• Skip to Content
  • Sitemap
  • Advance Search
Others

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

Posted On: 13 DEC 2021 16:18 PM

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

(कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय)

13 दिसंबर, 2021

नई दिल्ली...        

हमारी सरकार किसानों के हित में काम करती रही है और आगे भी करती रहेगी। जीरो बजट खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फसलों के पैटर्न में वैज्ञानिक आधार पर बदलाव करने तथा एमएसपी को अधिक प्रभावी व पारदर्शी बनाने जैसे मामलों पर निर्णय लेने के लिए एक समिति गठित की जाएगी।"         

  -प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

                                                                         (19 नवंबर, 2021)

भूमिका

जीरो बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ)[1] का अर्थ है- उर्वरक, कीटनाशक या किसी अन्य बाहरी सामग्री का उपयोग किए बिना फसल उगाना। जीरो बजट, सभी फसलों के उत्पादन की शून्य लागत को दर्शाता है। जेडबीएनएफ, किसानों को सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए उनका मार्गदर्शन करता है, मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है, रसायन-मुक्त कृषि के साथ उत्पादन की कम लागत (शून्य लागत) सुनिश्चित करता है और इस प्रकार किसानों की आय में वृद्धि करता है।

संक्षेप में, जेडबीएनएफ, एक कृषि पद्धति है, जो प्रकृति के तालमेल से फसल उगाने में विश्वास करती है।

इस अवधारणा को कृषि विज्ञानी और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित सुभाष पालेकर ने 1990 मध्य के दशक में बढ़ावा दिया था, जिसे रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और गहन सिंचाई द्वारा संचालित हरित क्रांति के तरीकों के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।

सरकार, परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है, जो जीरो बजट प्राकृतिक खेती समेत सभी प्रकार की रसायन-मुक्त कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहित करती है।[2]

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 11 दिसंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में सरयूनहर राष्ट्रीय परियोजना का उद्घाटन करते हुए देशभर के किसानों को प्राकृतिक खेती और जीरो बजट खेती के बारे में 16 दिसंबर 2021 को आयोजित होने वाले मेगा आयोजन के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने किसानों से टीवी या कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से इस कार्यक्रम में शामिल होने का आग्रह किया है। [3]

आवश्यकता

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 50 प्रतिशत से अधिक किसान उर्वरक और रासायनिक कीटनाशकों जैसे कृषि इनपुट की बढ़ती लागत के कारण कर्ज में हैं।

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, कृषि व्यय को कम करने और जेडबीएनएफ जैसी प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है, ताकि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों जैसे बाहरी इनपुट पर किसानों की निर्भरता कम हो सके।

जीरो बजट कृषि मॉडल, खेती के खर्च को काफी हद तक कम करता है और कृषि ऋण पर निर्भरता को समाप्त करता है। यह खरीदे गए इनपुट पर निर्भरता को भी कम करता है, क्योंकि यह अपने उगाये बीजों और स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है तथा खेती, प्रकृति के साथ तालमेल में की जाती है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती के सिद्धांत

कोई बाहरी इनपुट नहीं

• 365 दिन फसलों (जीवित जड़) से ढंकी मिट्टी

मिट्टी को न्यूनतम नुकसान

आवश्यक उत्प्रेरक के रूप में जैविक शक्तिवर्धक

स्वदेशी बीज का प्रयोग

मिश्रित फसल

खेत के साथ पेड़ों का एकीकरण करना

जल और नमी संरक्षण

पशुओं को खेती से जोड़ना

मिट्टी पर जैविक अवशेष में वृद्धि करना 

वनस्पति-अर्क के माध्यम से कीट प्रबंधन

कोई सिंथेटिक उर्वरक, कीटनाशक, शाकनाशी नहीं

लाभ[4]

"आंध्र प्रदेश में जेडबीएनएफ और गैर-जेडबीएनएफ के जीवन चक्र का आकलन" विषय पर हुए एक अध्ययन में निम्नलिखित लाभ बताए गए हैं:

सभी चयनित फसलों के लिए जेडबीएनएफ प्रक्रियाओं में 50-60 प्रतिशत कम पानी और कम बिजली की आवश्यकता होती है। (गैर- जेडबीएनएफ की तुलना में)

