विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की वर्षांत समीक्षा


डीबीटी केंद्र सरकार के विभागों में से पहला वो विभाग है जिसने प्रक्रिया और प्रदर्शन में तेजी लाने के लिए अपने 14 स्वायत्त संस्थानों को अपने शीर्ष निकाय ‘जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद’ (बीआरआईसी) में शामिल करके "स्वायत्त निकायों के युक्तिकरण" को सफलतापूर्वक पूरा किया है

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने इंडिया बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2023 जारी की

अनुसंधान नतीजों के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को अधिकतम करने के लिए बौद्धिक संपदा दिशा-निर्देश अधिसूचित की गई

जैव-आधारित उत्पादों के विकास के लिए एकीकृत नवीन अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु उच्च-प्रदर्शन जैव-विनिर्माण पर प्रमुख पहल

जैविक अनुसंधान के नियामक अनुमोदन के लिए एकल प्रवेश द्वार के रूप में जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल (बायोआरआरएपी) का शुभारम्भ किया गया

जीनोम संपादित पौधों की विनियामक समीक्षा के लिए एसओपी अधिसूचित, सूखे की स्थिति में उच्च उपज देने वाली चने की किस्म अदविका विकसित की गई

हीमोफीलिया ए के लिए भारत में पहला जीन थेरेपी नैदानिक परीक्षण

संग्रहीत रक्त की क्षति को कम करने के लिए नवीन रक्त बैग तकनीक विकसित की गई

भारत के पहले ओमीक्रॉन बूस्टर एमआरएनए वैक्सीन का विकास

सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ भारत के पहले स्वदेशी क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (क्यूएचपीवी) वैक्सीन का विकास

टाइप-2 मधुमेह के लिए बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड के लिए बाजार प्राधिकरण की मंजूरी

डीबीटी के राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन के तहत विकसित अपनी तरह के पहले स्वदेशी एमआरआई स्कैनर के विनिर्माण और व्यावसायीकरण को मंजूरी

ग्लोबल बायो इंडिया (जीबीआई) 2023 का आयोजन किया गया जिसमें 500 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप, इनक्यूबेटर, उद्योग और शिक्षा जगत के 7000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया

जीबीआई में 29 नए बायोटेक स्टार्टअप उत्पाद लॉन्च किए गए

Posted On: 29 DEC 2023 7:37PM by PIB Delhi

भारत सरकार का जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) देश भर में रणनीतिक साझेदारी और क्षमता निर्माण की ताकत का लाभ उठाते हुए जैव प्रौद्योगिकी नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने में सबसे आगे है। पिछले कुछ वर्षों में, डीबीटी ने आत्मनिर्भर भारत, स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत, स्टार्टअप इंडिया और मेक-इन-इंडिया जैसे राष्ट्रीय मिशनों के अनुरूप जैव प्रौद्योगिकी और आधुनिक जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक जीवंत जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परितंत्र का निर्माण और पोषण किया है। इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप जीवन विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेटेंट और प्रकाशन हुए हैं।

वर्ष 2023 के दौरान डीबीटी की प्रमुख उपलब्धियों का सारांश नीचे दिया गया है:

प्रमुख नीति सुधार: देश भर में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के प्रभाव को अधिकतम करने हेतु केंद्रीकृत और एकीकृत प्रबंधन के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के 14 स्वायत्त संस्थानों (एआई) को एक शीर्ष स्वायत्त सोसायटी जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद (बीआरआईसी) में शामिल किया गया।

इसके बाद, बीआरआईसी सोसाइटी को नवंबर 2023 में पंजीकृत किया गया। इस पुनर्गठन कार्य का उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) नवाचार परितंत्र को मजबूत और संरेखित करने के लिए मूल्य और प्रभाव दोनों प्राप्त करना, साहसिक वैश्विक कार्यों को परिभाषित करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी शक्ति को लागू करना और उसे बढ़ाना, कार्यबल गति एवं क्षमता निर्माण को बढ़ाना, तल्लीनता-आधारित पीएच.डी. कार्यक्रम को बढ़ावा देना और अग्रणी प्रौद्योगिकियों के दोहन तथा स्टार्ट-अप परितंत्र के पोषण के लिए आकर्षक प्रोत्साहन प्रदान करना है।

