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उपराष्ट्रपति ने कहा कि लाभार्थी की आस्था को प्रभावित करने के लिए परोपकार के व्यवस्थित उपयोग से लोकतंत्र में गंभीर परिणाम होते हैं


उपराष्ट्रपति ने कहा कि जरूरतमंदों, वंचितों और कमजोर लोगों को बिना किसी शर्त के सहायता प्रदान करनी चाहिए

विश्वास की स्वतंत्रता को कैद में रखना चिंता का विषय है: उपराष्ट्रपति

भारत के 5,000 वर्षों के समावेशिता दर्शन को सबक लेने की आवश्यकता नहीं: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने आज कर्नाटक के मांड्या स्थित आदिचुंचनगिरी विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित किया

Posted On: 25 OCT 2024 6:50PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि लाभार्थी की आस्था को प्रभावित करने के लिए परोपकार के व्यवस्थित उपयोग से लोकतंत्र में गंभीर परिणाम होते हैं। उन्होंने टिप्पणी किया कि जरूरतमंदों, वंचितों और कमजोर लोगों को बिना किसी शर्त के सहायता प्रदान करनी चाहिए।

भारत के सभ्यतागत लोकाचार पर बात करते हुए, श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि दान, सहायता, या इस प्रकार की मदद बिना किसी शर्त के होनी चाहिए। हमारी सभ्यता का लोकाचार बताता है कि कभी भी परोपकार की बात नहीं करनी चाहिए। दान का दावा कभी नहीं करना चाहिए। आप इसे करते हैं और आप इसके बारे में भूल जाते हैं।

उन्होंने कर्नाटक के मंड्या में बीजी नगरा में आदिचुंचनगिरी विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए बल देकर कहा कि विश्वास की स्वतंत्रता को कैद में रखना चिंता का विषय है। उन्होंने चेतावनी दिया कि जब आप जरूरतमंदों, वंचितों, कमजोर लोगों के विश्वास को प्रभावित करते हैं, तो चीजें वास्तव में बहुत गंभीर हो जाती हैं। उन्होंने चेतावनी दिया कि इस तरह के कार्यों से राष्ट्रवाद की भावना और संवैधानिक मूल्यों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।

उपराष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत देश इस पृथ्वी पर सभी को भी मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है कि समावेशिता क्या है। निश्चित रूप से, हमें उस चीज में सबक लेने की आवश्यकता नहीं है जिसके साथ हम 5,000 से अधिक वर्षों से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह दर्शन स्थायी है और वैश्विक शांति एवं सद्भाव के लिए है, लेकिन कुछ लोगों की समावेशिता की एक अलग अवधारणा है जो समावेशिता की भावना के लिए विनाशकारी है। हमें बहुत सतर्क और सावधान रहने की आवश्यकता है।

श्री धनखड़ ने कहा कि विश्व में 26 शाखा मठों और श्री आदिचुंचनगिरी शिक्षण ट्रस्ट के अंतर्गत 500 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों के साथ- जिसमें नेत्रहीन, बधिर और गूंगे लोगों का स्कूल शामिल हैं- वंचित लोगों के लिए इस संस्थान की सेवा अनुकरणीय है। वास्तव में सनातन धर्म के आलोचकों को एक करारा जवाब है।

उपराष्ट्रपति ने संकट के दौरान धार्मिक संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक क्षेत्र में, प्राकृतिक आपदाओं और इसी प्रकार की अन्य चुनौतियों के समय धार्मिक संस्थानें सरकारी प्रयासों की पूरक रही हैं। मुझे कोई अन्य संदर्भ देने की आवश्यकता नहीं है। इसकी पुष्टि कोविड के दौरान पूर्ण उदाहरण के साथ हो चुकी है और सरकार और ऐसे संगठनों दोनों ने जनकल्याण के लिए एकसाथ मिलकर काम किया है।

श्री धनखड़ ने कहा कि एक बात जो मैं आपको बताना चाहता हूं वह यह है कि आपके लिए अवसरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। मुझे उम्मीद है कि आप कोष्ठागार से बाहर निकलेंगे। आप में से कुछ लोगों की सोच है कि एकमात्र तरीका सरकारी सेवा है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। अपने चारों ओर देखें और आपको अवसर मिलेंगे क्योंकि भारत समुद्र, भूमि, आकाश और अंतरिक्ष सभी जगहों पर व्याप्त है।

उपराष्ट्रपति ने युवाओं को आगाह करते हुए कहा कि देश में बड़े पैमाने पर ऐसे तत्व हैं जो गलत सूचना, दुष्प्रचार के प्रसार में संलग्न हैं। यह प्रसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। युवा के रूप में आपको इन प्रवृत्तियों को बेअसर करना होगा जो हमारे राष्ट्रवाद के लिए खतरनाक हैं।

श्री धनखड़ ने आदिचुंचनगिरी मठ के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि तलहटी के हरे-भरे परिदृश्य में बसे एक संस्थान का होना वास्तव में एक दूरदर्शी कदम है, जो आधुनिक समय के शिक्षार्थियों, दार्शनिकों और साधकों के लिए एक आदर्श अरण्यक है तथा मानव संसाधन, प्रतिभा, ऊर्जा और चुने हुए कार्यों का इष्टतम उपयोग करने के लिए एक आदर्श स्थल है।

इस अवसर पर श्री एच. डी. देवेगौड़ा, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री; परम पूज्य जगद्गुरु श्री श्री श्री डॉ. निर्मलानंदनाथ महास्वामीजी; परम पूज्य जगद्गुरु स्वामी परमात्मानंद सरस्वती जी; आदिचुंचनगिरी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एमए शेखर और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित हुए।

उपराष्ट्रपति का पूरा संबोधन यहां पढ़ें: https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2068185

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