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कुशल कार्यबल में वृद्धि और लघु उद्यमों की उत्पादकता में सुधार से भारत में रोजगार में उल्लेखनीय वृद्धि संभव: एनसीएईआर रिपोर्ट


श्रम-केंद्रित विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को दृढ़ करने से जीडीपी की 8 प्रतिशत वृद्धि को बनाए रखने में मदद मिलेगी

ऋण सुविधा में 1 प्रतिशत की वृद्धि भी नियोजित श्रमिकों की अपेक्षित संख्या में 45 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर सकती है

प्रविष्टि तिथि: 12 DEC 2025 12:43PM by PIB Delhi

नेशनल कॉंसिल ऑफ एप्‍लायड इकॉनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के उपाध्यक्ष मनीष सभरवाल ने 11 दिसंबर, 2025 को "भारत में रोजगार की संभावनाएं: रोजगार के रास्ते" शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की। एनसीएईआर की प्रोफेसर फरज़ाना अफरीदी और उनकी शोधकर्ताओं की टीम द्वारा लिखित यह रिपोर्ट देश में रोजगार सृजन के प्रमुख कारकों के रूप में कौशल विकास और लघु उद्यमों की भूमिका पर बल देती है। एनसीएईआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यबल की गुणवत्ता और मात्रा तथा श्रम उत्पादकता बढ़ाने में आने वाली बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से स्वरोजगार में बढ़ोतरी के कारण हुई है, जबकि कुशल श्रम बल की ओर बदलाव की प्रक्रिया धीमी रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि श्रम प्रधान विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को सुदृढ़ करने से जीडीपी की वृद्धि दर को लगभग 8 प्रतिशत पर बनाए रखने में मदद मिल सकती है, जो विकसित भारत के विजन के अनुरूप है।

एनसीएईआर के उपाध्यक्ष मनीष सभरवाल ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, "भारत विश्‍व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है , और यद्यपि इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी वर्तमान में 128वें स्थान पर है, यह रिपोर्ट रोजगार और समावेशी विकास को प्राथमिकता देने के बहुमूल्य अवसरों को रेखांकित करती है।"

प्रोफेसर अफरीदी ने कहा, भारत में स्वरोजगार की प्रधानता उद्यमशीलता की गतिशीलता के बजाय आर्थिक आवश्यकता के कारण है। छोटे किसानों की तरह, अधिकांश लघु उद्यम निर्वाह स्तर पर ही काम करते हैं। भारत को इस वास्तविकता का सामना करना होगा कि उसका रोजगार भविष्य उसके सबसे छोटे उद्यमों की उत्पादकता से जुड़ा है। मुख्य चुनौती यह है कि गैर-पंजीकृत घरेलू उद्यम पूंजी, उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के निम्‍न स्‍तरों के साथ प्रचालन करते हैं।

उन्‍होंने कहा, डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने वाले उद्यम, तकनीक का उपयोग न करने वाले उद्यमों की तुलना में 78 प्रतिशत अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं। यहां तक ​​कि ऋण सुविधा में 1 प्रतिशत की वृद्धि से भी नियुक्त किए जाने वाले कर्मचारियों की अपेक्षित संख्या में 45 प्रतिशत की वृद्धि होती है।

विशिष्‍ट जनसांख्यिकीय लाभ के बावजूद रोजगार सृजन में बनी हुई चुनौतियों के संबंध में, रिपोर्ट में कहा गया है आपूर्ति पक्ष पर, भारत के कार्यबल को कौशल विकास-विशेष रूप से नई प्रौद्योगिकियों और एआई के आगमन से अत्‍यधिक लाभ हो सकता है। रोजगार वृद्धि में-खासकर सेवा क्षेत्र में-मध्यम-कुशल रोजगारों का दबदबा है जबकि विनिर्माण क्षेत्र निम्‍न कौशल-आ‍धारित बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है, "औपचारिक कौशल विकास में निवेश के माध्यम से कुशल कार्यबल की हिस्सेदारी में 12 प्रतिशत अंकों की वृद्धि से 2030 तक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोजगार में 13 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो सकती है।"

अध्ययन में किए गए सिमुलेशन से पता चलता है कि मध्यम वृद्धि परिदृश्य के तहत औपचारिक रूप से कुशल कार्यबल को बढ़ाने से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रोजगार सृजन हो सकता है। इसमें कहा गया है, "कुशल कार्यबल की हिस्सेदारी में 9 प्रतिशत अंकों की वृद्धि से 2030 तक 93 लाख रोजगार सृजित हो सकते हैं।"

रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए, एनसीएईआर के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. जीसी मन्ना ने कहा कि यह रिपोर्ट रोजगार वृद्धि को गति देने की प्रबल क्षमता वाले प्रमुख सेक्‍टरों को रेखांकित करती है।

औद्योगिक विकास अध्ययन संस्थान के विजिटिंग प्रोफेसर आदित्य भट्टाचार्य ने कहा, "यह रिपोर्ट भारत को अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में रखती है और उन क्षेत्रों को उजागर करती है जहां देश के पास सुधार और वैश्विक मानकों के साथ मजबूत तालमेल बिठाने के अनूठे अवसर हैं।"

रिपोर्ट में अंतर-क्षेत्रीय संबंधों के गुणक प्रभावों का आकलन करते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि विनिर्माण और सेवाओं के भीतर अपेक्षाकृत अधिक श्रम-प्रधान उप-क्षेत्रों के सकल उत्पादन (जीओ) में मध्यम वृद्धि से 2030 तक कई गुना रोजगार सृजन होगा। विनिर्माण में वस्त्र, परिधान और संबंधित उद्योगों में 53 प्रतिशत और व्यापार, होटल और संबंधित सेवाओं में 79 प्रतिशत अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है।

यह रिपोर्ट विशिष्ट सेक्‍टरों में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए लक्षित उपायों की अनुशंसा करती है। विनिर्माण क्षेत्र में, उत्पादन-संबंधी प्रोत्साहनों को वस्त्र, परिधान, जूते और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों की ओर पुनर्निर्देशित करने से रोजगार सृजन में वृद्धि हो सकती है। सेवा क्षेत्र में, पर्यटन, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए नीतिगत सहायता से व्‍यापक स्‍तर पर समावेशी रोजगार सृजित किया जा सकता है।

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पीके/केसी/एसकेजे/ओपी

 


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