विधि एवं न्याय मंत्रालय
वर्षान्त समीक्षा 2023: न्याय विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय
वर्ष 2023-2024 के दौरान 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 766 जिलों (112 आकांक्षी जिलों सहित) में 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करने के लिए टेली-लॉ का विस्तार किया गया
उच्च न्यायालयों में 110 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 7,210 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ ई-कोर्ट चरण-III को स्वीकृति दी
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (एफटीएससी) योजना को 1952.23 करोड़ रूपए के कुल परिव्यय के साथ 01.04.2023 से 31.03.2026 तक तीन और वर्षों के लिए बढ़ाया गया
Posted On:
12 DEC 2023 4:01PM by PIB Delhi
- न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण:
- उच्च न्यायालयों में 110 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई - इलाहाबाद (09), आंध्र प्रदेश (06), बॉम्बे (09), छत्तीसगढ़ (02), दिल्ली (05), गौहाटी (05), गुजरात (08), हिमाचल प्रदेश (03) , कर्नाटक (05), केरल (03), मध्य प्रदेश (14), मद्रास (13), मणिपुर (02), मेघालय (01), उड़ीसा (02), पटना (02), पंजाब और हरियाणा (04), राजस्थान (09), तेलंगाना (03), त्रिपुरा (02) और उत्तराखंड (03)
- 72 अतिरिक्त न्यायाधीश उच्च न्यायालयों में स्थायी न्यायाधीश बने- इलाहाबाद (17), बॉम्बे (09), कलकत्ता (04), छत्तीसगढ़ (01), दिल्ली (01), गौहाटी (06), कर्नाटक (02) केरल (05), मद्रास (10), पी एंड एच (17)
- उच्च न्यायालयों के 02 अतिरिक्त न्यायाधीशों का कार्यकाल बढ़ाया गया- बॉम्बे (01) और कर्नाटक (01)
- विभिन्न उच्च न्यायालयों में 22 मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए-इलाहाबाद, आंध्र प्रदेश, बॉम्बे, कलकत्ता, छत्तीसगढ़, गौहाटी, गुजरात, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, केरल, मद्रास, मणिपुर, उड़ीसा, पटना, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड।
- 34 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।
- टेली-लॉ:
- वर्ष 2023-2024 के दौरान 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 766 जिलों (112 आकांक्षी जिलों सहित) में 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करने के लिए टेली-लॉ का विस्तार किया गया है। मुकदमेबाजी से पूर्व सलाह देने के लिए लगभग 700 अधिवक्ता अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 30 नवंबर, 2023 तक 24 लाख से अधिक लाभार्थियों को कानूनी सलाह और परामर्श प्रदान किया गया है।
- जिला स्तरीय कार्यशाला- टेली-लॉ स्टेट टीम द्वारा देश भर में 100 जिला स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया गया है। इन कार्यशालाओं में ग्राम स्तरीय उद्यमी (वीएलई), पैरा लीगल वालंटियर (पीएलवी), सरकारी अधिकारी और एसएलएसए/डीएलएसए के सदस्यों सहित 5500 से अधिक प्रतिभागियों ने भागीदारी की। टेली-लॉ कार्यान्वयन, टेली-लॉ योजना पर जागरूकता और टेली-लॉ सिटीजन मोबाइल ऐप पर सत्रों का आयोजन किया गया।
- वीएलई द्वारा विशेष जागरूकता अभियान: टेली-लॉ वीएलई द्वारा टेली-लॉ पर सीमित जागरूकता या शून्य जागरूकता वाले अपने क्षेत्र के उन हिस्सों में विशेष जागरूकता शिविर आयोजित करने की पहल की गई। वीएलई ने टेली-लॉ पर जागरूकता फैलाने के लिए परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे ई-रिक्शा, मोबाइल वैन, ऑटो-रिक्शा, मोटरसाइकिल, साइकिल आदि का उपयोग करके विशेष प्रयास किए। जागरूकता शिविरों में 12000 से अधिक नागरिकों ने भाग लिया।
- 26 जून से 2 जुलाई 2023 तक टेली-लॉ पोर्टल पर टेली-लॉ के अंतर्गत पंजीकृत 1.5 लाख अप्राप्य और लंबित मामलों तक पहुंचने के लिए विशेष बैकलॉग क्लीयरेंस अभियान का शुभारंभ किया गया था, जहां 1,05,771 से अधिक टेली-लॉ परामर्श पैनल अधिवक्ताओं द्वारा प्रदान किए गए।
