वस्त्र मंत्रालय
वर्षांत समीक्षा 2020: वस्त्र मंत्रालय
1100 पीपीई निर्माताओं द्वारा प्रति दिन 4.5 लाख इकाई के उत्पादन के साथ 7000 करोड़ रुपये मूल्य के नए उद्योग के विकास के साथ भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा पीपीई निर्माता देश बन गया है
1480 करोड़ रूपए के कुल परिव्यय के साथ राष्ट्रीय तकनीकि कपड़ा मिशन को मंजूरी
पीटीए और ऐक्रेलिक फाइबर पर एंटी-डंपिंग शुल्क समाप्त
भारतीय कपास के लिए ‘कस्तूरी कॉटन’ के नाम से ब्रांड एवं लोगो का शुभारंभ किया गया
हथकरघा बुनकरों / कारीगरों / निर्माताओं के लिए व्यापक बाजार प्रदान करने हेतु सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) बनाया गया
हस्तशिल्प और हस्त-निर्मित खिलौना उत्पादों सहित भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई, 27 फरवरी से 3 मार्च 2021 के दौरान राष्ट्रीय खिलौना मेला प्रस्तावित
Posted On:
30 DEC 2020 6:08PM by PIB Delhi
कपड़ा उद्योग हमारे देश में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारतीय कपड़ा क्षेत्र विश्व में वस्त्र और परिधानों का छठा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। वाणिज्यिक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है और यह कृषि क्षेत्र के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। वस्त्र मंत्रालय ने भारत के विकास को गति देने के लिए वर्ष 2020 में कई महत्वपूर्ण पहल की है, जो निम्नलिखित है:
हथकरघा क्षेत्र:
हथकरघा बुनकरों / कारीगरों / निर्माताओं के लिए व्यापक बाजार प्रदान करने व सरकारी ई-मार्केट प्लेस (जेम) पर बुनकरों / कारीगरों को लाने हेतु कदम उठाए गए हैं ताकि वे अपने उत्पादों को विभिन्न सरकारी विभागों और संस्थाओं को सीधे बेच सकें।
I. भारत के हथकरघा विरासत को बढ़ावा देने और बुनकर समुदाय के लिए लोगों का समर्थन सुनिश्चित करने हेतु, सरकार द्वारा सभी हितधारकों के साथ साझेदारी में 7 अगस्त 2020 को 6ठे राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर सोशल मीडिया अभियान #Vocal 4 handmade का शुभारंभ किया गया था। सोशल मीडिया अभियान के परिणामस्वरूप हथकरघा में भारतीय जनता की रुचि बढ़ी है और कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने भारतीय हथकरघा उत्पादों की बिक्री में तेजी के बारे में बताया है।
II. कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न बाधाओं को दूर करने के लिए, हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के 200 से अधिक प्रतिभागियों के साथ 7, 10 और 11 अगस्त 2020 को द इंडियन टेक्सटाइल सोर्सिंग फेयर का आयोजन किया, जिसमें इन प्रतिभागियों ने अपने अद्वितीय डिजाइन और कौशल के साथ उत्पादों का प्रदर्शन किया, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय बाजार के साथ देश के विभिन्न भागों के हथकरघा बुनकरों और निर्यातकों को वर्चुअल माध्यम के जरिए जोड़ा गया।
III. हथकरघा क्षेत्र में डिजाइन-उन्मुख उत्कृष्टता लाने और बुनकरों, निर्यातकों, निर्माताओं और डिजाइनरों को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) के माध्यम से बुनकर सेवा केंद्रों (डब्ल्यूएससी) में डिजाइन संसाधन केंद्र (डीआरसी) स्थापित किए जा रहे हैं। अब तक 7 डीआरसी स्थापित किए गए हैं और दिल्ली, वाराणसी, अहमदाबाद, गुवाहाटी, भुवनेश्वर, मुंबई और जयपुर स्थित डब्ल्यूएससी में कार्य कर रहे हैं।
IV. विकास आयुक्त का कार्यालय हथकरघा निर्माता कंपनियों को मालिकाना हक-आधारित संगठन बनाने की सुविधा दे रहा है, जिसमें बुनकर, शिल्पकार आदि सदस्य के रुप में शामिल हैं। छोटे उत्पादकों को कच्चे माल की खरीद के साथ-साथ उत्पादों के विपणन के लिए बेहतर मोल-भाव करने तथा साथ-ही-साथ बेहतर प्रौद्योगिकी, कौशल उन्नयन, मूल्य निर्धारण और ब्रांडिंग, मूल्य संवर्धन, संग्रहण और बाजार से जुड़ाव जैसे क्षमता निर्माण के प्रयासों के माध्यम से निर्माताओं / सदस्यों के लिए आमदनी का प्रवाह सुनिश्चित करने हेतु कार्य करता है। साथ ही डिजाइन / नवाचार को समर्थन देने और बाजार तक पहुंच को मजबूती प्रदान की जा रही है। अब तक 100 निर्माता कंपनियों का गठन किया गया है।