जेडबीएनएफ विभिन्न वायु-संचरण के माध्यम से मीथेन उत्सर्जन को काफी कम करता है। घास-पात से ढंकने का अभ्यास करने से, इसमें फसल अवशेषों को जलाने की भी जरूरत नहीं होती है।

जेडबीएनएफ में खेती की लागत कम है।     

जेडबीएनएफ के चार मुख्य तत्व और मॉडल

  1. बीजामृत :

देसी प्रजाति की गाय के गोबर और गोमूत्र का प्रयोग कर तैयार किए गए घोल से बीजों को उपचारित किया जाता है।

लाभ : खेत में बोए गए बीज फफूंद और अन्य बीज जनित/मिट्टी जनित रोगों से प्रभावित हो सकते हैं। बीजामृत के प्रयोग से उपचारित करने पर बीज की रोगों से रक्षा होती है।

  1. जीवामृत/जीवामृथा :

जीवामृत गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार किया जाता है। इसका उपयोग पौधों के लिए शक्ति के रूप में किया जाता है। यह एक किण्वित माइक्रोबियल कल्चर है जो गाय के गोबर, मूत्र, गुड़, दाल के आटे और प्रदूषण रहित मिट्टी के मिश्रण से प्राप्त होता है। यह किण्वित माइक्रोबियल कल्चर जब मिट्टी में लगाया जाता है तो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों और केंचुओं की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। इसके अलावा अलावा मिट्टी में पोषक तत्व को बढ़ाता है।

लाभ : इस प्रकार की खेती मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणु गतिविधि और पौधों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाती है, फसलों को मिट्टी के रोगों से बचाती है और मिट्टी की कार्बन सामग्री को बढ़ाती है।

  1. आच्छादन/मल्चिंग :

आच्छादन फसल के कचरे/जैविक कचरे या फसलों के साथ ऊपरी मिट्टी को बचाने करने की प्रक्रिया है।

लाभ : मल्चिंग सामग्री को विघटित करती है और सड़ी पत्तियों की मिट्टी को उत्पन्न करती है जो ऊपरी मिट्टी को संरक्षित करती है, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है। वाष्पीकरण हानि को कम करती है। मिट्टी के पोषक तत्वों को समृद्ध करने और खरपतवार वृद्धि को नियंत्रित करने के अलावा मिट्टी के जीवों को बढ़ाती है।

  1. वाफसा/नमी (मिट्टी का वायु मिश्रण)

पौधों की वृद्धि और विकास के लिए मिट्टी में अच्छे वायु मिश्रण की आवश्यकता होती है।

लाभ : जीवामृत और आच्छादन के उपयोग से मिट्टी का वायु मिश्रण बढ़ता है। इस प्रकार खाद की मात्रा, पानी की उपलब्धता, जल धारण क्षमता और मिट्टी की संरचना में सुधार होता है जो विशेष रूप से सूखे की अवधि के दौरान फसल की वृद्धि के लिए सबसे उपयुक्त होता है।

अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें

जीरो बजट प्राकृतिक खेती - क्रॉपिंग मॉडल

यह मॉडल बहुफसलों को उगाने पर आधारित है यानी कम अवधि एवं लंबी अवधि की फसलों (मुख्य फसल) को एक साथ उगाना ताकि मुख्य फसलों को उगाने की लागत कम अवधि की फसलों से पैदा होने वाली आय से प्राप्त की जा सके जिसके परिणामस्वरूप मुख्य फसल की खेती में लगा व्यय "शून्य" हो। इसलिए इस कृषि मॉडल के लिए "जीरो बजट प्राकृतिक कृषि" की शब्दावली का उपयोग किया जाता है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती पर प्रायोगिक अध्ययन [5]

भारतीय कृषि अऩुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने आईसीएआर-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के माध्यम से रबी सीजन 2017 में चार स्थानों यानी मोदीपुरम (यूपी), पंतनगर (उत्तराखंड), लुधियाना (पंजाब) एवं कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में बासमती/मोटा चावल-गेहूं प्रणाली में जीरो बजट प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के आकलन से संबंधित एक अध्ययन शुरू किया।

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) ने भी अगस्त 2019 में जीरो बजट प्राकृतिक खेती के बारे में विचार-मंथन का एक सत्र आयोजित किया था।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती का अनुसरण करने वाले कुछ राज्य[6]

