अंतरिक्ष विभाग
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वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने की रणनीतियां

Posted On: 24 JUL 2025 3:31PM by PIB Delhi

2020 में ऐतिहासिक अंतरिक्ष सुधारों के साथ केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को उदार बनाया है और अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) में एक स्वायत्त, एकल-खिड़की, स्वतंत्र नोडल एजेंसी, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (आईएन-एसपीएसीई) का गठन किया है, ताकि अंतरिक्ष गतिविधियों के संपूर्ण स्पेक्ट्रम में निजी खिलाड़ियों/गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीई) की साझेदारी को सुविधाजनक बनाया जा सके और बढ़ावा दिया जा सके।

आईएन-एसपीएसीई ने इसरो, एनजीई और एक प्रमुख परामर्श देने वाली फर्म के सहयोग से एक बाजार अध्ययन किया, जिसके परिणामस्वरूप 'भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दशकीय विजन और रणनीति' शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की गई, जो अगले दशक में भारत के अंतरिक्ष उद्योग और आर्थिक संभावनाओं को दिशा देने के लिए तैयार किया गया एक रणनीतिक दस्तावेज है।

दशकीय विज़न रिपोर्ट में एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास को गति देने, नवाचार को बढ़ावा देने और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता का पूर्ण उपयोग करना है। यह परिकल्पित विकास मांग सृजन, क्षमता निर्माण, औद्योगिक इको-सिस्टम के निर्माण, अनुसंधान एवं विकास के लिए अंतर-क्षेत्रीय सहयोग, वित्त तक पहुंच को सक्षम बनाने, प्रतिभा सृजन और अंतर्राष्ट्रीय पहुंच पर केंद्रित रणनीतिक एवं सक्षमकारी पहलों के जरिए प्राप्त किया जाएगा।

आईएन-एसपीएसीई ने निम्नलिखित रणनीतिक पहल/कार्रवाईयां शुरू की हैं/सक्षम की हैं (इन तक सीमित नहीं), जो 2033 तक 44 बिलियन डॉलर के दशकीय विजन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ेंगी:

  • भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए नियामक और नीतिगत ढांचा प्रदान करना
  • अंतरिक्ष गतिविधियों की सुविधा और प्राधिकरण तथा गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीई) के लिए व्यापार करने में आसानी
  • एनजीई को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) को बढ़ावा देना और सक्षम बनाना
  • महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और तकनीकी सुविधाओं तक पहुंच को सक्षम बनाना
  • पृथ्वी अवलोकन के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी)
  • राज्यों में विनिर्माण और विनिर्माण क्लस्टरों के विकास को प्रोत्साहन
  • उद्योग को लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) का प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
  • अंतरिक्ष स्टार्टअप और एमएसई के लिए वित्तीय सहायता योजनाएं
  • अंतरिक्ष क्षेत्र केंद्रित 1000 करोड़ रुपये का अंतरिक्ष वेंचर कैपिटल फंड स्थापित करना
  • प्रतिभा पूल निर्माण के लिए कौशल विकास और अंतरिक्ष पाठ्यक्रम
  • कक्षीय संसाधनों और अंतरिक्ष मानकों तक पहुंच
  • अंतरिक्ष अनुप्रयोगों को अपनाने के लिए मांग सृजन अभियान
  • वित्त तक पहुंच और निवेशक जागरूकता अभियान
  • अंतर्राष्ट्रीय पहुंच और अंतरिक्ष कूटनीति

इन पहलों को रणनीतिक रूप से योजनाबद्ध किया जाता है, नियमित रूप से निगरानी की जाती है, तथा समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है, जो वर्तमान विकास पथ और उभरते वैश्विक बाजार रुझानों के साथ संरेखित होता है।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र देश की तकनीकी और आर्थिक विकास गाथा में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाने के लिए तैयार है, इसलिए इसे आर्थिक विस्तार के एकमात्र इंजन के बजाय एक रणनीतिक प्रवर्तक के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए। अंतरिक्ष क्षेत्र को व्यापक क्षेत्रीय विकास के उत्प्रेरक के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक अकेले स्तंभ के रूप में। अंतरिक्ष क्षेत्र या प्रौद्योगिकियों पर अत्यधिक निर्भरता के बिना तीव्र विस्तार को संतुलित करने के लिए, यह अनिवार्य है कि-

  1. अंतरिक्ष को सभी क्षेत्रों में सक्षम बनाने के लिए, इसे कृषि, आपदा प्रबंधन, शहरी विकास, रसद, जलवायु कार्रवाई, रक्षा और डिजिटल सेवाओं के साथ गहराई से एकीकृत किया जाना चाहिए, जिससे आर्थिक अति-निर्भरता के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
  2. क्रॉस-सेक्टर नवाचार को बढ़ावा दें- एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, बायोटेक और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के साथ अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी अभिसरण यह सुनिश्चित करेगा कि लाभ वितरित हों और पारस्परिक रूप से सुदृढ़ हों।
  3. एक विविध प्रौद्योगिकी इको-सिस्टम के पोषण पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक संतुलित नवाचार पोर्टफोलियो को बढ़ावा देना - अंतरिक्ष के साथ-साथ अन्य उच्च-विकास क्षेत्रों (अर्धचालक, विद्युत गतिशीलता, फिनटेक, आदि) का समर्थन करना, ताकि आर्थिक प्रतिस्कंदन सुनिश्चित किया जा सके, भले ही अंतरिक्ष क्षेत्र को वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़े।
  4. राजकोषीय और नीतिगत प्राथमिकताओं में संतुलन सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत और निवेश सुरक्षा-व्यवस्था का निर्माण करें। अंतरिक्ष को प्रोत्साहित करते हुए विनिर्माण, एमएसएमई और हरित ऊर्जा जैसे अन्य क्षेत्रों पर भी समान ज़ोर दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक-निजी निवेश रणनीतियों को किसी एक क्षेत्र में पूंजी के अत्यधिक संकेन्द्रण से बचना चाहिए।

भारत को, एक विविधीकृत नवाचार-नेतृत्व वाले विकास मॉडल के माध्यम से, जहां अंतरिक्ष एक एकीकरणकर्ता और प्रवर्तक के रूप में कार्य करता है, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को अधिक वितरित और समावेशी बनाने के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि भारत का आर्थिक विकास का रास्ता किसी भी प्रमुख क्षेत्र या प्रौद्योगिकियों पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिम के बिना संतुलित, प्रतिस्कंदी और समावेशी बना रहे।

केंद्रीय  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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एमजी/केसी/आईएम/एसके


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