मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
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केंद्रीय मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला ने आज हिंद महासागर ट्यूना आयोग के डेटा संग्रह और सांख्यिकी पर 19वें कार्यकारी दल के समापन सत्र को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया


वैज्ञानिक समिति डेटा संग्रह, प्रसंस्करण और विश्लेषण के लिए नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है- श्री रुपाला

भारत का दृढ़ विश्वास है कि इस वैज्ञानिक समिति की बैठक के नतीजे पारंपरिक ट्यूना मछुआरों और उनकी आजीविका की चिंताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करने के लिए एक समान अवसर प्रदान करेंगे- श्री परशोत्तम रुपाला

स्थिरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता हमारे पारंपरिक मछुआरों की प्रथाओं में परिलक्षित होती है, जो मछली को बढ़ने और पुनर्जीवित होने देने के लिए स्वेच्छा से हर साल 61 दिनों तक मछली पकड़ने से बचते हैं– केंद्रीय मंत्री

Posted On: 04 DEC 2023 4:17PM by PIB Delhi

वैज्ञानिक समिति, आयोग के सलाहकार निकाय के रूप में, डेटा संग्रह, प्रसंस्करण और विश्लेषण के लिए नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ट्यूना स्टॉक का आकलन और रिपोर्टिंग करने की इसकी जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण है।" केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला ने आज हिंद महासागर ट्यूना आयोग (आईओटीसी) के डेटा संग्रह और सांख्यिकी (डब्ल्यूपीडीसीएस19) पर 19वें कार्यकारी दल के समापन सत्र में अपने वर्चुअली संबोधन में यह बात कही। आईओटीसी के डब्ल्यूपीडीसीएस19 का आयोजन मुंबई, महाराष्ट्र में मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग द्वारा किया गया था। मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय और सूचना एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन; महाराष्ट्र सरकार के मत्स्यपालन मंत्री श्री सुधीर मुनगंटीवार; आईओटीसी के कार्यकारी सचिव डॉ. पॉल डी. ब्रुइन; आईओटीसी वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष डॉ. तोशीहिदे किताकाडो (जापान); संयुक्त सचिव (समुद्री मत्स्यपालन), मत्स्य पालन विभाग, सुश्री नीतू कुमारी प्रसाद; सचिव और मत्स्यपालन आयुक्त, महाराष्ट्र सरकार डॉ. अतुल पटने; प्रबंध निदेशक, महाराष्ट्र मत्स्य विकास निगम, श्री पंकज कुमार; एफएओ मुख्यालय से निगरानी एवं मूल्यांकन अधिकारी सुश्री कैथरीन हेट; एवं प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख भी इस अवसर पर व्यक्तिगत रूप से या वर्चुअल माध्यम से उपस्थित थे।

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केंद्रीय मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला ने कहा कि हम समिति की दक्षता की सराहना करते हैं, लेकिन यह निराशाजनक है कि विशेष रूप से येलोफिन और बिगआई की पकड़ में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे हमारे विज्ञान-आधारित संरक्षण और प्रबंधन प्रयासों के बावजूद मछली के पकड़े जाने की चिंता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ट्यूना और पेलजिक प्रजातियाँ केवल समुद्री संसाधन नहीं हैं; वे आर्थिक जीवन रेखाएं हैं, जो सालाना 41 अरब डॉलर का योगदान देती हैं। उनके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का पैमाना प्रभावी प्रबंधन के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की मांग करता है, खासकर जब उन्हें बहुराष्ट्रीय बड़ों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ने के खतरों का सामना करना पड़ता है।

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ने कहा कि भारत का दृढ़ विश्वास है कि इस वैज्ञानिक समिति की बैठक के नतीजे पारंपरिक ट्यूना मछुआरों और उनकी आजीविका की चिंताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करने के लिए एक समान अवसर प्रदान करेंगे। हम एक संतुलित दृष्टिकोण का आग्रह करते हैं जो कारीगरों और छोटे पैमाने पर मछली पकड़ने वाले समुदायों के सामने आने वाली विशेष प्रकार की चुनौतियों पर विचार करता है।

