा का वैसा वो है पुराना। क्या हुआ है एक अतिरिक्त विकल्प व्यवस्था मिली है, वो भी क्या compulsory है। किसी कानून का विरोध तो तब मायने रखता है कि जब वो compulsory हो। ये तो optional है, आपको मर्जी पड़े जहां जाना है जाइए, आपको मर्जी पड़े वहां ले जाना है वहां जाइए। जहां ज्यादा फायदा हो वहां किसान चला जाए, ये व्यवस्था की गई है। और इसलिए अधिरंजन जी अब ज्यादा हो रहा है, अधिरंजन जी please अब ज्यादा हो रहा है…अब ज्यादा हो रहा है। मैं आपकी respect करने वाला इंसान हूं। और मैंने पहले कह दिया, आपने जितना किया यहां registered हो गया। और बंगाल में भी TMC से ज्यादा publicity आपको मिल जाएगी..बाबा क्यों इतना। हां दादा, देखो मैंने बता दिया है, चिंता न करो बता दिया है। अधिरंजन जी, please, अधिरंजन जी। अच्छा नहीं लगता है, मैं इतना आदर करता हूं, आप आज ऐसा क्यों कर रहे हैं? आप ऐसा न करिए। अरे भाई..हद से ज्यादा क्यों कर रहे हैं।

ये जो है कानून अध्यक्ष जी, किसी के भी लिए बंधनकर्ता नहीं है, ऐसा कानून है। उनके लिए option है और जहां option है वहां विरोध के लिए कोई कारण ही नहीं बनता है। हां, ऐसा कोई कानून जो ऐसे थोप दिया हो, उसके लिए विरोध का कारण बनता है। और इसलिए मैं कहता हूं, लोगों को...मैं  देख रहा हूं, आंदोलन का एक नया तरीका है। क्या तरीका है- आंदोलनकारी जो होते हैं वो ऐसे तरीके नहीं अपनाते...आंदोलनजीवी होते हैं वो ऐसे तरीके अपनाते हैं। और वो कहते हैं ऐसा हुआ तो ऐसा होगा, ऐसा होगा तो ऐसा होगा। अरे भाई! जो कुछ हुआ ही नहीं, जो होना नहीं है, उसका भय पैदा कर-करके और पिछले कई सालों से लगातार सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आ जाये, कोई निर्णय नहीं हुआ है और एकदम से तूफान खड़ा कर दिया जाए, आग लगा दी जाए देश में। ये जो तौर-तरीके हैं..वो तौर-तरीके...जो भी लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, जो भी अहिंसा में विश्वास करते हैं, उन सबके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। ये सरकार की चिंता का नहीं, देश की चिंता का विषय होना चाहिए। Please बाद में, बाद में, बाद में समय मिलेगा आपको।  

माननीय अध्यक्ष जी, 

पुरानी मंडियों पर भी कोई पाबंदी नहीं है। इतना ही नहीं, इस बजट में इन मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए, उनके infrastructure को सुधारने के लिए और बजट की व्यवस्था की गई है और उस बजट के माध्यम से माननीय अध्यक्ष जी, ये जो हमारे निर्णय हैं वो ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की भावना के साथ ही लिए गए हैं। आदरणीय अध्यक्ष जी, इस सदन के साथी भलीभांति इस बात को समझते हैं कि कांग्रेस और कुछ दलों ने बड़े जोर-शोर से बात अपनी कही, लेकिन जिन बातों को लेकर उनको कहना चाहिए, भाई ये नहीं ये...अपेक्षा ये होती है कि उन्होंने इतना स्टडी करके आए हैं। इतना ही नहीं, जो लोग ये कहते हैं...मैं हैरान हूं पहली बार एक नया तर्क आया है इस सदन में कि भई हमने मांगा नहीं था तो दिया क्यों? पहली बात है कि लेना-न लेना आपकी मर्जी है, किसी ने किसी के गले मढ़ा नहीं है। optional है, एक व्यवस्था है और देश बहुत बड़ा है। हिन्दुस्तान के कुछ कोने में इसका लाभ होगा, हो सकता है किसी को न भी हो, लेकिन ये compulsory नहीं है। और इसलिए मांगा और देने का मतलब नहीं होता है। लेकिन मैं फिर भी कहना चाहता हूं इस देश में...माननीय अध्यक्ष जी, दहेज के खिलाफ कानून बने। इस देश में कभी किसी ने मांग नहीं की थी कि फिर भी देश की प्रगति के लिए कानून बना था। 

माननीय अध्यक्ष जी, ट्रिपल तलाक- इसके खिलाफ कानून बने, ये किसी ने मांग नहीं की थी, लेकिन प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक है इसलिए कानून हमने बनाए हैं। हमारे यहां बाल-विवाह पर रोक- किसी ने मांग नहीं की थी कानून बनाओ, फिर भी कानून बने थे क्योंकि प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक होता है। शादी की उम्र बढ़ाने के निर्णय- किसी ने मांग नहीं की थी, लेकिन प्रगतिशील विचार के साथ वो निर्णय बदलने पड़ते हैं। बेटियों को संपत्ति में अधिकार- किसी ने मांग नहीं की थी, लेकिन एक प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक होता है, तब जा करके कानून बनाया जाता है। शिक्षा का अधिकार देने की बात- किसी ने मांग नहीं की थी, लेकिन समाज के लिए आवश्यक होता है, बदलाव के लिए आवश्यक होता है तो कानून बनते हैं। क्या कभी भी इतने सुधार हुए, बदलते हुए समाज ने इसको स्वीकार किया कि नही किया, ये दुनिया पूरी तरह जानती है। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

हम ये मानते थे कि हिन्दुस्तान की बहुत पुरानी पार्टी-कांग्रेस पार्टी, जिसने करीब-करीब छह दशक तक इस देश में एकचक्री शासन किया, ये पार्टी का ये हाल हो गया है कि पार्टी का राज्यसभा का तबका एक तरफ चलता है और पार्टी का लोकसभा का तबका दूसरी तरफ चलता है। ऐसी divided पार्टी, ऐसी confuse पार्टी, न खुद का भला कर सकती है, न देश की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सोच सकती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है? कांग्रेस पार्टी राज्यसभा में भी, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राज्यसभा में बैठे हैं, लेकिन वो एक बहुत आनंद और उमंग के साथ वाद-विवाद करते हैं, विस्तार से चर्चा करते हैं, अपनी बात रखते हैं और यही कांग्रेस पार्टी का दूसरा तबका...अब समय तय करेगा। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

EPF पेंशन योजना- हमें मालूम है कभी कभी ऐसे cases में ये सामने आया, जब 2014 के बाद मैं यहां बैठा, किसी को पेंशन सात रुपये मिल रही थी, किसी को 25 रुपये, किसी को 50 रुपये, किसी को 250 रुपये...ये देश में चलता था। मैंने कहा- भई इन लोगों को ऑटो रिक्शा में वो पेंशन लेने जाने का खर्चा इससे ज्यादा होता होगा। किसी ने मांग नहीं की थी, किसी मजदूर संगठन ने मुझे आवेदन पत्र नहीं दिया था, माननीय अध्यक्ष जी। उसमें सुधार ला करके minimum 1000 रुपये हमने देने का निर्णय किया था, किसी ने मांगा नहीं था। मुझे किसी भी किसान संगठन ने इस देश के छोटे किसान को कुछ सम्मानित पैसे मिलें, इसकी व्यवस्था की किसी ने मांग नहीं की थी, लेकिन हमने प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना के तहत उनको हमने धन सामने से देना शुरू किया। 

