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राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन


भारत के खाद्य तेल इकोसिस्‍टम को मजबूती प्रदान करना

प्रविष्टि तिथि: 08 DEC 2025 1:22PM by PIB Delhi

मुख्‍य विशेषताएं

  • नीति आयोग की एक रिपोर्ट (अगस्त 2024) के अनुसार, भारत चावल की भूसी के तेल, अरंडी के बीज, कुसुम, तिल और नाइजर के उत्पादन में विश्व स्तर पर प्रथम स्थान पर है।
  • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) का उद्देश्य देश के तिलहन इकोसिस्‍टम को मजबूत करना और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।
  • एनएमईओ-ओपी (ऑयल पाम) का लक्ष्य 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कच्‍चे पाम ऑयल की खेती के अंतर्गत लाना और 2029-30 तक कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन 28 लाख टन तक बढ़ाना है।
  • नवंबर 2025 तक, 2.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जा चुका है, जिससे देश में पाम ऑयल का कुल कवरेज 6.20 लाख हेक्टेयर हो गया है। कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) का उत्पादन 2014-15 में 1.91 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 3.80 लाख टन हो गया है।
  • एनएमईओ-ओएस (तिलहन) का लक्ष्य क्लस्टर-आधारित हस्तक्षेपों और उन्नत बीज प्रणालियों के माध्यम से 2030-31 तक तिलहन उत्पादन को 39 मिलियन टन से बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन करना है।

 

परिचय और क्षेत्र अवलोकन/पृष्ठभूमि

खाद्य तेल भारत की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा का एक अनिवार्य घटक हैं, और तिलहन लाखों किसानों की आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये आहारीय वसा, ऊर्जा और वसा में घुलनशील विटामिनों का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो विशेष रूप से वंचित और कुपोषित आबादी की छिपी हुई भूख से लड़ने और कैलोरी में सुधार करने में मदद करते हैं। तिलहन न केवल पोषण सुरक्षा में बल्कि किसानों के कल्याण में भी योगदान देकर एक महत्वपूर्ण नकदी फसल के रूप में कार्य करते हैं जो ग्रामीण आय और रोजगार को बनाए रखती है।

इस दोहरे महत्व के बावजूद, देश में खाद्य तेलों की बढ़ती माँग ने घरेलू उत्पादन को पीछे छोड़ दिया है। भारत में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति घरेलू खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2004-05 में ग्रामीण क्षेत्रों में 5.76 किलोग्राम/वर्ष और शहरी क्षेत्रों में 7.92 किलोग्राम/वर्ष से बढ़कर 2022-23 में क्रमशः 10.58 किलोग्राम/वर्ष और 11.78 किलोग्राम/वर्ष हो गई है। यह इस अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में 83.68 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 48.74 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।

वर्ष 2023-24 के दौरान भारत का कुल खाद्य तेल उत्पादन 12.18 मिलियन टन दर्ज किया गया। देश आंतरिक उत्पादन के माध्यम से खाद्य तेलों की अपनी घरेलू मांग का केवल 44 प्रतिशत ही पूरा कर पाता है। दुनिया के सबसे बड़े तिलहन उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, भारत अपने खाद्य तेल घाटे को पूरा करने के लिए आयात पर काफी हद तक निर्भर है। उल्लेखनीय रूप से, खाद्य तेलों पर आयात निर्भरता 2015-16 के 63.2 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 56.25 प्रतिशत हो गई है, जो आत्मनिर्भरता में 36.8 प्रतिशत से 43.74 प्रतिशत तक मामूली सुधार को दर्शाती है। हालाँकि, यह प्रगति समग्र खपत में तीव्र वृद्धि से प्रभावित है, जो देश की खाद्य तेल आवश्यकता पर सार्थक दबाव डाल रही है।

