पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 7.93% की गिरावट
जलवायु अनुकूलता की दिशा में भारत की प्रगति
Posted On:
12 JAN 2025 8:04PM by PIB Delhi
'भारत महात्मा गांधी की भूमि है, जिनका सतत विकास का दृष्टिकोण हमें बहुत प्रेरित करता है। हमने दिखाया है कि ग्रीन फ्यूचर (हरित भविष्य) और नेट जीरो जैसे प्रमुख सिद्धांतों को कैसे साकार किया जाता है।'
-प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान ने पृथ्वी पर जीवन के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। जिससे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जीएचजी) को कम करने के लिए देशों को पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके जवाब में भारत ने 2021 में कॉप 26 के सम्मेलन में 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया। भारत की चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर-4) में 2019 की तुलना में 2020 में जीएचजी उत्सर्जन में 7.93% की कमी पर प्रकाश डाला गया है। यह एक सतत, जलवायु-आत्मनिर्भर भविष्य के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूएनएफसीसीसी के तहत भारत का जलवायु अभियान
21 मार्च, 1994 से प्रभावी यूएनएफसीसीसी का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को स्थिर करना और जलवायु परिवर्तन और दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन के लिए वित्त की पर्याप्त उपलब्धता पर वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना है।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप21) का 21वां सत्र 2015 में पेरिस में हुआ था, जहां 195 देशों ने पेरिस समझौते को अपनाया था। समझौते का उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित करना है। साथ ही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जल्द से जल्द करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है। यह 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसके तहत देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने की आवश्यकता हुई।
प्रगति पर नजर रखने के लिए हर दो साल में भारत यूएनएफसीसीसी को द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर) प्रस्तुत करता है। ये रिपोर्ट राष्ट्रीय जीएचजी सूची को अद्यतन करती हैं, शमन कार्यों का विवरण देती हैं और उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों सहित प्राप्त समर्थन पर प्रकाश डालती हैं।
उत्सर्जन में कटौती और जलवायु प्रतिबद्धताएं :
भारत ने 30 दिसंबर 2024 को यूएनएफसीसीसी को अपनी चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर-4) सौंपी। इस रिपोर्ट में 2019 के संबंध में 2020 में कुल जीएचजी उत्सर्जन में 7.93% की कमी दिखाई गई है। भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी (एलयूएलयूसीएफ) को छोड़कर भारत का उत्सर्जन 2,959 मिलियन टन सीओ2ई (कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर, जीएचजी के प्रभाव को मापने का तरीका) था। एलयूएलयूसीएफ सहित शुद्ध उत्सर्जन 2,437 मिलियन टन सीओ2ई था। इसमें 75.66% उत्सर्जन के साथ ऊर्जा क्षेत्र सबसे बड़ा योगदानकर्ता था, अन्य भूमि उपयोग के साथ इसने लगभग 522 मिलियन टन सीओ2 को अलग कर लिया, जो देश के कुल उत्सर्जन के 22% को कम करने के बराबर था।
ये प्रयास समानता और पेरिस समझौते के सिद्धांतों के आधार पर अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों को संबोधित करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
सतत और कम कार्बन उत्सर्जन के लिए भारत का मार्ग
भारत ग्लोबल वार्मिंग में न्यूनतम योगदान देने के बावजूद, अपनी बड़ी आबादी और विकासात्मक आवश्यकताओं के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश अपनी अनूठी परिस्थितियों को पूरा करते हुए कम कार्बन उत्सर्जन और जलवायु आत्मनिर्भरता के निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है।
1850 और 2019 के बीच दुनिया की लगभग 17% आबादी होने के बावजूद बढ़ती वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी वार्षिक 4% है।
2019 में भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक प्राथमिक ऊर्जा खपत 28.7 गीगाजूल (जीजे) थी, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों की तुलना में काफी कम है।
भारत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के विकास के लिए घरेलू ऊर्जा, ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा तक पर्याप्त पहुंच सुनिश्चित करते हुए कम कार्बन वाले रास्ते अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
अपने विविध भूगोल के कारण भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। विकास, लाभ की सुरक्षा और भविष्य की वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलन रणनीतियां महत्वपूर्ण हैं।
भारत लक्ष्य को प्राप्त कर रहा है
भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक स्थायी रास्ता तैयार करने के लिए दीर्घकालिक निम्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियां (एलटी-एलईडीएस) तैयार की है। भारत के एलटी-एलईडीएस में सात प्रमुख रणनीतिक परिवर्तन शामिल हैं। इनमें-
(i) विकास के अनुरूप बिजली प्रणालियों का कम कार्बन उत्सर्जन
(ii) एकीकृत, कुशल, समावेशी निम्न-कार्बन परिवहन प्रणाली विकसित करना
(iii) शहरी डिजाइन, इमारतों में ऊर्जा और सामग्री-दक्षता तथा टिकाऊ शहरीकरण में अनुकूलन को बढ़ावा देना
(iv) अर्थव्यवस्था में उत्सर्जन से विकास को अलग करने और एक कुशल, नवोन्मेषी कम उत्सर्जन वाली औद्योगिक प्रणाली के विकास को बढ़ावा देना
(v) कार्बन डाइऑक्साइड हटाना और इससे संबंधित इंजीनियरिंग समाधान
(vi) सामाजिक-आर्थिक और परितंत्र के अनुरूप वन और वनस्पति आवरण को बढ़ाना
