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उद्यमिता की प्रदर्शनी: भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) छोटे व्यवसायों और ग्रामीण उद्यमियों का सुदृढ़ीकरण
Posted On:
23 NOV 2025 12:07PM by PIB Delhi
भारत मंडपम कॉम्प्लेक्स भारत की आर्थिक विविधता के एक गतिशील प्रदर्शनी में बदल गया है। यहां पारंपरिक शिल्प, कृषि उद्यम, स्टार्टअप नवाचारों और देश के विभिन्न राज्यों की क्षेत्रीय विशिष्टताओं को एक साथ लाया जाता है। 44वां भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) 2025, जिसका मुख्य विषय एक भारत, श्रेष्ठ भारत (वन इंडिया, ग्रेट इंडिया) निर्धारित किया गया है, नई दिल्ली के प्रगति मैदान में बड़े जोर शोर से आयोजित किया गया है। इस मेले मे 3,500 से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। इनमें से प्रत्येक उद्यमी ने अपनी श्रम, विरासत और महत्वाकांक्षा की अपनी कहानी गढ़ी है।
इस मेले का 14 नवंबर 2025 को उद्घाटन किया गया। मेले का करीब चौदह दिवसीय कार्यक्रम केवल एक वाणिज्यिक सभा के तर्ज पर नहीं है बल्कि यह एक ऐसा अवसर मंच है जहां देश के प्रथम पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी के उद्यमी, ग्रामीण कारीगर, और अपने घर से विकसित किए गए ब्रांड अपने अपने विभिन्न उत्पादों की मांग का जायजा लेते हैं, उसका परीक्षण करते हैं, खरीदारों से जुड़ते हैं, साथियों से सीखते हैं, और सरकार के विभिन्न विभागों से मिलने वाली सहायता की भी जानकारी लेते हैं। आईआईटीएफ विभिन्न प्रदर्शकों के लिए एक बड़े राष्ट्रीय बाजार में एक कदम आगे बढ़ाने का भी बड़ा मौका प्रदान करता है। देखा जाए तो आईआईटीएफ देश के उभरते उद्यमों का प्रतिनिधित्व करता है- जो उनमें एक आत्मविश्वास, लगातार प्रगति हासिल करने और आत्मनिर्भर होते भारत को भी दर्शाता है।
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क्या आप जानते हैं?

1980 से भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) द्वारा हर साल आयोजित भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) छोटे, मध्यम और लघु उद्योगों (एमएसएमई), कारीगरों, स्टार्टअप और सामान्य उद्योगों के लिए खरीदारों से जुड़ने और अपने बाजार पहुंच का विस्तार करने के लिए भारत के सबसे महत्वपूर्ण वाणिज्यिक प्लेटफार्मों में से एक है। पिछले कुछ वर्षों में इसने भारत की विनिर्माण शक्ति के विभिन्न क्षेत्रों, नवाचार और पारंपरिक शिल्प के प्रदर्शन में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पिछले साल 2024 में, इस मेले ने करीब दस लाख आगंतुकों को आकर्षित कर खुद को देश की सबसे प्रमुख व्यापार घटनाओं में स्थापित किया। आईआईटीएफ भारत मंडपम में आयोजित किया जाता है, जो प्रगति मैदान के भीतर एक आधुनिक सम्मेलन और प्रदर्शनी परिसर के रूप में निर्मित किया गया और साल 2023 में इसका उद्घाटन किया गया। भारत मण्डपम को देश में वैश्विक प्रदर्शनी और प्रमुख शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिए एक विश्व स्तरीय स्थल के रूप में विकसित किया गया है। भारत मण्डपम करीब 123 एकड़ में फैला है जिसमें 7,000 सीट का एक कन्वेंशन हॉल, सात प्रदर्शनी हॉल, 100,000 वर्ग मीटर से अधिक का प्रदर्शनी स्थल है। गौरतलब है कि आईटीपीओ द्वारा हर साल आयोजित लगभग 90 वाणिज्यिक प्रदर्शनी और इनसे जुड़ी घटनाओं की मेजबानी से देश की राजधानी नई दिल्ली को एक अग्रणी अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी गंतव्य के रूप में पहचान बनाने में मदद मिली है।
