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लोकसभा द्वारा पहले ही पारित किए जा चुके शांति विधेयक 2025 को अब राज्यसभा ने भी पारित किया


शांति विधेयक के अंतर्गत सामरिक सामग्रियों, प्रयुक्त ईंधन तथा परमाणु सुरक्षा पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण बना रहेगा और इन विषयों पर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा: डॉ. जितेंद्र सिंह

अस्पतालों से लेकर खेतों तक और कैंसर के इलाज तक: परमाणु विज्ञान भारत के रोजमर्रा के जीवन को गति दे रहा है, डॉ. जितेंद्र सिंह का कथन

प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों के नए द्वार खुलेंगे, साथ ही सुरक्षा, संप्रभुता और जनहित की पूर्ण रक्षा सुनिश्चित की जाएगी

राज्यसभा में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा - भारतीय परमाणु संयंत्रों में विकिरण का स्तर वैश्विक मानकों से काफी नीचे है और इससे कैंसर का कोई खतरा नहीं है

प्रविष्टि तिथि: 18 DEC 2025 7:45PM by PIB Delhi

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा व अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज राज्यसभा में एक विस्तृत चर्चा में भाग लिया। यह बहस 'भारत के रूपांतरण के लिए परमाणु ऊर्जा के सतत दोहन और विकास (शांति) विधेयक, 2025' विधेयक पर हुई, जिसको लोकसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है। उन्होंने चर्चा के दौरान विधेयक के प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट किया, सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं का समाधान किया और दृढ़ता से कहा कि परमाणु सुरक्षा, राष्ट्रीय संप्रभुता एवं सार्वजनिक जवाबदेही से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि यह विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व (सीएलएनडी) अधिनियम के प्रावधानों को समेकित एवं तर्कसंगत बनाता है। इसके साथ ही, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है, जिससे वह मूल कानून का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इससे नियामक निगरानी कमजोर नहीं, बल्कि और अधिक सशक्त होती है। यह परमाणु प्रशासन में वैश्विक स्तर की सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को अपनाने के लिए भारत की दृढ़ वचनबद्धता को दर्शाता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बदलते वैश्विक और तकनीकी परिदृश्य का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2010 में परमाणु सुधारों को लेकर व्यक्त की गई आपत्तियों का मूल्यांकन आज की बदली हुई वास्तविकताओं के संदर्भ में किया जाना चाहिए। उन्होंने उल्लेख किया कि इस अवधि में प्रौद्योगिकी, सुरक्षा प्रणालियों और वैश्विक ऊर्जा आवश्यकताओं में अभूतपूर्व परिवर्तन आए हैं। डॉ. सिंह ने कहा कि लघु मॉड्यूलर रिएक्टर और भारत लघु रिएक्टर जैसी अवधारणाएं पंद्रह वर्ष पूर्व अकल्पनीय थीं, किंतु आज ये स्वच्छ, सुरक्षित, दक्ष व लचीले समाधान के रूप में उभर रही हैं।

केंद्रीय मंत्री ने सुरक्षा संबंधी आशंकाओं का समाधान करते हुए स्पष्ट किया कि परमाणु सुरक्षा मानक पूरी तरह अपरिवर्तित एवं अक्षुण्ण हैं और वे 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम में निहित उन्हीं कठोर सिद्धांतों —‘पहले सुरक्षा, बाद में उत्पादन’ द्वारा संचालित होते हैं। उन्होंने बताया कि परमाणु संयंत्रों में निर्माण चरण के दौरान त्रैमासिक निरीक्षण, संचालन अवधि में द्विवार्षिक निरीक्षण तथा प्रत्येक पांच वर्ष में लाइसेंस का नवीनीकरण अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, अब वैधानिक दर्जा प्राप्त परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को विस्तारित शक्तियां प्रदान की गई हैं और निगरानी व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के मानकों के अनुरूप है। डॉ. सिंह ने सदन को यह भी आश्वस्त किया कि भारत के परमाणु संयंत्र भूकंपीय फॉल्ट क्षेत्रों से दूर स्थित हैं और भारतीय रिएक्टरों में विकिरण का स्तर निर्धारित वैश्विक सुरक्षा सीमाओं से कई गुना नीचे है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने जन-स्वास्थ्य से जुड़ी आशंकाओं का समाधान करते हुए स्पष्ट किया कि भारतीय परमाणु रिएक्टरों से कैंसर होने का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। उन्होंने सूक्ष्म-सीवर्ट में विकिरण उत्सर्जन के प्रामाणिक आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया कि कुडनकुलम, कलपक्कम, रावतभाटा और तारापुर जैसे परमाणु संयंत्रों में विकिरण स्तर निर्धारित अनुमेय सीमाओं से काफी नीचे है। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत ने परमाणु क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को अत्यधिक सुदृढ़ किया है। इसमें उन्नत एन्क्रिप्शन, सुरक्षित कोडिंग, नियमित साइबर ऑडिट, मैलवेयर फिल्टरिंग और बहु-स्तरीय डिजिटल सुरक्षा तंत्र शामिल हैं, जो आधुनिक एवं उभरते खतरों से निपटने के लिए देश की पूर्ण तैयारियों को दर्शाते हैं।