जैव प्रौद्योगिकी उद्यमिता संस्कृति को स्थापित करना: 2014 में 6 की तुलना में अब बायोइनक्यूबेटरों की संख्या बढ़कर 75 से अधिक हो गई है। पिछले 9.5 वर्षों में जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप की संख्या 6,000 से अधिक हो गई है। 2012 में 10 जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों से बढ़कर आज यह संख्या 800 से अधिक उत्पादों तक पहुंच गई है। 150 स्टार्टअप्स द्वारा अनुवर्ती फंडिंग के रूप में लगभग 4,500 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। देश की जैव अर्थव्यवस्था 2023 में 137 अरब डॉलर तक पहुंच गई है, जिसके 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

डीबीटी आईपी दिशानिर्देश 2023: विभिन्न हितधारकों के परामर्श से जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सितंबर, 2023 में डीबीटी बौद्धिक संपदा (आईपी) दिशा-निर्देशों को अधिसूचित किया। ये दिशानिर्देश डीबीटी द्वारा वित्त पोषित बाह्य और आंतरिक दोनों संगठनों से आईपी के हस्तांतरण को नियंत्रित करते हैं। ये दिशा-निर्देश बड़े सामाजिक प्रभाव के लिए प्रौद्योगिकियों/उत्पादों के व्यावसायीकरण की दिशा में शैक्षणिक संस्थानों/अनुसंधान प्रयोगशालाओं में आईपी के निर्बाध हस्तांतरण को सक्षम करने के लिए तैयार किए गए हैं।

उच्च प्रदर्शन जैवविनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए नई पहल:  डीबीटी ने खोज और एकीकृत अभिनव अनुसंधान के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उच्च प्रदर्शन जैवविनिर्माण को प्रोत्साहन हेतु एक प्रमुख पहल की संकल्पना की है। इसका उद्देश्य जैवविनिर्माण को बढ़ाने के लिए अंतराल को पाटना और जैव-आधारित वाणिज्यिक उत्पादों के विकास के लिए विनिर्माण सुविधाओं को बढ़ावा देना है। इसे नवाचार को मदद करने के लिए बायो-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हब जैसे बायो-एनेबलर हब और बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए जैवविनिर्माण हब के माध्यम से संवर्धित किया जाएगा। इस पहल से कम कार्बन-उत्सर्जन विनिर्माण प्रक्रियाओं को बढ़ावा देते हुए भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के विकास को सुविधाजनक बनाने की उम्मीद है।

जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल (बायोआरआरएपी) का शुभारंभ: "एक राष्ट्र, एक पोर्टल" की भावना को ध्यान में रखते हुए, बायोआरआरएपी को डीबीटी ने "संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण" के रूप में विकसित किया है। यह पोर्टल भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को आसान बनाने की दिशा में पहला कदम है। बायोआरआरएपी देश में जैविक अनुसंधान और विकास गतिविधि के लिए आवश्यक विनियामक अनुमोदन चाहने वाले सभी लोगों की जरूरतों को पूरा करता है। यह पोर्टल अंतरविभागीय तालमेल को मजबूत करेगा और जैविक अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं को विनियमित करने और अनुमति जारी करने वाली एजेंसियों के कामकाज में जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावकारिता लाएगा। एक अद्वितीय "बायोआरआरएपी आईडी" इस पोर्टल के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करती है और शोधकर्ता को विनियामक मंजूरी के लिए आवेदनों के अनुमोदन के चरण और विशेष शोधकर्ता और/या संगठन द्वारा किए जा रहे सभी शोध कार्यों की प्रारंभिक जानकारी देखने में मदद करेगी।