V. वस्त्र मंत्रालय ने राज्य और केंद्र सरकारों के संयुक्त प्रयास से हथकरघा, शिल्प और पर्यटन के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण पर्यटक सर्किट पर देश के चुनिंदा हथकरघा और हस्तशिल्प खंडों में शिल्प ग्राम विकसित करने का काम किया है। शिल्प हथकरघा ग्राम उपभोक्ताओं और पर्यटकों को पारंपरिक हाथ से बुने उत्पादों को पेश करने में सक्षम होगा, जो "प्रायोगिक" अनुभव के माध्यम से प्रामाणिक बुनाई तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त कर प्रेरणा लेंगे।
हस्तशिल्प क्षेत्र:
I. हस्तशिल्प को पर्यटन से जोड़ने की पहल: शिल्प पर्यटन के माध्यम से हस्तशिल्प को पर्यटन से जोड़ना एक आधुनिक अवधारणा है जिसमें शिल्प संवर्धन और पर्यटन को एक साथ रखा जा रहा है। इन ग्रामों के तहत, कारीगर एक ही स्थान पर रहते और काम भी करते हैं साथ ही उन्हें अपने उत्पादों को बेचने का अवसर भी प्रदान किया जाता है जिससे इन कारीगरों की आजीविका सुनिश्चित हो। इसका मूल उद्देश्य उन क्षेत्रों का चयन करना है जो प्रमुख पर्यटन स्थलों / सर्किट से घिरे और जुड़े हुए हैं तथा पारंपरिक कला एवं शिल्प की विरासत हैं, साथ ही पर्यटकों को बडी संख्या में आकर्षित करते हैं। यह डिजाइन नवाचारों के माध्यम से कारीगरों की आय बढ़ाने में मदद करता है और कार्यस्थल पर तथा क्षेत्र की विरासत, संस्कृति, खान-पान और अन्य पहलुओं को जोड़ने एवं प्रसार करने में उनके हस्तनिर्मित उत्पादों की बिक्री के माध्यम से मदद प्रदान करता है, साथ ही अन्य क्षेत्रों के लिए भी आजीविका सुनिश्चित करता है। अब तक, हस्तशिल्प और हथकरघा दोनों क्षेत्रों के लिये मिलाकर कुल 12 शिल्प ग्रामों की पहचान कर ली गई है जिनमें 7 (सात) की पहचान हस्तशिल्प पर्यटन ग्राम और 5 (पांच) की हथकरघा शिल्प पर्यटन ग्राम के रूप में की गई है।
II. सोशल मीडिया अभियान: 9 नवंबर, 2020 को माननीय कपड़ा मंत्री द्वारा शुरू किये गये अभियान में केंद्रीय मंत्री, मंत्रालय / भारत सरकार के विभाग, राज्यों के मुख्यमंत्री, सांसदों के साथ कई अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हुए और उनके द्वारा दीवाली के त्योहारी सीजन में स्थानीय हस्तशिल्प और हस्तनिर्मित उत्पादों की खरीद को लोगों के बीच बढ़ावा दिया गया और प्रोत्साहित किया गया। इस अभियान का हस्तशिल्प उत्पादों की बिक्री पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और कारीगरों को सीधा लाभ भी प्राप्त हुआ है।
III. भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देना: माननीय प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम "मन की बात" में जोर देकर कहा था कि हर किसी को हस्तशिल्प और हस्तनिर्मित खिलौना उत्पादों सहित भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत की थीम पर ध्यान केन्द्रित करते हुए कहा था "आइए मिलकर खिलौने बनाएं"। भारतीय खिलौना के लिए भारत सरकार के 14 मंत्रालयों / विभागों के सहयोग से एक राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई गई है। चिन्हित किए गए 13 हस्तशिल्प खिलौना क्लस्टरों में खिलौना उद्योग के समग्र विकास के लिए आवश्यकता-आधारित हस्तक्षेप को मंजूरी प्रदान की गई है और 27 फरवरी से 3 मार्च 2021 के दौरान राष्ट्रीय खिलौना मेला प्रस्तावित है।
IV. बुनकरों / कारीगरों के लिए बाजार तक पहुंच को प्रत्यक्ष करने पर ध्यान केंद्रित करना: हस्तशिल्प कारीगरों/बुनकरों को प्रत्यक्ष विपणन मंच प्रदान करने के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाले डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन के माध्यम से वस्त्र मंत्रालय एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म विकसित कर रहा है। पहले चरण में, पूरे देश में 205 हस्तशिल्प/हथकरघा क्लस्टरों के कारीगरों/बुनकरों के हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पाद को पोर्टल पर अपलोड करने के लिए चुना जा रहा है। इसके अलावा, कारीगरों/बुनकरों को सरकारी ई-मार्केट पोर्टल (जेम) पर पंजीकृत किया जा रहा है, जिससे वे अपने उत्पादों को सीधे सरकार के मंत्रालयों/ विभागों को बेच सकें।
रेशम (सिल्क):