केंद्रीय मंत्री ने निजीकरण को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर किया और कहा कि अन्वेषण गतिविधियों में सीमित एवं सशर्त रूप से निजी भागीदारी की अनुमति दी जा सकती है, किंतु निर्धारित सीमा से अधिक यूरेनियम खनन का अधिकार पूर्णतः सरकार के पास ही सुरक्षित रहेगा। इसी प्रकार, प्रयुक्त परमाणु ईंधन का प्रबंधन सदैव सरकारी नियंत्रण तथा निगरानी में रहेगा, जिसके लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित दीर्घकालिक भंडारण व संचालन प्रोटोकॉल का कठोरता से पालन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि स्रोत सामग्री, विखंडनीय पदार्थ और भारी जल जैसी सभी सामरिक सामग्रियों पर सरकार का सख्त व अप्रत्याशित नियंत्रण बना रहेगा।

दायित्व एवं मुआवजे के प्रश्न पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि विधेयक में छोटे निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से श्रेणीबद्ध दायित्व सीमाएं निर्धारित की गई हैं, जबकि इससे पीड़ितों को प्रदान किए जाने वाले मुआवजे में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आएगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि किसी दुर्घटना से होने वाला नुकसान ऑपरेटर की निर्धारित दायित्व सीमा से अधिक होता है, तो सरकार सहायता प्राप्त निधियों व अंतरराष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से पूर्ण और प्रभावी मुआवजा सुनिश्चित किया जाएगा। इसके साथ ही, ‘परमाणु क्षति’ की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें पर्यावरणीय क्षति को भी स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।

केंद्रीय मंत्री ने परमाणु ऊर्जा निवारण आयोग की स्थापना का उल्लेख करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य नागरिकों के दीवानी अदालतों या उच्च न्यायालयों तक पहुंच के अधिकार को सीमित किए बिना, विवादों के समाधान हेतु एक अतिरिक्त, त्वरित तथा प्रभावी मंच उपलब्ध कराना है। उन्होंने इस धारणा को स्पष्ट रूप से खारिज किया कि यह विधेयक परमाणु मामलों को न्यायिक समीक्षा या जांच के दायरे से बाहर रखता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने संप्रभुता और विदेशी प्रभाव से जुड़ी आशंकाओं को भी दूर किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत केवल उन्हीं अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को अपनाएगा, जो देश की विशिष्ट परिस्थितियों एवं हितों के अनुरूप हों। इस प्रक्रिया में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, राष्ट्रीय हितों या पारंपरिक शक्तियों से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने दोहराया कि ‘शांति’ विधेयक पूरी तरह नागरिक परमाणु ऊर्जा के उपयोग तक सीमित है, जिसमें यूरेनियम संवर्धन का स्तर केवल रिएक्टर की आवश्यकताओं के अनुरूप रहेगा और इसका किसी भी प्रकार की हथियार-स्तरीय गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्वास्थ्य सेवा, कृषि, खाद्य संरक्षण व कैंसर उपचार में परमाणु विज्ञान की बढ़ती भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने टाटा मेमोरियल सेंटर जैसे संस्थानों के माध्यम से बचपन के ल्यूकेमिया और प्रोस्टेट कैंसर के उपचार में परमाणु चिकित्सा में हुई प्रगति का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसंधान में व्यापक भागीदारी से इन सभी क्षेत्रों में नवाचार को तेजी मिलेगी।

केंद्रीय मंत्री ने भारत के दीर्घकालिक परमाणु ऊर्जा रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि देश ने पहले ही लगभग 9 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली है। उन्होंने जानकारी दी है कि साल 2032 तक इसे 22 गीगावाट, 2037 तक 47 गीगावाट, 2042 तक 67 गीगावाट और 2047 तक 100 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य है, जो भारत की कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 10% पूरा करेगा। श्री सिंह ने यह भी कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल अवसंरचना द्वारा संचालित भविष्य की ऊर्जा मांगों को पूरा करने में परमाणु ऊर्जा अपरिहार्य होगी, क्योंकि यह अनियमित ऊर्जा स्रोतों के विपरीत, चौबीसों घंटे विश्वसनीय तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन के समापन पर कहा कि शांति विधेयक वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में भारत के आत्मविश्वास, वैज्ञानिक परिपक्वता और जिम्मेदारी से युक्त नेतृत्व की तत्परता को दर्शाता है। उन्होंने सदस्यों को आश्वस्त किया कि सरकार रचनात्मक सुझावों के लिए हमेशा स्वागत करती है और नियम निर्माण की प्रक्रिया में हितधारकों के साथ लगातार संवाद करती रहेगी। केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की परमाणु ऊर्जा यात्रा हमेशा सुरक्षा, पारदर्शिता और राष्ट्रीय हित के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगी।

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पीके/केसी/एनके


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