जनजातीय कार्य मंत्रालय

ट्राइफेड ने तैंतीसवें स्थापना दिवस पर आदिवासियों के जीवन का रूपांतरण करने का संकल्प दोहराया


ट्राइफेड ने आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास को अभियान स्तर पर आगे बढ़ाने के लिये स्वयं अपने आभासी कार्यालय नेटवर्क की शुरुआत की

Posted On: 07 AUG 2020 4:14PM by PIB Delhi

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय जनजाति सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राइफेड) ने दिनांक 6 अगस्त, 2020 को अपने तैंतीसवें स्थापना दिवस के अवसर पर जनजातियों के जीवन का रूपांतरण करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उद्यम एवं वाणिज्य के माध्यम से आदिवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में समर्पित होकर कार्य करने के अपने अभियान में, विशेषकर इस चुनौतीपूर्ण समय में, ट्राइफेड ने जनजातियों की सहायता के लिये रोज़गार एवं आजीविका जनन  हेतु किये जाने वाले अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया है । 

      देश भर में महामारी के प्रकोप के बीच जब जीवन का हर आयाम ऑनलाइन हो गया है, ट्राइफेड ने दिनांक 6 अगस्त, 2020 को अपने स्थापना दिवस पर स्वयं के आभासी ऑफिस की शुरुआत की । ट्राइफेड के आभासी ऑफिस नेटवर्क के 81 ऑनलाइन कार्यस्थल एवं 100 अतिरिक्त प्रदेश एवं एजेंसी स्तरीय कार्यस्थल हैं जो उसके योद्धाओं की टीम को देश भर में अपने साझेदारों के साथ आदिवासी लोगों को मुख्यधारा के विकास के करीब लाने में अभियान स्तर पर कार्य करने में सहायता करेंगे- चाहे वो प्रधान एजेंसियों से हों अथवा क्रियान्वयन एजेंसियों से। मुलाज़िमों की भागीदारी के स्तर का पता लगाने एवं अपने प्रयासों को सरल एवं कारगर बनाने के लिये एक डैशबोर्ड लिंक्स समेत एम्प्लोई एंगेजमेंट एंड वर्क डिस्ट्रीब्यूशन मैट्रिक्स की शुरुआत भी की गई है। अन्य डिजिटल सॉफ्टवेयर का अनावरण भी किया गया है जो प्रदेशों एवं क्षेत्रों को निर्बाध रूप से कार्य करने में सक्षम बनाएंगे। यह समस्त संस्थागत पहल आदिवासी वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये एवं गांव आधारित जनजातीय उत्पादकों एवं शिल्पकारों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अत्याधुनिक इ-प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जोड़ने की ट्राइफेड की महत्वाकांक्षी डिजिटलीकरण मुहिम का हिस्सा हैं।

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      विश्व चैंपियन मैरी कॉम ने बतौर ब्रांड एम्बेसेडर ट्राइफेड से हाथ मिलाया है एवं आदिवासी भाई बहनों के लिये अपना योगदान दे रही हैं ।

      तत्कालीन मल्टी स्टेट कॉपरेटिव सोसाइटी एक्ट 1984 के अंतर्गत पंजीकृत ट्राइफेड जनजातीय कार्य मंत्रालय के तत्वावधान में सन् 1987 में एक प्रधान राष्ट्रीय एजेंसी के तौर पर अस्तित्व में आई जो सभी प्रदेशों में रहने वाली जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये कार्य कर रही है। ट्राइफेड ने श्री एसके चौहान, आईएएस, प्रथम प्रबंध निदेशक के नेतृत्व में दिल्ली मुख्यालय से 1988 में अपना कामकाज शुरू किया । श्री प्रवीर कृष्ण, आईएएस इसके वर्तमान तथा 36वें प्रबंध निदेशक हैं एवं उन्होंने अपना कार्यभार 25 जुलाई 2017 को संभाला है। आज मुख्यालय से लेकर 15 क्षेत्रीय कार्यालयों में फैले संस्था के 500 से अधिक कर्मचारी हैं। देश भर में इन समुदायों के आर्थिक कल्याण को प्रोत्साहन देकर (निरंतर इनके कौशल एवं विपणन के विकास के ज़रिये) इन अभावग्रस्त आदिवासी लोगों के सशक्तिकरण के अपने अभियान में ट्राइफेड ने 1999 में नई दिल्ली में ट्राइब्स इंडिया नाम से अपने पहले खुदरा आउटलेट के ज़रिये आदिवासी कला से संबंधित सामानों के अधिग्रहण एवं विपणन का कार्य शुरू किया है। 