भारत के खाद्य तेल इकोसिस्‍टम में बदलते रुझान

ऐतिहासिक रूप से, भारत ने 1990 के दशक में तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन (टीएमओ) के नेतृत्व में "पीली क्रांति" के दौरान आत्मनिर्भरता का एक चरण अनुभव किया। यह काफी हद तक सरकार की मूल्य समर्थन और आयात प्रतिस्थापन नीतियों के कारण संभव हुआ। हालाँकि, विभिन्न विश्व व्यापार संगठन समझौतों के कारण, आयात शुल्क और मूल्य समर्थन उपायों में काफी कमी आई या उन्हें वापस ले लिया गया। परिणामस्वरूप, प्रति व्यक्ति खपत घरेलू उत्पादन से अधिक गति से बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य तेल आयात में तीव्र वृद्धि हुई, जो 2023-24 में 15.66 मिलियन टन तक पहुँच गया, जो कुल घरेलू मांग का लगभग 56 प्रतिशत है। वैश्विक बाजारों पर यह निर्भरता न केवल विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है, बल्कि उपभोक्ताओं को अंतरराष्ट्रीय मूल्य में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति में व्यवधानों के प्रति भी संवेदनशील बनाती है।

वैश्विक स्तर पर, खाद्य तेल क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण सोयाबीन, पाम और रेपसीड तेलों का उत्पादन और सूरजमुखी के बीज के तेल उत्पादन में मध्यम वृद्धि है। इस वैश्विक परिदृश्य में भारत, अमेरिका, चीन और ब्राज़ील के बाद चौथा सबसे बड़ा देश है, जो वैश्विक तिलहन क्षेत्र का लगभग 15-20 प्रतिशत, कुल वनस्पति तेल उत्पादन का 6-7 प्रतिशत और वैश्विक खपत का 9-10 प्रतिशत योगदान देता है। हालाँकि, उपज में भारी अंतर और सीमित क्षेत्र विस्तार ने देश को अपनी बढ़ती खपत के स्तर तक पहुँचने से रोक दिया है।

यह निर्भरता आर्थिक स्थिरता और कृषि आत्मनिर्भरता दोनों के लिए चुनौतियां पेश करती है, जिसके कारण भारत सरकार ने देश के तिलहन इकोसिस्‍टम को मजबूत करने और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) शुरू किया है।

 

भारत का खाद्य तेल और तिलहन उत्पादन

नीति आयोग की रिपोर्ट “आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर खाद्य तेलों में वृद्धि को गति देने के लिए मार्ग और रणनीतियाँ” (28 अगस्त, 2024 को जारी) के अनुसार:

A list of oil and oil seeds

 

घरेलू स्तर पर, भारतीय कृषि में खाद्यान्नों के बाद तिलहनों का क्षेत्रफल और उत्पादन मूल्य दूसरे स्थान पर है। नौ प्रमुख तिलहन, मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड-सरसों, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजर, अरंडी और अलसी, कुल फसल क्षेत्र के 14.3 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा करते हैं, आहार ऊर्जा में 12-13 प्रतिशत का योगदान करते हैं, और कृषि निर्यात में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान करते हैं। फिर भी, तिलहन की अधिकांश खेती, कुल क्षेत्रफल का लगभग 76 प्रतिशत, वर्षा आधारित परिस्थितियों में होती है, जिससे उत्पादन जलवायु परिवर्तनों और उपज अस्थिरता के प्रति संवेदनशील हो जाता है।

उत्पादन परिदृश्य कुछ प्रमुख राज्यों तक ही सीमित है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र मिलकर भारत के कुल तिलहन उत्पादन में 77.68 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं, जो विशिष्ट फसलों में क्षेत्रीय प्रभुत्व को दर्शाता है, जैसे सरसों में राजस्थान और सोयाबीन में मध्य प्रदेश

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) एक व्यापक, दो-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से आयात निर्भरता और कम उत्पादकता की दोहरी चुनौतियों से निपटने की आवश्यकता से उभरा है:

  1. एनएमईओ - ऑयल पाम (2021): ऑयल पाम की खेती का विस्तार करने और घरेलू कच्चे पाम तेल के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केन्‍द्रित किया गया।
  2. एनएमईओ - तिलहन (2024): इसका उद्देश्य पारंपरिक तिलहन फसलों के लिए उत्पादकता, बीज की गुणवत्ता, प्रसंस्करण और बाजार संपर्क में सुधार करना है।

 