केन्द्रीय रेशम बोर्ड, रेशम उद्योग के विकास के लिए एकीकृत योजना "सिल्क समग्र" के तहत, एक प्रौद्योगिकी पैकेज के लिए पेटेंट प्राप्त किया गया, 58 अनुसंधान परियोजनाओं को निष्कर्ष तक पहुंचाया गया, 51 प्रौद्योगिकी पैकेजों को प्रसारित किया गया और वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) के अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए 13498 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया।
I. कोविड-19 महामारी के बावजूद, वित्त वर्ष 2018-19 (35,468 मीट्रिक टन) की तुलना में वर्तमान वित्त वर्ष 2019-20 (35,820 मीट्रिक टन) में कुल कच्चे रेशम के उत्पादन में एक प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान, 7,009 मीट्रिक टन बाइवोल्टाइन कच्चे रेशम के उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया गया। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान प्रति हेक्टेयर कच्चे रेशम का उत्पादन 108 किलोग्राम तक पहुंच गई है और साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र में कच्चे रेशम का उत्पादन 7,891 मीट्रिक टन हो गया है जो भारत के कुल उत्पादन का 22 प्रतिशत है।
II. पूर्वोत्तर श्रेत्र में लाभार्थीयों की जियो टैगिंग: वर्ष 2020 के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों में एनईआरटीपीएस के तहत लाभार्थियों की कुल 31076 संपत्तियों को उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (एनईएसएसी) के साथ एक सहयोगी परियोजना के तहत जियो-टैग (भू-अंकित) किया गया था।
III. आत्मनिर्भर भारत: आत्मनिर्भर भारत पहल के समर्थन में, विशेष रूप से चीन से एआरएम के आयात को चुनौती देने वाले प्रतिस्पर्धी मूल्य पर स्थानीय मशीनरी विनिर्माण उद्योगों को शामिल करके स्वदेशी रूप से स्वचालित रीलिंग मशीन (एआरएम) पैकेज के निर्माण के लिए आवश्यक कदम उठाए गए थे।
IV. रेशममंडी: डिजिटल रेशम विपणन अवधारणा, रेशममंडी, एक निजी उद्योग है जो रेशम उत्पादों में लेन-देन की प्रक्रिया को आसान बनाती है और भारत के रेशम उद्योग को कोकून से लेकर तैयार कपड़ों की आपूर्ति श्रृंखला तक को डिजिटलाइज करने की कोशिश कर रही है साथ ही यह सुनिश्चित करने की भी कोशिश की जा रही है कि किसानों को बाजार तक जाने की आवश्यकता नहीं पड़े। केंद्रीय रेशम बोर्ड इस उद्योग की पहल को प्रोत्साहित करने के लिए रीलर्स और किसानों के विवरण के साथ कोकून विपणन के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन भी प्रदान कर रहा है। कंपनी ने कर्नाटक के सरजापुर में एक छोटा केन्द्र स्थापित किया है और गुणवत्ता वाले कोकून की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रीलर्स द्वारा दिए गए मांगपत्र के आधार पर किसानों से कोकून लेना शुरू कर दिया है। उपरोक्त अवधारणा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है और कई किसान तथा रीलर्स इसमें रूचि लेते हुए जुड़ रहे हैं।
V. ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सिल्क मार्क (रेशम चिह्न) वाले उत्पादों को बढ़ावा देना: भारतीय सिल्क मार्क संगठन (एसएमओआई) ने अमेजन के साथ सिल्क मार्क के अधिकृत उपयोगकर्ताओं द्वारा “सिल्क मार्क” वाले 100 प्रतिशत शुद्ध रेशम उत्पादों के ऑनलाइन प्रचार के लिए एक समझौता किया है। इसके अलावा, फ्लिपकार्ट के साथ भी सिल्क मार्क अधिकृत उपयोगकर्ताओं के उत्पादों के ऑनलाइन प्रचार के लिए विचार-विमर्श जारी है।
पटसन (जूट):
I. पटसन आयुक्त का कार्यालय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत आपूर्ति किए जाने वाले खाद्यान्नों की खरीद के लिए विभिन्न राज्य सरकारों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को बी-टवील पटसन बैग की आपूर्ति सुनिश्चित करने में लगा है।
II. जनवरी 2020 से 24 दिसंबर 2020 तक, विभिन्न राज्य एजेंसियों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा लगभग 8303 करोड़ रुपये मूल्य के 28.88 लाख गाठों के कुल ऑर्डर को वेब आधारित जूट स्मार्ट प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रेषित किया गया है।
III. पटसन उद्योग से संबंधित स्थापित क्षमता, आधुनिकीकरण के स्तर और अन्य मुद्दों का व्यापक मूल्यांकन पटसन आयुक्त के कार्यालय द्वारा किया गया था और अंतिम रिपोर्ट 7 जुलाई 2020 को वस्त्र मंत्रालय को सौंप दी गई थी।
राष्ट्रीय पटसन बोर्ड
क्रम सं.
|
पहल
|
उपलब्धियां
|
1.