     श्री प्रवीर कृष्ण, प्रबंध निदेशक, ट्राइफेड ने कहा कि भारत में हाल ही में लॉकडाउन एवं जारी महामारी के दौरान खरीददारी, बैंकिंग समेत अन्य कार्यों के लिये बड़ी संख्या में लोगों ने ऑनलाइन तौर तरीक़े अपनाए हैं; एवं लॉकडाउन में लागू प्रतिबंधों में ढिलाई बरतने पर भी इस ट्रेंड में बढ़ोतरी देखी गई है। आपूर्ति के मामले में भी कोविड19 से पैदा संकट ने आदिवासी शिल्पकारों एवं जंगल में रह कर वनोत्पादों को इकट्ठा करने वालों समेत निर्धनों एवं हाशिये पर जीवन यापन करने वाले समुदायों की आजीविका को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। ट्राइफेड को इन परिस्तिथियों से रणनीतिक तरीक़े से निपटना पड़ा । इस परिप्रेक्ष्य में हमारी डिजिटलीकरण की रणनीति महत्वपूर्ण है।

 

      मुश्किल भरे इस समय में गो वोकल फॉर लोकल मंत्र को बी वोकल फॉर लोकल गो ट्राइबल- मेरा वन मेरा धन मेरा उद्यम के रूप में स्वीकार करते हुए ट्राइफेड ने वन धन योजना, ग्रामीण हाट एवं उनके भंडारगृहों से जुड़े वनवासियों से संबंधित विभिन्न सूचनाओं का डिजिटलीकरण करने में  काफी प्रगति की है । डिजिटलीकरण का यह प्रयास, जहां जीआईएस तकनीक के माध्यम से सभी आदिवासी क्लस्टरों की पहचान एवं मैपिंग हो चुकी है, इन लोगों को प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के सूत्रवाक्य के तहत लाभ पहुंचाने में मदद करेगा।

      छोटे छोटे वनोत्पादों, शिल्प एवं हथकरघा उत्पादों की ऑनलाइन खरीद की सुविधा प्रदान करने के लिये जनजातीय उत्पादकों, वनवासियों एवं शिल्पकारों के लिये जल्द ही शुरू किया जाने वाला एक्सक्लूसिव इ-मार्केटप्लेस ट्राइफेड की उपलब्धियों में शामिल होगा। 15 अगस्त को शुरू होने की संभावना वाला ट्राइब्स इंडिया इ-मार्ट प्लेटफॉर्म अपनी इ-शॉप के माध्यम से इ-मार्केटप्लेस के ज़रिये बड़े स्तर पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों तक आदिवासियों के सामानों की बिक्री के लिये एक बहुआयामी सुविधा प्रदान करेगा । ट्राइफेड देश भर में लगभग 5 लाख आदिवासी उत्पादकों को शामिल करने एवं उनके प्राकृतिक उत्पादों, दस्तकारी सामानों को मंच प्रदान करने की प्रक्रिया में है । डिजिटल भुगतान की सुविधा के बाद यह आदिवासी बंधुओं की न सिर्फ विस्तारित मार्केट तक पहुंच बनाएगा बल्कि उनके खाते में जमा राशि में भी वृद्धि करेगा। 

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      1999 में 9 महादेव रोड, नई दिल्ली में एकमात्र फ्लैगशिप स्टोर से अब देश भर में 121 आउटलेट हैं। नवीन मल्टी स्टेट कॉपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट, 2002 के क्रियान्वयन से ट्राइफेड के उपनियम दिनांक 2.4.2003 से संशोधित किये गए हैं एवं अब इसने आदिवासी उत्पादों एवं पैदावार के एक सेवा-प्रदाता, समन्वयक एवं मार्केट डेवलपर के तौर पर कार्य करना शुरू कर दिया है।