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - पाम ऑयल

पाम ऑयल उत्‍पादन की शुरूआत

पाम ऑयल में प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक वनस्पति तेल उत्पादन क्षमता होती है। इससे दो अलग-अलग तेल, अर्थात् पाम ऑयल और पाम कर्नेल ऑयल, प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग पाककला के साथ-साथ औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। तुलनात्मक रूप से, पाम ऑयल की उपज पारंपरिक तिलहनों से प्राप्त खाद्य तेल की उपज से पाँच गुना अधिक है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना प्रमुख पाम ऑयल उत्पादक राज्य हैं और कुल उत्पादन का 98 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं राज्यों का है। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, गोवा, ओडिशा, गुजरात और मिज़ोरम में भी पाम ऑयल की खेती का एक बड़ा क्षेत्र है। हाल ही में अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मणिपुर और नागालैंड ने भी बड़े पैमाने पर पाम ऑयल की खेती शुरू की है।

एनएमईओपाम ऑयल

खाद्य तेलों की बढ़ती घरेलू मांग और आयात के कारण राष्ट्रीय खजाने पर पड़ने वाले बोझ को देखते हुए, राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - पाम ऑयल (एनएमईओ-ओपी) को 2021 में एक केन्‍द्र प्रायोजित योजना के रूप में मंजूरी दी गई थी, जिसका उद्देश्य क्षेत्र विस्तार और कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) के उत्पादन में वृद्धि करके देश में खाद्य तिलहन उत्पादन और तेलों की उपलब्धता को बढ़ाना है। इस मिशन के लिए 11,040 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है, जिसमें से 8,844 करोड़ रुपये केन्‍द्र का और 2,196 करोड़ रुपये राज्य का हिस्सा है।

इस मिशन का उद्देश्य पाम ऑयल किसानों को अत्यधिक लाभ पहुँचाना, पूंजी निवेश बढ़ाना, रोज़गार सृजन करना, आयात पर निर्भरता कम करना और किसानों की आय में वृद्धि करना है। पूर्वोत्तर क्षेत्र और अन्य पाम ऑयल उत्पादक राज्यों की कृषि-जलवायु क्षमता का लाभ उठाने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है।

 

 

यह मिशन एनएमईओ-ओपी के तहत निर्धारित लक्ष्य के अनुसार पौधों की घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीज उद्यान और पाम ऑयल की नर्सरियों की स्थापना करके पौधों का उत्पादन बढ़ाने पर केन्द्रित है। ताजे फलों के गुच्छों (एफएफबी) की उत्पादकता में सुधार, पाम ऑयल के अंतर्गत ड्रिप सिंचाई कवरेज में वृद्धि, कम उपज वाली अनाज फसलों से पाम ऑयल की खेती के लिए क्षेत्र का विविधीकरण, और 4 वर्षों की गैस्‍टेशन अवधि के दौरान अंतर-फसल जैसी रणनीतियाँ किसानों को आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं।

 

मिशन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं जिन पर विशेष ध्‍यान केन्द्रित है:

पाम ऑयल किसान एफएफबी (तेल उत्पादक फलियां) का उत्पादन करते हैं जिनसे उद्योग द्वारा तेल निकाला जाता है। इन एफएफबी की कीमतें कच्चे अंतरराष्ट्रीय पाम ऑयल (सीपीओ) की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़ी होती हैं। पहली बार, भारत सरकार पाम ऑयल किसानों को एफएफबी के लिए मूल्य आश्वासन दे रही है। इसे व्यवहार्यता मूल्य (वीपी) कहा जाता है। यह किसानों को अंतरराष्ट्रीय सीपीओ कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाता है।

 

मिशन का दूसरा प्रमुख उद्देश्य इनपुट/हस्तक्षेपों की सहायता में उल्लेखनीय वृद्धि करना है। पाम ऑयल के लिए रोपण सामग्री के लिए पर्याप्त वृद्धि की गई है, जो 12,000 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 29,000 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गई है। रखरखाव और अंतर-फसल हस्तक्षेपों के लिए भी पर्याप्त वृद्धि की गई है। पुराने बगीचों के पुनरुद्धार के लिए 250 रुपये प्रति पौधे की विशेष सहायता दी जा रही है।

 