- सेल्फी ड्राइव अभियान- इस पहल का शुरूआत सोशल मीडिया साइटों पर जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए की गई है, जहां लाभार्थी और क्षेत्रीय पदाधिकारी (वीएलई और पैनल अधिवक्ता) टेली लॉ सेवा पर सेल्फी/वीडियो के माध्यम से अपने अनुभव साझा करते हैं। 30 नवंबर 2023 तक, टेली लॉ सोशल मीडिया साइटों (फेसबुक और ट्विटर) पर कुल 217 सेल्फी/वीडियो अपलोड किए गए थे।
- नये रेडियो जिंगल अभियान का शुभारंभ (1 अगस्त से 31 अगस्त 2023 तक: नया रेडियो जिंगल ऑल इंडिया रेडियो के (201 स्टेशन), विविध भारती के (42 स्टेशन) और एफएम रेडियो के (29 स्टेशन) पर जारी और प्रसारित किया गया।
- टेली-लॉ 2.0 (टेली-लॉ और न्याय बंधु (प्रो बोनो) कानूनी सेवा कार्यक्रम का एकीकरण) का शुभारंभ और सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में माननीय कानून एवं न्याय राज्य (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री की उपस्थिति में 25 अगस्त 2023 को 50 लाख कानूनी सलाह की उपलब्धि के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। । कार्यक्रम के दौरान टेली-लॉ और न्याय बंधु सेवाओं के एकीकरण (टेली-लॉ 2.0) की शुरूआत की गई, वॉयस ऑफ बेनिफिशियरीज (चौथा संस्करण) और अवार्डी कैटलॉग जारी किया गया। माननीय मंत्री द्वारा देश भर के 6 क्षेत्रों के 12 फ्रंटलाइन पदाधिकारियों को सम्मानित किया गया।
- राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए):
- 19वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक का उद्घाटन 30 जून, 2023 को जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के संरक्षक-प्रमुख, डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा किया गया। राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में 30 जून , 2023 और 1 जुलाई, 2023 को 02 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन जम्मू और कश्मीर कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा किया गया। बैठक के दौरान कानूनी सेवा प्राधिकरणों के लिए भविष्य की कार्रवाई, लक्ष्य निर्धारित करने, विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने और देश में कानूनी सहायता कार्यक्रमों को मजबूत करने एवं सुव्यवस्थित करने के कदमों को लागू करने पर चर्चा की गई।
- राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी और भारत सरकार ने इंटरनेशनल लीगल फाउंडेशन (आईएलएफ), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के सहयोग से 27 और 28 नवंबर, 2023 को कानूनी सहायता तक पहुंच: न्याय तक पहुंच को मजबूत बनाने पर पहले क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
दो दिनों के दौरान, कानूनी सहायता और न्याय तक पहुंच के विभिन्न विषयों पर कुल 16 सत्र आयोजित किए गए। यह इस तरह की पहली सभा थी जिसमें वैश्विक दक्षिण के 40 से अधिक अफ्रीका, एशिया और प्रशांत देशों के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, मंत्री, वरिष्ठ मंत्रालय के अधिकारी, कानूनी सहायता निकायों के प्रमुख और नागरिक समाज विशेषज्ञ, सभी ने वैश्विक दक्षिण में न्याय तक पहुंच की सबसे गंभीर चुनौतियों का समाधान और कानूनी सहायता एवं न्याय प्रणालियों को मजबूत करने के लिए कार्रवाई योग्य परिणाम तैयार करने हेतु संयुक्त रूप से भागीदारी की।
- ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना:
प्रौद्योगिकी का उपयोग करके न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के उद्देश्य से ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना का शुभारंभ किया गया है। ई-कोर्ट चरण I का उद्देश्य अदालतों का बुनियादी कम्प्यूटरीकरण और स्थानीय नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करना है। परियोजना का दूसरा चरण 2015 में 1,670 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू हुआ, जिसमें से 1668.43 करोड़ रुपये की राशि सरकार द्वारा जारी की गई है। चरण II के तहत, अब तक 18,735 जिला और अधीनस्थ अदालतों को कम्प्यूटरीकृत किया जा चुका है।
डब्ल्यूएएन परियोजना के हिस्से के रूप में, ओएफसी, आरएफ, वीएसएटी आदि जैसी विभिन्न प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके 2992 अदालत परिसरों (99.4% स्थलों) में से 2977 को 10 एमबीपीएस से 100 एमबीपीएस बैंडविड्थ गति के साथ कनेक्टिविटी प्रदान की गई है।
