इस्‍पात मंत्रालय
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इस्पात मंत्रालय ने नई दिल्ली में "ग्रीनिंग स्टील: सतत विकास के मार्ग" कार्यक्रम का आयोजन किया


केंद्रीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री, श्री एच.डी. कुमारस्वामी ने “भारत में इस्पात क्षेत्र को हरित बनाना: रोडमैप और कार्ययोजना” पर रिपोर्ट जारी की

Posted On: 10 SEP 2024 5:57PM by PIB Delhi

इस्पात मंत्रालय ने नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सी.डी. देशमुख हॉल में आज ग्रीनिंग स्टील: सतत विकास के मार्ग कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि, सीपीएसई, प्रबुद्धजन, अकादमिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ, संस्थान और इस्पात उद्योग से जुड़े कई महत्वपूर्ण विशिष्टगण शामिल हुए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री, श्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कार्यक्रम के दौरान भारत में इस्पात क्षेत्र को हरित बनाना: रोडमैप और कार्ययोजना पर रिपोर्ट जारी की।

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कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रही भारत में इस्पात क्षेत्र को हरित बनाना: रोडमैप और कार्ययोजना पर रिपोर्ट, जिसे केंद्रीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री ने जारी किया। इस रिपोर्ट को इस्पात मंत्रालय द्वारा गठित 14 कार्यबलों की अनुशंसाओं के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भारतीय इस्पात क्षेत्र के विकार्बनन से जुड़ी समग्र रणनीतियों को विस्तार से बताया गया है।

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इस रिपोर्ट में भारत में इस्पात क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन के विभिन्न पहलुओं को वर्णित किया गया है। इसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार है:

  • वर्तमान स्थिति और चुनौतियां: भारत में इस्पात क्षेत्र का संपूर्ण अवलोकन, इसके कार्बन फुटप्रिंट्स, विकार्बनन के दौरान आने वाली चुनौतियां
  • विकार्बनन के प्रमुख बिंदु: ऊर्जा क्षमता, नवीकरणीय ऊर्जा, सामग्री की गुणवत्ता, प्रक्रिया परिवर्तन, सीसीयूएस, हरित हाइड्रोजन का प्रयोग और बायोचार
  • तकनीकी नवाचार: तकनीकी क्षेत्र में हुई नई प्रगति और अभ्यास, जिनकी मदद से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सके
  • नीति निर्धारण: वर्तमान में मौजूद नीतियों का निरीक्षण और विकार्बनन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए संभावित नीतियों पर चर्चा करना
  • भविष्य की संभावनाएं : एक सतत् इस्पात उद्योग का दृष्टिकोण और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न हितधारकों की भूमिका
  • रोडमैप और कार्ययोजना: सरकार और उद्योग से जुड़ी संस्थाओं से मिलने वाली रणनीति और हस्तक्षेप की आवश्यकता

इस्पात मंत्रालय अपनी राष्ट्रीय स्तर की प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) में उल्लेखित संपूर्ण रुप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए रिपोर्ट में मौजूद रणनीतियों और कार्ययोजनाओं के अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह रिपोर्ट भारतीय इस्पात उद्योग को निम्न कार्बन भविष्य की ओर ले जाने के लिए आकार प्रदान करने और मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

कार्यक्रम की शुरुआत इस्पात मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री विनोद के. त्रिपाठी के उद्घाटन भाषण के साथ हुई, जिसके बाद इस्पात मंत्रालय की निदेशक सुश्री नेहा वर्मा ने रिपोर्ट प्रस्तुति की।

पूर्व इस्पात सचिव, श्री संजय सिंह की अध्यक्षता में "नेतृत्व और नवाचार: हरित इस्पात में बदलाव को आगे बढ़ाना" नामक एक तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया। इस सत्र में सतत् इस्पात उत्पादन को आगे बढ़ाने में दूरदर्शी नेतृत्व और नवाचार की महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर चर्चा की गई। पैनल में नीति आयोग के परियोजना निदेशक डॉ. अंशु भारद्वाज, एनजीएचएम के मिशन निदेशक श्री अभय बाकरे, सेल के तकनीकी निदेशक श्री अरविंद के. सिंह, टाटा स्टील के सीएसओ डॉ. सौरभ कुंडू, जेएसडब्ल्यू के सीएसओ प्रबोध आचार्य और एएमएनएस में सीनियर लीड सस्टेनेबिलिटी श्री वैभव पोखरना जैसे प्रमुख विशेषज्ञ शामिल थे। सत्र का संचालन सीईईडब्ल्यू के निदेशक श्री ध्रुब पुरकायस्थ ने किया।

 

इस्पात सचिव ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने में आने वाली चुनौतियों के बारे में चर्चा की और इस बात पर जोर दिया कि इस्पात क्षेत्र में सतत्,  निम्न कार्बन वाले विकास की आवश्यकता अब एक विकल्प नहीं बल्कि ज़रुरत है। यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि हमारे उद्योग और हमारे राष्ट्र के भविष्य के लिए भी जरूरी है। उन्होंने इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के लिए इन मुद्दों से निपटने के लिए मार्गदर्शन किया और कुछ सुझाव भी दिए।

कार्यक्रम के दौरान, कार्य बलों के अध्यक्षों को माननीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम का समापन इस्पात मंत्रालय की निदेशक सुश्री नेहा वर्मा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।

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इस्पात मंत्रालय रिपोर्ट में शामिल रणनीतियों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका लक्ष्य भारतीय इस्पात उद्योग के लिए एक स्थायी भविष्य बनाना और देश की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) के अहम अंग के रूप में पूर्व रूप से शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में योगदान देना है।

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एमजी/एआर/एनएस/एसएस


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