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आरबीआई ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नौ और अहम उपायों की घोषणा की
ब्याज दरों में कमी की, 3 माह की और मोहलत दी
निर्यातकों एवं आयातकों को और भी अधिक नकदी प्रवाह मिला
2020-21 में घरेलू अर्थव्यवस्था नीचे की ओर जाएगी, दूसरी छमाही में धीरे-धीरे विकास की रफ्तार तेज होगी: आरबीआई गवर्नर
Posted On:
22 MAY 2020 3:36PM by PIB Delhi
‘‘जब क्षितिज सर्वाधिक अंधकारमय हो जाता है और मानवीय विवेक असमर्थ प्रतीत होने लगता है, तब विश्वास ही सबसे अधिक प्रबल होता है और हमारा बचाव करता है।’’
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने राष्ट्रपिता के वर्ष 1929 के इस अनमोल विचार से आशा एवं प्रेरणा लेते हुए वित्त के प्रवाह को सुचारू बनाने और कोविड से उत्पन्न अशांत एवं अनिश्चित माहौल में वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए नौ और अहम उपायों की घोषणा की है। आरबीआई ने इससे पहले 17 अप्रैल, 2020 को और 27 मार्च, 2020 को अनेक महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की थी।
आरबीआई गवर्नर ने एक ऑनलाइन संबोधन के माध्यम से घोषणाएं करते हुए कहा कि हमें भारत की सुदृढ़ता के साथ-साथ सभी बाधाओं को दूर करने की इसकी क्षमता पर अवश्य ही भरोसा होना चाहिए। यह विश्वास व्यक्त करते हुए कि हम आज की कष्टदायक मुसीबतों से पार पा लेंगे, आरबीआई गवर्नर ने आह्वान किया। उन्होंने कहा कि स्थिति ऐसी है कि ‘केंद्रीय बैंकों को अर्थव्यवस्था के बचाव में अग्रिम पंक्ति को जवाब देना होगा।’
रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की कमी
आरबीआई गवर्नर ने महंगाई दर को निर्धारित दायरे में ही रखते हुए विकास की गति को फिर से तेज करने और कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए प्रमुख नीतिगत दरों (पॉलिसी रेट) में कमी करने की घोषणा की है। रेपो रेट को 4.4% से 0.40 प्रतिशत घटाकर 4.0% पर ला दिया गया है। सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक रेट को भी 4.65% से घटाकर 4.25% कर दिया गया है। इसी तरह रिवर्स रेपो रेट को 3.75% से घटाकर 3.35% पर ला दिया गया है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘यह देखते हुए कि विकास से जुड़े जोखिम अत्यधिक हैं, जबकि महंगाई से जुड़े जोखिम के अल्पकालिक होने की संभावना है, इसलिए मौद्रिक नीति समिति का यह मानना है कि अब आत्मविश्वास बढ़ाना एवं वित्तीय परिस्थितियों को और भी अधिक आसान बनाना आवश्यक हो गया है। यह किफायती दरों पर धन के प्रवाह को सुगम करेगा और फिर से निवेश का माहौल बनाएगा। इसे ही ध्यान में रखते हुए एमपीसी ने नीतिगत रेपो रेट को 4.4% से 0.40 प्रतिशत घटाकर 4.0% पर ला दिया है।
श्री दास ने अनेक नियामकीय एवं विकासात्मक उपायों की भी घोषणा की जो नीतिगत दर में की गई कमी के लिए पूरक साबित होंगे और एक दूसरे को मजबूत भी करेंगे।
उन्होंने दोहराया कि घोषित किए जा रहे उपायों के लक्ष्य ये हैं:
- वित्तीय प्रणाली और वित्तीय बाजारों को सुदृढ़ एवं तरल रखना और सुचारू रूप से चलाना
- सभी, विशेषकर उन लोगों की वित्त तक पहुंच सुनिश्चित करना, जिन्हें वित्तीय बाजार अपने से दूर रखने की कोशिश करते हैं
- वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना
बाजारों के कामकाज को बेहतर करने के उपाय
- सिडबी को पुनर्वित्त सुविधा 90 दिन और बढ़ा दी गई है
लघु उद्योगों को किफायती ऋण की आपूर्ति को सक्षम बनाने के लिए आरबीआई ने 17 अप्रैल, 2020 को सिडबी को 90 दिनों की अवधि के लिए आरबीआई के नीतिगत रेपो रेट पर 15,000 करोड़ रुपये की विशेष पुनर्वित्त सुविधा देने की घोषणा की थी। इस सुविधा को अब 90 दिन और बढ़ा दिया गया है।
- स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग के तहत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के लिए नियमों में ढील
स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (वीआरआर) दरअसल एक निवेश सुविधा है जो आरबीआई द्वारा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को प्रदान की जाती है और जो ज्यादा निवेश करने की प्रतिबद्धता के बदले में आसान नियमों की पेशकश करती है। नियमों में बताया गया है कि आवंटित निवेश सीमा का कम से कम 75% निवेश तीन माह के भीतर किया जाना चाहिए; निवेशकों और उनके संरक्षकों (कस्टोडियन) के सामने आ रही कठिनाइयों को देखते हुए अब समय सीमा को संशोधित कर छह माह कर दिया गया है।
