पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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संसदीय प्रश्न: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना

Posted On: 18 AUG 2025 4:51PM by PIB Delhi

जलवायु परिवर्तन से चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत सरकार ने समावेशी नीतिगत उपायों, अनुकूलन, सुगमता-निर्माण और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने सहित कई पहल की हैं। जलवायु कार्रवाई से जुड़े प्रमुख कार्यक्रमों में तटीय, बाढ़ प्रवृत्त और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जलवायु-अनुकूल आवास और बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के प्रयास शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूर करने के लिए एक बहुआयामी रणनीति की रूपरेखा तैयार करती है। एनएपीसीसी के भाग के रूप में, राष्ट्रीय सतत पर्यावास मिशन (एनएमएसएच) का उद्देश्य, अन्य बातों के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति शहरों के अनुकूलन का निर्माण करना और जलवायु संबंधी चरम घटनाओं और आपदा जोखिम से 'बेहतर वापसी करने' के लिए उनकी क्षमताओं को सुदृढ़ करना है।

एनएपीसीसी के अंतर्गत राष्ट्रीय टिकाऊ कृषि मिशन (एनएमएसए) भारतीय कृषि को बदलती जलवायु के प्रति अधिक सुगम बनाने के लिए रणनीतियों को लागू करता है। एनएमएसए के अंतर्गत कई योजनाएं कृषि में प्रतिकूल जलवायु स्थितियों से निपटती हैं। प्रति बूंद अधिक फसल योजना सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकियों यानी ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता को बढ़ाती है। वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास योजना उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तनशीलता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए समेकित कृषि प्रणाली (आईएफएस) को प्रोत्साहन देती है।

इसके अतिरिक्त, चौंतीस राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य-विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनएपीसीसी की तर्ज पर जलवायु परिवर्तन संबंधी अपनी राज्य कार्य योजना तैयार की है और कुछ ने नवीनीकरण किया है। ये एसएपीसीसी अनुकूलन और जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढांचे सहित क्षेत्र-विशिष्ट और क्रॉस-सेक्टोरल प्राथमिकता वाले कार्यों की रूपरेखा तैयार करते हैं।

भारत सरकार देश के जैविक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने पश्चिमी घाट, हिमालय और पूर्वोत्तर क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट के संरक्षण और समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने के लिए कई उपाय लागू किए हैं। इनमें जैव विविधता अधिनियम, 2002 के अंतर्गत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य जैव विविधता बोर्डों और केंद्र शासित प्रदेश जैव विविधता परिषदों की स्थापना; 50 जैव विविधता विरासत स्थलों की घोषणा; जैव विविधता प्रबंधन समितियों का निर्माण; और लोगों के जैव विविधता रजिस्टरों की तैयारी शामिल हैं।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता कार्य योजना (केएमजीबीएफ) के अनुरूप राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (एनबीएसएपी) 'संपूर्ण सरकार' और 'संपूर्ण समाज' के दृष्टिकोण आदि को अपनाते हुए लागू की गई। नवीन एनबीएसएपी में 142 संकेतकों के साथ 23 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य (एनबीटी) शामिल हैं। यह व्यापक रूप से संरक्षण, सतत उपयोग और लाभ साझा करने को संबोधित करता है और स्थलीय और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने, अवक्रमित इकोसिस्टम को बहाल करने और जैव विविधता के खतरों को कम करने की परिकल्पना करता है। इसके अतिरिक्त, योजना समावेशी और स्थायी परिणाम सुनिश्चित करने के लिए जैव विविधता शासन में सक्रिय सामुदायिक भागीदारी पर बल देती है।

इसके अलावा, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण सहित संगठन सर्वेक्षण, सूची, वर्गीकरण सत्यापन, वनस्पतियों और प्राणिजात संसाधनों के खतरे के आकलन के साथ-साथ भारत के चार जैव विविधता हॉटस्पॉट सहित देश भर में अपने क्षेत्रीय केंद्रों के माध्यम से पूर्व-स्वस्थानी संरक्षण में सहायता करते हैं। हिमालय में, हिम तेंदुआ परियोजना, हिमालयी वन्यजीव परियोजना, और हंगुल, कस्तूरी मृग और हिमालयी मोनाल की वसूली जैसे प्रमुख कार्यक्रम हॉटस्पॉट संरक्षण के हिस्से के रूप में शुरू किए गए हैं।

मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आस-पास पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को अधिसूचित किया है। संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र यानी राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को विशेष इकोसिस्टम के लिए कुछ प्रकार के "आघात अवशोषक" बनाने के लिए घोषित किया गया है, जैसे संरक्षित क्षेत्र या अन्य प्राकृतिक स्थल और उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करने के लिए है। पूर्वोत्तर के जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में दहानु तालुका, महाबलेश्वर-पंचगनी, माथेरान, भागीरथी और दून घाटी जैसे पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों और 120 पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को अधिसूचित किया गया है।

जीवमंडल अभयारण्य (बीआर) को जैव विविधता के संरक्षण, आर्थिक और सामाजिक विकास की खोज और संबंधित सांस्कृतिक मूल्यों के रखरखाव के सामंजस्य के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक से निपटने के लिए नामित किया गया है। देश में 18 जीवमंडल अभयारण्य हैं। इनमें से 12 बीआर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के विश्व जीवमंडल अभयारण्य नेटवर्क (डब्ल्यूएनबीआर) के अंतर्गत हैं और शेष 6 बीआर यूनेस्को के डब्ल्यूएनबीआर में विचाराधीन हैं।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए नीतियों और कानूनों की स्थापना की है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में वन्यजीवों और उनके पर्यावासों की सुरक्षा के लिए अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों, संरक्षण रिजर्वों और सामुदायिक रिजर्वों को अधिसूचित करने का प्रावधान है।

