कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय
azadi ka amrit mahotsav

डॉ. जितेंद्र सिंह ने तीन दिवसीय "उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार सम्मेलन (ईएसटीआईसी 2025)" के दौरान सुविख्यात एनआरआई वैज्ञानिकों और विद्वानों के साथ "विकसित भारत के लिए वैभव विजन" पर गोलमेज सम्मेलन को संबोधित किया


डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "आप बाहरी नहीं,भारतीय वैज्ञानिक परिवार का हिस्सा हैं"

डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रवासी वैज्ञानिकों के साथ भारत के जुड़ाव को "प्रतिभा पलायन" के युग से बदलकर "रिवर्स ब्रेन ड्रेन" या "ब्रेन एक्सचेंज" के मॉडल में बदलने का आह्वान किया, जहां ज्ञान, नवोन्मेष और विचार भारत और इसके वैश्विक प्रतिभा पूल के बीच निर्बाध रूप से प्रवाहित हों

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भारतीय प्रवासी वैज्ञानिकों तक निरंतर पहुंच बनाने के विचार की डॉ. जितेंद्र सिंह ने पुष्टि की

केन्द्रीय मंत्री ने कहा, भारत विज्ञान और नवाचार के अपने स्वर्ण युग में प्रवेश कर रहा है

Posted On: 04 NOV 2025 6:10PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने तीन दिवसीय "उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार सम्मेलन" (ईएसटीआईसी 2025) के दौरान सुविख्यात एनआरआई वैज्ञानिकों और विद्वानों के एक गोलमेज सम्मेलन को संबोधित करते हुए, कहा, "आप बाहरी नहीं ,भारतीय वैज्ञानिक परिवार का हिस्सा हैं।"

डॉ. सिंह विश्व भर से आए वैभव फेलो के साथ संवाद कर रहे थे, जिन्होंने भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए कई रचनात्मक सुझाव दिए।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के प्रवासी वैज्ञानिक समुदाय के साथ जुड़ाव को "प्रतिभा पलायन" के युग से बदलकर "रिवर्स ब्रेन ड्रेन" या "ब्रेन एक्सचेंज" के मॉडल में बदलने का आह्वान किया, जहां ज्ञान, नवाचार और विचार भारत और इसके वैश्विक प्रतिभा पूल के बीच निर्बाध रूप से प्रवाहित हों।

सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने बैठक का संचालन किया, जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने स्वागत भाषण दिया।

अमेरिका, कनाडा, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य देशों के विश्वविद्यालयों और अनुसंधान एवं विकास केंद्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे वैभव फेलो ने वैभव फेलोशिप द्वारा प्रवासी भारतीयों की भागीदारी संस्थागत बनाने के सरकार के प्रयासों की सराहना की। वैज्ञानिकों ने भारतीय संस्थानों और वैश्विक भारतीय अनुसंधानकर्ताओं के बीच निकट सहयोग के लिए व्यावहारिक विचार साझा किए।

इनमें सबसे मजबूत सिफारिशों में से एक रही विद्यार्थियों के आने-जाने के लिए एक संरचित तंत्र स्थापित करना, जिससे भारतीय छात्रों को विदेश में अपने परामर्शदाता गुरुओं के साथ काम करने के लिए एक वर्ष तक का समय मिल सके और मेजबान वैज्ञानिकों को विदेशी छात्रों को भारतीय प्रयोगशालाओं में लाने की अनुमति मिल पाए। कई लोगों ने कहा कि इस कदम से सोच का दायरे में विस्तार और वैश्विक प्रतिभा का पोषण होगा।

कई फेलो ने यात्रा और सम्मेलन में भाग लेने की मंज़ूरी प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत में वैज्ञानिक कार्यक्रमों में अंतर्राष्ट्रीय वक्ताओं को आमंत्रित करने की जटिल प्रक्रियाएं अक्सर उनकी भागीदारी बाधित करती हैं। सम्मेलन में भाग लेने वाले कई फेलो ने वीज़ा अनुमति प्रक्रिया सरल बनाने और त्वरित शैक्षणिक आदान-प्रदान के लिए वैश्विक संकायों की पूर्व-अनुमोदित सूची बनाने का आग्रह किया।

वैज्ञानिकों ने वैभव फ़ेलोशिप तीन साल से बढ़ाकर पांच वर्ष करने का भी प्रस्ताव रखा। उन्होंने तर्क दिया कि निरंतर सहयोग विकसित होने और मापनीय परिणाम प्राप्त करने में समय लगता है। उन्नत वायरलेस प्रणाली में कार्यरत एक फ़ेलो ने निरंतरता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध मॉडल का सुझाव दिया, जिसमें आरंभ में तीन वर्ष और उसके उपरांत प्रदर्शन के आधार पर दो साल का विस्तार देने की बात कही।

चर्चा में एक और महत्वपूर्ण विषय "भारत के लिए तकनीकी प्रणाली" जिससे भारतीय परिस्थितियों के लिए डिज़ाइन किए गए स्वदेशी तकनीकी समाधान विकसित करने की आवश्यकता पर चर्चा हुई। 5जी और 6जी तकनीक के अनुसंधानकर्ताओं ने केवल मुख्य अनुसंधान ही नहीं बल्कि भारत के अनुरूप विस्तृत, संघनित और सस्ती दर पर तकनीक उपलब्ध कराने की निर्माण प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर ज़ोर दिया।

