विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

सौर चुंबकीय क्षेत्र से संबंधित 1915 से 1965 तक के मानचित्र का पुनर्लेखन सूर्य के भविष्य का अनुमान लगाने में मदद करेगा


कोसो (डीएसटी) में संकलित की गईं फिल्म और तस्वीरें वर्ष 1915-65 तक की अवधि के लिए दुनिया में उपलब्ध सूर्य का एकमात्र नियमित पर्यवेक्षण है

Posted On: 06 OCT 2020 5:10PM by PIB Delhi

पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाली ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य हमारे भविष्य के लिए क्या महत्व रखता है?

वैज्ञानिक जल्द ही अतीत में सूर्य के व्यवहार की समझ के साथ उसकी भविष्य की चुंबकीय गतिविधि का अध्ययन करने में समर्थ हो सकते हैं। पिछली सदी के पहले आधे हिस्‍से के लिए चुंबकीय क्षेत्र का एक नक्शा हाल ही में तैयार किया गया है जो उस समझ को काफी बेहतर कर सकता है।

जलवायु संबंधी अध्ययन की ही तरह खगोलविदों को सूर्य के भविष्य के व्‍यवहार का अनुमान लगाने के लिए उसके अतीत के व्‍यवहार संबंधी जानकारियों की आवश्‍यकता होती है। सूर्य के व्यवहार का एक महत्वपूर्ण पैरामीटर उसका चुंबकीय क्षेत्र है जो दीर्घावधि बदलावों को नियंत्रित करता है और उसके व्‍यवहार में परिवर्तन लाता है।

आज हमारे पास ऐसी प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध है जिसके जरिये हम सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सीधा अवलोकन कर सकते हैं, लेकिन 1960 के दशक से पहले चुंबकीय क्षेत्र का प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं किया जा सकता था।

हाल ही में भारतीय शोधकर्ताओं ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (आईआईए) (https://kso.iiap.res.in) के कोडाइकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी (कोसो) से विभिन्‍न तरंगदैर्ध्य पर ली गई सूर्य की फिल्मों और तस्वीरों को पिछली शताब्दी के अनुसार डिजिटल किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक अन्‍य स्‍वायत्‍त संस्‍थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्‍थान (एआरआईईएस) और आईआईए के वैज्ञानिकों ने इस डिजिटल डेटा का उपयोग किया जिसे उन्होंने 1915-1965 की अवधि के लिए सूर्य के पहले चुंबकीय क्षेत्र के नक्शे को विकसित करने के लिए प्रॉक्सी डेटा कहा है।

सौर चक्र 15-19 के अनुरूप इस अवधि का मानचित्र हमें चुंबकीय परिवर्तनशीलता को समझने और भविष्य में सूर्य में होने वाले बदलाव के बारे में अनुमान लगाने में मदद करेगा। इस शोध का नेतृत्व एआरआईईएस के निदेशक प्रोफेसर दीपांकर बनर्जी और उनकी टीम ने किया है जिसमें आईआईटी (बीएचयू) की डॉ. विद्या कारक और डीएसटी के एक रामानुजन फैलो शामिल थे। साथ ही इसे भारत-रूस संयुक्‍त कार्यक्रम के तहत डीएसटी और रशियन फाउंडेशन फॉर बेसिक रिसर्च प्रोजेक्ट का समर्थन मिला। हाल ही में यह शोध 'एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स' में प्रकाशित हुआ है।

डॉ. बनर्जी के अनुसार, कोसो का डिजिटल डेटा अनोखा है क्योंकि यह विश्व में एकमात्र वेधशाला है जो सूर्य की दीर्घकालिक स्थिति और उसके चुंबकीय क्षेत्र की ताकत के साथ-साथ एक सदी से अधिक के लिए सीए II, के और एच अल्फा लाइनों के माध्यम से ध्रुवीयता प्रदान करती है। सूर्य के 15,000 से अधिक डिजिटल चित्रों ने इस अवधि के उसके चुंबकीय क्षेत्र का मानचित्र विकसित करने में मदद की है।

यह मानचित्र सटीक ध्रुवीय उत्क्रमण के अध्ययन में भी मदद करेगा जो सूर्य की एक अनोखी विशेषता है। यह प्रत्‍येक 11 साल बाद दिखती है जो समय के साथ दोहराए जाने वाले विशिष्ट पैटर्न को दर्शाती है।

 

चित्र कैप्शन: (ए), (सी) उत्तरी/दक्षिणी गोलार्ध में सूरज का धब्‍बा यानी सनस्‍पॉट वाले क्षेत्रों में परिवर्तन। (बी) क्षेत्रीय औसत चुंबकीय क्षेत्र को नीले से लाल रंग में दिखाया गया है। तीव्र सनस्पॉट गतिविधि के क्षेत्र, क्रमशः नकारात्मक झुकाव प्रबलता के डोमेन काले और हरे रंग में दिखाए गए हैं। सौर चक्र की संख्‍याओं को शीर्ष पैनल पर चस्‍पा किया गया है। निम्न/ अग्रणी ध्रुवीयता के अवशेष प्रवाह वृद्धि को ठोस/ डैश तीरों द्वारा दिखाया गया है। गंभीर बढ़त को बोल्ड ऐरो के साथ दिखाया गया है और उन्‍हें 15-19 चक्रों के लिए एन1/एस1, एन2/एस2, एन3/एस3, एन4/एस4 और एन5/ एस5 के रूप में लेबल किया गया है। पीले अंडाकार (विपरीत) अग्रणी-ध्रुवीयता के संभावित स्रोत को दिखाते हैं।

[प्रकाशन लिंक : https://arxiv.org/abs/2009.06969

अधिक जानकारी के लिए, प्रो. दीपांकर बनर्जी (dipu@aries.res.in) से संपर्क कर सकते हैं।]

 

 

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