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राज्यसभा के 267वें सत्र के प्रारंभ में सभापति के उद्घाटन भाषण का मूल पाठ

Posted On: 03 FEB 2025 12:21PM by PIB Delhi

माननीय सदस्यगण, राज्यसभा का 267वां सत्र भारत की संवैधानिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान को अपनाने की शताब्दी के अंतिम चौथाई भाग में प्रवेश करने के क्रम में आयोजित किया गया पहला सत्र है।

यह उन दूरदर्शी संस्थापकों के प्रति गहन कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, जिनकी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता ने हमें एक ऐसा संविधान प्रदान किया, जिसने हमारे गणतंत्र की नियति को उल्लेखनीय रूप से आकार दिया है।

हमने 75 वर्षों की इस यात्रा में, अपने शाश्वत ज्ञान और विरासत को बनाये रखते हुए आधुनिकता को अपनाया है। हमारे सामूहिक सपनों और आकांक्षाओं ने डिजिटल नवाचार और सतत विकास से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण एवं बुनियादी ढांचे तक प्रगति को सक्षम बनाया है।

विरासत के साथ विकास के मंत्र से प्रेरित होकर, 2047 तक विकसित भारत की ओर बढ़ना हमारे सामूहिक प्रयासों का आधार बनना चाहिए। इस सदन के सदस्यों के रूप में, यह हमारा दायित्व है कि हम इस आह्वान को अटूट संकल्प के साथ पूरा करें।

राज्यों की परिषद - सदन के वरिष्ठ सदस्यों के रूप में - हमें संवैधानिक मूल्यों के संरक्षक और प्रगतिशील विचारों के पथप्रदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए। आइए हम उन विद्वान संस्थापकों का अनुकरण करें और इतिहास के इस क्षण का लाभ उठाकर कालक्रम में अमिट पदचिह्न छोड़ें।

हमारा आचरण अनुकरणीय होना चाहिए; हमारे विचार-विमर्श बुद्धिमत्तापूर्ण और रचनात्मक होने चाहिए; और हमारे कार्य उन 1.4 अरब नागरिकों के कल्याण से प्रेरित होने चाहिए, जो हम पर विश्वास करते हैं।

एक जीवंत और क्रियाशील संसद लोकतंत्र की जीवनरेखा है। इस पवित्र सदन में, बहुलवादी, गतिशील और आकांक्षी समाज की आवाज़ें हैं, खासकर हमारे युवाओं की, जो हमारे देश की असीम ऊर्जा और सपनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। युवाओं को शिक्षा, अवसर और जिम्मेदारी की भावना से सशक्त बनाकर, हम एक अधिक समावेशी और टिकाऊ भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

महान महाकुंभ, भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सार का एक शानदार उत्सव है, जो विविधता में एकता, सामूहिक कल्याण, तथा सत्य, सहिष्णुता और सद्भाव के प्रति स्थायी प्रतिबद्धता की हमारी यात्रा का प्रतीक है।

जैसा कि हम वैश्विक समुदाय के साथ जुड़ते हैं, ये सिद्धांत हमारे कार्यों की कसौटी बने रहे तथा यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक नागरिक का कल्याण हमारे प्रयासों के केन्द्र में रहे।

माननीय सदस्यों, हमारा कार्य बहुत बड़ा है, इसलिए हमारा संकल्प भी बहुत बड़ा होना चाहिए। आइए हम इस सदन की पवित्रता और गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लें। हमारी बहस और निर्णय राष्ट्र की सेवा की महान आकांक्षाओं से प्रेरित हों। आइए हम सभी मतभेदों को दूर करते हुए मिलकर ऐसी नीतियां बनाएं जो वैश्विक मंच पर भारत को आगे ले जाये।

हमारे संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के शब्दों में: "लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से एक साथ रहने और संयुक्त संचारित अनुभव का एक तरीका है। यह अनिवार्य रूप से हमारे साथियों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का एक दृष्टिकोण है।"

हम इस ज्ञान को सदैव स्मरण रखें।

जैसा कि हम इस सत्र में शामिल हो रहे हैं, आइए हम कुछ उद्देश्यों के साथ विचार-विमर्श करें, सम्मान के साथ सहयोग करें, और दूरदर्शिता के साथ कानून बनाएं - हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि हम एक अरब लोगों की आशाओं और सपनों को लेकर चल रहे हैं।

आइये, हम सब मिलकर ऐसे भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं जो संविधान में किए गए वादे को पूरा करे।

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एमजी/आरपी/केसी/जेके/एसके

 


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