माननीय अध्यक्ष जी,

कोई भी आधुनिक समाज के लिए परिवर्तन बहुत आवश्यक होता है। हमने देखा है, जिस प्रकार से उस कालखंड में विरोध होता था, लेकिन राजा राममोहन रायजी जैसे महापुरुष, ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी जैसे महापुरुष, ज्योतिबा फुले जैसे महापुरुष, बाबा साहेब अम्बेडकर…कितने अनगिनत नाम हैं...उन्होंने समाज के सामने, उल्टे प्रवाह में सामने हो करके समाज-सुधार का बीड़ा उठाया था, व्यवस्थाएं बदलने के लिए बीड़ा उठाया। अब कभी भी किसी ने जो जिम्मेदारियां लेनी होती हैं...हां ऐसी चीजों का शुरू में विरोध होता है, जब बात सच तक पहुंचती है तो लोग इसको स्वीकार भी कर लेते हैं। और हिन्दुस्तान इतना बड़ा देश है...कोई भी निर्णय शत-प्रतिशत सबको स्वीकार्य हो, ऐसा संभव ही नहीं हो सकता है। ये देश विविधताओं से भरा हुआ है। किसी एक जगह पर वो बहुत लाभकर्ता होगा, किसी जगह पर कम लाभकर्ता होगा, किसी जगह पर शायद जो पहले के लाभ हैं उनसे वंचित करता होगा। लेकिन ऐसी तो इतने बड़े देश में व्यवस्था नहीं हो सकती है कि हम उसमें कोई...लेकिन एक larger interest…देश में निर्णय जो होते हैं larger…सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय निर्णय होते हैं और उसको ले करके हम काम करते हैं।   

माननीय अध्यक्ष जी, 

ये सोच के साथ मेरा विरोध है...जब ये कहा जाता है मांगा था क्या? क्या हम सामंतशाही हैं क्या, कि देश की जनता याचक की तरह हमसे मांगे? उनको मांगने के लिए मजबूर करें? ये मांगने के लिए मजबूर करने वाली सोच लोकतंत्र की सोच नहीं हो सकती, माननीय अध्यक्ष जी। सरकारें संवदेनशील होनी चाहिए। लोकतांत्रिक तरीके से जनता की भलाई के लिए सरकार को जिम्मेदारियां ले करके आगे आना चाहिए। और इसलिए इस देश की जनता ने आयुष्मान योजना नहीं मांगी थी, लेकिन हमें लगा कि गरीब को बीमारी से बचाना है तो आयुष्मान भारत योजना ले करके जाना होगा। इस देश के गरीब ने बैंक एकाउंट के लिए कोई जुलूस नहीं निकाला था, कोई memorandum नहीं भेजा था। हमने जन-धन योजना की थी और हमने इस जन-धन योजना से उसके खाते खोले थे। 

किसी ने भी, स्वच्छ भारत की मांग किसने की थी…लेकिन देश के सामने जब स्वच्छ भारत ले करके गए तो मामला चल पड़ा। कहां लोगों ने कहा था मेरे घर में शौचालय बनाओ...ये किसी न मांगा नहीं था...लेकिन हमने दस करोड़ घरों में शौचालय बनाने का काम किया है। मांगा जाए, तभी सरकार काम करे, वो वक्त चला गया है। ये लोकतंत्र है, ये सामंतशाही नहीं है। हम लोगों ने लोगों की संवेदनाओं को समझ करके हमने सामने से देना चाहिए। नागरिकों को याचक बना करके हम नागरिकों का आत्मविश्वास नहीं बढ़ा सकते हैं। हमने नागरिकों को अधिकार देने की दिशा में आगे बढ़ते रहना चाहिए। नागरिक को याचक बनाने से नागरिक का आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। नागरिक का सामर्थ्य पैदा करने के लिए, उसका आत्मविश्वास पैदा करने के हमारे कदम होने चाहिए, और हमने इस दिशा में कदम उठाए हैं। सरकार, दादा-दादा, एक मिनट सुनो दादा, अरे वो ही मैं कह रहा हूं, दादा मैं वो ही कह रहा हूं। जो नहीं चाहता है वो उसका उपयोग न करें उसके पास पुरानी व्यवस्था है। ये यही, आप बुद्धिमान लोगों को इतना ही छोटा मुझे समझाना है कि उसको नहीं चाहिए तो पुरानी व्यवस्था है...पुरानी व्यवस्था चली नहीं गई है। 

माननीय अध्यक्ष जी,

एक बात हम जानते हैं, हम सब इस बात को...जो ठहरा हुआ पानी होता है वो बीमारी पैदा करता है…बहता हुआ पानी है जो जीवन को भर देता है, उमंग से भर देता है। जो चलता है...चलता रहे, चलने दो। अरे यार, कोई आएगा तो करेगा, ऐसे थोड़े चलता है जी। जिम्मेदारियां लेनी चाहिए, देश की आवश्यकतानुसार निर्णय करने चाहिए। स्टेट्सको…देश को तबाह करने में ये भी एक मानसिकता ने बहुत बड़ा रोल किया है। दुनिया बदल रही है, कब तक हम स्टेट्सको…स्टेट्सको…स्टेट्सको…ऐसे ही करते रहेंगे। तो मैं समझता हूं कि स्थिति बदलने वाली नहीं हैं और इसलिए देश की युवा पीढ़ी ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती है। 

लेकिन आज मैं घटना सुनाना चाहता हूं और जरूर उससे हमें ध्यान में आएगा कि स्टेट्सको के कारण होता क्या है। ये करीब 40-50 साल पुरानी घटना का किस्सा है, मैंने कभी किसी से सुना था इसलिए उसकी तारीख-वारीख में इधर-उधर हो सकता है। लेकिन जो मैंने सुना था, जो मेरी स्मृति में है...वो मैं बता रहा हूं। साठ के दशक में तमिलनाडु में राज्य के कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने के लिए कमीशन बैठा था और राज्य के कर्मचारियों का वेतन बढ़े, इसके लिए उस कमीशन का काम था। उस कमेटी के चेयरमैन के पास एक लिफाफा आया, top secret लिफाफा था। उन्होंने देखा तो उसके अंदर एक अर्जी थी। अब उसने लिखा था, जी मैं बहुत साल से सिस्टम में काम कर रहा हूं, ईमानदारी से काम कर रहा हूं लेकिन मेरी तनख्वाह बढ़ नहीं रही है, मेरी तनख्वाह बढ़ाई जाए, ये उसने चिट्ठी लिखी थी। तो चेयरमैन ने जिसने ये चिट्ठी लिखी उसको लिखा भई तुम्हारा, तुम हो कौन, पद क्या है वगैरह। तो उसने फिर जवाब लिखा दूसरा, कि मैं सरकार में जो मुख्य सचिव का कार्यालय है वहां सीसीए के पद पर बैठा हूं। मेरे पास सीसीए के पद पर मैं काम कर रहा हूं। तो इनको लगा कि ये सीसीए क्या होता है कुछ पता तो है नहीं, ये सीसीए कौन होता है? तो उन्होंने दोबारा चिट्ठी लिखी-भई हमने यार ये तो इसमें सीसीए शब्द कहीं देखा नहीं, पढ़ा नहीं, ये है क्या, हमें बताओ तो। तो उसने कहा साहब, मैं बंधा हुआ हूं कि 1975 के बाद ही इसके विषय में मैं जिक्र कर सकता हूं, अभी नहीं कर सकता हूं। तो चेयरमैन ने उनको लिखा कि फिर ऐसा करो भाई, 1975 के बाद जो भी कमीशन बैठे वहां जाना...मेरा सिर क्यों खा रहे हो। तो उसको लगा कि ये तो मामला बिगड़ गया...तो उसको लगा कि कहना ठीक है; कहने लगा मैं बता देता हूं मैं कौन हूं। तो उसने उनको चिट्ठी लिख कर बताया कि साहब मैं जो हूं वो सीसीए के पद पर कई वर्षों से काम रहा हूं और मुख्य सचिव के कार्यालय में। तो बोला-सीसीए का मतलब होता है- चर्चिल सिगार अस्टिटेंट। ये सीसीए का पद है जिस पर मैं काम करता हूं। तो ये है क्या, तो 1940 में जब चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे तो त्रिची से...त्रिची  सागर हमारे यहां से सिगार जाती थी उनके लिए। और ये सीसीए जो था उसका काम था वो सिगार उनको सही पहुंची कि नहीं पहुंची...इसकी चिंता करना और इसके लिए पद बनाया गया था...उस सिगार की सप्लाई होती थी। 1945 में वो चुनाव हार गए लेकिन फिर भी वो पद बना रहा और सप्लाई भी जारी रही। देश आजाद हो गया। देश आजाद होने के बाद, इसके बाद भी माननीय अध्यक्ष जी ये पद continue रहा। चर्चिल को सिगरेट पहुंचाने की जिम्मेदारी वाला एक पद मुख्य सचिव के कार्यालय में चल रहा था। और उसने अपने लिए कुछ तनख्वाह मिले, कुछ प्रमोशन मिले, इसके उसने चिट्ठी लिखी। 

