रक्षा मंत्रालय
आत्मनिर्भरता की नई उड़ान: रक्षा मंत्री ने एचएएल नाशिक में एलसीए एमके-1ए की तीसरी और एचटीटी-40 की दूसरी उत्पादन लाइन का शुभारंभ किया
इस इकाई में निर्मित पहले एलसीए एमके1ए विमान को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया
एलसीए एमके1ए रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता का एक उज्ज्वल प्रतीक है: श्री राजनाथ सिंह
"एलसीए एमके-1ए और एचटीटी-40 की उत्पादन लाइनें सरकार, उद्योग एवं अकादमिक जगत के सशक्त तालमेल का प्रमाण हैं; यदि मिलकर सामना किया जाए तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है"
“एचएएल ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विभिन्न परिचालन स्थलों पर 24*7 सहायता प्रदान की और भारतीय वायुसेना की परिचालन तत्परता सुनिश्चित की”
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17 OCT 2025 4:07PM by PIB Delhi
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 17 अक्टूबर, 2025 को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की नाशिक इकाई में हल्के लड़ाकू विमान एलसीए तेजस एमके-1ए की तीसरी और हिंदुस्तान टर्बो ट्रेनर-40 (एचटीटी-40) की दूसरी उत्पादन लाइन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने संयंत्र में निर्मित पहले एलसीए एमके-1ए विमान को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में इस अत्याधुनिक विमान की उड़ान को भारत की रक्षा क्षेत्र में बढ़ती आत्मनिर्भरता का प्रमाण करार दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दशक में रक्षा क्षेत्र में हुए व्यापक परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसा देश, जो कभी 65-70% महत्वपूर्ण सैन्य हार्डवेयर आयात करता था, वह अब 65% उपकरण अपनी ही धरती पर तैयार कर रहा है। रक्षा मंत्री ने घरेलू विनिर्माण को भविष्य में 100 प्रतिशत तक बढ़ाने के सरकार के संकल्प को दोहराया।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वर्ष 2014 में जब भाजपा सरकार सत्ता में आई, तो यह स्पष्ट हुआ कि आत्मनिर्भरता के बिना देश पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकता है। शुरुआत में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें ‘सीमित रक्षा तैयारी’ और ‘आयात पर निर्भरता’ सबसे व्यापक थीं। रक्षा मंत्री नें कहा कि उस समय रक्षा उत्पादन लगभग पूरी तरह सरकारी उद्यमों तक सीमित था और निजी क्षेत्र की भागीदारी नगण्य थी। साथ ही, रक्षा नियोजन, उन्नत तकनीक और नवाचार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था। परिणामस्वरूप, महत्वपूर्ण उपकरण और अत्याधुनिक प्रणालियों के लिए हमें अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ा, जिससे लागत बढ़ी और रणनीतिक कमजोरियां उत्पन्न हुईं। रक्षा मंत्री नें कहा कि इस चुनौती ने हमें नई सोच व सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और इसके परिणाम आज सामने से दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने न केवल आयात पर निर्भरता कम की, बल्कि स्वदेशीकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को भी पूरा किया। श्री राजनाथ सिंह ने कहा, “जो कुछ भी हम पहले विदेश से खरीदते थे, अब उसका निर्माण हम देश में ही कर रहे हैं—चाहे वह लड़ाकू विमान हो, या फिर मिसाइल, इंजन अथवा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली हो।”