      पिछले एक दशक के दौरान ट्राइफेड निरंतर अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है एवं विभिन्न प्रकार के नवीन प्रयोग कर रहा है। पिछले कुछ महीनों के दौरान ट्राइफेड ने अपनी आजीविका एवं कामकाज खो चुके आदिवासियों के पुनर्वास के लिये अपने प्रयासों में बढ़ोतरी की है । हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली महामारी की आकस्मिकता एवं तुरंत लागू लॉकडाउन के कारण आदिवासी शिल्पकारों का लगभग 100 करोड़ रुपये का स्टॉक बग़ैर बिके रखा हुआ था । यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह भंडार बिक जाए एवं समस्त बिक्री का लाभ प्रभावित जनजातीय परिवारों तक पहुंचे, ट्राइफेड ने 1 लाख से भी अधिक सामान खरीदे हैं एवं बिक्री रहित पड़े इन सामानों की अपनी वेबसाइट ट्राइब्स इंडिया के ज़रिये (अच्छी छूट की पेशकश करते हुए) एवं अन्य रिटेल प्लेटफॉर्म्स जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट एवं जीइएम के माध्यम से ऑनलाइन बिक्री के लिये एक आक्रामक योजना बनाई है । ट्राइफेड योद्धाओं की टीम ने अप्रेल में लॉकडाउन के दौरान 5000 से भी अधिक आदिवासी शिल्पकारों के परिवारों में मुफ़्त भोजन एवं राशन के वितरण हेतु आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन के साथ हाथ भी मिलाया ।  

      आदिवासी समुदाय को ज्ञान, उपकरण एवं सूचना से युक्त बनाने के मूलभूत रवैये को अपनाते हुए, ताकि वह व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक ढंग से अपने क्रियाकलाप कर पाएं, तथा आदिवासियों का सुग्राहीकरण कर तथा स्वयं सहायता समूहों का निर्माण कर एवं किसी विशेष गतिविधि में उनको प्रशिक्षण प्रदान कर उनका क्षमता निर्माण करने के लिये ट्राइफेड ने अनेक प्रकार की युगांतरकारी शुरुआत की है । ‘मैकेनिज़्म फॉर मार्केटिंग ऑफ माइनर फोरेस्ट प्रोड्यूस (एमएफपी) थ्रू मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) एंड डेवलपमेंट ऑफ वैल्यू चेन फॉर एमएफपी’ योजना परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करने वाली है जिसने जनजातियों के पारितंत्र को इतना प्रभावित किया है जितना कि पहले कभी नहीं हो पाया । भारत के 21 राज्यों में लागू की गई यह योजना अप्रेल 2020 से आदिवासी अर्थव्यवस्था में सीधे 3000 करोड़ रुपये की जान फूंकने में सफल रही है । मई 2020 में सरकार के समर्थन से जब माइनर वनोत्पादों का मूल्य 90% तक बढ़ा दिया गया एवं एमएफपी में 23 नये आइटम जोड़ दिये गए, वन अधिकार अधिनियम, 2005 से शक्ति प्राप्त करने वाली आदिवासी कार्य मंत्रालय की यह फ्लैगशिप योजना वनोत्पादों के आदिवासी संग्रहकर्ताओं को लाभकारी एवं समुचित मूल्य की प्राप्ति करवाने के लिये लक्षित है ।  

      एमएफपी योजना के अंतर्गत सोलह प्रदेशों में एमएफपी की मौजूदा खरीद ने, 1000 करोड़ रुपये की खरीद एवं एमएसपी के ऊपर 2000 करोड़ रुपये की खरीद के साथ रिकॉर्ड ब्रेकिंग ऊंचाई छुई है । 

 

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      प्रदेशों में छत्तीसगढ़ ने 105.96 करोड़ रुपये में 46654 मीट्रिक टन माइनर वन उत्पादों की खरीद के साथ पहला स्थान हासिल किया है । इसके बाद 30.01 करोड़ रुपये में 14188 मीट्रिक टन तथा तथा 2.35 करोड़ रुपये में 5323 मीट्रिक टन की खरीद के साथ क्रमशः ओडीशा एवं तेलंगाना का नंबर आता है । 