अब देखिए, ऐसा स्टेट्सको...अगर हम बदलाव नहीं करेंगे, व्यवस्थाओं को देखेंगे नहीं तो ये इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है। मैं जब मुख्यमंत्री बना तो एक रिपोर्ट आती थी कि आज कोई balloon नहीं आया और कोई पर्चे नहीं फेंके गए। ये second world war के समय शायद शुरू हुआ होगा, अभी भी वो चलता था। यानी ऐसी चीजें हमारी व्यवस्था में घुसी हुई हैं। हमें  लगता है भाई हम रिबन काटेंगे, दीया जलाएंगे, फोटो निकल जाएगी, हमारा काम हो गया। देश ऐसे नहीं चलता है जी। हमने जिम्मेदारी के साथ देश में बदलाव के लिए हर की कोशिश करनी चाहिए। गलतियां हो सकती हैं, लेकिन इरादा अगर नेक हो तो परिणाम अच्छे मिलते भी हैं, हो सकता है एकाध में हमें न कुछ मिले। आप देखिए, हमारे देश में एक समय था कि किसी को अपना सर्टिफिकेट certify करना है तो कॉरपोरेटर, council, उसके घर के बाहर सुबह queue लग जाती थी। और जब तक वो ठप्पा न मारे...और मजा है कि वो तो नहीं मारता था...एक लड़का बाहर बैठा होता था...वो सिक्का मार देता था...और चल रहा था। मैंने कहा भाई इसके क्या मतलब हैं...हम भरोसा करें देश के नागरिक पर...मैंने आ करके वो एक्ट्रेस करने वाली सारी प्रथा को खत्म कर दिया, देश के लोगों को लाभ हुआ। हमने बदलाव के लिए काम करना चाहिए, सुधारों के लिए काम करना चाहिए। 

अब हमारे यहां इंटरव्यू होते थे, मैं अभी भी हैरान हूं जी। एक व्यक्ति एक दरवाजे से अंदर आता है, तीन लोगों की पैनल बैठी है...उसका मूड देखते हैं, नाम भी पूरा पूछते नहीं, तीसरा यूं निकल जाता हे। और वो इंटरव्यू कॉल होता है और फिर ऑर्डर दिए जाते हैं। हमने कहा-भई क्या मतलब है। उसका जो एजुकेशन, क्वालिफिकेशन है, उसको  सारा इक्ट्ठा करो..मैरिट के आधार पर कम्प्यूटर को पूछो, वो जवाब दे देगा। ये तीसरे और चौथी श्रेणी के लोगों के लिए इंटरव्यू का क्या जमाव बनाया हुआ है। और लोग कहते थे भई सिफारिश के बिना नौकरी नहीं मिलेगी...हमने खत्म कर दिया। मैं समझता हूं कि देश में हम चीजों को बदलें। बदलने से असफलता के डर से अटक कर रहना...ये कभी भी किसी का भला नहीं करता है। हमने बदलाव करने चाहिए और बदलाव करने का प्रयास हम करते हैं। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

हमारे यहां खेती, हमारे यहां किसानी एक प्रकार से हमारी संस्कृति, मुख्य धारा का हिस्सा रही है। एक प्रकार से हमारी संस्कृति के प्रवाह के साथ हमारी किसानी जुड़ी हुई है। हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने इस पर बहुत कुछ लिखा हुआ है, ग्रंथ available हैं हमारे यहां, कृषि के संबंध में। बहुत सारे उत्तम अनुभव भी हैं। और हमारे यहां राजा भी खेतों में हल चलाते  थे। जनक राजा की बात तो हम जानते हैं। कृष्ण भगवान के भाई बलराम की बात हम जानते हैं। कोई भी बड़ा परिवार होगा, हमारे यहां किसानी और खेती...ये हमारे जिस देश में सिर्फ cultivation of crops नहीं है। हमारे यहां agriculture एक प्रकार का समाज-जीवन के culture का हिस्सा रहा हुआ है। और उसी हिस्से को ले करके हम कर रहे हैं और ये हमारी संस्कृति है। हमारे पर्व हों, हमारे त्योहार हों, हमारी जीत हो; सब चीजें फसल बोने के समय के साथ या फसल काटने के साथ जुड़ी हुई रहती हैं। ये हमारे यहां परम्परा रही है, हमारे जितने लोकगीत हैं वो भी किसानी से जुड़े हुए होते हैं…फसल से जुड़े हुए। हमारे त्योहार भी उसी से जुड़े हुए रहते हैं और इसलिए...हमारे देश की विशेषता देखिए...हमारे देश में किसी को आर्शीवाद देते हैं किसी को शुभकामना देते हैं तो उसके साथ धन-धान्य शब्द का उपयोग करते हैं। धन-धान्य...धन और धान्य को हमारे यहां अलग नहीं करते हैं। सिर्फ धान्य भी नहीं बनता है कुछ शब्द...धन भी नहीं होता है। धन-धान्य बोला जाता है...हमारे यहां धान्य का ये मूल्य है...ये महत्व है। समाज-जीवन का हिस्सा है और जो स्थितियां बदली हैं हमने भी उसको फिर से पटरी पर लाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। 

राज्यसभा के अंदर मैंने विस्तार से छोटे किसानों के संबंध में बात कही है। अब देश का 80-85 प्रतिशत वर्ग...इसको हम उपेक्षित रख करके देश का भला नहीं कर सकते। हमने उसके लिए कुछ सोचना ही होगा और बड़ी नम्रता के साथ हमें सोचना होगा। और मैंन गिन करके बताया है कि छोटे किसानों की कैसे उपेक्षा हुई है...किसानों के नाम पर हुई है। उसमें एक बदलाव बहुत जरूरी है और आपको भी...ये छोटा किसान जाग जाएगा तो जवाब आपको भी देना पड़ेगा...ये मैं  पूरी तरह समझता हूं। हमारे यहां जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है जमीन का टुकड़ा छोटा होता जा रहा है। परिवार के अंदर जमीन जो है बंट जाती है। चौधरी चरणसिंह जी ने तो एक जगह पर ये कहा हुआ है कि हमारे यहां किसान इतना...जमीन की मालिकी उसकी कम हो रही है कि एक स्थिति ऐसी आएगी कि वो अपने खेत में ही ट्रैक्टर को टर्न करना होगा तो नहीं कर पाएगा...इतना सा जमीन का टुकड़ा होगा...चौधरी चरणसिंह जी के शब्द हैं। ऐसी जब चिंता हमारे महापुरुषों ने हमारे सामने की है तो हमें भी तो कुछ न कुछ व्यवस्थाएं करनी होंगी। 