रक्षा मंत्री ने बताया कि सरकार के निरंतर प्रयासों से रक्षा उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। वार्षिक रक्षा उत्पादन, जो 2014-15 में 46,429 करोड़ रुपये था, अब 2024-25 में 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। इसी तरह, रक्षा निर्यात ने भी पिछले दशक में 1,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू लिया है। उन्होंने कहा, ‘हमने अब 2029 तक रक्षा विनिर्माण को 3 लाख करोड़ रुपये और निर्यात को 50,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
श्री राजनाथ सिंह ने आधुनिक समय में युद्ध की निरंतर विकसित होती प्रकृति पर अपने विचार रखे और उन्होंने समय के साथ आगे रहने के महत्व को रेखांकित किया। रक्षा मंत्री ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर युद्ध, ड्रोन सिस्टम तथा अगली पीढ़ी के विमान भविष्य के संघर्ष की दिशा तय कर रहे हैं और युद्ध अब कई सीमाओं पर लड़े जा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, ‘भारत को इस नई दौड़ में हमेशा आगे रहना चाहिए।’ श्री राजनाथ सिंह ने एचएएल को अगली पीढ़ी के विमान, मानवरहित प्रणालियों एवं नागरिक उड्डयन में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया और यह सुनिश्चित करने को कहा कि कंपनी अपनी सीमाओं को केवल एलसीए तेजस या एचटीटी-40 तक न रोकें, बल्कि उससे भी आगे जाएं।
रक्षा मंत्री ने अत्याधुनिक और स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने इस दिशा में एचएएल की भूमिका की सराहना करते हुए इसे भारतीय रक्षा क्षेत्र की मेरुदंड बताया। श्री सिंह ने हाल ही में सेवामुक्त हुए मिग-21 के परिचालन में सहायता प्रदान करने और ऑपरेशन सिंदूर में इसके बहुमूल्य योगदान के लिए एचएएल की विशेष प्रशंसा की।
रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारे सुरक्षा इतिहास में ऐसे उदाहरण दुर्लभ ही हैं, जब पूरी व्यवस्था का एक साथ सही मायने में परीक्षण हुआ हो और ऑपरेशन सिंदूर एक ऐसा ही अभियान था। इस दौरान हमारी सेनाओं ने न केवल वीरता एवं प्रतिबद्धता दिखाई, बल्कि स्वदेशी उपकरणों में अपना पूर्ण विश्वास भी प्रदर्शित किया। उन्होंने बताया कि एचएएल ने ऑपरेशन के विभिन्न स्थलों पर चौबीसों घंटे लगातार सहयोग प्रदान किया, लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों का त्वरित रखरखाव करके भारतीय वायु सेना की परिचालन तत्परता सुनिश्चित की। नाशिक की टीम ने सुखोई-30 पर ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिसने ऑपरेशन में आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। श्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘इससे यह स्पष्ट हो गया कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आती है, तो हम अपने उपकरण स्वयं बना सकते हैं और उनसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

रक्षा मंत्री ने छह दशकों से अधिक समय तक भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए एचएएल नाशिक की प्रशंसा की। इसमें मिग-21 और मिग-27 जैसे लड़ाकू विमानों का निर्माण और ओवरहॉल तथा सुखोई-30 का उत्पादन केंद्र बनना शामिल है। उन्होंने इस परिसर को भारत की आत्मनिर्भरता का एक जीवंत एवं उज्ज्वल प्रतीक बताया।
श्री राजनाथ सिंह ने बताया कि एलसीए तेजस और एचटीटी-40 विमानों का वर्तमान निर्माण देश के विभिन्न उद्योग भागीदारों के बीच सहयोग का परिणाम है। उन्होंने कहा, ‘यह सहयोग इस तथ्य की पुष्टि करता है कि जब सरकार, उद्योग तथा शिक्षा जगत एक साथ मिलकर कार्य करते हैं, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं रह पाती है।’ रक्षा मंत्री ने तेजस और एचटी-40 जैसे विमानों में भारतीय वायु सेना द्वारा जताए गए विश्वास की भी सराहना की।

