रक्षा मंत्रालय
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भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत का दृष्टिकोण सतत विकास, आर्थिक विकास और आपसी सुरक्षा के माध्यम से साझेदारी को बढ़ावा देने पर आधारित है: भारत-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता 2024 में रक्षा मंत्री


श्री राजनाथ सिंह ने नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान के प्रति अपना रुख दोहराया”

“भारत विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है”

“हमें अब इस क्षेत्र में एक विश्वसनीय और पसंदीदा सुरक्षा भागीदार और पहली प्रतिक्रिया देने वाले के रूप में देखा जाता है”

Posted On: 04 OCT 2024 5:33PM by PIB Delhi

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 04 अक्टूबर, 2024 को नई दिल्ली में भारत-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता (आईपीआरडी) 2024 को संबोधित करते हुए कहा, भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत का दृष्टिकोण, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के विचार पर आधारित है, क्योंकि हम ऐसी साझेदारी को बढ़ावा देने में विश्वास करते हैं, जो सतत विकास, आर्थिक विकास और आपसी सुरक्षा को प्राथमिकता देती हो। रक्षा मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत का जुड़ाव इसके साझेदार इस समझ पर आधारित हैं कि सच्ची प्रगति केवल सामूहिक कार्रवाई और तालमेल के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है और इन प्रयासों के कारण, अब देश को इस क्षेत्र में एक विश्वसनीय और पसंदीदा सुरक्षा साझेदार और पहली प्रतिक्रिया देने वाले के रूप में देखा जाता है।

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श्री राजनाथ सिंह ने नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन में निहित सिद्धांतों के पालन के प्रति भारत के अटूट संकल्प को दोहराया और उन्हें विदेश नीति की आधारशिला बताया। उन्होंने कहा, "भारत ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का लगातार समर्थन किया है और क्षेत्रीय संवाद, स्थिरता और सामूहिक विकास को बढ़ावा देने में आसियान की केंद्रीयता पर जोर देते हुए भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है।"

रक्षा मंत्री ने महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों की सुरक्षा व संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संयुक्त अभ्यास और सूचना-साझाकरण पहल सहित क्षेत्रीय भागीदारों के साथ जुड़ाव का उद्देश्य सामूहिक समुद्री सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है।

श्री राजनाथ सिंह ने रेखांकित किया कि भारतीय सशस्त्र बल, विशेष रूप से नौसेना, क्षेत्र के देशों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों में सबसे आगे रहे हैं और उनकी क्षमता के निर्माण की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "भारत का समुद्री सहयोग के लिए प्रयास जारी है, लेकिन इसके हित किसी अन्य देश के साथ टकराव में नहीं हैं। साथ ही, किसी भी अन्य राष्ट्र के हितों का अन्य राष्ट्रों के साथ टकराव नहीं होना चाहिए। इसी भावना से हमें मिलकर काम करना चाहिए।

रक्षा मंत्री ने कहा कि तेजी से विकसित हो रहा वैश्विक समुद्री परिदृश्य, बदलते शक्ति समीकरण, संसाधन प्रतिस्पर्धा और उभरते सुरक्षा खतरों से निर्धारित हो रहा है। इंडो-पैसिफिक थिएटर का उदय वैश्विक शक्ति के स्पष्ट संतुलन को दर्शाता है। उन्होंने कहा, " भारत-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे गतिशील भू-राजनीतिक क्षेत्र के रूप में उभरा है और यह आर्थिक और सामरिक हितों का केंद्र है। इसमें पहले से मौजूद अंतरराष्ट्रीय तनाव, प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष की भी एक हद तक मौजूदगी है। जहां कुछ चुनौतियां स्थानीय प्रकृति की हैं, वहीं कई चुनौतियों का वैश्विक प्रभाव है। समुद्री संसाधनों के संदर्भ में, हम भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में उल्लेखनीय वृद्धि देख रहे हैं। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, समुद्री संसाधनों की मांग में भी वृद्धि हो रही है, जिससे देशों के बीच तनाव और प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।"

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पूरी दुनिया के लिए साझा संसाधन ('ग्लोबल कॉमन्स') विषय पर अंतर्दृष्टि साझा करते हुए, प्राकृतिक संसाधन जैसे महासागर, बाहरी अंतरिक्ष, जलवायु, स्वच्छ हवा, आदि, जो पूरी मानवता द्वारा साझा किए जाते हैं, श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ये सतत पृथ्वी को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने प्रतिस्पर्धी हितों का संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हुए कई पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान कर सकते हैं।

