जल शक्ति मंत्रालय
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एनएमसीजी की 57वीं कार्यकारी समिति की बैठक में 1,062 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई

Posted On: 27 SEP 2024 5:22PM by PIB Delhi

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक श्री राजीव कुमार मित्तल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की 57वीं कार्यकारी समिति (ईसी) की बैठक में 1,062 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। इनमें गंगा नदी के संरक्षण एवं स्वच्छता और महाकुंभ 2025 के दौरान आईईसी गतिविधियों से संबंधित प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं।

ईसी ने बिहार के कटिहार में 350 करोड़ रुपये की कुल लागत वाली परियोजना को मंजूरी दी। इस परियोजना का लक्ष्य शहर के जल निकासी और सीवेज प्रबंधन में सुधार करना है। इसके तहत रोजितपुर में एक 35 एमएलडी की क्षमता वाले एसटीपी का निर्माण किया जाएगा और साथ ही चार नालों का दोहन करने हेतु संरचनाएं भी बनाई जाएंगी। इसके अतिरिक्त, शरीफगंज में पांच नालों का दोहन करने हेतु एक 20.5 एमएलडी की क्षमता वाला एसटीपी बनाया जाएगा। यह परियोजना डीबीओटी (डिजाइन, बिल्ड, ऑपरेट और ट्रांसफर) मॉडल पर आधारित है और इसमें 15 वर्षों तक संचालन एवं रखरखाव का प्रावधान शामिल है।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 488 करोड़ रुपये की लागत से एक इंटरसेप्शन, डायवर्जन और एसटीपी परियोजना को मंजूरी दी गई। इस परियोजना में 65 एमएलडी और 48 एमएलडी की क्षमता वाले दो एसटीपी, साथ ही 30 केएलडी की क्षमता वाली सेप्टेज सह-शोधन सुविधा शामिल है। इसके अलावा, तीन इंटरसेप्शन एवं डायवर्जन संबंधी संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। डीबीओटी (डिजाइन, बिल्ड, ऑपरेट और ट्रांसफर) मॉडल पर आधारित इस परियोजना को 24 महीने के भीतर पूरा किया जाना है और इसमें 15 वर्षों तक संचालन एवं रखरखाव का प्रावधान शामिल है।

बिहार के सुपौल में 76.69 करोड़ रुपये की लागत से तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और छह इंटरसेप्शन एवं डायवर्जन संरचनाओं के निर्माण से जुड़ी एक परियोजना को मंजूरी दी गई। इसका मुख्य उद्देश्य छह प्रमुख नालों को रोकना (इंटरसेप्ट) और उनका प्रबंधन करना है। साथ ही, अगले 15 वर्षों तक इन प्रणालियों के संचालन एवं रखरखाव की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी है।

उत्तराखंड में, मौजूदा एसटीपी पर को-ट्रीटमेंट सेप्टेज के लिए 2.5 करोड़ रुपये की लागत वाली एक परियोजना को मंजूरी दी गई। इसमें 150 केएलडी (जगजीतपुर में 100 केएलडी और सराय, हरिद्वार में 50 केएलडी), ऋषिकेश में 50 केएलडी, श्रीनगर में 30 केएलडी और देवप्रयाग में 5 केएलडी की क्षमता वाले संयंत्र स्थापित करना शामिल है। यह परियोजना उत्तराखंड के विभिन्न शहरों में स्वच्छता और जल प्रबंधन में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

महाकुंभ 2025 के दौरान स्वच्छता और जागरूकता बढ़ाने हेतु, 30 करोड़ रुपये की आईईसी (सूचना, शिक्षा और संचार) गतिविधियों पर आधारित एक परियोजना को मंजूरी दी गई है। इस परियोजना में ‘पेंट माई सिटी और भित्ति कला के माध्यम से मेला क्षेत्र और शहर को सजाना शामिल है। फ्लाईओवर, बड़ी इमारतों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों जैसे विभिन्न स्थानों को गंगा से संबंधित विषयों को चित्रित करने वाली दीवार पेंटिंग से सजाया जाएगा। इसके अलावा, ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के तहत किए गए उपायों एवं उपलब्धियों को प्रदर्शित करने हेतु मेला क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान पर 45-दिवसीय प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी। इस पहल के दौरान, स्वच्छता और गंगा संरक्षण पर जागरूकता बढ़ाने हेतु 1,500 गंगा सेवा दूतों को मेला मैदान में तैनात किया जाएगा।

समिति ने इसकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए प्रदूषण संबंधी सूची, मूल्यांकन और निगरानी (पीआईएएस) परियोजना के तहत जनशक्ति के पुनर्गठन को भी मंजूरी दी। संशोधित संगठन संरचना में 90 स्वीकृत पद शामिल हैं, जिसमें तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। इससे पर्यावरणीय डेटा संग्रह, विश्लेषण और निगरानी तंत्र में सुधार होगा, जिससे प्रदूषण नियंत्रण और प्रबंधन में ठोस प्रगति सुनिश्चित होगी।

गंगा नदी बेसिन में मौजूदा एसटीपी की ऑनलाइन निरंतर निगरानी को मजबूत करने की एक परियोजना को पांच साल की अवधि के लिए मंजूरी दी गई है। इस परियोजना में एक ऑनलाइन सतत प्रवाह निगरानी प्रणाली (ओसीईएमएस) की स्थापना शामिल है। इस परियोजना के तहत, उत्तर प्रदेश में 11 एसटीपी और पश्चिम बंगाल में 40 एसटीपी को कवर किया जाएगा। इसकी कुल परियोजना लागत 33 करोड़ रुपये है।

समिति ने छोटी नदियों के संरक्षण के लिए आईआईटी बीएचयू, डेनमार्क के सहयोग से एनएमसीजी द्वारा संचालित ‘स्वच्छ नदी के लिए स्मार्ट प्रयोगशाला’ (एसएलसीआर) परियोजना के तीन प्रमुख घटकों को मंजूरी दी। कुल 13 करोड़ रुपये के निवेश वाली  इस पहल का उद्देश्य देश भर में छोटी नदियों के कायाकल्प में तेजी लाना है, जिससे नदी संरक्षण प्रयासों को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिलेगा।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कुकरैल घड़ियाल पुनर्वास केन्द्र में मीठे पानी के कछुए और घड़ियाल संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम को भी मंजूरी दी गई। यह कार्यक्रम नमामि गंगे मिशन-II के तहत दो  करोड़ रुपये की लागत से संचालित किया जाएगा। यह केन्द्र लुप्तप्राय प्रजातियों को पुनर्स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस विस्तारित प्रजनन कार्यक्रम का उद्देश्य इन प्रजातियों की व्यवहार्य प्रजनन आबादी को पुनर्जीवित करके उन्हें गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में फिर से स्थापित करना है।

इस बैठक में जल शक्ति मंत्रालय, बिहार एवं  उत्तर प्रदेश राज्य सरकारों के साथ-साथ एनएमसीजी के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।

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