कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
फसल अवशेष जलाने के प्रबंधन के मुद्दे पर आज मंत्री स्तरीय अंतर-मंत्रालयी बैठक आयोजित
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के सभी हितधारकों और किसानों के समग्र दृष्टिकोण से पराली जलाने के मामलों में काफी कमी दर्ज की गई है
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत वित्तीय सहायता के साथ पहले से आपूर्ति की गई 3 लाख से अधिक इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन मशीनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है
हॉट स्पॉट जिलों के जिला कलेक्टर को सकारात्मक कदम उठाने चाहिए और धान की पराली जलाने की घटनाओं को और कम करने के लिए जमीनी स्तर पर स्थिति की निगरानी करनी चाहिए
पराली के एक्स-सीटू उपयोग के लिए 2जी इथेनॉल, कंप्रेस्ड बायोगैस, बायोमास कोजनरेशन, पेलेटिंग और ब्रिक्वेटिंग प्लांट आदि जैसे आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ताकि इसे किसानों के लिए आय का एक व्यवहार्य स्रोत बनाया जा सके
राज्यों द्वारा पराली के प्रभावी तरीके से निपटान के लिए फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के साथ पूरक रूप में बायो-डीकंपोजर के पाउडर के उपयोग को बढ़ावा
Posted On:
26 OCT 2024 5:42PM by PIB Delhi
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव की सह-अध्यक्षता में फसल अवशेष जलाने के प्रबंधन के मुद्दों का समाधान करने के लिए आज एक अंतर-मंत्रालयी बैठक आयोजित की गई। बैठक में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री, दिल्ली सरकार के पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव मंत्री और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली की राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के राज्य सरकारों के मंत्रियों ने धान की पराली को जलाने से रोकने के लिए उनके द्वारा की जा रही कार्रवाई और किसानों को बिना जलाए धान की पराली का प्रबंधन करने के लिए समर्थन देने के उद्देश्य से कार्यान्वित की जा रही विभिन्न पहलों की जानकारी दी। हरियाणा सरकार के मंत्री ने किसानों को राज्य द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहनों की जानकारी दी, जिसमें गांठें बनाकर फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए 1000 रुपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि, पानीपत में 2जी इथेनॉल संयंत्र के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा पहचाने गए क्लस्टरों में उपरोक्त के अलावा 500 रुपये प्रति मीट्रिक टन का अतिरिक्त टॉप अप, 2500 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर से धान के भूसे की सामान्य निर्धारित दर की घोषणा, धान के भूसे की गांठों की खपत के लिए गौशालाओं को 500 रुपये प्रति एकड़ की दर से परिवहन शुल्क, जो अधिकतम 15000 रुपये तक सीमित है, चावल की सीधी बुवाई (डीएसआर) के लिए 4000 रुपये प्रति एकड़ शामिल हैं।

पिछले साल 2023 की इसी अवधि की तुलना में इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं 35 प्रतिशत कम हुई हैं, जबकि हरियाणा में 21 प्रतिशत कम हुई हैं। इसके अलावा, राज्यों को सलाह दी गई है कि वे भविष्य में पराली जलाने की घटनाओं के संभावित हॉटस्पॉट जिलों की पहचान करके सभी आवश्यक संसाधनों का इस्तेमाल करके रणनीतिक रूप से योजना बनाएं और स्थिति को संभालें।

फसल अवशेष प्रबंधन पर केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत भारत सरकार पहले से ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली को वित्तीय सहायता दे रही है ताकि पराली जलाने के कारण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान किया जा सके। चालू वर्ष के दौरान अब तक 600.00 करोड़ रुपये के कुल आवंटन में से 275.00 करोड़ रुपये की राशि पहले ही राज्यों को जारी की जा चुकी है। यह योजना किसानों, सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों और पंचायतों को वित्तीय सहायता के माध्यम से इन-सीटू और एक्स-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के उपयोग को बढ़ावा देती है। यह योजना राज्यों की विभिन्न एजेंसियों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत 3 अटारी और 60 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के माध्यम से पराली प्रबंधन पर व्यापक जागरूकता पैदा करने पर भी ध्यान केंद्रित करती है। धान की पराली के कुशल बाहरी प्रबंधन को सक्षम करने के उद्देश्य से, धान की पराली की आपूर्ति श्रृंखला के लिए तकनीकी-वाणिज्यिक परियोजनाएं स्थापित करने के लिए प्रावधान किए गए हैं, जिसमें लाभार्थी/एग्रीगेटर और धान की पराली का उपयोग करने वाले उद्योगों के वित्तीय योगदान में अनुकूलन शामिल है। सरकार 1.50 करोड़ रुपये तक की लागत वाली मशीनरी की पूंजीगत लागत पर 65 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता प्रदान करती है और इस क्रियाकलाप का उद्देश्य बायोमास बिजली उत्पादन और जैव ईंधन क्षेत्रों में विभिन्न अंतिम उपयोगकर्ता उद्योगों के लिए धान की पराली की एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना है।


आगामी सीजन के दौरान धान की पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण के लिए राज्यों ने सूक्ष्म स्तर पर पहले ही एक व्यापक कार्य योजना तैयार कर ली है और इन योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का यह सही समय है। यह भी आवश्यक है कि राज्य स्तर पर एक उपयुक्त तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि अब तक आपूर्ति की गई 3.00 लाख से अधिक मशीनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। सीआरएम मशीनों के साथ पूरक मोड में बायो-डीकंपोजर का व्यापक उपयोग भी पराली के इन-सीटू अपघटन को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया के साथ-साथ किसान मेलों, प्रकाशनों, संगोष्ठियों, इस क्षेत्र के सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ परामर्श के माध्यम से किसानों की व्यापक जागरूकता के लिए आईईसी से जुड़ी गतिविधियां शुरू की जानी चाहिए। छोटी भूमि वाले किसानों को कस्टम हायरिंग केंद्रों का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है और राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन किसानों को बाजार दरों से कम दरों पर किराये के आधार पर मशीनें मिलें। अधिक से अधिक क्षेत्र को फसल विविधीकरण कार्यक्रमों के तहत लाया जा सकता है और धान की फसल के स्थान पर वैकल्पिक फसलों को अपनाया जा सकता है। धान की पराली, गन्ने का कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट आदि जैसे किसी भी अपशिष्ट को जलाने से देश में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है और विशेष रूप से दिल्ली में यह समस्या गंभीर है जिससे लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। इसलिए, खेतों में ही धान की पराली को खपाने के लिए राज्य स्तर पर मिशन मोड में सहयोगात्मक प्रयास अपनाए जा सकते हैं। यदि पहले से अनुरोध किए गए उपरोक्त क्रियाकलापों के माध्यम से सभी कार्य समग्र रूप से राज्य स्तर पर किए जाते हैं, तो पराली जलाने पर प्रभावी रूप से नियंत्रण किया जा सकता है।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री तथा केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने धान की पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना की तथा मिशन जीरो बर्निंग की दिशा में काम करने की सलाह दी।
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एमजी/ आरपीएम/ केसी/ एसकेएस/डीके
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