मिशन के लक्ष्य

  • मिशन का लक्ष्य 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को पाम ऑयल की खेती के अंतर्गत लाना है।
  • कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) का उत्पादन 2025-26 तक 11.20 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुँचने का लक्ष्य है।
  • 2025-26 तक 19.00 किलोग्राम/व्यक्ति/वर्ष के उपभोग स्तर को बनाए रखने के लिए उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना।

 

नवंबर 2025 तक, एनएमईओ-ओपी के अंतर्गत 2.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जा चुका है, जिससे देश में पाम ऑयल की कुल कवरेज 6.20 लाख हेक्टेयर हो गई है। सीपीओ का उत्पादन 2014-15 के 1.91 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 3.80 लाख टन हो गया है।

 

मिशन का कार्यान्वयन

एनएमईओ-ओपी का कार्यान्वयन केन्‍द्रीय और राज्य प्राधिकरणों को शामिल करते हुए एक संरचित, बहु-स्तरीय संस्थागत ढांचे के माध्यम से किया जाता है:

 

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) प्रधान केन्‍द्रीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जो राज्य कृषि/बागवानी विभागों, आईसीएआर संस्थानों और प्रसंस्करणकर्ताओं के साथ घनिष्ठ तालमेल बनाकर कार्य करता है।

कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए केन्‍द्र, राज्य और नामित बैंक के बीच त्रिपक्षीय समझौते के तहत एक एस्क्रो खाता प्रणाली के माध्यम से निधि प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है। एनएमईओ-ओपी की लागत सामान्य राज्यों के लिए केन्‍द्र और राज्य सरकार के बीच 60:40, पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 और केन्‍द्र शासित प्रदेशों और केन्‍द्रीय एजेंसियों के लिए 100 प्रतिशत के अनुपात में साझा की जाएगी।

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - तिलहन

भारत में तिलहन उत्पादन की शुरूआत

भारत विश्व तिलहन उत्पादन में लगभग 5-6 प्रतिशत का योगदान देता है। वित्त वर्ष 2023-24 में खली, तिलहन और गौण तेलों का निर्यात लगभग 5.44 मिलियन टन था, जिसका मूल्य 29,587 करोड़ रुपये था। मई 2025 तक भारत का तिलहन उत्पादन 42.609 मिलियन टन (एमटी) के नए उच्च स्तर पर पहुँच गया।
भारत में नौ प्रमुख तिलहन फसलों का वार्षिक सकल फसल क्षेत्र में 14.3 प्रतिशत योगदान है, आहार ऊर्जा में 12-13 प्रतिशत का योगदान है और कृषि निर्यात में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान है। भारत अरंडी, कुसुम, तिल और नाइजर के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है, मूंगफली में दूसरे, रेपसीड-सरसों में तीसरे, अलसी में चौथे और सोयाबीन में पांचवें स्थान पर है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र प्रमुख तिलहन उत्पादक राज्य हैं, जो देश के कुल तिलहन उत्पादन में 77 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं।

एनएमईओ-ओएस

खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए, राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - तिलहन (एनएमईओ-ओएस) को 2024 में सात साल की अवधि, 2024-25 से 2030-31 के लिए मंजूरी दी गई थी, जिसका वित्तीय परिव्यय 10,103 करोड़ रुपये है। एनएमईओ-तिलहन प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों जैसे रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजर, अलसी और अरंडी का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ कपास, नारियल, चावल की भूसी के साथ-साथ वृक्ष-जनित तिलहन (टीबीओ) जैसे द्वितीयक स्रोतों से संग्रह और निष्कर्षण दक्षता बढ़ाने पर केंद्रित है।

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मिशन विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों पर ध्यान केन्‍द्रित करता है ताकि वे विभिन्न पहलों के माध्यम से अपनी तिलहन फसल की पैदावार में सुधार कर सकें, जैसे कि आईसीएआर/सीजीआईएआर द्वारा फ्रंटलाइन प्रदर्शन (एफएलडी), केवीके द्वारा क्लस्टर फ्रंटलाइन प्रदर्शन (सीएफएलडी) और राज्य कृषि विभागों द्वारा ब्लॉक-स्तरीय प्रदर्शन (बीएलडी), ताकि तिलहन की खेती में नवीनतम उच्च उपज वाली किस्मों और उन्नत प्रौद्योगिकियों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता पैदा की जा सके।