इलास्टिक सर्च तकनीक के साथ विकसित राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का उपयोग करके, अधिवक्ता और याचिकाकर्ता 24.47 करोड़ मामलों और 24.13 करोड़ से अधिक आदेशों/निर्णयों की स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
कोविड लॉकडाउन अवधि के बाद से, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय सहित पूरे भारत के न्यायालयों द्वारा 2.97 करोड़ से अधिक वर्चुअल सुनवाई आयोजित की गई है, जिससे वर्चुअल सुनवाई में भारत विश्व में अग्रणी बन गया है।
गुजरात, गौहाटी, उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड, पटना, मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों और भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग प्रारंभ की जा चुकी है, जिससे इच्छुक व्यक्तियों को कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति भी दी गई है।
यातायात अपराधों की सुनवाई के लिए 20 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 25 वर्चुअल अदालतें स्थापित की गई हैं। इन अदालतों ने 4.11 करोड़ से अधिक मामलों की सुनवाई की है और 478.69 करोड़ रुपये के जुर्माने की वसूली की है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत चेक बाउंस मामलों की सुनवाई के लिए 34 डिजिटल अदालतें शुरू की हैं।
कानूनी कागजात की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग के लिए एक ई-फाइलिंग प्रणाली शुरू की गई है। यह अधिवक्ताओं को 24X7 किसी भी स्थल से मामलों से संबंधित दस्तावेजों तक पहुंचने और अपलोड करने की अनुमति देता है, जिससे कागजात दाखिल करने के लिए अदालत में जाने की जरूरत नहीं रहती है।
मामलों की ई-फाइलिंग के लिए शुल्क के इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के विकल्प की आवश्यकता होती है जिसमें अदालती शुल्क, जुर्माना और दंड शामिल होते हैं जो सीधे समेकित निधि में देय होते हैं। कुल 21 उच्च न्यायालयों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में ई-भुगतान व्यवस्था को लागू किया है।
न्याय वितरण को समावेशी बनाने और डिजिटल विभाजन को दूर करने के लिए, अधिवक्ता या वादी की मदद के लिए 875 ई-सेवा केंद्र शुरू किए गए हैं, जिन्हें सूचना से लेकर सुविधा और ई-फाइलिंग तक किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती है।
अधिवक्ताओं/वादकारियों को मामले की स्थिति, वाद सूची, निर्णय आदि पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने के लिए 7 प्लेटफार्मों या सेवा वितरण चैनलों के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाएं प्रदान की जाती हैं। इन सेवाओं में एसएमएस पुश एंड पुल (2,00,000 एसएमएस प्रतिदिन भेजे गए), ईमेल (2,50,000 प्रतिदिन भेजे गए), बहुभाषी और स्पर्शनीय ई-कोर्ट सेवा पोर्टल (35 लाख हिट प्रतिदिन), न्यायिक सेवा केंद्र (जेएससी), सूचना कियोस्क, अधिवक्ताओं/वादियों के लिए ई-कोर्ट मोबाइल ऐप (31.10.2023 तक 2.07 करोड़ डाउनलोड के साथ) और न्यायाधीशों के लिए जस्ट आईएस ऐप (30.11.2023 तक 19,433 डाउनलोड किए गए) शामिल हैं।
राष्ट्रीय सेवा और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की ट्रैकिंग (एनएसटीईपी) को प्रक्रिया को पूरा करने और समन जारी करने के लिए विकसित किया गया है और वर्तमान में यह 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में संचालित है।
निर्णयों को आसानी से खोजने में अपने हितधारकों की सुविधा के लिए एक नए 'जजमेंट एंड ऑर्डर सर्च' पोर्टल का उद्घाटन किया गया है। इस सुविधा का लाभ https://judgments.ecourts.gov.in पर लिया जा सकता है।
न्याय क्षेत्र के बारे में जनता में जागरूकता लाने, विभाग की विभिन्न योजनाओं का विज्ञापन करने और जनता को विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति बताने के लिए 25 उच्च न्यायालयों में 39 न्याय घड़ियाँ स्थापित की गई हैं। पोर्टल पर वर्चुअल जस्टिस क्लॉक भी प्रस्तुत की गयी है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने आईसीटी सेवाओं पर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिसमें 5,35,558 हितधारकों को शामिल किया गया है।