निर्यात और आयात में सहयोग करने के उपाय
- निर्यातक अब अधिक अवधि के लिए बैंक ऋणों का लाभ उठा सकते हैं
बैंकों द्वारा निर्यातकों के लिए मंजूर लदान-पूर्व और लदान-बाद निर्यात ऋण की अधिकतम स्वीकार्य अवधि को 31 जुलाई, 2020 तक वितरण के लिए मौजूदा एक साल से बढ़ाकर 15 माह कर दिया गया है।
- एक्जिम बैंक के लिए ऋण की सुविधा
आरबीआई गवर्नर ने भारत के विदेश व्यापार के वित्तपोषण, इसे सुविधाजनक बनाने और बढ़ावा देने हेतु एक्जिम बैंक के लिए 15,000 करोड़ रुपये के ऋण (लाइन ऑफ क्रेडिट) की घोषणा की है। ऋण की सुविधा 90 दिनों की अवधि के लिए दी गई है, जिसे एक वर्ष बढ़ाने का प्रावधान भी है। एक्जिम बैंक को विदेशी मुद्रा संसाधन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने, विशेषकर अमेरिकी डॉलर अदला-बदली (स्वैप) सुविधा का लाभ उठाने में सक्षम बनाने के लिए ऋण दिया जा रहा है।
- आयातकों को आयात हेतु भुगतान करने के लिए अधिक समय
भारत में सामान्य आयात (यानी सोने/हीरे और कीमती पत्थरों/आभूषणों के आयात को छोड़कर) के भुगतान की समयावधि को शिपमेंट की तारीख से छह माह से बढ़ाकर बारह माह कर दिया गया है। यह 31 जुलाई, 2020 को या उससे पहले किए गए आयात के लिए लागू होगा।
वित्तीय मुश्किलें कम करने के उपाय
- नियामकीय उपायों के लिए 3 माह का और समय विस्तार
आरबीआई ने पूर्व में घोषित किए गए कुछ नियामकीय उपायों की प्रयोज्यता या स्वीकार्यता को 1 जून, 2020 से तीन माह और बढ़ाकर अब 31 अगस्त, 2020 तक कर दिया है। ये उपाय अब कुल छह महीनों (यानी 1 मार्च, 2020 से लेकर 31 अगस्त, 2020 तक) के लिए लागू माने जाएंगे। संबंधित नियामकीय उपाय ये हैं: (ए) सावधि ऋणों की किस्तों की अदायगी पर 3 माह की मोहलत; (बी) कार्यशील पूंजी सुविधाओं के ब्याज पर 3 माह का स्थगन; (सी) मार्जिन कम करके या कार्यशील पूंजी चक्र का फिर से आकलन करके कार्यशील पूंजी वित्तपोषण संबंधी आवश्यकताओं को सुगम बनाना; (डी) पर्यवेक्षी रिपोर्टिंग और क्रेडिट सूचना कंपनियों को रिपोर्टिंग में ‘डिफॉल्टर’ के रूप में वर्गीकृत होने से छूट देना; (ई) फंसे कर्जों के लिए समाधान समयसीमा का विस्तार; और (एफ) ऋण संस्थानों द्वारा 3 माह की मोहलत अवधि, इत्यादि को हटाते हुए संपत्ति वर्गीकरण पर विराम। ऋण देने वाले संस्थानों को यह अनुमति दी गई है कि वे 31 मार्च, 2021 तक कार्यशील पूंजी के लिए मार्जिन को उनके मूल स्तर पर बहाल कर सकते हैं। इसी तरह कार्यशील पूंजी चक्र का फिर से आकलन करने से संबंधित उपायों का समय विस्तार 31 मार्च, 2021 तक किया जा रहा है।
- कार्यशील पूंजी पर ब्याज को ब्याज सावधि ऋण में परिवर्तित करने का प्रावधान
ऋण देने वाले संस्थानों को 6 माह (अर्थात 1 मार्च, 2020 से लेकर 31 अगस्त, 2020 तक) की कुल स्थगन अवधि के दौरान कार्यशील पूंजी सुविधाओं पर संचित ब्याज को एक वित्तपोषित ब्याज सावधि ऋण में परिवर्तित करने की अनुमति दी गई है, जिसे 31 मार्च 2021 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष के दौरान पूरी तरह से चुकाना होगा।
- कंपनियों को धन प्रवाह बढ़ाने के लिए ग्रुप एक्सपोजर लिमिट में वृद्धि
बैंक द्वारा किसी विशेष कॉरपोरेट समूह को दिए जाने वाले अधिकतम ऋण को उसके उपयुक्त पूंजी आधार के 25% से बढ़ाकर 30% कर दिया गया है। वर्तमान में कंपनियों को बैंकों से धन जुटाने में हो रही कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए कंपनियों को बैंकों से अपनी वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए ऐसा किया गया है। बढ़ी हुई सीमा 30 जून, 2021 तक लागू रहेगी।
राज्य सरकारों की मौजूदा वित्तीय मुश्किलों को कम करने के उपाय
- राज्यों को ‘कंसोलिडेटेड सिंकिंग फंड’ से अधिक उधार लेने की अनुमति
‘कंसोलिडेटेड सिंकिंग फंड’ को राज्य सरकारों द्वारा अपनी देनदारियों के पुनर्भुगतान के लिए एक बफर के रूप में बनाया गया है। इस कोष से धन निकासी को नियंत्रित करने वाले नियमों में अब ढील दी गई है, ताकि राज्यों को वर्ष 2020-21 में देय अपनी बाजार उधारी को चुकाने में सक्षम बनाया जा सके। धन निकासी मानदंडों में बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू होगा और 31 मार्च, 2021 तक मान्य रहेगा। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि यह सुनिश्चित करते हुए ही ढील या छूट दी जा रही है कि इस कोष में उपलब्ध शेष राशि में कमी विवेकपूर्ण तरीके से हो।