रक्षा मंत्री ने नाशिक डिवीजन में असैन्य व सैन्य विमानन दोनों के लिए स्थापित संयुक्त रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल इकाई के बारे में कहा कि इस पहल से नाशिक तथा आसपास के क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। उन्होंने यह भी बताया कि पूरा एचएएल परिसर अब कागज रहित, डिजिटल और शत प्रतिशत स्थाई बन चुका है। उन्होंने इसे नए भारत के लिए तकनीकी छलांग का सच्चा प्रतीक बताया।
इस अवसर पर सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार ने कहा कि दो उत्पादन लाइनों का शुरू होना भारत के बढ़ते तकनीकी आत्मविश्वास, औद्योगिक सामर्थ्य और रणनीतिक दूरदर्शिता का प्रतीक है। उन्होंने कहा, ‘यह पहल एचएएल की यात्रा में एक नया अध्याय शुरू करता है, जो देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है। यह एक मजबूत एवं आत्मनिर्भर एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र की नींव को और मजबूत भी करता है।
सचिव (रक्षा उत्पादन) ने कहा कि एलसीए तेजस एमके-1 केवल एक लड़ाकू विमान नहीं बल्कि यह भारत की डिजाइन और विनिर्माण उत्कृष्टता का प्रतीक है। इस विमान की परिकल्पना, विकास व उत्पादन पूरी तरह स्वदेशी रूप से एचएएल, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी, डीआरडीओ तथा भारतीय वायु सेना के सहयोग से किया गया है। उन्होंने कहा कि एचएएल ने ही एचटीटी-40 को पूरी तरह डिजाइन और विकसित किया है, जो यह दर्शाता है कि कंपनी महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों की अवधारणा, डिजाइन तथा वितरण कार्य को पूर्णतः स्वदेशी रूप से करने में सक्षम है।
एचएएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. डीके सुनील ने नाशिक से एलसीए एमके-1ए और एचटीटी-40 उत्पादन की सफलता को एचएएल की बढ़ती विस्तार क्षमता का प्रमाण बताया। उन्होंने कहा कि इस डिवीजन की सुखोई-30 एमकेआई और अन्य स्वदेशी उन्नत लड़ाकू विमानों की उत्पादन क्षमता ने समय-सीमा के भीतर उत्पादन प्रयासों को गति दी है। डॉ. सुनील ने बताया, ‘इसके परिणामस्वरूप लगभग 1,000 नए रोजगार सृजित हुए हैं और नाशिक तथा उसके आसपास 40 से अधिक उद्योग साझेदारों का विकास हुआ है, जो सरकार के प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी स्थापित करने के लक्ष्य के अनुरूप है।

एचएएल के मुख्य परीक्षण पायलट (फिक्स्ड-विंग), ग्रुप कैप्टन केके वेणुगोपाल (सेवानिवृत्त) ने तेजस एमके1ए की उड़ान भरी, जिसके बाद सुखोई-30एमकेआई और एचटीटी-40 ने शानदार हवाई प्रदर्शन का प्रदर्शन किया। इस अवसर पर तेजस एमके1ए को वाटर कैनन सलामी भी दी गई।
पृष्ठभूमि
एचएएल ने मात्र दो वर्षों में रिकॉर्ड समय में तीसरी एलसीए एमके1ए उत्पादन लाइन का संचालन शुरू कर दिया है। यह लाइन 30 से अधिक संरचना असेंबली जिग्स से पूरी तरह सुसज्जित है, जो विमान के सभी प्रमुख मॉड्यूल—सेंटर फ्यूजलेज, फ्रंट फ्यूजलेज, रियर फ्यूजलेज, विंग्स और एयर इनटेक—को कवर करती हैं। नई लाइन पूरी तरह सक्रिय है और प्रति वर्ष आठ विमानों का उत्पादन कर सकती है। इसके साथ ही, एचएएल की कुल उत्पादन क्षमता अब 24 विमान प्रति वर्ष तक पहुंच गई है।

एचएएल ने नाशिक में दूसरी एचटीटी-40 उत्पादन लाइन स्थापित की है। इस असेंबली कॉम्प्लेक्स में फ्यूजलेज, विंग्स और कंट्रोल सरफेस के निर्माण के लिए स्ट्रक्चर असेंबली शॉप्स हैं।
एचएएल नाशिक डिवीजन के बारे में
नाशिक डिवीजन की स्थापना 1964 में मिग-21 लड़ाकू विमानों के लाइसेंस प्राप्त निर्माण के लिए की गई थी। अब तक, इस डिवीजन ने 900 से अधिक विमानों का निर्माण किया है और मिग-21 तथा मिग-27 से लेकर सुखोई-30 एमकेआई तक 1,900 से अधिक सैन्य विमानों की मरम्मत सफलतापूर्वक की है। नाशिक डिवीजन अपनी व्यापक डिजाइन, विनिर्माण और एकीकरण क्षमताओं के दम पर सुखोई-30 एमकेआई को ब्रह्मोस मिसाइल सहित अतिरिक्त स्वदेशी हथियारों से सफलतापूर्वक सुसज्जित किया है।
नाशिक डिवीजन एक अत्याधुनिक इकाई है, जिसमें विमान निर्माण, डिजाइन और ओवरहाल की सम्पूर्ण क्षमताएं मौजूद हैं। यह डिवीजन अपने निर्मित विमानों के लिए उनके जीवनचक्र में पूर्ण सहयोग प्रदान करने की समृद्ध विरासत की वाहक है। वर्तमान में, यह सुखोई-30 एमकेआई विमान के लिए व्यापक ओवरहाल और मरम्मत सहायता प्रदान कर रही है।
पीके/केसी/एनके/डीके
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