स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय
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नवजात शिशुओं और बच्चों पर केंद्रित शोध प्रयासों की स्थिति


आईसीएमआर ने एकल अंक वाली नवजात मृत्यु दर के लक्ष्य को प्रबल, कार्यान्वित और इसकी निगरानी करने के लिए "संकल्प" कार्यक्रम शुरू किया

मृत शिशु जन्म (स्टिलबर्थ) को कम करने के लिए व्यापक समाधान पैकेज और प्रसव  संबंधी नीतियों के एक अनुकूलित मॉडल को विकसित करने के लिए शोध जारी

आईसीएमआर भारत में मृत शिशु जन्म की रोकथाम के लिए साक्ष्य और डिजाइन संबंधी समाधान के लिए परियोजना पर काम कर रहा है
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एनएचएम के तहत सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ प्रजनन, मातृ, नवजात, शिशु, किशोर स्वास्थ्य और पोषण रणनीति के कार्यान्वयन में सहयोग करता है

Posted On: 03 DEC 2024 3:35PM by PIB Delhi

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने सूचित किया है कि नवजात शिशु मृत्यु दर विषय की राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान प्राथमिकता के रूप में पहचान की गई है और परिषद ने नवजात शिशुओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य पर कई महत्वपूर्ण शोध परियोजनाएं शुरू की हैं।

आईसीएमआर ने अपनी प्रमुख पहलों में, एकल अंक वाली नवजात मृत्यु दर प्राप्त करने के लक्ष्य को प्रबल करने, लागू करने और निगरानी करने के लिए "संकल्प" कार्यक्रम शुरू किया है। इसने मृत शिशु जन्म (स्टिलबर्थ) को कम करने के लिए व्यापक समाधान पैकेज और प्रसव संबंधी नीतियों का एक अनुकूलित मॉडल विकसित करने के लिए शोध भी किया है। यह भारत में मृत शिशु जन्म को रोकने के लिए साक्ष्य और समाधान संबंधी डिजाइन पर एक शोध परियोजना - भारत में गर्भावस्था समूहों का विश्लेषण करने के लिए एक सहयोगी दृष्टिकोण पर भी काम कर रहा है।

आईसीएमआर ने अपने उन्नत शोध केन्द्रों के माध्यम से अनेक कार्यान्वयन शोध परियोजनाएं शुरू की हैं। हाल ही में अगस्त 2024 में पूरे किए गए इसके एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय आबादी में बचपन में होने वाले श्वास रोगों की उत्परिवर्तन प्रोफाइल पश्चिमी डेटा की तुलना में अलग हैं। इसने नवजात जीवाणु सेप्सिस के उपचार में शिशुओं की गुर्दे की बीमारियों और अंतःशिरा एंटीबायोटिक दवाओं पर महत्वपूर्ण अध्ययन भी किया। आईसीएमआर ने जन्म के 1000 दिनों में व्यापक देखभाल प्रदान करने के लिए एक मॉडल को डिजाइन, कार्यान्वित और अनुकूलित करने के उद्देश्य से फर्स्ट थाउजेंड डेज ऑफ लाइफ परियोजना भी शुरू की है।

आईसीएमआर के एक संस्थान, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ (एनआईआरआरसीएच) ने भारत के छह राज्यों (राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात) में सात स्थानों पर नवजात शिशु सिकल स्क्रीनिंग कार्यक्रम पर एक बहुकेंद्रित अध्ययन किया है, जहां 2019 से सिकल सेल रोग अधिक पाया गया है। आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच ने राज्य स्वास्थ्य प्रणाली के सहयोग से महाराष्ट्र में पालघर जिले के ग्रामीण ब्लॉकों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के साथ जनसंख्या आधारित जन्म दोष निगरानी पर एक अध्ययन सहित अन्य शोध भी किए हैं।

इसके अलावा आईसीएमआर ने नवजात शिशुओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कई अन्य परियोजनाओं को विभिन्न राज्यों में फैले अपने मध्यम, छोटे और तदर्थ अनुदानों के तहत वित्त पोषित किया है।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा प्रस्तुत वार्षिक कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना (एपीआईपी) के आधार पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल, किशोर स्वास्थ्य और पोषण (आरएमएनसीएएच + एन) रणनीति के कार्यान्वयन में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सहयोग प्रदान करता है। नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए सभी कार्यकलाप लिंग, जाति और धर्म में भेदभाव किए बिना जनजातीय और सीमांत जनसंख्या पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में सार्वभौमिक रूप से कार्यान्वित किए जाते हैं। पूरे देश में नवजात शिशु और बाल उत्तरजीविता में सुधार के लिए किए गए कुछ महत्वपूर्ण उपाय इस प्रकार हैं