आजादी के बाद हमारे देश में 28 प्रतिशत खेतिहर मजदूर थे। 10 साल पहले जो सेंसेस हुआ उसमें ये जनसंख्या खेतिहर जनसंख्या 28 से 55 पर्सेंट हो गई। अब ये किसी भी देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि 28 से हमारा खेतिहर मजदूर 55 प्रतिशत पर पहुंच गया है और जमीन कम होने के कारण खेती से जो रिटर्न मिलना चाहिए, वो नहीं मिलने के कारण उसके जीवन में ये मुसीबत आई है। और वो मजदूरी करने पर...किसी और खेत में जा करके मजदूरी करने पर मजबूर हो गया है। अब दुर्भाग्य है हमारे देश में खेती के निवेश जो होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है। सरकार उतना कर नहीं पा रही है…राज्य सरकारें भी नहीं कर पा रही हैं और किसान खुद भी नहीं कर पा रहा है। जो कुछ भी उसको निकलता है...बच्चों को पालने में और पेट भरने में उसका चला जाता है और इसलिए निवेश की बहुत बड़ी आवश्यकता है। 

जब तक हम निवेश नहीं लाएंगे...जब तक हम हमारी खेती को आधुनिक नहीं करेंगे...हम जब तक छोटे से छोटे किसान की भलाई के लिए व्यवस्थाएं विकसित नहीं करेंगे...हम देश के agriculture sector को ताकतवर नहीं बना सकते हैं। और इसलिए हमारा किसान आत्मनिर्भर बने…उसको अपनी उपज बेचने की आजादी मिले...उस दिशा में हमने काम करने की आवश्यकता है। और हमारा किसान सिर्फ गेहूं और चावल...वहां सीमित रहे...उससे बात बनने वाली नहीं है। दुनिया में  मार्केट क्या है आज उसके रिसर्च हो रहे हैं। उस प्रकार की चीजों का उत्पादन करें और वो चीजें दुनिया के बाजार में बेचें। भारत की आवश्यकताएं हैं...हम बाहर से चीजें न लाएं। मुझे याद है मुझे...मैं बहुत पहले जब यहां संगठन का काम करता था...नार्थ पार्ट में मुझे फारूक साहब के साथ भी काम करने का मौका मिला। तो मुझे हरियाणा का एक किसान अपने खेत में ले गए। उसने मेरा बड़ा आग्रह किया तो मैं चला गया। छोटी सी जगह थी उसकी...एक-डेढ़-दो बीघा शायद जमीन होगी। लेकिन बड़ा प्रगति...वो मेरे पीछे पड़ा आइए-आइए। मैंने कहा भाई क्या बात है...वो बोला एक बार आइए तो देखिए। तो मैं गया उसके यहां। 

करीब 30-40 साल पहले की बात है...30 साल हो गए होंगे। उन्होंने क्या किया...दिल्ली के 5 स्टार्स होटल्स में जो चीजें सब्जियां वगैरह विदेशों से लाते थे, उसने उसका स्टडी किया। अगर उनको छोटे कॉर्न चाहिए, उनको छोटे टमाटर चाहिए, अब उसने अपनी उस छोटी सी जगह में, और restricted वातावरण के अंदर लोगों की मदद ली और मजा है कि दिल्ली के फाइव स्टार के होटलों में उसका माल जाना शुरू हो गया। हमारे देश में थोड़ा सा बदलाव करें हम। अब हमने कभी सोचा है स्ट्रॉबेरी हम by and large मानते हैं कि वो ठंडे प्रदेशों का है। मैं देख रहा हूं कि कच्छ के रेगिस्तान में स्ट्रॉबेरी हो रही है...मैं देख रहा हूं कि मध्यप्रदेश के अंदर, उत्तर प्रदेश के अंदर, वहां स्ट्रॉबेरी हो रही है। बुंदेलखंड में...जहां पानी की दिकक्त है...इसका मतलब ये हुआ कि हमारे यहां संभावनाएं हैं। हमारे किसान को गाइड करके हम नई-नई चीजों की ओर ले जाएंगे। मैं जरूर मानता हूं कि हमारे देश का किसान आगे आएगा...लेकिन उसको...ये ठीक है उसका अनुभव ऐसा है कि उसको हिम्मत देनी पड़ती है...उसका हाथ पकड़ना पड़ता है...उसका हाथ ले करके चलना पड़ता है। अगर वो चल पड़ता है तो कमाल करके दिखाता है। उसी प्रकार कृषि के अंदर जितना नया निवेश बढ़ेगा...मैं मानता हूं रोजगार के अवसर भी बढ़ने वाले हैं। अब दुनिया में एक नया हमें मार्केट मिल सकता है। 

हमारे यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए agro-biz industry की संभावना भी बढ़ेगी। और इसलिए हमें इस पूरे क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में हमें जरूर काम करना चाहिए। कई विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे किसान ने रिकॉर्ड उत्पादन किया है। कोरोना काल में भी रिकॉर्ड उत्पादन किया है। ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हमारे किसान की जो परेशानियां हैं वो कम हों। उनके सामने जो चुनौतियां हैं वो चुनौतियां कम करने के लिए हम कुछ कदम उठाएं। और इन कृषि सुधारों से हम उस दिशा में कुछ न कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं। किसानों को एक बराबरी का प्लेटफार्म दे पाएं हम, आधुनिक टेक्नोलॉजी दे पाएं...उनके अंदर एक नया आत्मविश्वास भर पाएं...उस दिशा में सकारात्मक सोच की बहुत आवश्यकता है। पुरानी सोच, पुराने मापदंड किसानी का भला कर पाते तो बहुत पहले कर पाते। Second green revolution की हमने बातें कर लीं। हम एक नए तौर-तरीके देंगे आगे बढ़ने के और सब कोई चिंतन करिए। राजनीति का विषय नहीं होना चाहिए। ये देश की भलाई के लिए बहुत आवश्यक है...मिल-बैठ करके हमने उसको सोचना चाहिए। सभी दल चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में...ये हम सबका दायित्व है और हमें 21वीं सदी में 18वीं सदी की सोच से हमारे agriculture sector को हम उसकी सोच को पूरा नहीं कर सकते हैं। उसी को हमने बदलना होगा। 

कोई नहीं चाहता है कि हमारा किसान गरीबी के चक्र में फंसा रहे। उसको जिंदगी जीने का हक न मिले। मैं मानता हूं कि उसको आश्रित रहना न पड़े...उसको पराधीन न रहना पड़े। सरकारी टुकड़ों पर पलने के लिए मजबूर न होना पड़े। ये जिम्मेदारी भी हम सबकी है और जिम्मेदारी को निभाना...हमारा अन्नदाता  समृद्ध हो, हमारा अन्नदाता कुछ न कुछ और ज्यादा देश के लिए कर सके…उसके लिए अगर हम अवसर देंगे तो बहुत सारी...। 

