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“एक इन्सान जिसे आप बहुत प्यार करते हैं, उसके फायदे के लिए उसे खुद से दूर जाने देने का विचार हमेशा से ही मुझे सोचने पर मज़बूर करता है”: बिमल पोद्दार, निर्देशक (राधा फिल्म)


हालांकि यह एक एनिमेटेड कार्टून फिल्म है, लेकिन हम अपनी फिल्म के माध्यम से वयस्क दर्शकों तक भी पहुंचना चाहते हैं

एनिमेशन फिल्म को बनाने के लिए अधिक समय और फंड की ज़रूरत होती है  

“एक इन्सान जिसे आप बहुत प्यार करते हैं, उसके फायदे के लिए उसे खुद से दूर जाने देने का विचार हमेशा से ही मुझे सोचने पर मज़बूर करता है”। निर्देशक बिमल पोद्दार अपनी बंगाली एनिमेटेड कार्टून फिल्म ‘राधा’ की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए कहते हैं, कि यह राधा नाम की एक ऐसी महिला की अपने प्रिय इंसान के घर आने का इंतज़ार करती है, और जब तक वह घर नहीं लौटता, तब तक उसका इंतज़ार करती रहेगी। निर्देशक बिमल पोद्दार गोवा के पणजी में आयोजित 51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उनकी फिल्म की स्क्रीनिंग इंडियन पैनोरमा नॉन फीचर फिल्म सेक्शन में की गई है। एक स्वतंत्र फिल्मकार के तौर पर ‘राधा: दि एटर्नल मेलॉडी’ उनकी पहली फिल्म है।

 

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कलकत्ता में रहने वाली राधा दो लोगों के बीच रिश्तों के एक ऐसे अदृश्य बंधन को बुनती है, ठीक उसी तरह, जैसे श्री कृष्ण जब राधा को वृंदावन में छोड़कर चले जाते हैं और उसके बाद राधा उनका लगातार इंतज़ार करती है। यह प्यार और त्याग की एक भावनात्मक कहानी है। यह एक बुज़ुर्ग महिला और युवा लड़के की कहानी है। इस युवा लड़के का पालन-पोषण बुज़ुर्ग महिला ने बहुत ही लाड़-प्यार से किया है। महिला उसे बहुत प्यार करती है और युवा लड़का भी अपनी सभी ज़रूरतों के लिए एक माँ की तरह उस महिला पर भरोसा करता है। राधा उसके लिए गुरु, दोस्त और आदर्श सब कुछ थी। वह बुज़ुर्ग महिला उसके लिए एक प्रेरणास्रोत थी, जो उसे सपनों को पाने का प्रयास करने और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करना सिखाती थीं। वहीं दूसरी तरफ, युवा लड़का भी बुज़ुर्ग महिला के जीवन में प्रसन्नता और चेहरे पर खुशियां लाने का प्रयास करता था। लेकिन समय के साथ दोनों के एक-दूसरे से अलग हो जाने और दो अलग-अलग शहरों में रहने की वजह से अब वह बुज़ुर्ग महिला उस युवा लड़के की एक झलक पाने का इंतज़ार करती है।

दो मुख्य किरदारों के बारे में बात करते हुए पोद्दार ने कहा, “अपने व्यक्तिगत जीवन में ऐसे चरित्रों की पहचान करना आसान होता है, जिन्हें आप राधा और युवा लड़के की कहानी से जोड़ पाएँ।” राधा वर्तमान समय में प्रत्येक घर में मौजूद एक ऐसी बुज़ुर्ग और अकेली महिला का प्रतिनिधित्व करती है, जहाँ बच्चे बेहतर करियर, समृद्धि और लाइफस्टाइल को पाने के लिए अपनी जड़ों (अपने घर को) को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन ऐसा होने पर परिवार के बुज़ुर्ग अकेले हो जाते हैं, ऐसे में उनके पास यादों के अलावा और कुछ नहीं बचता।

पोद्दार, जो इस एनिमेशन फिल्म की फोटोग्राफी के निर्माता, एडिटर और निर्देशक भी हैं, उन्होंने कहा कि हम ये नहीं चाहते कि हमारी फिल्म के दर्शक केवल बच्चों तक ही सीमित रहें। “हालाँकि यह एक एनिमेटेड कार्टून फिल्म है, लेकिन हम अपनी फिल्म के माध्यम से वयस्क दर्शकों तक भी पहुंचना चाहते हैं। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत से ही, हमें यह पता था कि हमें केवल बच्चों की श्रेणी तक नहीं, बल्कि दर्शकों के एक व्यापक समूह तक पहुंचना है।”

 

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पोद्दार ने एनिमेशन फिल्म में चरित्रों का निर्माण करने के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बात की। “उन्होंने कहा एनिमेशन फिल्म को बनाने में अधिक समय लगता है। राधा फिल्म के प्रत्येक दृश्य की कल्पना काफी गंभीरता और रचनात्मकता से की गई है, जिसके लिए काफी ज़्यादा समय खर्च करना पड़ा।”

एनिमेशन फिल्म इंडस्टी के बारे में निर्देशक ने कहा कि इस इंडस्ट्री में अभी भी सार्थक और विचारपरक कंटेंट की कमी है। भारत में फीचर फिल्म उद्योग भले ही काफी विकसित हो चुका है, लेकिन एनिमेशन इंडस्ट्री अभी भी काफी पीछे है। फिल्म निर्माण का एनिमेशन फॉर्मेट देश के कुछ हिस्सों में अपने पंख फैला रहा है, और पश्चिम के देशों की तरह भारत में इसे विकसित होने में अभी थोड़ा समय लगेगा।

उन्होंने कहा कि इसे संभव बनाने की और अधिक संसाधनों की आवश्यकता है। “एनिमेशन फिल्म को बनाने के लिए अधिक समय और धन की ज़रूरत होती है। पश्चिम के देशों में बिना किसी बाधा के एनिमेशन फिल्म निर्माण का काम होता है, लेकिन भारत में अभी इसके लिए ज़रूरी संसाधनों की कमी है।”

उनकी फिल्म का चयन करने के लिए आईएफएफआई का धन्यवाद करते हुए पोद्दार ने कहा, “आईएफएफआई में आना मेरे लिए बेहतरीन अनुभव है। यह जानकर हमेशा अच्छा लगता है कि आपका काम सराहनीय है और दर्शकों को खूब पसंद आ रहा है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए मैं आईएफएफआई की टीम का आभार व्यक्त करता हूं।”

मीडिया के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “भारत में पौराणिक कथाओं पर आधारित कई एनिमेशन फिल्में बनी हैं, अब वो समय है जब हमें एनिमेशन फिल्मों के लिए समसामयिक मुद्दों और विषयों पर भी विचार करना चाहिए।”

 

 

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