शिक्षा मंत्रालय
दो दिवसीय विजिटर्स कॉन्फ्रेंस संपन्न हुई
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने विजिटर कॉन्फ्रेंस 2023 के समापन समारोह को संबोधित किया
हमारे देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान एवं नवाचार के पावरहाउस बनने की क्षमता निहित है: राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु
शिक्षा समुदाय शिक्षकों व शैक्षणिक संस्थानों की क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी को अपनाने के साथ ही अमृत पीढी को सशक्त बनाने तथा विश्व स्तरीय अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए वचनबद्ध है- श्री धर्मेंद्र प्रधान
नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन पूरे विश्व खासकर ग्लोबल साउथ के लिए एक बेंचमार्क बनकर उभरेंगे - श्री धर्मेंद्र प्रधान
विजिटर कॉन्फ्रेंस में आईआईटी, एनआईटी, आईआईएसईआर, एनआईपीईआर और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे शैक्षणिक संस्थानों के 150 से अधिक प्रमुखों ने भाग लिया
Posted On:
11 JUL 2023 7:11PM by PIB Delhi
दो दिवसीय विजिटर कॉन्फ्रेंस आज नई दिल्ली में संपन्न हुई। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (11 जुलाई, 2023) राष्ट्रपति भवन में विजिटर कॉन्फ्रेंस 2023 के समापन समारोह को संबोधित किया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, शिक्षा राज्य मंत्री श्री सुभाष सरकार और शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। विजिटर कॉन्फ्रेंस में आईआईटी, एनआईटी, आईआईएसईआर, एनआईपीईआर और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों के 150 से अधिक प्रमुखों ने भाग लिया।
सम्मेलन के दूसरे दिन, 'सतत विकास के लिए शिक्षा: एक बेहतर विश्व का निर्माण विषय' पर विचार-विमर्श किया गया। पांच अलग-अलग समूहों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की प्राप्ति में योगदान जैसे उप-विषयों पर विचार-मंथन किया; जिनमें अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास और जी-20; अनुसंधान योगदान तथा मान्यताएं; विविधता, समानता, समावेशिता एवं कल्याण; अमृत काल की योजनाएं व कार्य मद शामिल हैं। विचार-विमर्श के परिणाम राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किये गए।
राष्ट्रपति मुर्मु ने समापन भाषण में कहा कि इस सम्मेलन का विषय और उप-विषय हमारे देश के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए बेहद प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में प्रस्तुत किये गए विचार संक्षिप्त तथा कार्रवाई योग्य हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी नीति की सार्थकता उसे व्यवहार में लाने से ही सिद्ध होती है। नतीजे और परिणाम ही साबित करते हैं कि नीति प्रभावी ढंग से लागू की गई है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 'डिजिटल इंडिया' पहल के माध्यम से भारतीय जनमानस को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने और देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने का लक्ष्य रखा गया। इस पहल के परिणाम बेहद प्रभावशाली रहे हैं और प्रभावी क्रियान्वयन तथा अपार जनभागीदारी से बहुत कम समय में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव हुआ है। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी इसी तरह के परिवर्तनकारी और समावेशी परिणाम हासिल किये जायेंगे।