कई प्रतिभागियों ने अकादमिक अनुसंधान को औद्योगिक नवाचार में बदलने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अवसरों पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने पारंपरिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) से आगे बढ़कर सीमा-पार सहयोग स्थापित करने का सुझाव दिया, ताकि भारतीय स्टार्टअप्स और उद्योगों को, विशेष रूप से उच्च-प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षेत्रों में, विदेशी साझेदारों से जोड़ा जा सके।

स्वीडन के एक फेलो ने भारतीय प्रतिभाओं के साथ साझेदारी से यूरोप में कम उपयोग किए जा रहे अनुसंधान ढांचे का लाभ उठाने का एक बढ़िया उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस तरह के सहयोग से भारतीय वैज्ञानिक क्षमता को विदेशों में विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इन व्यापक सुझावों पर कहा कि सरकार प्रवासी समुदाय द्वारा साझा किए गए कई व्यावहारिक विचारों को अपनाने को उत्सुक है। उन्होंने सहमति जताई कि अंतरराष्ट्रीय अतिथि संकाय सदस्यों के लिए यात्रा सरल बनाना और इसका अनुमोदन ढांचा एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्व-अनुमोदित संकाय सूची प्रस्ताव पर विदेश मंत्रालय के साथ विचार किया जा सकता है।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने भारत के बढ़ते अनुसंधान एवं विकास प्रदर्शन का उदाहरण देते हुए कहा कि यह तथ्य सामने है कि हाल के वर्षों में दायर किए गए सभी पेटेंट में से आधे से अधिक भारतीय मूल के लोगों द्वारा प्राप्त हुए हैं। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति का उल्लेख किया। साथ ही कोविड-19 वैक्सीन से लेकर स्वदेशी एचपीवी और हीमोफीलिया जीन थेरेपी की सफलताओं, चंद्रयान-3 जैसी प्रमुख अंतरिक्ष उपलब्धियों और अंतरिक्ष में पादप जीव विज्ञान प्रयोगों की भी चर्चा की।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय प्रवासी वैज्ञानिकों तक निरंतर पहुंच बनाने की पुष्टि करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि आप बाहरी नहीं हैं, आप भारतीय वैज्ञानिक परिवार का हिस्सा हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कुछ दशक पहले के विपरीत, आज डिजिटल सहयोग उपकरणों के विकास के साथ, प्रवासी भारतीय वैज्ञानिकों के पास दूसरे देश में रहते हुए भी आसानी से योगदान देने और भारत के लिए काम करने का विकल्प है। उन्होंने इस नए प्रतिमान को एक बड़ा बदलाव बताते हुए कहा कि आज तकनीक उन्नत होने के साथ ही आपको अपना काम करने के लिए लगातार एक ही जगह शारीरिक रूप से उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है।

डॉ. सिंह ने वैज्ञानिकों को नवोन्मेष निरंतरता के लिए उद्योगों के साथ संबंध बनाने में मदद के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि स्टार्टअप शुरू करना आसान है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए मज़बूत उद्योग साझेदारी की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने अरोमा मिशन के तहत भारत के लैवेंडर-आधारित स्टार्टअप जैसे सफल मॉडलों का उल्लेख किया, जो तेज़ी से आगे बढ़े हैं और जिसमें अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैभव फ़ेलोशिप की अवधि केवल औपचारिक ढांचा है, जुड़ाव की कोई सीमा नहीं। उन्होंने कहा कि जैसे हम महात्मा गांधी को केवल गांधी जयंती पर ही नहीं, हमेशा याद करते हैं, वैसे ही भारत से आपका जुड़ाव फ़ेलोशिप की अवधि के साथ समाप्त नहीं होना चाहिए। उन्होंने सभी फ़ेलो से आभासी सहयोग, संयुक्त परियोजनाओं और मार्गदर्शन नेटवर्क द्वारा दीर्घकालिक संबंध बनाए रखने का आग्रह किया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन के समापन पर कहा कि विज्ञान की शक्ति सीमाओं से परे जुड़ने की उसकी क्षमता में निहित है। उन्होंने प्रवासी भारतीय वैज्ञानिकों से "भारत के वैज्ञानिक पुनर्जागरण के दूत" के रूप में कार्य करने का आह्वान किया, जिससे भारत और विश्व को 2047 तक विकसित भारत के साझा लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिले।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन और अंतरिक्ष विभाग सचिव डॉ. वी. नारायणन ने भी विमर्श में अपने दृष्टिकोण साझा किए और वैभव ढांचे के तहत महासागर विज्ञान, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उभरते अनुसंधान क्षेत्रों के बीच अंतःविषय सहयोग की बढ़ती संभावनाओं का उल्लेख किया।

सत्र इस निश्चय के साथ संपन्न हुआ कि वैज्ञानिकों और फ़ेलो द्वारा प्रकट किये गये विचारों पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय द्वारा अनुवर्ती कदम पर विचार किया जाएगा। यह, वैभव पहल के अंतर्गत वैश्विक-भारतीय वैज्ञानिक साझेदारी को प्रगाढ़ बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

***

पीके/केसी/एकेवी/एसके


(Release ID: 2186431) Visitor Counter : 40