पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
संसद प्रश्न: ला नीना का प्रभाव
Posted On:
12 DEC 2024 3:02PM by PIB Delhi
ला नीना जलवायु से जुड़ी एक घटना है। यह मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में विशेष रूप से ठंडे समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) की एक विशेषता है। यह भारतीय मानसून को अत्यधिक प्रभावित कर सकती है। आम तौर पर, ला नीना घटना के दौरान, दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होती है। देश के अधिकांश हिस्सों में ला नीना के प्रभाव वाले वर्षों के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा होती है। किंतु इसमें सुदूर उत्तर भारत और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों शामिल नहीं हैं, जहां ला नीना वर्षों के दौरान सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है। इसके अलावा, ला नीना के प्रभाव वाले वर्षों के दौरान सर्दियों के मौसम में सामान्य से कम तापमान देखा जाता है। जबकि ला नीना के दौरान अत्यधिक वर्षा से बाढ़, फसल की क्षति और पशुधन की हानि हो सकती है। इतना ही नहीं, यह वर्षा आधारित कृषि और भूजल स्तर को भी लाभ पहुंचा सकती है। ला नीना से जुड़ी अधिक वर्षा कभी-कभी भारतीय क्षेत्र में कम तापमान का कारण बन सकती है, जो कुछ खरीफ फसलों की वृद्धि और विकास को प्रभावित कर सकती है।
मंत्रालय देश में मानसून और उससे जुड़ी बारिश तथा तापमान के पैटर्न पर नियमित अध्ययन कर रहा है। इस अध्ययन में ला नीना अवधि के दौरान होने वाले अध्ययन भी शामिल हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) वैश्विक स्तर पर, खासकर प्रशांत और हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान (एसएसटी) में होने वाले बदलावों पर लगातार नजर रखता है। आईएमडी जलवायु मॉडल का उपयोग करके पूर्वानुमान भी तैयार करता है और हर महीने एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ/आईओडी) बुलेटिन जारी करता है ( https://www.imdpune.gov.in/cmpg/Product/Enso.php )। इसके अतिरिक्त, आईएमडी किसानों को ला नीना से जुड़ी मौसम की चरम घटनाओं, जैसे भारी बारिश या सूखे के लिए तैयार होने में मदद करने के लिए कृषि-विशिष्ट सलाह जारी करता है। इन सलाहों में फसल चयन, सिंचाई पद्धतियों और बाढ़ की तैयारी पर सिफारिशें शामिल हो सकती हैं।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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