राष्ट्रपति ने उप-विषय 'अनुसंधान योगदान और मान्यताओं' के बारे में अपने विचार रखते हुए कहा कि नवाचार तथा अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास किसी भी राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक विकास के प्रमुख प्रेरकों में शामिल हैं। दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों और प्रौद्योगिकी संस्थानों ने नवाचार पर ध्यान केंद्रित किया है। वे एक ऐसा इकोसिस्टम प्रदान करते हैं, जो अनुसंधान और विकास का समर्थन करता है, जिसे औद्योगिक तथा वाणिज्यिक क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और नवाचार का पावरहाउस बनने की क्षमता निहित है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत में उच्च शिक्षा संस्थान मौलिक अनुसंधान की परंपरा को संरक्षित करते हुए स्टार्ट-अप, व्यावहारिक अनुसंधान और व्यावसायिक रूप से मूल्यवान नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में बदलाव ला रहे हैं। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुख अपने संस्थानों को नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में आगे ले जाएंगे, जिसका उपयोग औद्योगिक एवं वाणिज्यिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जा सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि विकसित देश अपने उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए भी जाने जाते हैं। दुनिया भर के छात्र ऐसे ही देशों के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में ऐसा रोडमैप दिया गया है, जिस पर चलकर हमारे उच्च शिक्षण संस्थान भी वैश्विक शिक्षा केंद्र बन सकते हैं। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे उच्च शिक्षण संस्थान विश्व स्तरीय ज्ञान सृजन के केंद्र बनेंगे।
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केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने समापन भाषण में इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा समुदाय शिक्षकों व शैक्षणिक संस्थानों की क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी को अपनाने के साथ ही अमृत पीढी को सशक्त बनाने तथा विश्व स्तरीय अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए वचनबद्ध है। उन्होंने कहा, इस समुदाय ने यह भी सुनिश्चित किया है कि भारत शिक्षा के सशक्त स्तंभों पर आधारित अमृत काल में इस दिशा में एक लंबी छलांग लगाए। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीयता में निहित है और इस नीति के तहत नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क तथा नेशनल रिसर्च फाउंडेशन पूरे विश्व खासकर ग्लोबल साउथ के लिए एक बेंचमार्क बनकर उभरेंगे।


श्री धर्मेंद्र प्रधान ने इन पांच सत्रों के दौरान, इस बारे में बात की कि कैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सामूहिक प्रयासों, साझा विशेषज्ञता, आम चुनौतियों से निपटने एवं अवसरों का लाभ उठाने तथा अटूट प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। प्राचीन काल से तक्षशिला और नालंदा को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में उद्धृत करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अब उस विरासत को पुनर्जीवित करने का समय आ चुका है। उन्होंने वैश्विक प्रभाव उत्पन्न करने के लिए नए भारत और विकसित संस्थानों के निर्माण की बात कही। शिक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के रोडमैप के अनुरूप समाज के उत्थान और राष्ट्रीय विकास के लिए अधिक रणनीतिक क्षेत्रों में अनुसंधान को एकीकृत करने के लिए संस्थान अपनी सीमाओं को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं, इस मुद्दे पर हुई विस्तृत चर्चा की सराहना की। श्री प्रधान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे मानसिक एवं भावनात्मक कल्याण के विचार प्रेरणा, केंद्र बिंदु और लचीलेपन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। विद्यार्थियों के बीच जाकर और कल्याण को बढ़ावा देकर संस्थान छात्रों को परिसर तथा उनके जीवन में समृद्धि के लिए उपकरण व संसाधन प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा केवल उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षण व्यवस्था द्वारा ही सुनिश्चित की जा सकती है, और यह तब संभव होगा जब संस्थान सामूहिक प्रयास के माध्यम से एक-दूसरे का साथ देंगे तथा मार्गदर्शन करेंगे।