आयुष

रेजिमेनल थेरेपी में नवाचार पर एक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन श्रीनगर में किया गया


सीसीआरयूएम द्वारा सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू-कश्मीर और एसकेआईएमएस के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए

Posted On: 18 JUL 2024 5:26PM by PIB Delhi

रेजिमेनल थेरेपी में नवाचार पर आज (18 जुलाई, 2024) एक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (पारंपरिक तरीकों को समकालीन अनुसंधान के साथ जोड़ कर) का उद्घाटन कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर में किया गया। इस संगोष्ठी का आयोजन क्षेत्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, श्रीनगर द्वारा किया जा रहा है, जो केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, आयुष मंत्रालय,  केंद्र सरकार का एक परिधीय संस्थान है।

इस उद्घाटन सत्र के दौरान, सीसीआरयूएम द्वारा सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू-कश्मीर और एसकेआईएमएस, श्रीनगर के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए गए। कुलपतियों और एसकेआईएमएस के निदेशक, दोनों, ने यूनानी चिकित्सा के अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सीसीआरयूएम के साथ सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की।

डॉ एन. जहीर अहमद, महानिदेशक, सीसीआरयूएम, नई दिल्ली ने इस उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता की। प्रोफेसर निलोफर खान, कुलपति, कश्मीर विश्वविद्यालय विशेष अतिथि थे, प्रो. शकील अहमद रामशू, कुलपति, आईयूएसटी अवंतीपोरा विशिष्ट अतिथि थे और प्रो. एम. अशरफ गनी, निदेशक, एसकेआईएमएस, श्रीनगर उद्घाटन समारोह में सम्मानित अतिथि थे। संगोष्ठी का उद्देश्य रेजिमेनल थेरेपी को बेहतर बनाना है, जो यूनानी चिकित्सा का एक मुख्य घटक है और ये समग्र स्वास्थ्य के लिए जीवन शैली बदलावों और भौतिक उपचारों पर बल देता है। अपनी समृद्ध विरासत के साथ यूनानी चिकित्सा ने लंबे समय से मालिश, कपिंग, व्यायाम और आहार नियमों जैसी तकनीकों का उपयोग किया है, जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए इलज बित तदबीर के अंतर्गत आता है। अपने अध्यक्षीय भाषण में, डॉ. एन. जहीर अहमद ने यूनानी चिकित्सा की एक महत्वपूर्ण आहार चिकित्सा हिजामा पर एसओपी के विकास पर रोशनी डाली और रेजिमेनल थेरेपी पर इस संगोष्ठी के आयोजन के महत्व पर जोर दिया और सीसीआरयूएम की हाल की पहलों पर प्रकाश डाला।

सीसीआरयूएम और अन्य प्रतिष्ठित यूनानी कॉलेजों के प्रख्यात वक्ताओं और विशेषज्ञों ने रेजिमेनल चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत की। इस संगोष्ठी की विशेष बातें तीन महत्वपूर्ण तौर-तरीकों- नाटूल (सिंचाई), इरसाल-ए-अलक़ (लीज थेरेपी) और हिजामा (कपिंग) पर व्यावहारिक प्रशिक्षण है। इसका उद्देश्य नवीनतम प्रौद्योगिकियों के उपयोग के साथ इस क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करना है।

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