उप राष्ट्रपति सचिवालय
उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि परोपकारी प्रयास वस्तुकरण और व्यावसायीकरण के दर्शन से प्रेरित नहीं होने चाहिए
शिक्षा सरकार और निजी क्षेत्र की संयुक्त जिम्मेदारी है- उपराष्ट्रपति
खिलजी द्वारा नालंदा का विनाश केवल वास्तुशिल्प नहीं था, बल्कि यह सदियों के ज्ञान के व्यवस्थित क्षरण का प्रतिनिधित्व करता है- उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने मुंबई में केपीबी हिंदुजा कॉलेज के 75वें वर्षगांठ समारोह को संबोधित किया
Posted On:
01 MAR 2025 8:02PM by PIB Delhi
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि, "परोपकारी प्रयास वस्तुकरण और व्यावसायीकरण के दर्शन से प्रेरित नहीं होने चाहिए। हमारे स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र इनसे ग्रस्त हैं..... कॉर्पोरेट दिग्गजों को शिक्षा में निवेश को परोपकार से परे देखना चाहिए। यह हमारे वर्तमान में निवेश है, हमारे भविष्य में निवेश है और सीधे शब्दों में कहें तो यह उद्योग, व्यवसाय और व्यापार के विकास के लिए निवेश है।"
आज महाराष्ट्र के मुंबई में के.पी.बी. हिंदुजा कॉलेज ऑफ कॉमर्स के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपना संबोधन देते हुए श्री धनखड़ ने कहा, "शिक्षा सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकारी तंत्र है क्योंकि यह समानता लाती है। यह असमानताओं को कम करती है और यह समान अवसर प्रदान करती है। यह शिक्षा के माध्यम से प्रतिभा की खोज करके प्रतिभा को निखारती है। हमारे संविधान निर्माता बहुत ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्होंने शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा। आप में से जो लोग वकील नहीं हैं, उनके लिए समवर्ती सूची का मतलब है कि यह राज्य और संघ की संयुक्त जिम्मेदारी का विषय है।"
उद्योग और कॉर्पोरेट जगत के दिग्गजों से शिक्षा में योगदान देने का आग्रह करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, "मैं इस मंच से अपील करना चाहूंगा, एक ऐसा मंच जहां मैंने देखा कि परोपकार के माध्यम से समाज को कुछ वापस दिया जा रहा है। यह सरकार और निजी क्षेत्र की संयुक्त जिम्मेदारी है। उद्योग, व्यापार, व्यवसाय और वाणिज्य से जुड़े लोगों को आगे आकर पहल करनी चाहिए। मैं देश के निजी क्षेत्र से अपील करता हूं कि वे इस अवसर पर आगे आएं और शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।"
उन्होंने कहा, "श्रोताओं में से कई लोग मेरी बात से सहमत होंगे कि अमेरिका में कुछ विश्वविद्यालयों की निधि अरबों डॉलर में हैं। इस देश में ऐसा क्या है कि हमारे पास यह संस्कृति नहीं है? पश्चिम में, किसी भी संस्थान से निकलने वाला कोई भी व्यक्ति कुछ वित्तीय योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध होता है। योगदान में मात्रा (क्वांटम) कभी महत्वपूर्ण नहीं होती है।"
नालंदा जैसे संस्थानों की विरासत पर विचार करते हुए, श्री धनखड़ ने रेखांकित किया, “हमारे पास गौरवशाली संस्थान ओदंतपुरी, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा, नालंदा, वल्लभी थे…विद्वान ज्ञान प्राप्त करने, ज्ञान देने और ज्ञान साझा करने के लिए दुनिया के हर कोने से आते थे तथा उन्हें ज्ञान मिला। लेकिन फिर लगभग बारह सौ साल पहले क्या हुआ! नालंदा, प्राचीन भारत का बौद्धिक रत्न। इसमें दस हजार छात्र और दो हजार शिक्षक थे, नौ मंजिला इमारत थी और 1193 में क्या हुआ? हमारी संस्कृति और हमारे शैक्षणिक संस्थान के एक लापरवाह विध्वंसक बख्तियार खिलजी ने परिसर में आग लगवा दी थी। महीनों तक आग ने विशाल पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया, जिससे गणित, चिकित्सा और दर्शन पर सैकड़ों व हजारों अपूरणीय पांडुलिपियां राख हो गई। यह विनाश केवल वास्तुशिल्प नहीं था, बल्कि यह सदियों के ज्ञान के व्यवस्थित क्षरण का प्रतिनिधित्व करता है।”
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति की पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़, महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन, हिंदुजा समूह के अध्यक्ष श्री अशोक पी. हिंदुजा तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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