पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय

समुद्र में खोज

Posted On: 06 DEC 2023 12:33PM by PIB Delhi

सीएसआईआर- केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के बजटीय समर्थन से ‘‘जैविक मूल्यांकन, नवीन बायोएक्टिव योगिकों की खोज और कार्यक्रम के समन्वय - समुद्र से दवा’’ पर एक परियोजना का क्रियान्वयन किया। परियोजना 2020 में पूरी कर ली गई। इस दौरान कैंसर-रोधी, एंजियोजेनिक-रोधी, सूजन-रोधी, जीवाणु- रोधी गतिविधियों के लिये कुल 2,654 योगिकों की जांच- परख की गई और जीपीसीआर मॉड्यूलेशन के लिये उनकी रूपरेखा तैयार की गई।

सीएसआईआर-सीडीआरआई वर्तमान में औषधि विभाग के बजट समर्थन से ‘‘समुद्री चिकित्साविज्ञान केन्द्र’’ को लेकर एक परियोजना पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के तहत नियंत्रित परिस्थितियों में ल्यूटिन जैसे कार्यात्मक स्वास्थ्य अनुपूरकों को पैदा करने की संभावनाओं को लेकर बढ़ते समुद्री सूक्ष्म शैवाल और सूक्ष्मजीवी जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों और भारतीय समुद्र की गहराइयों से अलग किया गया है, पर शोध किया है जो कि उच्च एंटीऑक्सीडेंट गतिविधियों और मुक्त कणों को नष्ट करने की क्षमता के साथ आयु संबंधी माकुलर क्षय और फाइकोसाइनिन की रोकथाम करता है।

सीएसआईआर- सीडीआरआई द्वारा जांचे गये योगिकों का पांच भिन्न प्रकार के कैंसर सेल (एमडीए-एमबी231, डीएलडी-1, फाडू, हेला और ए549) की दिशा में मानक परिचालन नवाचार (एसओपी) के अनुरूप मूल्यांकन किया गया और इस दौरान एक संभावित कैंसर-रोधी मॉल्यूकूल जिसका नाम जीएस/आईआईसीटी 5/6 है की पहचान की गई। इस कण में सुनिटिनिब के मुकाबले बेहतर ट्यूमर निरोधात्मक प्रोफाइल दिखाई दिये। इस दौरान एक नवीन यौगिक एसबी/सीडीआरआई4/105 की खोज की गई है जो कि कीमोथेरैपी- से उत्पन्न परिधीय न्यूरोपैथिक दर्द को कम कर सकता है। यह अणु लीड आप्टिमाईजेशन के अग्रिम चरण में है। एक अति- शाक्तिशाली अणु एसपी/ एनआईएसईआर29 जिसमें कैंसर-रोधी गतिविधियां देखी गई हैं, की भी पहचान की गई है। राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) ने समुद्री एक्टीनोबेक्टिरिया, नोकार्डियोप्सिस अल्बा से एल-एस्पैरागिनास पुनःसंयोजित कैंसर- रोधी योगिक को निकाला है और इसके लिये पेटेंट आवेदन दाखिल किया जा चुका है।

एनआईओटी का इस सब के पीछे प्रमुख उद्देश्य समुद्र से निर्जीव और जीवित संसाधनों के दोहन से जुडी विभिन्न इंजीनियरिंग समस्याओं के समाधान के लिये विश्वसनीय स्वदेशी तकनीक विकसित करना है। एनआईओटी ने उर्जा और ताजा पानी, गहरे समुद्री क्षेत्र की तकनीक और महासागरीय खनन, तटीय सुरक्षा, महासागर क्षेत्र में ध्वनि विज्ञान, समुद्री संवेदक और महासागरीय इलेक्ट्रानिक्स से जुड़े अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में काम शुरू किया है। एनआईओटी द्वारा पिछले तीन साल के दौरान किये गये शोध कार्यों का मुख्य परिणाम इस प्रकार रहा है।