सरदार वल्लभभाई पटेल एक बात कहते थे- वो कहते थे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यदि परतंत्रता की दुर्गंध आती रहे तो स्वतंत्रता की सुगंध नहीं फैल सकती। जब तक हमारे छोटे किसान को नए अधिकार नहीं मिलते तब तक पूर्ण आजादी की उनकी बात अधूरी रहेगी और इसलिए बड़ा बदलाव कर-करके हमको हमारे इन किसानों को एक लंबी यात्रा के लिए तैयार करना होगा और हम सबको मिल करके करना होगा। गलत कुछ करने के इरादे से कुछ नहीं होना चाहिए, अच्छा करने के इरादे से होना चाहिए। किसी की भलाई करने के लिए होना चाहिए। 

हमारी सरकार ने छोटे किसानों के लिए हर कदम पर देखेंगे। छोटे किसानों को हमने बीज से ले करके बाजार तक पिछले छह वर्षों में अनेक ऐसे intervention किए हैं जो छोटे किसान की मदद कर सकते हैं...छोटे किसान को ला सकते हैं। अब जैसे डेयरी सेक्टर और कोऑपरेटिव सेक्टर...सशक्त भी हैं और उसका एक मजबूत value chain भी बढ़ा बना है। अब सरकार की दखल कम से कम है फिर भी वो अपनी मजबूती पर आया है। हम धीरे-धीरे फल-फूल-सब्जी की तरफ बल दे सकते हैं और उसके बाद धान्य की तरफ ध्यान दे सकते हैं। हम बहुत ताकतवर बना सकते हैं। हमारे पास मॉडल है...सफल मॉडल है। उस सफल मॉडल का हमें प्रयोग करना चाहिए। हमें उनको वैकल्पिक बाजार देना चाहिए। 

दूसरा महत्वपूर्ण काम जो हमने किया है-  ten thousand farmers producers organisation. ये किसानों के लिए...छोटे किसानों के लिए एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभरने वाले हैं। और जहां-जहां महाराष्ट्र में विशेष प्रयोग हुआ है FPOs बनाने का। कई और राज्यों ने भी केरल में भी कम्युनिस्ट पार्टी ने काफी मात्रा में FPOs बनाने ेके काम में लगे हुए हैं। लेकिन इसके कारण किसान अपना बाजार ढूंढने के लिए सामुहिक शक्ति के रूप में उभरेगा। ये 10,000 FPOs बनने के बाद आप देखना कि गांव के अंदर किसान छोटे हैं, उसको बाजार की ताकत किसान dictate करेगा  और किसान ताकतवर बनेगा ये मेरा पूरा विश्वास है। इन FPOs के माध्यम से बैंक से पैसा भी मिल सकता है, वो छोटे-छोटे भंडारण की व्यवस्था कर सकता है, अगर वो थोड़ी ताकत ज्यादा इकट्ठी करे तो वो छोटे-छोटे cold storage भी बना सकता है।  और हमने एक लाख करोड़ रुपया agriculture के infrastructure के लिए भी तय किया है और उसको हम स्वयं सहायता समूह यानी self help group, इन self help group में भी करीब सात करोड़ बहनें जुटी हैं। गांव की बहनें ultimately वो किसान की ही बेटियां होती हैं। किसी न किसी खेती से जुड़े हुए परिवार की बेटियां होती हैं और वो भी आज नेटवर्क किसानों की भलाई में काम आ रहा है और economic activity का सेंटर बनता जा रहा है। और इनके द्वारा भी मुझे याद है गुजरात में भलसाड़ जिले में आदिवासियों के पास जमीन भी काफी ऊपर-नीचे है, uneven land  है और बहुत छोटी जमीन है। हमने एक प्रोजेक्ट किया था। और अब्दुल कलाम जी एक दिन अपना जन्मदिन वहां मनाने के लिए आए थे। उन्होंने कहा भाई कोई प्रोटोकॉल  नहीं चाहिए, मैं इन किसानों के साथ रहना चाहता हूं। बड़ा successful प्रयोग था। महिलाएं काफी काम करती थीं उस आदिवासी बेल्ट के अंदर। और मशरूम, काजू...वो गोवा की बराबरी का काजू पैदा करने लग गई थीं और उन्होंने मार्केट प्राप्त किया था। छोटे किसान थे, छोटी जगह थी लेकिन प्रयत्न किया तो परिणाम मिला और अब्दुल कलाम जी ने इसके विषय में लिखा भी है। उन्होंने आ करके देखा था। तो मैं कहता हूं कि हमने नए प्रयासों की दिशा में जाना चाहिए। दाल की हमारे यहां कठिनाई थी। हमने 2014 के किसानों के आगे रिक्वेस्ट की। 

अब आप देखिये दाल की हमारे यहां कठिनाई थी। मैंने 2014 में आके किसानों के सामने request की, उन्होंने देश के अन्दर दाल की कठिनाईयों से हमें मुक्त कर दिया और उनको बाजार भी मिल गया। और मैं देख रहा हूँ कि आज कल ऑनलाइन-ऑफलाइन eNam के द्वारा भी गांव का किसान भी अपना माल बेच रहा है। हमने किसान रेल का एक प्रयोग किया, इस कोरोना काल खंड का उपयोग करते हुए और ये किसान रेल और किसान उड़ान ये भी अपने आप में बड़े बाजारों तक छोटे किसान को पहुंचाने की एक बहुत बड़ी मदद मिली है। एक प्रकार से ये ट्रेन जो है चलता-फिरता कोल्ड स्टोरेज है और मैं सदन के सदस्यों से जरूर कहना चाहूंगा कि किसान रेल कहना को तो एक सामान ढोने वाली व्यवस्था है लेकिन उसने दूर से दूर गांव के छोटे किसान को किसी और राज्य के दूसरे बाजार के साथ जोड़ दिया। अब देखिए, नासिक से किसान मुज़फ़्फ़रनगर के व्यापारी से जुड़ा और क्या भेजा उसकी ताकत बड़ी नहीं थी तीस किलो अनार, ये उसने वहां से ये किसान रेल से भेजा और खर्चा कितना हुआ 124 रुपये, उसको बड़ा बाजार मिल गया। ये तीस किलो इतनी छोटी चीज़ है कि शायद कोई कोरियर वाला भी नहीं ले जाता। लेकिन ये व्यवस्था थी तो यहां का किसान वहां तक जाकर के अपना माल बेच पाया है। उसी प्रकार से जो भी उसको सुविधा मिलती है वो चाहे अण्डे, मैंने देखा है कि अण्डे किसी ने भेजे हैं और अण्डे भी उसको करीब 60 रुपये खर्चा हुआ उसको भेजने का और उसके अण्डे पहुंच गए, समय पर पहुंच गए, उसका माल बिक गया। देवलाली में, देवलाली का एक किसान 7 किलो उसकी किवी उसको उसने दानापुर भेजी। भेजने का खर्चा 62 रुपये हुआ लेकिन उसको 60 किलो की किवी का अच्छा बाजार मिला और दूसरे राज्य में जाकर के मिला। किसान रेल ये कितनी छोटी बात है लेकिन कितना बड़ा परिवर्तन कर सकती है, इसका हम नामूना देखते हैं। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