मिशन के उद्देश्‍य

मिशन का लक्ष्य है:

  1. नवाचारों का उपयोग: उपज के अंतर को पाटने के लिए पहले से उपलब्ध और शीघ्र परिपक्व होने वाले नवाचारों और तकनीकी सफलताओं का उपयोग करना।  
  2. प्रसार में तेजी लाना: सहकारी समितियों, एफपीओ और निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए फसल-विशिष्ट समूहों में उन्नत बीज किस्मों और प्रौद्योगिकियों के तेजी से प्रसार को बढ़ावा देना।
  3. विस्तार को लक्षित करना: विशेष रूप से पूर्वी राज्यों में परती क्षेत्रों में तिलहन की खेती के विस्तार को प्रोत्साहित करना और प्रदर्शनों के माध्यम से अंतर-फसल को बढ़ावा देना।
  4. उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़ाना: गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता और पहुँच सुनिश्चित करने के लिए बीज उत्पादन और वितरण प्रणाली में कमियों को दूर करना।
  5. बाजार पहुँच बढ़ाना: तिलहन किसानों और मूल्य श्रृंखला भागीदारों को प्रसंस्करणकर्ताओं से जोड़ना ताकि उनकी बाजार पहुँच में सुधार हो और बेहतर लाभ सुनिश्चित हो सके।
  6. द्वितीयक तिलहनों के निष्कर्षण और संग्रहण को समर्थन देना: लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से द्वितीयक तिलहनों और वृक्ष जनित तेलों के उत्पादन को बढ़ावा देना।

 

मिशन के लक्ष्य

  • मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक क्षेत्र कवरेज को 29 मिलियन हेक्टेयर (2022-23) से बढ़ाकर 33 मिलियन हेक्टेयर, प्राथमिक तिलहन उत्पादन को 39 मिलियन टन (2022-23) से बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन और उपज को 1,353 किलोग्राम/हेक्टेयर (2022-23) से बढ़ाकर 2,112 किलोग्राम/हेक्टेयर करना है।
  • एनएमईओ-ओपी के साथ मिलकर, इस मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को 25.45 मिलियन टन तक पहुँचाना है, जो हमारी अनुमानित घरेलू आवश्यकता का लगभग 72 प्रतिशत पूरा करेगा।
  • मिशन चावल और आलू की परती भूमि को लक्षित करके, अंतर-फसल को बढ़ावा देकर और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर तिलहन की खेती को अतिरिक्त 40 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना चाहता है।.

मिशन के प्रमुख घटक

  • एनएमईओ-ओएस के अंतर्गत, देश भर में 600 से अधिक मूल्य श्रृंखला क्लस्टरों की पहचान की गई है, जो सालाना 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं। इन क्लस्टरों का प्रबंधन मूल्य श्रृंखला भागीदारों (वीसीपी) द्वारा किया जाता है, जिनमें किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और सहकारी समितियाँ शामिल हैं।
  • इन क्लस्टरों के किसानों को निःशुल्क उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उत्तम कृषि पद्धतियों (जीएपी) का प्रशिक्षण और मौसम एवं कीट प्रबंधन पर सलाहकार सेवाएँ मिल रही हैं।
  • इसके अलावा, मिशन तिलहन संग्रहण, तेल निष्कर्षण और पुनर्प्राप्ति की दक्षता बढ़ाने के लिए कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिए सहायता प्रदान करता है।
  • गुणवत्तापूर्ण बीजों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, मिशन ने 'बीज प्रमाणीकरण, अनुरेखणीयता और समग्र सूची (साथी)' पोर्टल के माध्यम से एक ऑनलाइन 5-वर्षीय रोलिंग बीज योजना शुरू की, जिससे राज्यों को सहकारी समितियों, एफपीओ और सरकारी या निजी बीज निगमों सहित बीज उत्पादक एजेंसियों के साथ अग्रिम गठजोड़ स्थापित करने में मदद मिली। बीज उत्पादन के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में 65 नए बीज केन्‍द्र और 50 बीज भंडारण इकाइयाँ स्थापित की जा रही हैं।
  • इसके अतिरिक्त, खाद्य तेलों के लिए अनुशंसित आहार संबंधी दिशानिर्देशों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए एक सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) अभियान चलाया जा रहा है, जिससे देश भर में स्वस्थ उपभोग पैटर्न को प्रोत्साहित किया जा सके।