मंत्रालय देश में मानव-हाथी संघर्ष और बंदी हाथियों के कल्याण के मुद्दों का समाधान करने के लिए हाथियों, उनके पर्यावासों और गलियारों की सुरक्षा के लिए केन्द्रीय प्रायोजित योजना बाघ और हाथी परियोजना (सीएसएस-पीटी एंड ) के अंतर्गत राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है। योजना के अंतर्गत देश में वन्यजीवों और उनके पर्यावासों के प्रबंधन के लिए राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा प्रस्तुत प्रचालन की वार्षिक योजना के अनुसार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

वर्ष 2018 के अनुमान 2967 (रेंज 2603-3346) और 2014 के अनुमान 2226 (रेंज 1945-2491) की तुलना में 2022 में किए गए अखिल भारतीय बाघ अनुमान के अनुसार बाघों की संख्या में 3682 (रेंज 3167-3925) की अनुमानित संख्या के साथ वृद्धि हुई है। बाघों के संरक्षण के लिए, भारत में 58 बाघ अभयारण्यों को अधिसूचित किया गया है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.5 प्रतिशत क्षेत्र को शामिल करते हैं।

भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के माध्यम से मानव-वन्यजीव नकारात्मक अन्योन्यक्रिया के प्रबंधन के लिए त्रिआयामी कार्यनीति का समर्थन किया है अर्थात

  1. सामग्री और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करना;
  2. निवास स्थान के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करना और
  3. तीन मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी), जिनमें शामिल हैं, () मानव बहुल परिदृश्य में बाघों के भटकने के कारण उत्पन्न होने वाली आपात स्थिति से निपटना; () पशुधन पर बाघों के हमलों से निपटना और

तीन एसओपी में अन्य बातों के साथ-साथ बाघों को तितर-बितर करने के प्रबंधन का मुद्दा शामिल है; संघर्ष को कम करने के लिए पशुधन हत्याओं का प्रबंधन करना, साथ ही बाघों को स्रोत क्षेत्रों से उन क्षेत्रों में स्थानांतरित करना जहां बाघों का घनत्व कम है, ताकि समृद्ध स्रोत क्षेत्रों में संघर्ष हो। इसके अतिरिक्त, बाघ संरक्षण योजनाओं के अनुसार, बाघ अभयारण्यों द्वारा आवश्यकता आधारित और स्थल-विशिष्ट प्रबंधन हस्तक्षेप किए जाते हैं।

हाथियों, उनके आवास और गलियारों की रक्षा करने, मानव-हाथी संघर्ष के मुद्दों को हल करने और देश में बंदी हाथियों के कल्याण के उद्देश्य से वर्ष 1992 में हाथी परियोजना शुरू की गई थी। हाथी संरक्षण में फोकस और तालमेल बढ़ाने और संघर्ष को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हाथी पर्यावासों को 'हाथी अभयारण्य' के रूप में अधिसूचित किया जाता है। देश में नवीनतम हाथी अनुमान 2017 में पूरा हुआ था। 2017 में हाथियों की आबादी 29,964 आंकी गई थी, जबकि 2012 में अनुमानित सीमा 29,391-30,711 थी। हाथियों के संरक्षण के लिए, 14 हाथी रेंज राज्यों में 33 हाथी अभयारण्य स्थापित किए गए हैं।

मानव-हाथी संघर्ष (एचईसी) के निवारण और प्रबंधन सहित वन्यजीवों का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन का दायित्व है। राज्य वन विभाग, मीडिया के विभिन्न रूपों के माध्यम से सूचना के प्रसार सहित मानव-पशु संघर्ष पर आम जनता को संवेदनशील बनाने, मार्गदर्शन करने और परामर्श देने के लिए आवधिक जागरूकता अभियानों के माध्यम से एचईसी मुद्दों का समाधान करने के लिए स्थानीय लोगों के साथ कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य वन विभाग हाथियों की आवाजाही की निगरानी करने और मानव-पशु संघर्ष से बचने, मानव जीवन, संपत्ति और हाथियों को नुकसान या हानि को रोकने के लिए स्थानीय लोगों को सावधान करने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 में मानव-वन्यजीव स्थितियों से निपटने के लिए विनियामक कार्यों का प्रावधान है।

इसके अतिरिक्त, मंत्रालय ने मानव-हाथी संघर्षों से निपटने के लिए एक सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व दृष्टिकोण (2023) को अपनाते हुए मानव-हाथी संघर्ष समाप्त करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके अलावा, 29 अप्रैल, 2022 को संचालन समिति की 16वीं बैठक के दौरान मानव-हाथी संघर्ष प्रबंधन पर फ्रंटलाइन स्टाफ के लिए फील्ड मैनुअल भी जारी किया गया था।

राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनों की मुआवजा योजनाओं के अतिरिक्त, मंत्रालय निधियों की उपलब्धता के आधार पर, अनुग्रह राहत के लिए बाघ और हाथी परियोजना नामक केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अंतर्गत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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पीके/केसी/एमकेएस/डीके


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