चौधरी चरण सिंह जी ने एक किताब लिखी है- भारत की अर्थनीति। भारत की अर्थनीति की किताब में चौधरी साहब ने लिखा, सुझाव दिया है- सारे देश को खाद्यान देने के लिए एक ही क्षेत्र मान लिया जाए। दूसरे शब्दों में, देश के एक भाग से दूसरे भाग में लाने-जाने पर कोई प्रतिबंध ना हो, ये चौधरी चरण सिंह जी की किताब का quote है। कृषि सुधारों, किसान रेल, मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक प्लेट हों, eNam, ये सारी चीजें हमारे देश के किसानों और छोटे किसानों को एक बहुत बड़ा अवसर देने के प्रयास के भाग रूप हो रहा है।

माननीय अध्यक्ष जी,

जो लोग इतनी बातें करते हैं, सरकार इतने सालों तक चलाई है। मैं ये नहीं मानता हूं उनको किसानों की दिक्कत का पता नहीं था या उनको समझ नहीं थी। पता भी था, समझ भी थी और उनको मैं उन्हीं की बात आज याद कराना चाहता हूं। वो मौजूद नहीं है मैं जानता हूं लेकिन देश के लिए समझना बहुत जरूरी है। मैं quote पढ़ता हूं- the state took initiative to amend their state APMC Act in the year 2005 itself providing for direct marketing contract farming setting up of a private market, consumer, farmer markets, e-trading and notified the rules in 2007 to implement the amended provision infact 24 private markets have already come up in the state. ये किसने कहा था? ये APMC Act बदल दिया है, इस बात को कौन गर्व से कह रहा था? 24 ऐसे बाजार बन चुके हैं, इसका गौरव कौन कर रहा था? डॉ. मनमोहन सिंह जी की सरकार के कृषि मंत्री श्रीमान शरद पवार जी ये गर्व की बात कर रहा था। अब आज एक दम से उल्टी बात कर रहे हैं और इसलिए शक होता है कि आखिरकार आप किसानों को भ्रमित करने के लिए ये रास्ता क्यों चुना है? देश की मंडियां चल रहीं हैं, सिन्डिकेट की किमतों कों प्रभावित करने वाले नेक्सस के बारे में जब उनको पूछा गया, उनको एक सवाल पूछा था कि ये नेक्सस है मंडियों वाला, वगैराह का तो क्या कहना है? तो शरद पवार का एक दूसरा जवाब है वो भी बड़ा interesting है। उन्होंने कहा था किसानों के बचाव के लिए ही तो APMC रिर्फोम को प्रोमोट किया जा रहा है ताकि किसानों को APMC मंडियों का विकल्प मिले। जब ज्यादा व्यापारी रजिस्टर होंगे तब स्पर्धा बढ़ेगी और मंडी में सांठ-गांठ इससे खत्म होगी, ये बात उन्होंने कही है। अब इसलिए मैं समझता हूं कि इन बातों को हमें समझना होगा। जहां इनकी सरकारे हैं, अलग-अलग जो सामने बैठे हुए हैं मित्रों की, उन्होंने भी कम-अधिक मात्रा में इस कृषि क्षेत्र में रिर्फोम करने का प्रयास किया भी है और हम तो वो हैं जिन्होंने 1500 कानून खत्म किये थे। हम progressive politics में विश्वास करते हैं, हम regressive politics में जाना नहीं चाहते हैं और इसलिए और भोजपुरी में भी एक कहावत है, कुछ लोग ऐसे हैं भोजपुरी में कहावत है- ना खेलब, ना खेलन देब, खेल भी बिगाड़त। ना खेलूंगा, ना खेलने दूंगा, मैं खेल को भी बिगाड़ के रखूंगा। 

माननीय अध्यक्ष जी,

देश का सामर्थ्य बढ़ाने में सभी का सामूहिक योगदान कश्मीर से कन्याकुमारी तक कच्छ से लेकर कामाख्या तक जब हर भारतीय का पसीना लगता है तब जाकर के देश आगे बढ़ता है। मैं कांग्रेस के साथियों को याद दिलाना चाहता हूं कि देश के लिए पब्लिक सेक्टर जरूरी है तो प्राइवेट सेक्टर का भी भागीदारी उतनी ही आवश्यक है। सरकार ने mobile manufacturing को प्रोत्साहित किया। प्राइवेट पार्टियां आईं, manufacturers आए। आज गरीब से गरीब परिवार तक smartphone पहुंच रहा है। Telecom में स्पर्धा को प्रोत्साहित किया गया तो मोबाइल पर बात करना करीब-करीब जीरो हो गया और डेटा भी दुनिया में सबसे सस्ता आज हिन्दुस्तान में है। यहां तक कि हमारी pharma industry हमारे वैक्सीन निर्माता, क्या ये सारे सरकारी हैं क्या? आज मानवता के काम अगर भारत आ रहा है तो हमारे इस प्राइवेट सेक्टर का भी बहुत बड़ा रोल है, प्राइवेट enterprise का रोल है और हमें हमारे देश के नौजवानों पर भरोसा होना चाहिए। हमारे देश के नौजवानों पर भरोसा रखना चाहिए, इस प्रकार से कोसते रहेंगे, उनको नीचा दिखाते रहेंगे और हम किसी भी private activity को नकार देंगे। कोई जमाना होगा, जब कोई सरकार करेगी। उस जमाने में जरूरी होगा, किया होगा। 

आज दुनिया बदल चुकी है, समाज की अपनी ताकत है, देश की अंदर ताकत है। हर एक किसी को अवसर मिलना चाहिए और उनको इस प्रकार से बेईमान घोषित करना, उनके लिए गंदी भाषा का प्रयोग करना, ये एक culture किसी जमाने में वोट पाने के लिए काम आया होगा। कृपा करके हम और मैंने लाल किले पर से बोला wealth creator भी देश को जरूरी होते हैं तभी तो wealth बाटेंगे, गरीब तक wealth बाटेंगे कहां से? रोजगार देंगे कैसे? और सब कुछ बाबू ही ये करेंगे IAS बन गया मतलब वो fertilizer का कारखाना भी चलाएगा, IAS हो गया तो वो chemical का कारखाना भी चलाएगा, IAS हो गया वो हवाई जहाज भी चलाएगा। ये कौन से बड़ी ताकत बना के रख दी है हमने? बाबूओं के हाथ मे देश देकर के हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं, तो देश को नौजवान भी तो देश का है। हम हमारे देश के नौजवानों को जितना ज्यादा अवसर देंगे, मुझे लगता है उसको उतना ही लाभ होने वाला है। 

माननीय अध्यक्ष जी, 

जब तथ्यों के आधार पर बात टिकती नहीं है तो ऐसा होता है जो अभी देखा है। आशंकाओं को हवा दी जाती है, ये हो जाएगा, वो हो जाएगा और माहौल ये आंदोलनजीवी पैदा करते हैं। माननीय अध्यक्ष जी, किसान आंदोलन की पवित्रता और मैं बहुत जिम्मेवारी के शब्द प्रयोग कर रहा हूं, मैं किसान आंदोलन को पवित्र मानता हूं और भारत के लोकतंत्र में आंदोलन को महत्व है और रहने वाला है और जरूरी भी है। लेकिन जब आंदोलनजीवी पवित्र आंदोलन को अपने लाभ के लिए बर्बाद करने के लिए निकलते हैं तब क्या होता है? कोई मुझे बताए तीन किसान कानूनों की बात हो और दंगाबाज लोग जो जेल में हैं, जो संप्रदायवादी लोग जो जेल में हैं, जो आतंकवादी लोग जेल में हैं, जो नक्सलवादी जेल में हैं उनकी फोटो लेकर के उनकी मुक्ति की मांग करना ये किसानों के आंदोलन को अपवित्र करने का प्रयास है कि नहीं है?

