Posted On:
26 JUL 2024 6:03PM by PIB Bhopal
प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम- एसटीआईएसी) ने विभिन्न एजेंसियों में महामारी से निपटने की चल रही तैयारियों की समीक्षा की और विभिन्न क्षेत्रों के बीच दूरी घटाने और आपसी तालमेल बढ़ाने के लिये ‘‘राष्ट्रीय एक-स्वास्थ्य मिशन (एनओएचएम)’’ के माध्यम से महामारी संबंधी तैयारियों के लिये एकीकृत प्रयास की आवश्यकता को पहचाना है। एनओएचएम के उद्देश्यों को हासिल करने के लिये 13 मंत्रालयों/विभागों ने अपनी गतिविधियों में तालमेल और समन्वय बिठाया, जिसका संचालन हितधारकों के साथ मिलकर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा किया गया।
एनओएचएम के प्रमुख स्तम्भ हैं:
1. प्रौद्योगिकी के माध्यम से सभी क्षेत्रों में एकीकृत निगरानी।
2. जैवसुरक्षा स्तर 3 (बीएसएल-3) प्रयोगशालाओं का राष्ट्रीय नेटवर्क (उच्च-जोखिम अथवा अज्ञात रोगाणुओं के परीक्षण के लिये)।
3. मानव-जानवर-वन्यजीव- पशुधन स्वास्थ्य के लिये टीके, निदान और चिकित्सा उपायों सहित चिकित्सा प्रत्युपाय के लिये सहयोगात्मक और एकीकृत आर एण्ड डी।
4. विभिन्न क्षेत्रों में डेटा एकीकरण।
5. वन-हेल्थ से संबंधित सभी क्षेत्रों में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
निम्नलिखित कार्य प्रारंभ किये गयेः
1. विभिन्न क्षेत्रों की कार्यरत प्रयोगशालाओं के साथ बीएसएल-3 प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया गया।
2. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मानव, पशुधन और वन्यजीव क्षेत्रों को जोड़ते हुये एक राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया टीम अधिसूचित की है।
3. एक महामारी विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
4. केरल में निपाह प्रकोप से निपटने के लिये एक बहु-क्षेत्रीय प्रतिक्रिया उपलब्ध कराई गई जिसमें राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) ने निगरानी सहायता उपलब्ध कराई, आईसीएमआर ने प्रयोगशाला निदान के लिये मोबाइल बीएसएल3 सेवायें प्रदान की वहीं पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने सुअरों में निगरानी की और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने चमगादड़ों की निगरानी कार्य किया।
एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) 2004 से सक्रिय है और यह सभी 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 33 संका्रमक रोगों की निगरानी और उनके समाधान को लेकर प्रतिक्रिया करता है। आईडीएसपी रोग निगरानी और मीडिया स्कैनिंग के लिये जिला सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं (डीपीएचएल) और राज्य रेफरल प्रयोगशालाओं (एसआरएल) को नियुक्त करता है ताकि प्रकोप का जल्द पता चले और प्रतिक्रिया में तेजी लाई जा सके। सरकार ने वन हेल्थ मिशन के तहत एक नये कार्यक्रम के लिये 386.86 करोड़ रूपये मंजूर किये हैं जिसका उद्देश्य बढ़ी हुई निगरानी, आर एण्ड डी, डेटा एकीकरण और वैश्विक सहयोग के माध्यम से एकीकृत रोग नियंत्रण और महामारी नियंत्रण की तैयारियों को मजबूती देना है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय रोग प्रकोप का पता लगाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के लिये तकनीकी दिशानिर्देश, प्रयोगशाला सहयोग तथा लाजिस्टिक्स सहायता उपलब्ध कराता है। जिला और राज्य स्तर पर विकेन्द्रीकृत निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया टीमों (आरआरटी) को शामिल करने के लिये एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) का विस्तार किया गया। आईडीएसपी में अब सभी राज्यों में वास्तविक समय में डेटा रिपोर्टिंग और उन्नत विश्लेषण, परिचालन के लिये एकीकृत स्वास्थ्य सूचना प्लेटफार्म (आईएचआईपी) की सुविधा है। इसके अलावा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) ने वायरस निदान में सुधार लाने के लिये 150 से अधिक वायरल अनुसंधान और नैदानिक प्रयोशालाओं (वीआरडीएल) की स्थापना की है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला नेटवर्क के माध्यम से जिला स्तरीय प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाने में राज्यों को सहयोग दिया गया।
देश को सार्वजनिक स्वास्थ्य की आपात स्थितियों के लिये तैयार करने के दीघकालिक लक्ष्य के साथ प्रधान मंत्री - आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम - एबीएचआईएम) शुरू किया गया। इसके तहत किसी भी नई और उभरती बीमारी की पहचान और उसका प्रबंधन करने के लिये प्राथमिक, द्धितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं और संस्थानों की क्षमता बढ़ाने का काम किया गया। इस पहल के तहत कुछ प्रमुख गतिविधियां भविष्य की महामारियों का मुकाबला करने की तैयारियों की दिशा में निर्देशित है जिनमें क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लाक की स्थापना, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) को मजबूत करना, क्षेत्रीय एनसीडीसी की स्थापना, बायो-सुरक्षा स्तर-3 (बीएसएल-3) प्रयोगशाला नेटवर्क स्थापित करना, प्रवेश बिंदुओं पर जन स्वास्थ्य इकाइयों को मजबूत बनाना, स्वास्थ्य आपातकालीन आपरेशन केन्द्रों की स्थापना, जैव- सुरक्षा तैयारियां, वन-हेल्थ के लिये महामारी अनुसंधान की मजबूती आदि शामिल हैं।
योजना के तहत, योजना अवधि (2021-22 से 2025-26) के लिये कुल वित्तीय परिव्यय 64,180 करोड़ रुपये है।
भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोम अनुक्रमण (इनसाकोग) नेटवर्क नये सार्स-सीओवी-2 वेरिएंट का समय पर पता लगाने के लिये समूचे जिनोमिक अनुक्रमण का संचालन करता है।
पीएम-एबीएचआईएम योजना और राष्ट्रीय एक-स्वास्थ्य मिशन’ के लिये एकीकृत रोग नियंत्रण और महामारी संबंधी तैयारियों की दिशा में अनुसंधान और विकास मजबूत करने के कार्यक्रम में हितधारकों के लिये प्रशिक्षण और कार्यशालाओं सहित समुदायिक सहभागिता, जोखिम संचार और क्षमता निर्माण का प्रावधान भी है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री प्रतापराव जाधव ने आज लोक सभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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