उप राष्ट्रपति सचिवालय
उप राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों का बोझ कम करने के लिए नई शिक्षा नीति की सराहना की
एनईपी-2020 को बताया एक दूरदर्शी दस्तावेज, जो समग्र विकास पर देता है जोर
एनईपी-2020 में मातृ भाषा पर जोर देना भारतीय भाषाओं को संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए है अहम : उप राष्ट्रपति
विद्यार्थियों को दी जानी चाहिए राष्ट्रीय आदर्शवाद की शिक्षा, जहां राष्ट्र सर्वोपरि हो और बाकी सब राष्ट्रीय हित के बाद हो
अस्थायी व्यवस्था हैं वर्चुअल कक्षाएं और यह कक्षा में मिलने वाली शिक्षा की जगह नहीं ले सकतीं
हमें सिर्फ राम की पूजा के लिए नहीं, बल्कि उनके गुणों की पूजा के लिए रामायण की आवश्यकता है : उप राष्ट्रपति
निजी क्षेत्र से शिक्षा को मिशन और राष्ट्रीय सेवा के रूप में लेने का आह्वान
उप राष्ट्रपति ने दिया पहला राजलक्ष्मी पार्थसारथी स्मारक व्याख्यान
Posted On:
06 AUG 2020 7:43PM by PIB Delhi
उप राष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज विद्यार्थियों से पाठ्यक्रम का बोझ कम करने के लिए नई शिक्षा नीति की सराहना की।
आज वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राजलक्ष्मी पार्थसारथी स्मारक व्याख्यान देते हुए उप राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि विद्यार्थियों को शारीरिक गतिविधियों और खेलों पर भी समान ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने योग को कम उम्र में स्कूली पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाए जाने का आह्वान किया और कहा कि विद्यार्थियों को खेल के मैदानों और कक्षाओं में बराबर समय बिताना चाहिए।
योग को मस्तिष्क और शरीर का व्यायाम बताते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि योग का कोई धर्म नहीं है।
हाल में घोषित नई शिक्षा नीति को दूरदर्शी दस्तावेज़ बताते हुए उन्होंने कहा कि उसमें विद्यार्थियों के समग्र विकास पर बल दिया गया है। नई शिक्षा नीति विद्यार्थी केन्द्रित है और इसका उद्देश्य भारत को ज्ञान आधारित समाज बनाना है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कारों के प्रति गहरी आस्था के साथ-साथ विश्व भर से उत्कृष्ट विचारों, शिक्षा पद्धतियों के समावेश, दोनों पर बराबर का बल दिया गया है।
नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) में मातृ भाषा पर जोर दिए जाने की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन किया जाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा, “मैंने कई बार पहले भी कहा है कि न तो कोई भाषा थोपी जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का विरोध ही किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा में ऐसी समग्र शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए जिसमें सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों तरह की शिक्षा मिले। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थियों को राष्ट्रीय आदर्शों के संस्कार दिए जाने चाहिए, जिसमें राष्ट्र हित सर्वोपरि हो।
उप राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि 130 करोड़ लोगों के इस देश में अकेली सरकार सब कुछ नहीं कर सकती। उन्होंने इस दिशा में हो रहे प्रयासों के पूरक के रूप में निजी क्षेत्र की भागीदारी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र और स्वैच्छिक संगठनों का मिशनरी जोश और आदर्शवाद के द्वारा मार्गदर्शन करना चाहिए।
शिक्षा के मानदंडों में सुधार और शिक्षकों की व्यावसायिक क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए श्री नायडू ने कहा कि शिक्षकों को मित्रवत् परामर्शक बनना चाहिए और अपने व्यवहार व मनोभाव से रोल मॉडल की भूमिका निभानी चाहिए।
विद्यालयों में भारतीय कला और सांस्कृतिक विरासत की समझ बढ़ाने और सराहना का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को हर भारतीय राज्य की विशिष्टता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना चाहिए, साथ ही यह भी जानना चाहिए कि कैसे भारत माता राष्ट्रवादी कल्पना की सर्वोच्च अवतार हैं।
प्रख्यात कवि सुब्रमण्या भारती की एक कविता का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने विविधता में एकता के महत्व को रेखांकित किया, जो हमारे महान देश भारत की मूलभूत भावना रही है।
कोविड महामारी के चलते सामान्य शैक्षणिक शिड्यूल के बाधित होने पर चिंता व्यक्त करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि वर्चुअल कक्षाएं अस्थायी व्यवस्था हैं और वे एक शिक्षक की जगह नहीं ले सकती हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की वर्चुअल व्यवस्था से कक्षा जैसा वास्तविक ज्ञान हासिल नहीं मिल सकता है।
भारत अब आगे बढ़ रहा है, यह आकलन करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि कोविड-19 महामारी से लगा झटका अस्थायी है और उन्होंने भरोसा जताया कि यह जल्द ही रफ्तार पकड़ लेगा। प्रधानमंत्री के तीन शब्दों के मंत्र – ‘सुधार-प्रदर्शन-परिवर्तन’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने राष्ट्र के परिवर्तन के लिए हर किसी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की अपील की।
श्री नायडू ने कहा कि कई भारतीय दुनिया में अहम पद संभाल रहे हैं, इसी प्रकार युवाओं के सामने आगे बढ़ने के लिए दुनिया में तमाम संभावनाएं हैं। उन्होंने इस संबंध में कम उम्र में ही सही प्रकार के कौशल को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
हाल में अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन पर बात करते हुए श्री नायडू ने कहा कि रामायण हमें जीवन का एक मार्ग दिखाती है।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि हमें सिर्फ राम की पूजा के लिए ही नहीं, बल्कि उनके द्वारा धारण किए गए गुणों की पूजा करने और उन्हें अपने जीवन में आत्मसात किए जाने की जरूरत है।
सुश्री वाईजीपी के नाम से लोकप्रिय डॉ. सुश्री राजलक्ष्मी पार्थसारथी को बहुमुखी प्रतिभा की धनी बताते हुए उप राष्ट्रपति ने पद्म शेषाद्रि बाल भवन स्कूल समूह जैसे एक संस्थान के निर्माण के प्रति उनके समर्पण और प्रतिबद्धता की सराहना की।
उन्होंने कहा, “भारत का भविष्य सुश्री राजलक्ष्मी पार्थसारथी जैसे लोगों के कार्यों में निहित है, जो एक समय विश्व गुरु था और अब शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में खोये हुए गौरव को फिर से हासिल करने की दिशा में प्रयास कर रहा है।”
उप राष्ट्रपति ने प्रसन्नता व्यक्त की कि पद्म शेषाद्रि बाल भवन स्कूल समूह की स्थापना का उद्देश्य भारतीयता और भारतीय पद्धति को प्रोत्साहित करना है तथा विद्यार्थियों में हमारे सभ्यतागत संस्कारों और धरोहर के बारे में जागृति पैदा करना है। डॉ. राजलक्ष्मी पार्थसारथी अपने विद्यार्थियों से अभिवादन स्वरूप “श्री गुरुभ्यो नमः” कहने को कहती थीं। इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा कि समकालीन समाज में यह हमारे सनातन संस्कारों को अभिव्यक्ति देता है।
इस अवसर पर पद्म शेषाद्रि बाल भवन स्कूल समूह की डीन और निदेशक श्रीमती शीला राजेंद्र, पैरेंट्स-टीचर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री पी बी बालाजी और अन्य उपस्थित रहे।
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