माननीय अध्यक्ष जी,

इस देश में टोल प्लाजा सभी सरकारों ने स्वीकार की हुई व्यवस्था है। टोल प्लाजा इस देश में सभी सरकारों ने की हुई व्यवस्था है और टोल प्लाजा को तोड़ना, उस टोल प्लाजा को कब्जा करना, उस टोल प्लाजा को ना चलने देना, ये जो तरीके चले हैं वो तरीके क्या पवित्र आंदोलन को कलंकित करने का प्रयास है कि नहीं? जब पंजाब की धरती पर सैकड़ों की तादात के अंदर जब telecom के टावर तोड़ दिये जाए, क्या वो किसान की मांग से सुसंगत है क्या? किसान के पवित्र आंदोलन को बर्बाद करने का काम आंदोलनकारी ने नहीं, आंदोलनजीवियों ने किया हुआ है और इसलिए देश को आंदोलनकारी और आंदोलनजीवियों के बीच फर्क करना बहुत जरूरी है और देश को इन आंदोलनजीवियों से बचाना वो भी उतना ही जरूरी है। अफवाएं फैलाना, झूठ फैलाना, गुमराह करना और देश को दबोच कर के रख देना, देश बहुत बड़ा है, देश के सामान्य मानवीय की आशा-आकांक्षाएं बहुत हैं और उनको लेकर के हमें आगे बढ़ना है और उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं। देश में एक बहुत बड़ा वर्ग है, ये वर्ग उनकी एक पहचान है talking the right things यानि हमेशा सही बात बोलना। सही बात कहने में कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन इस वर्ग के ऐसे लोगों से नफरत-चिढ़ है जो doing the right things पर चलते हैं। 

ये फर्क समझने जैसा है talking the right things इसकी वकालत करने वाले जब doing the right things की बात आती है तो उसी के सामने खड़े हो जाते हैं। ये चीजों को सिर्फ बोलने में विश्वास करते हैं, अच्छा करने में उनका भरोसा ही नहीं है। जो लोग electoral reform की बात करते हैं। वन नेशन वन इलैक्शन उसकी जब बात आती है तो विरोध में खड़े हो जाते हैं। यही लोग जब जेंडर जस्टिस की बात आती है तो बढ़-चढ़कर के बोलते हैं लेकिन अगर ट्रिपल तलाक खत्म करने की बात करते हैं तो विरोध में खड़े हो जाते हैं। ये environment की बात करते हैं लेकिन hydro power या nuclear power उसके सामने जाकर के झंडे लेकर के खड़े हो जाते हैं, होना नहीं चाहिए, इस देश के लिए आंदोलन चलाते हैं, तमिलनाडु तो इसका भुक्तभोगी है। उसी प्रकार से जो दिल्ली में pollution को लेकर के कोर्ट में जाकर के writ करते हैं, अपील करते हैं, PIL करते हैं, दिल्ली के वहीं लोग पराली जलाने वालों के समर्थन में जाकर के खड़े हो जाते हैं। तब समझने नहीं आता है कि किस प्रकार से देश को गुमराह करने का इन लोगों का प्रयास है और उसको देखने की समझने की जरूरत है। मैं देख रहा हूं ये 6 साल में विपक्ष के मुद्दे कितने बदल गए हैं। हम भी कभी विपक्ष में थे लेकिन हम जब भी विपक्ष में थे तो आपने देखा होगा देश के विकास के मुद्दों को लेकर के भ्रष्टाचार के मुद्दों के लेकर के हम शासन में बैठे हुए लोगों को घेरते थे। हम वो आवाज उठाते थे, हम प्रयास करते थे। मैं हैरान हूं, आजकल विकास के मुद्दे की चर्चा ही नहीं करते। मैं इंतजार करता हूं ऐसे मुद्दे उठाएं ताकि हमको कुछ कहने का मौका मिले क्योंकि हम क्या कर रहे हैं लेकिन वो हमें मौका ही नहीं देते क्योंकि इनके पास इन मुद्दों पर बोलने के लिए कुछ रहा नहीं है और इसलिए ना वो कितनी सड़के बनी पूछते हैं, ना कितने पुल बने पूछते हैं, ना border management में क्या हुआ है, कितनी पटरीयां बिछी हैं, इन सारे विषयों पर उनको चर्चा करने में interest नहीं है। 

माननीय अध्यक्ष जी,

21वीं सदी में इन्फ्रास्ट्रक्चर का बहुत बड़ा महत्व है और भारत को आगे जाना है तो इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बल देने की बहुत जरूरत है और आत्मनिर्भर भारत के रोड मैप के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बल देना इस समय की मांग है और हम सबको इसको स्वीकार करना होगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा, तभी देश की गति भी तेज होने वाली है, उसकी दिशाएं भी व्यापक होने वाली हैं और इसलिए हमने प्रयास करना चाहिए और इन्फ्रास्ट्रक्चर का मतलब है गरीब के लिए, मध्यम वर्ग के लिए, अनेक नयी संभावनाओं को इन्फ्रास्ट्रक्चर जन्म देता है, नये अवसरों को जन्म देता है, रोजगार के नये अवसर लेकर के आता है, economy को multiply reflect करने की उसकी ताकत रहती है और इसलिए हमने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बल देने की जरूरत है। इन्फ्रास्ट्रक्चर का मतलब वोट बैंक का अवसर नहीं होता है, कागज पर घोषित कर देना कि ये रोड बनेगा, एक चुनाव जीत लो। दूसरी बार जाकर वहां सफेद पट्टी कर लो, दूसरा चुनाव जीत लो। तीसरी बार जाके वहां थोड़ी मिट्टी डाल दो, चलो। ये इस काम के लिए नहीं है। ये सचमुच में जीवन बदलने के लिए अर्थव्यवस्थाओं को बदलने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को हमने बल देने की आवश्यकता है। 110 लाख करोड़ की योजना के साथ हमने बजट में अभूतपूर्व खर्च के साथ आगे बढ़ने की दिशा में हम चल रहे हैं। देश के 27 शहरों में मैट्रो ट्रेन, 6 लाख से ज्यादा गांव में तेज इंटरनेट, बिजली के क्षेत्र में हम वन नेशन वन ग्रिड, इस concept को साकार करने में सफल हुए हैं। सोलर पावर सहित renewable energy के मामले में आज दुनिया के पांच टॉप देशों के अंदर भारत ने अपनी जगह बना ली है। दुनिया के सबसे बड़े सोलर और विंड की hybrid power आज भारत में दुनिया का सबसे बड़ा बन रहा है। विकास में हम एक नई तेजी देख रहे हैं, नए पैमानों पर जा रहे हैं। 

हमने देखा है कि जहां-जहां असमानता है खासकर के पूर्वी भारत, अगर देश के पूर्वी भारत का विकास हम उस स्थिति में लाना होगा ताकि पश्चिम भारत की जो आर्थिक व्यवस्था है उसकी बराबरी तुरंत करे तो मिलकर के देश के अंदर प्रगति की संभावना बढ़ेगी और इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास पर हमने विशेष बल दिया है। चाहे गैस पाइपलाइन बिछाने की बात हो, चाहे रोड बनाने की बात हो, चाहे एयर पोर्ट बनाने की बात हो, चाहे रेल बिछाने की बात हो, चाहे internet connectivity की बात हो और इतना ही नहीं, water ways के द्वारा नोर्थ ईस्ट के राज्यों को जोड़ने का एक बहुत बड़ी भगीरथ प्रयास चल रहा है और मुझे लगता है कि हमारा ये फोकस है कि देश को एक संतुलित विकास की तरफ ले जाना चाहिए। देश के हर क्षेत्र को एक भी क्षेत्र पीछे ना रह जाए उस प्रकार से विकास के अवधारणा को लेकर के आगे चलने का हमने काम किया है। और इसलिए eastern India पर हम मिशन मोड में काम कर रहे हैं। दर्जनों जिलों में CNG, PNG, सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन ये जाल हम बिछाने में सफल हुए हैं। गैस पाइपलाइन पहुंचने के कारण fertilizer के उत्पादन में भी बहुत तेजी आयी है और fertilizer जो कारखाने बंद पड़े थे उनको दुबारा खोलने की संभावना पैदा हुई है क्योंकि हमने गैस इन्फ्रास्ट्रक्चर के ऊपर बल दिया, हमने उस पाइपलाइन की ओर बल दिया। 

