संस्‍कृति मंत्रालय
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राजेंद्र चोल प्रथम आदि तिरुवथिरई महोत्सव की गौरवशाली विरासत का जश्न 23 से 27 जुलाई, 2025 तक मनाया जा रहा है


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिती में 27 जुलाई को होगा भव्य समापन

Posted On: 23 JUL 2025 2:38PM by PIB Delhi

संस्कृति मंत्रालय महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती को तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम में 23 से 27 जुलाई 2025 तक आयोजित होने वाले आदि तिरुवथिरई महोत्सव के साथ मनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। यह विशेष उत्सव राजेंद्र चोल के दक्षिण पूर्व एशिया तक की पौराणिक समुद्री यात्रा के 1,000 वर्ष पूरे होने और प्रतिष्ठित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण की शुरुआत का भी स्मरण कराता है, जो चोल वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है।

27 जुलाई को महोत्सव के भव्य समापन समारोह में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे। उनके साथ तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर.एन. रवि, केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री और संसदीय कार्य राज्य मंत्री श्री डॉ. एल. मुरुगन सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहेंगे।

इस दिन कलाक्षेत्र फाउंडेशन एक विशेष भरतनाट्यम समूह गायन प्रस्तुत करेगा, जिसके बाद पारंपरिक ओथुवरों द्वारा देवराम थिरुमुराई का गायन होगा। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित देवराम भजनों पर एक पुस्तिका का औपचारिक विमोचन भी किया जाएगा। महोत्सव का समापन महान उस्ताद पद्म विभूषण इलैयाराजा और उनकी मंडली द्वारा एक संगीतमय प्रस्तुति के साथ होगा, जो चोल युग की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतिभा को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

23 जुलाई से शुरू होने वाले इस पांच दिवसीय महोत्सव में हर शाम जीवंत सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होंगी। आगंतुक कलाक्षेत्र फाउंडेशन के कलाकारों द्वारा भरतनाट्यम प्रस्तुतियां देखेंगे और तंजावुर स्थित दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रशिक्षित छात्रों द्वारा देवराम थिरुमुराई मंत्रोच्चार का आनंद लेंगेये दोनों ही चोल शासन के दौरान फली-फूली गहरी आध्यात्मिक और कलात्मक परंपराओं को दर्शाते हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) चोल शैव धर्म और मंदिर वास्तुकला पर विशेष प्रदर्शनियों का आयोजन करेगा, इसके अलावा विरासत यात्राएं और निर्देशित दौरे भी आयोजित किए जाएंगे, जो इस अवधि की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत में दुर्लभ अंतरदृष्टि प्रदान करेगें।

राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 सीई) भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी शासकों में से एक थे। उनके नेतृत्व में चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाया। उन्होंने अपने विजयी अभियानों के बाद गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी शाही राजधानी के रूप में स्थापित किया और वहां उनके द्वारा निर्मित मंदिर 250 वर्षों से भी अधिक समय तक शैव भक्ति, मोनुमेंटल वास्तुकला और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक रहा। आज, यह मंदिर एक  यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में खड़ा है, जो अपनी जटिल मूर्तियों, चोल कांस्य और प्राचीन शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है।

आदि तिरुवथिरई महोत्सव समृद्ध तमिल शैव भक्ति परंपरा का भी जश्न मनाता है, जिसें चोलों द्वारा उत्साहपूर्वक समर्थन दिया गया था और 63 नयनमारों- तमिल शैव धर्म के संत-कवियों- द्वारा अमर कर दिया गया था। गौरतलब है कि राजेंद्र चोल का जन्म नक्षत्र, तिरुवथिरई (आर्द्रा), 23 जुलाई को शुरू होता, जो इस वर्ष का महोत्सव को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।

महोत्सव के मुख्य उद्देश्य शैव सिद्धांत की गहन दार्शनिक जड़ों और इसके प्रसार में तमिल की भूमिका को उजागर करना; तमिल संस्कृति के आध्यात्मिक ताने-बाने में नयनमारों के योगदान को सम्मानित करना; और शैव धर्म, मंदिर वास्तुकला, साहित्य और शास्त्रीय कलाओं को बढ़ावा देने में राजेंद्र चोल प्रथम और चोल राजवंश की असाधारण विरासत का जश्न मनाना है।

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