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बिहार: एक कारीगर जिसे राष्ट्रीय पहचान मिली

बिहार मंडप में 45 वर्षीय श्रीधी कुमारी जो भागलपुरी रेशम और ज़री व कढ़ाई की लहराती साड़ियों के बीच चित्र में खड़ी हैं, वह 12 साल से लगातार यह सम्मान प्राप्त कर रही हैं। वह देश के उभरते महिला उद्यमियों की प्रतीक हैं।
उनके द्वारा दिखाई भागलपुरी रेशम को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग मिला है। वह कहती है, "मैं इसकी एक अधिकृत विक्रेता हूं। वह बताती हैं कि बिहार सरकार ने अपनी महिला-उद्यमिता योजनाओं के माध्यम से उन्हें काफी समर्थन दिया। वह बताती हैं, "हमारे विभागीय सचिव ने मुझे सभी औपचारिकताओं के माध्यम से निर्देशित किया" उन्होंने इस बात को साझा करते हुए कहा कि प्रशासनिक सहायता पहली बार आए लोगों की कितनी मामूली जरूरतों को पूरा करती है। उनका शिल्प, बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों के कौशल का एक सहयोग है, क्योंकि उनके पास कारीगर दोनों राज्यों से आते हैं, जो एक अंतर-क्षेत्रीय वस्त्र विनिमय को दर्शाते हैं। श्रीधी बताती हैं कि उन्हें एक अन्य कारीगर, जिन्होंने पहले आईआईटीएफ में भाग लिया था, ने उन्हें भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। "उसने मुझे बताया कि मेले के दौरान और बाद में काफी कमाई की संभावनाएं हैं।" "आगे यह कितनी कमाई और बढ़ाएगा मेला समाप्त होने के बाद पता चलता है।"
पिछले मार्च 2025 में आयोजित जीआई-महोत्सव में जब श्रीधी ने भाग लिया तो उनकी आमदनी उनकी दो से तीन महीने के बराबर की कमाई के बराबर थी। इससे उन्हें इस साल भी आगे बढ़ने का विश्वास मिला है।
नालंदा से दिल्ली: बुनकर जो हर साल लौटता है
थोड़ी दूर कतार में बैठे 49 वर्षीय तरुण पांडे अपनी नरम बावबूटी साड़ी को समेट रहे हैं। मेले में वह आठवीं बार भाग ले रहे हैं। एक पारंपरिक बुनकर परिवार से ताल्लुक रखने वाले पांडे बिहार के एक पारंपरिक बुनाई कारीगर हैं जो बिहार के कई गांवों में प्रचलित एक बुनाई परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी प्रत्येक साड़ी की संरचना इसमें लगी सावधानीपूर्वक श्रम को प्रतिबिंबित करती है, जो लगभग साढ़े तीन दिन में पूरी तैयार होती है। तब जाकर यह एक समय साध्य और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण कृति बनती है।

पाण्डे बताते हैं कि आईआईटीएफ ही उनका एकमात्र प्रदर्शनी स्थल है। यहां से प्राप्त आमदनी को लेकर वह कहते है, "मैं आईआईटीएफ से अपनी आय के लगभग दो से ढाई महीने के बराबर कमाता हूं।" "हम अन्य मेलों में भाग नहीं लेते हैं, आईआईटीएफ ही उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है,"। उनकी साड़ी की कीमत 4,000 से 6,000 के बीच है। सबसे बढ़िया काम वाली साड़ी की कीमत 10,000 हैं। लेकिन वह कहते है कि, उनको फायदा उन ग्राहकों से ज्यादा मिलता है जो उनके यहां बार बार आते और जो उन्हें "नालंदा से बुनकर" के रूप में पहचानते हैं।
