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ओट्टो द बारबेरियन मानसिक स्वास्थ्य संबंधी उन मुद्दों को उजागर करती है जिनके निपटने का तरीका समाज को पता नहीं है: निर्देशक रग्‍जेंड्र घिटेस्‍क्‍यू


'दुःख की विद्रूपता को दिखाने के लिए एक गैर-सिनेमाई अनुभव का सृजन'

'आत्‍महत्‍या के कारण अपने किसी करीबी को खो देने वालों को सहानुभूति चाहिए'

'ओट्टो अपनी प्रेमिका की आत्महत्या के प्रति अपनी जिम्मेदारी की भावनाओं के कारण अक्‍सर दु:खी हो जाता था। उसकी कहानी, ओट्टो द बारबेरियन मानसिक स्वास्थ्य संबंधी उन मुद्दों पर प्रकाश डालती है जिनके बारे में समाज को पता नहीं है कि उनसे कैसे निपटा जाए। मानसिक बीमारी अज्ञात बनी रहती है। इस फिल्म का उद्देश्य अवसाद के बारे में जागरूकता पैदा करना है। यह एक ऐसी चीज जिसे आसानी से पहचाना नहीं जाता है। कुल मिलाकर मैं उन लोगों के लिए सहानुभूति की आवश्यकता पर सबसे अधिक जोर देना चाहता था - जो अपने किसी करीबी के आत्‍महत्‍या के कारण दुःख और निराशा का सामना करते हैं।' इस तरह निर्देशक रग्‍जेंड्र घिटेस्‍क्‍यू ने अपनी आईएफएफआई 51 फिल्म ओट्टो द बारबेरियन में प्रेरणा दी है जिसमें किशोरावस्था के आघात के आसपास कहानी चलती है। वह भारत के 51वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में आज 23 जनवरी, 2021 को गोवा में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। रोमानिया की इस फिल्म ने कल महोत्‍सव में अपनी इंडियन प्रीमियर बनाई है।

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नायक ओट्टो बुखारेस्ट का एक 17 वर्षीय लड़का है जिसे अपनी प्रेमिका लौरा की आत्महत्या के कारण सदमा लगा था। फिर वह उसकी आत्महत्या की जांच से जुड़ी सामाजिक सेवाओं में शामिल हो जाता है। वह अपने माता-पिता, अपने मूक दादा और लौरा की मां द्वारा बनाए गए एक दुष्चक्र में फंस गया है। लौरा अभी भी कुछ वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिये उसके जीवन का हिस्सा है। वह हताश होकर वीडियो रिकॉर्डिंग को लगातार संपादित करता है ताकि घटनाओं के दु:खद मोड़ को कोई अर्थ दिया जा सके। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान ओट्टो अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है।

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निर्देशक ने कहा कि इस फिल्म का उद्देश्य ओट्टो जैसे उन लोगों की पीड़ा पर बातचीत शुरू करना है जिन्‍हें आत्‍महत्‍या के कारण अपने प्रियजनों को खोना पड़ता हैं। 'इस फिल्म को महज उपदेश देने के लिए नहीं बनाया गया है। यह दर्शकों के साथ एक संवाद करने और कुछ सवाल उठाने के लिए बनाई गई है। यह उन सवालों के निश्चित जवाब नहीं देती है।'

घिटेस्‍क्‍यू ने दुःख के निराशाजनक चेहरे को सामने लाने का प्रयास किया है। 'मेरा मानना है कि दुःख, नुकसान, आत्महत्या और हत्या जैसी नाटकीयता अधिकतर फिल्मों में बहुत ही शैलीबद्ध और रोमानी तरीके से दिखाई जाती हैं। लेकिन इस पृष्ठभूमि के विपरीत इस फिल्म का उद्देश्य एक गैर-सिनेमाई अनुभव तैयार करना है। हम एक नकारात्मक फिल्म में एक विरोधी नायक तैयार करना चाहते थे जहां दुःख वास्तव में अपनी विद्रूपता को दर्शाता है।'

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यह फिल्म हमें अपने अंदर की ओर झांकने का भी आग्रह करती है जहां हम अपनी वास्‍तविकता को नहीं छिपा सकते हैं। 'यह फिल्म उन तमाम मुखौटों पर सवाल उठाती है जिनका उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में अपनी गलतियों को छिपाने के लिए करते हैं- हम जिस परिवेश में बड़े होते हैं उसी पैटर्न में ढल जाते हैं।

घिटेस्‍क्‍यू ने कहा, 'यह फिल्म किशोरावस्था की एक कहानी है जो ऐसी नाजुक उम्र होती है जब नैतिकता कोई सामान्य अवधारणा नहीं है जिसे हम बड़े होकर जीते हैं।' 'किशोरावस्था में समय की एक अलग भावना होती है, वर्तमान क्षण का विस्‍तार एवं संकुचन होता है और उसी क्षण में सब कुछ होता है।' निर्देशक ने आगे बताया कि इस फिल्म के लय को बनाए रखने के लिए किशोरों से जुड़े पंक संगीत का इस्तेमाल किया गया है। वह कहती हैं, ज्यादातर किशोरों का आदर्श वाक्य है- 'पल में रहना''जब फिल्म बनाई गई थी तब व्यक्तिगत कारकों पर भी गौर किया गया था।'

घिटेस्‍क्‍यू एक रोमानिया की एक दृश्य कलाकार और फिल्म निर्माता हैं। ओट्टो द बारबेरियन को साराजेवो फिल्म फेस्टिवा, सिनईस्‍ट सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोपियन फिल्म फेस्टिवल में भी चुना गया है।

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