ई-कोर्ट परियोजना ने पिछले तीन वर्षों से लगातार ई-गवर्नेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार सहित विभिन्न पुरस्कार प्राप्त किए हैं।
ई-कोर्ट चरण- II की समाप्ति के साथ ही, कैबिनेट ने 13.09.2023 को 7,210 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ ई-कोर्ट चरण- III को मंजूरी दे दी। चरण-I और चरण-II के लाभ को अगले स्तर पर ले जाते हुए, ई-कोर्ट चरण-III का लक्ष्य डिजिटल, ऑनलाइन और पेपरलेस अदालतों की ओर बढ़ते हुए न्याय में अधिकतम सुलभता की व्यवस्था का शुरूआत करना है। चरण-III का मुख्य उद्देश्य न्यायपालिका के लिए एक एकीकृत प्रौद्योगिकी मंच तैयार करना है, जो अदालतों, वादियों और अन्य हितधारकों के बीच एक सहज और कागज रहित इंटरफ़ेस प्रदान करेगा। ई-कोर्ट परियोजना चरण-III के लिए प्रस्तावित समय-सीमा 2023 से शुरू होकर आगामी चार वर्ष तक है। यह परियोजना एक "स्मार्ट" इकोसिस्टम का निर्माण करके एक सहज उपयोगकर्ता अनुभव प्रदान करने में मदद करेगी। रजिस्ट्रियों में कम डेटा प्रविष्टि और न्यूनतम फ़ाइल जांच होगी जिससे बेहतर निर्णय लेने और नीति नियोजन में सुविधा होगी। इस प्रकार ई-कोर्ट चरण-III देश के सभी नागरिकों के लिए न्यायालय के अनुभव को सुविधाजनक, सस्ता और समस्या मुक्त बनाकर न्याय में आसानी सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रूप से परिवर्तनकारी सिद्ध होगा।
- फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) की योजना:
बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के पीड़ितों को त्वरित निपटान के माध्यम से शीघ्र न्याय प्रदान करने के लिए भारत द्वारा अक्टूबर, 2019 में विशेष पॉक्सो (ई- पॉक्सो) अदालतों सहित फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों (एफटीएससी) की स्थापना के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना का शुभारंभ किया गया था। यह योजना शुरू में एक वर्ष के लिए मार्च 2023 तक बढ़ा दी गई थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1952.23 करोड़ रुपये के साथ इस योजना को तीन और वर्षों के लिए अर्थात 01.04.2023 से 31.03.2026 तक बढ़ा दिया है, इसमें 1207.24 करोड़ रूपए निर्भया फंड से केंद्रीय अंश के रूप में खर्च किये जाएंगे। न्याय विभाग ने इन एफटीएससी के संचालन के लिए 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त के रूप में 06.12.2023 तक कुल 734.93 करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2019-20 में 140 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2020-21 में 160 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2021-22 में 134.56 करोड़ रुपये, वित्त वर्ष 2022-23 में 200 करोड़ रुपये और वर्ष 2023-24 में 100.37 करोड़ रुपये) जारी किये हैं।
योजना की उपलब्धियाँ
- 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 412 विशिष्ट पॉक्सो अदालतों के साथ 758 एफटीएससी का संचालन किया गया है, जिन्होंने 2,00,000 से अधिक मामलों (अक्टूबर, 2023 तक) का निपटारा किया है। पुदुचेरी ने योजना में शामिल होने के लिए एक विशेष अनुरोध किया और मई, 2023 में एक विशेष पॉक्सो कोर्ट का संचालन किया।
- एफटीएससी महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- एफटीएससी समर्पित अदालतें हैं जिन्होंने यौन अपराधों के असहाय पीड़ितों को तेजी से न्याय दिलाने; यौन अपराधियों के लिए एक निवारक सिस्टम बनाने, न्याय प्रणाली में नागरिकों के विश्वास को मजबूत करने और महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण का मार्ग सुलभ कराने में मदद की है।
- न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन:
न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन अगस्त 2011 में स्थापित किया गया था। न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन पूरे देश में न्याय प्रशासन और न्याय वितरण एवं कानूनी सुधारों में सुधार और सभी वर्गों के हितधारकों की विविध आवश्यकताओं का पूरा करने पर केंद्रित है। इसके दोहरे उद्देश्य हैं:
- सिस्टम में देरी और बकाया को कम करते हुए पहुंच बढ़ाना, और
- संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से और प्रदर्शन मानकों और क्षमताओं को निर्धारित करते हुए जवाबदेही बढ़ाना
राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत पहल
- न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन:
राष्ट्रीय मिशन की प्रमुख पहलों में से एक न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) से संबंधित है। न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए सीएसएस का उद्देश्य जिला, उप-जिला, तालुका, तहसील और ग्राम पंचायत एवं ग्राम स्तर सहित पूरे देश में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों के लिए उपयुक्त संख्या में अदालत कक्ष, आवासीय रिहाईश की उपलब्धता बढ़ाना है। इससे देश भर में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और प्रदर्शन को बेहतर बनाने और प्रत्येक नागरिक तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
सरकार ने 9000 करोड़ रुपये (5307 करोड़ रुपये की केंद्रीय हिस्सेदारी सहित) के वित्तीय परिव्यय के साथ इस सीएसएस को 5 वर्ष की अवधि अर्थात 2021-22 से 2025-26 तक जारी रखने को स्वीकृति दे दी है और कुछ नई सुविधाएँ भी प्रस्तुत की हैं जैसे अधिवक्ताओं और वादियों की सुविधा के लिए कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों के अलावा अधिवक्ता कक्ष, शौचालय परिसर और डिजिटल कंप्यूटर कक्ष का प्रावधान।
योजना प्रारंभ होने की तिथि से दिनांक 11.12.23 तक 10443.75 करोड़ रूपये जारी किये जा चुके हैं, जिसमें से वर्ष 2014-15 से 6999.44 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं जो योजना के तहत कुल जारी की गई निदि का लगभग 67.02 प्रतिशत है। चालू वित्तीय वर्ष 2023-2024 के दौरान 1051 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं जिसमें से 577 करोड़ रुपये स्वीकृत किये जा चुके हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को 857.20 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है।
उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 21,507 कोर्ट हॉल उपलब्ध हैं, जो 2014 में उपलब्ध 15,818 कोर्ट हॉल की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है। जहां तक आवासीय इकाइयों का प्रश्न है तो वर्तमान 20,017 न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों की संख्या के कामकाज के मुकाबले 18,882 आवासीय इकाइयां उपलब्ध हैं। 2014 में 10,211 आवासीय इकाइयाँ उपलब्ध थीं। इसके अलावा, न्याय विकास पोर्टल के अनुसार 3,109 कोर्ट हॉल और 1,807 आवासीय इकाइयाँ वर्तमान में निर्माणाधीन हैं।
न्याय विकास 2.0 का शुभारंभ:
- निर्माण परियोजनाओं की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन साधन के तौर पर न्याय विकास का माननीय कानून एवं न्याय मंत्री द्वारा 11 जून, 2018 को शुभारंभ किया गया था। न्याय विकास वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप को अपग्रेड किया गया है और संस्करण 2.0 को जनता के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। 1 अप्रैल, 2020 को उन्नत क्षमताओं और कार्यक्षमताओं के साथ, एनआरएससी, इसरो की सहायता से विभिन्न राज्य उपयोगकर्ताओं से मिले फीडबैक के आधार पर विकसित किया गया है। 30.11.2023 तक, 6,828 कोर्ट हॉल (पूर्ण, निर्माणाधीन और प्रस्तावित), 6,341 आवासीय इकाइयां (पूर्ण, निर्माणाधीन और प्रस्तावित) जियोटैग की गई हैं।
- जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्तियों को भरना
