पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय
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समुद्री जीव संसाधन एवं पारिस्थितिकी केन्द्र (सीएमएलआरई) ने कोच्चि के दक्षिण में खतरनाक तरीके से माल बिखरने के बाद तत्काल समुद्री अध्ययन किया

Posted On: 03 JUN 2025 7:59PM by PIB Delhi

हाल ही में 643 कंटेनरों को ले जा रहे एक मालवाहक जहाज के डूबने से हुई समुद्री आपदा के जवाब में, जिनमें से 13 में खतरनाक सामग्री होने की जानकारी है, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के तहत समुद्री जीव संसाधन और पारिस्थितिकी केन्द्र (सीएमएलआरई) दक्षिण पूर्वी अरब सागर के दक्षिणी भाग में संभावित पारिस्थितिक और जैव-रासायनिक प्रभावों की जांच करने के लिए एक केन्द्रित समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत को पानी में उतार रहा है।

इस महीने की शुरुआत में डूबे इस जहाज ने भारतीय इकोसिस्टम के बीच सबसे अधिक जैविक रूप से उत्पादक क्षेत्रों में से एक में विषाक्त पदार्थों के संभावित उत्सर्जन को देखते हुए गंभीर पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म दिया है। 3 जून से 12 जून, 2025 तक निर्धारित यह क्रूज कोच्चि से चलेगा, कोच्चि से कोच्चि तक एक लूप ट्रैक पर नेविगेट करेगा, और दक्षिण-पूर्वी अरब सागर के एक सावधानीपूर्वक चार्ट किए गए हिस्से को कवर करेगा, जिसमें 09°18.76’एनऔर 076°08.12’ईपर स्थित मलबे वाली जगह पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। अध्ययन क्षेत्र में 16 अनुसंधान स्टेशन शामिल होंगे, जो दो मेरिडियन ट्रांसेक्ट में व्यवस्थित होंगे, जो 10 समुद्री मील की दूरी पर होंगे, जो डूबे हुए जहाज के आसपास के क्षेत्र का क्षेत्रीय कवरेज प्रदान करेंगे।

इस 10 दिवसीय वैज्ञानिक यात्रा का उद्देश्य समुद्री जीवन, मत्स्य पालन और आसपास के पानी और तलछट के रासायनिक संतुलन पर घटना के प्रभाव का व्यापक मूल्यांकन प्रदान करना है। प्राथमिक लक्ष्य जहाज़ के मलबे वाले क्षेत्र में जैव-रासायनिक और पारिस्थितिक दोनों मापदंडों की निगरानी करना है, साथ ही उन्नत उपकरणों और विधियों का उपयोग करके क्षेत्रीय जल विज्ञान और महासागर धाराओं की निगरानी करना है। ये उपकरण प्रभावित क्षेत्र में जल की संरचना और पानी के निरंतर प्रवाह को समझने में मदद करेंगे, जो प्रदूषकों के फैलाव पर नजर रखने करने के लिए महत्वपूर्ण है। टीम हाई-एंड ध्वनिक सिस्टम जैसे लॉन्ग-रेंज एसओएनएआर एसएक्स90 और मल्टीपल फ़्रीक्वेंसी स्प्लिट-बीम इको साउंडर्स का संचालन करेगी। ये उपकरण मलबे का पता लगाने और क्षेत्र और जल स्तंभ की गड़बड़ी का मानचित्रण करने में सहायता करेंगे, साथ ही मछली के झुंड या अन्य जैविक विसंगतियों की पहचान करेंगे जो रिसाव के कारण समुद्री जीवन के व्यवहार में तनाव या परिवर्तन का संकेत दे सकते हैं।

रासायनिक और जैविक नमूनाकरण इस ऑपरेशन का मुख्य हिस्सा है। टीम महत्वपूर्ण रासायनिक और जैव-रासायनिक मापदंडों का विश्लेषण करेगी, जिसमें घुलित ऑक्सीजन, क्लोरोफिल, विभिन्न पोषक तत्व, पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, भारी धातु सामग्री, ट्रेस तत्व, पीएच और कण कार्बनिक पदार्थ और कार्बन शामिल हैं। ये नमूने माइक्रोप्लास्टिक और इकोटॉक्सिकोलॉजी विश्लेषण का भी समर्थन करेंगे। टीम सूक्ष्म समुद्री शैवाल, जोप्लांकटन (पानी के तल के नजदीक तैरने वाले सूक्ष्म जीव) और मछली के अंडों और लार्वा के वितरण और स्वास्थ्य का आकलन करेगी।

साथ ही, सभी 16 स्टेशनों पर तलछट के नमूने एकत्रित किए जाएंगे, ताकि महासागर की गहराई में रहने वाले जीवों की जांच की जा सके और समुद्र तल के प्रदूषण का आकलन किया जा सके। मलबे और आस-पास के क्षेत्रों का निरीक्षण करने के लिए चयनित स्थानों पर पानी के नीचे कैमरे लगाए जाएंगे, ताकि संरचनात्मक क्षति, तेल रिसाव या तनावग्रस्त समुद्री जीवों के सबूत मिल सकें। बड़े पैमाने पर सतह की निगरानी के लिए बिग आई कैमरे का उपयोग किया जाएगा।

टीम की सामूहिक विशेषज्ञता भौतिक समुद्र विज्ञान, समुद्री जीव विज्ञान, मत्स्य पालन ध्वनिकी, समुद्री रसायन विज्ञान, मत्स्य पालन और पर्यावरण विष विज्ञान तक फैली हुई है। उनका एकीकृत दृष्टिकोण न केवल तत्काल पर्यावरणीय प्रभाव को मापने में मदद करेगा बल्कि दीर्घकालिक पारिस्थितिक निगरानी और शमन रणनीतियों के लिए आधार भी तैयार करेगा। अंततः, क्रूज़ से एक व्यापक डेटा सेट तैयार होने की उम्मीद है जो नीति निर्माताओं, मत्स्य पालन प्रबंधकों और संरक्षणवादियों सहित हितधारकों को पर्यावरणीय क्षति के दायरे के बारे में सूचित करेगा और पुनर्प्राप्ति योजनाओं का मार्गदर्शन करेगा।

इस मिशन के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। अरब सागर जैव विविधता का हॉटस्पॉट है, खासकर मानसून के मौसम के दौरान, जो बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कोच्चि से कन्याकुमारी सेक्टर मई और जून (मानसून का प्रारंभिक चरण) के दौरान जलचरों के प्रजनन का स्थान है। सार्डिन, मैकेरल और एंकोवी जैसी अधिकांश व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण खुले महासागरों मे रहने वाली मछलियाँ अपने प्रजनन के लिए इस क्षेत्र को पसंद करती हैं।

इसलिए, इस नाजुक समुद्री पर्यावरण में किसी भी तरह की गड़बड़ी का क्षेत्रीय पारिस्थितिकी और आजीविका पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, खासकर ऐसे देश में जहां लाखों लोग समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं। इस क्रूज के माध्यम से, सीएमएलआरई न केवल पर्यावरणीय आपातकाल का तुरंत जवाब दे रहा है, बल्कि समुद्री आपदा प्रतिक्रिया में वैज्ञानिक अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका का भी प्रदर्शन कर रहा है।

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एमजी/केसी/केपी


(Release ID: 2133658)
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