जल शक्ति मंत्रालय

भारत ने स्वच्छता के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत 75 प्रतिशत गांव अब ओडीएफ प्लस हुए


4.4 लाख से अधिक गांवों द्वारा खुद को ओडीएफ प्लस घोषित किया है, यह 2025 तक एसबीएम-जी के चरण II के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है: केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत

‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान में 5 करोड़ लोगों ने भाग लिया है और 2.05 करोड़ से अधिक लोगों ने श्रमदान किया है: श्री शेखावत

14 राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों के सभी गांवों ने ओडीएफ प्लस और 4 राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों के सभी गांवों ने ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा हासिल कर लिया है

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, केरल, लद्दाख, पुडुचेरी, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना और त्रिपुरा शामिल हैं

Posted On: 23 SEP 2023 5:58PM by PIB Delhi

देश ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण II के तहत एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। देश के कुल गांवों में से तीन-चौथाई यानी 75 प्रतिशत गांवों ने इस मिशन के चरण II के तहत ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल कर लिया है। ओडीएफ प्लस गांव वैसे गांव हैं जिन्होंने ठोस या तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने के साथ-साथ खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) वाली अपनी स्थिति को बनाए रखा है। आज तक, 4.43 लाख से अधिक गांवों ने खुद को ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया है जो 2024-25 तक एसबीएम-जी के चरण II के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

शत-प्रतिशत ओडीएफ प्लस गांव की उपलब्धि हासिल करके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, केरल, लद्दाख, पुडुचेरी, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, और त्रिपुरा शामिल हैं। राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों में - अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, दादरा नगर हवेली और दमन दीव, जम्मू एवं कश्मीर और सिक्किम ने शत-प्रतिशत  ओडीएफ प्लस मॉडल गांव की उपलब्धि हासिल की है। इन राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों ने ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल करने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है और उनके प्रयास इस बड़ी उपलब्धि तक पहुंचने में सहायक रहे हैं।   

आज नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में कार्यभार संभालने के बाद से स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है और पूरा देश प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छता को एक ‘जन आंदोलन बनाने के आह्वान के समर्थन में खड़ा है। वर्ष 2019 तक देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने का प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण एवं मिशन एक सच्चा जन आंदोलन बन गया है और इसके लक्ष्य समय से पहले ही हासिल कर लिए गए हैं। प्रधानमंत्री ने इस उपलब्धि को एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया है और ‘संपूर्ण स्वच्छता की दिशा में आगे बढ़ने की परिकल्पना की है, जिसमें प्रत्यक्ष स्वच्छता और प्रभावी प्रबंधन तथा ‘कचरे से धन’ के दृष्टिकोण के तहत सभी प्रकार के कचरे का पुनर्चक्रण शामिल है।

श्री शेखावत ने कहा कि इस दृष्टिकोण एवं मिशन के आधार पर, एसबीएम-जी चरण- II ने 2025 तक सभी गांवों को ओडीएफ प्लस बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। अब तक 4,43,964 ओडीएफ प्लस गांवों में से 2,92,497 ओडीएफ प्लस की उपलब्धि के साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था वाले गांव बनने की दिशा में अग्रसर हैं। 55,549 गांव ओडीएफ प्लस राइजिंग की श्रेणी वाले गांव हैं, जिनमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और तरल अपशिष्ट प्रबंधन दोनों प्रकार की व्यवस्था है और 96,018 गांव ओडीएफ प्लस मॉडल गांव हैं। कुल मिलाकर, अब तक 2,31,080 गांवों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था है और 3,76,353 गांवों में तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था है।

केन्द्रीय मंत्री ने आगे कहा कि इस साल स्वच्छ भारत मिशन के 9 साल पूरे हो रहे हैं। 75 प्रतिशत ओडीएफ प्लस गांवों की उपलब्धि भारत के लिए स्वच्छता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि स्वच्छ भारत मिशन चरण II में देश ओडीएफ से बढ़कर ओडीएफ प्लस की स्थिति में पहुंच गया है। एसबीएम (जी) के चरण- II के प्रमुख घटकों में खुले में शौच से मुक्त स्थिति को बनाए रखना (ओडीएफ-एस), ठोस (जैव-निम्नीकरणीय) अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (पीडब्ल्यूएम), तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एलडब्ल्यूएम), मल गाद प्रबंधन (एफएसएम), गोबरधन, सूचना शिक्षा एवं संचार/व्यवहार परिवर्तन संबंधी संचार (आईईसी/बीसीसी) और क्षमता निर्माण शामिल हैं। एसबीएम-जी कार्यक्रम देश भर में लाखों लोगों के स्वास्थ्य एवं कल्याण को बेहतर बनाने में सहायक रहा है। ओडीएफ प्लस मॉडल गांव वैसे गांव हैं जिन्होंने ओडीएफ की अपनी स्थिति को बनाए रखा है और इनमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन दोनों की व्यवस्था है; और ये प्रत्यक्ष स्वच्छता का अनुपालन करते हैं यानी यहां न्यूनतम कूड़ा और न्यूनतम अपशिष्ट जल का जमाव होता है, यहां सार्वजनिक स्थानों पर कोई प्लास्टिक कचरा नहीं होता है; और यहां ओडीएफ प्लस से संबंधित सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) संदेश प्रदर्शित किए जाते हैं। आज की तारीख में, 96,192 गांव ओडीएफ प्लस मॉडल गांव हैं।