संवैधानिक प्रारूप के अनुसार, अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों का चयन और नियुक्ति संबंधित उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों का दायित्व है। उच्चतम न्यायालय ने मलिक मज़हर मामले में एक न्यायिक आदेश के माध्यम से अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियों को भरने के लिए एक प्रक्रिया और समय सीमा तैयार की है। न्याय विभाग राज्यों और उच्च न्यायालयों के साथ जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने का मामला उठा रहा है। न्याय विभाग मासिक आधार पर जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत और कामकाजी क्षमता एवं रिक्तियों की रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए अपनी वेबसाइट पर एक एमआईएस वेब-पोर्टल का संचालन करता है। यह नीति निर्माताओं को मासिक न्यायिक डेटा प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। अप्रैल, 2021 से मलिक मजहर सुल्तान मामले के निर्देशों के अनुपालन की रिपोर्टिंग के लिए पोर्टल भी न्याय विभाग की वेबसाइट पर लाइव है।
- न्यायालयों में लंबित मामले
मामलों का निपटारा न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि, केन्द्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए मामलों के त्वरित निपटान और लंबित मामलों में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार द्वारा स्थापित न्याय वितरण और कानूनी सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन ने कई रणनीतिक पहलों को अपनाया है, जिसमें जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए बुनियादी सुविधाओं [कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों] में सुधार, बेहतर न्याय वितरण के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरना, जिला, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय स्तर पर बकाया समितियों द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई के माध्यम से लंबित मामलों में कमी, वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) पर जोर और तेजी से काम करने की पहल का लाभ उठाना शामिल है। विशेष प्रकार के मामले. 11 दिसंबर 2023 तक सुप्रीम कोर्ट में 79,781 मामले लंबित हैं। 11 दिसंबर 2023 तक उच्च न्यायालयों और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों के संबंध में लंबित मामलों की संख्या क्रमशः 61,95,535 और 4,43,45,599 हैं।
- व्यापार करने में आसानी
- कारोबार में आसानी (ईओडीबी) सूचकांक विश्व बैंक समूह द्वारा स्थापित एक रैंकिंग प्रणाली है जिसमें 'उच्च रैंकिंग' (कम संख्यात्मक मूल्य) व्यवसायों के लिए बेहतर, आमतौर पर सरल, नियमों और संपत्ति अधिकारों की मजबूत सुरक्षा का संकेत मिलता है। अनुबंधों को लागू करना एक ऐसा संकेतक है, जो एक मानकीकृत वाणिज्यिक विवाद के साथ-साथ न्यायपालिका में बेहतर कार्यप्रणालियों की एक श्रृंखला का समाधान निकालने के लिए समय और लागत को मापता है। न्याय विभाग अनुबंध संकेतक लागू करने के लिए नोडल विभाग है। निवेश और व्यापार के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए, अनुबंधों के शीघ्र कार्यान्वयन को सक्षम बनाने हेतु सुधारों को लागू करके निरंतर प्रयास किए गए हैं। व्यवसाय करने में आसानी को बेहतर बनाने के लिए, न्याय विभाग द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली, बॉम्बे, कर्नाटक और कलकत्ता के उच्च न्यायालयों की ई-समिति के समन्वय के साथ विभिन्न सुधार किए गए हैं।
वाणिज्यिक मामलों को संभालने के लिए, दिल्ली में 46, मुंबई में 6, बेंगलुरु में 10 और कोलकाता में 4 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालय संचालित किए गए हैं। दिल्ली में 46 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों में से, साकेत जिला न्यायालय में 2 डिजिटल वाणिज्यिक न्यायालय संचालित किए गए हैं, जो ई-फाइलिंग और वर्चुअल सुनवाई सुविधा के साथ कागज रहित अदालतें हैं।
- किए गए अन्य सुधारों में 500 करोड़ से अधिक के उच्च मूल्य वाले वाणिज्यिक विवादों से निपटने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में विशेष पीठ, विशिष्ट अनुतोष (संशोधन) अधिनियम, 2018 की धारा 20 बी के अनुसार बुनियादी ढांचा परियोजना अनुबंध विवादों के लिए नामित विशेष अदालतें, तीन स्थगन नियम का कार्यान्वयन (कलर बैंडिंग सुविधा के माध्यम से), आईसीटी का उपयोग, ई-फाइलिंग, मामलों का यादृच्छिक और स्वचालित आवंटन, न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक केस प्रबंधन टूल का उपयोग, ई-समन इत्यादि शामिल हैं।
***
एमजी/एआर/एसएस/डीके
(Release ID: 1985788)
Visitor Counter : 329