|
गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन/उत्पादकता बढ़ाने के लिए पटसन आई-केयर (जूट आईसीएआरई) कार्यक्रम का कार्यान्वयन
|
- कुल लाभान्वित किसान: 2,58,324
- HyV प्रमाणित पटसन के बीज का वितरित: 610 मीट्रिक टन
- कम-से-कम 4000 से 5000 रूपये प्रति हेक्टेयर श्रम लागत की बचत
- कम-से-कम 1200 से 1400 रूपये प्रति हेक्टेयर किसानों की आय में वृद्धि
|
2.
|
पटसन मिल/जेडीपी-एमएसएमई इकाईयों के श्रमिकों की बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति/प्रोत्साहन योजना
|
- माध्यमिक/उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के लिए 3618 बालिकाओं को 263 लाख रूपए प्रदान किए गए
|
3.
|
कम लागत वाले वातावरण के अनुकूल (इको-फ्रेंडली) पटसन थैले से प्लास्टिक थैले को बदलने की पहल
|
प्लास्टिक की थैलियों को कपड़े के थैलों से बदलना चाहिए।
राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (एनजेबी) ने स्कूली बच्चों और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी के साथ “अपना थैला साथ लाओ (ब्रिंग योर ओन बैग)” (बीवाईओबी) अभियान शुरू किया और साथ ही कम लागत वाले पटसन के थैले भी वितरित किए।
|
4.
|
आदिवासी/ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रशिक्षण
|
राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (एनजेबी) ने शांति निकेतन में 25 आदिवासी महिलाओं और बरुईपुर में 25 ग्रामीण महिलाओं को जुड़े हुए (ब्रेडेड) पटसन के विविध उत्पादों के विनिर्माण के लिए प्रशिक्षित किया।
|
5.
|
मई 2020 में अमफन चक्रवात के दौरान पटसन उद्यमियों का समर्थन करने की पहल
|
मई 2020 में अमफन चक्रवात छोटे पटसन कारीगरों के लिए विनाशकारी । राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (एनजेबी) ने छोटे पटसन कारीगरों की भागीदारी की सुविधा का विशेष ध्यान रखते हुए कोलकाता के सिटी सेंटर, साल्ट लेक और सिटी सेंटर, न्यू टाउन में दो पटसन मेलों का आयोजन किया
इसके अलावा, राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (एनजेबी) ने पटसन के विविध उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए तथा इन पटसन कारीगरों को बाजार का समर्थन प्रदान करने हेतु बेरहमपुर, सिलीगुड़ी तथा रायपुर में 3 और पटसन मेलों का आयोजन किया।
|
कपास:
- कैलेंडर वर्ष 2020 के दौरान, भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) परिचालनों के तहत लगभग 151 लाख गांठों की ऐतिहासिक (रिकॉर्ड) खरीद की है जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 38.43 लाख गांठों की खरीद की तुलना में लगभग 290 प्रतिशत अधिक है।
- भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) परिचालनों के तहत कपास की खरीद के लिए 30 लाख कपास किसानों को 39500 करोड़ रूपये की राशि का भुगतान किया है जो पिछले वर्ष के दौरान 10800 करोड़ रूपये के भुगतान से लगभग 265 प्रतिशत अधिक है।
- अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 तक वैश्विक महामारी में लॉकडाउन अवधि के दौरान, बाजार की खराब स्थितियों के कारण निजी खरीदार उत्साह नहीं दिखा रहे थे तो भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने कपास किसानों का भरपूर समर्थन किया।
- भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए एमएसएमई कताई मिलों/खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) इकाईयों एवं सहकारी कताई मिलों को ई-नीलामी के लिए दैनिक फ्लोर दरों में 300 रूपये प्रति कैंडी की छूट प्रदान कर रहा है।
- वैश्विक स्तर पर भारतीय कपास की गुणवत्ता और छवि निर्माण के लिए पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर वस्त्र मंत्रालय द्वारा भारतीय कपास की ब्रांडिंग शुरू की गई। इस प्रयास में, विश्व कपास दिवस के अवसर पर 7 अक्टूबर 2020 को भारतीय कपास के लिए ब्रांड नाम और लोगो को “कस्तूरी कॉटन इंडिया” के रूप में जारी किया गया, जिससे कपास के क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर और स्थानीय उत्पाद को और मुखर बनाने के उद्देश्य को पूरा किया जा सके।
ऊन:
ऊन प्रसंस्करण के लिए रेनबेन्नूर (कर्नाटक) में सीएफसी स्थापित करने के लिए एक नई परियोजना को मंजूरी दी गई है। उम्मीद जताई जा रही है कि यहाँ मोटे ऊनी रेशों का उपयोग कर नवीन ऊनी उत्पाद बनाए जा सकेंगे। इसके चलते, मोटे ऊन की मांग बढाने (डेकैनी) और मूल्य संवर्धन का प्रयास किया जा रहा है।
एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (एसआईटीपी):
वस्त्र उद्योग को विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए 10वीं पंचवर्षीय योजना के बाद से एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (एसआईटीपी) का कार्यान्वयन किया गया है। परियोजना लागत में आईटीपी की जरूरतों के आधार पर उत्पादन/समर्थन के लिए सामान्य बुनियादी ढांचे और इमारतों को शामिल किया गया है, जो परियोजना लागत के 40 प्रतिशत की कुल वित्तीय सहायता के साथ अधिकतम 40 करोड़ रूपए तक की है। एसआईटीपी के तहत अब तक 59 वस्त्र पार्कों को स्वीकृति प्रदान की गई हैं, जिनमें से 22 का कार्य पूरा कर लिया गया है।
एक नई योजना, मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (मित्र) पार्क, अत्याधुनिक बुनियादी सुविधाओं, जन सुविधाएं, अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला, कामगारों के परिवारों के लिए आवासीय सुविधा आदि और प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं के साथ करीब 1000 एकड़ से अधिक भूमि क्षेत्र में है।
एकीकृत प्रसंस्करण विकास योजना (आईपीडीएस): एकीकृत प्रसंस्करण विकास योजना आईपीडीएस को अक्टूबर 2013 से 500 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ लागू किया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य समुद्री, नदी और शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) सहित उपयुक्त प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरणीय मानकों को पूरा करने में वस्त्र प्रसंस्करण क्षेत्र को सक्षम बनाना है।
पावरटेक्स इंडिया
पावरटेक्स इंडिया के तहत, साधारण पावरलूम के लिए इन-सीटू उन्नयन योजना के तहत 3497 करघों में सुधार किया गया है तथा इसके लिए 3.35 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। समूह कार्य योजना में 51 परियोजनाओं के लिए 24.18 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। जन सुविधा केंद्र योजना में 5.39 करोड़ रूपये 3 परियोजनाओं के लिए जारी किए गए हैं। प्रधानमंत्री क्रेडिट योजना के तहत, पावरलूम बुनकरों के लिए 49 इकाईयों को 5.96 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। टीआरए और राज्य सरकार के पावरलूम सेवा केंद्रों (पीएससी) को अनुदान-सहायता के तहत 32 पावरलूम सेवा केंद्रों को 4.71 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
वस्त्र व्यापार संवर्धन (टीटीपी):
I. राज्य एवं केंद्रीय कर तथा लेवी (आरओएससीटीएल) के लिए छूट योजना का कार्यान्वयन: 7 मार्च 2019 को कैबिनेट ने सभी राज्य और केंद्रीय करों/लेवी में छूट देने के लिए आरओएससीटीएल योजना को मंजूरी दी। इस योजना से परिधान और बने-बनाए वस्त्रों के निर्यात की प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होने की संभावना है। 31 मार्च 2020 तक अधिसूचित दरों पर आईटी संचालित लाभांश प्रणाली के माध्यम से करों/लेवी में छूट की अनुमति प्रदान की गई है।
II. 14 जनवरी 2020 को, वस्त्र मंत्रालय ने 7 मार्च, 2019 से 31 मार्च 2019 तक आरओएससीटीएल और आरओएसएल + एमईआईएस 4 प्रतिशत के बीच अंतर को दूर करने के लिए परिधान और बने-बनाए वस्त्रों के निर्यात के लिए एक प्रतिशत तक का एक विशेष अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया। इसके अलावा, आरओएससीटीएल के लिए योजना को तब तक कार्यरत रखा गया है जब तक कि यह निर्यात उत्पाद पर कर एवं शुल्क में छूट (आरओडीटीओपी) के साथ विलय नहीं हो जाता। परिधान और बने-बनाए वस्त्रों के लिए आरओएससीटीएल योजना 1 अप्रैल, 2020 से लागू होगी, जब तक कि वस्त्र मंत्रालय द्वारा अधिसूचित योजना दिशानिर्देश और दरों में कोई बदलाव नहीं किया जाता है, और साथ ही आरओएससीटीएल का आरओडीटीओपी में विलय नहीं हो जाता। 31 मार्च, 2020 से आगे आरओएससीटीएल को लागू रखना कपड़ा क्षेत्र को उन सभी करों / लेवी से छूट देकर प्रतिस्पर्धी बनाए रखने की उम्मीद है जो वर्तमान में किसी अन्य प्रक्रिया के तहत छूट नहीं दे रहे हैं।