      इसी योजना का एक घटक वन धन विकास केंद्र/जनजातीय स्टार्टअप आदिवासी संग्रहकर्ताओं व वनवासियों तथा घर में रहने वाले आदिवासी शिल्पकारों के लिये रोजगार जनन का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बन गया है । 22 प्रदेशों में 18500 स्वयं सहायता समूहों में 3.6 लाख आदिवासी संग्रहकर्ताओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिये 1205 आदिवासी उद्यम स्थापित किये गए हैं। यह कार्यक्रम यह सुनिश्चत करता है कि इन उत्पादों की बिक्री से होने वाली प्राप्ति सीधे आदिवासियों तक पहुंचे। इन आदिवासी उद्यमों द्वारा मुहैया कराई गई पैकेजिंग एवं मार्केटिंग से इन उत्पादों को फायदा होता है । मणिपुर एवं नगालैंड उन प्रदेशों के तौर पर उभरे हैं जहां स्टार्टअप ने अच्छा किया है, मणिपुर में वन उत्पादों के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन के लिये 77 वन धन केंद्र हैं । इन वन धन केंद्रों ने सितंबर 2019 से 49.1 लाख रुपये के एमएफपी उत्पादों की खरीद की रिपोर्ट दी है। इसको अधिक कारगर बनाने एवं जनजातियों के लिये एक विस्तृत विकास पैकेज के लिये तथा उनकी आय में वृद्धि के लिये उनको उनके उद्यम एवं वाणिज्यिक गतिविधियों में मदद के लिये ट्राइफेड अपनी गतिविधियों के अगले चरण में वन धन योजना का एमएफपी योजना की एमएसपी के साथ सम्मिलन करने की योजना बना रहा है।  

      इन जनजातियों की स्थायी आजीविका एवं आय के अवसरों में बढ़ोतरी के उद्देश्य से ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी), सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय (एमएसएमई), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई), आयुष मंत्रालय जैसे विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों की सहभागिता की योजना बनाई गई है। यह सहभागिता इन जनजातियों को कृषि, बागवानी, पुष्पकृषि, औषधीय एवं सुगंधित पौधों इत्यादि समेत विभिन्न आर्थिक गतिविधियों से जोड़ कर इनके लिये वर्ष पर्यंत आय के अवसर सुनिश्चित करने में सहायता करेगी ।

      माइनर वनोत्पादों का अधिग्रहण पूरे वर्ष चलाया जा सके एवं मौजूदा पहुंच को दोगुना कर वर्तमान 3000 करोड़ रुपये से 6000 करोड़ रुपये के स्तर पर लाया जा सके (एवं 25 लाख आदिवासी संग्रहकर्ता परिवारों को फायदा मिल पाए) इसके लिये देश भर में वह तंत्र एवं प्रक्रियाएं स्थापित की गई हैं। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने एवं अतिरिक्त गतिविधियों की तैयारी करने के लिये वित्त वर्ष 2020-21 में 9 लाख आदिवासी लाभार्थियों वाले 3000 वीडीवेके की स्थापना का लक्ष्य बनाया गया है ।

      चयनित आदिवासी शिल्पकारों को और अधिक अवसर प्रदान करने एवं उनके कौशल तथा उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक लाने के लिये ट्राइफेड ने इन शिल्पकारों को प्रशिक्षित करने के लिये रूमा देवी एवं रीना ढाका जैसे प्रतिष्ठित डिज़ाइनरों के साथ सक्रियतापूर्वक समन्वय कर डिज़ाइन संबंधी अनेक प्रकार के कदम उठाए हैं ।

      ऐसी अनेक पहल के सफल कार्यान्वयन एवं कई आने वाली पहल के ज़रिये, ट्राइफेड प्रभावित शिल्पकारों एवं संग्रहकर्ताओं की ख़राब माली हालत में प्राण फूंक कर देश भर में आदिवासी ज़िंदगियों एवं जीविका के साधनों के पूर्ण रूपांतरण हेतु कार्य कर रहा है ।

 

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