जीनोम संपादित पौधों की विनियामक समीक्षा के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी): डीबीटी ने जीनोम संपादित पौधों और भविष्य की लचीली फसलों की विनियामक सुव्यवस्थितता को सक्षम करने के लिए साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज-1 (एसडीएन-1) और एसडीएन-2 श्रेणियों के तहत जीनोम संपादित पौधों की नियामक समीक्षा के लिए एसओपी को अधिसूचित किया। विभिन्न क्षेत्रों में विशाल आर्थिक क्षमता के साथ व्यावहारिक जैविक अनुसंधान और नवाचार के मामले में प्लांट जीनोम संपादन एक आशाजनक तकनीक है। 'जीनोम संपादित पौधों के सुरक्षा मूल्यांकन के लिए दिशानिर्देश' मई, 2022 में अधिसूचित किए गए थे। संस्थागत जैव सुरक्षा समितियों (आईबीएससी) द्वारा जैव सुरक्षा विनियमन को सक्षम करने की दिशा में एसओपी और चेकलिस्ट का मसौदा तैयार किया गया और इन्हें अधिसूचित किया गया ताकि सभी हितधारकों को इस बारे में स्पष्टता रहे।

सूखे की स्थिति में उच्च उपज देने वाली चने की किस्म अदविका (एडीवीआईकेए): एक उन्नत सूखा सहिष्णु देसी चने की किस्म "अदविका (एनसी 7)" को जेजी 16 की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में एबीसी ट्रांसपोर्टर जीन के अंतर्ग्रहण द्वारा विकसित किया गया था जो सूखे के हालात में भी बीज के वजन और उपज को (7) % तक) बढ़ाता है। इस बेहतर सूखा प्रतिरोधी चने की किस्म को अब भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की फसल मानक, अधिसूचना और किस्मों की रिहाई (सीवीआरसी) पर केंद्रीय उप-समिति द्वारा राष्ट्रीय उपयोग और खेती (विशेषकर भारत के मध्य क्षेत्र में) के लिए केंद्रीय किस्म के रूप में जारी करने और अधिसूचना के लिए अनुमोदित किया गया है।

एक्सेल ब्रीड- फसल सुधार कार्यक्रम में तेजी लाने के लिए पीएयू, लुधियाना में एक स्पीड ब्रीडिंग सुविधा: पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने एक अत्याधुनिक स्पीड ब्रीडिंग सुविधा विकसित की है, जिसका नाम "एक्सेलब्रीड" है। इस एक्सेलब्रीड में आठ पर्यावरण नियंत्रित कक्ष हैं जहां फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक सभी महत्वपूर्ण पर्यावरणीय कारक जैसे प्रकाश, तापमान, आर्द्रता और कार्बन डाई ऑक्साइड की उपस्थिति को इच्छानुसार नियंत्रित किया जा सकता है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए चावल प्रजनन में क्रांति लाने के लिए आईआरआरआई का स्पीडफ्लावर प्रोटोकॉल: अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) ने वाराणसी, भारत में एक अत्याधुनिक स्पीड ब्रीडिंग सुविधा स्थापित की है और प्रकाश मापदंडों को स्मार्ट तरीके से संयोजित करके नवीन स्पीडफ्लावर प्रोटोकॉल भी विकसित किया है, जिसमें एक उच्च लाल-से-नीला स्पेक्ट्रम अनुपात 24 घंटे लंबे दिन के फोटोपीरियड के साथ और तापमान तथा आर्द्रता सहित विकास की स्थितियों को अनुकूलित किया जा सकता है। स्पीडफ्लावर प्रोटोकॉल न केवल नई किस्मों के विकास में तेजी लाता है बल्कि वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में भी योगदान देता है।

टीका विकास के लिए डीबीटी के प्रयास: टीकों के स्वदेशी विकास में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई है, जैसा कि नीचे बताया गया है:

  • सर्वाइकल कैंसर को रोकने के लिए भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (क्यूएचपीवी) टीका;
  • दुनिया की पहली और भारत की स्वदेशी रूप से विकसित डीएनए आधारित टीका जायकोव-डी;
  • कोविड-19 के लिए भारत का पहला प्रोटीन सबयूनिट टीका कोरबेवैक्सटीएम;
  • भारत का स्वदेशी रूप से विकसित एमआरएनए टीका जेमकोवैक-19™;
  • भारत की पहली इंट्रानैसल कोविड-19 टीका आईएनकोवैकसी;
  • एमआरएनए प्लेटफॉर्म पर आधारित भारत का पहला ओमीक्रॉन बूस्टर वैक्सीन जेमकोवैक-ओएम।

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हेमोफिलिया ए के लिए भारत में पहला जीन थेरेपी नैदानिक परीक्षण: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने हेमोफिलिया ए के लिए भारत के पहले जीन थेरेपी नैदानिक परीक्षण को मंजूरी दे दी, जिसमें एक नवीन हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल आधारित लेंटिवायरल वेक्टर-आधारित जीन थेरेपी तकनीक शामिल है।

नवीन रक्त बैग प्रौद्योगिकी का विकास: बेंगलुरु में डीबीटी के एक स्वायत्त संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के एक अध्ययन समूह ने इलेक्ट्रोस्पून-नैनोफाइबर-शीट्स (ताऊ-एसीआरएनएफएस) युक्त टॉरिन और एक्रिडीन विकसित किया और दिखाया कि ये शीट्स मानव और चूहों की पूर्व-जीवित संग्रहीत आरबीसी की क्षति को कम करने में कुशल हैं। इस तरह की रोगनिरोधी तकनीक से नए रक्त बैग या चिकित्सा उपकरणों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे रक्त आधान-संबंधी प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकेगा और इसका स्वास्थ्य देखभाल पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम): ''मेक-इन इंडिया'' और ''आत्मनिर्भर भारत'' के राष्ट्रीय मिशनों के अनुरूप, कैबिनेट द्वारा अनुमोदित यह उद्योग-अकादमिक सहयोगात्मक मिशन किफायती बायोफार्मास्युटिकल और बायोमेडिकल उत्पाद विकास के लिए एक परितंत्र को सक्षम और पोषित करने पर केंद्रित है। एनबीएम ने हैजा, इन्फ्लूएंजा, डेंगू, चिकनगुनिया, न्यूमोकोकल रोग, कोविड-19 (प्रारंभिक विकास) और संबंधित प्रौद्योगिकियों, मधुमेह, रुमेटोलॉजिकल और नेत्र संबंधी रोगों, कैंसर के लिए 21 बायोसिमिलर उत्पाद और संबंधित प्रौद्योगिकियों; 29 चिकित्सा उपकरण एवं निदान के लिए 15 टीकों के विकास में मदद किया है। एनबीएम के तहत 2023 के दौरान उल्लेखनीय सफलताएं हैं:

  • देश की अधूरी आवश्यकता को पूरा करने के लिए एक ठोस, हल्का, अगली पीढ़ी के एमआरआई स्कैनर का विकास। सॉफ्टवेयर के साथ अगली पीढ़ी के हार्डवेयर के संयोजन ने डायग्नोस्टिक इमेजिंग क्षेत्र में एक अत्यधिक विघटनकारी उत्पाद को सफलतापूर्वक पेश करने में सक्षम बनाया है। यह केंद्र सरकार के सीडीएससीओ से वाणिज्यिक बिक्री और निर्माण लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली भारतीय कंपनी है।
  • तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण के सफल समापन के बाद बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड के लिए 4 सितंबर, 2023 को बाजार प्राधिकरण अनुमोदन (एमएए)। यह भारतीय बाजार में विक्टोज़ा का पहला बायोसिमिलर होगा।
  • 57 प्रयोगशालाओं और 300 से अधिक प्रहरी साइटों वाले भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (इंसाकोग) ने अब तक 3.0 लाख से अधिक कोविड-19 सकारात्मक नमूनों का अनुक्रम और विश्लेषण किया है।