III. पीटीए पर एंटी-डंपिंग शुल्क समाप्त: वस्त्र मंत्रालय की अनुशंसा पर, शुद्ध टेरेफथैलिक एसिड या पीटीए पर एडीडी को 2 फरवरी, 2020 को हटा दिया गया था, जिससे एमएमएफ निर्माताओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी कीमतों पर कच्चे माल की खरीद करने में मदद मिलेगी और इसके बदले प्रतिस्पर्धी कीमतों पर डाउनस्ट्रीम उद्योग को मानव निर्मित फाइबर /फिलामेंट प्रदान किया। पॉलिएस्टर स्टेपल फाइबर (पीएसएफ) और पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न (पीएफवाई) एमएमएफ वस्त्र मूल्य श्रृंखला के लिए कच्चे माल हैं और पीटीए पीएसएफ के निर्माण में एक महत्वपूर्ण घटक है। चूंकि पीटीए देश में सीमित संख्या में उत्पादकों द्वारा उत्पादित किया जाता है, जोकि एमएमएफ निर्माताओं द्वारा आयात की गई फ़ाइल संख्या 12015 / 20/2020-टीटीपी में शामिल है। पीटीए के आयात को एंटी-डंपिंग ड्यूटी (एडीडी) के अधीन किया गया, जो देश में एमएमएफ फाइबर / फिलामेंट्स की लागत को बढ़ा रहा था, इसके चलते वैश्विक बाजारों में एमएमएफ वस्त्र उद्योग की लागत प्रतिस्पर्धा बढ़ रही थी।
IV. ऐक्रेलिक फाइबर पर एडीडी को समाप्त करना: इसके अलावा, वस्त्र मंत्रालय की अनुशंसा पर, 11 नवंबर 2020 को, सरकार ने 'ऐक्रेलिक फाइबर' पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी हटा दी है; ऐक्रेलिक फाइबर' सूत और बुने हुए कपड़े के लिए आवश्यक कच्चा माल है जो थाईलैंड से प्राप्त होता है या निर्यात किया जाता है तथा भारत में आयात किया जाता है। उम्मीद है कि ऐक्रेलिक फाइबर अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध कराया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप ऐक्रेलिक सूत की कीमत में कमी आएगी।
V. उत्पाद प्रोत्साहन योजना पर ध्यान क्रेन्द्रित करना (एफपीआईएस): माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 11 नवंबर 2020 को कैबिनेट ने "आत्मनिर्भर भारत" पहल के तहत भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए 10 प्रमुख क्षेत्रों में पीएलआई योजना को मंजूरी प्रदान की है, जिसमें एफपीआईएस के नाम पर वस्त्र मंत्रालय की इस योजना को मंजूरी प्रदान की है। इस योजना के तहत 60-70 वैश्विक चैंपियन बनाने के लिए 40 एमएमएफ परिधान और 10 तकनीकी वस्त्र लाईनों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। पांच वर्ष की अवधि में 10683 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय को भी मंजूरी प्रदान की गई है।
वस्त्र मंत्रालय ने "न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन" के भारत सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप वस्त्र निर्यात संवर्धन परिषद से सरकार द्वारा नामित व्यक्तियों का नाम वापस लेने का फैसला किया है।
तकनीकी वस्त्र और नवाचार (टीटीआई):
(ए). राष्ट्रीय तकनीकि कपड़ा मिशन:
देश को तकनीकि कपड़ा क्षेत्र में एक वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने के उद्देश्य से, वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2023-24 तक चार वर्ष की कार्यान्वयन अवधि के लिए 1480 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ राष्ट्रीय तकनीकि कपड़ा मिशन के निर्माण को मंजूरी प्रदान की है।इस मिशन के चार घटक होंगे:
पहला घटक (अनुसंधान, नवाचार और विकास): यह घटक दोनों (i) फाइबर स्तर पर मौलिक अनुसंधान से कार्बन फाइबर, ऐरामिड फाइबर, नायलॉन फाइबर और सम्मिश्र में तकनीकि उत्पादों तथा (ii) भू-वस्त्र, कृषि-वस्त्र, चिकित्सा वस्त्र, मोबाइल वस्त्र और खेल वस्त्र एवं जैव-निम्नीकरणीय तकनीकी वस्त्रों के विकास पर आधारित अनुसंधान, के लिए मील का पत्थर साबित होगा। मौलिक अनुसंधान गतिविधियां ‘साझा संसाधन’ पर आधारित होंगी और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) प्रयोगशालाओं, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिक / औद्योगिक / शैक्षणिक प्रयोगशालाओं के विभिन्न केंद्रों में आयोजित की जाएंगी। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय रेल के अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), राष्ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशाला (एनएएल), केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संगठन (सीआरआरआई) और ऐसे अन्य प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं में प्रयोग आधारित अनुसंधान किया जाएगा।