1.   संघ शासित क्षेत्र लक्षद्वीप के कल्पेनी, कदामत और अमीनी द्वीप में 1.5 लाख लीटर प्रति दिन क्षमता के विलवणीकरण संयंत्र की स्थापना के लिये एनआईओटी की निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण (एलटीटीडी) तकनीक का इस्तेमाल किया गया। कावारत्ती द्वीप में महासागरीय ताप उर्जा रूपांतरण (ओटीईसी) की उर्जा से संचालित एक लाख लीटर प्रतिदिन एलटीटीडी संयंत्र का डिजाइन तैयार कर लिया गया है। टुटीकोरिन ताप विद्युत स्टेशन में 20 लाख लीटर प्रतिदिन का एलटीटीडी संयंत्र स्थापित करने की दिशा में विस्तृत डिजाइन भी पूरा कर लिया गया है।

2.   मध्य भारत महासागरीय क्षेत्र में 5,270 मीटर की गहराई में एनआईओटी द्वारा विकसित गहरे समुद्री क्षेत्र में खनन मशीन की कार्य क्षमता को सफलतापूर्वक देख लिया गया है। भारतीय मानवयुक्त पहले महासागरीय मिशन ‘‘समुद्रयान’’ को 30 अक्टूबर 2021 को शुरू किया गया। मानवयुक्त पनडुब्बी के लिये 500 मीटर गहराई वाले कार्मिक क्षेत्र को मानव-रेटेड संचालन के लिये प्रमाणित किया गया है। वहीं, 6000 मीटर गहराई के लिये बने स्वायत जलमग्न वाहन (एयूवी) का अधिग्रहण कर लिया गया है और उसका सीआईओबी में पालिमेटालिक नोड्यूल साइट में अन्वेषण के लिये इस्तेमाल किया गया।

3.   केरल के पूनथुरा तटीय क्षेत्र से दूर तटीय सुरक्षा के लिये विस्तृत इंजीनियरिंग डिजाइन अध्ययन किया गया।

4.   पश्चिम बंगाल तट, तमिलनाडु तट और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में उथले पानी (0-30 मीटर गहरे पानी में) बाथीमेट्री सर्वेक्षण सफलता पूर्वक पूरा किया गया।

5.   ध्रुवीय क्षेत्रों के लिये एक निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी प्रणाली विकसित की गई और उसे आर्कटिक महासागर में तैनात किया गया। वहीं अरब सागर और बंगाल की खाडी में एक स्वायत गहरे पानी ध्वनि मापक प्रणाली (डीएएनएमएस) को विकसित, तैनात किया गया और उसका संचालन भी किया गया। समुद्री क्षेत्र में 500 मीटर की गहराई तक संचालन करने योग्य डीप सी ऑटोनामस अंडरवाटर प्रोफाइलिंग ड्रिफ्टर (डी-एयूपीडी) और सी-प्रोफाइलर को विकसित किया गया और क्षेत्र में इसका कार्य संचालन भी देखा गया।

6.   एनआईओटी ने मौसम विज्ञान और समुद्र विज्ञान मापदंडों का वास्तविक समय में अवलोकन करके भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की पूर्वानुमान गतिविधियों का समर्थन करने के लिये अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में भारतीय मोर्ड बुओ नेटवर्क को बनाये रखा। इसके साथ ही एनआईओटी ने भारतीय तटीय क्षेत्र के साथ स्थापित किये गये 10 एचएफ के रडार का परिचालन और उसका रखरखाव किया।

7.   एनआईओटी ने चार शोध जलपोतों (सागर निधि, सागर मंजूशा, सागर तारा और सागर अन्वेषिका) का परिचालन और रखरखाव किया और तटीय जलक्षेत्र में प्रौद्योगिकी प्रदर्शन, सर्वेक्षण, क्षेत्र परीक्षण और परिचालन के लिये समुद्री यात्रायें की गईं।

8.   लैब-स्केल की कंकड़ जल परीक्षण सुविधा स्थापित की गई और समुद्री जल में रसायन मापदंडों के परीक्षण के लिये परीक्षण और अंशाकन प्रयोगशालाओं के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त की गई। जटिल गोलाकर पिंजरों का इस्तेमाल करते हुये एक स्वचालित मछली आहार प्रणाली विकसित की गई और साथ ही अंडमान द्वीप में प्रोटो इकाई तैनात की गई।

शोध गतिविधियों पर आधारित कई पेटेंट, समकक्ष समीक्षित प्रकाशन और कुछ स्वदेश विकसित उत्पादों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण किये गये।

यह जानकारी केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री श्री किरण रिजीजू ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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