 

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भारतीय जैविक डेटा केंद्र (आईबीडीसी) भारत में जीवन विज्ञान डेटा के लिए पहला राष्ट्रीय भंडार है, जो फ़रीदाबाद में डीबीटी के एक स्वायत्त संस्थान क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरसीबी) में स्थापित है। आईबीडीसी को एनआईसी, एनआईआई और आईसीजीईबी, नई दिल्ली के सक्रिय सहयोग के तहत विकसित किया जा रहा है।

टीबी उन्मूलन के लिए डेटा संचालित अनुसंधान (डेयर2इरेड टीबी) पहल माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) की जैविक विशेषताओं और संचरण, उपचार और रोग की गंभीरता पर उत्परिवर्तन के प्रभाव को पूरी तरह से समझने के लिए इस तरह के पैमाने पर पहली अखिल भारतीय पहल है। अब तक लगभग 600 नमूनों का अनुक्रम किया जा चुका है।

महत्वपूर्ण अनुसंधान अंतर्दृष्टि

  • एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) और इसकी गतिशीलता से जुड़ी कार्यात्मक क्षमता को समझने के लिए घाव का सड़ना, मूत्र पथ के संक्रमण और श्वसन संक्रमण से जुड़े जीवाणु रोगजनकों के जीनोम अनुक्रमों को डिकोड करने के लिए भारत में एक बहुकेंद्रित अध्ययन आयोजित किया गया था। जीनोमिक विश्लेषण ने कई अधिग्रहीत एएमआर जीन (एआरजी) की पहचान की जिनमें रोगज़नक़-विशिष्ट संकेत हैं। (प्रोक नेटल एकेडेसाई यू.एस.ए. 2023 अगस्त 15;120(33):ई2305465120. डीओआई: 10.1073/पीएनएएस.2305465120।)
  • टीएचएसटीआई, फ़रीदाबाद के शोधकर्ताओं ने दिखाया कि के18-एचएसीई2 ट्रांसजेनिक (एसीई2.टीजी) माउस मॉडल में, आईएल-9 ने सार्स-कोव -2 संक्रमण के कारण होने वाले वायरल प्रसार और वायुमार्ग की सूजन में योगदान दिया और इसे बढ़ा दिया, और इसलिए रोग की गंभीरता को कम करने के लिए मेजबान-निर्देशित उपचारात्मक विकास इस सिद्धांत का प्रमाण है। (नैट कम्यून. 2023 जुलाई 10;14(1):4060. डीओआई: 10.1038/एस41467-023-39815-5)
  • 70 साल पहले शिलिंग परीक्षण (रेडियोधर्मी-बी₁₂ का उपयोग करके) प्रकाशित होने के बाद पहली बार एक नया ¹³C-लेबल सायनोकोबालामिन अणु (¹³C-B₁₂) जिसे जैवसंश्लेषित किया गया था, को विटामिन बी₁₂ अवशोषण के सुरक्षित परीक्षण के लिए अनुमति दी गई थी। अवशोषण को मापने के लिए इस नवीन ¹³C-B₁₂ के उपयोग से अंतर्ग्रहण के 10-12 घंटे बाद 'लेट फेज़' कोलोनिक अवशोषण का पता चला। यह लंबे समय से चली आ रही धारणा को उलट देता है कि बी₁₂ अवशोषण केवल छोटी आंत में होता है, और यह समझा सकता है कि भारत में व्यापक शाकाहार के बावजूद इस विटामिन की कमी गहरी क्यों नहीं है। (वयस्क मनुष्यों में विटामिन बी12 की जैव उपलब्धता और दैनिक आवश्यकता: इसके कोलोनिक अवशोषण और दैनिक उत्सर्जन का एक अवलोकन अध्ययन, जैसा कि [13सी] - सायनोकोबालामिन कैनेटीक्स द्वारा मापा जाता है। एम जे क्लिनन्यूट्र 2023।

https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0002916523661180?via%3Dihub )