घटक-II (प्रोत्साहन और बाजार विकास): भारतीय तकनीकि कपड़ा क्षेत्र करीब 16 बिलियन अमरीकी डॉलर का अनुमानित है जो 250 बिलियन अमरीकी डॉलर के वैश्विक तकनीकि कपड़ा बाजार का लगभग 6 प्रतिशत है। विकसित देशों के 30 से 70 प्रतिशत के स्तर के मुकाबले भारत में तकनीकी कपड़ों में निवेश का स्तर 5 से 10 प्रतिशत कम है। मिशन के तहत वर्ष 2024 तक घरेलू बाजार का आकार बाजार विकास, बाजार संवर्धन, अंतर्राष्ट्रीय तकनीकि सहयोग, निवेश प्रोत्साहन और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के माध्यम से 40 से 50 बिलियन अमरीकी डॉलर तक ले जाने के लिए प्रति वर्ष 15 से 20 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
घटक-III (निर्यात संवर्धन): इस घटक का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2021-22 तक लगभग 14000 करोड़ रूपए के वर्तमान वार्षिक मूल्य से वित्तीय वर्ष 2023-24 तक 20000 करोड़ रूपए तक बढ़ाकर प्रति वर्ष निर्यात में 10 प्रतिशत औसत वृद्धि सुनिश्चित करने वाले तकनीकि कपड़ों के निर्यात को प्रोत्साहन देना भी है। इसके तहत वस्त्र तकनीक के क्षेत्र में प्रभावी समन्वय और संवर्धन गतिविधियों के लिए एक निर्यात संवर्धन परिषद की स्थापना की जाएगी।
घटक-IV (शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल विकास): देश में तेजी से तेजी से विकसित हो रहे तकनीकि कपड़ा क्षेत्र के लिये शिक्षा, कौशल विकास और मानव संसाधन की पर्याप्तता तकनीकि रूप से चुनौतीपूर्ण है और तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह मिशन उच्च इंजीनियरिंग और तकनीकि स्तरों से संबंधित तकनीकि शिक्षा को बढ़ावा देगा और इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कृषि, जलीय कृषि एवं डेयरी क्षेत्रों के अनुप्रयोग से संबंधित होगा। कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाएगा और अपेक्षाकृत परिष्कृत तकनीकी वस्त्र निर्माण इकाईयों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अत्यधिक कुशल मानव संसाधन की पर्याप्त संख्या का निर्माण किया जाएगा।
यह मिशन अन्य विभिन्न प्रमुख मिशनों, रणनीतिक क्षेत्रों सहित देश के कई कार्यक्रमों में तकनीकी कपड़ों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करेगा। कृषि, जलीय कृषि, डेयरी, मुर्गी पालन, आदि में तकनीकी वस्त्रों का उपयोग, जल जीवन मिशन; स्वच्छ भारत मिशन के साथ; आयुष्मान भारत देश में विनिर्माण और निर्यात गतिविधियों को बढ़ावा देने के अलावा भूमि जोतने वाले किसानों को प्रति एकड़ लागत अर्थव्यवस्था, जल और मिट्टी संरक्षण, बेहतर कृषि उत्पादकता और उच्च आय में समग्र सुधार लाएगा। राजमार्गों, रेलवे और बंदरगाहों में भू-वस्त्रों के उपयोग के परिणामस्वरूप मजबूत अवसंरचना, रखरखाव की लागत में कमी और बुनियादी ढांचे की संपत्ति को उच्च जीवन चक्र प्रदान करेगा।
इस मिशन द्वारा युवा इंजीनियरिंग / प्रौद्योगिकी / विज्ञान मानकों और स्नातकों के साथ नवाचार और ऊष्मायन केंद्रों का निर्माण तथा 'स्टार्ट-अप' एवं 'उद्यम' को बढ़ावा देने के लिए नवाचार को प्रोत्साहित किया जाएगा; इस प्रकार अनुसंधान नवाचार और विकास गतिविधियों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आसान और आकलन योग्य प्रसार के लिए सरकार के साथ ‘विश्वास’ के जरिए अनुसंधान परिणाम फिर से प्रस्तुत किया जाएगा।
अनुसंधान का एक उप-घटक जैव-निम्मीकरणीय तकनीकि कपड़ा सामग्री विशेष रूप से कृषि-वस्त्र, भू-वस्त्र और चिकित्सा वस्त्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह चिकित्सा और स्वास्थ्यानुकूल कचरे के सुरक्षित निपटान पर जोर देने के साथ, प्रयुक्त तकनीकी कपड़ों के पर्यावरणीय रूप से स्थायी निपटान के लिए उपयुक्त उपकरण भी विकसित करेगा।
वस्त्र मंत्रालय में एक मिशन निदेशालय संबंधित क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित विशेषज्ञ के नेतृत्व में शुरू किया जाएगा। इस मिशन को चार वर्ष की अवधि के बाद अवसान के चरण में भेजा जाएगा।
(बी) पीपीई का विकास (पूरे शरीर को ढ़ंकने वाला) और एन-95 मॉस्क:
मार्च 2020 से पहले, कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य पेशेवरों के उपयोग हेतु पूरे शरीर को ढ़ंकने वाला उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई), भारत में निर्मित नहीं किए जा रहे थे और आयात किए जा रहे थे। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य पेशेवरों को पीपीई किट उपलब्ध कराने का जिम्मा लिया। वस्त्र मंत्रालय ने इसके लिए पहल करते हुए चरण-दर-चरण इस नये उद्योग का विकास किया। दो से तीन महीनों के दौरान निम्न उपाय किए गए हैं:-