एक किसान ने उद्यमी बनकर अपने अवसरों का विस्तार किया
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के 51 वर्षीय प्रहलाद रामराव बोर्गद और उनकी पत्नी कावेरी अपनी उत्पादित ऑर्गेनिक दालों, हल्दी, अदरक, अचार और अन्य मसालों के साथ मेले में आगंतुकों का स्वागत करते हैं। आजीवन किसान रहे बोर्गद ने 2012 में ऑर्गेनिक खेती को अपनाया और 2015 में औपचारिक रूप से अपने स्व सहायता समूह और (एमएसएमई) विभाग के समर्थन से 'सूर्य किसान' ब्रांड लॉन्च किया। बोर्गद बताते है उन्होंने आईआईटीएफ का एक ऑनलाइन विज्ञापन देखा और फिर महाराष्ट्र सरकार से संपर्क किया। उन्होंने हमें एक आवेदन के माध्यम से आईआईटीएफ में भाग लेने हेतु निर्देशित किया। बोर्गद बताते है वह मेले में दूसरी बार आए हैं। इससे पहले आई आईटीएफ 2023 में भाग लिया था और उसके बाद वह सरस मेला 2024 का भी हिस्सा रहे हैं।

बोर्गद बताते हैं कि "ऐसे प्लेटफॉर्म न केवल उत्पादों को बेचने के बारे में बताते हैं बल्कि वे हमें ग्राहकों से संपर्क बनाने, उपभोक्ता की अपेक्षाओं को समझने में मदद करते हैं। हम सीखते हैं कि अपने काम को पेशेवर रूप से कैसे पेश किया जाए? किसानों के रूप में, हम इन चीजों को अपने आप नहीं सीखेंगे तो हम तरक्की नहीं कर पाएंगे। बोर्गद के अनुसार, आईआईटीएफ में वह जो लाभ कमाते हैं वह उनकी आय के चार से पांच महीने के बराबर है। इसके अलावा, घर लौटने के बाद हम अपने ग्राहकों से अपने उत्पादों का फोन पर ऑर्डर भी प्राप्त करते हैं।
एक पारंपरिक कला को संरक्षित करना: महाराष्ट्र मंडप में लातूर से गोधारी
महाराष्ट्र के लातूर से आई रुक्मनी गणेशपत सैलज अपनी 15 वर्षीय बेटी दीप्ता के साथ पैवेलियन में आए सभी आगंतुकों का स्वागत करती है। उनका स्टॉल ऐतिहासिक गोधारी कला रूप में तैयार की गई रजाई को प्रदर्शित करता है। गोधारी की यह परंपरा वहां की महिलाओं की कई पीढ़ियों द्वारा जीवित रखी गई है। हालांकि, इस शिल्प को बाजार में उपलब्ध कम कीमत पर उत्पादित विकल्पों के भारी दबाव का सामना करना पड़ता है। रुक्मनी कहती हैं, "आईआईटीएफ में यह मेरा पहला साल है"। बताती है प्रत्येक गोधारी रजाई हाथ से सिलाई में चार से पांच दिन लगता है। गोधारी रजाई की कीमत 1,000 से 6,000 के बीच है। लेकिन इस रजाई की कीमत इसकी प्रामाणिकता और विस्तृत कारीगरी के हिसाब से ज्यादा नहीं है।

रुक्मनी के लिए, आईआईटीएफ केवल एक बिक्री स्थल नहीं है; बल्कि यह अपने शिल्प को उन खरीदारों को पेश करता है जो हस्तनिर्मित कला पसंद करते हैं और एक परंपरा को जीवित रखने में मदद करते हैं, अन्यथा ये चीजें लुप्तप्राय हो जाएं।
झारखंड: लाख की चूड़ियों के जरिए 400 आदिवासी महिलाओं द्वारा इसका प्रतिनिधित्व