अंतर-मंत्रालयी और अंतर्राष्ट्रीय समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए

  • स्वास्थ्य देखभाल अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए 5 सितंबर 2023 को केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह की उपस्थिति में सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (एएफएमएस) और डीबीटी के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। समझौता ज्ञापन जीनोमिक्स जैसे क्षेत्रों में नए अनुसंधान को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, जिसका प्रभाव जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों और घातक कैंसर जैसी उभरती बीमारियोंल पर पड़ता है।
  • डीबीटी-एनएसएफ अनुसंधान सहयोग कार्यक्रम: डीबीटी और अमेरिका के राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन (एनएसएफ) ने 22 अगस्त, 2023 को नई दिल्ली में डॉ. जितेंद्र सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गरिमामय उपस्थिति में अनुसंधान सहयोग पर एक कार्यान्वयन व्यवस्था (आईए) पर हस्ताक्षर किए।
  • डीबीटी और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) ने डीबीटी बायोडिजाइन केंद्रों पर चिकित्सा उपकरणों को डिजाइन करने और बनाने में अंतरराष्ट्रीय युवा पेशेवरों का समर्थन करने के लिए 12 अक्टूबर, 2023 को केंद्रीयमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यह पहल वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का जवाब देने के लिए युवाओं में चिकित्सा प्रौद्योगिकी नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन की गई है।

प्रौद्योगिकियों का विकास

  • दाल की संरचना के अंदर आयरन और जिंक का वैक्यूम संसेचन सफलतापूर्वक पूरा किया गया। यह प्रक्रिया एक साथ फाइटेट को कम करती है और विवो माइक्रोन्यूट्रिएंट जैव उपलब्धता में वृद्धि करने की क्षमता रखती है।
  • एक नया पहनने योग्य इलेक्ट्रोकेमिकल दस्ताने जैसा विश्लेषणात्मक उपकरण (ईजीएडी) विशेष रूप से क्लब ड्रग मेथमफेटामाइन का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। विकसित सेंसर पता लगाने की सीमा 0.1 µg/mL और मात्रा निर्धारण की सीमा 0.3 µg/mL दिखाता है।
  • भारतीय पेटेंट "सब्सट्रेट पर कोटिंग और तैयारी की प्रक्रिया के लिए सोल-जेल संरचना को रोकने वाली बायोफिल्म" के लिए प्रदान किया गया था। सोल-जेल कोटिंग संरचना को रोकने वाली यह बायोफिल्म जीवाणुरोधी गुण प्रदान करती है।
  • एक ऐसे उपकरण का प्रोटोटाइप विकसित किया गया है जो भोजन में मौजूद बैक्टीरिया (एस. टाइफिम्यूरियम, ई. कोली और पी. एरुगिनोसा सहित) के मिश्रण का शीघ्र और सटीक पता लगा सकता है। इससे हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
  • कपड़ा उद्योग के अपशिष्टों के प्रभावी उपचार के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी (आईएसएमएआरटी) और माइक्रोबियल उत्पाद के ऑन-साइट सत्यापन के लिए एक सिरेमिक झिल्ली एकीकृत एनारोबिक बायोरिएक्टर (सीएमआईएआर) विकसित किया गया है।
  • नगरपालिका ठोस कचरे को सीटीएल तेल में परिवर्तित करने के लिए कोयला से तरल प्रौद्योगिकी (सीटीएल) प्रक्रिया विकसित की गई है जिससे 80% रूपांतरण प्राप्त कियाजाता है।
  • नई दिल्ली में डीबीटी-ब्रिक-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोमिक रिसर्च (एनआईपीजीआर) ने स्टार्टअप फ्रुविटेक के माध्यम से ऐसी तकनीकें विकसित की हैं जो फलों और सब्जियों की ताजगी को बढ़ा सकती हैं और भंडारण के दौरान इनके पोषक तत्वों की स्थिति को बरकरार रख सकती हैं।