उन्होंने कहा कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भी हिंद महासागर के मत्स्य संसाधनों की दुखद स्थिति में योगदान दे रहे हैं। श्री रुपाला ने कहा कि हाल के वर्षों में, औद्योगिक मछली पकड़ने में वृद्धि ने हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय ट्यूना स्टॉक की स्थिरता के लिए चुनौतियां पैदा कर दी हैं। सतत मत्स्यपालन प्रबंधन की दिशा में भारत द्वारा किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों को पहचानना महत्वपूर्ण है। हमारा पारंपरिक और छोटे पैमाने का ट्यूना मत्स्यपालन क्षेत्र लंबे समय से स्थिरता के लोकाचार के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि आईओटीसी क्षेत्र में भारत की ट्यूना मछली पकड़ने की क्षमता सबसे कम है, और हम दूर-दराज के जल क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले देश नहीं हैं। कुछ उन्नत मछली पकड़ने वाले सीपीसी के विपरीत, भारत सामान्य आकार के बेड़े के साथ काम करता है जो मुख्य रूप से अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के भीतर मछली पकड़ते हैं, निष्क्रिय गियर का उपयोग करते हैं और न्यूनतम पर्यावरणीय पदचिह्न छोड़ते हैं।

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केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्थिरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता हमारे पारंपरिक मछुआरों की प्रथाओं में परिलक्षित होती है, जो मछली को बढ़ने और पुनर्जीवित करने की अनुमति देने के लिए स्वेच्छा से हर साल 61 दिनों तक मछली पकड़ने से बचते हैं। यह टिकाऊ मत्स्यपालन के लिए आवश्यक नाजुक संतुलन की गहरी समझ को प्रदर्शित करता है। उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि अपने ट्यूना और ट्यूना के जैसे संसाधनों के सतत उपयोग में भारत की भागीदारी अनुकरणीय रही है। कुछ देशों द्वारा औद्योगिक मछली पकड़ने में हालिया वृद्धि ने विश्व स्तर पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। जबकि कई देशों ने अपने विशाल औद्योगिक बेड़ों को हिंद महासागर की ट्यूना संपदा का दोहन करने और उसे ख़त्म करने की अनुमति दी, भारत ने छोटे आकार के बेड़े बनाए रखे, जो अक्रीय गियर के साथ काम करते थे और समुद्री परिदृश्य में न्यूनतम पदचिह्न छोड़ते थे। श्री रुपाला ने आगे कहा कि वैश्विक ट्यूना स्टॉक पर, विशेष रूप से खुले समुद्र में उन्नत मछली पकड़ने वाले देशों का निर्विवाद प्रभाव है। हाल के शोध से संकेत मिलता है कि गहरे समुद्र में मत्स्य पालन, अपने वर्तमान पैमाने में, बड़ी सरकारी सब्सिडी पर निर्भर करता है। भारत ने अपनी स्थिति दोहराई है कि उन्नत मछली पकड़ने वाले देशों को हिंद महासागर के ट्यूना स्टॉक को हुए नुकसान की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

श्री परशोत्तम रुपाला ने इस बात पर जोर दिया कि ग्लासगो में आयोजित 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप26) के दौरान, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मिशन लाइफ का आह्वान किया, जो व्यक्तियों को 'प्रो-प्लैनेट पीपल' बनने के लिए प्रेरित करने के लिए एक सार्वजनिक आंदोलन है। मिशन लाइफ पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली का एक जन आंदोलन बन सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, आज जिस चीज की जरूरत है वह है नासमझ और विनाशकारी उपभोग के बजाय समझदारीपूर्ण और जानबूझकर उपयोग किए जाने की। हाल ही में दुबई में संपन्न कॉप28 शिखर सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शमन और अनुकूलन के बीच संतुलन बनाए रखने का आह्वान किया और दुनिया भर में "न्यायसंगत और समावेशी" ऊर्जा परिवर्तन का आह्वान किया। उन्होंने समृद्ध देशों से "स्व-हित से ऊपर उठने" और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का आह्वान किया। जब तक विश्व के नेता, सरकारें, व्यवसाय और व्यक्ति प्रकृति पर पड़ रहे भारी दबाव को कम करने के लिए साहसिक कदम नहीं उठाते, समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन संकट को दूर करने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास विफल रहेंगे। वास्तव में, प्रकृति में निवेश अन्य प्रकार के विकास से अलग नहीं है; विकास और टिकाऊ भविष्य के लिए प्रकृति में निवेश करना महत्वपूर्ण है। मंत्री जी ने कहा कि हमारा अनुमान है कि आईओटीसी वैज्ञानिक समिति द्वारा प्रदान की गई वैज्ञानिक सलाह बड़े औद्योगिक बेड़ों को प्रबंधन लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने, तटीय समुदायों के भरण-पोषण को सुनिश्चित करने, हिंद महासागर के तटीय राज्यों के विकास और हमारे बहुमूल्य समुद्री संसाधनों की सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इस अवसर पर आईओटीसी सदस्य देशों के प्रतिनिधि, सदस्य देशों और दुनिया के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ, आईओटीसी के पर्यवेक्षक, महाराष्ट्र राज्य सरकार के अधिकारी भी उपस्थित थे।

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