- तकनीकी विनिर्देश का विकास और पर्याप्त गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना
- 11 परीक्षण प्रयोगशालाओं का विकास (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मानकों के अनुरूप);
- घरेलू आवश्यकता को पूरा करने के लिए, संकट के दौरान आवश्यक सभी प्रकार के चिकित्सा वस्त्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था;
- कपड़ों और पूर् शरीर को ढ़ंकने वाले स्वदेशी निर्माताओं का संवर्धन और विकास;
- पूरे लॉकडाउन के दौरान चौबीसों घंटे समग्र गतिविधियों की सुगमता, समन्वय और निगरानी के लिए वस्त्र मंत्रालय में केंद्रीय नियंत्रण कक्ष की स्थापना;
- कच्चे माल के स्रोत से लेकर अंतिम उत्पाद तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु सभी हितधारकों (निर्माता/आपूर्तिकर्ता/परिवहन/परीक्षण प्रयोगशाला, आदि) की सुविधा के लिए पूरे देश में 200 नोडल अधिकारियों की नियुक्ति
- फील्ड इकाईयों के लिए गहन समन्वयन की स्थापना:-
- विभिन्न स्थानों से नमूनों का संग्रह (यहां तक कि सरकार तंत्र के माध्यम से घर-घर जाकर भी)
- सरकारी लागत पर नमूनों के परीक्षण के लिए विशेष उड़ानें, रेल और सड़क परिवहन का आयोजन
- स्थानीय अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ संपर्क
- कर्मियों के सुचारू आवागमन के लिए पास, कारखानों के संचालन के लिए परमिट
- लौजिस्टिक्स का अतंर-राज्यीय परिवहन
- लौजिस्टिक्स और आवागमन के लिए 24 घंटे टेलीफोनिक सहायता
- 25 लैटिन अमेरिकी देशों तथा कैरिबियाई क्षेत्र, भूटान आदि को पीपीई किट की आपूर्ति के लिए निर्यात परमिट देने और बांग्लादेश को परीक्षण के लिए आवश्यक सहायता उपलब्ध कराया।
और अंतत:, 1100 पीपीई निर्माताओं द्वारा प्रति दिन 4.5 लाख इकाई के उत्पादन के साथ 7000 करोड़ रुपये (एक बिलियन अमेरिकी डॉलर) मूल्य के नए उद्योग के विकास के बाद भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा पीपीई निर्माता देश बन गया है।
संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (एटीयूएफएस)
- निगरानी तंत्र को मजबूत करने और छूट के दावों के निपटान में तेजी लाने के लिए प्रक्रिया को कारगर बनाने हेतु उठाए गए कदम: वर्ष 2019 में एटीयूएफएस के कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रक्रियाएं शुरू हुईं और प्रक्रिया को कारगर बनाने एवं अस्पष्टता को दूर करने के लिए विभिन्न नीतिगत स्पष्टीकरण जारी किए गए हैं। परिणामस्वरूप, वर्ष 2020 के दौरान इस योजना के तहत दावों के निपटान में सुधार हुआ है।
- कोविड-19 महामारी के मद्देनजर उठाए गए कदम: कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के आलोक में कपड़ा उद्योग संघों/निर्यात संवर्धन परिषदों द्वारा किए गए अभिवेदन/ अनुरोधों को ध्यान में रखते हुए, इकाईयों के सत्यापन के लिए जारी जेआईटी अनुशंसित प्रतिवेदन प्राप्त करने के लिए विकल्प के तौर पर अनुशंसित छूट के मूल्य के खिलाफ बैंक गारंटी जमा करने का प्रावधान किया गया है। यह सुविधा एटीयूएफएस और टीयूएफएस के पिछले संस्करण के तहत आने वाले मामलों में विस्तारित की गई है और 6 महीने के लिए उपलब्ध कराई गई है। इसके अतिरिक्त, दावों के आवेदन के पंजीकरण की समयसीमा और मार्च-सितंबर, 2020 के दौरान मशीनरी के भौतिक निरीक्षण के अनुरोध को उद्योग से मिलने वाले अनुरोधों के अनुसार बढ़ाया गया।
- टीयूएफएस / एटीयूएफएस के प्रभाव आकलन: योजना के प्रभाव का आकलन करने के लिए डीएमईओ, नीति आयोग के माध्यम से टीयूएफएस/एटीयूएफएस का व्यापक अध्ययन किया गया है।
- वस्त्र मशीनरी में प्रौद्योगिकी का अंतर: माननीय कपड़ा मंत्री द्वारा आयोजित सभी हितधारकों की बैठक में लिए गए निर्णयों के आधार पर, भारत में वस्त्र अभियांत्रिकी उद्योग (टीईआई) द्वारा निर्मित मौजूदा प्रौद्योगिकियों के स्तर तथा प्रौद्योगिकी अंतरालों की सीमा का पता लगाने के लिए व्यापक प्रौद्योगिकी अंतर अध्ययन का गठन किया गया है। इस अध्ययन की रिपोर्ट को अंतिम रूप देने का कार्य प्रगति पर है।
***
एमजी/एएम/पीकेपी/डीए
(Release ID: 1688250)
Visitor Counter : 1473