विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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जमीन-आधारित दूरबीनों से ली गई सूर्य की तस्वीर की गुणवत्ता को मापने में नई मेट्रिक मदद कर सकती है

Posted On: 20 MAY 2023 4:48PM by PIB Delhi

हमने अपने निकटतम तारे सूर्य में कितनी दूर झांका है? वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित एक नया मेट्रिक जमीन-आधारित दूरबीनों से ली गई सूर्य की तस्वीर की गुणवत्ता को मापने में मदद कर सकती है।

सूर्य की सतह पर धधकती ज्वाला, ऊभार, और कोरोनल मास इजेक्शन जैसी सक्रिय घटनाओं ने सूर्य को हमारे खगोलविदों की रूचि का केंद्र बना दिया है। पृथ्वी का निकटतम तारा होने के चलते, इसका बहुत विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है और सूर्य की बेहतर समझ से अन्य तारों के गुणों के बारे में जानकारी जुटाई जा सकती है। यहां तक कि सबसे छोटी विशेषताओं को अधिक विस्तार से विश्लेषण करने के लिए, बड़ी दूरबीनों का निर्माण किया गया है- उनमें से एक मेरक में 2 मीटर राष्ट्रीय विशाल सौर दूरबीन (एनएलएसटी) को भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए) द्वारा तैनात किया जा रहा है।

हालांकि, जमीन पर जब दूरबीन सेट किया जाता है तो इसमें एक बड़ी खामी होती है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरता है, जो एक समरूप माध्यम नहीं है। इससे तापमान में उतार-चढ़ाव होते हैं जिससे अपवर्तक सूचकांक में भी उतार-चढ़ाव पाए जाते हैं। इससे प्रकाश बेतरतीब ढंग से मुड़ जाता है और इसे तीव्रता (चमक/झिलमिलाहट) की भिन्नता और डिटेक्टर पर तस्वीर की स्थिति के रूप में देखा जा सकता है। इसे दूर करने का एक तरीका वास्तविक समय में वातावरण की वजह से हुई इन विकृतियों को मापने और सही करने के लिए अनुकूल प्रकाशिकी (एओ) प्रणाली का उपयोग करना है।

लेकिन, हम अपने एओ सिस्टम के प्रदर्शन का आकलन कैसे करते हैं या जमीन-आधारित दूरबीन से तस्वीरों की गुणवत्ता का मात्रात्मक मूल्यांकन कैसे करते हैं? जमीन-आधारित दूरबीनों से प्राप्त तस्वीरों की गुणवत्ता को स्ट्रेहल अनुपात या रात के समय खगोलीय दूरबीनों के लिए सीधे उपयोग किए जाने वाले अन्य मेट्रिक के साथ निर्धारित नहीं किया जा सकता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए) के वैज्ञानिकों ने जमीन-आधारित सौर दूरबीनों से ली गई तस्वीर की गुणवत्ता को मापने के लिए रूट मीन स्क्वायर (आरएमएस) ग्रेनुलेशन कंट्रास्ट नामक एक नवीन मेट्रिक का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है।

उन सिद्धांतों का उपयोग करते हुए जो वातावरण की हलचलों की व्याख्या करने में इस्तेमाल की जा सकती हैं, वैज्ञानिक सरस्वती कल्याणी सुब्रमण्यन और श्रीधरन रंगास्वामी ने यह जानने के कई प्रयास किए कि जब कोई वायुमंडलीय हलचल (आदर्श मामला) नहीं है तो छवि कैसे दिखेगी और इस तस्वीर की तुलना दोनों ने उस तस्वीर से की जो वातावरण और एओ सुधार लागू करके ली गई।

दोनों वैज्ञानिकों ने टेलीस्कोप एपर्चर (डी) पर विचार किया जो भारत और दुनिया भर में मौजूदा या नियोजित सौर दूरबीन के आकार को दर्शाता है। उन्होंने इनपुट मापदंडों के विभिन्न संयोजनों के लिए स्ट्रेहल अनुपात और ग्रेनुलेशन की विषमता का निर्धारण किया। चूंकि यह एक अनुकरण है, इसलिए स्ट्रेहल अनुपात आसानी से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि व्यावहारिक तौर पर इसे आसानी से निर्धारित नहीं किया जा सकता है।

व्यावहारिक प्रणालियों और आदर्शवादी अनुकरण के परिणामों की तुलना करते हुए, उन्होंने स्ट्रेहल अनुपात के लिए लगभग 40 से 55% की दक्षता प्राप्त करने वाले एक दक्षता कारक की गणना की और दूसरी व्यवस्था में निचली सीमा के रूप में लगभग 50% दक्षता कारक रही। उनके परिणाम किसी भी सौर दूरबीन और उससे संबंधित एओ प्रणाली के प्रदर्शन को चिह्नित करने में उपयोगी होंगे।

प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1007/s11207-022-02105-2

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चित्रा 1: वायुमंडलीय हलचल के मामले में आरएमएस ग्रैनुलेशन कंट्रास्ट (% में) बनाम स्ट्रेहल अनुपात। मार्कर दूरबीन के व्यास (सेमी में) के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाईं ओर का तीर बेहतर वायुमंडलीय स्थितियों को दर्शाता है।

 

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चित्र 2 : वायुमंडलीय हलचल की क्षतिपूर्ति के बाद आरएमएस कंट्रास्ट (% में) बनाम स्ट्रेहल अनुपात। मार्कर ज़र्निके शब्दों की संख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके लिए सुधार किया गया है और विभिन्न रंग अलग-अलग दूरबीन व्यास (सेमी में) का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसा कि चित्र के दाईं ओर दिखाया गया है।

 

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