प्रधानमंत्री कार्यालय

सियोल शांति पुरस्कार के लिये प्रधानमंत्री का स्वीकरण भाषण

Posted On: 22 FEB 2019 12:41PM by PIB Delhi

सियोल शांति पुरस्कार सांस्कृतिकप्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री क्वों इ-यॉक

राष्ट्रीय एसेम्बली के स्पीकर श्री मून ही सैंग

संस्कृति मंत्री श्री डो जोंग-वान

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव श्री बान की-मून

सियोल शांति पुरस्कार सांस्कृतिकप्रतिष्ठान के अन्य सदस्य

 

विशिष्ट पदाधिकारियों


देवियो और सज्जनो


मित्रो


नमस्कार !


आन्योंग
हा-सेयो
योरा-बुन्न

सभी को शुभकामनाएं


मैं सियोल शांति पुरस्कार पाने पर अंतरतम से सम्मानित महसूस कर रहा हूं । मैं यह मानता हूं कि यह पुरस्कार निजी रूप से मेरा नहीं, वरन् भारत के लोगों का है । यह पुरस्कार उस सफलता के नाम है जो भारत ने पांच वर्ष से कम की अवधि में तीन बिलियन भारतीयों के सामर्थ्य एवं कौशल से शक्ति प्राप्त कर पाई है । और इसलिये, उनके एवज में मैं इस पुरस्कार को विनम्रता से स्वीकार करता हूं तथा अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूं । यह पुरस्कार वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाले दर्शन को मान्यता देता है, जिसका अर्थ है कि समस्त विश्व एक परिवार है । यह पुरस्कार उस संस्कृति के लिये है जिसने युद्धभूमि में भी शांति का संदेश दिया है, जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान भगवतगीता की शिक्षा प्रदान की थी । यह पुरस्कार उस भूमि के लिये है जहां हमें पढ़ाया जाता है-

 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति,सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति, सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

 

जिसका अर्थ हैः

 

शांति कीजिए प्रभु अंतरिक्ष में आकाश में हर स्थान पर

हमारे ग्रह में सभी स्थानों में, प्रकृति में

शाश्वत/ सनातन शांति कीजिए प्रभु    


और यह पुरस्कार उन लोगों के लिये है जिन्होंने हमेशा व्यक्तिगत आकांक्षा से ऊपर समाज की भलाई को रखा । और मैं इस पुरस्कार को उस वर्ष में पाकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं जब हम महात्मा गांधी की 150 वीं जन्मशती मना रहे हैं । मैं दो लाख डॉलर की पुरस्कार राशि का नमामि गंगे कोष में योगदान देना चाहता हूं, उस नदी को स्वच्छ करने का हमारा प्रयास है जो न सिर्फ भारत के लोगों के लिये पवित्र है बल्कि मेरे देश के लाखों पुरुषों एवं महिलाओं की आर्थिक जीवन रेखा भी है ।