 

 

डीबीटी के मानव संसाधन विकास कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताएं

  • देश के 4 राज्यों में ग्रामीण श्रेणी के तहत 6 कॉलेजों में स्टार कॉलेज कार्यक्रम लागू किया गया था, जबकि शहरी श्रेणी के तहत इसे 8 कॉलेजों में लागू किया गया है और पहली बार कारगिल में एक कॉलेज को वित्तीय सहायता के लिए चुना गया है।
  • स्नातकोत्तर शिक्षण कार्यक्रम (एम.एससी./ एम.टेक./एम.वीएससी.) के तहत 2023-24 में 770 छात्रों को सहायता प्रदान की गई है।
  • डीबीटी-रिसर्च एसोसिएटशिप (डीबीटी-आरए) कार्यक्रम के तहत 2023-24 में 185 फेलो को समर्थन दिया गया।
  • बायोटेक्नोलॉजी करियर एडवांसमेंट एंड री-ओरिएंटेशन प्रोग्राम (बायोकेयर) के तहत 2023 में 57 महिला वैज्ञानिकों को समर्थन दिया गया।

उत्तर पूर्वी क्षेत्र जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम

  • सिट्रस ग्रीनिंग बैक्टीरिया (सीजीबी) और सिट्रस ट्रिस्टेजा वायरस से मुक्त रूटस्टॉक्स विकसित करने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी (आईएचटी), मंदिरा, असम में खासी मंदारिन (साइट्रस रेटिकुलाटा) और मीठे संतरे से प्रमाणित अंकुर सामग्री के उत्पादन की सुविधाएं स्थापित की गई हैं।
  • आदर्श फलों के रूप में असम नींबू, जम्भिरी (खुरदरा नींबू) और पोमेलो के साथ 'सर्व-प्राकृतिक' बांस और केले के पत्ते से पैकेजिंग और ले जाने वाले उपकरणों को विकसित और अध्ययन किया गया।
  • इंस्टीट्यूट ऑफ बायोरिसोर्सेज एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईबीएसडी), इम्फाल ने मेघालय में ऑर्किड फूलों की खेती के माध्यम से महिला उद्यमिता विकसित करने के लिए स्केलिंग टेक्नोलॉजीज (बायोएनईएसटी) इनक्यूबेटर के लिए बायोइनक्यूबेटर पोषण उद्यमिता की स्थापना की है। परियोजना का मुख्य फोकस मेघालय के आकांक्षी जिले री-भोई के विभिन्न हिस्सों से महिला जैव-उद्यमियों और किसानों की क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण है।

ग्लोबल बायो इंडिया 2023 का आयोजन 4-6 दिसंबर 2023 तक भारत मंडपम, प्रगति मैदान में किया गया था। 500 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप, इनक्यूबेटर, उद्योग और अन्य हितधारकों के इस सबसे बड़े बायोटेक एक्सपो का उद्घाटन डॉ. जितेंद्र सिंह, विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने किया था। इस आयोजन में 3 दिनों में 7000 से अधिक प्रतिनिधियों की उपस्थिति देखी गई। ग्लोबल बायो इंडिया 2023 कार्यक्रम में बायोटेक स्टार्टअप्स द्वारा विकसित 29 नए उत्पाद लॉन्च किए गए। ग्लोबल बायो-इंडिया 2023 में डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा जारी इंडिया बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2023 से पता चला है कि भारत की बायोइकोनॉमी पिछले 6-7 वर्षों से लगातार दोहरे अंक सीएजीआर के साथ 2022 में 137 अरब डॉलर तक बढ़ गई है।

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