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर ममीडाला जगदेश कुमार ने 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की प्राप्ति में योगदान' पर पैनल चर्चा की अध्यक्षता की। पहले सत्र में, शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए सभी प्रयासों का सारांश प्रस्तुत किया गया और इसके बाद विभिन्न संस्थानों द्वारा इसके सफल/चल रहे कार्यक्रमों के बारे में विचार रखे गए। इसमें प्रोफेसर अभय करंदीकर, निदेशक, आईआईटी, कानपुर और प्रोफेसर टी.वी. कट्टीमनी, कुलपति, आंध्र प्रदेश केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की प्रस्तुतियां भी शामिल थीं। सत्र का अवलोकन और संचालन जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने किया। इस बात पर चर्चा की गई कि उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रौद्योगिकी एकीकरण पर अधिक से अधिक बल देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय डिजिटल विश्वविद्यालय (ई-विश्वविद्यालय) से हमारे देश के एक बड़े वर्ग के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ होने की आशा है। इसके अलावा, कई संस्थानों ने अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम उठाए हैं, दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अकादमिक सहयोग बढ़ाने और विदेशी छात्रों को भारत में अध्ययन के लिए आकर्षित करने की आवश्यकता है। इस तथ्य पर भी बल दिया गया कि हमारे संस्थानों को अपनी अनुसंधान क्षमताओं का विस्तार करने तथा इनोवेशन और इन्क्यूबेशन का एक जीवंत इकोसिस्टम बनाने की आवश्यकता है, जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में अपना योगदान दे सके।

सम्मेलन का दूसरा सत्र 'अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयासों और जी20' पर केंद्रित था। पैनल चर्चा का नेतृत्व प्रोफेसर सुधीर के जैन, कुलपति, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने किया था। इस सत्र में दो प्रस्तुतियां दी गईं। आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रंगन बनर्जी ने समावेशन प्रयासों, सफलताओं, चुनौतियों व आगे की राह पर एक प्रस्तुति दी और एनआईटी राउरकेला के निदेशक प्रोफेसर के. उमामहेश्वर राव ने भारत में अध्ययन कार्यक्रम पर मूल्यवान विचारों का दृष्टिकोण सामने रखा, जिसमें अवसरों, चुनौतियों एवं अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए आगे की गतिविधियों पर जोर दिया गया। प्रोफेसर प्रमोद के जैन, निदेशक, आईआईटी (बीएचयू, वाराणसी) ने इस सत्र का अवलोकन और संचालन किया। सत्र में देश के संस्थानों के समक्ष अवसरों एवं चुनौतियों पर चर्चा की गई क्योंकि वे अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और संकाय की दोतरफा गतिशीलता को बढ़ावा देने, अनुसंधान सहयोग बढ़ाने, राष्ट्रीय संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने तथा भारत को वैश्विक शिक्षा के इकोसिस्टम में सबसे आगे रखने के सामूहिक प्रयासों की रणनीति बनाने के तरीकों पर मूल्यवान सुझाव दिए गए।

तीसरा सत्र 'अनुसंधान योगदान और मान्यता' पर केंद्रित था। प्रोफेसर के. राधाकृष्णन, पूर्व अध्यक्ष, अंतरिक्ष आयोग/सचिव, अंतरिक्ष विभाग और अध्यक्ष, इसरो ने पैनल का नेतृत्व किया। इस सत्र में शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के दौरान संकाय तथा छात्रों के कुछ उत्कृष्ट अनुसंधान योगदानों पर विस्तार से चर्चा की गई। सत्र में उनके योगदान की संक्षिप्त जानकारी के साथ उनके योगदान के लिए सम्मानित किए गए व्यक्तियों एवं समूहों का विवरण भी दिया गया। सत्र में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कई संस्थानों को मान्यता दी गई है और उन्हें उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा दिया गया तथा पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई गई है। इस पहल के परिणामस्वरूप सकारात्मक