मिशन को लागू किया जाना

एनएमईओ-ओएस सभी राज्यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में सामान्य राज्यों, दिल्ली और पुडुचेरी के लिए 60:40 और पूर्वोत्तर राज्यों व पहाड़ी राज्यों के लिए 90:10 के अनुपात में वित्त पोषण के साथ लागू किया जाएगा, और केन्‍द्र शासित प्रदेशों व केंद्रीय एजेंसियों के लिए 100 प्रतिशत वित्त पोषण होगा। एनएमईओ-ओएस को तीन-स्तरीय संरचना के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है:

A diagram of oil seeds implementation structureDescription automatically generated

 

निर्बाध डेटा संग्रह को सुगम बनाने और व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन समूहों, विशेष रूप से कृषि सखियों को, कृषि मैपर प्लेटफॉर्म पर महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करने और उसे अपडेट करने के काम पर लगाया जा रहा है।

 

कृषि सखी एक सामुदायिक कृषि सेवा प्रदाता (सीएएसपी) है जो ग्रामीण क्षेत्रों में अंतिम छोर तक सहायता सुनिश्चित करती है जहाँ कृषि-आधारित सेवाएँ दुर्लभ या महंगी हैं। यह स्‍थायी कृषि के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देती है और सामुदायिक क्षमता का निर्माण करती है, साथ ही किसानों की आय में सुधार के लिए कृषि उपज के एकत्रीकरण और विपणन की सुविधा भी प्रदान करती है।

 

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा विकसित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, कृषि मैपर का उपयोग करके एक व्यापक डेटा ट्रैकिंग और निगरानी प्रणाली लागू की जा रही है। यह प्रणाली मिशन से संबंधित सभी गतिविधियों की सटीक और वास्तविक समय पर ट्रैकिंग सुनिश्चित करती है, जिससे जमीनी स्तर पर बेहतर निर्णय लेने और अधिक प्रभावी कार्यान्वयन में मदद मिलती है।

भारत में तिलहनों के लिए अनुसंधान और विकास

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) देश के विभिन्न केन्‍द्रीय/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से पाँच बहु-विषयक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं (एआईसीआरपी) का क्रियान्वयन कर रहा है ताकि नौ तिलहन फसलों की स्थान-विशिष्ट उच्च उपज देने वाली किस्मों के साथ-साथ संबंधित कार्य प्रणालियों का पैकेज विकसित किया जा सके। इसके अतिरिक्त, आईसीएआर तिलहन की उच्च उपज देने वाली जलवायु-रोधी किस्मों के विकास के लिए संकर विकास और जीन एडिटिंग पर दो प्रमुख अनुसंधान परियोजनाओं का भी क्रियान्वयन कर रहा है।

परिणामस्वरूप, पिछले 11 वर्षों (2014-2025) के दौरान देश में व्यावसायिक खेती के लिए नौ वार्षिक तिलहनों की 432 उच्च उपज देने वाली किस्मों/संकरों को अधिसूचित किया गया, जिनमें रेपसीड-सरसों की 104, सोयाबीन की 95, मूंगफली की 69, अलसी की 53, तिल की 34, कुसुम की 25, सूरजमुखी की 24, अरंडी की 15 और नाइजर की 13 किस्में शामिल हैं। किस्म प्रतिस्थापन दर (वीआरआर) और बीज प्रतिस्थापन दर (एसआरआर) को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि नव विकसित उच्च उपज देने वाली किस्मों की आनुवंशिक क्षमता का उपयोग घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जा सके।

 

वीआरआर: किस्म प्रतिस्थापन दर यह मापती है कि किसान कितनी बार नई फसल किस्मों को अपनाते हैं और यह फसल उत्पादकता में आनुवंशिक लाभ प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।

एसआरआर: बीज प्रतिस्थापन दर, किसी फसल के कुल बोए गए क्षेत्र का वह प्रतिशत है जिसमें खेत में संरक्षित बीजों के बजाय प्रमाणित या गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग किया जाता है।