(vii) निम्न-कार्बन उत्सर्जन के आर्थिक और वित्तीय पहलू और वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध-शून्य तक पहुंचाना।
कार्बन तटस्थता के लिए जलवायु अभियान उपाय
सरकार ने देश में पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए सक्रिय रूप से विभिन्न पहल की हैं। कुछ महत्वपूर्ण उपाय नीचे सूचीबद्ध हैं:
1. वन भूमि परिवर्तन एवं शमन उपाय
वन विखंडन पर विचार: वन अधिनियम, 1980 के तहत गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि परिवर्तन अनुमोदन के दौरान वन विखंडन विखंडन के मुद्दे पर विधिवत विचार किया जाता है।
प्रतिपूरक वनरोपण: मिट्टी और नमी संरक्षण और पर्यावरण-बहाली सहित गैर-वानिकी भूमि परिवर्तन के लिए अनिवार्य वनीकरण।
'एक पेड़ मां के नाम' पौधरोपण अभियान: विश्व पर्यावरण दिवस 2024 पर राष्ट्रव्यापी पौधरोपण अभियान शुरू किया गया।
ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम: 2023 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए पहचाने गए उजड़े वन भूमि खंड की पहचान कर पौधरोपण पर केंद्रित है।
राष्ट्रीय पौधरोपण कार्यक्रम (एनएपी) : लोगों की भागीदारी और विकेन्द्रीकृत वन प्रशासन के साथ मिलकर पहले से चिन्हित किए गए उजड़े वन क्षेत्रों में वनीकरण के लिए अखिल भारतीय आधार पर लागू किया गया है।
2. शहरी जलवायु अनुकूलन और कम कार्बन उत्सर्जन
शहरी नियोजन में मुख्यधारा अनुकूलन: भारत के एलटी-एलईडीएस के अनुसार, शहरी नियोजन में अनुकूलन उपायों को मुख्यधारा में लाना और शहरी नियोजन के दिशानिर्देशों, नीतियों और उपनियमों के भीतर ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के उपाय शहरी क्षेत्र के लिए कम कार्बन उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण घटक है।
सतत शहरी नियोजन नीतियाः टिकाऊ शहरी नियोजन के लिए प्रासंगिक नीतियों और पहलों में शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन (यूआरडीपीएफआई) दिशानिर्देश, नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम और कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत); प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) जैसे राष्ट्रीय शहरी मिशन शामिल हैं।
3. वायु प्रदूषण नियंत्रण एवं स्वच्छ वायु देने के लिए किए गए उपाय
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी): इसका उद्देश्य 131 शहरों के लिए शहर-विशिष्ट कार्य योजनाओं के साथ वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
वित्त पोषण एवं कार्यान्वयन: एसबीएम (शहरी), अमृत, किफायती परिवहन के लिए सतत विकल्प (एसएटीएटी), हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने और विनिर्माण (एफएएमई-II) और नगर वन योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जुटाया गया।
वायु प्रदूषण निवारण उपाय: इस पहल में स्वच्छ ईंधन (सीएनजी/एलपीजी), इथेनॉल मिश्रण, बीएस VI ईंधन मानदंड और वायु गुणवत्ता प्रबंधन शामिल हैं।
4. तटीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण एवं आत्मनिर्भरता
मैंग्रोव और कोरल रीफ संरक्षण: मैंग्रोव संरक्षण सहित जलवायु आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
तटीय राज्यों के लिए एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएं (आईसीजेडएमपी) योजनाएं: तटीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लिए तैयारी।
तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (मिष्टी) कार्यक्रम: मिष्टी ने 9 तटीय राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले लगभग 540 वर्ग किलोमीटीर क्षेत्र में मैंग्रोव की बहाली/पुनर्वनीकरण की परिकल्पना की है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में मैंग्रोव की 3,046 हेक्टेयर भूमि की बहाली के लिए गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी को कुल 12.55 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
5. जलवायु आत्मनिर्भरता के लिए नियामक उपाय
जलवायु अनुकूलता बढ़ाने के लिए, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972; भारतीय वन अधिनियम, 1927; जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना (2011 और 2019) और समय-समय पर संशोधित इन अधिनियमों के माध्यम से नियामक उपाय लागू किए जाते हैं। 2019 सीआरजेड अधिसूचना विशेष रूप से मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और अन्य महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों के प्रबंधन को लक्षित करती है।
इन उपायों के साथ-साथ भारत हरित क्षेत्र को बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए नवीन तरीके अपना रहा है। इसके तहत मियावाकी तकनीक का उपयोग महाकुंभ 2025 में पौधरोपण के लिए किया गया है, जो पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ आध्यात्मिक विधाओं के मिश्रण को उजागर करता है। आयोजन की तैयारी के लिए प्रयागराज में विभिन्न स्थलों पर घने जंगल बनाए गए हैं ताकि लाखों भक्तों के लिए स्वच्छ हवा और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष
भारत सतत विकास और नवीन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्बन-तटस्थ भविष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध भारत अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति और महाकुंभ 2025 में मियावाकी पौधरोपण जैसी प्रमुख उपायों को लागू कर रहा है। ये प्रयास संतुलित विकास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हैं, जिससे जलवायु-अनुकूलन भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।
संदर्भ
जीएचजी उत्सर्जन में 7.93% की गिरावट
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एमजी/केसी/आरकेजे
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