अर्थव्यवस्था का आकलन
आरबीआई गवर्नर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक आकलन पेश करते हुए कहा कि वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थितियां हर मायने में अत्यंत विकट हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अनवरत रूप से मंदी की ओर अग्रसर है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि दो माह लॉकडाउन रहने से घरेलू अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा, ‘औद्योगिक उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत योगदान देने वाले शीर्ष 6 औद्योगिक राज्य मोटे तौर पर रेड या ऑरेंज जोन में हैं। मांग ध्वस्त हो गई है और उत्पादन काफी निचले स्तर पर आ गया है, जिसका प्रतिकूल असर राजकोषीय राजस्व पर देखा जा रहा है। निजी खपत को तगड़ा झटका लगा है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस घोर निराशा के बीच कृषि और संबद्ध गतिविधियों ने आशा की एक किरण प्रदान की है। भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष 2020 में दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने का जो पूर्वानुमान लगाया है उससे भी आशा की किरण निकल रही है।
आरबीआई गवर्नर ने स्मरण करते हुए कि उपलब्ध कराए गए आधे-अधूरे आंकड़ों के आधार पर पता चला है कि खाद्य मुद्रास्फीति जनवरी 2020 में अपने चरम पर पहुंचने के बाद मार्च में निरंतर दूसरे महीने नीचे आ गई थी, लेकिन अचानक इसकी दिशा पलट गई और यह अप्रैल में बढ़कर 8.6% हो गई, क्योंकि मांग में मौजूदा कमी के बावजूद वस्तुओं की आपूर्ति में व्यवधान पड़ने का व्यापक असर पड़ा। कोविड-19 के कारण विश्व उत्पादन और मांग के धराशायी हो जाने के कारण भारत के वाणिज्यिक निर्यात एवं आयात को पिछले 30 वर्षों में सर्वाधिक गिरावट का सामना करना पड़ा।
आरबीआई गवर्नर ने बताया कि मौद्रिक नीति समिति ने यह आकलन किया है कि मुद्रास्फीति का परिदृश्य अत्यधिक अनिश्चित है। अप्रैल में खाद्य कीमतों को लगा आपूर्ति का झटका अगले कुछ महीनों तक जारी रह सकता है, जो लॉकडाउन की स्थिति और इसे खोलने के बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं (सप्लाई चेन) को बहाल करने में लगने वाले समय पर निर्भर करेगा। दालों की महंगाई का उच्च स्तर चिंताजनक है, जिसे देखते हुए आयात शुल्क का फिर से आकलन करने के साथ-साथ समय पर और बड़ी तेजी से आपूर्ति प्रबंधन उपाय करने की आवश्यकता है।
अर्थव्यवस्था के लिए आगे की राह का उल्लेख करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि मांग में भारी कमी और आपूर्ति में व्यापक व्यवधान के संयुक्त प्रभाव से वर्ष की पहली छमाही में आर्थिक गतिविधियां काफी हद तक घट जाएंगी। यह मानते हुए कि विशेषकर इस वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियां चरणबद्ध तरीके से बहाल हो जाएंगी और इसके साथ ही अनुकूल आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट) भी संभव है, ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि वर्तमान में किए जा रहे राजकोषीय, मौद्रिक और प्रशासनिक उपायों के संयोजन से वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियों में क्रमिक रूप से बढ़ोतरी के लिए अनुकूल माहौल बनेगा।
इन सभी अनिश्चितताओं को देखते हुए वर्ष 2020-21 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर ऋणात्मक रहने का अनुमान है और वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही से विकास की रफ्तार कुछ तेज हो सकती है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कोविड के मामले कितनी जल्दी नियंत्रण में आते हैं और फिर इनमें कमी का दौर शुरू होता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पूरा वक्तव्य यहां पढ़ा जा सकता है।
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एएम/आरआरएस- 6608
(Release ID: 1626219)
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