झारखंड राज्य जो अपनी स्थापना का पच्चीसवां वर्षगांठ मना रहा है, अभी आईआईटीएफ 2025 में अपनी लाख की चूड़ी को लेकर सबके ध्यान के केंद्र में है। इसके मंडप में मौजूद शिल्पी 49 वर्षीय झाबर मल लाख की चूड़ी प्रदर्शित कर रहे हैं। पारंपरिक तकनीकों के माध्यम से तैयार की गई चूड़ियाँ आदिवासी समुदायों के माध्यम से बनाई जाती हैं। झाबर मल पिछले चार से पांच वर्षों से आईआईटीएफ में अकेले प्रतिभागी हैं जो लाख की चूड़ियों को प्रदर्शित करते हैं। वह कहते हैं, मैं इन 14 दिनों में बहुत अधिक मात्रा में कमाई नहीं करता हूं पर मैं अपने स्थाई ग्राहकों के लिए आईआईटीएफ आता हूं जो हर साल मेरा इंतजार करते हैं। उनमें से कुछ चूड़ियों का पूर्व-आदेश देते हैं और वे यहां इकट्ठा करते हैं। आईआईटीएफ में मेरा यह छठा साल है। मल बताते है कि मेले में उन्हें जो चूड़ियों का ऑर्डर मिलता है उससे करीब 400 आदिवासी महिलाओं को चूड़ी बनाने का रोजगार मिलता है। ये सभी महिलाएं मेरे साथ सहकारी संस्था लाख हस्तशिल्प सहकारी समिति लिमिटेड में कार्य करती हैं। यह संस्था ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने के लिए समर्पित एक सहकारी समिति है।
आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में व्यापार मेला
आईआईटीएफ जैसे व्यापार मेले उत्पादों की प्रत्यक्ष बिक्री को लेकर बड़ी महत्वपूर्ण निभाते हैं। वे एक ऐसे आर्थिक सहायता प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं जहां छोटे व्यापारियों को कई चीजें परखने, अपने दीर्घकालीन खरीददार बनाने और अपने बाजार व्यवहार को समझने में मदद प्रदान करता हैं।
मेले में आए व्यापारिक प्रदर्शकों को यह इस बात का आभास होता है कि यहां त्वरित बिक्री मायने तो रखती है पर साथ साथ बाद में आने वाले ऑर्डर भी काफी मायने रखते है। कई बार इस तत्काल बिक्री से भी कई महीने के बराबर कमाई हो जाती है।
आईआईटीएफ का 2025 संस्करण विकसित भारत 2047 की दृष्टि के तहत आयोजित किया गया है। जो भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता और दुनिया के बड़े वैश्विक साझेदारों के साथ चल रहे मुक्त व्यापार समझौते को रेखांकित करता है।
मेले में शाम की रोशनी यहां स्थित सभी मंडपो में उजाला लाती हैं। लेकिन यहां प्रत्येक स्टाल के पीछे की कहानी भारत के उद्यमशील परिदृश्य की उल्लेखनीय विविधता को दर्शाती हैं। कई प्रदर्शक इस मंच तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करते हैं जो उन्हें भारत की अर्थव्यवस्था में अधिक आत्मविश्वास से बढ़ने, सीखने और भाग लेने में मदद करता है। श्रीधी, तरुण, प्रहलाद, रुक्मनी और झाबर के लिए आईआईटीएफ एक ऐसा स्थान है जहां परंपरा उद्यम से मिलती है, जहां स्थानीय कौशल राष्ट्रीय प्रासंगिकता पाते हैं, और जहां छोटे व्यवसायों को गति प्राप्त होती है, उन्हें प्रगति की आवश्यकता होती है। अपने 44 वें संस्करण में, यह मेला इस बात को दर्शाता है कि भारत की आर्थिक वृद्धि न केवल बड़े उद्योगों से उभरती है बल्कि छोटे उद्यमियों की दृढ़ता, रचनात्मकता और महत्वाकांक्षा से भी समान रूप से उत्पन्न होती है जो देश के विकसित बाजार में अपना योगदान देते हैं।
संदर्भ
https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=2190245
https://www.indiatradefair.com/aahardelhi/uploads/pdfs/Aahar%202025%20Fair%20Guide.pdf
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1555538
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2078289
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