श्री शेखावत ने कहा कि एसबीएम चरण II के लिए पूरा बजट परिव्यय 1.43 लाख करोड़ रुपये  का है, जिसमें से 52,497 करोड़ रुपये एसबीएम-जी से आना है और शेष 15वें वित्त आयोग निधि (51,057 करोड़) और मनरेगा (24,823 करोड़) से आना है। वर्ष 2023-24 के लिए एसबीएम-जी से केन्द्रीय हिस्सेदारी आवंटन 7,192 करोड़ रुपये है और विभिन्न राज्यों ने इस वर्ष सभी स्रोतों से 22,264 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है। इसके बरक्स, एसबीएम-जी फंड से 4,690 करोड़ रुपये और एफएफसी एवं मनरेगा समेत अब तक कुल 18,686 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इस वर्ष एसबीएम-जी निधि के उच्च व्यय वाले राज्य उत्तर प्रदेश (1214 करोड़), बिहार (752 करोड़), और पश्चिम बंगाल (367 करोड़) हैं। इन निधियों का उपयोग स्वच्छता संबंधी परिसंपत्तियों के निर्माण, व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने के लिए किया गया है।

केन्द्रीय मंत्री ने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि 75 प्रतिशत ओडीएफ प्लस गांवों की यह उपलब्धि वर्तमान में चल रहे ‘स्वच्छता ही सेवा (एसएचएस) - 2023 अभियान’ के दौरान हासिल की गई है, जिसका आयोजन स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय के तहत हर साल 15 सितंबर से 2 अक्टूबर के दौरान किया जाता है। उन्होंने कहा कि ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान ‘कचरा मुक्त भारत की थीम के साथ श्रमदान गतिविधियों के माध्यम से ओडीएफ प्लस की गति को आगे बढ़ा रहा है तथा स्वच्छ भारत मिशन के उद्देश्यों व लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सामुदायिक भागीदारी यानी जन आंदोलन को फिर से मजबूत कर रहा है।

एसएचएस-2023 की अब तक की प्रमुख उपलब्धियों को गिनाते हुए, श्री शेखावत ने बताया कि इस अभियान में 5 करोड़ लोगों ने भाग लिया है और 2.05 करोड़ से अधिक लोगों ने श्रमदान किया है। श्रमदान की गतिविधियों में 2,303 समुद्र तटों; 1,468 नदी के किनारों व तटों; 3,223 पुराने अपशिष्ट स्थलों; 480 पर्यटक एवं ऐतिहासिक स्थलों; 32,178 सार्वजनिक स्थानों; 4432 जल निकायों; 17,027 संस्थागत भवनों और 14,443 कूड़ा-करकट जमा होने वाले स्थलों की सफाई शामिल है।

एसबीएम-जी में 34 राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों के साथ, लगभग 42 साझेदार मंत्रालय/विभाग भी एसएचएस 2023 में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। एसबीएम (जी) इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि स्वच्छता और साफ-सफाई की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ठोस एवं एकजुट प्रयास होने पर क्या कुछ हासिल किया जा सकता है। जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग ने इस गौरवपूर्ण उपलब्धि की सराहना की है और इस दिशा में किए गए  योगदानों के लिए सभी गांवों, ग्राम पंचायतों, जिलों, राज्यों/केन्द्र- शासित प्रदेशों को बधाई दी है।

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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन - प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में, 2,380 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयां और 1,78,556 अपशिष्ट संग्रहण एवं पृथक्करण शेड स्थापित किए गए हैं। देश में प्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए तीन लाख से अधिक वाहन उपलब्ध हैं। देश में 2,603 ​​से अधिक प्रखंड प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों से लैस हैं। कुल 23 राज्य/केन्द्र-शासित प्रदेश बिटुमिनस सड़क निर्माण के लिए अपशिष्ट प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं और दो राज्य - तमिलनाडु और केरल - इसका उपयोग सीमेंट कारखानों में कर रहे हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार सड़क निर्माण में और सीमेंट कारखानों आदि में ईंधन के रूप में उपयोग हेतु प्लास्टिक को साफ किया जाता है, काटा जाता है, बेल दिया जाता है और उसका परिवहन किया जाता है। कुल 1.59 लाख ग्राम पंचायतों ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक (एसयूपी) पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया है। प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के क्रम में शहरी- ग्रामीण समन्वय पर जोर दिया गया है जिसके तहत पहले ग्रामीण क्षेत्रों के प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए शहरी परिसंपत्तियों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है, और उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में पीडब्ल्यूएमयू की स्थापना की जाती है।