बदलाव आए है। आईआईएससी बैंगलोर के निदेशक प्रोफेसर गोविंदन रंगराजन और हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बसुथकर जे. राव ने उल्लेखनीय प्रस्तुतियां दीं। पैनल का संचालन जामिया मिलिया इस्लामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने किया। चर्चा के दौरान विज्ञान व प्रौद्योगिकी में प्रगति की तीव्रता को पिछले दशक में गढ़ी गई 'विघटनकारी प्रौद्योगिकियों' तथा 'चौथी औद्योगिक क्रांति' 4आईआर की अवधारणाओं द्वारा उजागर और उदाहरण देकर स्पष्ट किया गया था। जलवायु परिवर्तन तथा आसन्न प्राकृतिक खतरों के बारे में बढ़ती वैश्विक चिंता पर जोर देते हुए सतत विकास लक्ष्यों- एसडीजी 2030 के लिए सामूहिक वैश्विक अभियान का भी जिक्र किया गया था। अनुसंधान में उत्कृष्टता व प्रासंगिकता सुनिश्चित करने को एक अनिवार्य राष्ट्रीय आवश्यकता और हमारे शैक्षणिक तथा अनुसंधान एवं विकास समुदाय में एक सही मांग के रूप में रखा गया था।


चौथा सत्र विविधता, समानता, समावेशिता व कल्याण पर आधारित था और पैनल का नेतृत्व आईआईटी-मद्रास के निदेशक प्रोफेसर वी. कामकोटि ने किया था। इस सत्र में संस्थानों द्वारा विविधता, समानता और समावेशन तथा कल्याणकारी उपायों के लिए किए गए सभी प्रयासों पर चर्चा की गई। विविधता, समानता और समावेशन के प्रयासों में लैंगिक पूर्वाग्रह को कम करना, नेतृत्व भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना तथा व्यवस्था में अधिक सुधार के उद्देश्य से शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए जीवनयापन में आसानी सुनिश्चित करना शामिल है। आईआईएसईआर तिरूपति के निदेशक प्रोफेसर शांतनु भट्टाचार्य और एनआईटी कालीकट के निदेशक प्रोफेसर प्रसाद कृष्णा ने सत्र के विषय पर व्यावहारिक प्रस्तुतियां दीं। सत्र का संचालन एनईएचयू के कुलपति प्रोफेसर प्रभा शंकर शुक्ला ने किया। विचार-विमर्श में देश के विद्यार्थियों और शिक्षकों का लाभ, कल्याण तथा विकास को कैसे सुनिश्चित किया जाए, इस पर व्यापक सुझाव सामने आए। चर्चा के केंद्र बिंदु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा परिकल्पित सकल नामांकन अनुपात में सुधार तथा स्कूल छोड़ने की दर को कम करने में उच्च शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को रखा गया था।


सम्मेलन का पांचवा तथा अंतिम सत्र 'अमृत काल की योजनाएं व कार्य मद' पर था और पैनल की अध्यक्षता श्री टी.जी. सीथाराम, अध्यक्ष, एआईसीटीई ने की थी। यह सत्र उद्यमिता और नवाचार पर जोर देने के साथ संस्थानों की रणनीतिक योजनाओं पर केंद्रित था। इसका केंद्रीय विचार "2047 में भारत एक प्रौद्योगिकी महाशक्ति के रूप में" था। सत्र में सार्वजनिक नीति कार्यशाला, सुपरकंप्यूटिंग, साइबर फिजिकल सिस्टम, सेमीकंडक्टर आदि सहित स्टार्टअप और राष्ट्रीय मिशनों की सफलता की कहानियों तथा शिक्षा जगत की भूमिका के बारे में बात की गई। आईआईटी गांधीनगर के निदेशक प्रोफेसर रजत मूना और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने अगले 25 वर्षों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा व नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों पर चर्चा की। उन्होंने आईआईटी और दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को भी साझा किया, सत्र का अवलोकन तथा संचालन आईआईटी रोपड़ के निदेशक प्रोफेसर राजीव आहूजा ने किया। इस सत्र में, चर्चा इस बात पर केंद्रित रही थी कि भारत की शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा उपयुक्त रूप से जबरदस्त विकास के लिए कैसे तैयार हो रही है। नए कार्यक्रम, जो प्रकृति में अंतर-विषयक हैं और उद्योग व समाज की मांगों के लिए उपयुक्त हैं, उन्हें उच्च शिक्षा के अधिकांश संस्थानों द्वारा शुरू किया जा रहा है। एक उपयुक्त पूर्वाग्रह-मुक्त मान्यता तथा मूल्यांकन प्रणाली, डेटा के सत्यापन के लिए "पीयर सोर्सिंग" के साथ पारदर्शी रैंकिंग प्रणाली भारतीय शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता को और बढ़ाएगी।