सूक्ष्‍म, लघु एवं मध्‍यम उद्यम मंत्रालय

श्री गडकरी ने बाँस संसाधनों का इस्तेमाल बढ़ाने का आह्वान किया, कहा मालवाहन लागत में कमी लाने की आवश्यकता


केन्द्रीय मंत्री ने बाँस प्रदर्शनी का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया

Posted On: 05 NOV 2020 4:36PM by PIB Delhi

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री श्री नितिन गडकरी ने देश के बाँस संसाधनों का व्यापक रूप में दोहन करने पर ज़ोर दिया है। वर्चुअल माध्यम से आज बाँस प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के लिए आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बाँस एक ऐसा संसाधन है जिसका विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। यह भवनों, घरों की अंदरूनी साज-सज्जा, हस्तशिल्प, अगरबत्ती बनाने, वस्त्र उत्पादन, जैव ईंधन इत्यादि क्षेत्रों में उपयोग में लाया जाता है।

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श्री गडकरी ने इस अवसर पर सभी संबन्धित पक्षों से कहा कि बाँस और इससे बने सामानों की कीमतों में कमी लाने के लिए पारंपरिक मालवाहन के बजाए पानी के रास्ते या रेलमार्गों से इसकी ढुलाई के लिए सस्ते विकल्पों का पता लगाएँ। उन्होंने बताया कि ब्रह्मपुत्र नदी में 3 मीटर खुदाई कर जल्द मार्ग से माल वाहन को संभव बनाने के प्रयास किए गए हैं। उन्होंने कहा कि जल मार्ग से बांस और बांस से बने उत्पादों का परिवहन सुगम और सस्ता होगा, जिसका पूर्वोत्तर भारत में बहुतायत में उत्पादन संभव है।

श्री गडकरी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय से एक व्यापक बांस नीति तैयार करने के लिए भी कहा क्योंकि पूर्वोत्तर भारत में बांस का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। केंद्रीय मंत्री ने इस बात का ज़िक्र किया कि कैसे उन्होंने बांस काटने की अनुमति की आवश्यकता को ख़त्म करने के मामले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाया था,जिन्होंने पुनः उत्पादित होने के स्वभाव के चलते बांस को वन अधिकारियों से इसे घास की श्रेणी में डालने का निर्देश दिया था।

उन्होंने कहा कि औद्योगिक इस्तेमाल के लिए लगभग 40 टन प्रति एकड़ के बजाए बांस की ऐसी क़िस्मों का उपयोग किए जाने की आवश्यकता है जो 200 टन प्रति एकड़ की दर से अच्छी उपज देने में सक्षम है। बाँस की अधिक उत्पादन वाली किस्मों के व्यापक उपयोग से विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन में मदद मिलेगी।

श्री गडकरी ने सलाह दी कि बाँस की छड़ियों को बाँस की गांठों तक कम किया जा सकता है, ताकि नमी दूर हो जाए, जिससे परिवहन आसान हो जाता है और इसके कैलोरी मान में भी वृद्धि होती है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस संदर्भ में आईआईटी को एक पायलट परियोजना शुरू करने के लिए कहा जा सकता है।

उन्होंने बांस उत्पादन, प्रसंस्करण और इससे जुड़े व्यवसाय को और अधिक प्रोत्साहन देने का भी सुझाव दिया और कहा कि इससे बांस उद्योग को एक टिकाऊ उद्योग के रूप में विकसित करने में मदद मिलेगी।

पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर), में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत कोविड महामारी के बाद आर्थिक पुनरुत्थान के प्रयास में लगा है और इसमें उत्तर पूर्वी क्षेत्र बांस के विशाल संसाधनों की मदद से एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तत्पर है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बांस को समग्र भारत में उपयोगी और अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की नई विकास गाथा लिखने के लिए पूर्वोत्तर भारत एक इंजन होगा तो बांस उसका ईंधन है।

डॉ.जितेंद्र सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय और उत्तर पूर्वी परिषद बांस संसाधनों का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल और समग्र भारत में इससे जुड़ी तकनीकी जानकारी के लिए सभी उपाय कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बांस की टोकरी, अगरबत्ती और बांस चारकोल बनाने के साथ-साथ बांस प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना के लिए जम्मू, कटरा और सांबा क्षेत्रों में तीन बांस क्लस्टर विकसित करने का मंत्रालय ने पहले से ही निर्णय लिया था। केंद्रीय राज्य मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय पहले से ही देश के विभिन्न हिस्सों में बांस के संभावित उत्पादन की संभावनाओं का पता लगा रहा है। उन्होंने कहा, पिछले चार वर्षों के दौरान, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय ने बांस के विकास के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में 17 परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें असम के दीमा हसाओ में एक बांस औद्योगिक पार्क भी शामिल है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों में लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र बांस आच्छादित है। हालांकि, भारतीय वन अधिनियम1927 के तहत बांस की आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्र के बांस की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के लिए मोदी सरकार की संवेदनशीलता का प्रमाण इसी तथ्य से मिलता है कि उसने बांस के माध्यम से आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के लिए बांस को वन अधिनियम के दायरे से बाहर लाने हेतु एक सदी पुराने भारतीय वन अधिनियम में संशोधन किया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, एक अन्य प्रमुख सुधार के तहत बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क में 25 प्रतिशतकी वृद्धि की गई। इस फैसले के चलते भारत में अगरबत्ती की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नई अगरबत्ती स्टिक निर्माण इकाइयों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने कहा किअगरबत्ती उद्योग की भारत में बाजार हिस्सेदारी 5 से 6 हजार करोड़ रुपये की है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा चीन और कोरिया जैसे देशों से आयात किया जाता रहा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बांस का ऊर्जा के एक स्वच्छ स्रोत के रूप में इस्तेमाल के लिए व्यापक संभावना है और यह सिंगल यूज़ प्लास्टिक का भी स्थान ले सकता है। यह भारत में पर्यावरण और जलवायु को बेहतर करने की भारत की प्रतिबद्धताओं को भी दर्शाता है।

इस अवसर पर पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय में सचिव डॉ. इंद्रजीत सिंह ने भी संबोधित किया।

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