विधि एवं न्याय मंत्रालय
भारत के विधि आयोग ने ‘आपराधिक मानहानि का कानून’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट संख्या 285 प्रस्तुत की
प्रविष्टि तिथि:
02 FEB 2024 6:40PM by PIB Delhi
भारत के 22वें विधि आयोग ने ‘आपराधिक मानहानि का कानून’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट संख्या 285 भारत सरकार को सौंप दी है।
विधि आयोग को कानून और न्याय मंत्रालय से 4 अगस्त, 2017 के पत्र के माध्यम से एक संदर्भ प्राप्त हुआ, जिसमें आयोग से मानहानि कानूनों से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच करने और उस पर सिफारिशें करने का अनुरोध किया गया था।
संदर्भ के अनुसरण में 22वें विधि आयोग ने एक व्यापक अध्ययन किया, जिसमें मानहानि के कानून के इतिहास, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ इसके संबंध और देश भर के न्यायालयों द्वारा दिए गए विभिन्न निर्णयों का विश्लेषण किया गया। आयोग ने, अन्य बातों के अलावा, प्रतिष्ठा के अधिकार और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संबंधों, और दोनों को कैसे संतुलित किया जाना चाहिए, का भी अध्ययन किया। इसके अलावा, आयोग ने विभिन्न न्यायक्षेत्रों में आपराधिक मानहानि के मामलों पर ध्यान दिया।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के पास सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ [(2016) 7 एससीसी 221] मामले में आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता की जांच करने का अवसर भी था। मुद्दे की विस्तार से जांच करने के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 499 की चुनौती को खारिज कर दिया, और इसे अनुच्छेद 19(2) के तहत अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक उचित प्रतिबंध होने के कारण संवैधानिक रूप से वैध माना।
उपरोक्त पर गहराई से विचार करने के बाद आयोग अनुशंसा करता है कि आपराधिक मानहानि को देश में आपराधिक कानूनों की योजना के भीतर बनाए रखा जाए। इस संबंध में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रतिष्ठा का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से आता है, और जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक पहलू होने के नाते, इसे अपमानजनक भाषण और आरोपों के खिलाफ पर्याप्त रूप से संरक्षित करने की आवश्यकता है।
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एमजी/एआर/वीएस
(रिलीज़ आईडी: 2005158)
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