मित्रो,


सियोल शांति पुरस्कार की स्थापना 1988 में सियोल में ग्रीष्म ऋतु में हुए 24वें ओलम्पिक खेलों की सफलता एवं भावना को मनाने के लिये हुई थी । यह खेल भारत के स्मरण में भली प्रकार से हैं । क्योंकि इन खेलों का समापन महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर हुआ था । इन खेलों ने कोरियाई संस्कृति, कोरियाई आतिथ्य, एवं कोरियाई अर्थव्यवस्था की सफलता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित किया । और यह नहीं भूलना चाहिये कि इन खेलों ने वैश्विक परिदृश्य में एक नवीन खेल संस्कृति का आगाज किया ! किंतु यह खेल विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी थे । 1988 के ओलम्पिक खेल विश्व में हो रहे अनेक परिवर्तनों के समय आयोजित हुए । ईरान-इराक़ का युद्ध समाप्त ही हुआ था । उस वर्ष पूर्व में अफगानिस्तान की स्थिति पर जिनेवा समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे । शीत युद्ध की समाप्ति हो रही थी, एवं इस बात की आशा बंधी थी कि एक नयी सुबह का उदय होगा ।और कुछ समय तक ऐसा हुआ भी । आज विश्व 1988 की तुलना में अनेक क्षेत्रों में बेहतर है । वैश्विक निर्धनता तेज़ी से कम हो रही है । स्वास्थ्य-रक्षा एवं शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाले परिणाम बेहतर हो रहे हैं । और इसके बावजूद अनेक कठिन वैश्विक चुनौतियां बनी हुई हैं । कुछ नई हैं कुछ पुरानी हैं । सियोल ओलम्पिक से कुछ महीने पहले जलवायु परिवर्तन के बारे में पहली सार्वजनिक चेतावनी दी गई थी । आज यह मानवता के लिये एक बड़े ख़तरे के रूप में जानी जाती है । सियोल ओलम्पिक से कुछ सप्ताह पहले अल-क़ायदा नाम की संस्था का निर्माण हुआ । आज उग्रवाद एवं आतंकवाद वैश्विक स्वरूप धारण कर चुके हैं एवं विश्व शांति एवं सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा ख़तरा हैं । और दुनिया में अनेक मिलियन लोग पर्याप्त एवं गुणवत्तापूर्ण भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य-रक्षा, स्वच्छता, विद्युत एवं इन सबसे ऊपर सम्मानजनक जीवन के बग़ैर रहते हैं । स्पष्ट रूप से अभी बहुत सा कार्य करने की आवश्यकता है । हमारे समक्ष समस्याओं का समाधान कठोर परिश्रम में निहित है । और भारत अपने हिस्से का कार्य कर रहा है । हम भारत के लोगों, जो कुल वैश्विक जनसमूह का छठा भाग हैं, की कुशलता के स्तर में वृद्धि करने के लिये कार्य कर रहे हैं । भारत आज विश्व की तेज़ी से बढ़ती सुदृढ़ आर्थिक सिद्धांतों वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह उन बड़े आर्थिक बदलावों के बूते संभव हुआ है जो हम वहां लाए हैं । ‘मेक-इन-इण्डिया’, ‘स्किल इण्डिया’, ‘डिजिटल इण्डिया’ और ‘क्लीन इण्डिया’ जैसी फ्लैगशिप शुरुआतों ने सामाजिक-आर्थिक वृद्धि में प्रत्यक्ष योगदान दिया है । हमने वित्तीय समावेशन, ऋण प्राप्ति की सुगमता, डिजिटल लेनदेन, अंतिम सीमा तक कनेक्टिविटी एवं छोटे व मध्यम दर्जे के उपक्रमों को सहारा देने पर ज़ोर दिया है ताकि देश भर में विकास का विस्तार किया जा सके एवं भारत के सभी नागरिकों तक लाभ पहुंचाया जा सके । स्वच्छ भारत अभियान भारत को स्वच्छ बना रहा है; 2014 में स्वच्छता के 38% कवरेज से अब यह संख्या 98% हो चुकी है । उज्ज्वला योजना भोजन बनाने के स्वच्छ ईंधन के उपयोग के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के जीवन को उन्नत बना रही है; आयुष्मान भारत 500 मिलियन निर्धन एवं अभावग्रस्त लोगों को स्वास्थ्य-रक्षा एवं बीमा उपलब्ध करा रही है; एवं ऐसी शुरुआतों के तथा अन्य कदमों के माध्यम से हमने संपूर्ण विकास में तथा संयुक्त राष्ट्र संधारणीय विकास लक्ष्यों में योगदान दिया है । हमारे सभी प्रयासों में हम महात्मा गांधी की शिक्षाओं से निर्देशित हैं कि हमें अपने जीवन में देखे गए सर्वाधिक निर्धन एवं कमज़ोर व्यक्ति का चेहरा याद करना चाहिये एवं स्वयं से पूछना चाहिये कि हम जो कदम उठाने जा रहे हैं क्या वह उस व्यक्ति के किसी लाभ का है ।

 

मित्रो,

 

भारत के विकास की कहानी न सिर्फ भारत के लोगों के लिए बल्कि समूचे विश्व के लिये अच्छी है । हम परस्पर एक अंतर्संबंधित संसार में रहते हैं । तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते हमारा विकास एवं हमारी समृद्धि निश्चित रूप से वैश्विक विकास में योगदान देंगे । हम एक शांतिपूर्ण, स्थायी एवं आर्थिक रूप से अंतर्संबंधित विश्व का निर्माण करने के प्रति वचनबद्ध हैं । अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ज़िम्मेदार सदस्य होने के नाते भारत जलवायु परिवर्तन की सामूहिक लड़ाई में अग्रणी रहा है । भारत ऐतिहासिक रूप से कम कार्बन फुटप्रिंट वाला देश होने के बावजूद जलवायु परिवर्तन की वैश्विक लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा रहा है । घरेलू स्तर पर यह कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिये एक राष्ट्रीय कार्ययोजना का अनावरण कर, वनाच्छादित भूमि का विस्तार कर एवं परम्परागत कार्बन ईंधन को नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्तियों से स्थानांतरित कर किया गया है ।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमने समान विचार वाले देशों के साथ समझौता कर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य जीवाष्म ईंधन के विकल्प के तौर पर स्वच्छ एवं अपार सौर ऊर्जा को काम में लाना है । हम संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सर्वाधिक मात्रा में सेना भेजने वाले देशों में से एक हैं । और हमें कोरियाई प्रायद्वीप में शांति में योगदान करने वाला होने का गर्व है । हमने ज़रूरतमंद देशों की सहायता के लिये हाथ बढ़ाया है एवं मानवतावादी कार्यों तथा आपदा राहत में सक्रियता से भाग लिया है । हमने युद्धग्रस्त क्षेत्रों में अभियान चलाए हैं एवं न सिर्फ भारतीयों बल्कि अन्यान्य देशों के नागरिकों की जान बचाई है । हम विकासशील देशों की भौतिक तथा सामाजिक अवसंरचना के विकास में सहायता करने वाले अपनेसिद्धांत पर चलते हुएअन्य देशों के एक सक्रिय तथा विकास कार्यों में साझा तौर पर चलने वाले साझीदार हैं । इन प्रयासों के माध्यम से मेरी सरकार ने महाद्वीपों में नवीन सम्पर्क एवं नयी साझेदारियां विकसित की हैं । पूर्वी एशियाई परिदृश्य में हमने एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत कोरिया गणराज्य समेत क्षेत्र के देशों के साथ अपने सम्पर्कों को पुनः परिभाषित किया है । मैं हमारे रवैये की आवाज़ अध्यक्ष मून की नयी सदर्न नीति में होने की बात सुनकरप्रसन्न हूं ।


