विधि एवं न्याय मंत्रालय
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियमों के लिए विधान-पूर्व परामर्श
Posted On:
02 FEB 2024 3:55PM by PIB Delhi
गृह मामलों पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 111वीं (2005), 128वीं (2006) और 146वीं (2010) रिपोर्टों में, संबंधित अधिनियमों में आंशिक संशोधन करने के बजाय, एक व्यापक कानून पेश करके देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की व्यापक समीक्षा की सिफारिश की थी। तदनुसार, संवैधानिक और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के अनुरूप, गृह मंत्रालय ने सभी के लिए सुलभ व किफायती न्याय प्रदान करने और एक नागरिक-केंद्रित कानूनी संरचना तैयार करने की दृष्टि से आपराधिक कानूनों (भारतीय दंड संहिता, 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973) की व्यापक समीक्षा की। सभी हितधारकों से सुझाव प्राप्त करने के लिए, 07.09.2019 को सभी राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों/प्रशासकों को आपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधन पर उनके सुझावों के लिए पत्र भेजा गया था। 06.01.2020 और 09.01.2020 को भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश और सभी उच्च न्यायालयों के माननीय मुख्य न्यायाधीशों, बार काउंसिलों और कानून विश्वविद्यालयों/संस्थानों से भी सुझाव मांगे गए थे। 31.12.2021 को सभी संसद सदस्यों (लोकसभा और राज्यसभा दोनों) को पत्र लिखा गया और इस संबंध में उनके सुझाव मांगे गए। आपराधिक कानूनों की जांच करने और सुधारों का सुझाव देने के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू), दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई। समिति ने आम लोगों सहित विभिन्न वर्गों से सुझाव भी आमंत्रित किये थे। सरकार को राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, भारत के सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों, न्यायिक अकादमियों, कानून संस्थानों और संसद सदस्यों से इनपुट/सुझाव प्राप्त हुए। विभिन्न राज्यों, केंद्रीय पुलिस संगठनों, केंद्रीय जांच ब्यूरो, खुफिया ब्यूरो और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के 1000 से अधिक पुलिस अधिकारियों ने भी अपने सुझाव प्रस्तुत किए। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में गठित समिति ने सभी सुझावों पर विचार करने तथा हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श और गहन शोध के बाद फरवरी, 2022 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें समिति की सिफारिशें भी शामिल थीं। सरकार ने विभिन्न हितधारकों से प्राप्त सभी सुझावों पर विचार किया और इन सभी सुझावों की विस्तृत जांच के बाद तीन विधेयक, यानि भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 को 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किये; ताकि भारतीय दंड संहिता, 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को निरस्त और प्रतिस्थापित किया जा सके। इन विधेयकों को बाद में इसकी जांच और रिपोर्ट के लिए गृह मामलों की विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया था। पुनः 22.08.2023 को सभी मुख्यमंत्रियों, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर अपने बहुमूल्य सुझाव गृह मामलों पर स्थायी संसदीय समिति को भेजने का अनुरोध किया गया। विभाग से संबंधित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने गृह मंत्रालय, विधायी विभाग के अधिकारियों, क्षेत्र के विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों के साथ कई दौर की चर्चा की। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद, विभाग-संबंधित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 10.11.2023 को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पर रिपोर्ट संख्या क्रमशः 246, 247 और 248 के माध्यम से अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं। समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, तीन नए विधेयक, अर्थात् भारतीय दंड संहिता, 1860 को निरस्त करने के लिए भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक, 2023; दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को निरस्त करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) विधेयक 2023; और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को निरस्त करने के लिए भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023; लोकसभा में पुनः 19.12.2023 को पेश किये गये, जो 20.12.2023 को लोकसभा में पारित हुए। 21.12.2023 को राज्यसभा में तीन विधेयकों के पारित होने और उसके बाद भारत के माननीय राष्ट्रपति की सहमति के बाद, इन्हें 25.12.2023 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया।
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(Release ID: 2002146)
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