कर्नाटक ने संबंधित राजकीय कृषि/बागवानी विश्वविद्यालयों के माध्यम से राज्य के 10 कृषि जलवायु क्षेत्रों में से प्रत्येक में 2000 हेक्टेयर के क्षेत्र में प्रायोगिक आधार पर जीरो बजट प्राकृतिक खेती के कार्यान्वयन की शुरुआत किसानों के खेतों और संबंधित विश्वविद्यालयों के अनुसंधान केन्द्रों में प्रदर्शनों/वैज्ञानिक प्रयोगात्मक परीक्षणों के रूप में की है।

हिमाचल प्रदेश मई, 2018 से राज्य द्वारा वित्त पोषित योजना प्राकृतिक खेती-खुश किसान' लागू कर रहा है, जिसका विवरण इस प्रकार है:

2018-19: 2669 किसान; क्षेत्रफल - 357 हेक्टेयर

2019-20: 19936 किसान; क्षेत्रफल - 1155 हेक्टेयर

राज्य द्वारा किए गए अध्ययनों के निष्कर्षों से जीरो बजट प्राकृतिक खेती अभ्यास की वजह से एकल फसल के सीजन में मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार का संकेत मिला और जैविक खेती एवं पारंपरिक खेती की तुलना में जीरो बजट प्राकृतिक खेती प्रणाली में आक्रामक लीफ माइनर की घटनाएं काफी कम दिखाई दीं।

केरल - जीरो बजट प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों की रुचि को बढ़ाने के उद्देश्य से जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।

आंध्र प्रदेश - आंध्र प्रदेश ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत सितंबर 2015 में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि का शुभारंभ किया। रायथु साधिका संस्था (आरवाईएसएस), आंध्र प्रदेश सरकार यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग, यूनाइटेड किंगडम, वर्ल्ड एग्रो फॉरेस्ट्री सेंटर, नैरोबी, एफएओ एवं सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, हैदराबाद जैसे एनजीओ/सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से जीरो बजट प्राकृतिक खेती के बारे में वैज्ञानिक साक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयोग कर रही है।

केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत जैविक खेती और जीरो बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) को प्रोत्साहन और समर्थन दे रही है। [7]

कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग/भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (डीएआरई/आईसीएआर) अपनी नेटवर्क प्रॉजेक्ट ऑन ऑर्गेनिक फार्मिंग (एनपीओएफ)नामक योजना के जरिये 20 केंद्रों पर अनुसंधान कर रहे हैं। ये केंद्र 16 राज्यों में फैले हुए हैं। इसका उद्देश्य है फसलों और फसल की प्रणालियों को मद्देनजर रखते हुए स्थान-विशेष में जैविक खेती पैकेज को विकसित करना। इस तरह 51 फसलों/फसल की प्रणालियों के लिये जैविक खेती पैकेज को विकसित किया गया है, ताकि देश में क्रियान्वित की जाने वाली सरकारी विभागों की योजनाओं को तकनीकी सहायता मिल सके।

सतत कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम), परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) का एक उप-घटक है, जो सहभागी प्रत्याभूति प्रणाली (पीजीएस) द्वारा प्रमाणन के साथ समूह-आधारित जैविक खेती को प्रोत्साहन देता है। समूह-निर्माण, प्रशिक्षण, प्रमाणन और विपणन को योजना के तहत मदद दी जाती है। तीन वर्षों के लिये प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें से 62 प्रतिशत, यानी 31 हजार रुपये जैविक सामग्रियों के इस्तेमाल के लिये किसानों को प्रोत्साहन राशि दी जाती है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडी-एनईआर), तीसरे पक्ष द्वारा प्रमाणित जैविक खेती को प्रोत्साहन देता है, जो पूर्वोत्तर की मुख्य फसलों के सम्बन्ध में है। यह प्रोत्साहन किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के जरिये दिया जाता है और इसका पूरा ध्यान निर्यात केंद्रित होता है। किसानों को जैविक खेती सामग्रियों के लिये तीन वर्षों के दौरान प्रति हेक्टेयर 25 हजार रुपये की सहायता दी जाती है, जिसमें जैविक खाद और जैव-उर्वरक आदि शामिल हैं। एफपीओ के गठन को सहायता देने, क्षमता निर्माण, फसल कटाई के बाद की अवसंरचना के लिये दो करोड़ रुपये तक की सहायता योजना के तहत प्रदान की जाती है।