घरेलू स्तर पर जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट प्रबंधन हेतु, लोगों को सामुदायिक स्तर पर खाद बनाने के लिए अपने सूखे और गीले (जैविक) कचरे को स्रोत के स्तर पर ही अलग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। आज की तारीख में 4,94,822 सामुदायिक खाद गड्ढों (कंपोस्ट पिट) एवं 1,78,554 अपशिष्ट संग्रहण शेड का निर्माण किया गया है और कचरे के संग्रहण एवं परिवहन के लिए लगभग 3,16,123 वाहन सक्रिय हैं।

279 जिलों में 729 बायोगैस एवं 63 सीबीजी संयंत्रों का निर्माण पूरा

गोबरधन, जिसका आशय गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज-धन से है, जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्टों की पुनर्प्राप्ति, अपशिष्ट को संसाधनों में परिवर्तित करने और स्वच्छ एवं हरित गांव बनाने से जुड़ी एक पहल है। यह ‘अपशिष्ट से धन’ से जुड़ी एक पहल है जिसमें गांवों में उत्पन्न कचरे का उपयोग बायोगैस/सीबीजी के साथ-साथ जैव-स्लरी/जैव-उर्वरक का उत्पादन करने के लिए किया जाता है और यह भारत सरकार की चक्रीय अर्थव्यवस्था एवं मिशन लाइफ पहल के अनुरूप है। कुल 307 जिलों में 848 सक्रिय बायोगैस/सीबीजी संयंत्र स्थापित किए गए हैं।

ग्रे-वाटर प्रबंधन: एसबीएम (जी) दिशानिर्देशों के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर उपयोग किए जाने वाले 65-70 प्रतिशत पीने योग्य पानी को ग्रे-वाटर से परिवर्तित किया जाता है, जो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 36 लीटर होने का अनुमान है। यह अनुमान जल जीवन मिशन के अनुसार प्रति व्यक्ति 55 लीटर पीने योग्य पानी की अनिवार्य आपूर्ति पर आधारित है। एसबीएम (जी) के तहत ग्रे-वाटर का प्रबंधन किचन गार्डन, सोक-पिट, लीच-पिट और मैजिक-पिट, आदि जैसे टिकाऊ एवं किफायती समाधानों द्वारा प्राथमिकता के साथ मूल स्थान पर शोधन की विभिन्न रणनीतियों के जरिए तीन ‘आर’ – रिड्यूस (कम करने), रियूज (फिर से उपयोग करने) और रिचार्ज (पुनर्भरण) - के सिद्धांत पर केन्द्रित है। बड़े गांवों (जिनकी आबादी 5000 से अधिक है) या जहां ये सरल प्रौद्योगिकियां संभव नहीं हैं, वहां डब्ल्यूएसपी, सीडब्ल्यू, फाइटोरिड और डीईडब्ल्यूएटीएस जैसी प्रौद्योगिकियों को अपनाने की सिफारिश की जाती है।