(1) सुविधा आधारित नवजात देखभाल: बीमार और छोटे शिशुओं की देखभाल के लिए जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज स्तर पर विशेष नवजात देखभाल एककों (एसएनसीयू) की स्थापना की जाती है और नवजात स्थिरीकरण एककों (एनबीएसयू) की स्थापना प्रथम रेफरल एककों (एफआरयू)/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) में की जाती है।

(2) मातृ-नवजात देखभाल एककों (एमएनसीयू) की स्थापना नवजात देखभाल की आवश्यकता वाले छोटे और बीमार शिशुओं सहित माता और शिशु को बिल्कुल अलग न करने के उद्देश्य से की जाती है।

(3) कंगारू मदर केयर (केएमसी) को जन्म के समय कम वजन/समयपूर्व जन्मे शिशुओं के लिए सुविधा केन्द्र और सामुदायिक स्तर पर कार्यान्वित किया जाता है जिसमें माता अथवा परिवार के सदस्यों के साथ शीघ्र और लंबे समय तक घनिष्ठ संपर्क करना और बार-बार स्तनपान कराना शामिल है।

(4) नवजात एवं छोटे बच्चों की समुदाय आधारित देखभाल: गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी) तथा बालकों की गृह आधारित देखभाल (एचबीवाईसी) कार्यक्रम के अंतर्गत आशा कार्यकर्ताओं द्वारा बाल पालन-पोषण पद्धतियों में सुधार करने तथा समुदाय में बीमार नवजात एवं छोटे बच्चों की पहचान करने के लिए घर-घर दौरे किए जाते हैं।

(5) जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) : एक वर्ष तक की आयु का बीमार शिशु निशुल्क परिवहन, निदान, दवाओं, रक्त और उपयोग में लाई जाने योग्य वस्तुओं के प्रावधान के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थाओं में निशुल्क उपचार का हकदार है।

(6) बच्चों को जानलेवा रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण प्रदान करने हेतु व्यापक रोग प्रतिरक्षण कार्यक्रम (यूआईपी) कार्यान्वित किया जाता है।

(7) माताओं के पूर्ण स्नेह (एमएए) के अंतर्गत शिशु के जन्म के पहले छह महीनों में शुरू में केवल स्तनपान तथा शिशु एवं छोटे बच्चों के समुचित आहार (आईवाईसीएफ) पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाता है।

(8) निमोनिया को बेअसर करने के लिए सामाजिक जागरूकता और कार्य (एसएएएनएस): निमोनिया के कारण बचपन में बीमारी और मृत्यु दर को कम करने के लिए 2019 से जारी एक पहल है।

(9) ओआरएस और जिंक के उपयोग को बढ़ावा देने और बाल्यावस्था अतिसार के कारण होने वाली रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने के लिए अतिसार रोकने की पहल कार्यान्वित की जा रही है।

(10) राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके): बाल जीवन रक्षा में सुधार के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत 32 स्वास्थ्य स्थितियों (यानी रोगों, कमियों, दोषों और विकास में देरी) के लिए 0 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की जांच की जाती है। आरबीएसके के अंतर्गत जांच किए गए बच्चों के लिए जिला स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र स्तर पर जिला शीघ्र उपचार केन्द्र (डीईआईसी) स्थापित किए जाते हैं।

(11) चिकित्सीय जटिलताओं के साथ दाखिल किए गए गंभीर रूप से बीमार कुपोषण (एसएएम) से पीड़ित बच्चों के उपचार और प्रबंधन के लिए जन स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों में पोषण पुनर्वास केन्द्र स्थापित किए जाते हैं।

(12) पोषण अभियान के एक भाग के रूप में एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) रणनीति का उद्देश्य मौजूदा स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करना और एनीमिया से निपटने के लिए नई रणनीतियों को बढ़ावा देना है जिसमें स्कूल जाने वाले किशोरों और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की जांचऔर उपचार, एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों से निपटना और एक व्यापक संचार रणनीति शामिल है।

(13) क्षमता निर्माण: बाल उत्तरजीविता और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के अनेक क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू किए जाते हैं। इनमें 2023 में जारी हाल ही में अपडेट किए गए पैकेज शामिल हैं: (ए) नवजात और बचपन की बीमारी (एफ-आईएमएनसीआई) के सुविधा आधारित एकीकृत प्रबंधन (एफ-आईएमएनसीआई) और नवजात और बचपन की बीमारी के एकीकृत प्रबंधन (एफ-आईएमएनसीआई) का संशोधित प्रशिक्षण पैकेज; और (बी) सुविधा आधारित नवजात देखभाल (एफबीएनसी) का संशोधित प्रशिक्षण पैकेज।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद नवजात एवं बाल स्वास्थ्य शोध के क्षेत्र में राष्ट्रीय/राज्य बाल चिकित्सा संघों, गैर-लाभकारी संगठनों, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोगकर्ताओं सहित संबंधित हितधारकों के साथ नियमित रूप से बैठक एवं परामर्श आयोजित करती है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री प्रतापराव जाधव ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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