राज्य सरकारें/सरकारी एजेंसियां मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना के तहत पूंजी निवेश सब्सिडी योजना (सीआईएसएस) के जरिये 100 प्रतिशत सहायता प्रदान करती हैं। यह सहायता यंत्रचालित फल/सब्जी बाजार स्थापित करने तथा अपशिष्ट/कृषि अपशिष्ट कम्पोस्ट खाद संयंत्र को दी जाती है। इन संयंत्रों को 190 लाख/यूनिट तक की सहायता दी जाती है, जिनकी क्षमता तीन हजार टन/प्रतिवर्ष कम्पोस्ट बनाने की क्षमता हो। इसी तरह व्यक्तियों/निजी एजेंसियों को लागत की 33 प्रतिशत तक सहायता दी जाती है, जिसकी सीमा इस उद्देश्य के मद्देनजर 63 लाख रुपये/प्रति इकाई पूंजी निवेश तक की है।

आत्मनिर्भर भारत की कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) के तहत राज्य एजेंसियों, प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटियों, किसान उत्पादक संगठनों, उद्यमियों आदि को जैविक खेती सामग्रियों के उत्पादन के संयंत्र लगाने, सामुदायिक खेती परिसम्पत्तियों और जैविक उत्पादों के मूल्य संवर्धन के लिये फसल कटाई के बाद की अवसंरचना स्थापित करने के लिये वित्तीय सहायता दी जाती है।

जैविक खेती सामग्रियों के इस्तेमाल के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके किसानों को प्रोत्साहन दिया जाता है। यह सहायता कई योजनाओं के जरिये दी जाती है। उदाहरण के लिए, नेशनल मिशन ऑन ऑयलसीड्स एंड पॉम ऑयल तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैविक खेती सामग्रियों के लिये प्रति हेक्टेयर तीन सौ रुपये के आधार पर 50 प्रतिशत सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता देते हैं।

आगे का रास्ता [8]

जेडबीएनएफ प्रणाली के अग्रणी प्रोत्साहकों में नीति आयोग शामिल है।

जेडबीएनएफ को आगे सार्वजनिक वित्तीय सहायता देने की आवश्यकता के मद्देनजर आंध्र प्रदेश सरकार के अनुभवों का नजदीकी मूल्यांकन किया जा रहा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी जेडबीएनएफ प्रणाली का अध्ययन कर रहा है। भारत के कुछ हिस्सों में बासमती और गेहूं उगाने वाले किसान इस प्रणाली का इस्तेमाल कर रहे हैं। उत्पादकता, आर्थिक स्थिति और मृदा जैविक कार्बन तथा मृदा उर्वरकता के हवाले से मृदा स्वास्थ्य का विश्लेषण किया जा रहा है।

अगर निष्कर्ष सकारात्मक निकलते हैं, तो किसान समुदाय में प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने के लिये एक संस्थागत प्रणाली की आवश्यकता होगी।

संदर्भः

ट्वीटः

अन्य महत्वपूर्ण लिंकः

Paper on Zero Budget Natural Farming: https://ncds.nic.in/sites/default/files/WorkingandOccasionalPapers/WP70NCDS.pdf

PM Modi’s address to the Nation on November 19, 2021: https://www.youtube.com/watch?v=_9HlVpKYhRI

English rendering of PM’s address to the Nationon November 19, 2021: https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1773162

***

एमजी/एएम/जेके/आरकेजे/आर/एकेपी/एसके

[1]https://sbi.co.in/documents/2182813/4777159/ZERO+BUDGET+NATURAL+FARMING+KISAN+WORLD.pdf

[2]https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1592265

[3]https://www.pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1780489

[4]https://vikaspedia.in/agriculture/best-practices/sustainable-agriculture/climate-smart-agriculture/zero-budget-natural-farming-in-andhra-pradesh

[5]https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1592265

[6]https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1593123

[7]https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1739600

[8]https://sbi.co.in/documents/2182813/4777159/ZERO+BUDGET+NATURAL+FARMING+KISAN+WORLD.pdf

 

(Factsheet ID: 148587) Visitor Counter : 68


Provide suggestions / comments
Link mygov.in
National Portal Of India
STQC Certificate