एसबीएम (जी) ने 2021-23 से तीन संस्करणों में ‘सुजलाम’ अभियान शुरू करके ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रे-वाटर के प्रभावी प्रबंधन को बढ़ावा देने की पहल की है। ये अभियान प्रत्येक राज्य, केन्द्र-शासित प्रदेश और उनके संबंधित गांवों में उत्साहजनक भागीदारी सुनिश्चित करने में समर्थ रहे हैं। इसका प्रभाव बहुत व्यापक रहा और इन तीन अभियानों की अवधि के दौरान, न्यूनतम प्रयास और खर्च के साथ स्रोत के निकटतम और सामुदायिक क्षेत्रों, संस्थानों और जल निकासी निर्वहन बिंदुओं पर भूजल के प्रबंधन के लिए अनुमानित 5.1 मिलियन सोख गड्ढों (सोक पिट) का निर्माण किया गया। इससे कई गांवों को एलडब्ल्यूएम से संतृप्त किया गया और राज्यों/केन्द्र -शासित प्रदेशों की समग्र ओडीएफ प्लस की उपलब्धि हासिल हुई। कुल 63 प्रतिशत गांवों ने ग्रे-वाटर प्रबंधन की सुविधा को हासिल कर लिया है और ओडीएफ प्लस उपलब्धियों में योगदान दिया है। शेष 37 प्रतिशत गांव भी जल्द ही इसे हासिल कर सकते हैं। शत-प्रतिशत हर घर जल वाले गांव, नमामि गंगे के तहत आने वाले गांव, आकांक्षी जिले, एसएजीवाई और 5,000 से अधिक आबादी वाले बड़े गांवों को इस 37 प्रतिशत बचे हुए भाग के तहत ग्रे-वाटर प्रबंधन उपलब्धि को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। एनजीटी विनिर्देशों के अनुसार, सीओडी/बीओडी सुनिश्चित करके जल निकासी बिंदुओं पर शोधन प्रणालियों की मैपिंग और निर्धारण करके नमामि गंगे वाले गांवों को भी प्राथमिकता दी गई है। ग्रे-वाटर प्रबंधन के तहत डीडीडब्ल्यूएस किचन गार्डन जैसे छोटे पैमाने पर और कृषि भूमि/उद्योगों जैसे बड़े पैमाने पर सिंचाई के प्रयोजनों के लिए ग्रे-वाटर का पुनर्चक्रण करके चक्रियता की अवधारणा की दिशा में भी योगदान दे रहा है। डीडीडब्ल्यूएस भविष्योन्मुखी योजना निर्माण और इकोसिस्टम से जुड़ी सेवाओं के प्रति योगदान के जरिए भी इस दायित्व को आगे बढ़ा रहा है।

मल गाद के संदर्भ में, तरल अपशिष्ट के मूल स्थान पर शोधन के लिए जुड़वां गड्ढे (ट्विन पिट) वाले शौचालय अनुशंसित उपाय है। जहां एकल गड्ढे वाले वैसे शौचालय हैं, जो अभी तक भरे या खाली नहीं हुए हैं, उन्हें भी यूनिसेफ और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत सुरक्षित  स्वच्छता के अनुरूप माना जाता है। लेकिन जहां उन्हें खाली करने की आवश्यकता होती है या जहां सेप्टिक टैंक होते हैं (सोख गड्ढों के साथ या बिना), मशीनीकृत तरीके से गाद को निकालना और शोधन के लिए मल गाद को एसटीपी/एफएसटीपी में निकालना एक उपाय बन जाता है। वर्तमान परिस्थिति के अनुसार, एसबीएमजी आईएमआईएस ने शौचालय टाइपोलॉजी एवं बेसलाइन को अद्यतन किया है और ग्रामीण घरों में कुल मिलाकर 73 प्रतिशत ट्विन पिट, लगभग 12.4 प्रतिशत सिंगल पिट और 11 प्रतिशत सेप्टिक टैंक की उपलब्धता की सूचना दी है। एसबीएम (जी) राज्यों को सह-शोधन संबंधी संरचनाओं की योजना बनाने या नए एफएसटीपी के निर्माण के लिए प्रति व्यक्ति 230 रुपये प्रदान करता है। इसके अलावा, मूल स्थान पर स्वच्छता प्रणालियों की मशीनीकृत सफाई को मजबूत करने और मल गाद के सुरक्षित निपटान के लिए शोधन इकाइयों की स्थापना के लिए जिलों को समर्थन देने के अलावा, एकल गड्ढे वाले शौचालयों को जुड़वां गड्ढे वाले शौचालयों (या समान प्रणालियों) में परिवर्तित करने का प्रावधान है, जिसके लिए धन एफएफसी/मनरेगा से उपयोग किया जाना है। शेष शौचालय जिनमें सेप्टिक टैंक हैं, उन्हें निकटतम एफएसटीपी/एसटीपी के साथ समन्वय के मोड में जोड़ा जा रहा है। वर्तमान में, राज्यों द्वारा 1198 एफएसटीपी एवं 765 एसटीपी को सक्रिय बताया गया है और कुल मिलाकर 316 जिलों ने समन्वय पद्धति के तहत मौजूदा एसटीपी/एफएसटीपी के साथ जुड़ाव शुरू कर दिया है। आईएमआईएस पर रिपोर्ट किए गए शौचालय टाइपोलॉजी के डेटा विश्लेषण के अनुसार यह पाया गया है कि 288 जिलों में लगभग 80 प्रतिशत सेप्टिक टैंक ऊपर उल्लेख किए गए 11 प्रतिशत से कम हैं और उन्हें हॉट स्पॉट जिला माना जाता है। एफएसटीपी/एसटीपी के साथ जुड़ाव की शुरुआत की सूचना देने वाले ऊपर उल्लेख किए गए 316 जिलों में से 108 जिले हॉट स्पॉट जिले हैं।

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एमजी/एमएस/आर/एजे



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