सूचना और प्रसारण मंत्रालय

“दादा साहेब फाल्के दूरदर्शी थे जो भारतीय फिल्म उद्योग में आत्मनिर्भरता लेकर आए”: नाती श्री चंद्रशेखर पुसालकर


“अगर सरकार ने दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना नहीं की होती, तो मेरे दादाजी का काम और जीवन केवल दो पन्नों में सिमटकर रह जाता”

“हमारे फिल्म उद्योग को उन पर एक बायोपिक बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए”

Posted On: 19 JAN 2021 5:29PM by PIB Delhi

भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के उर्फ ​​धुंडीराज गोविंद फाल्के के नाती, श्री चंद्रशेखर पुसालकर ने पत्र सूचना कार्यालय की सुश्री शमीला के. वाई. के साथ एक खुले सत्र में बात करते हुए कहा कि, “दादा साहेब फाल्के ऐसे दूरदर्शी थे जिन्होंने 'मेक इन इंडिया’ का प्रसार किया और वे भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में 'आत्मनिर्भरता’ लेकर आए। अपनी फिल्मों मेंउन्होंने हमेशा स्थानीय कलाकारों का इस्तेमाल किया और स्वदेशी जगहों व ऐसी तकनीकी मदद के समावेश को बढ़ावा दिया जो स्वदेशी रूप से उपलब्ध थीं। दादा साहेब की दृढ़ता, दूरदर्शिता और देशभक्ति के कारण ही भारतीय सिनेमा उद्योग आज इतने ऊंचे स्तर पर खड़ा है।” श्री चंद्रशेखर, दादा साहेब की बेटी मालती के बेटे हैं।

 

पणजी, गोवा में हो रहे 51वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में दादा साहेब की 150वीं जयंती के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है, यहां बात करते हुए श्री पुसालकर ने कहा कि फाल्के परिवार सरकार और इफ्फी महोत्सव का आभारी है कि वे उनके नाना की यादों को जीवित रख रहे हैं। उन्होंने कहा, "सरकार द्वारा की जा रही ये कोशिशें फलदायी साबित हो रही हैं क्योंकि युवा पीढ़ी को अब इस बात का अंदाजा लग रहा है कि इस महान इंसान ने कैसे अपनी फिल्म बनाने की यात्रा शून्य से शुरू की।"

 

सरकार की कोशिशें एक बेहतरीन श्रद्धांजलि है

 

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना 1969 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। उसके लिए सरकार को धन्यवाद देते हुए श्री पुसालकर ने कहा, "अगर सरकार ने इस तरह की पहल नहीं की होती तो मेरे नानाजी का काम या जिंदगी महज दो पन्नों में सिमटकर रह जाती, लेकिन अब लोग उन्हें जानते हैं और भारतीय सिनेमा में उनके अपार योगदान के लिए उनकी इज्जत करते हैं।”

 

अपने नाना द्वारा किए गए बलिदानों को याद करते हुए श्री पुसालकर ने कहा कि नई पीढ़ी के बीच उनका सम्मान बढ़ रहा है क्योंकि उन्हें पता चल रहा है कि कैसे एक आदमी, जिसके पास ऐसी कोई सुविधा नहीं थी जिसका आज सब आनंद लेते हैं, फिर भी उस इंसान ने फिल्में बनाईं और आने वाली पीढ़ियों के लिए राह तैयार की। उन्होंने कहा, "उनके पास न तो धन था, न कोई बीमा पॉलिसी थी। उन्होंने मेरी नानी के गहने बेच दिए और अपनी फिल्मों के लिए सबकुछ खरीदा। मेरी नानी और पूरे परिवार ने उनका भरपूर समर्थन किया।”

 

51वें इफ्फी महोत्सव में श्री चंद्रशेखर पुसालकर

 

उन्होंने कहा कि इस लिहाज से पूरा फाल्के परिवार भारतीय सिनेमा का पथ प्रदर्शक रहा है। अपनी मां द्वारा साझा की गई यादें ताजा करते हुए श्री पुसालकर ने कहा, “मेरी नानी ने उस दौर में मेरे नाना द्वारा उठाए हर कदम पर उनका समर्थन किया और वहीं दादा साहेब ने उनको अपनी सभी फिल्मों का हिस्सा बनाया। उन्होंने नानी को सिखाया कि किसी फिल्म को कैसे डिवेलप और रोल किया जाता है और शूट कैसे किया जाता है। उस समय में, कोई रिफ्लेक्टर नहीं होते थे और वे चिलचिलाती धूप में शूटिंग करते थे और इन सबके बीच मेरी नानी, मेरे नानाजी के समर्थन में चट्टान की तरह खड़ी रहीं।”

 

उनकी नानी नाना के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं, इसलिए उन्हें भी ज्यादा मान्यता दिए जाने की इच्छा जताते हुए श्री पुसालकर ने कहा, “मेरी नानी सरस्वतीबाई फाल्के को एक ऐसी महिला अचीवर कहा जा सकता है जिन्होंने अपने ही तरीके से भारतीय सिनेमा में अपार योगदान दिया।”