मित्रो,


भारत लंबे संमय से शांति की भूमि रहा है । भारत के लोगों ने हज़ारों वर्षों से शांति एवं समरसतापूर्ण सह-अस्तित्व का पालन किया है । भारत को सैंकड़ों भाषाओं एवं बोलियों, अनेक प्रदेशों, एवं बड़े धर्मों के साथ विश्व का सर्वाधिक विविधतापूर्ण देश होने का गर्व है । हमें इसका गर्व है कि हमारी वह भूमि है जहां सभी विचारधाराएं, विश्वास एवं समुदाय सुखपूर्वक रह सकते हैं । हमें इसका गर्व है कि हमारा समाज न सिर्फ सहिष्णुता पर बल्कि वैभिन्य एवं विविध संस्कृतियों के उत्सव पर आधारित है ।


मित्रो,


कोरिया की तरह भारत ने भी सीमा पार संघर्ष का दर्द सहा है । शांतिपूर्ण घटनाओं के लिये हमारे प्रयास अक्सर सीमापार आतंकवाद द्वारा पटरी से उतारे गए हैं । जबकि भारत पिछले 40 वर्षों से भी अधिक समय से सीमापार आतंकवाद का पीड़ित है, सभी देश सीमाओं का सम्मान न करने वाले इस गंभीर ख़तरे का सामना करते हैं ।मानवता में विश्वास रखने वाले सभी लोगों के लिये समय आ गया है कि तमाम आतंकवादी नेटवर्क ध्वस्त करने एवं उनके धन के स्रोत, आपूर्ति के माध्यम एवं आतंकवादी दर्शन एवं दुष्प्रचार का सफाया करने के लिये हाथ मिलाएं । केवल यही कर हम नफ़रत को समरसता से; विनाश को विकास से परिवर्तित कर सकते हैं, एवं हिंसा व प्रतिहिंसा के परिदृश्य को शांति के स्थलमें रूपांतरित कर सकते हैं ।


मित्रो,


कोरियाई प्रायद्वीप में पिछले वर्ष के दौरान शांति के लिये हुई प्रगति हृदय को छू लेने वाली है ।डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डी.पी.आर.के.) एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के मध्य परस्पर अविश्वास एवं संदेह की परिपाटी पर पार पाने तथा दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर लाने में निभाई गई भूमिका के लियेअध्यक्ष मून ढेर सारी प्रशंसा के पात्र हैं । यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है । मैं दोनों कोरिया देशों के मध्य तथा संयुक्त राज्य अमेरिका व डी.पी.आर.के. के बीच जारी वार्ता प्रक्रिया को दोबारा अपनी सरकार का पूरा समर्थन देता हूं ।


जैसा कि लोक प्रचलित कोरियाई कहावत कहती हैः


Shichagi Bhanida,


“एक अच्छी शुरुआत युद्ध में आधी कामयाबी है ।”

मुझे इसका निरंतर विश्वास है कि कोरियाई लोगों के निरंतर प्रयासों से कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित होगी । मित्रों मैं 1988 के ओलम्पिक गान का एक भाग रखकर अपनी बात समाप्त करना चाहता हूं, क्योंकि यह सटीकता से हम सभी के लिये एक श्रेष्ठ कल की भावना को अभिव्यक्त करता है: हैण्ड इन हैण्ड, वी शैल स्टैण्ड ऑल अक्रॉस द लैण्ड, वी कैन मेक दिस वर्ल्ड, अ बेटर प्लेस टू लिव ।


Gamsa Hamnida !


धन्यवाद ।

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद ।

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आर.के.मीणा/एएम/एबी

 



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