माननीय अध्यक्ष जी,

कई वर्षों से हम सुनते आए हैं dedicated freight corridor, लेकिन ये dedicated freight corridor का क्या हाल था, जब उनको सेवा करने का मौका मिला था, सिर्फ 1 किमी काम हुआ था। आज करीब-करीब 600 किमी 6 साल के अंदर 600 किमी काम और actually dedicated freight corridor पर काम चलना शुरू हो गया, माल ढोने का काम शुरू हो गया और वो सेक्शन काम कर रहा है। UPA के समय बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर, किसी भी देश की रक्षा के लिए बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत महत्व रखता है लेकिन उसके प्रति इतनी उदासीनता की गई, इतनी लापरवाहीयां की गईं, देश के अंदर हम उन विषयों की publicly चर्चा कर नहीं सकते क्योंकि देश के security के दृष्टि से अच्छा नहीं है। लेकिन ये चिंता का विषय है कि हमने क्योंकि वहां लोग नहीं हैं, वोट नहीं हैं, जरूरत नहीं लगी, फौजी आदमी जब जाएगा, जाएगा, देखा जाएगा, क्या होने वाला है? इसी सोच का परिणाम था और इतना ही नहीं एक बार तो एक रक्षा मंत्री ने parliament में कह दिया था कि हम इसलिए इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं करते हैं बॉर्डर पर ताकि कहीं दुश्मन देश उस इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग ना कर ले, कमाल के हो भई। ये सोच है, इसको बदलकर के हमने आज करीब-करीब जो अपेक्षाएं और आयोजन था उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा बॉर्डर के ऊपर इन्फ्रास्ट्रक्चर की दिशा से हमने पूर्ण किया है। LAC पर bridges, आज मेरा अंदाजा करीब 75 के करीब bridges already वहां काम चल रहा है तेजी से और इसलिए कई सैकड़ों किलोमीटर हमने रोड बनाए हैं और मैं चाहता हूं कि जो काम हमारे सामने था करीब-करीब 75% तो हमने उसको पूरा भी कर लिया है और हम आगे भी इस काम को जारी रखेंगे। इन्फ्रास्ट्रक्चर के अलग-अलग क्षेत्रों को उसी प्रकार से आप देखिए अटल टनल हिमाचल प्रदेश में, उसका हाल क्या था? अटल जी के समय जिसकी कल्पना की गई, अटल जी के जाने के बाद किसी न किसी फाईलों में लटका रहा, अटका रहा। 

एक बार छोटा सा काम हुआ, फिर अटक गया। ऐसे ही करते-करते चला गया, पिछले 6 साल के अंदर उसके पीछे हम लगे और आज अटल टनल काम कर रही है। देश की फौज भी फौज भी वहां से आराम से मूव कर रही है, देश के नागरिक भी मूव कर रहे हैं। जो रास्ते 6-6 महीने तक बंद होते थे वो आज काम करने लगे हैं और अटल टनल काम कर रही है। उसी प्रकार से मैं ये बात साफ कहना चाहूंगा कि जब भी देश के सामने कोई चुनौती आती है, ये देश का सामर्थ्य है, हमारे देश के सुरक्षा बलों को सामर्थ्य है, देश को कभी नीचा देखना पड़े, ऐसी स्थिति हमारे फौज के जवान कभी करने ही नहीं देंगे, कभी होने ही नहीं देंगे, मेरा पूरा विश्वास है। आज उनके जिम्मे जो भी जिम्मेवारी, जहां भी जिम्मेवारी मिली है बखूबी निभा रहे हैं। प्राकृतिक विपरित परिस्थितियों के बीच में भी बड़ी मुस्तैदी के साथ निभा रहे हैं। और हमें हमारी देश की सेना पर गर्व है, हमारे वीरों पर गर्व है, उनके सामर्थ्य पर हमें गर्व है और देश हिम्मत के साथ अपने फैसले भी करता है और हम उसको आगे भी ले जा रहे हैं। मैंने कभी एक गजल सुना था, ज्यादा तो मुझे रूचि भी नहीं है, मुझे ज्यादा आता भी नहीं है। लेकिन इसमें लिखा था- मैं जिसे ओड़ता-बिछाता हूं, वो गजल आपको सुनाता हूं। मुझे लगता है ये जो साथी चले गए, वो जिन चीजों के अंदर जीते हैं, पलते हैं, वो वहीं सुनाते रहते हैं जो उनके कालखंडों में उन्होंने देखा है, जो उनके कालखंडों में उन्होंने किया है उसी को वो कहते रहते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि हमें अब चलना ही होगा। हमें बड़ी हिम्मत के साथ आगे बढ़ना ही होगा। और मैंने कहा post corona एक नया world order जब हमारे सामने आ रहा है तो भारत ने कुछ नहीं बदलेगा की मानसिकता छोड़ देनी होगी, ये तो चलता है चलता रहेगा मानसिकता छोड़ देनी पड़ेगी। 130 करोड़ देशवासियों का सामर्थ्य लेकर चल रहे हैं। problem होंगे अगर millions of problems हैं तो billions of solutions भी हैं। ये देश ताकतवर है और इसलिए हमने हमारी संविधानिक व्यवस्थाओं पर विश्वास रखते हुए हमने आगे बढ़ना होगा। और मुझे विश्वास है कि हम इस बातों को लेकर के आगे चलेंगे। ये बात सही है कि middle man culture खत्म हुआ है। लेकिन देश का middle class जो है उसकी भलाई के लिए बहुत तेजी से काम हो रहे हैं जिसके कारण देश को आगे बढ़ाने मे अब जो middle class का bulk है, वो बहुत बड़ी भूमिका अदा करने वाला है। और उसके लिए आवश्यक जो भी कानूनी व्यवस्थाएं करनी पड़ी, वो कानूनी व्यवस्थाएं भी हमने की हैं। 

माननीय अध्यक्ष जी,

एक प्रकार से विश्वास के साथ एक प्रगति के वातावरण में देश को आगे ले जाने का निरंतर प्रयास चल रहा है। मैं राष्ट्रपति जी का हृदय से आभारी हूं कि अनेक विषयों पर उन्होंने इसे स्पष्ट किया है। जिनका राजनीतिक एजेंडा है वो उनको मुबारक, हम देश के एजेंडा को लेकर के चलते हैं। देश के एजेंडा को लेकर के चलते रहेंगे। मैं फिर एक बार देश के किसानों से आग्रह करूंगा कि आईए टेबल पर बैठकर के मिलकर के समस्याओं का समाधान करें। इसी एक अपेक्षा के साथ राष्ट्रपति जी के भाषण को राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद !

 

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DS/SH/BM/NS/AV



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