रक्षा मंत्री ने पूरी दुनिया के साझा संसाधनों का क्षय ( 'ट्रेजेडी ऑफ़ द कॉमन्स') की अवधारणा पर भी बात की, एक ऐसा परिदृश्य जहां व्यक्ति, अपने स्वार्थ में कार्य करते हुए, साझा संसाधनों को खत्म कर देते हैं, जिससे सामूहिक विनाश होता है। उन्होंने इसे एक आसन्न खतरा बताया, जिससे तभी निपटा जा सकता है, जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक साथ आए और साझा वैश्विक संसाधनों (ग्लोबल कॉमन्स) के स्थायी प्रबंधन के लिए तेजी से काम करे।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'पर्यावरणीय क्षरण, कुछ संसाधनों का अत्यधिक दोहन और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव सहित इस त्रासदी के सबूत पहले से ही दिखाई दे रहे हैं। हम हाल के वर्षों में संघर्ष की स्थानीय घटनाओं और अंतरराष्ट्रीय तनाव की व्यापक अंतर्धारा को देख रहे हैं। जैसे-जैसे दुनिया औद्योगिक दुनिया से तकनीकी दुनिया में बदल रही है, जीवाश्म ईंधन आधारित अर्थव्यवस्था से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, यह खतरा और बढ़ेगा, जब तक कि हम संभावित नुकसान को नियंत्रित करने के लिए पहले से ही कदम नहीं उठाएंगे।

रक्षा मंत्री ने रणनीतिक कारणों से महत्वपूर्ण संसाधनों पर एकाधिकार करने और उन्हें हथियार बनाने के कुछ प्रयासों पर चिंता व्यक्त की और इन प्रवृत्तियों को वैश्विक भलाई के प्रतिकूल बताया। उन्होंने राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सौहार्द को रेखांकित किया, और समुद्री संसाधनों की खोज और प्रबंधन में आगे बढ़ने के तरीके के रूप में प्रकृति के साथ सामंजस्य में मानव जाति के सहजीवी अस्तित्व के प्राचीन भारतीय दर्शन का उदाहरण दिया।

अपने संबोधन में, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने भारत के आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए समुद्री क्षेत्रों, विशेष रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र की प्रासंगिकता पर जोर दिया। इस बात पर जोर देते हुए कि भारत की समुद्री नीति सागर ने क्षेत्र में सभी के लिए सामूहिक समृद्धि और सुरक्षा की परिकल्पना की है, उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रमुख साधन के रूप में भागीदारी और सहयोग की बात कही।

इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन (एनएमएफ) द्वारा प्रकाशित मैरीटाइम इंडिया: टेम्पोरल एंड स्पैटियल कॉन्टिनमनामक पुस्तक का विमोचन भी किया। इस कार्यक्रम में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, एनएमएफ के चेयरमैन एडमिरल करमबीर सिंह (सेवानिवृत्त), एनएमएफ के महानिदेशक वाइस एडमिरल प्रदीप चौहान (सेवानिवृत्त), रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, विदेशी प्रतिनिधि और भारत तथा विदेश के थिंक टैंक के प्रतिनिधि शामिल हुए।

आईपीआरडी भारतीय नौसेना की एक वार्षिक शीर्ष स्तरीय क्षेत्रीय रणनीतिक वार्ता है, जिसका उद्देश्य भारत-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) के सात पहलुओं को क्रमिक रूप से स्पष्ट करना है। इस वर्ष, तीन दिवसीय सम्मेलन 03 अक्टूबर, 2024 को एक जीवंत और बौद्धिक रूप से सक्रिय सत्र के साथ शुरू हुआ। भारत-प्रशांत क्षेत्र में संसाधन-भू-राजनीति और सुरक्षाके अपने केंद्रीय विषय के माध्यम से, इस वर्ष का सम्मेलन आईपीओआई के समुद्री संसाधनऔर समुद्री सुरक्षास्तंभों पर केंद्रित है।

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आईपीआरडी-2024 का आयोजन भारतीय नौसेना द्वारा अपने ज्ञान भागीदार के रूप में एनएमएफ के सहयोग से किया जा रहा है। 2005 में स्थापित, एनएमएफ भारत के अग्रणी समुद्री थिंक-टैंक में से एक है जो भारत के समुद्री हितों से संबंधित मुद्दों पर अपने शोध को केंद्रित करता है, और इसे सभी समुद्री मामलोंपर स्वतंत्र, मौलिक और नीति-प्रासंगिक अनुसंधान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।

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