 

दादा साहेब महान देशभक्त

 

अपने नाना से जुड़ी यादें साझा करते हुए श्री पुसालकर ने कहा, "मेरे नाना न केवल एक महान दूरदृष्टा थे बल्कि एक महान देशभक्त भी थे।" उन्होंने एक घटना याद करते हुए बताया कि कैसे लंदन में अपनी कुछ फिल्मों के प्रदर्शन के बाद, दादा साहेब को वहां काम करने का प्रस्ताव मिला। श्री पुसालकर ने बताया, "लेकिन उन्होंने विनम्रता से ये कहते हुए उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि उनके देश में सिनेमा अभी नवजात अवस्था में ही है और उसे उनकी ज्यादा जरूरत है।"

 

श्री पुसालकर के मुताबिक, सिनेमा के प्रति उनके नाना के इसी समर्पण के कारण, उन्हें कभी भी पैसा कमाने की चिंता नहीं हुई। भावुक होते हुए श्री पुसालकर ने कहा, “हमारे नाना एक विशाल विरासत अपने पीछे छोड़कर गए हैं। उसने हमारे लिए बहुत बड़ा निवेश किया। लोग आज खड़े होकर सम्मान व्यक्त कर रहे हैं, तालियां बजा रहे हैं और हम उसे ग्रहण कर रहे हैं, और सिर्फ उन्हीं के योगदानों की वजह से आज हमें इज्जत दी जा रही है और सम्मानित किया जा रहा है।

 

किस तरह दादा साहेब नए दौर के फिल्मकारों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं, इसे बयां करते हुए श्री पुसालकर ने कहा, "मेरे नाना अपने परिवार को बहुत प्यार देते थे और देखभाल करते थे, फिर भी वे अपने कार्यस्थल पर और घर में बहुत सख्ती से अनुशासित थे। अपनी फिल्मों को लेकर वो सबकुछ बहुत ही बारीकी से योजनाबद्ध करते थे। उन्होंने हमेशा ये माना कि कुछ भी सीखने की कोई उम्र नहीं होती है क्योंकि वे लगातार खुद को नई चीजें सीखने में व्यस्त रखते थे।” उन्होंने गर्व के साथ कहा कि युवा फिल्मकारों को ये बात उनसे सीखनी चाहिए कि - "चीजों को सीखने की कोई उम्र नहीं होती है।"

 

दादा साहेब फाल्के अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता मिशन

 

दादा साहेब के योगदान के बारे में ज्यादा प्रचार करने के लिए उनके परिवार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर बात करते हुए श्री पुसालकर ने दादा साहेब फाल्के अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता मिशन के बारे में बात की। उन्होंने कहा, "ये एक विनम्र मिशन है, कि दादा साहेब के बारे में भारत और पूरी दुनिया में जागरूकता फैलाई जा सके।" उन्होंने कहा, "इसके लिए एक पूरी तरह समर्पित वेबसाइट है - http://www.dpiam.org.inजहां कोई भी मेरे नाना के बारे में सारी जानकारी पा सकता है।"

 

दादा साहेब के जमाने के कुछ सुनहरे पलों को याद करते हुए श्री चंद्रशेखर ने कहा कि दादा साहेब न केवल फिल्म निर्माण में अग्रणी थे, बल्कि विज्ञापन और प्रचार में भी, जिसमें उन्होंने हमेशा अभिनव तरीकों को अपनाया था। उन्होंने कहा, "छात्र दर्शकों के लिए उनको विशेष चिंता होती थी और वे ज्यादा संख्या में महिलाओं को उनकी फिल्म देखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पास दिया करते थे।"

 

प्रचार की एक ऐसी ही घटना को याद करते हुए श्री पुसालकर ने कहा, “एक बार उन्होंने पुणे में एक थियेटर मालिक के साथ करार किया जिसके थिएटर से पास ही एक आटा चक्की थी। जिसके तहत जो लोग भी टिकट खरीदते थे उन्हें एक किलोग्राम आटा मुफ्त में दिया जाता था और जो लोग एक किलोग्राम आटा खरीदते थे उन्हें एक टिकट मुफ्त दिया जाता था।”

 

अपने नाना को और मान्यता दिए जाने की इच्छा जाहिर करते हुए श्री पुसालकर ने कहा, “ये मौका भी सही है क्योंकि ये मेरे नानाजी की 150वीं जयंती है और उनके लिए एक शानदार सम्मान तभी होगा जब उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि से नवाजा जाएगा, और हमारे फिल्म उद्योग को भी उन पर एक बायोपिक बनाने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।”

 

अंत में श्री पुसालकर ने कहा कि “सेलिब्रिटीज आते और जाते रहेंगे, लेकिन जब तक सिनेमा जिंदा है, तब तक दादा साहेब फाल्के को याद किया जाता रहेगा।”

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