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 10 जुलाई, 2023 को राष्ट्रपति भवन में विजिटर कॉन्फ्रेंस 2023 का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि शिक्षा व्यक्ति, समाज और देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि समान और समावेशी उच्च शिक्षा प्रदान करना सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित समूहों से आने वाले युवा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की प्राथमिकताओं में से एक हैं। उन्होंने विजिटर कॉन्फ्रेंस 2023 के मौके पर शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों से भेंट भी की।




विजिटर कॉन्फ्रेंस 2023 के मौके पर कल शाम राष्ट्रपति भवन में प्रतिष्ठित पूर्व विद्यार्थियों/लाभार्थियों के एक समूह ने भी राष्ट्रपति से मुलाकात की। बातचीत के दौरान, राष्ट्रपति ने शिक्षा और समाज के हित में योगदान देने के लिए दानदाताओं की सराहना की। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान भी उपस्थित थे। इंडिगो एयरलाइंस के सह-संस्थापक श्री राकेश गंगवाल; यम चाइना के पूर्व सीईओ श्री मुक्तेश पंत; माइंडट्री के सह-संस्थापक श्री सुब्रतो बागची; प्रशांत प्रकाश, सह-संस्थापक व भागीदार, एक्सेल इंडिया; डॉ. श्रीधर शुक्ला, सह-संस्थापक, अध्यक्ष, के प्वाइंट टेक्नोलॉजीज; रिजवान कोइता, सिटियसटेक के सह-संस्थापक और सीईओ; श्री विक्रम गुप्ता, संस्थापक एवं प्रबंध भागीदार, आइवीकैप वेंचर्स एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड; टीटीके प्रेस्टीज के अध्यक्ष श्री टी.टी.जगन्नाथन; श्री नेमिष शाह, ई नेम के सह-संस्थापक तथा फ्लेम यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ गवर्नर; श्रीमती रोशनी नादर, एचसीएल टेक्नोलॉजीज की अध्यक्ष और शिव नादर विश्वविद्यालय की ट्रस्टी; तथा पीरामल ग्रुप के अध्यक्ष श्री अजय पीरामल अपने जीवनसाथी के साथ कार्यक्रम में शामिल हुए।



राष्ट्रपति ने कल शाम उद्घाटन समारोह में विजिटर्स कॉन्फ्रेंस पुरस्कार 2021 भी प्रदान किए। 'इनोवेशन' के लिए विजिटर अवार्ड सिलिकॉन फाइबर शीट का उपयोग करके प्रतिरोधक प्लेट चैंबर डिटेक्टर में स्वदेशी चार्ज पिक-अप पैनल विकसित करने के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के स्कूल ऑफ फिजिकल एंड केमिकल साइंसेज के प्रोफेसर वेंकटेश सिंह को दिया गया। 'भौतिक विज्ञान में अनुसंधान' का विजिटर पुरस्कार हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ फिजिक्स के प्रोफेसर सुरजीत धारा को नरम पदार्थ और तरल क्रिस्टल में उनके सराहनीय कार्य के लिए प्रदान किया गया। डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के प्रोफेसर मोहम्मद लतीफ खान को वन जैव विविधता को समझने, पूर्वी हिमालय और मध्य भारत में आरईटी (दुर्लभ, लुप्तप्राय व संकटग्रस्त) पौधों की प्रजातियों के पुनर्जनन तथा वनों की खतरे की स्थिति के आकलन में उनके योगदान के लिए 'जैविक विज्ञान में अनुसंधान' का विजिटर पुरस्कार मिला। 'प्रौद्योगिकी विकास' के क्षेत्र में विजिटर पुरस्कार हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ फिजिक्स के प्रोफेसर केसी जेम्स राजू को फेरोइलेक्ट्रिक पतली फिल्मों का उपयोग करके आवृत्ति ट्यून करने योग्य माइक्रोवेव उपकरणों में उनके योगदान के लिए प्रदान किया गया। राष्ट्रपति ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान स्कूल के प्रोफेसर अनुनय सामंत को 'भौतिक विज्ञान में अनुसंधान' के लिए विजिटर अवार्ड, 2020 से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उन्हें आणविक प्रणालियों और सामग्रियों के ऊर्जन पर गठित अल्पकालिक रासायनिक प्रजातियों की स्पेक्ट्रोस्कोपी तथा गतिशीलता में उनके शोध योगदान के लिए दिया गया।





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एमजी/एमएस/एनके/डीए
(Release ID: 1938855)