 

वित्त वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, विभिन्न तिलहनों की प्रमाणित किस्मों के लगभग 1,53,704 क्विंटल प्रजनक बीज का उत्पादन किया गया और किसानों के लिए प्रमाणित गुणवत्ता वाले बीजों में परिवर्तित करने हेतु सार्वजनिक/निजी बीज एजेंसियों को आपूर्ति की गई। आईसीएआर तिलहन बीज केंद्रों के माध्यम से किसानों के लिए तिलहन के गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता बढ़ाने में भी लगा हुआ है।

तिलहन उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अन्य पहल

देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए निम्नलिखित कदम भी उठाए गए हैं:

  • सरकार ने 15वें वित्त आयोग के दौरान वित्त वर्ष 2025-26 तक प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) को जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है। यह योजना मूल्य समर्थन योजना घटक के अंतर्गत राज्य स्तरीय एजेंसियों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड) और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (एनसीसीएफ) जैसी केन्‍द्रीय नोडल एजेंसियों द्वारा एमएसपी पर तिलहनों की खरीद को सक्षम बनाती है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) व्यापक फसल बीमा कवरेज प्रदान करती है, जो किसानों को बुवाई से पहले से लेकर कटाई के बाद तक फसल के नुकसान के जोखिमों से बचाती है। इसमें खाद्यान्न, तिलहन और वाणिज्यिक बागवानी फसलें शामिल हैं, जिन्हें संबंधित राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिसूचित किया जाता है।
  • सस्ते खाद्य तेलों के आयात को हतोत्साहित करने के लिए, सरकार ने पाम, सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे कच्चे खाद्य तेलों पर प्रभावी सीमा शुल्क 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 16.5 प्रतिशत कर दिया है। इसी प्रकार, रिफाइंड खाद्य तेलों पर शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है, जो 13.75 प्रतिशत से बढ़कर 35.75 प्रतिशत हो गया है। इन उपायों का उद्देश्य घरेलू उत्पादकों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना है और साथ ही आयात पर निर्भरता कम करना है।
  • किसानों को बेहतर लाभ सुनिश्चित करने के लिए सोयाबीन, सरसों, मूंगफली और अन्य तिलहन जैसी प्रमुख तिलहन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है।

 

निष्‍कर्ष

 

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) खाद्य तेल क्षेत्र को आयात-निर्भर से आत्मनिर्भर बनाकर आत्मनिर्भर भारत की कल्‍पना को साकार करने की भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। पाम ऑयल के विस्तार, पारंपरिक तिलहनों की उपज में सुधार, सुनिश्चित मूल्य निर्धारण तंत्र, उन्नत बीज प्रौद्योगिकियों और समन्वित संस्थागत कार्यान्वयन में केन्‍द्रित हस्तक्षेपों के माध्यम से, यह मिशन एक लचीली और प्रतिस्पर्धी घरेलू खाद्य तेल मूल्य श्रृंखला का निर्माण करना चाहता है।

आयात पर निर्भरता कम करके, यह मिशन न केवल हमारी विदेशी मुद्रा का संरक्षण करता है, बल्कि किसानों को बेहतर आय के अवसर, गुणवत्तापूर्ण उत्‍पादन तक पहुँच और बाज़ार संपर्क प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को भी मज़बूत बनाता है। इसके अलावा, यह खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने, ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और सतत कृषि विकास को बढ़ावा देने के भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों को भी मजबूत करता है।

संक्षेप में, एनएमईओ भारत के कृषि परिवर्तन की आधारशिला है, जो उत्पादकता अंतराल को पाटने, नवाचार को बढ़ावा देने और खाद्य तेल उत्पादन में सच्ची आत्मनिर्भरता की ओर देश की यात्रा को आगे बढ़ाने में सहायक है।

संदर्भ

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नीति आयोग

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आईसीएमआर

https://www.nin.res.in/downloads/DietaryGuidelinesforNINwebsite.pdf

 

कृषि मैपर और साथी पोर्टल तक पहुंचने के लिए

https://krishimapper.dac.gov.in/

https://seedtrace.gov.in/ms014/

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